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गोदान ( उपन्यास ) की समीक्षा | Godan Book Review In Hindi

Godan Book Review In Hindi –   हेल्लो फ्रेंड्स , आज के इस लेख में हम मुंशी प्रेमचंद जी की सर्वोतम कृति माना जाने वाला उपन्यास गोदान की समीक्षा करेंगे ! यह एक कृषि और भारतीय संस्कृति पर आधारित महाकाव्य है जिसमे भारतीय गाँवो के समाज का सजीव चित्रण किया गया है ! इस उपन्यास में होरी और धनियाँ को मुख्य पात्र बनाया गया है ! आइये जानते है Godan Book Review In Hindi

Introduction

Name – Godan ( उपन्यास )

Author – Munshi Premchand

Subject  – साहित्य

Pages – 328

लेखक के बारे में ( About Author )

मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी , उत्तर प्रदेश में 31 जुलाई , 1880 को हुआ ! वह एक अध्यापक और लेखक के रूप में जाने जाते थे ! उन्होंने बहुत सी कहानी और उपन्यासों की रचना की है ! उन्होंने अपनी कहानी और उपन्यासों द्वारा समाज में एक अलग ही पहचान बनाई है ! उनके कहानी और उपन्यास आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने पहले थे ! 56 वर्ष की उम्र में 8 अक्टूम्बर 1936 को उनका देहांत हो गया था !

Godan Book Review In Hindi

गोदान ( Godan ) मुंशी प्रेमचंद का एक हिंदी उपन्यास है जिसमे 20 सदी के रुढ़िवादी समाज का जिवंत चित्रण किया गया है ! Godan में भारतीय किसान का अद्भुत चित्रण किया गया है जिसमे दिखाया गया है कि वह कैसे अपने परिवार को पालने के लिए सेठ , साहुकारो , जमींदारो आदि के शोषण का शिकार होता है और अपनी पूरी जिंदगी भय और निराशा के साथ गुजारता है !

गोदान में बताया गया है कि कैसे एक भारतीय किसान अपनी छोटी – छोटी जरूरतों के लिए साहुकारो से ऋण लेता है और हमेशा उस कर्ज को चुकाने के लिए निराशा में अपनी सम्पूर्ण जिंदगी गुजार देता है ! इसमें बताया गया है कि कैसे जमीदार , मील के मालिक , पेशेवर वकील , राजनेता लोग आदि अनपढ़ और नासमझ किसानो का शोषण करते है !

गोदान में लेखक प्रेमचंद ने जो भी बाते कही है वे सब एक संदर्भ में कही है जो आज भी उतना ही महत्वपूर्ण रखती है जितना वो पहले रखती थी ! गोदान में लेखक ने महाजनों , साहुकारो आदि पर तीखे प्रहार किये है और बताया है कि एक किसान को पूरी जिंदगी इनके चक्कर लगाने में गुजारनी पड़ती है !

गोदान उपन्यास के मुख्य पात्र

होरी – मुख्य नायक

धनियाँ – होरी की पत्नी

गोबर , सोना , रूपा – होरी की संतान

हीरा और शोभा – होरी के भाई

झुनियाँ – गोबर की पत्नी

मुंशी प्रेमचंद जी एक बहुत बड़े कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में जाने जाते है ! उनकी कहानियां और उपन्यास आज भी समाज को एक अच्छा सन्देश देती है ! गोदान प्रेमचंद जी का एक बहुत ही शानदार उपन्यास है ! गोदान ( Godan ) में लेखक ने हमारे समाज की कुंठा , निराशा , ऋणग्रस्तता आदि का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है ! प्रेमचंद जी ने गोदान के जरिये यह बताने का प्रयास किया है कि भारतीय किसान साहुकारो के चंगुल में फसकर कर्ज का शिकार रहा है और अपने परिवार का पेट पालने की चिंता में ही अपना जीवन गुजर देता है !

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गोदान ( उपन्यास ) की समीक्षा | Godan Book Review In Hindi

हेल्लो फ्रेंड्स , मेरा नाम जगदीश कुमावत है और मै BooksMirror.Com का फाउंडर हूँ ! यह एक हिंदी बुक्स ब्लॉग है जिसमे हम Motivational और self – help बुक्स की समरी और रिव्यु शेयर करते है !

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गोदान - मुंशी प्रेमचंद ( review of Godaan by munshi Premchand ) Book review

गोदान की समीक्षा (godan- book review), गोदान के लेखक " मुंशी प्रेमचंद" (1900-1936), गोदान,मुंशी जी की कालजयी रचना में से एक है।उनकी हर उपन्यास समाज के लिए दर्पण की तरह ही है एवं समाज को उसके ही स्वरूप का दर्शन कराती हैं।तथा वर्तमान समय में भी यह हमें 'आज के ही वर्तमान से मिलाती हैं। इसलिए गोदान को कालजयी माना हैं। गोदान की कहानी हमें ग्रामीण-जीवन और शहरी विचारधारा को बहुत ही अद्भुत ढंग से देखने और  समझने का अनुभव देती हैं।, गोदान के पात्र  - , गोदान का मुख्य पात्र "होरी महतो " जो एक गरीब किसान है और  अपने सच्चे आदर्शों के साथ अपने जीवन की मूलभुत वस्तु के लिए संघर्ष करता है, वही उसकी पत्नी 'धनिया'है, जो एक तेज-तरार और बेबाक महिला हैं उसे समाज की रीत- व्यवहार से कोई मतलब नही है।उसका बेटा गोबर एक गरमखून का युवा,ज़मीदार रायसाहब और उनके कुछ मित्र मेहता ,मिस मालती जो डॉक्टर है और बड़ी ही बोल्ड महिला,जो अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं।, गोदान की रूपरेखा /महत्व/विषयवस्तु--, उपन्यास में सिर्फ होरी का ही नहीं बल्कि गांव के अन्य किसान व खून चूसने वाले महाजन ,धार्मिक ठगी करने वाले ब्राह्मण ,दलित वर्ग की स्थिति ,पारिवारिक मूल्य,ग्रामीण मूल्य ,परोपकार ,लालच का बहुत ही अद्भुत दर्शन होती हैं। तो वही दूसरी ओर अभिजात्य वर्गों, जो धनी भी है और शिक्षित भी ,वे अपने ही शहरी जीवन के संघर्ष ,तथा विदेशी आदर्शो को अपनाने में लगे हुए हैं , शिक्षित वर्ग भी है जो समाज में परिवर्तन लाना चाहते है ,वे विचारशील है ।जिनके विचारों का मुंशी प्रेमचंद जी ने बहुत ही सार-पूर्ण वर्णन किया है। गोदान समाज में महिला की स्थिति पर भी प्रकाश डालता हैं तथा शिक्षित महिलाओ द्वारा,अन्य महिलाओं को अपनी स्थिति सुधारने के लिए जागरूक करना,जो आज के वर्तमान परिदृश्य में भी जारी है। गोदान 1936 में लिखी गई है परंतु इसमें वर्तमान परिदृश्य का ही वर्णन लगता है।समाज में संघर्ष हमेशा ही चलता रहता है,संघर्ष चाहे अमीर-गरीब का हो, शोषित व शोषक वर्गों का या महिलाओं की स्थिति सुधारने का हो । ये सब संघर्ष तब भी थे ,और आज भी, ये सब है।आप इस उपन्यास को आउटडेटिड नहीं कह सकते है इन्हें भी देखें   "नीम का पेड़ -  डॉ. राही मासूम रज़ा " समीक्षा , गोदान की भाषा शैली - , गोदान उपन्यास की भाषा  सामान्य हिंदी ही हैं और इसमे कुछ-कुछ ग्रामीण बोली का पुट दिखाई देता हैं कुछ स्थानों पर  सामाजिक व्यंग्य भी दिखाई देता हैं।गोदान बहुत ही मार्मिक उपन्यास है और पढ़ते समय कई स्थानों पर आँशु को रोका नही जा सकता हैं। मार्मिकता ग्रामीण परिवेश में ही नही वरन् शहरी वर्गों की स्थिति भी मार्मिक ही हैं लोगो का संघर्ष पूरी जीवन-भर,बस अपने बेसिक अवश्यकता के लिए,बहुत ही कष्ट-दायक लगता है। कई सहायक पात्र है जो अपने व्यवहार में इतने सच्चे है कि आपको पढ़कर शांति और ख़ुशी की अनुभूति होती हैं,इसमे आपको भारतीय ग्रामीण परंपरा ,प्रेम ,सामजिक समरसता का बहुत ही सूंदर वर्णन मिलता हैं गोदान के पात्रो  की छोटी-छोटी बात,व्यवहार आपको, आपके ही संस्कृति का दर्शन कराएँगे और आपको वर्तमान समाज में, सामजिक अपनापन खोने की झलक दिखाई देगी।, क्यों पढ़ें गोदान - , गोदान आपको सामाजिक मूल्यों तथा विचारों को और साफ देखने में मदद करेगा। यह गोदान उपन्यास आपकी देखने और विचार की दृष्टिकोण में अत्याधिक परिवर्तन लाएगा और आपको अपने शुद्ध भारत से परिचित कराएगा। गोदान उपन्यास खरीदने के लिए बुक पर क्लिक करे |, गोदान टीवी सीरियल  बनाम  गोदान पुस्तक --, गोदान पर तहरीर टीवी सीरियल है परंतु वह बस होरी पात्र के चारो ओर घूमती है, बुक इतनी बड़ी है कि लेखक के विचारो को पर्दे पर लाना बहुत कठिन है आपको बस पात्रो के संवाद को ही दिखाया गया है।लेखक के विचार जो इस उपन्यास गोदान की आत्मा है उसे दिखाना कठिन है।इसलिए पुस्तक पड़ना ही सही है।.

