नदी पर निबंध- Essay on River in Hindi
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नदी पर निबंध- Essay on River in Hindi
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नदी पानी का एक प्राकृतिक संसाधन है जो हमें स्वच्छ जल उपलब्ध करवाती हैं। नदियाँ सर सर की आवाज के साथ बहती हैं। इन्हें सरिता, प्रवाहिनी आदि नामों से भी जाना जाता है। जिस स्थान पर नदियों का जन्म होता है उसे नदी का उद्गम कहते हैं और जहाँ पर नदी की धारा बहती है उसे नदी घाटी कहा जाता है। पहाड़ो पर जमी बर्फ पर सूर्य की किरणों के पड़ने से नदी उत्पन्न होती हैं। यह कभी झरनों के रूप में बहती है तो कभी नहरों और नदियों के रूप में। चट्टानों से टकराकर यह अपना रूख बदल लेती हैं।
नदियाँ दो प्रकार की होती है- सदानीर और बरसाती। सदानीर नदियाँ वह होती है जिनमें हमेशा पानी रहता है और इनका मुख्य स्त्रोत झील, नहरें तालाब आदि है। बरसाती नदियाँ सिर्फ बरसात के मौसम में भरी होती हैं और यह पानी के लिए मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर रहती है। नदी का स्वभाव है हमेशा आगे बढ़ते रहना इसलिए वह निरंतर बहती रहती है। नदियाँ हमारे इतिहास की भी गवाह है क्योंकि सभी सभ्यताओं का जन्म इसी के तट पर हुआ है। विश्व में बहुत सी पवित्र नदियाँ भी है जिनका जिक्र पुराणों में भी किया गया है। नदियों के कारण ही बहुत से स्थान तीर्थ स्थल के रूप में पूजे जाते हैं।
नदियाँ हमारे लिए बहुत सहायक है और हमारी अच्छी दोस्त भी हैं। नदियाँ हमें पीने के लिए जल प्रदान करती हैं और साथ ही खेतों में सिंचाई के लिए भी सहायक है। नदियों में बहुत सारी वनस्पति, मगरमच्छ, मछलियाँ आदि रहती है। अब लोग नदियों में बहुत सी क्रिड़ा जैसै कि रिवर राफ्टिंग आदि करने लगे हैं। धीरे धीरे लोग नदियों में कूड़ा करकट डालकर उन्हें दुषित करते जा रहे हैं जो कि बहुत ही हानिकारक हैं। हम सबको मिलकर नदियों को साफ रखना चाहिए और इसके लिए सरकार ने भी स्वच्छ भारत अभियान चलाया है।
# Importance of Rivers in Hindi
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नदियों का महत्व पर निबंध - Essay on Importance of Rivers in Hindi
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नदियों का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। इससे हमें पीने योग्य पानी और खेती तथा उद्योगों के लिए उचित जल की आपूर्ति होती रहती है। जितने भी वन्य प्राणी हैं जो जंगलों में निवास करते हैं वह अपनी प्यास से बुझाने के लिए नदियों का जल पीते हैं। आकाश में उड़ने वाले पक्षी भी नदी के जल का सेवन करते हैं। नदियां विभिन्न रिहायशी इलाकों, आवासीय क्षेत्र, या जहां पर लोग रहते हैं वहां पर उचित जल की उपलब्धता बनाए रखते हैं। ग्रामीण अपनी दैनिक के जीवन में नदियों के जल पर निर्भर हैं कपड़े धोने से लेकर पशुओं को नहलाने तक और खेती करके फसलों को उगाने हेतु भी नदियों के माध्यम से खेतों में जल को लाया जाता है।
नदिया संपूर्ण प्राणी जगत के लिए महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है यह हमारे पर्यावरण के लिए भी जरूरी है। गर्मी के मौसम में जब तेज धूप पड़ती है तो छोटे तालाब, कुंआ का पानी सूखने लगता है लेकिन नदियों में अधिक जल प्रवाह होता है इस वजह से वहां पर जल उपस्थित रहता है। ग्रीष्म ऋतु में नदियों के किनारे बसे बस्तियां तथा ग्रामीण इलाकों के लोगों को नदी से जल की प्राप्ति होती रहती है।
नदियां विभिन्न प्रकार से जीव जंतुओं को लाभान्वित करती है वह उनका लालन-पालन करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बाटी जल का सेवन करके कई पालतू पशु और जंगली जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं। भारत देश में नदियों की पूजा भी की जाती है गंगा नदी को माता कहा जाता है और उसकी पूजा भी की जाती है, उसमें स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं ऐसी मान्यता सदियों से चली आ रही है। इस पृथ्वी पर नदियों का अस्तित्व है इसलिए संपूर्ण प्राणी जगत को जल की आपूर्ति आसानी से हो पाती है। नदियों की वजह से ही उसके आसपास बस्तियाँ बसती है, लोग निवास करते हैं। कई बड़े महानगर नदियों के किनारे ही स्थित हैं, जैसा आगरा शहर यमुना नदी के किनारे और हरिद्वार गंगा नदी के किनारे स्थित है।
प्राचीन काल में ऋषि मुनियों द्वारा नदियों के किनारे शांत वातावरण में बैठकर सालों तक तपस्या किया जाता था। भारतीय संस्कृति रही है कि यहां नदी को माँ माना जाता है। जीवन में आने वाली उलझन और तनाव को काम करने और प्रकृति से जुड़ाव महसूस करने के लिए लोग नदी के किनारे जाकर बैठना पसंद करते हैं, वहां मन शांत होता है, लोग आत्मचिंतन करते हैं, चिंताएं दूर हो जाती है और सकारात्मकता में वृद्धि होती है। धरती पर रहने वाले समस्त जीव-जंतु, पशु-पक्षी, मनुष्य, सबको नदियां जीवनदान देती है इसलिए नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में मनुष्य के मृत्यु के बाद उसकी अस्थि को गंगा नदी में विसर्जित किया जाता है इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से उसकी आत्मा को शांति मिलती है।
यदि पृथ्वी पर नदियां नहीं होती तो पूरे संसार में पानी की कमी हो जाती, पेयजल की कमी के कारण लोग प्यास बुझाने के लिए बूंद-बूंद पानी को तरसते, खेतों में सिंचाई के लिए पर्याप्त जल नहीं मिलता, अलग-अलग अनाज वाले फसलों को उगाने हेतु कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता। मनुष्य की इतनी बड़ी जनसंख्या तक जल पहुंचाना कठिन हो जाता मुख्य रूप से बड़े महानगरों में। ऐसे कई उद्योगों में समस्याएं आती जो जल पर निर्भर रहते हैं जैसे कृषि उद्योग आदि। यदि नदियों का अस्तित्व ना हो तो वातावरण अधूरा हो जाएगा। इससे हमारा दिनचर्या भी मुश्किल हो जाएगा पीने योग्य पानी के लिए जद्दोजहत करना पड़ेगा।
मनुष्य उसे चीज का महत्व नहीं समझना जो उसे आसानी से उपलब्ध हो जाता है पृथ्वी पर नदियां उपलब्ध है और इसी वजह से पूरे संसार में प्राणी जगत को जल की उचित आपूर्ति हो पाती है, नदियां सबको जीवनदान देती है लेकिन मनुष्य उसके महत्व को न समझते हुए कचरा, प्लास्टिक, अपशिष्ट पदार्थों को बिना सोच विचार किया सीधे नदियों में फेंक देता है, अपशिष्ट पदार्थों को जल में विसर्जित करने का मतलब है कि हम नदियों को मैला कर रहे हैं, पशु पेयजल हेतु नदियों के पानी पर निर्भर रहते हैं ऐसे में अगर कारखानों से निकलने वाले अपशिष्टों को नदियों में विसर्जित किया जायेगा तो वह नदी के जल की गुणवत्ता घटाएगा उसे प्रदूषित करेगा और ऐसे जल का सेवन करके पशु बीमार पड़ेंगे, जिसका जिम्मेदार मनुष्य होगा क्योंकि वह ही नदियों को अपने अनुचित गतिविधियों से धीरे-धीरे करके गंदा करता जा रहा है।
नदियों के किनारे बसे तीर्थ स्थलों में हर साल यात्री ईश्वर के दर्शन करने और नदियों में डुबकी लगाने आते हैं परंतु उस दौरान कई लोग कचरे जिसमें मुख्य तो प्लास्टिक कचरा, को जल में फेंक देते हैं, पूजन सामग्री जैसे खाली अगरबत्ती के पैकेट आदि को जल में फेंकना उचित नहीं, लाखों की संख्या में लोग तीर्थ स्थानों में जाते हैं और यदि हर कोई वहां कचरा फैलाएगा तो वह नदी में जा मिलेगा और जल की गुणवत्ता खराब हो जायेगी।
हम गंगा जल में स्नान करके अपने पाप धोते हैं परन्तु गंगा जल को साफ और स्वच्छ रखने में अपना योगदान नहीं दे रहे। पृथ्वी के अलग अलग हिस्सों में जितनी भी नदियां बह रही है अगर हम वहां जाते हैं, कभी घूमने के लिए या पिकनिक के लिए अपने परिवार के साथ तो इस बात का जरूर ध्यान रखे की हमारी वजह से वहां पर कोई गंदगी न फैले, जल में किसी अवांछनीय (अनुपयुक्त) चीजों को न फेंके जिससे जल प्रदूषण हो। नदियों को स्वच्छ रखने के लिए हमें स्वयं पहल करनी होगी, और लोगों से भी आग्रह करना होगा कि अगर वह किसी धार्मिक स्थान पर जाते हैं और अगर वहां नदी है तो उसमें या उसके आसपास कोई कचरा न फैलाए बल्कि कूड़ेदान में कचरा डाले इससे नदियां स्वच्छ और पवित्र रहेंगी।
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ESSAY KI DUNIYA
HINDI ESSAYS & TOPICS
Essay on River in Hindi Language – नदी पर निबंध
June 5, 2018 by essaykiduniya
Get information about River in Hindi Language. Here you will get Paragraph and Short Essay on River in Hindi Language for Kids of all Classes in 300, 500 words. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में नदी पर निबंध मिलेगा।
Essay on River in Hindi Language – नदी पर निबंध
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Essay on River in Hindi by Points – Get information about River in Hindi Language :
1. पूरे विश्व में बहुत सी नदियाँ पाई जाती है और जहां से नदी निकलती है उसे नदी का उदगम स्थल कहा जाता है।
2. नदियाँ भूमि तल पर प्रवाहित होने वाली जलधारा है जो कि दो प्रकार की होती है– सदानीर नदियाँ और बरसाती नदियाँ।
3. सदानीर नदियाँ वह नदियाँ होती है जिनमें पूरा साल पानी रहता है और इनका मुख्य स्त्रोत झरने, पर्वत और हीमनाद है।
4. बरसाती नदियाँ पूरी तरह से वर्षा के पानी पर निर्भर होती है और इनमें केवल वर्षा ऋतु में ही पानी रहता है।
5. नदियाँ की धारा जहाँ से होकर गुजरती है उसे नदी घाटी कहते हैं और जब इसमें सहायक नदियाँ और नहरें जुड़ जाती है तो उपबाह बेसिन का निर्माण होता है। दो उपबाह बेसिन के ऊंचे वाले भाग को जल विभाजक कहा जाता है।
6. नदियाँ जिस स्थान पर किसी सागर या नहर में जाकर गिरती है उसे मुख या मुहाना कहते हैं।
7. जिस क्षेत्र से नदियाँ होकर बहती है उसे नदी का अपवाह क्षेत्र कहा जाता है।
8. नदियाँ मनुष्य के लिए बहुत ही सहायक होती है जिनका प्रयोग कृषि क्षेत्र में सिंचाई से लेकर बिजली बनाने तक के लिए किया जाता है।
9. जो नदियाँ प्रारंभिक ढलान पर बहती है उन्हें अनुवर्ती नदी कहते हैं।
10. भारत में कुल 12 नदियाँ पाई जाती है जिसमें गंगा नदी को सबसे पवित्र माना जाता है।
11. भारत की सबसे लंबी नदी नील और सबसे छोटी नदी अरावरी नदी है।
12. ब्रह्मपुत्र नदी को लाल नदी के नाम से भी जाना जाता है और इसे चीन में सांगपो कहा जाता है।
13. भारत की नदियों को चार भागों में विभाजित किया जाता है। हिमालय से निकलने वाली नदियाँ, दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ, सहायक नदियां और तटवर्ती नदियाँनदियाँ जो कि उनके उदगम स्थल के आधार पर है।
Nadiyon ke Labh in Hindi Essay – Essay on River in Hindi Language – नदी पर निबंध ( 500 words )
नदियाँ हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है। सुरज की किरणें पहाड़ो पर जमी हुई बर्फ पर गिरने से होता है। यह सर सर की सुरीली आवाज के साथ एक स्थान से दुसरे स्थान तक बहती है जिसके कारण इसे सरिता भी कहते है। यह बहुत ही तेज प्रवाह से बहती है इसी कारण से ही प्रवाहिनी भी कहा जाता है। नदियाँ उँचाई से निचाई की ओर बहती है। नदियों के छोटे रूप को नहर कहते है। नदियाँ अपने राह में आने वाली चट्टानों से टकरा कर अपना रास्ता बदल लेती है और एक से ज्यादा नदियों में परिवर्तित हो जाती है। बहुत सारी नदियों के संगम पर सागर बनता है।नदी भी दो तरह की होती है सदानीर और बरसाती। सदानीर नदी में हर समय पानी रहता है जबकि बरसाती नदी में सिर्फ बारिश आने पर ही पानी इकट्ठा होता है और यह कुछ समय में ही सूख जाती है।
नदियों से हमें और निर्मल जल की प्राप्ती होती है जो कि हमारी सर्वप्रथम आवश्यकता है। यही कारण है कि जितनी भी पुरानी सभ्यता मिली है वह नदियों के किनारे पर ही मिली है ताकि उन्हें पानी जैसी सुविधाएँ आसानी से प्राप्त हो सके। हड़प्पा सभ्यता भी सिंधु नदी के तट पर पाई गई थी। हमारे पुरे विश्व में गंगा,नील, अमेजन जैसी बहुत सी नदियाँ है। नदी का काम हमेशा बहते रहना है। कहते है हमें भी जल की तरह समय के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए।
नदियों में मछली पाई जाती है जिससे कि वो बहुत से लोगों के लिए भोजन भी उपल्बध कराती है। नदियों का जल पीने के लिए प्रयोग किया जाता है क्योंकि वह बहुत ही स्वच्छ होता है। बहुत से लोग नदियों के जल का प्रयोग कपड़े धोने, खेतों में सिंचाई आदि के लिए प्रयोग करते है। नदियों का पानी खेतों की उपजाऊ शक्ति बढ़ाता है क्योंकि यह जलोढ़ जल देता है। नदियों का महत्व हम सब के जीवन में पुराने समय से ही रहा है।
बहुत से तीर्थ स्थलों का महत्व नदियों के कारण ही है क्योंकि लोग उन नदियों को बहुत ही पवित्र मानते है और स्नान करने जाते है। लोग हरिद्वार भी गंगा स्नान के लिए ही जाते है। नदियों के कारण बहुत से स्थान पर्यटन स्थल में परिवर्तित हुए है। नदियों के किनारे पर बहुत से उद्योग लगाए जाते है ताकि पानी आसानी से मिल सके। आजकल बच्चे नदियों में बहुत सी गतिविधियाँ करते है जैसे कि रिवर राफटिंग, बोटिंग आदि। नदियों के माध्यम से व्यापार भी किया जाता है। नदियों के उपर बाँध बनाकर हम पानी से बिजली उत्पन्न करा सकते है। नदी जल का प्राकृतिक स्त्रोत है और इससे बिजली उत्पन्न करने से हम आसानी से ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
आज के समय में लोग नदियों को दुषित कर रहें हैं। वह पूजा पाठ के नाम पर उसमें धुबबती आदि डालते है। लोग नदियों में कूड़ा करकट बहा देते है। हमें अपनी प्रकृति के इस अनोखे उपहार को संभाल कर रखना चाहिए। सरकार ने भी इसके लिए स्वच्छता अभियान की मूहीम चलाई है जिसमें नदियों की भी साफ सफाई का ध्यान रखा जारा है।
हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध ( Nadiyon ke Labh in Hindi Essay – Essay on River in Hindi Language – नदी पर निबंध ) को पसंद करेंगे।
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नदी की आत्मकथा निबंध Autobiography of a River in Hindi
इस लेख में आप एक नदी की आत्मकथा निबंध Autobiography of a River in Hindi हिन्दी में पढेंगे। यह स्कूल और कॉलेज के परीक्षाओं में पुछा जाता है। इस आत्मकथा में एक नदी स्वयं के विषय में बखान कर रही है।
पढ़ें: नदी पर निबंध
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मैं नदी हूं। ‘नदी’ : इस शब्द से तो परिचित होंगे आप ? क्या मैं अपना परिचय दूं ! क्या आप जानना चाहेंगे मेरे बारे में, मैं कौन हूं ? कहां से आती हूं ? क्या मेरा अस्तित्व है ? मेरा कोई मूल्य है ? मेरी भावनाएं है, एहसास है या नहीं ?! तो चलिए, आज मैं आपको अपने बारे में बताती हूँ।
मुझे कई अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे : नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी, आदि। मैं मुख्यतः स्वभाव से चंचल हूं, पर कभी-कभी मद्धम भी हो जाती हूं।
कल-कल करके बहती ही रहती हूं, निरंतर – बिना रुके, बिना अटके, बस चलती ही रहती हूं। मेरा जन्म पर्वतों में हुआ और वहां से झरनों के रूप में मैं आगे बढ़ती हूं और फिर बहते बहते बस सागर में जा मिलती हूं।
मेरा बहाव कभी तेज, तो कभी कभी धीमा होता है। मैं स्थान अनुसार कभी संक्री, तो कभी चौड़ी हो जाती हूं। मेरे रास्ते में बहुत अड़चनें, बहुत रुकावट आती है; कभी पत्थर, कभी कंकर, कभी चट्टान – पर मैं कभी ठहरती नहीं हूं – अपना रास्ता बनाते चलती रहती हूं, झर झर बहती रहती हूं।
