45,000+ students realised their study abroad dream with us. Take the first step today
Here’s your new year gift, one app for all your, study abroad needs, start your journey, track your progress, grow with the community and so much more.
Verification Code
An OTP has been sent to your registered mobile no. Please verify
Thanks for your comment !
Our team will review it before it's shown to our readers.
- Jivan Parichay (जीवन परिचय) /
संत कबीर दास का जीवन परिचय – साहित्यिक रचनाएं, भाषा शैली और प्रसिद्ध दोहे
- Updated on
- फरवरी 13, 2024
Kabir Das Ka Jivan Parichay: संत कबीर दास 15वीं सदी में हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि, विचारक माने जाते हैं। इनका संबंध भक्तिकाल की निर्गुण शाखा “ज्ञानमर्गी उपशाखा” से था। इनकी रचनाओं और गंभीर विचारों ने भक्तिकाल आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया था। इसके साथ ही उन्होंने उस समय समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की। संत कबीर दास की रचनाओं के कुछ अंश सिक्खों के “आदि ग्रंथ” में भी सम्मिलित किए गए हैं। आइए जानते हैं संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay) कैसा रहा।
नाम | संत कबीर दास |
जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | नीरू |
माता का नाम | नीमा |
पत्नी का नाम | लोई |
संतान | कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) |
शिक्षा | निरक्षर |
मुख्य रचनाएं | साखी, सबद, रमैनी |
काल | भक्तिकाल |
शाखा | ज्ञानमार्गी शाखा |
भाषा | अवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा |
This Blog Includes:
कबीर दास का जीवन परिचय – kabir das ka jivan parichay, कबीर दास की साहित्यक रचनाएं , कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे , पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय .
कबीर साहब का जन्म कब हुआ, यह ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। परन्तु ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म 14वीं-15वीं शताब्दी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। कबीर के जीवन से संबंधित कई किवदंतियां प्रचलित है कि उनका जन्म एक विधवा ब्रह्माणी के गर्भ से हुआ था। जिसको उस ब्रह्माणी ने जन्म के उपरांत ही नदी में बहा दिया था।
नीरू एवं नीमा नामक एक जुलाहा दंपति को यह नदी किनारे मिले और उन्होंने ही इनका पालन-पोषण किया। कबीर के गुरु का नाम ‘संत स्वामी रामानंद’ था। कबीर का विवाह ‘लोई’ नामक महिला से हुआ था जिससे इन्हें ‘कमाल’ एवं ‘कमाली’ के रूप में दो संतान प्राप्त हुई। अधिकांश विद्वानों के अनुसार संत कबीर का 1575 के आसपास मगहर में स्वर्गवास हुआ था।
कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने अपनी वाणी से स्वयं ही कहा है “मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ।” जिससे ज्ञात होता है कि उन्होंने अपनी रचनाओं को नहीं लिखा। इसके पश्चात भी उनकी वाणी से कहे गए अनमोल वचनों के संग्रह रूप का कई प्रमुख ग्रंथो में उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि बाद में उनके शिष्यों ने उनके वचनो का संग्रह ‘बीजक’ में किया।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी स्पष्ट कहा है कि, “कविता करना कबीर का लक्ष्य नहीं था, कविता तो उन्हें संत-मेंत में मिली वस्तु थी, उनका लक्ष्य लोकहित था।” कबीर की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं इस प्रकार हैं:-
साखी | साक्षी | दोहा | राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली |
सबद | शब्द | गेय पद | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
रमैनी | रामायण | चौपाई और दोहा | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
संत कबीर दास जी को कई भाषाओं का ज्ञान था वे साधु-संतों के साथ कई जगह भ्रमण पर जाते रहते थे इसलिए उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान हो गया था। इसके साथ ही कबीरदास अपने विचारो और अनुभवों को व्यक्त करने के लिए स्थानीय भाषा के शब्दों का इस्तेमाल करते थे। जिसे स्थानीय लोग उनकी वचनो को भली भांति समझ जाते थे। बता दें कि कबीर दास जी की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है।
यहाँ संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay) के साथ ही उनके कुछ लोकप्रिय अनमोल विचारों के बारे में भी बताया जा रहा है। जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं:-
“माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।”
“पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ ! घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार !!”