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1 टिप्पणियाँ

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Awesome bro.

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गोदान – मुंशी प्रेमचंद

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(Godan) गोदान : एक परिचय

Godan Hindi Novel : ग्रामीण परिवेश और कृषक जीवन का जीता जागता चित्रण है ‘गोदान’.1936 में प्रकाशित ‘ Godan ’ प्रेमचंद का अंतिम सम्पूर्ण उपन्यास भी है और सर्वोत्तम कृति भी, ‘जिसमें प्रेमचंद ने गाँव और शहर की कथाओं का यथार्थ और संतुलित चित्रण किया है। शायद ही कोई भाषा हो, जिसमें godan का अनुवाद न हुआ हो। कथानायक होरी और उसकी पत्नी धनिया के माध्यम से उन्होंने किसान के जीवन, उनके शोषण, उनकी व्यथा,उनकी तड़प का बारीकी से वर्णन कर किसान के जीवन को अमर बना दिया।

होरी किसान वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। उसकी वेदना और पीड़ा पाठकों के मन में गहरी संवेदना भर देती है। आजीवन संघर्ष करने के बावजूद होरी के गोदान की इच्छा मरते दम तक पूरी नहीं हो पाती है और इस अधूरी इच्छा के साथ ही वह इस दुनिया से विदा हो जाता है। केवल होरी ही नही यह उस दौड़ के हर किसान की आत्मकथा और पीड़ा है , जिसे दुनिया तक पहुँचाने में प्रेमचंद ने अपने कलम की पूरी ताकत लगा दी है।

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Godan प्रेमचन्द की सर्वोत्तम कृति है, जिसमें उन्होंने ग्राम और शहर की दो कथाओं का यथारूप और संतुलित मिश्रण प्रस्तुत किया है ।दीन-हीन होरी चार पैसे जुड़ने पर महाजनी करने लगता है । गोबर भी लखनऊ जाकर महाजन बन बैठता है । इसी प्रकार दातादीन पण्डा, झींगुर, सहुआइन, जाखेराम भी महाजनी में किसानों को इशारों पर नचाते हैं ।

शहर में खन्ना साहब बैंक खोल लेते हैं । बिजली अखबार के सम्पादक ओंकारनाथ गरीबों के पक्षधर होते हुए भी बैंकर खन्ना से नहीं बिगाड़ कर पाते ।

तो इस पृष्ठभूमि में गोदान होरी की कहानी है, उस होरी की जौ जीवन भर मेहनत करता है, अनेक कष्ट सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके और इसीलिए वह दूसरों को प्रसन्न रखने का प्रयास भी करता है, किन्तु उसे इसका फल नहीं मिलता और अंत में मजबूर होना पड़ता है, फिर भी अपनी मर्यादा नहीं बचा पाता।

परिणामतः वह तप-तप के अपने जीवन को ही होम देता है । यह होरी की ही कहानी नहीं, उस काल के हर भारतीय किसान की आत्मकथा है और, इसके साथ जुड़ी है शहर की प्रासंगिक कहानी । दोनों की कथाओं का संगठन इतनी कुशलता से हुआ है कि उसमें प्रवाह आद्योपांत बना रहता है । प्रेमचन्द की कलम की यही विशेषता है ।

Godan के लेखक : मुंशी प्रेमचंद

हिंदी साहित्य जगत में प्रेमचंद (31 जुलाई 1880- 8 अक्टूबर 1936) की लोकप्रियता इस कदर है कि उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी गई है। यह उनकी कलम का ही जादू है कि शायद ही कोई बच्चा उनके नाम और उनकी कहानी ‘ईदगाह’ के बारे में न जानता हो।

उनकी सभी रचनाएं समाज की विभिन्न पहलुओं, मनोदशाओं एवं विडम्बनाओं को दर्शाती हैं , फिर चाहे वह कहानियों के माध्यम से हो या फिर उपन्यासों के माध्यम से। गंवई पृष्ठभूमि, जमींदारी प्रथा, मानवीय संवेदनाएं उनकी रचनाओं में प्रमुख स्थान पाते हैं , जो तत्कालीन समाज का आईना लगती हैं।

उनकी कहानियों की चर्चा करें तो ‘ईदगाह’, ‘नशा’, ‘दो बैलों की कथा’ ,’नमक का दरोगा’, ‘कफ़न’ जैसे कई कहानियां और ‘सेवासदन’ ,’कायाकल्प’ ,’गबन’ और ‘गोदान’ आदि उपन्यास आज भी प्रासंगिक लगते हैं क्योंकि ये समाज की निम्न एवं मध्यवर्गीय सोच और रहन सहन को दर्शाते हैं। उर्दू और हिंदी दोनों ही भाषा में उन्होंने प्रसिद्धी पाई जो उनकी मृत्यु के बाद भी कम नहीं हुई है और उनकी रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर हैं।

Godan भाग-1 : होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा-गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना । मैं न जाने कब लौटूँ । ज़रा मेरी लाठी दे दे ।

धनिया के दोनों हाथ गोबर से भरे थे । उपले पाथकर आयी थी । बोली-अरे, कुछ रस-पानी तो कर लो । ऐसी जल्दी क्या है ।

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होरी ने अपने झुर्रियों से भरे हुए माथे को सिकोड़कर कहा-तुझे रस-पानी की पड़ी है, मुझे चिन्ता है कि अबेर हो गयी तो मालिक से भेंट न होगी । असनान-पूजा करने लगेंगे, तो घंटों बैठे बीत जायेगा । ‘इसी से तो कहती हूँ, कुछ जलपान कर लो । और आज न जाओगे तो कौन हरज होगा । अभी तो परसों गये थे ।

‘तू जो बात नहीं समझती, उसमें टाँग क्यों अड़ाती है भाई? मेरी लाठी दे दे और अपना काम देख । यह इसी मिलते-जुलते रहने का परसाद है कि अब तक जान बची हुई है । नहीं कहीं पता न लगता कि किधर गये । गांव में इतने आदमी तो हैं, किस पर बेदखली नहीं आयी, किस पर कुड़की नहीं आयी । जब दूसरे के पाँवों-तले अपनी गर्दन दबी हुई है, तो उन पाँवों को सहलाने में ही कुशल है read more