मनुष्य मुझसे अनेकों प्रकार से जुड़ा हुआ है, या यूं कहूँ के मैं मनुष्य के लिए अति उपयोगी हूँ। मनुष्य के लिए मेरे क्या क्या उपयोग हैं ? चूंकि मेरे भीतर जीव जंतु पाए जाते हैं इसलिए मैं मनुष्य के लिए भोजन का स्त्रोत हूं, मैं ना जाने कितने ही लोगों का पेट भरती हूं।
मेरे ही कारण सभी के घरों में पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध हो पाती है अथवा उस पानी से मनुष्य अपने अनगिनत कार्यों को निपटाता है।
मैं पर्यावरण में पारितंत्र का संतुलन भी बनाए रखती हूं। मेरे ही पानी द्वारा मनुष्य अपने उपयोग के लिए बिजली उत्पन्न करता है और उस बिजली से मशीनरी के ढेरों काम होते हैं।
मेरे नीर से ही खेतों की सिंचाई भी होती है, जिसके कारण फसलों में जान आती है एवं अनाज लहलहाने लगता है, बागों में लगे पेड़ फलों से लद जाते हैं।
मैं किसी एक क्षेत्र, एक राज्य या किसी एक देश से बंधी हुई नहीं हूं। मुझे कोई सरहद रोक नहीं सकती है। मैं बस पाई जाती हूं, मैं बस हूं, मौजूद हूं – हर जगह, हर क्षेत्र, राज्य, देश में – अलग-अलग रूपों में, भिन्न-भिन्न प्रकार से, विभिन्न नामों के साथ।
मेरे अस्तित्व को अगर देखा जाए, तो मेरे भीतर भी भावनाएं है, एहसास है; पर मैं कभी कह नहीं पाती, चुप हूं क्योंकि शायद प्रकृति, जो कि मेरी माँ है, का यही नियम है।
प्रकृति बहुत कुछ, बहुत से भी ज्यादा कुछ देती है, परंतु मूक रहती है, उन चीजों का कभी हिसाब नहीं लेती। परंतु मुझे इस संदर्भ में तकलीफ महसूस होती है, मेरे भी एहसास है, मुझे भी दुख-सुख महसूस होता है।
मनुष्य मुझे मुख्यतः प्रलोभी जान पड़ता है, बस अपना स्वार्थ पूरा करने हेतु किसी भी हद तक जा सकता है। मेरे इस मत का क्या कारण है, मैं आपको एक उदाहरण देकर बताती हूँ।
मनुष्य द्वारा मुझे देवी के रूप में पूजा जाता है, मेरी पूजा अर्चना की जाती है, लोग मन्नत मांगते हैं, इच्छा पूरी करने के लिए व्रत रखते हैं, फूल चढ़ाते हैं; फिर वहीं दूसरी ओर मुझ में गंदगी डालते हैं, मुझे प्रदूषित करते हैं।
अब बताइए भला देवी को कोई मैला करता है क्या ! बस यहीं पर मनुष्य के दोहरे मानक सामने आ जाते हैं, अगर मुझे सच्चे मन से देवी मानते, तो मुझ में कभी भी कूड़ा ना डालते।
आज परिस्थितियां यह है कि नदियों का पानी अत्यंत दूषित हो चुका है। फैक्टरियों से निकला हुआ जहरीला पदार्थ, कचरा, मलबा, घरों के कूड़े से निकला हुआ प्लास्टिक , गंदगी, त्योहारों का जमा हुआ कचरा और ना जाने कितनी ही चीजें नदियों के पानी में मिलकर प्रदूषण फैला रही है।
इन सब बिंदुओं के विपरीत कुछ अच्छे पल, कुछ अच्छे लम्हे भी हैं मेरी झोली में। एक सुनसान खूबसूरत जंगल में बहते हुए, जब मैंने एक थके हुए राहगीर की प्यास बुझाई थी, तब बहुत अच्छा महसूस हुआ था।
बाग में खेलते हुए छोटे बच्चे ने जब मिट्टी में सने अपने छोटे-छोटे हाथ मुझमे धोए थे, छप-छप करके मेरे पानी के साथ खेल किया था, तब अत्यंत आनंद आया था।
त्योहारों के वक्त में, जब मेरे आसपास भीड़ उमड़ती है, मेले लगते हैं, खूब रौनक होती है, सभी चेहरों पर मुस्कान होती है, तब बहुत अच्छा लगता है।
\त्योहारों में अलग ही खुशी होती है , सभी लोग: बच्चे, बूढ़े, जवान, महिलाएं, छोटी बच्चियां, लड़के – एक ही जगह एकत्रित होते हैं, भिन्न भिन्न प्रकार के व्यंजन बनते हैं, हर्ष उल्लास का पर्व सा होता है, यह सभी बहुत खुशनुमा लगता है।
परन्तु बहुत से पल ऐसे भी होते है, जब मन भाव विभोर हो जाता है। जीवन काल पूरा होने पर, जब मनुष्य मृत्यु की गोद में समा जाता है और मिट्टी का शरीर चिता पर जलने के बाद राख में बदल जाता है, बस राख रह जाती है। जीवंत होने पर जो व्यक्ति प्यारा होता है, मृत्यु के बाद उसी को चिता की आग दिखाते हैं और अस्थियां नदी में बहते हैं : यही कटु सत्य है।
ऐसा लगता है मानो उस राख में मनुष्य का सारा जीवन है और मैं यह सब महसूस कर पाती हूँ। मनुष्य के सपने, उम्मीदें, इच्छाएं; सब कुछ, जीवन पूरा होने पर, बस बहा चला जाता है। मनुष्य ने सारा जीवन, जिन इच्छाओं के पीछे गँवाया, वही इच्छाएं पानी की धार के साथ बही चली जाती है।
और बस यही सबसे बड़ा फर्क है, मनुष्य और मुझ में; मैं कभी मरती नहीं हूँ, मेरी मृत्यु नहीं होती, और न ही मेरी कोई इच्छाएँ है। यह संभव ही नहीं है, चूँकि मेरी कोई जीवन अवधि नहीं होती है।
मैं प्रकृति की देन हूं और प्रकृति तो सदा ही रही है। मैं थी, मैं हूं और मैं रहूंगी। मेरे दम पर भिन्न भिन्न प्रकार के प्राणी जीवित है, मैं जीवन देती हूं। कोई ऐसी वस्तु नहीं, ऐसा हथियार नहीं, जो मेरे प्राण ले ले।
इसके उपरांत, वह एक बात : जो मैं चाहूंगी कि मनुष्य मुझसे सीखें, अपने जीवन में अपनाएं, वह है – बस निरंतर चलते रहना। कहीं रुकना नहीं है, चाहे कितनी भी बाधाएं, कितनी भी कठिनाई आ जाए, कितनी ही परेशानियां हो, कभी हार नहीं माननी, कभी थकना नहीं है।
बस कहीं टूट कर बैठना नहीं है, कहीं ठहरना नहीं है, बस चलते चले जाना है – जीवन की बहती हुई धारा के संग, जैसे जैसे जीवन बहता चला जाए, बस उसी प्रकार अपने अस्तित्व को ढाल लेना है, परिस्थितियों के अनुसार।
मनुष्य की यही प्रकृति है, जब सुख समृद्धि होती है, तब अत्यंत खुश रहता है और जब कोई तकलीफ होती है, तो हार मान कर, थक कर टूट जाता है, रुक जाता है, परिस्थितियों से घबराकर हौसले पस्त कर लेता है, आत्मविश्वास में कमी आ जाती है; परंतु अगर मनुष्य मेरे प्राकृतिक स्वभाव को अपनाएं तो संभव ही चिंता मुक्त जीवन व्यापन कर पाएगा।
मनुष्य के कार्यकलापों के कारण ही पारितंत्र का संतुलन खो चुका है। वनों की कटाई, बढ़ती हुई आबादी से निरंतर बढ़ता हुआ प्रदूषण : जल प्रदूषण , वायु प्रदूषण , थल प्रदूषण – इन्हीं सब परिस्थितियों के कारण ही आज हालात इतने खराब हैं।
कारणवश ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या आ खड़ी हुई है, ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं की भरमार हो गई है। इन्हीं सब वजहों से मनुष्य ने बाढ़ जैसे हालातों में मेरा विकराल रूप भी देखा हैं।
आज दुनिया के हर कोने में, बाढ़ जैसे हालात आसानी से देखे जा सकते हैं। बाढ़ अपने आप में एक अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति हैं। हर ओर बस पानी ही पानी नजर आता है, पर पीने को एक बूंद भी नहीं मिलती। मकान, दुकानें, बाजार, सभी कुछ जलमग्न हो जाता है।
जान माल का काफी नुकसान होता है, कई जिंदगियां खत्म हो जाती हैं। मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव के कारण ही, यह सब हालात उभर कर आते हैं क्योंकि वह परिणाम के बारे में नहीं सोचता, बस केवल अपने आनंद के लिए निरंतर प्रयास करता रहता है।
कारणवश, यह भी हो सकता है कि एक दिन ऐसा भी आए, के मेरा नीर ही सूख जाए और मुझ में जीवन ही ना रहे; इसलिए मनुष्य को मेरी यही सलाह होगी कि वह अपने आप पर काबू रखें, अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखें : वरना वह दिन दूर नहीं जब प्रकृति में हाहाकार मच जाएगा और जन जीवन कुछ भी नहीं बचेगा।
निष्कर्ष Conclusion
इस लेख में आपने एक नदी की आत्मकथा निबंध Autobiography of a River in Hindi हिन्दी में पढ़ा। आपको यह कैसा लगा कमेंट के माध्यम से ज़रूर बताएं।
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नदी परिचय - आइए नदी को जानें (Let's know the river)
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प्रकृति द्वारा विकसित एवं लगातार परिमार्जित मार्ग पर बहते पानी की अविरल धारा ही नदी है। बरसात उसे जन्म देती है। वह सामान्यतः ग्लेशियर, पहाड़ अथवा झरने से निकलकर सागर अथवा झील में समा जाती है। इस यात्रा में उसे अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं। नदी और उसकी सहायक नदियाँ मिलकर नदी तंत्र बनाती है। जिस इलाके का सारा पानी नदी तंत्र को मिलता है, वह इलाका जल निकास घाटी (वाटरशेड) कहलाता है। नदी, जल निकास घाटी पर बरसे पानी को इकट्ठा करती है। उसे प्रवाह में शामिल कर आगे बढ़ती है। वही उसके पानी की समृद्धि का आधार होता है। नदी को अपनी यात्रा में बाढ़ के पानी के अलावा भूजल से सम्बन्धित दो प्रकार की परिस्थितियाँ मिलती हैं। पहली परिस्थिति जिसमें भूजल भण्डारों का पानी बाहर आकर नदी को मिलता है। दूसरी परिस्थिति जिसमें नदी में बहते प्रवाह का पूरा या कुछ हिस्सा, रिसकर भूजल भण्डारों को मिलता है। नदी, दोनों ही स्थितियों (Effluent– Gaining stage or influent– losing stage) का सामना करते हुए आगे बढ़ती है। नदी का प्रवाह मिट्टी के कटाव व चट्टानों के नष्ट होने से प्राप्त मलबे तथा वनस्पतियों के अवशिष्टों को बहाकर आगे ले जाता है। उसका एक भाग सतही रन-आफ और दूसरा भाग भूजल प्रवाह कहलाता है। प्रवाह के इस विभाजन को प्रकृति नियंत्रित करती है। बरसात में सतही रन-आफ और बाकी दिनों में धरती की कोख से रिसा भूजल ही नदी में बहता है। अनुमान है कि नदी तल के ऊपर बहने वाले रन-आफ और नदी तल के नीचे बहने वाले भूजल का अनुपात 38:01 है। उल्लेखनीय है कि भूजल प्रवाह, गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से, लगातार निचले इलाको की ओर बहता है। उसकी इस यात्रा में कुछ पानी नदी के प्रवाह के रूप में सतह पर तथा बाकी हिस्सा नदी तल के नीचे-नीचे चलकर समुद्र में समा जाता है। नदी के सूखने के बावजूद नदी तल के नीचे पानी का प्रवाह बना रहता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि नदी को भूजल का अधिकतम योगदान उथले एक्वीफरों से ही मिलता है। नदी तंत्र में प्रवाहित बाढ़ के पानी के साथ मलबा (मिट्टी, सिल्ट, उपजाऊ तत्व इत्यादि) बहता है। उसका कुछ हिस्सा बाढ़-क्षेत्र (Floodplain) में और बाकी हिस्सा पानी के साथ आगे बढ़ जाता है और समुद्र के निकट पहुँचकर डेल्टा का निर्माण करता है। नदी तंत्र में प्रवाहित पानी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मलबे (ठोस) का और बाकी 30 प्रतिशत हिस्सा घुलित रसायनों का होता है। नदी तंत्र में प्रवाहित पानी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मुख्यतः बोल्डरों, बजरी, रेत और सिल्ट होता है। नदी मार्ग में उनका जमाव धरती का ढाल, प्रवाह की गति, जल की परिवहन क्षमता से नियंत्रित होता है। बोल्डर, बजरी जैसे बड़े कण नदी के प्रारम्भिक भाग में तथा छोटे कण अन्तिम भाग में मिलते हैं। नदी अपने जलग्रहण क्षेत्र पर बरसे पानी को बड़ी नदी, झील अथवा समुद्र में जमा करती है पर कभी-कभी उसके मार्ग में मरुस्थल आ जाता है। उसके आने के कारण नदी का पानी रेत में रिसने लगता है। वाष्पीकरण भी बढ़ जाता है। नदी पर सूखने का खतरा बढ़ने लगता है। यदि पानी की आपूर्ति बनी रहती है तो वह मरुस्थल की रिसाव बाधा को पार कर लेती है। यदि पार नहीं कर पाती तो मरुस्थल में गुम हो जाती है। नदी अपने जीवन काल में युवा अवस्था (Youth stage), प्रौढ़ अवस्था (Mature stage) तथा वृद्धावस्था (Old stage) से गुजरती है। इन अवस्थाओं का सम्बन्ध उसके कछार के ढाल से होता है। अपनी युवावस्था तथा प्रौढ़ावस्था में नदी अपने कछार में भूआकृतियों (Land forms) का निर्माण करती है। उनका परिमार्जन (Modify) करती है। अपनी प्राकृतिक भूमिका का निर्वाह करती है। वह जैविक विविधता से परिपूर्ण होती है। उसका अपना पारिस्थितिक तंत्र होता है जो स्थिर पानी (Lake and reservoir) के पारिस्थितिक तंत्र से पूरी तरह भिन्न होता है। वह प्राकृतिक एवं प्रकृति नियंत्रित व्यवस्था है जो वर्षाजल, सतही जल तथा भूजल को सन्तुलित रख, अनेक सामाजिक तथा आर्थिक कर्तव्यों का पालन करती है। वह जागृत इको-सिस्टम है। नदी पर निर्भर समाज के लिये वह आजीविका का आधार है। कुदरती तौर नदी का प्रवाह अविरल होता है। सूखे दिनों में उसका प्रवाह धीरे-धीरे कम होता है। नदी में रहने वाले जीव-जन्तु और वनस्पतियाँ उस बदलाव से परिचित होते हैं। इसलिये कुछ उस बदलाव के अनुसार अपने को ढाल लेते हैं तो कुछ अन्य इलाकों में पलायन कर जाते हैं। वृद्धावस्था में नदी का कछार लगभग समतल हो जाता है। पानी फैलकर बहता है। तटों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। उस स्थिति में नदी की पहचान खत्म हो जाती है। वह विलुप्त हो जाती है पर उसके कछार पर पानी बरसना समाप्त नहीं होता। हर स्वस्थ नदी अविरल होती है। प्रदूषण मुक्त रहती है। अविरलता उसकी पहचान है। स्वस्थ नदी के निम्न मुख्य संकेतक हैं- 1. सुरक्षित कैचमेंट (Secure catchment) 2. पर्याप्त बहाव (Adequate flow ) 3. स्वच्छ पानी (Clean water) 4. अक्षत चरित्र (Intact characters) उपरोक्त विवरणों से स्पष्ट है कि नदी मात्र बहता पानी नहीं है। वह जटिल प्रणाली है। उस जटिल प्रणाली में जल धारा के अलावा और नदी के अन्य अन्तरंग घटक यथा नदी तल (River Bed), नदी तट (River Bank), बाढ़ क्षेत्र (Flood plain), राईपेरियन जोन (Riparian zone) और कछार / बेसिन (Basin) इत्यादि होते हैं। इन घटकों को नदी से पृथक कर नहीं देखा जा सकता। वे सभी घटक नदी परिवार के सदस्य हैं। उनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है-
नदी तल (River Bed)
नदी तल की सतह ढालू होती है। उसका ढाल प्रवाह की दिशा में होता है। उसकी सतह पर कैचमेंट से बहाकर लाये कण, कुदरती ढंग से जमा होते हैं। इन कणों का जमाव बेहद व्यवस्थित और निश्चित क्रम (बड़े से छोटे) में होता है। इन कणों के नीचे की सतह चट्टानी, कच्चे पत्थर या बालू/मिट्टी की होती है। नदी का तल हमेशा नदी की भौतिक सीमाओं के अन्दर स्थित होता है। उसका निर्माण और परिमार्जन, बहता पानी करता है। यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। स्वस्थ नदी में तल के ऊपर से पानी बहता है। यदि वाटर टेबिल नदी के तल के नीचे उतर जाये तो तल पानी सोखने लगता है। नदी का प्रवाह कम होने लगता है। उस पर सूखने का खतरा मँडराने लगता है। उल्लेखनीय है कि सूखे दिनों में पानी सामान्यतः नदी तल के आंशिक हिस्से से ही बहता है। बरसात में जब रन-आफ की मात्रा बढ़ जाती है तो सबसे पहले नदी तल की रेत पानी सोखती है। संतृप्त होती उसके बाद ही पानी, नदी तल के पूरे हिस्से से या उसकी सीमाओं (नदी तट) को लाँघ कर बहता है। उल्लेखनीय है कि प्रकृति में कहीं-कहीं परित्यक्त नदी तल भी मिलते हैं।
नदी तट (River bank)
सामान्य आदमी के लिये नदी तट का अर्थ नदी तल की दाहिनी और बाँयी सीमा है। वे सामान्यतः ढालू होते हैं। उनका ढाल असमान होता है। उनकी सतह ऊबड़-खाबड़ होती है। वे नदी के तल की सीमा को निर्धारित करते हैं। नदी की बाढ़, हर साल मिट्टी काट कर उनको परिमार्जित करती है। परिमार्जन के कारण उनका विस्तार होता है। उनके बीच की दूरी बढ़ती है। उनके बीच की दूरी बढ़ने के कारण नदी की चौड़ाई बढ़ती है। सूखे दिनों में नदी का पानी किसी एक किनारे के पास से अथवा उससे अलग-अलग दूरी से बहता है। यह स्थिति स्थायी नहीं है। साल-दर-साल उसमें बदलाव सम्भव है। मामूली बाढ़ के समय पानी उनकी सीमाओं में रहता है पर जब बाढ़ रौद्र रूप धारण कर लेती है तो वह दोनों तटों को लाँघ कर कछार में फैल जाता है। नदी के तटों को दाँया तट और बाँया तट के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। उन्हें यह पहचान, प्रवाह के दाहिनी ओर या बाँयी ओर स्थित होने के कारण मिलती है। मैदानी इलाकों में एक तट के निकट रेत और दूसरे तट के निकट घाट मिलता है।
बाढ़ क्षेत्र (Flood plain)
