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ग्रामीण मेले पर निबंध Essay on Village fair in Hindi – Mela par Nibandh

मेला देखना हम सभी को पसंद होता है। कुछ दिनों बाद शिवरात्रि का त्यौहार आने वाला था। मैं भी अपने माता-पिता से मेला जाने को कहने लगा। शिवरात्रि के दिन मेरे मम्मी पापा मुझे मेला ले कर गये। हमारा घर इलाहाबाद के एक गांव में पड़ता है।  शिवरात्रि के दिन हमारे गांव में बहुत बड़ा मेला लगता है।

सभी लोग उसे देखने जाते हैं। वहां पर बहुत मजा आता है। गांव का जीवन शहरों की तुलना में बहुत ही सीधा सरल होता है। गांव वाले स्वभाव से बहुत भोले वाले होते हैं। सभी गांव वालों को मेला देखना बहुत पसंद होता है ।

मेले से बहुत मनोरंजन प्राप्त होता है। आप सभी जानते हैं कि गांव में घूमने फिरने की कोई खास जगह नहीं होती है। सिनेमाहॉल, मॉल या कोई थिएटर वगैरह नहीं होता है। ऐसे में मेले के द्वारा गांव वालों का भरपूर मनोरंजन होता है।

इसके अनेक फायदे भी हैं। बहुत से दुकान वाले, व्यापारी मेले में वस्तुएं बेच कर अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं। बच्चों को मेला देखना हमेशा ही पसंद होता है। शायद ही ऐसा कोई बच्चा होगा जिसे मेला देखना पसंद ना हो।

बच्चों को मेले में खाने पीने की ढेरों चीजें मिलती हैं। टॉफी, बिस्कुट, बुढ़िया का का बाल, गुब्बारे, खिलौने, जूते चप्पल, कपड़े, तरह तरह के झूले देखने को मिलते हैं। शिवरात्रि के दिन हमारे स्कूल की भी छुट्टी थी।

यह तो पहले से ही तय हो चुका था कि आज मम्मी पापा हमें मेला ले कर जाएंगे। मेरा छोटा भाई सुरेश मुझसे बार-बार मेला जाने की जिद कर रहा था। “सुरेश तू जल्दी से नहा ले और अपना स्कूल का होमवर्क कर लें। फिर हम मेला देखने जाएंग” मैंने उससे कहा

शाम 5 बजे तक मेरे मम्मी पापा मुझे लेकर शिवरात्रि का मेला दिखाने ले गये। मेले में बहुत भीड़ थी। सब तरफ लोग ही लोग दिख रहे थे। हमारे आस पास के पड़ोस के गांव से भी बहुत सारे लोग आए थे। मेले में चारों तरफ बहुत सी लाइट्स लगी थी। सभी दुकाने प्रकाश से चकाचौंध थी। वहां पर हमें बहुत सी दुकान देखने को मिली। खिलौनों की दुकान पर तो बच्चों की भीड़ लगी हुई थी।

सभी बच्चे अपने मां बाप से खिलौना खरीदने की जिद कर रहे थे। मेरा छोटा भाई सुरेश भी खिलौने देखकर मम्मी से कहने लगा- “मम्मी! मुझे वह बंदर वाला खिलौना चाहिए” वह खिलौना बहुत ही अच्छा था। उसमें एक प्लास्टिक का बंदर था जिसमे चाभी भरने पर वह ढोल बजाता था। वो खिलौना 70 रूपये का था।

मम्मी भी सुरेश को खुश करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने खिलौने वाली दुकान व से मोलभाव करके उस खिलौने को 50 रूपये में खरीद दिया। सुरेश बंदर वाला खिलौना पाकर बहुत खुश था । हम आगे बढ़े तो रेडीमेड कपड़ों की अनेक दुकान देखने को मिली। अब तो गांव में भी लोग शहरों जैसे कपड़े पहनना पसंद करते हैं।