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भाग 1 -गोदान

प्रकाशित : 29-01-2022

भाग 2 – गोदान

भाग 3 – गोदान

प्रकाशित : 31-01-2022

भाग 4 – गोदान

प्रकाशित : 01-02-2022

भाग 5 – गोदान

प्रकाशित : 02-02-2022

भाग 6 – गोदान

प्रकाशित : 03-02-2022

भाग 7 – गोदान

प्रकाशित : 04-02-2022

भाग 8 – गोदान

प्रकाशित : 05-02-2022

भाग 9 – गोदान

प्रकाशित : 06-02-2022

भाग 10 – गोदान

प्रकाशित : 07-02-2022

भाग 11 – गोदान

प्रकाशित : 08-02-2022

भाग 12 – गोदान

प्रकाशित : 09-02-2022

भाग 13 – गोदान

प्रकाशित : 10-02-2022

भाग 14 – गोदान

प्रकाशित : 11-02-2022

भाग 15 – गोदान

प्रकाशित : 12-02-2022

भाग 16 – गोदान

प्रकाशित : 13-02-2022

भाग 17 – गोदान

प्रकाशित : 14-02-2022

भाग 18 – गोदान

प्रकाशित : 15-02-2022

भाग 19 – गोदान

प्रकाशित : 16-02-2022

भाग 20 – गोदान

प्रकाशित : 17-02-2022

भाग 21 – गोदान

प्रकाशित : 18-02-2022

भाग 22 – गोदान

प्रकाशित : 19-02-2022

भाग 23 – गोदान

प्रकाशित : 20-02-2022

भाग 24 – गोदान

प्रकाशित : 21-02-2022

भाग 25 – गोदान

प्रकाशित : 22-02-2022

भाग 26 – गोदान

प्रकाशित : 23-02-2022

भाग 27 – गोदान

प्रकाशित : 24-02-2022

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प्रकाशित : 25-02-2022

भाग 29 – गोदान

प्रकाशित : 26-02-2022

भाग 30 – गोदान

प्रकाशित : 27-02-2022

भाग 31 – गोदान

प्रकाशित : 28-02-2022

भाग 32 – गोदान

प्रकाशित : 01-03-2022

भाग 33 – गोदान

प्रकाशित : 02-03-2022

भाग 34 – गोदान

प्रकाशित : 03-03-2022

भाग 35 – गोदान

प्रकाशित : 04-03-2022

भाग 36 – गोदान

प्रकाशित : 05-03-2022

FAQ | क्या आप जानते हैं

मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी है

प्रेमचंद का जन्म कहाँ हुआ था?

प्रेमचंद की पत्नी का नाम क्या है?

प्रेमचंद के पिता कौन थे?

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गोदान / प्रेमचंद / समीक्षा.

"गोदान" के ७५ साल पूरे होने पर लोकप्रिय समीक्षक वीरेन्द्र यादव जी ने इस पर समीक्षा लिखी है.जिसे प्रभात खबर ५ जून २०११ के अंक में प्रकाशित किया है. गोदान की समीक्षा के सहारे उन्होंने अतीत को वर्त्तमान से जोड़कर एक नई व्याख्या और दृष्टिकोण को जन्म दिया है.जिस गंभीर और मार्मिक नजरिये से "गोदान" के नेपथ्य से वर्त्तमान पर तमाचा जड़ें हैं वह कहीं न कहीं हमारी पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान है. यह समीक्षा २१ सदी के इन्डिया का पुर्नमूल्यांकन के लिए बाध्य करती है.हमारे पास परमाणु बम है.दुनिया के पैमाने पर उभरती नई आर्थिक शक्ति में हमारी गिनती हो रही है.दुनिया का दादा अमेरिका तक से अपनी पीठ थपथपाए गदगद सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार के कथित ईमानदार प्रधानमंत्री भारत के मौजूदा विकास दर के मार्फ़त शक्तिशाली राष्ट्र बनने का सपना देख रहे हैं.लेकिन इसी देश का आम आदमी दो जून के रोटी,कपड़ा और मकान का सपना नहीं पूरा कर पा रहा है.

मुंशी प्रेमचंद जी ने 'गोदान' की रचना जिस वक़्त की थी,उस समय भारत ब्रिटिश राज के जंजीरों में जकड़ा हुआ कराह रहा था. उनकी रचना में जमींदारी,किसान,कृषि,शोषण,सामंती व्यवस्था,धर्म और पाखंड पर जहाँ एक तरफ चोट है,वहीँ दूसरी तरफ अपने जीवन दर्शन को मालती आदि पात्रों को आधार बना कर अभिव्यक्र करते हैं. मुंशी प्रेमचंद जी ने परतंत्र भारत में जिन समस्याओं को उठाया था.वे स्वतंत्र भारत में भी वे जस की तस मौजूद हैं.यानि इतिहास वर्तमान से ज्यों का त्यों चिपका हुआ है.सवाल उठता है कि २१ सदी में भी "होरी" ही क्यों आत्महत्या करने के लिए मजबूर है ? पूंजीपति क्यों नहीं...?

लोकप्रिय आलोचक श्री वीरेन्द्र जी यादव की यह समीक्षा वर्तमान और अतीत का मूल्यांकन करती नज़र आती है.'गोबर' और 'धनिया' के प्यार को आधार बनाकर वीरेन्द्र जी ने खाप पंचायतों पर जो टिपण्णी की है,वह काफी चिंतनीय और विचारणीय है.सवाल उठता है क्या ७५ पहले की ग्राम पंचायते मौजूदा खाप पंचायतों से उदार और अधिक मानवीय थीं...? तब 'गोबर' और 'धनिया' को पंचायत ने अर्थ दंड,विरादरी से बेदखल कर संतुष्ट हो गयी थी.लेकिन अब की खाप पंचायते ज्यादा खूनी और हत्यारी हैं,राज्य-केंद्र सरकारें इन पंचायतों के आगे नतमस्तक दिखती हैं.

क्या आज की तुलना में ब्रिटिश काल में प्रेम करना ज्यादा सहज और आसान था...? क्या उस समय की न्याय प्रणाली वर्त्तमान की अपेक्षा अधिक बेहतर थीं...?

किसानों की जो दशा १९३६ के पूर्व व आस-पास थी,लगता है तमाम विकास के बावजूद किसानों को उसी तरह की समस्याओं से आज भी जूझना पड़ रहा है. तभी तो आन्ध्र प्रदेश,बुंदेलखंड से लगायत महाराष्ट्र तक के किसानों के पास आत्महत्या के आलावा कोई विकल्प नहीं है. वीरेन्द्र जी इस समीक्षा के जरिये मौजूदा समस्या और संकट के प्रति नई उत्सुकता पैदा करते हैं. उन्होंने जिन-जिन बिन्दुओं को उठाया या माध्यम बनाया है वे सभी आज भी समाज की तीखी और कटु सच्चाई हैं.जिस सहजता,सरलता और मार्मिक ढंग से अतीत को वर्त्तमान से जोड़ते हुये ज्वलंत सवालों को उठाया गया है.इससे लगता है की गोदान आज भी अपने सम्पूर्ण चरित्र के साथ प्रासंगिक है.

समीक्षा की भाषा शैली और बुनावट वीरेन्द्र जी की पैनी नजर को उद्घाटित करती हैं.हालाँकि मालती की अनुपस्थिति खटकती है.कुल मिलाकर लगता है कि "गोदान" कालजयी रचना थी,है और रहेगी...

वीरेन्द्र जी के दिल, दिमाग,दृष्टि और पारखी दृष्टिकोण के लिए धन्यवाद ...!

उपन्यास पढें >>

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great stuff!