बरसात के मौसम में नदियों में अनेक बार बाढ़ आती है। कई बार वह नदी के दोनों तटों को लाँघ कर कछार में भी फैलती है पर बाढ़ों के दौरान, कछार में पानी का फैलाव एक जैसा नहीं होता। वह अक्सर बदलता रहता है। जल विज्ञानियों ने बाढ़ क्षेत्र को परिभाषित किया है। उनके अनुसार बाढ़ क्षेत्र, नदी कछार का वह आप्लावित इलाका है जो अधिकतम बाढ़ के दौरान डूबता है। यही वह क्षेत्र है जो पानी में अस्थायी रूप से डूबता है। जिसमें तबाही मचती है। जन-धन की हानि होती है लेकिन बाढ़ हमेशा हानिकारक नहीं होती। वह कछार में उपजाऊ मिट्टी और पोषक तत्व जमा करती है। कछार को समतल बनाने की दिशा में काम करती है। नदी मार्ग के जल प्रपातों को समाप्त करती है। उल्लेखनीय है कि बाढ़ क्षेत्र में कई बार नदियाँ अपना रास्ता बदलती हैं। बाढ़ क्षेत्र को पहचानना बहुत सरल है। नदी मार्ग के दोनों ओर पाई जाने वाली कुदरती वनस्पतियों तथा वृक्षों में बहुत अधिक भिन्नता होती है। यह भिन्नता वृक्षों तथा वनस्पतियों की अनुकूलन क्षमता में भिन्नता के कारण होती है। उदाहरण के लिये बाढ़ क्षेत्र में नमी की अधिकता के कारण अक्सर हरी घास और फूलों की अधिकता देखी जाती है। कई परिस्थितियों में बाढ़ क्षेत्र में दलदली भूमि भी मिल सकती है। वनस्पतियों, काई या शैवाल से ढँकी होने के बावजूद यह भूमि नदी तंत्र तथा जैवविविधता का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होती है। बाढ़ क्षेत्र में वही वृक्ष पाये जाते हैं जो नमी झेलने में सक्षम होते हैं।
राईपेरियन जोन (Riparian zone)
नदी के दोनों किनारों की पट्टी में कुदरती रूप से कुछ विशेष प्रकार की वनस्पितियाँ पैदा होती हैं। उन्हें सामान्य व्यक्ति नहीं पहचान पाते पर उनको पहचानना वनस्पति विज्ञानियों और स्थानीय जानकारों के लिये सहज होता है। राईपेरियन जोन, वह सीमित इलाका है जिसमें कुछ विशेष प्रकार की वनस्पतियाँ पैदा होती हैं। उल्लेखनीय है कि नदी की सेहत के लिये वे बेहद महत्त्वपूर्ण और आवश्यक होती हैं। हर साल आने वाली बाढ़, उन्हें समृद्ध करती है। अनुसन्धानों से पता चला है कि नदी के पानी (सतही जल और भूजल) की गुणवत्ता सुधारने में राईपेरियन जोन की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वे पानी में मौजूद नाइट्रेट की सान्द्रता को कम करती है। राईपेरियन जोन का सबसे बड़ा योगदान पौधों के रूप में नदी में मिलने वाले जलीय जीव-जन्तुओं को भोजन उपलब्ध कराना है। उल्लेखनीय है कि राईपेरियन जोन में पनपने वाली वनस्पतियों के सूखे पत्ते झड़कर या बहकर नदी को मिलते हैं। ये पत्ते सूखे अर्थात मृत होने के कारण, भले ही ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं करा पाते पर वे जलीय जीव-जन्तुओं को सूखी वनस्पतियों और उन पर पनप रहे बैक्टीरिया या फंगस या कीड़ों का भोजन अवश्य उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा राईपेरियन जोन की वनस्पतियाँ नदी के घाट को स्थायित्व तथा नदी के पानी को सही अम्लीयता प्रदान करती हैं। वे भूजल रीचार्ज में सहयोग भी देती हैं। नदी जल को निर्मल बनाने में राईपेरियन जोन का विशिष्ट महत्त्व है।
घाटी (Valley)
नदी को पानी (सतही तथा भूजल) प्रदान करने वाला क्षेत्र नदी घाटी या नदी का कछार कहलाता है। यह वह क्षेत्र है जिसे नदी की शरीर कहा जा सकता है। ऐसा शरीर जिसे नुकसान पहुँचाने का मतलब नदी को नुकसान पहुँचाना भी कहा जा सकता है।
नदी का प्रवाह (River flow)
भारत जैसे देश में जिसका अधिकांश भू-भाग मानसून पर निर्भर है, में नदियों को वर्षाकाल में भारी मात्रा में बाढ़ का पानी मिलता है। अवर्षा के आठ माहों में प्रवाह का स्रोत भूजल होता है। सूखे माहों में नदी का प्रवाह एक समान नहीं होता। जैसे-जैसे एक्विफरों का पानी नदी में डिस्चार्ज होता है, वैसे-वैसे एक्विफर खाली होते हैं। भूजल स्तर में गिरावट आती है। नदी का प्रवाह घटने लगता है। यदि बरसात द्वारा नदी को पानी की पूर्ति नहीं हो तो प्रवाह समाप्त हो जाता है। नदी सूख जाती है। उल्लेखनीय है कि कुछ दशक पहले तक, अनेक नदियाँ बारहमासी थीं। मौसमी परिवर्तनों के कारण उनके प्रवाह में घट-बढ़ देखी जाती थी। नदी तंत्र की जैवविविधता सुरक्षित थी।
पर्यावरणीय प्रवाह (Environmental flow)
सूखे मौसम में नदियों के प्रवाह का घटना स्वाभाविक है लेकिन प्रत्येक स्वस्थ नदी को अपनी पहचान बनाए रखने के लिये हर समय जीवन रक्षक न्यूनतम प्रवाह की आवश्यकता होती है। इस न्यूनतम प्रवाह को वैज्ञानिक पर्यावरणीय प्रवाह कहते हैं। पर्यावरणीय प्रवाह, नदी तंत्र में, लगातार बहने वाले पानी की वह न्यूनतम मात्रा है जो उस पर आश्रित जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों की सुरक्षा, उनके तालमेली विकास एवं जिन्दा रहने तथा प्राकृतिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिये आवश्यक है। उस प्रवाह से समझौता सम्भव नहीं है। पर्यावरणीय प्रवाह की गिरावट से नदी की सेहत खराब होती है। जलीय जीवन असुरक्षित होता है। प्राकृतिक जिम्मेदारियों को निभाने की क्षमता कम होती है। उल्लेखनीय है कि प्रवाह के समाप्त होने के बावजूद, नदी तल के नीचे होने से प्रवाह सक्रिय रहता है। वह प्रवाह अपने साथ घुले रसायनों को गन्तव्य तक ले भी जाता है पर वह पर्यावरणी प्रवाह नहीं है। भारत की प्रत्येक नदी का न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह परिभाषित किया जाना चाहिए। उसकी अनदेखी के कारण ही नदियों की अस्मिता को ग्रहण लगा है।
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नदी पर निबंध हिन्दी में – Essay on River in Hindi
नदी पर निबंध:- प्रकृति में मौजूद नदी स्वच्छ जल का स्रोत नदी को माना गया है। दुनिया भर में बहुत सी सभ्यताएं नदी किनारे ही विकसित हुई हैं। आप जानते हैं की इस धरती पर जीवन के विकास में नदियों का अहम योगदान रहा है। नदियां हमारे लिए हमेशा से सहायक सिद्ध होती आयी हैं। ... Read more
Reported by Rohit Kumar
Published on 20 April 2024
नदी पर निबंध:- प्रकृति में मौजूद नदी स्वच्छ जल का स्रोत नदी को माना गया है। दुनिया भर में बहुत सी सभ्यताएं नदी किनारे ही विकसित हुई हैं। आप जानते हैं की इस धरती पर जीवन के विकास में नदियों का अहम योगदान रहा है। नदियां हमारे लिए हमेशा से सहायक सिद्ध होती आयी हैं। जैसा की आप जानते हैं की अकसर विभिन्न भर्ती की प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी के प्रश्न पत्र में निबंध-लेखन से संबंधित प्रश्न पूछ लिए जाते हैं। यदि आप भी किसी सरकारी भर्ती प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो हमारा यह आर्टिकल आपके लिए मददगार साबित हो सकता है। आज के अपने इस लेख में हमने आपको नदी पर लिखे जाने वाले निबंध (Essay on River) के बारे में जानकारी प्रदान की है। यदि कभी आपके पास नदी पर निबंध लेखन से संबंधित प्रश्न आता है आप आर्टिकल में दिए गए नदी पर निबंध को समझकर एक बढ़िया निबंध लिख पाएंगे जिससे आप परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकें।
यह भी पढ़े :- भारत की सबसे लंबी नदी कौन सी है ?
प्रस्तावना (Preface):
नदी एक ऐसी प्रवाहित धारा जो न कृषि हेतु फसल उपजाति है बल्कि किसी भी सभ्यता के विकास में सहायक होती है। पुरातन समय से मनुष्य नदी को देवी-देवताओं के रूप में पूजता आया है। हम यह भी जानते हैं हमारे देश में बहुत से ऐसे ऋषि मुनि हुए हैं जिन्होंने नदी किनारे कड़ी तपस्या कर अध्यात्म और मोक्ष से संबंधित ज्ञान प्राप्त किया है।
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नदी किसे कहते हैं ?
नदी के महत्व को समझने से पहले आपको यह समझना होगा की नदी किसे कहा जाता है। भू वैज्ञानिकों ने नदी के सन्दर्भ में एक मानक परिभाषा तय की है। इस परिभाषा के अनुसार- “नदी भूमि की ऊपरी सतह पर बहती हुई वह जलधारा है जिसका स्रोत प्राकृतिक रूप से बने झील, हिमनद, झरना होते हैं।” आपको बताते चलें की नदी शब्द का उद्गम संस्कृत भाषा के शब्द नद्य से आया है। संस्कृत भाषा में नदी को एक और नाम से जाना जाता है वह है सरिता, तरिणी आदि।
नदी के कार्य:
नदियों को भूवैज्ञानिक आधार पर इसके कार्यों को तीन भागों में विभाजित किया गया है –
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- संक्षारण:
- द्रवचालित क्रिया:
- अपघर्षण
- सन्निघर्षण:
- नदी परिवहन: जब नदी के जल में घुलकर अपरदित पदार्थ एक स्थान से दूसरे स्थान तक बहकर चलें जाते हैं तो यह क्रिया नदी परिवहन कहलाती है।
- नदी विक्षेपण : अब नदी के जल में मौजूद अपरदित पदार्थों के कारण नदी के प्रवाह तेज हो जाता है और नदी विभिन्न भागों में बंट जाती है। नदी विक्षेपण कहलाती है।
- भू-गर्भ: जब भूमि के द्वारा बाढ़ या वर्षा का जल अवशोषित कर अपने अंदर समाहित कर लिया जाता है तो ऐसा जल भूगर्भीय जल कहलाता है।
नदी (River) कितने प्रकार की होती है ?
भू-वैज्ञानिकों ने नदियों को दो प्रकार में विभाजित किया है –
- सदानीरा: सदानीरा उन नदियों को कहा जाता है जिनका स्त्रोत प्राकृतिक होता है यदि हम सरल भाषा में कहें की तो नदी का उद्गम स्थल प्राकृतिक होता है। गंगा, यमुना, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, अमेज़न, नील आदि नदियां सदानीरा नदी का बेहतरीन उदाहरण हैं। सदानीरा नदियां वर्ष भर जल से भरी रहती हैं।
- बरसाती नदियां: जिन नदियों का उद्गम बरसात के जल के कारण हुआ है उन्हें बरसाती नदियां कहा जाता है। यह नदियां बरसात के समय उत्पन्न होती हैं और बरसात का मौसम खत्म हो जाने पर समाप्त हो जाती हैं।
नदियों का हमारे जीवन में क्या महत्व है ?
- आप तो जानते ही हैं की प्राचीन काल से नदियां हमारा भरण-पोषण करती आयी हैं। प्राचीन काल में ऋषि मुनि शान्ति की तलाश में नदी किनारे ही अपना स्थान बनाते थे और एकांत में बैठकर तपस्या करते थे
- प्राचीन में व्यापार भी नदियों के द्वारा किया जाता था। सामान और वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में भू-मार्ग की बजाय जल मार्ग पर खर्च कम आता था इसलिए जल मार्ग का उपयोग अधिक किया जाता था।
- नदियों ने हमेशा से ही निस्वार्थ भाव से मानव जाति की सेवा की है।
- आज का आधुनिक मानव अपने स्वार्थ और विकास के लिए नदी जैसे प्राकृतिक संसाधन का दोहन करता जा रहा है। आज आप देखें की प्लास्टिक कचरा, फैक्ट्रियों का कचरा, महानगरों का सिविर का गंदा पानी सब नदियों में बहाया जा रहा है।
- इस तरह के कचरे से नदियाँ प्रदूषित होती हैं और नदी में रहने वाले जलीय जीवों को नुकसान पहुँचता है।
- प्रदूषण के कारण नदियों से हमें बाढ़ जैसे दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं जो मानव सभ्यता को बहुत नुकसान पहुंचाती है। यदि हमने समय रहते इन सब को रोकने के उपाय नहीं किये तो मानव सभ्यता का अंत निश्चित है।
- नदियां हमें खेती हेतु उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी प्रदान करती है। कृषि हेतु जलोढ़ मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना गया है।
- नदियां खेती की मिट्टी के साथ लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है। आप देखेंगे की नदी में की जाने वाली बोटिंग, रिवर राफ्टिंग आदि कार्यों से पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है। यदि हम यह कहें की नदियां हमारे देश के आर्थिक विकास में अहम योगदान रखती हैं तो गलत नहीं होगा।
- अपने देश भारत में यदि हम नदी के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व की बात करें तो बहुत से धार्मिक नगर वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, नासिक, उज्जैन, गुवाहाटी, गया, पटना आदि नदियों के किनारे ही बसें हैं जहाँ प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु स्नान, पूजा आदि कार्यों के लिए आते हैं।
- हमारे देश भारत में नदियों को जीवनदायिनी और मातृ स्वरूप माना गया है। लम्बे समय से हमारी आस्था नदियों से जुड़ी रही है।
दुनिया की सबसे लम्बी नदी कौन सी है ?
![नदी पर निबंध हिन्दी में - Essay on River in Hindi 2 Sand-dunes-Nile-River-Egypt](https://hindi.nvshq.org/wp-content/uploads/2022/12/Sand-dunes-Nile-River-Egypt-1024x768.jpg)
दोस्तों आपकी जानकारी के लिए बता दें की दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील नदी (Nile River) है। जो अफ्रीका महाद्वीप के North-East (नार्थ-ईस्ट) क्षेत्र में बहती है। दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील नदी की लम्बाई 6,650 किलोमीटर (4132 मील) है जो हमारे देश की सबसे लम्बी नदी गंगा से तीन गुनी है। आपको बता दें की नील नदी के नाम की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द “नीलोस” से हुआ है। नील नदी का उद्गम अफ्रीका के बहुत प्रसिद्ध ब्लू नील वाटर फॉल झरने से होता है और यह नदी अफ्रीका के मिश्र, युगाण्डा, इथियोपिया, सूडान जैसे देशों से होकर गुजरती है। इसके बाद नदी का अंतिम स्थान भूमध्य सागर है जहाँ नदी डेल्टा बनाकर भू मध्य सागर से मिल जाती है।
भारत की कुछ प्रमुख नदियां:
भारत में नदियों को पवित्र और पूजनीय माना जाता है। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी धर्म के कार्यों में नदियों का अपना ही महत्व है। आप देखें की जब मनुष्य की मृत्यु हो जाती है और मनुष्य का दाह संस्कार कर दिया जाता है तो दाह संस्कार के बाद मनुष्य का अस्थि विसर्जन नदी में किया जाता है। मान्यता है की नदियों में प्रवाहित की गयी अस्थियों से मृतक की आत्मा को मोक्ष मिलता है। यहाँ लिस्ट में हमने आपको भारत की कुछ प्रमुख पवित्र नदियों के बारे में बताया है आप देख सकते हैं –
निष्कर्ष (Conclusion):
दोस्तों आज आपने इस लेख नदी के बारे में जाना। यदि नदियां साफ़ एवं स्वच्छ होंगी तो हमारा प्राकृतिक वातावरण भी शुद्ध होगा। बिना जल और नदियों के इस धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। धरती पर अपने जीवन के अस्तित्व को बचाने के लिए हमें नदी संरक्षण कार्यक्रम के तहत लोगों को जागरूक करना होगा।
नदी (River) से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रोचक तथ्य:
- दुनिया में ऐसे 18 देश हैं जहाँ एक भी नदी नहीं है।
- उत्तरी अमेरिका की सबसे लम्बी नदी का नाम है मिसौरी नदी
- दुनिया में बांग्लादेश को नदियों की भूमि कहा जाता है। आपको बता दें की बांग्लादेश में लगभग 700 से अधिक नदियां हैं।
- अमेरिका में बहने वाली रो रिवर. ये मोंटाना दुनिया की सबसे छोटी नदी है। इस नदी की लम्बाई 201 फ़ीट (61 मीटर) है।
नदी से संबंधित प्रश्न एवं उत्तर (FAQs):
नदी के पर्यायवाची शब्द कौन से हैं .
नदी – तरिणी तरंगवती अपगा निम्नगा तरंगिनी प्रवाहिनी द्वीपवती लरमाला नदिया निर्झरणी जलमाला शैवालिनी कूलंकषा नद सरिता
हमारे देश की राष्ट्रीय नदी कौन सी है ?
भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा है।
गंगा की लम्बाई कितनी है ?
भारत की पवित्र नदियों में से एक माने जाने वाली गंगा की लम्बाई (भारत से लेकर बांग्लादेश तक) 2,525 किलोमीटर है।
दुनिया की सबसे बड़ी नदी कौन सी है ?
दुनिया की सबसे बड़ी नदी साउथ अमेरिका महाद्वीप की अमेज़न (Amazon) नदी है। यहाँ बड़ी का मतलब नदी की चौड़ाई से है। जिसकी लम्बाई 6,400 किलोमीटर है।
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Essay on rivers of india in hindi.