उस दुकान पर जींस, टी शर्ट, लोवर, ट्राउजर, शर्ट्, टोपियां, जैकेट्स जैसे बहुत से कपड़े मिल रहे थे। वहां पर युवाओं की भीड़ लगी हुई थी। युवा लड़के लड़कियां उस दुकान से कपड़े खरीदने में व्यस्त थे। हम आगे पढ़े तो और भी बहुत सी दुकान देखने को मिली। मेले में चारों तरफ गहमागहमी थी। लोग धक्का-मुक्की कर रहे थे ।

“राम! देखो तुम अपना जेब संभाल के रखना, वरना कोई तुम्हारा पर्स चुरा लेगा” मेरे पापा ने मुझसे कहा। मेले में चोरियां भी बहुत होती हैं, इसलिए उन्होंने ऐसा कहा था। आगे बढ़ने पर हमें बहुत सी दुकानें देखने को मिली।

निशानेबाजी वाली दुकान पर जाकर हम सभी रुक गये। उस दुकान में एक दीवार पर बहुत से गुब्बारे लगे हुए थे और बंदूक से निशाना लगाकर उनको फोड़ना था। जो अधिक से अधिक गुब्बारों को फोड़ता उसे पुरस्कार में सामान मिलता।

यह दुकान देख कर पापा भी बहुत खुश हो गए। वह निशानेबाजी करना चाहते थे। उन्होंने दुकानदार को 10 रूपये   दिए और दुकानदार ने उन्हें बंदूक पकड़ा दी। पापा गुब्बारों पर निशाना लगाने लगे। पर 10 बार शूट करके वो सिर्फ दो ही गुब्बारे फोड़ पाये। इसलिए उन्हें इनाम में कुछ नहीं मिला ।

मेले में महिलाओं के लिए भी कपड़े बिक रहे थे, एक दुकान पर महिलाओं के लिए साड़ियां, सलवार सूट, कार्डिगन, लेगी, स्वेटर, जैकेट जैसे बहुत से कपड़े मिल रहे थे। मेरी मम्मी को एक स्वेटर खरीदना था।

उनको एक गुलाबी रंग का स्वेटर पसंद आया जो कि 500 का था। मोलभाव करने पर दुकानदार ने 400  रूपये का दे दिया। स्वेटर पाकर मम्मी भी बहुत खुश थी। उसके बाद हम सभी को भूख लग आई।

मम्मी पापा, सुरेश और मैं एक चाट वाले ठेले पर गये जहां पर हम सभी ने पानी के बताशे खाए। उसके बाद सभी ने चाट खाई जो कि बहुत स्वादिष्ट और जायकेदार थी। मेला बहुत बड़ा था जो कि अभी देखना बाकी था। अभी तो हम सिर्फ आधा मेला ही देख पाए थे। कुछ दूर आगे बढ़े तो वहां पर बहुत सारे झूले देखने को मिले। विभिन्न प्रकार के झूले उस मेले में थे।

मोटर से चलने वाली ट्रेन मुझे बहुत अच्छी लगी। उस ट्रेन में बच्चे बैठ जाते थे और वह ट्रेन गोल-गोल घूमती थी। हम पैदल पैदल आगे बढ़ते जा रहे थे। उसके बाद हमें बहुत से झूले देखने को मिले। सबसे बड़ा झूला तो बहुत विशाल था।

वह कम से कम 50-60 फुट ऊंचा होगा। वह झूला बहुत दूर से दिखाई दे रहा था। उसमें चारों तरफ ट्यूब लाइट जल रही थी जो कि बहुत सुंदर लग रही थी। उस झूले में सभी बच्चे अपने मम्मी पापा के साथ बैठे हुए थे। जैसे ही झूला ऊपर जाता था बच्चे जोर से चिल्लाते थे। उनको डर भी लगता था पर उनको मजा भी बहुत आता था।

“राम बोलो! तुम्हें कौन से झूला पर बैठना है?” पापा बोले। “पापा! मुझे इस बड़े वाले झूले पर बैठना है” मैंने कहा। उसके बाद पापा ने सभी के लिए टिकट खरीदा। एक टिकट का मूल्य 30 रूपये था। हम सभी झूले में बैठ गए। जैसे ही झूले की सभी सीटें फुल हो गई झूले वाले ने उसे चलाना शुरु किया, वह बिजली से चलने वाला झूला था।