Awesome thanks a lot

Great novel 👍

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गोदान उपन्यास मुंशी प्रेमचंद | Godan Upanyas Munshi Premchand Read Online

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Godan Munshi Premchand In Hindi 

Table of Contents

Godan Novel By Munshi Premchand

गोदान उपन्यास का सारांश | Godan Book  Summary In Hindi 

“गोदान” भारतीय साहित्य का एक प्रमुख उपन्यास है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं। यह उपन्यास वर्ष 1936 में प्रकाशित हुआ। गोदान कहानी का केंद्रीय पात्र धनिया नामक एक गरीब किसान, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक गोदान (गाय का दान) करने का प्रयास करता है। गोदान उपन्यास प्रेमचंद का अंतिम पूर्ण उपन्यास था।

कहानी में सामाजिक-आर्थिक अभाव के साथ-साथ गाँव के गरीबों के शोषण सहित समाज की अनेक समस्याओं का परिचय होता है, जैसे कि गरीबी, जातिवाद, भ्रष्टाचार, और धर्म के तात्पर्य में ह्यूमन फेलोशिप के साथ सामाजिक न्याय की मांग।

गोदान मुंशी प्रेमचंद का अंतिम पूर्ण उपन्यास है। इसमें कहानी का संवाद और पात्रों का वर्णन मुंशी प्रेमचंद की श्रृंगारिक रचनाओं की तरह नहीं होता है, बल्कि यह सामाजिक चिंतन और व्यक्ति की आत्मा के विकास के लिए है।

गोदान का संदेश है कि समाज में समाजिक न्याय की आवश्यकता है, और यह दिखाता है कि धन देने का वास्तविक महत्व है, परंतु यह भी बताता है कि यह केवल धन नहीं, बल्कि हृदय से दिया जाने वाला धन होना चाहिए।

गोदान उपन्यास के पत्रों के नाम | Godan Novel Chararcter Names 

Godan Munshi Premchand Story In Hindi के प्रमुख पात्र हैं :

  • होरी – होरी एक गरीब किसान है, जो गांव के धनी जमींदारों के शोषण के बावजूद अपनी मेहनत पर विश्वास करता है और अपना जीवन यापन के लिए संघर्ष करता है।
  • धनिया – धनिया होरी की पत्नी है, जो पति का हर तरह से साथ देती है। उसे भगवान पर अटूट विश्वास है कि वे सब कुछ अच्छा कर देंगे।
  • गोबर – गोबर होरी और धनिया का पुत्र है, जो पिता के नक्शे कदम पर चलना चाहता है।
  • फुलेना – फुलेना होरी और धनिया का महत्वाकांक्षी पुत्र है, जो जीवन में बेहतर करना चाहता है।  

Godan Book Review in Hindi

आज की पोस्ट में हम गोदान उपन्यास के सारांश को पढ़ेंगे और गोदान उपन्यास की समीक्षा व प्रश्नोत्तर (godan book review in hindi )तैयार करेंगे 

गोदान उपन्यास सारांश – Godan Summary in Hindi

Table of Contents

अवध प्रांत में पांच मील के फासले पर दो गाँव हैं: सेमरी और बेलारी । होरी बेलारी में रहता है और राय साहब अमर पाल सिंह सेमरी में रहते हैं। खन्ना, मालती और डाॅ.मेहता लखनऊ में रहते हैं। गोदान का आरंभ ग्रामीण परिवेश से होता है। धनिया के मना करने पर भी होरी रायसाहब से मिलने बेलारी से सेमरी जाता है। उसे लगता है कि रायसाहब से मिलते रहने से कुछ सामाजिक मर्यादा बढ़ जाती है। वह कहता है, ’’यह इसी मिलते-जुलते रहने का परसाद है कि अब तब जान जान बची हुई है।’’ वह समझता है कि इनके पाँवों तले अपनी गर्दन दबी हुई है। इसलिए उन पाँवों के सहलाने में ही कुशल है।

रास्ते में उसे पङोस के गाँव का ग्वाला भोला मिलता है। उसकी गायों को देखकर होरी के मन में एक गाय रखने की लालसा उत्पन्न होती है। वह विधुर भोला के मन में फिर से सगाई करा देने का लालच देता है। भोला उसे अस्सी रुपये की गाय उधार पर ले जाने का आग्रह करता है और अपने पास भूसे की कमी बात करता है। होरी अभाव में पङे आदमी से गाय ले लेने को उचित न मानकर फिर ले लूंगा। कहकर गाय लेने से मना कर देता है, पर भूसा देने का वायदा कर सेमरी में पहुँचता है।

रायसाहब अपनी असुविधाओं को बता कर चाहते हैं कि टैक्स की वसूली में होरी उनकी सहायता करे। होरी उनकी बातों आ जाता है। इस समय एक आदमी आकर राय साहब को बताता है कि मजदूर बेगार करने से मना कर रहे है। यह सुनकर राय साहब आग बबूला हो जाते हैं और उन्हें हंटर से ठीक करने की कह उठकर चले जाते हैं।

घर पर पहुँचर होरी राय साहब भी तारीफ करता है बेटा गोबर उन्हें ’रंगा सियार’ कहकर उनसे अपनी नफरत जाहिर करता है। होरी बताता है कि उसने भोला को भूसा देने का वचन दिया है। यह सुनकर गोबर और धनिया उस पर बिगङते है। होरी जब बताता है कि भेाला धनिया की प्रशंसा कर रहा था, तब धनिया कुछ नरम पङ जाती है। भोला भूसा लेने आता है। धनिया तीन खोंचे भूसा भरवाकर पति और बेटे को उसके घर तक भूसा पहुँचाने को कहती है। भोला के घर पर उसकी विधवा बेटी झुनिया है। उससे गोबर की मुलाकात होती है। दोनों परस्पर के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। भोला होरी से दूसरे दिन गाय ले लेने को कहता है।

दूसरे दिन गोबर भोला के घर से गाय लाता है। झुनिया उसे छोङने बेलारी के निकट तक आती है। फिर मिलने का वायदा करके लौट जाती है।

गाय के आते ही होरी के घर में आनन्द की लहर उमङती है। गाय का भव्य स्वागत किया जाता है। गाय के लिए आँगन में नाँद गाङी जाती है। गाँववाले आकर गाय के लक्षण भी और होरी की खुशकिस्मती की तारीफ करते है। केवल अलग्योझा हो गए उसके दो भाई हीरा और शोभा नहीं आते। हीरा होरी की निंदा कर रहा था। होरी धनिया को यह बताता है। धनिया यह सुनकर उससे झगङती है।

सेमरी में राय साहब के घर पर उत्सव है। उसमें धनुषयज्ञ नाटक में होरी जनक के माली का अभिनय करता है। उत्सव के लिए होरी को पांच रुपये नजराना देना है। राय साबह के मेहमानों में गाँव और शहर के लोग हैं। शहर के मेहमान हैं – बिजली पत्र के संपादक पं. ओंकारनाथ, वकील तथा दलाल मि. तंखा, दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डाॅ. मेहता, मिल मालिक मि. खन्ना, उनकी धर्मपत्नी कामिनी (गोविन्दी), डाॅक्टर मिस मालती और मिर्जा खुशींद। वहाँ बातचीत में रायसाहब जमींदारी प्रथा के शोषण की निंदा करते हैं।

डाॅ. मेहता और रायसाहब की कथनी और करनी के अंतर में प्रति व्यंग्य करते हैं। भोजन के समय मालती मांस-मदिरा का स्थान छोङकर ओंकारनाथ को भुलावे में डालकर शराब पिलवा देती है और वायदे के मुताबिक एक हजार रुपये इनाम लेती है। उसी समय पठान के वेश में डाॅ. मेहता आकर रुपये मांगते हैं और धमकी देते हैं कि रुपए न मिले तो वे गोली चला देंगे। अंत में होरी वहाँ प्रवेश करके पठान को गिराकर उसकी मूँछें उखाङ लेता है। पठान के वेश में आए मेहता की नाटकबाजी वहीं खत्म हो जाती है।

उसी समय सब शिकार खेलने जाने का कार्यक्रम बनाते हैं। तीन टोलियाँ बनती हैं। पहली टोली में मेहता और मालती जाते हैं। मालती मेहता के प्रति आकर्षित है, पर मेहता को इस ओर कोई आकर्षण नहीं है। मेहता को शिकार की चिङिया पानी से लाकर एक जंगली लङकी देती है और दोनों को अपने घर तक ले जाकर मधुर व्यवहार से खुश कर देती है।

इससे मालती ईर्ष्या करती है तो वह मेहता की नजर में गिर जाती है। दूसरी टोली के रायसाहब और खन्ना के बीच मिल के शेयर के बारे में बातचीत होती है। रायसाहब शेयर खरीदने की बात टाल देते हैं। तीसरी टोली में तंखा और मिर्जा हैं। मिर्जा एक हिरन का शिकार करते हैं। हिरन को एक ग्रामीण युवक को देते हैं। सब मिलकर उस युवक के गाँव में जाते हैं। खा-पीकर खुशी से सारा दिन वहाँ बताकर शाम को लौट आते हैं।