Essay on Rivers of India in Hindi for all students of class 1, 2, 3, 4, 5, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Most students find difficulty in writing essay on new topics but you don’t need to worry now. Read and write this essay in your own words. भारत की नदियाँ पर निबंध।
![if i am a river essay in hindi language hindiinhindi Rivers of India in Hindi](https://i0.wp.com/www.hindiinhindi.com/wp-content/uploads/2019/03/Rivers-of-India.jpg?resize=640%2C403&ssl=1)
विचार – बिंदु – • भारत की प्रसिद्ध नदियाँ • गंगा-यमुना का उपजाऊ क्षेत्र • गंगा को मैया कहा जाता है • नदी के तट पर मेले, उत्सव, मुंडन या मृत्यु के संस्कार
भारत जलवती नदियों का देश है। यहाँ की प्रमुख नदियाँ वर्ष भर जल से आपूरित रहती हैं। गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, सिंधु, सतलुज, व्यास आदि नदियों का जल अमृत के समान माना जाता है। ये भारत की कृषि की आधार हैं। इन्हीं की कृपा से देशवासियों को अन्न-जल मिलता है। गंगा और यमुना का क्षेत्र भारत में सबसे अधिक उपजाऊ माना जाता है। इस क्षेत्र के निवासी किसान हैं और खुशहाल हैं। इसलिए भारतवासी नदियों को माँ के समान पूज्य मानते हैं।
गंगा को तो गंगा-मैया कहकर ही पुकारा जाता है। इसलिए देश-भर के वासी गंगा के तटों पर मेले लगाते हैं, उत्सव मनाते हैं, अपने दुख-सुख प्रकट करते हैं और अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। जन्म पर मुंडन संस्कार हो या मृत्यु पर अस्थियों का विसर्जन – सब समय नदियों को याद किया जाता है। बच्चे के बाल हों या मृत शरीर की हड्डियाँ-सबको अंतिम शरण नदियों में मिलती है। इसलिए इन नदियों को पवित्र बनाए रखने का दायित्व भी हम पर आता है। सभी को चाहिए कि वे इन्हें माता के समान पवित्र रखें, इन्हें अपनी भोगभूमि न मानें।
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Home » Essay Hindi » नदी की जानकारी पर निबंध | Information & Essay On River In Hindi
नदी की जानकारी पर निबंध | Information & Essay On River In Hindi
इस लेख River Information In Hindi में नदी पर निबंध (Essay On River In Hindi) नदियों के लाभ और विश्व की प्रमुख नदियाँ की जानकारी दी गयी है। नदी मनुष्य जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है। नदी एक जगह से दूसरी तक बहती है और कई स्थानों को आपस में जोड़ती है।
सदियों से मनुष्य नदी के मुहाने पर बसता आ रहा है। ये व्यापारिक, आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है। पूरे विश्व में नदियाँ पायी जाती है। मानव सभ्यता के विकास में इनका अहम योगदान है। नदी को सरिता, प्रवाहिनी जैसे नामों से भी जाना जाता है।
नदी पर निबंध – Essay On River In Hindi
नदी धरती के तल पर प्रवाहित जल की धारा है। इसका उद्गम स्रोत बारिश, पर्वत, झीले होती है। नदी अपने अंतिम पड़ाव में किसी समुद्र में जाकर मिलती है। नदी मीठे पानी का एक बहुत बड़ा स्रोत है। विज्ञान की जिस शाखा के अंतर्गत नदियों का अध्ययन किया जाता है, उसे “ पोटेमोलॉजी ” कहते है। यह अपने साथ रेत बहाकर ले जाती है।
नदियाँ मुख्यतः दो प्रकार की होती है। एक प्रकार की नदी हमेशा बारिश के पानी पर निर्भर होती है। बारिश ना हुई तो उसका अस्तित्व नही होता है। दूसरी प्रकार की नदियां सदानीर वर्षभर बहती रहती है। नदी को उसकी आयु के आधार पर भी वर्गीकृत किया गया है।
1. युवा नदी (इस प्रकार की नदी का बहाव तेज होता है।)
2. परिपक्व नदी (इनका बहाव धीमा होता है।)
3. बूढ़ी नदी (यह बहुत धीमी बहती है।)
भारत की गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियाँ हिमालय पर्वत शंखला से निकलती है। पर्वतों पर मौजूद बर्फ पिघलने से इन नदियों का उदगम हुआ है। पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश बहुत ज्यादा होती है। यही कारण है कि नदियों में पानी का बहाव हमेशा रहता है। पर्वतीय क्षेत्रों के अलावा दक्षिण तराई क्षेत्रों में भी नदियों का उद्गम होता है। गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी नदियाँ इन तराई क्षेत्रों से उद्गमित होती है।
नदी की जानकारी – River Information In Hindi
नदी के पानी का बहाव हमेशा ऊपर से नीचे की तरफ गुरुत्वाकर्षण की वजह से होता है। नदियों में पानी धरातल पर और धरातल के नीचे बहता है। नदियों के सुख जाने के बाद भी भूजल बहता रहता है। नदियाँ समुद्र के पास आकर डेल्टा का निर्माण भी करती है।
ज्यादातर नदियाँ अपने उदगम स्थल से बहते हुए समुद्र में मिल जाती है। कुछ नदियां समुद्र में नही मिलती है। राजस्थान में मौजूद लुणी नदी ऐसी ही एक नदी है। यह कुछ दूर बहकर लुप्त हो जाती है। इसका कारण रेगिस्तान है जिसमें नदी का पानी रिस जाता है। कई छोटी नदियाँ बड़ी नदी में जाकर मिल जाती है। इससे नदी का फैलाव बढ़ जाता है।
नदियों के लाभ (Advantages Of Rivers In Hindi)
1. नदी (River) पानी का मुख्य स्रोत है। यह दूर दराज इलाको तक पानी ले जाती है। मानव सभ्यता के फलने फूलने का मुख्य कारण नदी है। नदियों का एक निश्चित बहाव होता है। नदी किसी भी विशेष क्षेत्र के लिए संजीवनी होती है। पीने के लिए पानी उपलब्ध करवाती है। खेतों की सिंचाई के लिए जल की आपूर्ति करती है।
2. नदी एक व्यापारिक मार्ग की तरह भी कार्य करती है। नावों और छोटे जहाजों के माध्यम से व्यापार किया जाता है। नदी परिवहन का मार्ग भी होती है।
3. नदियों के जल के साथ उपजाऊ मिट्टी बहकर आती है जो कृषि में उपयोग की जाती है। नदी के जल के साथ रेत और बजरी भी बहकर आती है। बजरी का इस्तेमाल पक्के मकान बनाने में किया जाता है।
4. नदियों पर बांध भी बनाये जाते है। इससे पानी को रोक लिया जाता है। जो आसपास के इलाकों में पानी की आपूर्ति करता है।
5. नदियों में पाई जाने वाली मछलियां भोजन का बड़ा स्रोत है। नदियों में जलीय जीवन भी पाया जाता है।
6. नदियों पर बिजली सयंत्र भी बने होते है। इनमे पानी से बिजली का निर्माण होता है।
7. नदियों को पवित्र भी माना गया है। गंगा नदी में अस्थियों को बहाया जाना शुभ माना जाता है। नदियों की पूजा भी की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते है। बड़े बड़े धार्मिक स्थल नदियों के किनारे ही बसे हुए है।
नदी किसी भी क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नदी का विकराल रूप भी होता है। कई क्षेत्रों में नदी बाढ़ का कारण भी बनती है। बिहार का शौक कहलाने वाली “ कोसी नदी ” के कारण बाढ़ आती रहती है। तेज बारिश के कारण भी नदियां उफान पर आ जाती है।
नदियों में प्रदूषण की विकट समस्या
आजकल की यह विकट समस्या है जो प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जल प्रदूषण के कारण नदियों का पानी दूषित हो रहा है। जल प्रदूषण का मुख्य कारण नदियों में फैक्टरियों से निकला रसायनिक प्रदार्थ का मिलना है। शहरों और गांवों से गंदगी और कचरा बहकर नदियों में मिल जाता है।
नदियों में लोग नित्य क्रिया भी करते है। नदियों का प्रदूषण अपना विकराल रूप ले रहा है। गंगा जैसी पवित्र नदी भी हरिद्वार आते आते प्रदूषित हो गयी है। बाढ़ के कारण पशुओं के शव नदियों में मिलकर उसे दूषित करते है।
नदियों में प्रदूषण को रोकने का सबसे अच्छा उपाय सामाजिक जागरूकता है। फैक्टरियों को नदियों से दूर स्थापित करना चाहिए। कचरे का निकास नदियों में होने से रोकना चाहिए।
विश्व की प्रमुख नदियाँ – River Essay In Hindi
1. गंगा नदी – गंगा नदी भारत की पवित्र नदी है। हिन्दू धर्म में गंगा नदी का विशेष महत्व है। इसको भागीरथी नदी भी कहते है। गंगा नदी की लंबाई 2525 किलोमीटर है। यह गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। यह पूर्णत भारत में ही बहती है।
गंगा की सहायक नदियों में घाघरा नदी, यमुना नदी, महानदी प्रमुख है। गंगा नदी भारतीय लोगो की आस्था का प्रतीक है। गंगा दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में भी आती है।
2. ब्रह्मपुत्र नदी – यह भी हिन्दू मान्यताओं में पवित्र मानी गयी है। इसका उदगम स्थान तिब्बत है। इस नदी की लंबाई 2900 किलोमीटर है। यह नदी पूर्वी भारत की प्रमुख नदी है।
3. नील नदी – यह विश्व की सबसे लम्बी नदी है। इस नदी के पास कई सभ्यताओं का विकास हुआ है। मिस्र की सम्भता नील नदी के कारण ही पनपी है। यह अफ्रीका में बहती है। नील नदी की लंबाई 6650 किलोमीटर है।
4. अमेजन नदी – अमेजन नदी दुनिया की दूसरी सबसे लम्बी नदी है। इस नदी के आसपास के इलाकों में अमेज़न के घने जंगल पाये जाते है। अमेजन की लंबाई 6400 किलोमीटर है। अमेजन नदी दक्षिण अमेरिका में बहती है। इस नदी का घनत्व विश्व मे सबसे ज्यादा है।
5. कांगो नदी – इस नदी की लंबाई 4700 किलोमीटर है। कांगो अफ्रीका की दूसरी सबसे बड़ी नदी है।
6. यलो नदी – यह चीन की प्रमुख नदी है। इस नदी की लंबाई 5464 किलोमीटर है। यलो दुनिया की सबसे गहरी नदी है।
7. यांग्त्ज़ी नदी – यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। यांतजी एशिया की सबसे बड़ी नदी है जो चीन में बहती है। इस नदी की लंबाई 6300 किलोमीटर है।
8. सिंधु नदी – यह एक ऐतिहासिक नदी है। इसके पास कई प्राचीन सभ्यताओं का विकास हुआ है। सिंधु घाटी सभ्यता का विकास भी सिंधु नदी के पास हुआ है। इस नदी की लंबाई 3200 किलोमीटर है। इसका उद्गम स्थल तिब्बत का पठार है। यह अरब सागर में जाकर मिलती है। सिंधु नदी भारत, पाकिस्तान और चीन होकर बहती है। सिंधु नदी की सहायक नदियों में रावी, सतलज, चेनाब नदी प्रमुख है।
9. सरस्वती नदी – यह भी ऐतिहासिक और पवित्र नदी है। यह वर्तमान में विलुप्त हो चुकी है। वेद और पुराणों में इस नदी का जिक्र मिलता है। वर्तमान में यह नदी धरातल पर सुख चुकी है लेकिन धरातल के नीचे आज भी यह बहती है।
10. गोदावरी नदी – इस नदी को दक्षिण भारत की गंगा भी कहते है। यह एक दक्षिण तटवर्तीय नदी है। इस नदी का उद्गम स्थल महाराष्ट्र का नासिक है। नासिक से बहते हुए यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
गंगा नदी, यमुना नदी और सरस्वती नदी का संगम त्रिवेणी संगम कहलाता है। इन नदियों के अलावा भी कावेरी नदी, नर्मदा नदी, यमुना नदी, महानदी, कृष्णा नदी, लुणी नदी, बनास नदी, अलकनंदा नदी, सरयू नदी, चम्बल नदी, गंडक नदी जैसी कई नदियाँ है जो भारत में बहती है। विश्व में बहने वाली अन्य प्रमुख नदियों में अमूर नदी, डेन्यूब नदी, इरावदी, लेना नदी, मिसिसिपी नदी, मैकेंजी नदी, नाइजर नदी, पराना नदी, पराग्वे नदी जैसी नदियां आती है।
नदी पर निबंध Essay On River In Hindi , नदियों के लाभ ( Advantages Of Rivers) और विश्व की प्रमुख नदियाँ ( Rivers Name In Hindi) के बारे में यह आर्टिकल River Information In Hindi आपको कैसा लगा? यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे शेयर भी करे।
Frequently Asked Question About Rivers:-
Q.1 पूर्णत भारत में बहने वाली सबसे लम्बी नदी कौनसी है?
Ans. गंगा नदी
Q.2 बिहार का शौक किसे कहते है?
Ans. कोसी नदी
Q.3 दक्षिण भारत की गंगा किसे कहते है?
Ans. गोदावरी नदी
Q.4 दुनिया की सबसे लम्बी नदी कौनसी है?
Ans. नील नदी
Q.5 त्रिवेणी संगम किसे कहते है?
Ans. गंगा नदी, यमुना नदी और सरस्वती नदी का संगम
Q.6 नदी का पर्यायवाची शब्द क्या है?
Ans. आपगा, सरिता, तटिनी, प्रवाहिनी
यह भी पढ़े –
- महासागरों के बारे में जानकारी
- मरुस्थल के बारे में जानकारी
- जल पर निबंध
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यमुना नदी पर निबंध
By विकास सिंह
![if i am a river essay in hindi language Essay on yamuna river in hindi](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2019/07/yamuna-river.jpg)
यमुना नदी पर निबंध (Essay on yamuna river in hindi)
भारत में नदियाँ केवल जल स्त्रोत ही नहीं हैं, बल्कि उन्हें ईश्वर और देवी के रूप में पूजा जाता है और पवित्र माना जाता है। इस तरह के सम्मान की स्थिति के बावजूद, नदियों को खुले सीवेज नालियों, पर्याप्त सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की कमी, मिट्टी के कटाव और नदी के पानी में प्लास्टिक के कचरे को डंप करने आदि के कारण प्रदूषित किया जा रहा है, यमुना एक ऐसा उदाहरण जहां सफाई का हर प्रयास विफल रहा है।
यमुना नदी में कभी नीला पानी था, लेकिन अब यह नदी दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है, खासकर नई दिल्ली के आसपास का इसका हिस्सा। राजधानी अपना 58% कचरा नदी में बहा देती है। नदी के पानी में खतरनाक दर से प्रदूषक बढ़ रहे हैं। वे दिन दूर नहीं जब दिल्ली के घरों में पहले की तुलना में प्रदूषित पानी होगा। वर्तमान में दिल्ली के 70% लोग यमुना नदी का उपचारित पानी पी रहे है।
दिल्ली सीवेज के 1,900 मिलियन लीटर प्रति दिन (MLD) का उत्पादन कर रही है, लेकिन दिल्ली जल बोर्ड (DJB) जो सीवेज के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है, शहर में उत्पन्न कुल सीवेज का केवल 54 प्रतिशत का संग्रह और उपचार कर रहा है। इसके अलावा भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने पाया है कि 32 में से 15 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अपनी क्षमताओं से नीचे काम कर रहे हैं।
यह यमुना नदी को पहले से कहीं अधिक तेज गति से प्रदूषित कर रहा है। शहरी आबादी में वृद्धि के अलावा नदी में प्रदूषण भी बढ़ रहा है। वहीं, यमुना के किनारे दिल्ली और शहरों में भूमिगत जल जल प्रदूषण के कारण प्रदूषित हो रहा है। अधिकारियों में से एक द्वारा यमुना नदी को “सीवेज नाली” भी माना जाता है।
यमुना अधिकांश प्रदूषित नदी क्यों है?
यमुना के पाँच खंड हैं- हिमालयी खंड (उद्गम से लेकर तजेवाला बैराज तक 172 किमी), ऊपरी खंड (ताजेवाला बैराज से वजीराबाद बैराज 224 किमी), दिल्ली सेगमेंट (वजीराबाद बैराज से ओखला बैराज 22 किमी), यूट्रीफाइड सेगमेंट (ओखला बैराज) 490 किलोमीटर), और पतला खंड (चंबल कंफ्लुएंस टू गंगा कॉन्फ्लुएंस 468 किलोमीटर)।
यमुना अपने दिल्ली खंड में सबसे अधिक प्रदूषित है। यमुना नदी पल्ला गाँव से दिल्ली में प्रवेश करती है। 22 नाले यमुना में गिरते हैं। इनमें से 18 नाले सीधे नदी में और 4 आगरा और गुड़गांव नहर के माध्यम से गिरते हैं।
पर्याप्त संख्या में सीवेज उपचार संयंत्रों की कमी के कारण यमुना के प्रदूषित में वृद्धि हुई है। इससे पहले यमुना का सबसे प्रदूषित हिस्सा दिल्ली में वज़ीराबाद से लेकर उत्तर प्रदेश के इटावा के बीच स्थित था। हाल ही में प्रदूषित भाग बढ़ गया है और अपने शुरुआती बिंदु को पानीपत, हरियाणा में स्थानांतरित कर दिया है। इसलिए 100 किलोमीटर प्रदूषित भाग को जोड़ा दिया गया है।
पिछले दो दशकों में यमुना की सफाई के लिए 6,500 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं। लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि यमुना का प्रदूषित भाग 500 किमी से बढ़कर 600 किमी हो गया है। जलीय जीवन का समर्थन करने के लिए, पानी में 4.0 मिलीग्राम / लीटर भंग ऑक्सीजन होना चाहिए। दिल्ली में वज़ीराबाद बैराज से आगरा तक यमुना में इसकी सीमा 0.0 मिलीग्राम / लीटर और 3.7 मिलीग्राम है।
जल प्रदूषण को इसकी जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग के स्तर को मापने के द्वारा मापा जाता है और अनुमेय सीमा 3 मिलीग्राम / लीटर या उससे कम होती है। जबकि यमुना के सबसे प्रदूषित भाग में 14 – 28 मिलीग्राम / एल बीओडी सांद्रता है। बीओडी बढ़ रही है क्योंकि कई अनुपचारित सीवेज नालियां हैं जो नदी में नालियों को डालती हैं।
निज़ामुद्दीन ब्रिज और आगरा के बीच यमुना के जलस्तर में जहरीले अमोनिया का स्तर अधिक है। पानीपत और आगरा के बीच स्ट्रेच में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का उच्च स्तर होता है। तीन बैराज यानि वजीराबाद बैराज, ITO बैराज और ओखला बैराज दिल्ली में यमुना नदी के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।
यमुना नदी की सफाई के लिए कुछ कदम:
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) की स्थापना, एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स (ईटीपी) की स्थापना, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स की स्थापना, यमुना एक्शन प्लान, पर्यावरण जागरूकता अभियान दिल्ली सरकार द्वारा यमुना की सफाई के लिए की गई कुछ पहलें हैं। इसके अलावा इसकी गुणवत्ता के लिए पानी की नियमित जांच की जाती है।
यमुना एक्शन प्लान (YAP) – यमुना की सफाई के लिए यमुना एक्शन प्लान है। 1993 से जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी, जापान सरकार भारत सरकार को चरणों में यमुना को साफ करने में सहायता कर रही है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के 29 शहरों में 39 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट योजना के चरण I में बनाए गए थे। यमुना एक्शन प्लान I और II के तहत लगभग 1,500 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
परिणाम:
लेकिन यमुना की सफाई का हर लक्ष्य अब तक काम नहीं आया है और नदी अभी भी प्रदूषित है। सीवेज उपचार की अधिकांश सुविधाएं या तो कमज़ोर हैं या ठीक से काम नहीं कर रही हैं। इसके अलावा नदी में केवल बरसात के मौसम के दौरान ताजा पानी मिलता है और लगभग नौ महीने तक पानी लगभग स्थिर रहता है।
इससे हालत और बिगड़ जाती है। बिना किसी नतीजे के करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं। भ्रष्ट प्रशासन और लोगों का रवैया सफाई कार्यक्रमों को छिपाने के लिए पर्याप्त है। हमें एक व्यक्ति के रूप में नदी में कुछ भी नहीं फेंकने की जिम्मेदारी लेनी होगी।
[ratemypost]
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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.