पहले तो वह धीरे-धीरे ऊपर गया। हम सभी को मजा आ रहा था, पर डर भी बहुत लग रहा था । कुछ दिन बाद झूले की रफ्तार तेज हो गई और सभी लोग डर से कांपने लगे। झूला बड़ी जल्दी जल्दी ऊपर नीचे हो रहा था। ऐसा लगता था कि हम सभी कहीं टूट कर गिर ना पड़े। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

5 मिनट तक झूला चलता रहा और हम लोग के रोंगटे खड़े हो गये। सभी लोग खूब चिल्लाये। कुछ बच्चे तो उल्टी करने लगे। इस तरह हम सभी ने गांव के शिवरात्रि मेले का भरपूर आनंद उठाया। रात 9:00 बजे तक मैं अपने परिवार के साथ घर लौट आया। वह झूले का दिन मुझे आज भी याद आता है ।

village fair essay in hindi

नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

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मेला पर निबंध – Essay on Mela in Hindi Language

Essay on Mela in Hindi Language  प्रिय साथियों आज हम  मेला पर निबंध हिंदी में आपके साथ शेयर करने जा रहे हैं. 10 लाइन, 100, शब्द, 200 शब्द, 250, 500 शब्दों में यहाँ आपकों  Essay on Mela in Hindi Language पढ़ने को मिलेगा.

UKG & LKG से लेकर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10 के छात्र परीक्षा के लिहाज से इस हिंदी एस्से ओन फेयर मेले के निबंध को याद कर सकते हैं.

Short & Long Essay on Mela in Hindi Language For Students & Kids : भारत को त्योहारों एवं पर्वों का देश माना जाता है इन उत्सवों की रौनक को मेले और बढ़ा देते है.

भारतीय समाज में मेलों का बड़ा महत्व हैं. यही वजह है कि यहाँ हर समय कही न कही मेलों का आयोजन अवश्य ही होता हैं.

मेले कई प्रकार के होते है जिनमे कुछ धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक महत्व के होते हैं. इन मेला आयोजनों द्वारा अलग अलग स्थानों से लोग आकर मिलते है जिससे आपसी मेल मिलाप तथा भाईचारा भी बढ़ता है. कुम्भ तथा पुष्कर जैसे धार्मिक मेले सभी धर्मों में सद्भाव को बढ़ाते हैं.

बाल मेले, पुस्तक मेले तथा पशु मेलों का आयोजन भी मनोरंजन और लोगों के जीवन में उत्साह को बढ़ाने वाले होते हैं. भारत में कोटा का दशहरा मेला काफी लोकप्रिय है जिन्हें देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता हैं.

व्यापारियों के लिए मेले आमदनी का स्रोत होते है दूर दूर से आने वाले लोग खरीददारी करते है जिनसे उनकी रोजी रोटी भी चलती हैं. कई स्थानों पर पशुओं की खरीद फरोख्त के लिए भी पशु मेलों का आयोजन किया जाता हैं.

Essay on Mela in Hindi Language In 200 Words

मेला स्थल वह स्थान होता है जहाँ किसी विशेष अवसर पर हजारों की तादाद में लोग एकत्रित होते हैं. सामाजिक ,धार्मिक एवं व्यापारिक अथवा अन्य किसी मान्यता के चलते भी मेलों का आयोजन किया जाता हैं. भारत जैसे धार्मिक एवं बहुसंस्क्रतिक देश में साल के बारहों महीने तक मेलों का आयोजन चलता रहा हैं.

अधिकतर मेलों के द्रश्यों में समानता होती है वहां तरह तरह की दुकाने सजी होती है यथा मिठाइयो, खिलौनों जादूगर मौत का कुआ, बच्चों को घुमाने वाले झूले आदि प्रत्येक मेले का अहम हिस्सा होते हैं. भारत में अधिकतर धार्मिक मेलों का आयोजन होता है जिनका कारण कोई संत फकीर अथवा देवी देवता होते हैं.