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होरी के घर पर गाय आ जाने से सब खुश थे। इतने में रायसाहब को कारिंदा कहता है कि नोखेराम बाकी लगान न चुकाने वाले खेत में हल नहीं जोत सकेंगे। होरी पैसे का इंतजाम करने के लिए साहूकार झींगुरीसिंह के पास पहुँचता है। झींगुरी सिंह की आँख गाय पर थी। उसने गाय ले लेने का चक्कर चलाया और कर्ज न लेकर लाचार होकर गाय बेचकर लगान चुकाने के लिए वह राजी हो जाता है और धनिया को भी राजी कर लेता है। रात को घर के भीतर उमस होने के कारण वह गाय को बाहर लाकर बांधता है और बीमार शोभा को देखकर लौटते समय गाय के पास हीरा को देखकर ठिठक जाता है।

उसी रात को विष दिए जाने से गाय मर जाती है तो होरी धनिया को हीरा पर शक होेने की बात बता देता है तो धनिया हीरा को गालियाँ देती है और सारे गाँव में कोहरराम मचा देती है। होरी भाई को बचाने के लिए सच को छिपाकर गोबर की झूठी कसम खा लेता है। जाँच पङताल करने दारोगा गाँव में आता है। गाँव के मुखिया लोग इस विपत्ति का फायदा उठाने के लिए हीरा पर जुर्माना लगाते हैं।

कुर्की से बचने तथा परिवार की इज्जत बचाने होरी झिंगुरी सिंह से कर्ज लेकर रिश्वत के पैसे लाता है, पर धनिया के कारण वह दारोगा को मिल नहीं पाता। दारोगा मुखिया लोगों के घर की तलाशी लेने की धमकी देकर उनसे भी रिश्वत के पैसे वसूल करके चला जाता है।

गोहत्या करके पाप के डर से हीरा घर से भाग जाता है। होरी हीरा की पत्नी पुनिया को खेत संभालता है। बीच में एक महीने तक बीमार भी पङ जाता है। एक रात होरी कङकती सर्दी में खेत की रखवाली कर रहा था कि धनिया वहाँ पहुँच जाती है और बताती है कि पांच महीने का गर्भ लेकर झुनिया घर में आ गई है। होरी पहले उसे निकाल देने की बात तो करता है, बाद में धनिया के समझाने पर उसे अपने घर में रहने का आश्वासन देता है।

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अब फिर से पंचायत को होरी का गला दबाने का मौका मिल जाता है। झुनिया के एक लङका होता है। बिरादरी में ऐसे पाप के लिए गाँव की पंचायत होरी पर सौ रुपए नकद और तीस मन अनाज का डाँड लगाती है। धनिया पंचायत पर बहुत फुफकारती है। पर होरी झिंगुरी सिंह के पास मकान रेहन पर रखकर अस्सी रुपये लाता है और डाँड चुकाता है।

गोबर-झुनिया को चुपके से अपने घर में छोङकर लोकलज्जा के भय से लखनऊ शहर भाग जाता है। वह मिर्जा खुर्शीद के यहाँ महीन के पंद्रह रुपये वेतन पर नौकरी करता है। उनकी दी हुई कोठरी में रहता है।

डाँड में सारा अनाज दे देने के बाद होरी के पास कुछ नहीं बचता। इसी समय पुनिया उसकी सहायता करती है। वर्षा के अभाव से उसकी ईख सूख जाती है। भोला गाय के रुपये लेना चाहता है। होरी रुपये दे नहीं पाता। भोला होरी के बैल खोलकर ले जाता है। गाँववाले इसका विरोध करते हैं, पर धर्म के भय से मर्यादावादी और ईमानदार होरी विवश होकर इसकी अनुमति दे देता है।

मालती राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहने वाली महिला है। उसके प्रयत्न से मेहता वीमेन्स लीग में भाषण देने के दौरान महिलाओं को समान अधिकार की मांग छोङकर त्याग, दया, क्षमा अपनाने सुझाव देते हैं, जो गृहस्थ जीवन के लिए निहायत जरूरी है।

मालती मेहता से सहमत होती है। वह मेहता को अपने घर पर खाने बुलाती है। उसी समय मेहता आरोप लगाते हैं कि उसी के कारण मि. खन्ना, मिसेज खन्ना से अच्छा बर्ताव नहीं करते। यह सुनकर मालती बिगाङ जाती है और अपने घर चली जाती है।

रायसाहब को पता चल जाता है कि होरी से वसूल किए गए डाँड के सारे पैसे गाँव के मुखिया लोग खा गए। वे नोखेराम से रुपये देने को कहते हैं तो चारों महाजन ’बिजली’ के संपादक ओंकारनाथ को सूचना दे देते हैं कि वे अपनी पत्रिका में ऐसी सनसनीखेज खबर छापने जा रहे हैं। रायसाहब सौ ग्राहकों का चंदा रिश्वत के रूप में भरकर किसी तरह इसे छापने से रोक लेते हैं।

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जब गाँव में बुवाई शुरू हो जाती है तब होरी के पास बैल नहीं है। होरी की लाचारी का फायदा उठाकर दातादीन होरी से साझे में बुवाई करने का प्रस्ताव देकर होरी को मजदूर के स्तर तक ले जाता है।

उधर दातादीन का बेटा मातादीन झुनिया को प्रेम-पाश में फँसाने के लिए प्रयास करता है। लेकिन बीच में सोना पहुँच जाने से मामला गङबङ होने से बच जाता है।

होरी ईख बेचने जाता है तो मिल मालिक से मिलकर महाजन सारा रुपया कर्ज के लिए वसूल कर लेते हैं। मि. खन्ना और उसकी पत्नी गोविंदी के स्वभाव में आकाश – पाताल का अंतर है।

गोविंदी सादा जीवन पसन्द करती है तो मि. खन्ना विलासमय जीवन। एक बार पति-पत्नी में बेटे के इलाज के लिए भिन्न-भिन्न डाॅक्टरों को बुलाने के मतांतर मेहता से होती है। मेहता उसकी प्रशंसा कर के उसे समझाबुझा कर घर लौटा लाते हैं। होरी दातादीन की मजूरी करने लगता है।

होरी दातादीन की मजदूरी करने लगता है। ऊख काटते समय कङी मेहनत करने के कारण वह बेहोश हो जाता है। उधर गोबर अब नौकरी छोङकर खोंचा लगाने के काम में लग जाता है। उसके पास दो पैसे हो जाते हैं। वह एक दिन गाँव में पहुँचता है। वह सभी के लिए सामान लाता है। गाँव में गोबर महाजनों की बङी बेइज्जती करता है।

होली के अवसर पर गाँव के मुखिया लोगों की नकल करके अभिनय किया जाता है। फलस्वरूप गोबर सभी महाजनों के क्रोध का शिकार बन जाता है। जंगी को शहर में नौकरी कराने का लोभ दिखाकर उसे प्रभावित कर देते हैं। वह भोला को मना कर नोखेराम को लगान वसूल करके रसीद न देने पर उसे अदालत की धमकी देता है। झुनिया को फुसलाकर शहर जाते समय माँ से झगङा हो जाता है।

माँ के पांव में सिर न झुकाकर बिलकुल उद्दंड और स्वार्थी बनकर बालबच्चों को लेकर शहर चला जाता है। राय साहब की कई समस्याएँ थीं। उनको कन्या का विवाह करना था, अदालत में एक मुकदमा करना था और सिर पर चुनाव भी थे। कुंवर दिग्विजय सिंह के साथ शादी तय हुई थी। राजा साहब के साथ चुनाव लङना था। पैसों की कमी थी इसीलिए वे तंखा के पास उधार मांगने के लिए जाते हैं। वे मना करते हैं तो वे खन्ना के पास जाते हैं।

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खन्ना पहले आनाकानी करके बाद में कमीशन लेकर पैसों का इंतजाम कर सकने की बात बताते हैं। बातचीत के दौरान मेहता महिलाओं की व्यायामशाला की नींव रखने के लिए मना करते हैं।

रायसाहब पांच हजार लिख देते हैं। फिर मालती पहुँचती है तो खन्ना से एक हजार का चैक लिखवा लेती है। मातादीन की रखैल सिलिया अनाज के ढेर से कोई सेर भर अनाज दुलारी सहुआइन को दे देती है तो मातादीन उसे धिक्कारता है। निकल जाने को कहता है। सिलिया दुःखी होती है। सिलिया के बाप हरखू के कहने पर उसके साथी मातादीन के मुँह पर हड्डी डालकर उसे जातिभ्रष्ट कर देते हैं। धनिया सिलिया को अपने घर पर रख लेती है। सिलिया मजदूरी करके गुजरबसर करती है।