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10 Lines on River in Hindi । नदी पर 10 लाइन निबंध
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मीठे मीठे जल का प्रमुख स्रोत नदी है हमारी पृथ्वी में 75% पानी है और 25% भूमि है, जिस पर मनुष्य निवास करता है। खारा पानी हमारे किसी काम का नहीं रोजाना की जरूरतों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए हमें मीठे पानी की जरूरत होती है। हम जानते हैं कि मानव शरीर का लगभग एक तिहाई भाग पानी से बना है अर्थात एक मनुष्य को पीने के लिए औसतन 2 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। पानी पीने के अलावा नहाने, घर धोने, बर्तन धोने ,कपड़े धोने तथा घर की साफ सफाई के लिए भी हमें जल की आवश्यकता होती है । अर्थात जल ही हमारा जीवन है । केवल मनुष्यों को ही नहीं बल्कि समस्त जीव-जंतुओं को पानी की आवश्यकता होती है ।
Table of Contents
River in Hindi
मीठे पानी का मुख्य स्रोत नदी है । नदियों के अलावा तालाब, कुआ और हैंडपंप इत्यादि भी मीठे पानी का स्रोत है । पर इस लेख के माध्यम से हम नदियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे ।
नदियों की उत्पत्ति
नदियों की उत्पत्ति का प्रमुख स्रोत पर्वत है । पर्वतों की चोटी पर जमी बर्फ धीरे-धीरे पिघलते हैं और नदियों का रूप धारण करते हैं । विश्व का केवल 3% पानी मीठा है जिसका हम उपयोग करते हैं । आइए जानते हैं कि विश्व के प्रमुख पर्वत श्रृंखला और उन से निकलने वाली नदियों के नाम
नदियों का उद्गम स्थान पर्वत है । पर्वतों से बहते हुए नदी अपने बाल्यावस्था में रहती है। जैसे बालक चंचल होता है उसी प्रकार नदी इस अवस्था में अपनी चंचलता लिए रहती है और जहां जहां इसे ढलान मिलता है । यह अपना मार्ग तय कर लेती है । रास्ते की हर कठिनाइयों का सामना करते हुए खुद अपना मार्ग प्रशस्त करती है । एक नदी की यात्रा यहां से ही शुरू होती है । नदी बहते- बहते अपने दूसरे पड़ाव पर आती है, जहां इसकी धारा बहुत तेज हो जाती है । सबसे अब यह पर्वतों से होकर मैदानों की तरफ आती है और पत्थरों को काटकर तथा मैदानों को चीर कर अपना रास्ता बनाती है । यहां नदियों में थोड़ी स्थिरता आती है । इस समय नदियां अपने यौवन अवस्था तक पहुंचती हैं । तत्पश्चात नदियां विभिन्न शाखाओं में विभक्त हो जाती हैं तथा अनेक नामों से जानी जाती है । जिस रास्ते से गुजरती है । उस भूमि को उर्वर बनाती हैं । अब नदियां चौड़ी हो जाती हैं तथा उनमें एकदम स्थिरता आ जाती है । इस इस समय नदियां अपने प्रौढ़ावस्था में होती हैं । एक प्रौढ़ व्यक्ति की भांति नदियों में स्थिरता तथा गंभीरता जाती है। वह बिल्कुल शांत हो जाती हैं। इस स्थान पर नदियों का पानी भी बहुत गहरा होता है। इसके बाद नदियां अपने वृद्धावस्था में पहुंचती है और अंततः सागर में समा जाती है ।नदियों की यात्रा कि यह अंतिम पड़ाव होती है। यहां नदियों के मुहाने और अधिक चौड़े हो जाते हैं। नदियों का कल- कल आवाज बिल्कुल शांत हो जाता है और अंततः अपनी यात्रा पूरी करने के बाद यह सागर में विलीन हो जाती है।
विश्व की जितनी भी सभ्यताएं हुई हैं ।सब में एक ही बात सामान्य थी कि यह नदियों के किनारे विकसित हुए । सभ्यताओं के नदियों के किनारे विकसित होने के कारण क्या थे आइए जानते हैं-
1) खेती के लिए पानी की आपूर्ति की सुविधा
2) पीने तथा दूसरे क्रियाकलापों में सुविधा
3) पशुओं को पानी पिलाने तथा तथा नहलाने की सुविधा
4) मिट्टी का उर्वर होना यातायात करने में सुविधा
लोगों ने तब तक तालाब भी बनाना सीख लिया था ,जिसका प्रमाण हमें हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिलता है। नदियां दो प्रकार की होती हैं -पर्वतों के बर्फ पिघल कर निकलने वाली नदियां और बारिश के पानी से निकलने वाली नदियां
पहली नंबर वाली नदियां ही दुनिया में अधिक पाई जाती हैं। नदियां मीठे जल का स्रोत होती है। बरसात के दिनों में नदियों में बाढ़ आना आम बात है, पर बाढ़ चले जाने के बाद नदियां मिट्टी की उर्वरता को बढ़ा देती है। भारत में तो नदियों की पूजा भी की जाती है। नदियां हमारे लिए बेहद उपयोगी मीठे जल का स्रोत है ।सोचिए अगर नदियां ही पूरी धरती से विलुप्त हो जाएं तो क्या होगा ? कल्पना मात्र से भी डर लगता है ना ! मीठे जल का स्रोत धीरे-धीरे घटने लगा है। मीठे पानी का स्तर अब और भी नीचे चला गया है। हमें याद रखना होगा कि मीठा जल केवल 3% ही दुनियाभर में पाया जाता है ।इसलिए इसका उपयोग भी हमें सोच समझ कर करना चाहिए। हम पानी को बगैर सोचे समझे लापरवाही से प्रयोग करते हैं। अक्सर रास्तों में कॉरपोरेशन वाले नल बहते ही रहते हैं ,तब बेहद कष्ट होता है उन लोगों के बारे में सोच कर जिन्हें मीलों का सफर तय करके एक मटका पानी मिलता है ।अभी भी भारत वर्ष में ऐसे राज्य हैं जिन्हें मीठे पानी के लिए को सोचना पड़ता है या सरकारी कॉरपोरेशन के नलों पर घंटों लाइन में लगकर पानी लाना पड़ता है। यह समस्या केवल हमारी आपकी नहीं है, पूरे भारतवर्ष की है। नदियों से हमें काफी कुछ मिला है ।नदियां बहुत से सभ्यताओं की साक्षी रही है। बहुत से महानगर नदियों के किनारे ही विकसित हो गए हैं ।भारत की प्रमुख नदियों के नाम निम्नलिखित है –गंगा, यमुना, सरस्वती, सतलुज, गोमती, हुगली, दामोदर, ताप्ती, तीस्ता पद्मा, सिंधु, ब्रम्हपुत्र, नर्मदा तथा कावेरी । आज इस लेख में आप “ 10 Lines on River in Hindi” पढ़ेंगे।
10 Lines on River in Hindi
- नदियों का उद्गम श्रोत पर्वत है। विश्व भर की अधिकांश नदियाँ इसी प्रकार निकली है।
- नदियाँ दो प्रकार की होती है – पर्वतों के हिम से पोषित और बर्षा द्वारा पोषित ।
- पर्वतों से बहते समय ये अपनी बाल्यावस्था में होती है। यह बहुत ही चंचल होती है तथा संकीर्ण भी।
- अपनी बाल्यावस्था में ये कल -कल की आवाज़ करते हुए झरनो के रूप में बहती है।
- अपनी युवावस्था तक आते -आते ये स्थल पर आती है और जहाँ ढलान मिलता है वहां ये बहने लगती है।
- प्रौढ़ावस्था तक आते -आते इनमे काफी ठहराव और स्थिरता आ जाती है तथा इसके मुहाने और भी चौड़े हो जाते है।
- मुख्य नदी बहुत सी शाखाओं में बँट जाती है। और भिन्न -भिन्न नामो से जानी जाती है।
- गंगा भारत कीसब से पवित्र नदी है।
- बाढ़ आने पर नदियाँ विकराल रूप धारण कर लेती है और फसलों तथा गावों का सत्यानाश कर देती है।
- बाढ़ चले जाने की बाद भूमि अधिक उपजाऊ हो जाती है।
5 Lines on River in Hindi
- नदियाँ मीठे पानी का मुख्य श्रोत है।
- विश्व में केवल 3 % पानी ही मीठा है।
- मीठे पानी का संचय हमारा दायित्व है।
- विश्व में जितनी भी सभ्यताएँ हुई है, सभी नदी किनारे हुई है।
- नदियों के किनारे बड़े- बड़े महानगर बसे हुए है।
हमें आशा है आप सभी लोगों को River in Hindi पर लिखा यह छोटा सा लेख पसंद आया होगा । आप इस लेख को 10 Lines about River in Hindi के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं।
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FAQ on River in Hindi
Question- नदियाँ मीठे जल का मुख्य श्रोत है। कैसे? Ans-हमारी धरती का 75 % भाग खारे जल से भरा है,जो हमारे किसी काम का नहीं। केवल 3% ही मीठा जल पाया जाता है ,जिसका हम प्रयोग करते है। ऊंचे पर्वत श्रृंखला पर जमे हिम से पिघलकर नदियाँ बनती है। नदियाँ हमें पीने का जल से लेकर रोज़मर्रा की सभी ज़रूरतों को पूराकरतीहै। इसलिए नदियाँ ही मीठे पानी का मुख्य श्रोत है।
Question- नदियों का विलय कहाँ होता है? Ans-पर्वतो से निकल नदियाँ मैदानों,पठारों और समतल भूमि से निकलती है। जहाँ भी इसे ढलान मिलता है,ये बहती चली जाती है। नदियाँ केवल पानी ही नहीं धोती, बल्कि छोटे -छोटे पत्थरो के टुकड़े भी धोती है। अपनी लम्बी यात्रा पूरी होने के बाद ये सीधे समुद्र में पहुँचती है।
Question- नदियों की उपयोगिता के बारे में पाँच पंक्तियाँ लिखे। नदियों की उपयोगिता निम्नलिखित है – 1) नदियाँ मीठे पानी का मुख्य श्रोत है। 2)विश्व की जनसँख्या को नदियाँ ही पोषित करती है। 3)नदियों में मीठे जल की मछलियों का वास होता है। इन मछलियों को खाना लाभदायक है। 4)नदियों में कई प्रकार की खेल प्रतियोगताओं का आयोजन किया जाता है। 5)नदियाँ भूमि की नमी को बरक़रार रखती है।
Question- दुनिया की सबसे बड़ी नदी कौन सी है? Ans- दुनिया की सबसे बड़ी नदी अफ्रीका की नील नदी है,जो की विक्टोरिया झील से निकलकर भूमध्य सागर में विलय हो जाती है। इसकी लम्बाई 6650 किलोमीटर है।
Question- गंगा को हिन्दुओं का पवित्र नदी क्यों माना जाता है? Ans- गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है तथा अलग अलग स्थानों में भिन्न -भिन्न नामो से जानी जाती है। ये हिमालय के गंगोत्री से निकलकर हरिद्वार, इलाहबाद, पटना, प्रयागराज, कानपूर, वाराणसी तथा अंत में पश्चिम बंगाल से होते हुए बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। ऐसा माना जाता है की भगीरथ के अथक प्रयास से ये धरती पर आयी। इसकी लम्बाई 2510 किलोमीटर है। हिन्दुओं के हर पूजन में गंगा जल का प्रयोग होता है। कई जगह तो इसकी आरती भी की जाती है। इस जल की विशेषता यह है की इसमें कभी कीड़े नहीं लगते।
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नदी की आत्मकथा पर निबंध-Essay On River Biography In Hindi
नदी की आत्मकथा पर निबंध (essay on river biography in hindi) :.
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भूमिका : नदी प्रकृति के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसकी गति के आधार पर इसके बहुत नाम जैसे – नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी, क्षिप्रा आदि होते हैं। जब मैं सरक-सरक कर चलती थी तब सब मुझे सरिता कहते थे। जब मैं सतत प्रवाहमयी हो गई तो मुझे प्रवाहिनी कहने लगे।
जब मैं दो तटों के बीच बह रही थी तो तटिनी कहने लगे और जब मैं तेज गति से बहने लगी तो लोग मुझे क्षिप्रा कहने लगे।साधारण रूप से तो मैं नदी या नहर ही हूँ। लोग चाहे मुझे किसी भी नाम से बुलाएँ लेकिन मेरा हमेशा एक ही काम होता है दूसरों के काम आना। मैं प्राणियों की प्यास बुझाती हूँ और उन्हें जीवन रूपी वरदान देती हूँ।
नदी का जन्म : मैं एक नदी हूँ और मेरा जन्म पर्वतमालाओं की गोद से हुआ है। मैं बचपन से ही बहुत चंचल थी। मैंने केवल आगे बढना सीखा है रुकना नहीं। मैं एक स्थान पर बैठने की तो दूर की बात है मुझे एक पल रुकना भी नहीं आता है। मेरा काम धीरे-धीरे या फिर तेज चलना है लेकिन मै निरंतर चलती ही रहती हूँ।
मैं केवल कर्म में विश्वास रखती हूँ लेकिन फल की इच्छा कभी नहीं करती हूँ। मैं अपने इस जीवन से बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं हर एक प्राणी के काम आती हूँ, लोग मेरी पूजा करते हैं, मुझे माँ कहते हैं, मेरा सम्मान करते हैं। मेरे बहुत से नाम रखे गये हैं जैसे – गंगा, जमुना, सरस्वती, यमुना, ब्रह्मपुत्र, त्रिवेणी। ये सारी नदियाँ हिंदू धर्म में पूजी जाती हैं।
नदी का घर त्यागना : मेरे लिए पर्वतमालाएं ही मेरा घर थी लेकिन मैं वहाँ पर सदा के लिए नहीं रह सकती हूँ। जिस तरह से एक लडकी हमेशा के लिए अपने माता-पिता के घर पर नहीं रह सकती उसे एक-न-एक दिन माता-पिता का घर छोड़ना पड़ता है उसी तरह से मैं इस सच्चाई को जानती थी और इसी वह से मैंने अपने माँ-बाप का घर छोड़ दिया।
मैंने माता-पिता का घर छोड़ने के बाद आगे बढने का फैसला किया। जब मैंने अपने पिता का घर छोड़ा तो सभी ने मेरा पूरा साथ दिया मैं पत्थरों को तोडती और धकेलती हुई आगे बढती ही चली गई। मुझसे आकर्षित होकर पेड़ पत्ते भी मेरे सौन्दर्य का बखान करते रहते थे और मेरी तरफ आकर्षित होते थे।
जो लोग पर्वतीय देश के होते हैं उनकी सरलता और निश्चलता ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मैं भी उन्हीं की तरह सरल और निश्चल बनी रहना चाहती हूँ। मेरे रास्ते में बड़े-बड़े पत्थरों और चट्टानों ने मुझे रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन वो अपने इरादे में सफल नहीं हो पाए।
मुझे रोकना उनके लिए बिलकुल असंभव हो गया और मैं उन्हें चीरती हुई आगे बढती चली गई। जब भी मैं तेजी से आगे बढने की कोशिश करती थी तो मेरे रास्ते में वनस्पति और पेड़-पौधे भी आते थे ताकि वो मुझे रोक सकें लेकिन मैं अपनी पूरी शक्ति को संचारित कर लेती थी जिससे मैं उन्हें पार करके आगे बढ़ सकूं।
नदी का मैदानी भाग में प्रवेश : शुरू में मैं बर्फानी शिलाओं की गोद में बेजान, निर्जीव और चुपचाप पड़ी रहती थी। मुझे मैदानी इलाके तक पहुंचने के लिए पहाड़ और जंगल पार करने पड़े थे। जब मैं पहाड़ों को छोडकर मैदानी भाग में आई तो मुझे अपने बचपन की याद आने लगी।
मैं बचपन में पहाड़ी प्रदेशों में घुटनों के बल सरक-सरक कर आगे बढती थी और अब मैदानी भाग में आकर सरपट से भाग रही हूँ। मैंने बहुत से नगरों को खुशी और हरियाली दी है। जहाँ-जहाँ से होकर मैं गुजरती गई वहाँ पर तट बना दिए गये। तटों के आस-पास जो मैदानी इलाके थे वहाँ पर छोटी-छोटी बस्तियां स्थापित होती चली गयीं।
बस्तियों से गाँव बनते चले गये। मेरे पानी की सहायता से लोग खेती करने लगे। जिन दिनों वर्षा होती है उन दिनों मेरा रूप बहुत विकराल हो जाता है। जिसकी वजह से मैं अपने मार्ग को छोडकर मैदानी क्षेत्र में प्रवेश कर जाती हूँ।
नदी खुशहाली का कारण : सिर्फ मैं ही समाज और देश की खुशहाली के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करती आ रही हूँ।मुझ पर बांध बनाकर नहरे निकली गयीं। नहरों से मेरा निश्चल जल दूर-दूर तक ले जाया गया। मेरे इस निश्चल जल को खेतों की सिचाई, घरेलू काम करने, पीने के लिए और कारखानों में प्रयोग किया गया।
मेरे इस निश्चल जल से प्रचंड बिजली को बनाया गया। इस बिजली को देश के कोने-कोने में रोशनी करने, रेडियो, दूरदर्शन चलाने में प्रयोग किया गया। मेरा रोज का काम होता है कि मैं जहाँ भी जाती हूँ वहाँ के पशु-पक्षी, मनुष्य, खेत-खलियानों और धरती की प्यार रूपी प्यास को बुझाती हूँ और उनके ताप को कम करके उन्हें हर-भरा बना देती हूँ।
इन्हीं के कारण नदी की सरलता और सार्थकता सिद्ध होती है। लोग मेरे जल से अपनी प्यास बुझाते हैं और अपने शरीर को शीतल करने के लिए भी मेरे जल का प्रयोग करते हैं। मेरे जल के प्रयोग से किसान अपनी आजीविका चलते हैं।
नदी का शून्य घमंड : नदी हमें अपना इतना सब कुछ देती है फिर भी उसमे शून्य के बराबर भी घमंड नहीं होता है। नदी कहती है कि मैं अपने प्राणों की एक बूंद भी समाज के प्राणियों के हित के लिए अर्पित कर देती हूँ। मैं उन पर अपना सब कुछ लुटा देती हूँ इसका मुझे बहुत संतोष है।
मुझे इस बात से बहुत ही प्रसन्नता होती है कि मेरा एक-एक अंग समाज के कल्याण में लगा है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ ही मेरे इस जीवन का मूल मंत्र है। मैं सदैव इसी भावना को अपने ह्रदय में लिए यात्रा पर आगे बढती रहती हूँ। दुनिया का हर एक जीव मेरे ऊपर निर्भर होता है लेकिन मैं हमेशा बहती रहती है।
जब बरसात होती है तो मेरे विशाल रूप की वजह से लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पर जाना पड़ता है और जो पुल मेरे ऊपर बने होते हैं वे भी बरसात की वजह से भर जाते हैं जिससे लोग उसका प्रयोग नहीं कर पाते हैं। मेरे ऊपर बने हुए पुलों से तरह-तरह के लोग निकलते हैं जिनमें से कुछ अच्छे लोग होते हैं जो मुझे प्रणाम करते हैं ऐसे लोगों को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है।
मेरे पुल पर कुछ लोग ऐसे भी आते हैं जो हानिकारक पदार्थों को पुल से मेरे ऊपर गेर देते हैं जिसकी वजह से मेरा जल अशुद्ध हो जाता है। इतना होने के बाद भी मैं हमेशा बहती रहती हूँ और अपने पानी को साफ करती चली जाती हूँ। कोई मेरे साथ कैसा भी व्यवहार करे लेकिन में पलटकर कुछ नहीं कहती हूँ। मैं चुपचाप लोगों की बुराईयों और अच्छाईयों को सहती ही रहती हूँ।
मेरे जल को भगवान की पूजा करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। मैं खुद को बहुत ही खुशकिस्मत समझती हूँ क्योंकि मेरा जल भगवान को अर्पित किया जाता है। मेरे जल का प्रयोग करने से अशुद्ध वस्तु को शुद्ध किया जाता है। मेरा हर प्राणी के जीवन में इतना महत्व है फिर भी मेरे अंदर बिल्कुल भी घमंड नहीं है।
उपसंहार : नदी का कहना है कि मेरा लक्ष्य तो समुद्र नदी की प्राप्ति है। इस बात को मैं कभी भी नहीं भूल पायी हूँ। जब मेरे ह्रदय में समुद्र के मिलन की भावना जागृत हुई तो मेरी चाल में और भी तेजी आ गई। जब मैंने समुद्र के दर्शन कर लिए तो मेरा मन प्रसन्नता से भर गया। मैं अब समुद्र में समाकर उसी का एक रूप बन गई हूँ।
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नदी के महत्व पर निबंध
Essay On Importance Of River In Hindi: नमस्कार दोस्तों। आज हम आप सभी लोगों को अपने इस महत्वपूर्ण निबंध के माध्यम से भारत में देवी का दर्जा दी जाने वाली नदियों के महत्व पर निबंध बताने वाले हैं। दोस्तों नदिया हमारे भारत में प्राचीन समय से ही अहम भूमिका निभाते हुए आई है और इसका काफी महत्व भी माना जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दे तो भारत के नदियों के किनारे पर ही प्राचीन भारत के सभ्यताओं का विकास हुआ है और हड़प्पा सभ्यता के रूप में जानी जाने वाली प्राचीन और ऐतिहासिक भारतीय सभ्यता सिंधु नदी द्वारा बनाई गई है।
![if i am a river essay in hindi language](https://thesimplehelp.com/wp-content/uploads/2022/02/Essay-On-Importance-Of-River-In-Hindi-.jpg)
हमारे भारत में मुख्य रूप से जानी जाने वाली नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती और सिंधु है। आज के इस निबंध में हम आप सभी लोगों को नदियों के महत्व के विषय में बताने वाले हैं। आप सभी लोगों को यहां पर नदियों के महत्व पर निबंध 250 शब्द और 850 शब्द में जानने को मिलेगा, तो चलिए शुरू करते हैं।
Read Also: हिंदी के महत्वपूर्ण निबंध
नदी के महत्व पर निबंध | Essay On Importance Of River In Hindi
नदी के महत्व पर निबंध (250 शब्द).