पशु, व्यापार तथा कृषि मेले का आयोजन भी बड़े स्तर पर किया जाता हैं. प्रयागराज में लगने वाले कुम्भ के मेले को विश्व के सबसे बड़े मेले का खिताब प्राप्त हैं. 

हमारे शहर में हर दशहरे पर एक छोटे से मेले का आयोजन किया जाता हैं. शास्त्री पार्क में लगे इस मेले को देखने के लिए हजारों लोग एकत्रित होते हैं. विशाल जनमानस के इस सैलाब की अंतरात्मा में भक्ति के भाव हिलोरे मार रहे होते हैं.

पांच बजे से ही मेले का शुभारम्भ हो जाता हैं. ठीक इसी समय मैं भी स्वयं को रोक नहीं पाया तथा अपने दादाजी को साथ लेकर हम मेला स्थल की तरफ चल पड़े. शुभारम्भ कार्यक्रम चल रहा था.

मुख्य अतिथि द्वारा मेले का शुभारम्भ किया गया. लोग आपस में एक दूसरे के साथ धक्का मुक्की करते तेजी से आगे निकलने की फिराक में थे. हम उस नजारे से थोड़ा दूर व्यवस्था कायम होने का इन्तजार कर रहे थे. भगदड़ शांत हुई मेला अपने मूल स्वरूप में आ गया.

इस दशहरे मेले में अलग अलग दुकाने सजी हुई थी कुछ पकवानों की तो कुछ खिलौनों कपड़ों घरेलू आवश्यकता की चीजों की थी. मेरा मन झूले पर झूलने का कर रहा था.

हमारे कदम भी उसी तरह बढ़ रहे थे. मैंने व्यवस्थापकों की निर्धारित शुल्क टिकट को प्राप्त किया तथा झूले में झूलने का पूर्ण आनन्द उठाया.

कुछ ही देर बाद, रावण, कुम्भकर्ण, और मेघनाद के दहन का कार्यक्रम शुरू हो गया. इन तीनों राक्षसों के बड़े पुतलों को बस जलाया जाना बाकी था. सुरक्षा के लिहाज से अच्छे प्रबंध किये गये थे. मुख्य अतिथि ने ज्यू ही तीर छोड़ा तीनों पुतले धू धू कर जलने लगे तेजी से पटाखों की आवाज आने लगी.

ठीक 15 मिनट तक यह सब चलता रहा और जय श्रीराम के नारों के साथ पूरा मेला प्रांगण भक्ति के रस में डूबा हुआ सैलाब अपने घरों की ओर प्रस्थान कर रहा था मैं भी अपने दादाजी को लेकर अपने घर आ गया.

Essay on Mela in Hindi Language In 500 Word

ग्रामीण मेले पर निबंध Essay on Village fair in Hindi – Mela par Nibandh : मेले का भ्रमणं हर किसी के मन को भाने वाला होता हैं. यह शिवरात्रि का समय था जब हमारे परिवार के सभी लोगों ने निश्चय किया कि जयपुर के शिवरात्रि मेले जायेगे.

मगर किसी कारणवंश हम जयपुर नहीं जा सके तो किसी का मन आहत न हो इसलिए हमने हमारे गाँव के पास ही लगने वाले एक मेले में जाने पर सभी की सहमति बनी.

यह एक ग्रामीण मेला था जो मेरे लिए मेला देखने का पहला अनुभव भी था इसलिए मैं सभी से अधिक उत्साहित भी था. आमतौर पर छोटे गाँवों में घूमने फिरने अथवा देखने के लिए कोई आकर्षक स्थान नहीं होते है. मगर ग्रामीण मेले के आयोजन से कुछ नया देखने की उम्मीद भी जीवित थी.

मेले के आयोजन के अनेक फायदे होते है यहाँ आने वाले लोगों का मनोरंजन तो होता ही हैं. साथ ही व्यापारी लोग इस तरह के मेलों से अपनी आजीविका को चला पाते हैं. वे अपने सामान को ऐसे स्थानों पर छोटे ठेले या दुकान लगाकर आसानी से बेच सकते हैं.