सोना सत्रह साल की हो गई थी। उसके विवाह के लिए पैसों की जरूरत थी। सोना को मालूम हुआ कि पिता विवाह के लिए दुलारी से दो सौ रुपये लाएँगे। सोना सिलिया को भावी पति मथुरा के पास भेजती है। ससुरालवाले बिना दहेज के बहू लेने को तैयार हो गए। लेकिन धनिया अपनी मर्यादा बचाने के लिए दहेज देना चाहती है। भोला एक जवान विधवा नोहरी से विवाह करता है। नोहरी के साथ बहुओं से नहीं पटती। पुत्री कामना भोला को घर से भगा देती है। नोखेराम नोहरी की लालसा से भोला को नौकर रख लेता है। नोहरी गाँव की रानी की जाती का है। लाला पटेश्वरी साहूकार मंगरू शाह को मंगरू शाह को भङकाकर होरी की सारी नोहरी गाँव की रानी की जाती का है।

लाला पटेश्वरी साहूकार मंगरू शाह को भङकाकर होरी की सारी ईख नीलाम कर देता है। इससे उगाही की उम्मीद न होने से दुलारी होरी को शादी के लिए दो सौ रुपये नहीं देती है। इतने में सहानुभूति दिखाकर नोहरी होरी को दो सौ रुपये देकर अपनी दयाशीलता का परिचय देती है।

शहर में परिवार लाकर गोबर देखता है कि जहाँ वह खोंचा लगाता था, वहीं दूसरा बैठने लगा है। उसको कारोबार में घाटा हुआ तो वह मिल में नौकरी कर लेता है। झुनिया को गोबर की कामुकता पसंद नहीं आती। गोबर को बेटा मर जाता है। झुनिया गर्भवती है। गोबर नशा करने लगा है। झुनिया को पीटता है, गालियाँ देता है।

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चुहिया की सहायता से झुनिया एक बेटे को जन्म देती है। मिल में झगङा हो जाने से गोबर घायल हो जाता है। मिल गोबर की सेवा करने के दौरान पति पत्नी में फिर संबंध स्वाभाविक हो जाता है।

मातादीन नोहरी के प्रति फिर से आकर्षित होता है। वह सिलिया के लिए छोटी को दो रुपये देता है। रुपये पाकर सिलिया खुश होती है। यह समाचार देने सोना के ससुराल पहुँचती है। मथुरा नोहरी से प्रेम-निवेदन करता है। दोनों पास-पास आ जाते हैं तो सोना की आवाज से पीछे हट जाते हैं। सोना सिलिया को बहुत फटकारती है।

मिल में आग लग गई थी। मिल में नए मजदूर ठीक से काम नहीं कर पा रहे थे। इसलिए पुराने मजदूर ले लिए जाते हैं। खन्ना-गोविंदी का मनमुटाव मिट जाता है। मेहता से प्रेरित होकर मालती सेवा-व्रत में लगी रहती है। एक दिन मेहता और मालती होरी के गाँव में पहुँचकर लोगों से मिलते हैं। सहायता करते हैं। राय साहब की लङकी की शादी हो जाती है।

मुकदमे और चुनाव में भी जीत होती है। वे लोग होम मेंबर भी बन जाते हैं। राजा साहब रायसाहब के पुत्र रुद्रप्रताप मालती की बहन सरोज से विवाह करके इंग्लैण्ड चला जाता है। फिर रायसाहब की बेटी और दामाद में विवाह विच्छेद हो जाता है। मालती देखती है कि दूसरों की सेवा करने के कारण ऊँची वेतन के बावजूद उन पर कर्ज है। कुर्की भी आई है।

तब मालती मेहता को अपने घर पर ले आती है। उनकी सहायता करती है। मालती गोबर को माली रख लेती है। उसके बेटे की चिकित्सा और सेवा भी करती हैं। मालती मेहता से विवाह करना अस्वीकार करके मित्र बनकर रहने को पसंद करती है।

मातादीन सिलिया के बालक को प्यार करता है। वह निमोनिया में कर जाता है। मातादीन सिलिया के प्रति आकर्षित होता है। सारा जाति-बंधन तोङकर उसके साथ रहता है।

होरी की आर्थिक दशा दिनोंदिन गिरती जाती है। तीन साल तक लगान न चुकाने से नोखेराम बेदखली का दावा करता है। मातादीन होरी को सुझाव देता है कि अधेङ रामसेवक मेहता से रूपा की शादी करके बदले में कुछ रुपए ले लें और खेती करे। होरी यह सुनकर बङा दुःखी होता है। पर अंत में होरी और धनिया राजी हो जाते हैं। गोबर को शादी में आने की खबर दी जाती है।

गोबर झुनिया को लेकर गाँव में पहुँचता है। रूपा की शादी होती है। मालती भी शादी में शरीक होती है। गोबर गाँव में झुनिया को छोङकर लखनऊ चला जाता है। रूपा ससुराल में समृद्धि देखकर पिता की गाय की लालसा की बात सोचकर दुःखी होती है। मैक जाते समय वह एक गाय ले जाने की बात सोचती है। होरी पोते मंगल के लिए गाय लेना चाहता था।

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इसलिए वह कंकङ खोदने की मजदूरी करता है। रात को बैठकर धनिया के साथ सुतली कातता है। एक दिन हीरा आकर पहुँचता है और होरी से माफी मांगता है। होरी खुश हो जाता है। होरी कंकङ खोदते समय दोपहर की छुट्टी के समय लेट जाता है। उसको कै (उल्टी) होती है। उसे लू लग जाती है। धनिया भाग कर आती है। सब इकट्ठे हो जाते हैं। शोभा और हीरा को घर पर ले गए।

होरी की जबान बंद हो गई। धनिया घरेलू उपचार करती है। सब बेकार जाता है। हीरा गो-दान करने को कहता है। दूसरे लोग भी यही कहते हैं। धनिया सुतली बेचकर रखे बीस आने पैसे पति के ठंडे हाथ में रखकर ब्राह्मण दातादीन से बोलती है – महाराज घर में न गाय है न बछिया, न पैसा। यही इनका गोदान है। विशेष – ‘गोदान’ केवल वर्तमान का एक निष्पक्ष चित्र है। उसमें आगत भविष्य की सम्भावनाओं झाँकी नहीं कराई गयी है। इसमें तो एक चरित्र को लेकर उसे अनेक परिस्थितियों में डालकर तथा बहुत से पात्रों और चरित्रों को संसर्ग में लाकर समाज का एक जीवित चित्र निर्माण किया गया है। इसमें भी ‘गबन’ की भाँति कथावस्तु और चरित्र में भेद नहीं रह गया है।

‘होरी’ के चरित्र की थोङी सी विशेषता दिखलाकर और उसे एक विशेष वातावरण में रखकर लेखक तटस्थ होकर स्वयं द्रष्टा बन जाता है। होरी अपने जातिगत स्वभाव से ही नवीन परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है और फिर विवश होकर उनके अनुसार ही ढल जाता है।

इस परिस्थितियों की तरंगों में डूबता-उतरता नियति के हाथों का खिलौना वह कृषक जीवन-यात्रा के अंतिम छोर तक चला जाता है, परन्तु नगर वाले कथानक में यह बात इतनी स्पष्ट नहीं है। वहाँ पर परिस्थितियों की प्रतिक्रिया व्यक्ति पर इतनी सरलता से नहीं होती। रायसाहब, मिर्जा खुर्शेद तथा मेहता आदि प्रायः सभी में वैयक्तिकता है, परन्तु यह वैयक्तिकता इतनी सबल भी नहीं है कि वह परिस्थितियों को तोङ-मरोङ सके।

वास्तव में ‘गोदान‘ में साहूकारों द्वारा किसान के शोषण की ही कहानी है। ये साहूकार कई प्रकार के है, जिनमें झिंगुरीसिंह, पंडित दातादीन, लाला पटेश्वरी, दुलारी सहुआइन आदि। साहूकार के अतिरिक्त जमींदार और सरकार के अत्याचार का भी गोदान में साधारण दिग्दर्शन कराया गया है, किन्तु साहूकार, जमींदार और सरकार सबसे बढकर किसानों के सिर पर बिरादरी का भूत होता है।