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो मिलाय।।”
“यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।”
“उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं । एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं॥”
“निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।”
“प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए । राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।”
“जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान । जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण।”
“मैं-मैं बड़ी बलाइ है, सकै तो निकसो भाजि । कब लग राखौ हे सखी, रूई लपेटी आगि॥”
“चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये । दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।”
“तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार । सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।”
“जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि । एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि॥”
“कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ । ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ॥”
“जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप।”
“ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।”
संत कबीर दास ने अपने संपूर्ण जीवन में लोकहित के लिए कई उपदेश दिए व समाज में फैली कुरीतियों और आडंबरो का खुलकर विरोध किया। इसके साथ ही उन्हें हिंदी साहित्य के महान कवियों में उच्च स्थान प्राप्त हैं। जिनके अनमोल विचारों को आज भी पढ़ा और उनका अनुसरण किया जाता हैं।
यहाँ संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-
माना जाता है कि संत कबीर दास का जन्म वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
कबीर दास की माता ‘नीमा’ और पिता का नाम ‘नीरू’ था।
कबीर दास भक्तिकाल में ‘ज्ञानमार्गी शाखा’ के कवि थे।
कबीर दास की मुख्य रचनाएँ ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ हैं।
कबीर दास ने मुख्य रूप से ‘सधुक्कड़ी’ भाषा में रचना की थी।
आशा है कि आपको संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
Leverage Edu स्टडी अब्रॉड प्लेटफार्म में बतौर एसोसिएट कंटेंट राइटर के तौर पर कार्यरत हैं। नीरज को स्टडी अब्रॉड प्लेटफाॅर्म और स्टोरी राइटिंग में 3 वर्ष से अधिक का अनुभव है। वह पूर्व में upGrad Campus, Neend App और ThisDay App में कंटेंट डेवलपर और कंटेंट राइटर रह चुके हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविधालय से बौद्ध अध्ययन और चौधरी चरण सिंह विश्वविधालय से हिंदी में मास्टर डिग्री कंप्लीट की है।
प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें
अगली बार जब मैं टिप्पणी करूँ, तो इस ब्राउज़र में मेरा नाम, ईमेल और वेबसाइट सहेजें।
Contact no. *
Leaving already?
8 Universities with higher ROI than IITs and IIMs
Grab this one-time opportunity to download this ebook
Connect With Us
45,000+ students realised their study abroad dream with us. take the first step today..
Resend OTP in
Need help with?
Study abroad.
UK, Canada, US & More
IELTS, GRE, GMAT & More
Scholarship, Loans & Forex
Country Preference
New Zealand
Which English test are you planning to take?
Which academic test are you planning to take.
Not Sure yet
When are you planning to take the exam?
Already booked my exam slot
Within 2 Months
Want to learn about the test
Which Degree do you wish to pursue?
When do you want to start studying abroad.
January 2025
September 2025
What is your budget to study abroad?
How would you describe this article ?
Please rate this article
We would like to hear more.
मुख्य विषय-वस्तु पर जाएँ
- Select your language English हिंदी
Social Share
संत कबीर दास का जीवन.