मेले बच्चों के लिए विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र होते हैं. बच्चों के लिए यहाँ के झूले, खिलौने, मिठाइयाँ, जादूगर, गुब्बारे, टोफियाँ आदि आदि उनकी विश लिस्ट के सामान हो वो आसानी से मिल जाया करते हैं.

वैसे तो मुझे हर सुबह थैला लेकर स्कूल के लिए निकलना पड़ता हैं. मगर शिवरात्रि के दिन मेरे विद्यालय की ओर से अवकाश मिल जाने से मेला भ्रमण का मेरा सपना साकार का होने लगा था.

मैं अपना बड़ा भाई और मम्मी पापा के संग मेला देखने के लिए छः बजे ही घर से निकल गये. जब गाँव का नजारा आँखों के सामने आया तो मैं आवाक् रह गया. इतना बड़ा जनसैलाब मैं पहली बार देख रहा था. हजारों की संख्या में लोग तेजी से मेले के स्थान पर पहुच रहे थे.

गजब का शौरगुल कभी भोपू की आवाज तो कभी फेरीवालों तथा दुकानदारों की आवाजे स्पष्ट सुनाई दे रही थी. दुकानों पर लोगों की भीड़ जमा थी दुधिया रोशनी से पूरा गाँव दुल्हन की तरह नहाया हुआ था. लोग इधर से उधर अपने बच्चों को साथ लिए हुए बढ़ रहे थे.

बच्चें अपने मम्मी पापा से खिलौने की जिद्द कर रहे थे तो मेरा बचपना भी जग गया मैंने भी अपने बड़े भाई से रिमोट से चलने वाले हवाई जहाज की मांग कर ही डाली. उन्होंने 500 रूपये खर्च कर वो जहाज मुझे दिला दिया तथा बदले में मैंने भी भाई को बड़ा सा धन्यवाद भी दे दिया.

मुझे पता था मेरे भाई मेरी हर जिद्द पूरी करते है तो इस बार भी वो मेरी मांग को पूरा करेगे. बहरहाल हम खिलौना खरीदने के बाद दुकानों की उसी कतार में आगे बढ़े कि मुझे एक स्वेटर की अच्छी दुकान दिखी.

मैंने मम्मी पापा से कहकर बड़े भाई के लिए अच्छा कोट खरीद दिया. बड़े गर्व के साथ इसे भाई को पहनाकर मैंने अपना एहसान इसी गाँव के मेले में चुकता कर दिया.

मेले की हरेक दुकान पर युवक युवतियों की लम्बी भीड़ थी सभी अपनी पसंद की वस्तुओं की खरीददारी कर रहे थे. तभी एक जोर से आवाज आई चोर चोर, मैंने मुड़कर देखा तो एक व्यक्ति तेजी से भाग रहा था तथा कुछ लोग उसका पीछा कर रहे थे.

तभी मेरे पापा ने मुझे अपनी तरफ खीच लिया. मेरे भाई तेजी से उस व्यक्ति की ओर लपके जो किसी का पर्स चुराकर भाग रहा था. कुछ ही कदम पर राहुल ने चोर को अपनी बाहों में जकड़ लिया तथा उसे पुलिस के हवाले कर दिया.

वहां खड़े सभी लोगों ने राहुल की बहुत प्रशंसा की. हमने भी बड़े भाई की इस बहादुरी भरे कार्य को तालियाँ बजाकर स्वीकार किया. कुछ आगे बढने पर हम भोलेनाथ के मन्दिर पहुचे आठ बजे का समय हो चूका था.

ढोल नगाड़ों के साथ शिवजी की आरती हो रही थी. हम सभी लोग भोलेनाथ को प्रणाम कर हाथ जोड़कर खड़े हो गये.

पाठ पूजा और आरती पूरी होने के बाद सभी ने प्रसाद खाया. रात काफी हो चुकी थी पापा उसी रात शिवरात्रि की भजन संध्या के लिए रूक गये तथा मैं राहुल और अपनी माताजी के साथ घर आए गये.