बिरादरी से अलग जीवन की वह कोई कल्पना ही नहीं कर सकता है। शादी-ब्याह, मुंडन-छेदन, जन्म-मरण सब कुछ बिरादरी के हाथ में है। आप बङे से बङे पाप कर्म करते जाए, किन्तु बिरादरी तब तक सिर न उठाएगी जब आप उसके द्वारा निर्धारित कृत्रिम मर्यादा का पालन करते जा रहे है। जो इन कृत्रिम सामाजिक बन्धनों के निर्वाह में चुका है उसके लिए वह ग्रामीण समाज कठोर से कठोर दण्ड-व्यवस्था अपनाता है।

हमारे किसानों ने धर्म का एक बङा ही विकृत रूप अपनाया है, किन्तु धीरे-धीरे गाँवों में भी उष्ण रक्त इन कृत्रिमताओं का विरोध करने लगा है। ‘गोदान’ में गोबर, मातादीन, सिलिया, झुनिया आदि इसके उदाहरण हैं।

प्रेमचन्द का स्पष्ट कथन है कि ‘मेरे उपन्यास का उद्देश्य है धन के आधार पर दुश्मनी’। प्रेमचन्द ने अपनी सहानुभूति का बहुत बङा भाग शोषित वर्ग को समर्पित किया है। उन्होंने जमीदारों, पूँजीपतियों, महाजनों, धार्मिक पाखण्डियों के दोषों पर तीखे प्रहार किए हैं।

उन्होंने उपन्यास में प्रतिपादित किया है कि किसान को सबसे अधिक महाजनी सभ्यता से गुजरना पङता है। महाजनी सभ्यता क्रूरता तथा शोषण पर आधारित है।

गोदान उपन्यास पात्र-परिचयः

होरी- (मुख्य नायक) धनिया- होरी की पत्नी होरी की संतान- गोबर, सोना, रूपा झुनिया- गोबर की पत्नी (भोला की विधवा बेटी) होरी के भाई- हीरा और  शोभा मालती मेहता साहूकार- झिंगुरी सिंह, पंडित दातादीन, लाला पटेश्वरी, दुलारी सहुआइन

गोदान उपन्यास के महत्वपूर्ण तथ्य 

⇒ होरी की इच्छा पछाई गाय लेने की थी। ⇔ होरी भोला (ग्वाला) से गाय लाया था। ⇒ होरी के गाँव का नाम- बेलारी। ⇔ ‘‘गाँव क्या था, पुरवा था, दस-बारह घरों का, जिसमें आधे खपरैल के थे, आधे फूस के।’’-कोदई गाँव का वर्णन। ⇒ गोबर का वास्तविक नाम-गोवर्धन। ⇔ ‘बाहर से तितली है और भीतरी से मधुमक्खी’ यह कथन ‘गोदान‘ उपन्यास में-मालती के लिए। ⇒ ‘गोदान’ उपन्यास यथार्थवाद उपन्यास है, न कि आदर्शवाद। ⇔ ‘‘पहना दो मेरे हाथ में हथकङियाँ, देख लिया तुम्हारा न्याय और अक्ल की दौङ’’ कथन है-धनिया का। ⇒ उपन्यास में महाजनी सभ्यता का विरोध हुआ है। ⇔ कृषक की आर्थिक समस्या का चित्रण हुआ है। ⇒ यह उपन्यास समस्या प्रधान है। ⇔ ‘गोदान में गाँधी और मार्क्स  को प्रेमचन्द ने घुला- मिला दिया है।’- कथन है बच्चन सिंह का। ⇒ प्रेमचन्द का सबसे विख्यात और अंतिम उपन्यास-गोदान (1936 ई.)। ⇔ गोदान की कथावस्तु-कृषक की समस्या। ⇒ होरी के पास पाँच बीघा जमीन थी। ⇔ गाँव की कथा और शहर की कथा साथ-साथ चलती है फिर दोनों कथाओं में संबंद्धता और संतुलन पाया जाता है। ⇒ गोदान एक राष्ट्रीय प्रतिनिधि उपन्यास है। ⇔ उपन्यास में शोषण व अन्याय के विरूद्ध भरती हुई नई पीढी की विद्रोह और असंतोष का प्रतीक है- गोबर। ⇒ मालती व मेहता लखनऊ में रहते है। ⇔ रायसाहब सेमरी गाँव में रहते है। ⇒ प्रेमचन्द ने गोदान को संक्रमण की पीङा का दस्तावेज बताया है। ⇔ पंडित दातादीन के पुत्र का नाम मातादीन था।

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गोदान | Godan

Godan by प्रेमचंद - Premchand

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  • प्रेम-प्रसून - [Hindi]
  • मानसरोवर [भाग ५] - [Hindi]
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सम्बंधित पुस्तकें :

  • जॉन हेनरी और उसका शक्तिशाली हथौड़ा - [Hindi]
  • विलियम होय - कैसे एक बधिर बेसबॉल खिलाड़ी ने खेल को बदला - [Hindi]
  • जोसेफ मैकविकर - प्ले-डोह के आविष्कारक - [Hindi]
  • ओसिओला मैकार्टी की सम्पदा ( - [Hindi]
  • रात में पक्षी - [Hindi]

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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  • अमेरिकी यायावर america ke baare mein achchi jankari sanjay singh
  • अमेरिकी यायावर Interesting book Anshu Raj
  • हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन "हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती। Ravindra Singh Yadav
  • संभाल कर रखना लाजवाब कविताएँ! Abhilash Trivedi
  • वक्त की आवाज very nice Vipinsingh chouhan
  • जादुई कहानियां Nice Vipinsingh chouhan
  • सम्पूर्ण आल्ह खण्ड Aallhakand Rinku jhansi
  • संभोग से समाधि की ओर mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga Bakesh Namdev
  • पुत्र प्रेम Putra prem MD FAIZAAN Ali
  • जादुई कहानियां itsnice Hemant Patel
  • आरोग्य प्रकाश Pls. Send me contact cellphones no rahul jaiswal
  • इलेक्ट्रिशियन के कामकाज Hindi book in pdf Parul Saxena
  • एक सैक्स वर्कर की आत्मकथा MASTANI MUKESH MAURYA
  • अमेरिकी यायावर सड़क यात्रा में प्रेम - फूस और चिंगारी Narendra patidar
  • स्त्रीत्व धारणाएँ एवं यथार्थ all story AMAN KUMAR
  • समता के समर्थक आंबेडकर It is really a great book. Here one can peep into the struggle of the great personality Baba Sahib Dr. B.R. Ambedkar. The writer gives the life like description of Baba Sahib. arun arya
  • कबीर सागर Aapka bahut aacha pryas Rajneesh Kumar Pusker
  • वैदिक गणित गीता रोचक पुस्तक। आपको भारतीकृष्णातीर्थ महाराज की वैदिक गणित भी पढ़नी चाहिए। Kumar Abhishek
  • वैदिक गणित यदि आपने कभी शंकुतला देवी की गणित की पहेलियों की किताब पढ़ी है और आप उनकी तेज अंकगणितीय क्षमता से परिचित हैं तो यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए। इस किताब में कई ऐसे तरीके दिये हुए हैं जिससे आप दूसरों को आश्चर्यचकित कर देंगे। vishal verma
  • वैदिक गणित गणित के विद्यार्थियों को इस पुस्तक को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। Jayati Roy
  • यथासंभव यथासंभव और यत्र तत्र सर्वत्र दोनों किताबें उत्कष्ट व्यंग्यों का संकलन हैं। साथ ही हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे के व्यंग्य भी अच्छे लगते हैं। मेरा पसंदीदा व्यंग्य है, वर्जीनिया वुल्फ से सब डरते हैं। Vinay Patidar
  • यथासंभव शरद जोशी जी के व्यंग्यों में एक विशेष पैनापन है। काश वे आज भी होते तो उन्हें लिखने का कितना मसाला मिल जाता! यथासंभव के सारे व्यंग्य आज भी हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं। अभिव्यक्ति के इतने तरीके और साधन उपलब्ध हैं कि हर भारतीय मुखर हो उठा है किसी न किसी विषय पर कुछ न कुछ बोलना चाहता है। bhawna singh

Its not that girls living in villages only hope that they will be married to suitable husbands. It happens to many of us, but life is not what we expect it to be. Gripping story!!