भारत में और भारत के ऐतिहासिक कहानियों में गंगा नदी का नाम सर्वोपरि है और भारत में इसके साथ-साथ बहुत सी नदियां भी हैं, जिनका खुद का कुछ ना कुछ महत्व जरूर है। दोस्तों शुरुआती समय में भारत के सभी लोग अपने जीवन को पवित्र करने के लिए नदियों में स्नान करते हैं। नदियों को बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली और महत्वपूर्ण माना जाता है। नदियों के किनारे ही भारत में बहुत से तीर्थ स्थल भी बनाए गए हैं और इसमें से सबसे ज्यादा तीर्थ स्थल माता गंगा के नदी के किनारे बनाए गए हैं।
नदियां हमारे देश में आर्थिक वैज्ञानिक सामाजिक और अन्य कई रूपों में काफी ज्यादा सहायक सिद्ध हुई है और नदियां हमें जल्द प्रदान करने के साथ-साथ शुद्ध वातावरण भी प्रदान करती हैं और इतना ही नहीं इसके साथ साथ नदियों से ज्यादा से ज्यादा किसान अपने खेतों की सिंचाई भी करते हैं।
नदियां लोगों को रोजगार भी प्रदान करती हैं जैसे कि मछली पालन का रोजगार और नौका विहार का रोजगार इत्यादि। वर्तमान समय में नदियां काफी ज्यादा दूषित हो रही थी, इसीलिए भारत सरकार के द्वारा नदियों को शुद्ध कराने के लिए बहुत से आंदोलन और योजनाएं भी चलाई गई हैं।
दोस्तों भारत में नदियों को देवी रूप माना जाता है और इसी कारण से इन्हें माता कह कर पूजा भी जाता है। भारत में नदियों का महत्व बहुत ही बड़ा है और सबसे बड़ा महत्व धार्मिक इतिहास को रोमांचक बनाने में रहा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भारत को एक तरह से नदियों का देश नाम से भी पुकारा जाता है।
भारत की हमेशा से यही मान्यता रही है,कि पवित्र नदियों में स्नान करने से लोगों के पाप धुल जाते हैं और वे लोग अपने जीवन की नई शुरुआत भी कर सकते हैं। भारत में पुराने समय के बहुत से विषयों ने इन्हीं पवित्र नदियों के किनारे पर बैठकर अपने ज्ञान की प्राप्ति की और लोगों को ज्ञान की प्राप्ति भी करवाई।
नदी के महत्व पर निबंध (850 शब्द)
नदियां हमारे भारत की प्राचीन और अनमोल निशानी रही हैं। हमारे भारत देश को एक अन्य नाम नदियों का देश से भी विदेशों में जाना जाता है। भारत में अन्य देशों के मुकाबले बहुत सी नदियां पाई जाती हैं, जिनके अपने अपने कुछ पौराणिक मान्यताएं भी हैं।
भारत की इन सभी नदियों को शुद्ध और बहुत ही ज्यादा पवित्र माना जाता है। हमारे भारतवर्ष के इन सभी नदियों में से सबसे ज्यादा पवित्र और शुद्ध माता गंगा को माना जाता है और माता गंगा के नदी का जल कई बार औषधियों को बनाने और चर्म रोग दूर करने के लिए भी किया जाता है। वैज्ञानिकों ने अब तक यह नहीं पता लगा पाया है, कि आखिर गंगा के जल में क्या है? किससे औषधियां भी बनाई जा रही हैं और लोगों के चर्म रोग भी दूर हो रहे हैं।
हालांकि हमारे भारत में केवल नदियां ही नहीं बल्कि अन्य भी बहुत सारी चीजें हैं, जिनका अपना ही एक रहस्य है और वैज्ञानिक अब तक इसे सुलझा नहीं पाए हैं। नदियों को लेकर वैज्ञानिकों के द्वारा अब तक रिसर्च जारी है और किसी विशेष जानकारी को वैज्ञानिकों के द्वारा इकट्ठा नहीं किया जा सका है। नदिया पापनाशिनी और आप धुलने वाली मानी जाती हैं।
भारत की सबसे लंबी नदी
हमारे भारत की सबसे लंबी नदी गंगा है, जिसकी लंबाई 2510 किलोमीटर है। गंगा भारत की सबसे लंबी नदी होने के साथ-साथ सबसे ज्यादा पवित्र, शुद्ध और पावनी नदी मानी जाती है। गंगा नदी पूरे भारत में फैली हुई है। गंगा नदी को न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी जाना जाता है और विदेशों से भी लोग गंगा नदी के दर्शन के लिए आए दिन आते रहते हैं।
भारत की प्रसिद्ध एवं पवित्र नदियां
दोस्तों जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं, हमारे भारत में हर छोटी से बड़ी नदियां एक दूसरे से जाकर मिलती है और इसके बाद इनके मिलन स्थान को संगम कहा जाता है और यह सभी नदियां एक दूसरे से मिलकर अंत में समुंद्र से जाकर मिल जाती हैं, जिससे कि सभी नदियों का मेल एक विशाल जल भंडार का निर्माण करती है। दोस्तों हमारे भारत में बहुत सी नदियां हैं और इन नदियों को बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध और पवित्र माना जाता है। भारत की यह सभी प्रसिद्ध एवं पवित्र नदियां निम्नलिखित है;
- ब्रह्मपुत्र
नदियों का धार्मिक महत्व और रहस्य की खोज
भारत की हमेशा से यही मान्यता रही है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से लोगों के पाप धुल जाते हैं और वे लोग अपने जीवन की नई शुरुआत भी कर सकते हैं। भारत में पुराने समय के बहुत से विषयों ने इन्हीं पवित्र नदियों के किनारे पर बैठकर अपने ज्ञान की प्राप्ति की और लोगों को ज्ञान की प्राप्ति भी करवाई।
नदियों से होने वाले नुकसान
दोस्तों जिस प्रकार हमारे भारत में नदियों का काफी महत्व है, उसी प्रकार नदियां कुछ तरीके से हमारे लिए नुकसानदायक भी सिद्ध हो रही है, परंतु यह नुकसान सिर्फ और सिर्फ मनुष्य के द्वारा प्रकृति के साथ किए गए खिलवाड़ के साथ ही होता है। तो यह जानते हैं, कि नदियों के द्वारा क्या-क्या नुकसान होते हैं;
- नदियों का संतुलन बिगड़ने के बाद यह अपने रौद्र रूप को धारण कर लेती हैं और एक बार यदि यह रूद्र रूप धारण कर लेती हैं तो तबाही का कारण बन जाती है।
- प्रकृति के साथ छेड़खानी करने से आए दिन बाढ़ आने की समस्या बनी रहती है और बाढ़ के साथ-साथ सुनामी, भूस्खलन इत्यादि जैसी समस्याएं भी सामने आ जाती हैं।
- नदियों का नुकसान ना केवल मनुष्य को बल्कि पशु पक्षियों को भी काफी पड़ता है, नदियों में मनुष्य के द्वारा जो भी कल कारखानों से निकलने वाला कचरा बाहर जाता है, उसके द्वारा नदियां प्रदूषित हो जाती हैं और इस कारण से अनेकों रूप रोग उत्पन्न होते हैं, जिससे कि जानवरों को भी काफी नुकसान होता है और यह बहुत ही भयंकर माहौल बना लेती हैं।
- अब तक नदियों के द्वारा हुई सबसे बड़ी हानि के रूप में केदारनाथ और बद्रीनाथ का उदाहरण लिया जाता है जहां पर हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी और बहुत ही धनधान्य की हानि भी हुई थी।
हमारे इस लेख के माध्यम से हमने आपको नदी के महत्व के विषय में जानकारी बताई है और इन से होने वाले नुकसान और पर भी चर्चा की है। दोस्तों यदि प्रकृति के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती है, तो यह हमें किसी भी प्रकार से कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और यदि ठीक इसी के विपरीत प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जाती है, तो इसका परिणाम हमें बहुत ही बुरा देखने को मिलता है और इसी की वजह से अक्सर सुनामी, बाढ़ और भूस्खलन आते रहते हैं।
हम आप सभी लोगों से उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह नदी के महत्व पर निबंध ( Essay On Importance Of River In Hindi) बहुत ही ज्यादा पसंद आया होगा और आपको कुछ आवश्यक जानकारी भी प्राप्त हुई होगी।
यदि आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह महत्वपूर्ण निबंध पसंद आया हो, तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना बिलकुल भी ना भूलें और यदि आपके मन में इस लेख को लेकर किसी प्रकार का कोई सवाल या फिर सुझाव है तो हमें कमेंट करके जरुर बताएं।
- यदि हिमालय नहीं होता तो क्या होता पर निबंध
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नदी की आत्मकथा पर निबंध (Autobiography Of River Essay In Hindi)
![if i am a river essay in hindi language नदी की आत्मकथा पर निबंध (Autobiography Of River Essay In Hindi)](https://hindiarticles.net/wp-content/uploads/2022/12/नदी-की-आत्मकथा-पर-निबंध-Autobiography-Of-River-Essay-In-Hindi.jpg)
आज हम नदी की आत्मकथा पर निबंध (Essay On Autobiography Of River In Hindi) लिखेंगे। नदी की आत्मकथा पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।
नदी की आत्मकथा पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Autobiography Of River In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कई विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।
मैं एक नदी हूँ और आज इस आत्मकथा के माध्यम से अपने भावनाओ को व्यक्त करने जा रही हूँ। मुझे लोगो ने कई तरह के नाम दिए है। जैसे सरिता, तटिनी, प्रवाहिनी इत्यादि। मैं स्वतंत्र रूप से बिना रोक टोक बहती रहती हूँ। मैं कभी रूकती नहीं हूँ, बस बहती रहती हूँ।
मैं कई बाधाओं से गुजर कर बहती हूँ। मेरे राह में बहुत सारे रुकावटें आती है। मेरे राह में जो भी पत्थर और मुश्किलें आती है, मैं उन्हें पार करके निकल जाती हूँ। मैं कभी तेज़ बहती हूँ और कभी थोड़ा धीरे। मैं जगह के अनुसार चौड़ी बहती हूँ। मैं हर मुसीबत को पार करके अपनी राह तय कर लेती हूँ।
भारत में गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, ताप्ती, रावी, सतलुज, ब्रह्मपुत्री इत्यादि नदियाँ बहती है। मेरे कारण पौधे और पेड़ जीवित है। मेरे पानी द्वारा खेतो की सिंचाई होती है। किसान और सामान्य लोग मेरे पानी के बिना जीवित नहीं रह सकते है।
मेरे ही कारण सभी लोगो के घरो में पानी आता है। जल मनुष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जल ना हो तो जीव जंतु समेत पूरी मानव जाति ही समाप्त हो जायेगी। मेरे से मनुष्य को जल प्राप्त होता है, जिसका उपयोग वह अपने दैनिक कार्यो में करता है। मनुष्य की प्यास मेरे जल से बुझती है।
खेतो की सिंचाई
मेरे पानी से किसान अपने फसलों की सिंचाई करता है। मनुष्य अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग करता है। इसलिए प्राकृतिक आपदाओं के कारण हर जगह नदियों का जल मनुष्यो को नसीब नहीं होता है। कई जगह नदियों का जल गर्मियों में सूख जाता है। जिसके कारण मनुष्य पानी की एक बूँद के लिए तरस जाता है।
मैं पर्वतो की गोद से निकलकर और कई चट्टानों से होकर बहती हूँ। मैं जल कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हूँ। मैं पहाड़ो से होकर टेढ़े मेढ़े रास्तो से गुजरकर अंत में समंदर में जाकर मिलती हूँ। मुझसे से छोटे छोटे नहरे निकलती है। मैं बंजर मिटटी को उपजाऊ बना सकती हूँ। मेरे इन्ही गुणों के कारण मुझे कई सारे नामो से पुकारा जाता है।
बिजली निर्माण
मेरे द्वारा बिजली का निर्माण होता है। बिजली के बिना मनुष्य का हर काम असंभव है। मनुष्य के घर और दफ्तर के तकरीबन हर कार्य में बिजली की आवश्यकता होती है। बिजली उत्पादन मेरे बैगर नहीं हो सकती है।
बिजली से मशीनों के अनगिनत काम होते है। यदि मेरे द्वारा बिजली उत्पन्न ना होती तो वह मनोरंजन भरे कार्यक्रम टेलीविज़न औऱ रेडियो पर देख नहीं पाते। बिजली का होना रात को सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है। रात के अधिकतर कार्य मनुष्य बिजली के मौजूदगी में करता है।
दैनिक कार्य
मनुष्य मेरे पानी का इस्तेमाल करके भोजन पकाते है। मेरे पानी का उपयोग करके लोग अपने हाथ धोते है, नहाते है और खाना भी बनाते है। मनुष्य अपने सभी कार्य मेरे जल द्वारा निपटाते है। आज लोगो को यदि घर पर पानी की सुविधा मिल रही है, तो इसकी वजह मैं ही हूँ।
पर्यावरण का संतुलन
मैं प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने में सहायता करती हूँ। मेरे वजह से ही किसानो के खेत हरे भरे रहते है। मैं मिटटी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखती हु और मिटटी को नमी प्रदान करती हूँ। मैंने अपने जल द्वारा धरती की सिंचाई की है।
धार्मिक महत्व
ऋषि मुनियों ने मेरे जन कल्याण की महिमा को जानकर मेरी अर्चना करते थे। मेरे कई तट पर लोग तीर्थ यात्रा करने आते है। इसी कारण कई लोग दूर दूर से मेरे दर्शन के लिए आते है। यहां बड़े बड़े मेले और त्यौहार भी मनाये जाते है।
कुम्भ के मेले के विषय में तो सभी जानते है। लोग अपने पापो का प्रायस्चित करने मेरे पास आते है। हज़ारो लोग मेरी पूजा करते है। मेरे पानी मैं डूबकी लगाकर उन्हें संतुष्टि मिलती है। मुझे देवी के रूप में पूजा जाता है। लोग पूरे मन औऱ श्रद्धा से मेरी पूजा करते है। मुझे अत्यंत ख़ुशी होती है।
विभिन्न त्योहारों में मेरे दर्शन
मेरे इस धार्मिक महत्व की वजह से लोग उत्सवों में मेरे दर्शन के लिए आते है। अमावस्या, पूर्णमासी, दशहरा इत्यादि शुभ मौके पर लोग मेरे दर्शन के लिए ज़रूर आते है। मेरे कल कल बह रहे जल और शान्ति का आंनद और अनुभव सभी करते है। मैं अपने सुंदरता से सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेती हूँ।
कोई रोक नहीं सकता
मेरा कोई अंत नहीं है। कोई सरहद नहीं है। मुझे कोई चाहकर भी रोक नहीं सकता। जब चन्द्रमा की रोशनी मेरे ऊपर पड़ती है, तो मेरी सुंदरता में चार चाँद लग जाते है।
यातायात के साधन मेरे बैगर ना चलते
मेरे पानी में स्टीमर, नाव औऱ बड़े जहाज चलाये जाते है। सभी लोग एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने के लिए जल मार्ग का उपयोग करते है। बड़े बड़े व्यवसायिक बस्तियां नदी के तटों पर बस गयी है।
मनुष्य प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहा है। जिसके कारण हर देश औऱ राज्यों के कई हिस्सों में बाढ़ जैसी स्थिति हर वर्ष बन रही है। ऐसा एक भी वर्ष नहीं है जब बाढ़ ना आती हो। कभी कभी मनुष्य इतना ज़्यादा प्रकृति पर दबाव बनाता है कि मैं रौद्र रूप धारण कर लेती हूँ औऱ किनारो को तोड़कर गाँवों औऱ तटीय इलाको को डूबा देती हूँ।
मेरे कारण बहुत लोगो के घर उजड़ जाते है। उसके बाद मैं शांत होकर वापस आ जाती हूँ औऱ मन ही मन पछताती हूँ।
मेरे अंदर बहुत से प्राणी है जीवित
मेरे अंदर बहुत से प्राणी जीवित है। वह पानी के बिना ज़िंदा नहीं रह सकते है। जब प्रदूषण बढ़ता है तब उनका नदी के जल में जीना मुश्किल हो जाता है।
प्रदूषित होना
मनुष्य औद्योगीकरण औऱ शहरीकरण के पीछे इतना अँधा हो गया है कि वह प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचा रहा है। लोग जहां मेरी पूजा करते है वहाँ बहुत लोग ऐसे भी है जो मेरे जल में कूड़ा कचरा फेंक देते है।
आये दिन मेरे जैसी कई नदियाँ प्रदूषण का शिकार हो रही है। बढ़ते प्रदूषण के कारण मेरे जैसी कई नदियाँ बर्बाद हो रही है। मेरे जल में कई प्राणी निवास करते है। अत्याधिक जल प्रदूषित होने के कारण उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है औऱ कुछ जल जीव मर जाते है। मुझे बहुत तकलीफ होती है। मैं चाहकर भी कुछ कर नहीं पाती।
आज ऐसे हालात पैदा हो गए है कि नदियों का संरक्षण महत्वपूर्ण हो गया है। क्यों कि आने वाले पीढ़ी को शुद्ध औऱ साफ़ जल नसीब नहीं होगा। प्लास्टिक, घर का कचरा, फैक्टरियों से निकलने वाला कचरा नदियों में बह रहा है।
खुशियों के पल
मुझे बहुत प्रसन्नता होती है जब कोई मुसाफिर लम्बा सफर तय करके मेरे पानी से प्यास बुझाता है। बच्चे भी कभी कभी नन्हे नन्हे हाथों से मेरे पानी से खेलते है और अपने हाथ और मुंह धोते है। मुझे बेहद ख़ुशी होती है। त्योहारों में मेरे तट के सामने सभी लोग ख़ुशी से अपना त्यौहार मनाते है।
मुश्किलों का सामना
जैसे जीवन में मनुष्य विभिन्न मुश्किलों का सामना करके आगे बढ़ता है। उसी तरह मैं भी विभिन्न गलियों और पहाड़ो से निकलकर बहती हूँ। जब मैं हिमालय से निकलती हूँ तब मैं थोड़ी संकरी हो जाती हूँ। जब मैं मैदानी इलाके तक पहुँचती हूँ तो बहुत चौड़ी हो जाती हूँ।
ना कोई अपेक्षा और ना कोई सीमित जीवन अवधि
मनुष्य की एक निश्चित जीवन अवधि होती है। मनुष्य की जब मौत होती है, तो उसकी अस्थियां नदियों में विसर्जित की जाती है। मैं बहुत उदास हो जाती हूँ। मनुष्य की इच्छाएं और सपने पानी में बहते है। लेकिन मेरी कभी मौत नहीं हो सकती। मैं हमेशा रहूंगी और मेरी कोई ख़ास अपेक्षाएं नहीं है।
हम प्रकृति के हिस्से है। प्रकृति है तो हम भी है। ऐसा कोई व्यक्ति या माध्यम नहीं जो मेरे प्राण ले सके। चाहे कितने भी अड़चने आये मैं निरंतर बहती रहूंगी। इसका अर्थ यह है कभी टूटना नहीं है कभी बिखरना नहीं है। परिस्थिति के अनुसार अपने आपको ढालना ज़रूरी होता है। जीवन में कभी रुकना नहीं है बस जीवन की गति को पकड़कर आगे बढ़ना है।
जब मनुष्य के साथ जीवन में अच्छा होता है, तो वह बेहद खुश रहता है और जब कठिन समय आता है तो कुछ मनुष्य कठिन परिस्थितियों से घबरा जाते है। परिस्थितियों से ना घबराकर उनका सामना करना चाहिए। यह जीवन का फलसफा है। अगर वह मेरे जैसा सोचेगा तो जीवन में कोई तनाव नहीं होगा।
जहां मुझे देवी की तरह पूजा जाता है, वहाँ मुझे गन्दा किया जाता है। यह देखकर और सहन करके मुझे बहुत दुःख होता है। अब मनुष्य पहले से अधिक सचेत हुए है और नदियों को संरक्षित कर रहे है।
मगर यह काफी नहीं है। मैं यही चाहती हूँ कि लोग जागरूक हो जाए और नदियों को जानबूझकर प्रदूषित ना करे। मैं हमेशा इसी प्रकार बहती रहूंगी और जन कल्याण करुँगी। यदि मनुष्य पर्यावरण को इसी प्रकार नुकसान पहुंचाता रहा तो वह दिन दूर नहीं कि मेरा अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।
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तो यह था नदी की आत्मकथा पर निबंध (Nadi Ki Atmakatha Essay In Hindi) , आशा करता हूं कि नदी की आत्मकथा पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Autobiography Of River) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।
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नदी पर निबंध – River Essay in Hindi
मैं नदी हूँ। सर सर का स्वर करते हुये चलती हूँ इसलिये लोग मुझे सरिता भी कहते हैं। तेज प्रवाह में होने के कारण प्रवाहिनी भी कहलाती हूँ। मेरे छोटे रूप को नहर कहते हैं।
‘जल’ मेरा जीवन, मेरी पहचान है। मेरे दोनों किनारे मेरा ही अंग हैं। मेरी धड़कनें हैं उठती गिरती लहरें। मेरा काम, धर्म सब है – निरन्तर बहना, जो सांसों की तरह सदैव चलता है।
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बड़ी बड़ी सभ्यताओं और संस्कृतियों ने मेरे तट पर ही जन्म लिया। बड़े बड़े नगरों, उद्योगों को मेरे तट पर बसाया गया है। गया, प्रयाग, इलाहाबाद, हरिद्वार तो मेरे कारण ही तीर्थस्थल बन गये हैं, जहाँ त्योहार के दिनों में लोग स्नान करने आते हैं।
मेरे पानी से कृषक खेत सींचते हैं, धरती हरी भरी रहती है। पीने का पानी भी मैं हूँ। उद्योगधन्धों में भी मेरा प्रयोग होता है। बिजली मेरे पानी से बनती है। मुझ पर बाँध और पुल बना कर इंसान ने मुझे जीत लिया है। नौका और जहाज मुझे चीरते हुए आगे निकल जाते हैं। अब तो बच्चे ‘रिवर राफिंटग’ करते हैं। मुझमें जाल डाल कर मछुआरे मछलियाँ निकालते हैं। मेरे पानी में कई तरक की वनस्पति, मछलियां, मगरमच्छ पलते हैं। किन्तु आजकल शहरों की सारी गन्दगी डाल कर तुम सबने मुझे गंदा कर दिया है। अब सरकार सफाई अभियान चला रही है ताकि मैं निर्मल नदी के रूप में सागर में मिलं अब मैं पुनः स्वच्छ एवं निर्मल हो जाऊँगी।
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गंगा नदी पर निबंध / Essay on River Ganga in Hindi
गंगा नदी पर निबंध / Essay on River Ganga in Hindi!