इस तरह मेरे गाँव के शिवरात्रि के मेले का अनुभव आज भी यादाश्त में बसा हुआ हैं. जब भी मेले का नाम जेहन में आता है तो यह द्रश्य यकायक आँखों के सामने उपस्थित हो जाता हैं.

Essay on Mela in Hindi Language In 1000 Words

Essay on Indian Fair in Hindi Language : भारत को मेलों का महासागर कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. क्योंकि भारत जैसे देश में समय समय और विविध स्थानों पर मेले लगते हैं.

तीज त्योहार, पर्व, उत्सव और जयंती के मौकों पर मेलों का आयोजन किया जाता हैं. वही कुछ सांस्कृतिक मेलों का आयोजन राज्य सरकारे व विभिन्न संस्थान करते हैं.

कही पर बड़े बड़े पशु मेले लगते है तो कही मजारों तथा मन्दिरों व समाधि स्थलों पर भी धार्मिक मेलों का आयोजन नियत अवसरों पर किया जाता है.

राजस्थान में कई अवसरों पर मेलों का आयोजन होता है. दशहरे के अवसर पर लगने वाले कोटा के मेले, पुष्कर मेले व तेजाजी के मेले के अतिरिक्त जैसलमेर के रामदेवरा में लोक देवता रामदेवजी का प्रसिद्ध मेला हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीया के दिन भरता हैं.

साम्प्रदायिक श्रेणी का यह मेला राज्य का सबसे बड़ा मेला भी हैं. यहाँ हिन्दू मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग समान भाव से आकर पूजा अर्चना करते हैं.

कई महीनों तक रामदेवरा मेला चलता है. लगभग एक महीने तक यह मेला चलता है जिसकी ख़ास बात यह है कि रामदेवरा दर्शन के लिए लाखों की संख्या में लोग राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब हरियाणा से लोग आते हैं.

यहाँ अधिकतर आने वाले जातरु पैदल यात्रा के जरिये पहुचते हैं. कई महीनों तक पैदल यात्रा के बाद बाबा के मेले में भक्ति भाव से लोग मंगल कामना कर आशीर्वाद लेकर घर लौटते हैं.

मैं भी कई बार अपने दोस्तों के साथ रामदेवरा मेले में गया हूँ. मेरे घर से रामदेवरा की दूरी 300 किमी है यहाँ तक पहुचने का सफर 6-7 सात दिनों में तय होता हैं.

रामदेवरा में लोग मनोरंजन या अधिक मेले के पहलुओं को लेकर आने की बजाय आस्था तथा धर्म के लिए दर्शन करने पहुचते हैं. बीच रास्ते लोगों के लिए तमाम व्यवस्थाओं का प्रबंध विभिन्न संस्थाओं द्वारा किया गया है जिसमें लोगों को निशुल्क खाना, दवाई आदि की मदद की जाती हैं.

हमारा 300 किमी का सफर पूरा होते होते एक सप्ताह तक राह में ही निकल गया, मगर इसका कभी एहसास भी नहीं हुआ, कि हम इतने दिनों से चल रहे हैं. सड़क लोगों से खचाखच भरी रहती है बाबा के जयकारों की गूंज देर रात तक सुनाई पड़ती हैं.

इस तरह के नजारे के बीच थकान तो कभी महसूस ही नहीं होती. रामदेवरा एक छोटा सा गाँव हैं जिसके बारे में मान्यता है कि 15 वीं सदी में चमत्कारी लोक देवता बाबा रामदेवजी की यह कर्मस्थली रहा.

इन्होने ही इसी गाँव को बसाया था तथा यही पर बने मुख्य मन्दिर के स्थान पर इन्होने समाधि ली थी. तब से लेकर आज तक उनके जन्म दिन के अवसर पर यहाँ विशाल मेला भरता हूँ.

रामदेवरा में पहुचने के पश्चात बाबा के दर्शन के कई घंटे लग गये. तकरीबन 50 हजार लोग दर्शन के लिए कतार में खड़े थे. पुलिस तथा प्रशासन की पुख्ता व्यवस्था के चलते तेजी से सभी लाइन आगे बढ़ रही थी.