जीवन की आशाओं, निराशाओँ और हकीकतों का मंजर। कहानी पढ़नी शुरु की तो बस पढ़ती ही चली गई!

  • हरिवंश गाथा हरिवंश कथा पर एक उपयोगी और मनोहारी पुस्तक. manish pawar

I bought this book on the train station and i liked it so much that I finished it within few hours.

चाणक्य नीति या चाणक्य सूत्र के शीर्षकों से हिन्दी पाठकों के सामने कई पुस्तके मुद्रित हुई हैं, परंतु अधिकांश में सतही जानकारी दी जाती है। यह पुस्तक भी प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती है। परंत एक सामान्य पाठक के लिए जो कि चाणक्य और उसके विचारों के संबंध में प्राथमिक जानकारी प्राप्त करना चाहता है, यह पुस्तक एक अच्छा आरंभ दे सकती है। 

उषाजी की कहानियाँ विदेशों में विशेषकर अमेरिका में रहने वाली भारतीय महिलाओँ की मनःस्थिति का अत्यंत सजीव चित्रण करती है। इनकी 'शेष यात्रा' विशेष पठनीय है।

book review of godan in hindi

164 पाठक हैं

गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...

‘गोदान’ प्रेमचंद की सर्वोत्तम कृति है, जिसमें उन्होंने ग्राम और शहर की दो कथाओं का यथार्थ रूप और संतुलित सम्मिश्रण प्रस्तुत किया है। ‘गोदान’ होरी की कहानी है। उस होरी की जो जीवन भर मेहनत करता है, अनेक कष्ट सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके और इसलिए वह दूसरों को प्रसन्न रखने का प्रयास भी करता है किन्तु उसे इसका फल नहीं मिलता फिर भी अपनी मर्यादा नहीं बचा पाता। अंततः वह तप-तप के अपने जीवन को ही होम कर देता है। यह केवल होरी की ही नहीं, अपितु उस काल के हर भारतीय किसान की आत्मकथा है। इसके साथ ही जुड़ी है शहर की प्रासंगिक कहानी। दोनों कथाओं का संगठन इतनी कुशलता से हुआ है कि उसमें प्रवाह आद्योपांत बना रहता है। प्रेमचंद की कलम की यही विशेषता है।

अन्य पुस्तकें

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COMMENTS

  1. गोदान ( उपन्यास ) की समीक्षा

    Godan Book Review In Hindi. गोदान ( Godan ) मुंशी प्रेमचंद का एक हिंदी उपन्यास है जिसमे 20 सदी के रुढ़िवादी समाज का जिवंत चित्रण किया गया है !

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    (Godan) गोदान : एक परिचय. Godan Hindi Novel : ग्रामीण परिवेश और कृषक जीवन का जीता जागता चित्रण है 'गोदान'.1936 में प्रकाशित 'Godan' प्रेमचंद का अंतिम सम्पूर्ण उपन्यास भी है और ...

  5. गोदान [Godaan] by Munshi Premchand

    4.40. 8,539 ratings525 reviews. Premchand is the most famous Hindi novelist and Godaan is Premchand's most celebrated novel. Economic and social conflict in a north Indian village are brilliantly captured in the story of Hori, a poor farmer and his family's struggle for survival and self-respect. Hori does everything he can to fulfill his ...

  6. गोदान / प्रेमचंद / समीक्षा

    "गोदान" के ७५ साल पूरे होने पर लोकप्रिय समीक्षक वीरेन्द्र यादव जी ने इस पर समीक्षा लिखी है.जिसे प्रभात खबर ५ जून २०११ के अंक में प्रकाशित किया है.

  7. Godaan

    Godaan (Hindi: गोदान, gōdān, lit. 'Cow donation') is a famous Hindi novel by Munshi Premchand.It was first published in 1936 and is considered one of the greatest Hindi novels of modern Indian literature.Themed around the socio-economic deprivation as well as the exploitation of the village poor, the novel was the last complete novel of Premchand.

  8. What 10 Studies Say About Godan

    Conclusion. Godan Book Review In Hindi - आजकल के टाइम में हमारी पुरानी संस्कृति को समझ पाना उतना ही कठिन है जितना हमें किसी नई संस्कृति को अपना पाना. यदि आप पुरानी संस्कृति की ...

  9. Book Review: Godan by Munshi Premchand

    Godan is one of the major hit novels of Munshi Premchand. Apart from Hori and Gobar, the novel also consists of many subplots i.e. covers the stories from the village's poorest to the richest of cities. The novel, in depth, discusses the plight of common masses during the pre-independence era, especially of farmers who always found it tough ...

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    गोदान उपन्यास का सारांश | Godan Book Summary In Hindi. "गोदान" भारतीय साहित्य का एक प्रमुख उपन्यास है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं। यह उपन्यास वर्ष ...

  11. Godan

    'Godan' is an epic in Hindi prose. It is the most famous work of Munshi Premchand. 'Godan' gives a vivid picture of the condition of Indian farmers during the author's lifetime. The novel is relevant today because the rural folks' problems still exist.Farmers have generally been exploited by money-lenders, government officials and superstitious community members.

  12. Godan Book Review in Hindi

    godan book review in hindi अवध प्रांत में पांच मिल के फासले पर दो गाँव हैं: सेमरी और बेलारी। होरी बेलारी में रहता है और राय साहब अमर पाल सिंह सेमरी में रहते

  13. Book Review: Godaan by Munshi Premchand

    Language: Hindi. Genre: Novel. Godaan is a popular Hindi novel by Munshi Premchand. It was first released in 1936 and is contemplated one of the tremendous Hindi novels of contemporary Indian literature. Themed around the socio-economic deprivation as well as the exploitation of the village poor, the book was the final extensive book of Premchand.

  14. Godan Summary in Hindi

    Godan Summary in Hindi - Munshi Premchand. उधर मातादीन को एक दिन मलेरिया हो जाता है। उसी दौरान उसे अहसास होता है कि वह सलिया से कितना प्यार करता है।. एक दिन वह ...

  15. Godan book review.. गोदान बुक रिव्यू.. Godan book review in hindi

    Godan Munshi Premachand ( मुंशी प्रेमचंद ) k dwara likha gya novel ( उपन्यास ) hai.. jisme ek kisan k jivan ki samasyaaon ko gehrai se btaya gya hai..Iss vi...

  16. गोदान (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

    Godan (Novel) : Munshi Premchand. 1. होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा -- गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। मैं न जाने कब लौटूँ ...

  17. Amazon.in:Customer reviews: Godan (Hindi Edition): गोदान

    Find helpful customer reviews and review ratings for Godan (Hindi Edition): गोदान at Amazon.com. Read honest and unbiased product reviews from our users. ... Excellent book by Premchand Novel finely takes you a journey. Quite relatable Fun to read. You'll be eager to finish the book as it raises the curiosity on how will the book end

  18. गोदान (Hindi Sahitya): Godan (Hindi Novel)

    गोदान (Hindi Sahitya): Godan (Hindi Novel) - Ebook written by प्रेमचन्द, Premchand. Read this book using Google Play Books app on your PC, android, iOS devices. Download for offline reading, highlight, bookmark or take notes while you read गोदान (Hindi Sahitya): Godan (Hindi Novel).

  19. Godan by Premchand

    प्रेमचन्द. Godan is a Hindi novel by Munshi Premchand, translated into English as The Gift of a Cow. It was first published in 1936 and is considered one of the greatest Hindustani novels of modern Indian literature. Themed around the socio economic deprivation as well as the exploitation of the village poor, the novel was the ...

  20. गोदान

    भाषा : हिंदी | फ्री | पृष्ठ:370 | साइज:26.89 MB | लेखक:प्रेमचंद - Premchand | Godan in Hindi Free ...

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  22. Godan

    There were a total of 20-21 books like robinhood and rest i can't remember. 'kaidi ki karamat' i remembered throughout all these years because it was my favourite among all. I am a graduate now and this book brings back good old memories how my classmates were so crazy about these stories back then. Arnav Nath.

  23. Godan Book Review in Hindi

    godan book review in hindi अवध प्रांत में पांच मिल के फासले पर दो गाँव हैं: सेमरी और बेलारी। होरी बेलारी में रहता है और राय साहब अमर पाल सिंह सेमरी में रहते