गंगा भारत की नदी है । यह हिमालय से निकलती है और बंगाल की घाटी में विसर्जित होती है । यह निरंतर प्रवाहमयी नदी है । यह पापियों का उद्धार करने वाली नदी है । भारतीय धर्मग्रंथों में इसे पवित्र नदी माना गया है और इसे माता का दर्जा दिया गया है । गंगा केवल नदी ही नहीं, एक संस्कृति है । गंगा नदी के तट पर अनेक पवित्र तीर्थों का निवास है ।
गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है । गंगा का यह नाम राजा भगीरथ के नाम पर पड़ा । कहा जाता है कि राजा भगीरथ के साठ हजार पुत्र थे । शापवश उनके सभी पुत्र भस्म हो गए थे । तब राजा ने कठोर तपस्या की । इसके फलस्वरूप गंगा शिवजी की जटा से निकलकर देवभूमि भारत पर अवतरित हुई ।
इससे भगीरथ के साठ हजार पुत्रों का उद्धार हुआ । तब से लेकर गंगा अब तक न जाने कितने पापियों का उद्धार कर चुकी है । लोग यहाँ स्नान करने आते हैं । इसमें मृतकों के शव बहाए जाते हैं । इसके तट पर शवदाह के कार्यक्रम होते हैं । गंगा तट पर पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन आदि के कार्यक्रम चलते ही रहते हैं ।
गंगा हिमालय में स्थित गंगोत्री नामक स्थान से निकलती है । हिमालय की बर्फ पिघलकर इसमें आती रहती है । अत: इस नदी में पूरे वर्ष जल रहता है । इस सदानीरा नदी का जल करोड़ों लोगों की प्यास बुझाता है । करोड़ों पशु-पक्षी इसके जल पर निर्भर हैं । लाखों एकड़ जमीन इस जल से सिंचित होती है । गंगा नदी पर फरक्का आदि कई बाँध बनाकर बहुउद्देशीय परियोजना लागू की गई है ।
अपने उद्गम स्थान से चलते हुए गंगा का जल बहुत पवित्र एवं स्वच्छ होता है । हरिद्वार तक इसका जल निर्मल बना रहता है । फिर धीरे- धीरे इसमें शहरों के गंदे नाले का जल और कूड़ा-करकट मिलता जाता है । इसका पवित्र जल मलिन हो जाता है । इसकी मलिनता मानवीय गतिविधियों की उपज है । लोग इसमें गंदा पानी छोड़ते हैं । इसमें सड़ी-गली पूजन सामग्रियाँ डाली जाती हैं । इसमें पशुओं को नहलाया जाता है और मल-मूत्र छोड़ा जाता है । इस तरह गंगा प्रदूषित होती जाती है । वह नदी जो हमारी पहचान है, हमारी प्राचीन सभ्यता की प्रतीक है, वह अपनी अस्मिता खो रही है ।
ADVERTISEMENTS:
गंगा जल में अनेक विशेषताएँ हैं । इसका जल कभी भी खराब नहीं होता है । बोतल में वर्षों तक रखने पर भी इसमें कीटाणु नहीं पनपते । हिन्दू लोग गंगा जल से पूजा-पाठ करते हैं । गंगा तट पर बिखरी चिकनी मिट्टी ‘ मृतिका ‘ से दंतमंजन बनाए जाते हैं । लोग इससे तिलक करते हैं ।
गंगा तट पर अनेक तीर्थ हैं । बनारस, काशी, प्रयाग ( इलाहाबाद). हरिद्वार आदि इनमें प्रमुख हैं । प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है । यहाँ प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ का विशाल मेला लगता है । लोग बड़ी संख्या में यहाँ आकर संगम स्नान करते हैं । बनारस और काशी में तो पूरे वर्ष ही भक्तों का समागम होता है । पवित्र तिथियों पर लोग निकटतम गंगा घाट पर जाकर स्नान करते हैं और पुण्य लाभ अर्जित करते हैं । विभिन्न अवसरों पर यहाँ मेले लगा करते हैं ।
गंगा अपना रूप बदलती रहती है । आरंभ में यह सिकुड़ी सी होती है पर मैदानी भागों में इसका तट चौड़ा हो जाता है । चौड़े तटों के इस पार से उस पार जाने के लिए नौकाएँ एवं स्टीमर चलती हैं । गंगा नदी पर अनेक स्थानों पर लंबे पुल भी बनाए गए हैं । इससे परिवहन सरल हो गया है ।
गंगा नदी अपने तटवर्ती क्षेत्रों की भूमि को उपजाऊ बनाकर चलती है । भूमि को यह सींचती भी है । अत: कृषि की समृद्धि में इसका बहुत योगदान है । जैसे-जैसे गंगा नदी आगे बढ़ती है, उसमें कई नदियों मिलती जाती हैं । इसकी धारा वेगवती होती जाती है । वर्षा ऋतु में तो इसमें कई स्थानों पर बाढ़ आ जाती है । बाढ़ से फसलों और संपत्ति की भारी हानि होती है । अंत में यह बंगाल में घुसती है । यहाँ इसकी धारा सुस्त पड़ जाती है जिससे बेसिन का निर्माण होता है । फिर यह बंगाल की खाड़ी (समुद्र) में समा जाती है । इस प्रकार गंगा नदी की यात्रा समाप्त हो जाती है ।
गंगा नदी का भारतीय संस्कृति में अन्यतम स्थान है । इसलिए इसे राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया गया है । गंगा की सफाई के लिए कुछ कार्ययोजनाएँ भी बनाई गई हैं । लोगों को इसमें सहभागिता करनी चाहिए । गंगा जल को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए उपयुक्त प्रयास करने चाहिए ।
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जल संरक्षण पर निबंध (Save Water Essay in Hindi)
![if i am a river essay in hindi language जल संरक्षण](https://www.hindikiduniya.com/wp-content/uploads/Save-Water.jpg)
भविष्य में जल की कमी की समस्या को सुलझाने के लिये जल संरक्षण ही जल बचाना है। भारत और दुनिया के दूसरे देशों में जल की भारी कमी है जिसकी वजह से आम लोगों को पीने और खाना बनाने के साथ ही रोजमर्रा के कार्यों को पूरा करने के लिये जरूरी पानी के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि दूसरी ओर, पर्याप्त जल के क्षेत्रों में अपने दैनिक जरुरतों से ज्यादा पानी लोग बर्बाद कर रहें हैं। हम सभी को जल के महत्व और भविष्य में जल की कमी से संबंधित समस्याओं को समझना चाहिये। हमें अपने जीवन में उपयोगी जल को बर्बाद और प्रदूषित नहीं करना चाहिये तथा लोगों के बीच जल संरक्षण और बचाने को बढ़ावा देना चाहिये।
जल संरक्षण पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Save Water in Hindi, Jal Sanrakshan par Nibandh Hindi mein)
निबंध 1 (300 शब्द) – जल का संरक्षण.
धरती पर जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये जल का संरक्षण और बचाव बहुत जरूरी होता है क्योंकि बिना जल के जीवन सभव नहीं है। पूरे ब्रह्माण्ड में एक अपवाद के रुप में धरती पर जीवन चक्र को जारी रखने में जल मदद करता है क्योंकि धरती इकलौता अकेला ऐसा ग्रह है जहाँ पानी और जीवन मौजूद है।
जल का संरक्षण
पानी की जरुरत हमारे जीवन भर है इसलिये इसको बचाने के लिये केवल हम ही जिम्मेदार हैं। संयुक्त राष्ट्र के संचालन के अनुसार, ऐसा पाया गया है कि राजस्थान में लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं क्योंकि उन्हें पानी लाने के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है जो उनके पूरे दिन को खराब कर देती है इसलिये उन्हें किसी और काम के लिये समय नहीं मिलता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्डस् ब्यूरो के सर्वेक्षण के अनुसार, ये रिकार्ड किया गया है कि लगभग 16,632 किसान (2,369 महिलाएँ) आत्महत्या के द्वारा अपने जीवन को समाप्त कर चुकें हैं, हालांकि, 14.4% मामले सूखे के कारण घटित हुए हैं। इसलिये हम कह सकते हैं कि भारत और दूसरे विकासशील देशों में अशिक्षा, आत्महत्या, लड़ाई और दूसरे सामाजिक मुद्दों का कारण भी पानी की कमी है। पानी की कमी वाले ऐसे क्षेत्रों में, भविष्य पीढ़ी के बच्चे अपने मूल शिक्षा के अधिकार और खुशी से जीने के अधिकार को प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
भारत के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते, पानी की कमी के सभी समस्याओं के बारे में हमें अपने आपको जागरुक रखना चाहिये जिससे हम सभी प्रतिज्ञा ले और जल संरक्षण के लिये एक-साथ आगे आये। ये सही कहा गया है कि सभी लोगों का छोटा प्रयास एक बड़ा परिणाम दे सकता है जैसे कि बूंद-बूंद करके तालाब, नदी और सागर बन सकता है।
जल संरक्षण के लिये हमें अतिरिक्त प्रयास करने की जरुरत नहीं है, हमें केवल अपने प्रतिदिन की गतिविधियों में कुछ सकारात्मक बदलाव करने की जरुरत है जैसे हर इस्तेमाल के बाद नल को ठीक से बंद करें, फव्वारे या पाईप के बजाय धोने या नहाने के लिये बाल्टी और मग का इस्तेमाल करें। लाखों लोगों का एक छोटा सा प्रयास जल संरक्षण अभियान की ओर एक बड़ा सकारात्मक परिणाम दे सकता है।
निबंध 2 (400 शब्द) – जल को कैसे बचायें
जीवन को यहाँ संतुलित करने के लिये धरती पर विभिन्न माध्यमों के द्वारा जल संरक्षण ही जल बचाना है।
धरती पर सुरक्षित और पीने के पानी के बहुत कम प्रतिशत के आंकलन के द्वारा, जल संरक्षण या जल बचाओ अभियान हम सभी के लिये बहुत जरूरी हो चुका है। औद्योगिक कचरे की वजह से रोजाना पानी के बड़े स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। जल को बचाने में अधिक कार्यक्षमता लाने के लिये सभी औद्योगिक बिल्डिंगें, अपार्टमेंटस्, स्कूल, अस्पतालों आदि में बिल्डरों के द्वारा उचित जल प्रबंधन व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिये। पीने के पानी या साधारण पानी की कमी के द्वारा होने वाली संभावित समस्या के बारे में आम लोगों को जानने के लिये जागरुकता कार्यक्रम चलाया जाना चाहिये। जल की बर्बादी के बारे में लोगों के व्यवहार को मिटाने के लिये इसकी त्वरित जरुरत है।
गाँव के स्तर पर लोगों के द्वारा बरसात के पानी को इकट्ठा करने की शुरुआत करनी चाहिये। उचित रख-रखाव के साथ छोटे या बड़े तालाबों को बनाने के द्वारा बरसात के पानी को बचाया जा सकता है। युवा विद्यार्थियों को अधिक जागरुकता की आवश्यकता है साथ ही इस मुद्दे के समस्या और समाधान पर एकाग्र होना चाहिये। विकासशील विश्व के बहुत से देशों में रहने लोगों को जल की असुरक्षा और कमी प्रभावित कर रही है। आपूर्ति से बढ़कर माँग वाले क्षेत्रों में वैश्विक जनसंख्या के 40% लोग रहते हैं। और आने वाले दशकों में ये परिस्थिति और भी खराब हो सकती है क्योंकि सबकुछ बढ़ेगा जैसे जनसंख्या, कृषि, उद्योग आदि।
जल को कैसे बचायें
रोजाना पानी को कैसे बचा सकते हैं उसके लिये हमने यहाँ कुछ बिन्दु आपके सामने प्रस्तुत किये हैं:
- लोगों को अपने बागान या उद्यान में तभी पानी देना चाहिये जब उन्हें इसकी जरुरत हो।
- पाइप से पानी देने के बजाय फुहारे से देना अधिक बेहतर होगा जो प्रति आपके कई गैलन पानी को बचायेगा।
- पानी को बचाने के लिये सूखा अवरोधी पौधा लगाना अच्छा तरीका है।
- पानी के रिसाव को बचाने के लिये पाइपलाइन और नलों के जोड़ ठीक से लगा होना चाहिये जो प्रतिदिन आपके लगभग 20 गैलन पानी को बचाता है।
- कार को धोने के लिये पाइप की जगह बाल्टी और मग का इस्तेमाल करें जो हर आपके 150 गैलन पानी को बचा सकता है।
- फुहारे के तेज बहाव के लिये अवरोधक लगाएँ जो आपके पानी को बचायेगा।
- पूरी तरह से भरी हुई कपड़े धोने की मशीन और बर्तन धोने की मशीन का प्रयोग करें जो प्रति महीने लगभग 300 से 800 गैलन पानी बचा सकता है।
- प्रति दिन अधिक पानी को बचाने के लिये शौच के समय कम पानी का इस्तेमाल करें।
- हमें फलों और सब्जियों को खुले नल के बजाय भरे हुए पानी के बर्तन में धोना चाहिये।
- बरसात के पानी को जमा करना शौच, उद्यानों को पानी देने आदि के लिये एक अच्छा उपाय है जिससे स्वच्छ जल को पीने और भोजन पकाने के उद्देश्य के लिये बचाया जा सकता है।
निबंध 3 (600 शब्द) – जल बचाव के तरीके
पृथ्वी पूरे ब्रह्माण्ड का एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ पानी और जीवन आज की तारीख तक मौजूद है। इसलिये, हमें अपने जीवन में जल के महत्व को दरकिनार नहीं करना चाहिये और सभी मुमकिन माध्यमों के प्रयोग से जल को बचाने की पूरी कोशिश करनी चाहिये। पृथ्वी लगभग 71% जल से घिरी हुई है हालांकि, पीने के लायक बहुत कम पानी है। पानी को संतुलित करने का प्राकृतिक चक्र स्वत: ही चलता रहता है जैसे वर्षा और वाष्पीकरण। हालांकि, धरती पर समस्या पानी की सुरक्षा और उसे पीने लायक बनाने की है जोकि बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध है। जल संरक्षण लोगों की अच्छी आदत से संभव है।
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हमें जल क्यों बचाना चाहिये
नीचे, हमने कुछ तथ्य दिये हैं जो आपको बतायेगें कि आज हमारे लिये साफ पानी कितना मूल्यवान बन चुका है:
- बहुत सारे लोग जो पानी से होने वाली बीमारियों के कारण मर रहें हैं, 4 मिलियन से ज्यादा हैं।
- साफ पानी की कमी और गंदे पानी की वजह से होने वाली बीमारियों से सबसे ज्यादा विकासशील देश पीड़ित हैं।
- एक दिन के समाचार पत्रों को तैयार करने में लगभग 300 लीटर पानी खर्च हो जाता है, इसलिये खबरों के दूसरे माध्यमों के वितरण को बढ़ावा देना चाहिये।
- पानी से होने वाली बीमारियों के कारण हर 15 सेकेण्ड में एक बच्चा मर जाता है।
- पूरे विश्व में लोगों ने पानी के बॉटल का इस्तेमाल शुरु कर दिया है जिसकी कीमत $60 से $80 बिलियन प्रति साल है।
- भारत, अफ्रीका और एशिया के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को साफ पानी के लिये लंबी दूरी (लगभग 4 कि.मी. से 5कि.मी.) तय करनी पड़ती है।
- भारत में पानी से होने वाली बीमारी के वजह से लोग ज्यादा पीड़ित हैं जिसकी वजह से बड़े स्तर पर भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।
जल बचाव के तरीके
जीवनशैली में बिना किसी बदलाव के पानी बचाने के कुछ बेहतरीन तरीकों को हमने आपसे साझा किये। घर का कोई सदस्य घरेलू कार्यों के लिये रोज लगभग 240 लीटर पानी खर्च करता है। एक चार सदस्यों वाला छोटा मूल परिवार औसतन 960 लीटर प्रतिदिन और 350400 लीटर प्रतिवर्ष खर्च करता है। रोजाना पूरे उपभोग का केवल 3% जल ही पीने और भोजन पकाने के लिये उपयोग होता है बाकी का पानी दूसरे कार्यों जैसे पौधों को पानी देना, नहाना, कपड़े धोना आदि में इस्तेमाल होता है।
जल बचाव के कुछ सामान्य नुस्ख़े:
- सभी को अपनी खुद की जिम्मेदारी को समझना चाहिये और पानी और भोजन पकाने के अलावा पानी के अधिक उपयोग से बचना चाहिये।
- अगर धीरे-धीरे हम सभी लोग गार्डन को पानी देने से, शौच में पानी डालने से, साफ-सफाई आदि के लिये पानी की बचत करने लगेगें, प्रति अधिक पानी का बचत संभव होगी।
- हमें बरसात के पानी को शौच, लाँड्री, पौधौ को पानी आदि के उद्देश्य लिये बचाना चाहिये।
- हमें बरसात के पानी को पीने और भोजन पकाने के लिये एकत्रित करना चाहिये।
- हमें अपने कपड़ों को केवल धोने की मशीन में धोना चाहिये जब उसमें अपनी पूरी क्षमता तक कपड़े हो जाएँ। इस तरीके से, हम 4500लीटर पानी के साथ ही बिजली भी प्रति महीने बचा लेंगे।
- फुहारे से नहाने के बजाय बाल्टी और मग का प्रयोग करें जो प्रति वर्ष 150 से 200लीटर पानी बचायेगा।
- हमें हर इस्तेमाल के बाद अपने नल को ठीक से बंद करना चाहिये जो 200 लीटर पानी हर महीने बचायेगा।
- होली त्योहार के दौरान पानी के अत्यधिक इस्तेमाल को कम करने के लिये सूखी और सुरक्षित को बढ़ावा देना चाहिये।