हमने लाइन में ही रहते हुए पास ही लगे प्रासाद घरों से प्रसाद तथा पूजा की सामग्री खरीद ली. आगे बढ़ते जाने पर आखिर वो नजारा उपस्थित हो ही गया, जिसका हमें बीते सात दिनों से बेसब्री से इन्तजार था.

सोने से मढ़ी बाबा की समाधि के सिर झुकाकर नमन किया और आगे के लिए निकल गये. मन्दिर में ही समाधि स्थल के अतिरिक्त कई मन्दिर और दर्शनीय स्थान हैं. मूल मन्दिर के पीछे एक बावड़ी और तालाब भी हैं. जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं.

अन्य मेलों की तरह रामदेवरा के मेले में भी वो सब कुछ था. झूले, दुकाने, जादूगर,सर्कस मगर यहाँ एक चीज सबसे अलग थी वो थी आस्था जो अन्य मेले में शायद ही देखने को मिले.

यहाँ की अधिकतर दुकानें प्रसाद घर, बाबा रामदेवजी की तस्वीरों की ही थी. मगर थोड़ा बाहर आने पर वो समस्त प्रकार की दुकानों को देखा जा सकता था. जो व्यक्ति की सभी जरूरतों को पूरा कर सके.

मैंने अपने जीवन में कई मेलों और दर्शनीय स्थलों का भ्रमण किया है मगर मुझे सबसे अधिक प्रभावित रामदेवजी के रुनिचा मेला ने किया हैं.

यही वजह है कि मैं कई बार यहाँ गया है मन्नते पूरी करवाने या अन्य धार्मिक पहलू की पूर्ति की बजाय यहाँ आने से जो दिल को सुकून मिलता है वो किसी स्थान पर नहीं.

और भी अवसर मिला तो मेरी कोशिश रहेगी फिर से रामदेवरा मेला का दर्शन किया जाए. आप भी किसी ऐसे स्थल की खोज में है जहाँ भक्ति और शक्ति का मेल हो तो हम आपकों रामदेवरा आने का निमंत्रण देते हैं.

मेलों के कई सारे लाभ होते है जिनके कारण हर बार इनका आयोजन किया जाता हैं. लोग एक दूसरे से मिलते है जिससे मेलजोल बढ़ता है. लम्बे समय बाद मन हल्का करने के लिए घूमने का एक बहाना भी मेले ही प्रदान करते हैं. अलग अलग तरह के मेलों का अपना महत्व हैं.

पशु मेले कृषकों तथा पशुपालकों के लिए आयोजित होते हैं. धार्मिक मेले किसी समुदाय विशेष के लिए पुस्तक मेले अच्छी पुस्तकों के अध्ययन में रूचि रखने वाले लोगों के लिए, ये सब मेले बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र तो होते ही हैं, साथ ही बच्चों के लिए विशेष रूप से बाल मेले का आयोजन कई स्थानों पर किया जाता हैं.

मेलों के आयोजन से लाभान्वित होने वाला दूसरा व्यवसायी वर्ग हैं. उन्हें हर श्रेणी के मेले में अपना माल बेचने तथा मुनाफा कमाने के अच्छे अवसर विद्यमान रहते हैं.

मेले के आयोजन से टैक्स के द्वारा राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकाय को भी लाभ मिलता हैं. जबकि इस तरह के कार्यक्रमों में पुलिस तथा प्रशासन के लिए कठिन परीक्षा का समय होता हैं.

उन्हें सम्बन्धित क्षेत्र में लोगों की सुरक्षा के दायित्व को निभाना होता हैं. हाल ही में अमृतसर के दशहरे के रावण दहन के समय जो हुआ, इसकी कभी पुनरावृति ना हो सके.

इसके लिए प्रशासन तथा आयोजकों के अपने प्रबन्धन को एक अच्छे स्तर तक ले जाना होगा, जिससे हमारी मेलों की इस परम्परा को और अधिक मजबूत किया जा सके.

2 thoughts on “मेला पर निबंध – Essay on Mela in Hindi Language”

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