- जल बर्बादी से हमें खुद को बचाने के लिये अपने जीने के लिये जल की एक-एक बूंद के लिये रोज संघर्ष कर रहे लोगों की खबरों के बारे में हमें जागरुक रहना चाहिये।
- जागरुकता फैलाने के लिये हमें जल संरक्षण से संबंधित कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिये।
- गर्मी के मौसम में कूलर में अधिक पानी बर्बाद न होने दें, केवल जरुरत भर का ही इस्तेमाल करें।
- हमें पाइप के द्वारा लॉन, घर या सड़कों पर पानी डालकर नष्ट नहीं करना चाहिये।
- पौधारोपण को वर्षा ऋतु में लगाने के लिये प्रेरित करें जिससे पौधों को प्राकृतिक रुप से पानी मिलें।
- हमें अपने हाथ, फल, सब्जी आदि को खुले हुए नल के बजाय पानी के बर्तन से धोने की आदत बनानी चाहिये।
- हमें दोपहर के 11 बजे से 4 बजे तक पौधों को पानी देने से बचना चाहिये क्योंकि उस समय उनका वाष्पीकरण हो जाता है। सुबह या शाम के समय पानी देने से पौधे पानी को अच्छे से सोखते हैं।
- हमें पौधरोपण को बढ़ावा देना चाहिये जो सुखा सहनीय हो।
- हमें पारिवारिक सदस्यों, बच्चों, मित्रों, पड़ोसियों और सह-कर्मचारियों को सकारात्मक परिणाम पाने के लिये अपने अंत तक यही प्रक्रिया अपनाने या करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
धरती पर जीवन का सबसे जरूरी स्रोत जल है क्योंकि हमें जीवन के सभी कार्यों को निष्पादित करने के लिये जल की आवश्यकता है जैसे पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़ा धोने, फसल पैदा करने आदि के लिये। बिना इसको प्रदूषित किये भविष्य की पीढ़ी के लिये जल की उचित आपूर्ति के लिये हमें पानी को बचाने की जरुरत है। हमें पानी की बर्बादी को रोकना चाहिये, जल का उपयोग सही ढंग से करें तथा पानी की गुणवत्ता को बनाए रखें।
सम्बंधित जानकारी:
जल बचाओ पर निबंध
जल बचाओ पृथ्वी बचाओ पर निबंध
जल बचाओ जीवन बचाओ पर निबंध
FAQs: Frequently Asked Questions on Save Water (जल संरक्षण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
उत्तर- मासिनराम (मेघालय)
उत्तर- चंडीगढ़
उत्तर- वनों की कटाई पर रोक एवं लोगों के अंदर जागरूकता का आना।
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भारत की प्रमुख नदी प्रणालियां
भारत के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही नदियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिंधु (सिन्धु) घाटी सभ्यता का उदय भी सिंधु (सिन्धु) तथा गंगा (गङ्गा) नदी की घाटियों में ही हुआ था। नदी किनारे व्यापारिक एवं यातायात की सुविधाओं के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे। इसलिए आज भी देश के सभी धार्मिक शहर नदियों के किनारे ही बसे हैं। इसी के साथ नदियां आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या को कृषि एवं पीने के लिए जल उपलब्ध कराती है।
भारत की नदी प्रणालियां सिंचाई, पेयजल, किफायती परिवहन और बिजली उत्पादन के साथ-साथ देश की एक बड़ी आबादी को रोजी-रोटी देने का काम करती हैं। भारत की नदियां UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2023 में भाग लेने वाले उम्मीदवारों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय हैं। इस लेख में हम आपको भारत की नदी प्रणाली के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। इससे आपको यूपीएससी परीक्षा 2023 के साथ-साथ अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में भी मदद मिलेगी।
यहां हम भारतीय नदियों और आईएएस परीक्षा 2023 में उनकी भूमिका पर चर्चा करेंगे। भारत की प्रमुख नदी प्रणालियों के बारे में अंग्रेजी में पढ़ने के लिए The Major Indian River Systems पर क्लिक करें।
आप अपनी IAS परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले UPSC Prelims Syllabus in Hindi को गहराई से समझ लें और उसके अनुसार अपनी तैयारी की योजना बनाएं।
नोट- UPSC 2023 परीक्षा नजदीक आ रही है , इसलिए आप अपनी तैयारी को बढ़ाने के लिए BYJU’S के The Hindu Newspaper के दैनिक वीडियो विश्लेषण का उपयोग करें।
प्रमुख भारतीय नदी प्रणालियों की सूची- नदियां और उनका उद्गम
भारत की अधिकांश नदियां अपना जल बंगाल की खाड़ी में गिराती हैं। कुछ नदियां देश के पश्चिमी भाग से होकर बहती हैं और अरब सागर में मिल जाती हैं। अरावली पर्वतमाला के उत्तरी भाग, लद्दाख के कुछ भाग और थार मरुस्थल के शुष्क क्षेत्रों में अंतर्देशीय जल निकासी है। भारत की सभी प्रमुख नदियां तीन मुख्य जलसंभरों में से एक से निकलती हैं। ये जलसंभर हैं –
- हिमालय और काराकोरम श्रेणी
- छोटा नागपुर पठार और विंध्य और सतपुड़ा रेंज
- पश्चिमी घाट
प्रमुख नदी प्रणाली – सिंधु नदी प्रणाली
- सिंधु मानसरोवर झील के पास तिब्बत में कैलाश श्रेणी के उत्तरी ढलान से निकलती है।
- भारत और पाकिस्तान दोनों में इसकी बड़ी संख्या में सहायक नदियां हैं और स्रोत से कराची के पास बिंदु तक इसकी कुल लंबाई लगभग 3180 किमी है जहां यह अरब सागर में गिरती है। इसकी लगभग 700 किमी लंबाई भारत में स्थित है।
- यह जम्मू और कश्मीर में भारतीय क्षेत्र में एक सुरम्य कण्ठ बनाकर प्रवेश करती है।
- कश्मीर क्षेत्र में, यह कई सहायक नदियों – जस्कर, श्योक, नुब्रा और हुंजा के साथ जुड़ती है।
- यह लेह में लद्दाख रेंज और जास्कर रेंज के बीच बहती है।
- यह अटॉक के पास 5181 मीटर गहरी खाई के माध्यम से हिमालय को पार करती है, जो नंगा पर्वत के उत्तर में स्थित है।
- भारत में सिंधु नदी की प्रमुख सहायक नदियां झेलम, रावी, चिनाब, ब्यास और सतलज हैं।
प्रमुख नदी प्रणाली – ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली
- ब्रह्मपुत्र मानसरोवर झील से निकलती है, जो सिंधु और सतलुज का भी स्रोत है।
- यह 2900 किलोमीटर लंबी है, इसकी लंबाई सिंधु नदी से थोड़ी सी अधिक है।
- इसका अधिकांश मार्ग भारत के बाहर स्थित है।
- यह पूर्व दिशा में हिमालय के समानांतर बहती है। जब यह नामचा बरवा तक पहुंचती है, तो यह इसके चारों ओर एक यू-टर्न लेती है और अरुणाचल प्रदेश राज्य में भारत में प्रवेश करती है।
- यहां इसे दिहांग नदी के नाम से जाना जाता है। भारत में, यह अरुणाचल प्रदेश और असम राज्यों से होकर बहती है और कई सहायक नदियों द्वारा जुड़ी हुई है।
- असम में ब्रह्मपुत्र की अधिकांश लंबाई में एक लट चैनल में है।
ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में त्संगपो के नाम से जाना जाता है। यहां इसे पानी काफी कम मात्रा में प्राप्त होता है इसलिए तिब्बत क्षेत्र में इसमें कम गाद होती है। लेकिन भारत में, ब्रह्मपुत्र नदी भारी वर्षा के क्षेत्र से होकर गुजरती है, और इस तरह, ब्रह्मपुत्र नदी वर्षा के दौरान बड़ी मात्रा में पानी और महत्वपूर्ण मात्रा में गाद बहाती है। यह आयतन की दृष्टि से भारत की सबसे बड़ी नदियों में से एक मानी जाती है। यह असम और बांग्लादेश में आपदा पैदा करने के लिए भी जानी जाती है।
प्रमुख नदी तंत्र – गंगा नदी तंत्र
- गंगा गंगोत्री ग्लेशियर से भागीरथी के रूप में निकलती है।
- गढ़वाल मंडल में देवप्रयाग पहुंचने से पहले, मंदाकिनी, पिंडर, धौलीगंगा और बिशेनगंगा नदियां अलकनंदा में और भेलिंग नाला भागीरथी में मिल जाती हैं।
- पिंडर नदी पूर्वी त्रिशूल से निकलती है और नंदादेवी कर्ण प्रयाग में अलकनंदा से मिलती है। मंदाकिनी रुद्रप्रयाग में मिलती है।
- भागीरथी और अलकनंदा दोनों का जल देवप्रयाग में गंगा के नाम से बहता है।
गंगा की प्रमुख सहायक नदियां- यमुना, दामोदर, सप्त कोसी, राम गंगा, गोमती, घाघरा और सोन नदी हैं। गंगा नदी अपने स्रोत से 2525 किमी की दूरी तय करने के बाद बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
नोट: आप खुद को नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi से अपडेट रखने के लिए BYJU’S के साथ जुडें , यहां हम प्रमुख जानकारियों को आसान तरीके से समझाते हैं।
प्रमुख नदी तंत्र – यमुना नदी प्रणाली
- यमुना नदी गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
- यह उत्तराखंड में बंदरपूंछ चोटी पर यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है।
- नदी में शामिल होने वाली मुख्य सहायक नदियों में सिन, हिंडन, बेतवा केन और चंबल शामिल हैं।
- टोंस यमुना की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
- नदी का जलग्रहण क्षेत्र दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश तक फैला हुआ है।
प्रमुख नदी तंत्र – नर्मदा नदी प्रणाली
- नर्मदा मध्य भारत में स्थित एक नदी है।
- यह मध्य प्रदेश राज्य में अमरकंटक पहाड़ी के शिखर से निकलती है।
- यह उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच पारंपरिक सीमा रेखा को रेखांकित करती है।
- यह प्रायद्वीपीय भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। केवल नर्मदा, ताप्ती और माही नदियां ही पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं।
- नर्मदा नदी मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों से होकर बहती है।
- यह गुजरात के भरूच जिले में अरब सागर में गिरती है।
प्रमुख नदी तंत्र – तापी नदी प्रणाली
- यह एक मध्य भारतीय नदी है। यह पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली प्रायद्वीपीय भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है।
- यह दक्षिणी मध्य प्रदेश के पूर्वी सतपुड़ा रेंज से निकलती है।
- यह अरब सागर के कैम्बे की खाड़ी में बहने से पहले मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र, पूर्वी विदर्भ क्षेत्र और महाराष्ट्र के खानदेश जैसे दक्कन के पठार और दक्षिण गुजरात के उत्तर-पश्चिम कोने में कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थानों से होकर पश्चिम दिशा में बहती है।
- तापी नदी का बेसिन ज्यादातर महाराष्ट्र राज्य के पूर्वी और उत्तरी जिलों में स्थित है।
- तापी नदी मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ जिलों को भी कवर करती है।
- तापी नदी की प्रमुख सहायक नदियां- वाघुर नदी, अनेर नदी, गिरना नदी, पूर्णा नदी, पंजारा नदी और बोरी नदी हैं।
प्रमुख नदी तंत्र – गोदावरी नदी प्रणाली
- गोदावरी नदी भूरे रंग के पानी के साथ भारत की दूसरी सबसे लंबी धारा है।
- गोदावरी नदी को अक्सर दक्षिण की गंगा या वृद्ध (पुरानी) गंगा भी कहा जाता है।
- यह एक मौसमी नदी है, जो गर्मियों के दौरान सूख जाती है और मानसून के दौरान चौड़ी हो जाती है।
- यह नदी महाराष्ट्र में नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर से निकलती है।
- यह मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा राज्यों के माध्यम से दक्षिण-मध्य भारत में दक्षिण-पूर्व में बहती है, और बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
- गोदावरी नदी राजमुंदरी में एक उपजाऊ डेल्टा बनाती है।
- इस नदी के किनारों पर कई तीर्थ स्थल हैं, नासिक (महाराष्ट्र), भद्राचलम (तेलंगाना), और त्र्यंबकेश्वर आदि स्थित है। इसकी कुछ सहायक नदियों में प्राणहिता (पेनुगंगा और वर्दा का संयोजन), इंद्रावती नदी, बिन्दुसार, सबरी और मंजीरा नदि शामिल हैं।
- एशिया का सबसे बड़ा रेल-सह-सड़क पुल जो कोवूर और राजमुंदरी को जोड़ता है, गोदावरी नदी पर ही स्थित है।
प्रमुख नदी तंत्र – कृष्णा नदी प्रणाली
- कृष्णा भारत की सबसे लंबी नदियों में से एक है, जो महाराष्ट्र में महाबलेश्वर से निकलती है।
- यह सांगली से होकर बहती है और बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
- यह नदी महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों से होकर बहती है।
- तुंगभद्रा नदी इसकी मुख्य सहायक नदी है जो स्वयं पश्चिमी घाट से निकलने वाली तुंगा और भद्रा नदियों से बनती है।
- दुधगंगा नदियां, कोयना, भीमा, मल्लप्रभा, दिंडी, घाटप्रभा, वारना, येरला और मुसी कुछ अन्य सहायक नदियां हैं।
प्रमुख नदी तंत्र – कावेरी नदी प्रणाली
- यह पश्चिमी घाट में स्थित तालकावेरी से निकलती है।
- यह कर्नाटक के कोडागु जिले में एक प्रसिद्ध तीर्थ और पर्यटन स्थल है।
- कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक राज्य के पश्चिमी घाट रेंज में है, और कर्नाटक से तमिलनाडु के माध्यम से है।
- कावेरी नदी बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह नदी कृषि के लिए सिंचाई जल उपलब्ध कराती है और यह दक्षिण भारत के प्राचीन राज्यों और आधुनिक शहरों की जीवन रेखा मानी जाती है।
- कावेरी नदी की कई सहायक नदियां हैं, जिनमें अर्कवती, शिमशा, हेमवती, कपिला, शिमशा, होन्नुहोल, अमरावती, लक्ष्मण कबिनी, लोकपावनी, भवानी, नोय्याल और तीर्थ शामिल है।
प्रमुख नदी तंत्र – महानदी नदी प्रणाली
- महानदी मध्य भारत के सतपुड़ा रेंज से निकलती है और यह पूर्वी भारत की प्रसिद्ध नदी है।
- यह पूर्व की ओर बंगाल की खाड़ी में बहती है। महानदी, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा राज्य से होकर गुजरती है।
- सबसे बड़ा बांध, हीराकुंड बांध महानदी पर ही बनाया गया है।
कावेरी नदी से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
कावेरी नदी में कितने बांध हैं.
कावेरी नदी पर कर्नाटक में चार प्रमुख बांध है- कृष्णा राजा सागर (केआरएस), काबिनी, हरंगी और हेमवती हैं।
क्या कावेरी एक बारहमासी नदी है?
कावेरी एक बारहमासी नदी है क्योंकि कावेरी की निचली पहुंच नमी युक्त उत्तर-पूर्वी मानसूनी हवाओं के मार्ग में पड़ती है। अधिकांश अन्य प्रायद्वीपीय नदियों में केवल दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान पानी आता है।
कावेरी नदी क्यों सूख रही है?
वनों की कटाई, सिंचाई और कृषि परियोजनाओं ने पश्चिमी घाट के जंगलों को खत्म कर दिया है। इसलिए यहां की मिट्टी, अपने अंदर पानी को बनाए रखने की अपनी क्षमता खो चुकी है। नतीजतन नदी सूखती जा रही है।
भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली कौन सी है?
गंगा नदी प्रणाली, भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। सिंधु बेसिन में ग्लेशियरों की सबसे बड़ी संख्या (3500) है, जबकि गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिनों में क्रमशः लगभग 1000 और 660 ग्लेशियर हैं।
भारत में दो प्रकार की नदियां कौन सी होती हैं?
भारतीय नदियों को इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है – हिमालयी नदियां और प्रायद्वीपीय नदियां।
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