संत-कवि कबीर दास का जन्म 15वीं शताब्दी के मध्य में काशी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। कबीर के जीवन के विवरण कुछ अनिश्चित हैं। उनके जीवन के बारे में अलग-अलग विचार, विपरीत तथ्य और कई कथाएँ हैं। यहाँ तक कि उनके जीवन पर बात करने वाले स्रोत भी अपर्याप्त हैं। शुरुआती स्रोतों में ‘बीजक’ और ‘आदि ग्रंथ’ शामिल हैं। इसके अलावा, भक्त मल द्वारा रचित ‘नाभाजी’, मोहसिन फ़ानी द्वारा रचित ‘दबिस्तान-ए-तवारीख’, और ‘खज़ीनत उल-असफ़िया’ हैं।
संत कबीर की तस्वीर के साथ भारतीय डाक टिकट, 1952 स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स
ऐसा कहा जाता है कि कबीर की माँ ने उनके जन्म के समय बड़े चमत्कारिक ढंग से गर्भ धारण किया था। उनकी माँ एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण विधवा थीं, जो अपने पिता के साथ एक प्रसिद्ध तपस्वी के निवास पर तीर्थ यात्रा करने गई थीं। उनकी निष्ठा से प्रभावित होकर, तपस्वी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनसे कहा कि वे जल्द ही एक बेटे को जन्म देंगी। बेटे का जन्म होने के बाद, बदनामी से बचने के लिए (क्योंकि उनकी शादी नहीं हुई थी), कबीर की माँ ने उनका परित्याग कर दिया। छोटे से कबीर को एक मुसलमान बुनकर की पत्नी, नीमा, ने गोद ले लिया। कथाओं के एक अन्य संस्करण में, तपस्वी ने उनकी माँ को आश्वासन दिया था कि जन्म असामान्य तरीके से होगा और इसलिए, कबीर का जन्म अपनी माँ की हथेली से हुआ था! इस कहानी में भी, उन्हें बाद में उसी नीमा द्वारा गोद ले लिया गया था।
जब लोग बच्चे के बारे में नीमा पर संदेह और प्रश्न करने लगे, तब चमत्कारी ढंग से जन्में नवजात शिशु ने अपनी दृढ़ आवाज़ में कहा, “मैं एक महिला से पैदा नहीं हुआ था बल्कि एक लड़के के रूप में प्रकट हुआ हूँ ... मुझमें ना तो हड्डियाँ हैं, ना खून, ना त्वचा है। मैं तो मानव जाति के लिए शब्द प्रकट करता हूँ। मैं सर्वश्रेठ प्राणी हूँ ...”
कबीर की और बाईबल की कहानियों में समानताएँ देखी जा सकती हैं। इन दंतकथाओं की सत्यता पर प्रश्न उठाना निरर्थक होगा। हमें तो फिर दंतकथाओं की अवधारणा पर ही विचार करना पड़ेगा। कल्पनाएँ और मिथक सामान्य जीवन की विशेषता नहीं हैं। साधारण मनुष्य का जीवन तो भुला दिया जाता है। आलंकारिक दंतकथाएँ और अलौकिक कृत्य असाधारण जीवन से जुड़े होते हैं। भले ही कबीर का जन्म सामान्य रूप से ना हुआ हो, लेकिन इन दंतकथाओ से पता चलता है कि वे एक असाधारण और महत्वपूर्ण व्यक्ति थे।
उनके समय के मानकों के अनुसार, 'कबीर' एक असामान्य नाम था। ऐसा कहा जाता है कि उनका नाम एक काज़ी ने रखा था जिन्होंने उनके लिए एक नाम खोजने के लिए कई बार क़ुरान खोली और हर बार ‘कबीर’ अर्थात 'महान’ शब्द पर उनकी खोज समाप्त हुई, जो ईश्वर, स्वयं अल्लाह के अलावा और किसी के लिए उपयोग नहीं किया जाता है।
कबीरा तू ही कबीरू तू तोरे नाम कबीर राम रतन तब पाइये जद पहिले तजहि सरीर
आप महान हैं, आप वही हैं, आपका नाम कबीर है, रत्न स्वरूप राम तभी प्राप्त होते हैं जब शारीरिक मोह त्याग दिया जाता है।
अपनी कविताओं में कबीर ने खुद को जुलाहा और कोरी कहा है। दोनों शब्दों का अर्थ ‘बुनकर’ है, जो एक निचली जाति थी। उन्होंने खुद को पूरी तरह से हिंदुओं या मुसलमानों के साथ नहीं जोड़ा।
जोगी गोरख गोरख करै, हिंद राम न उखराई मुसलमान कहे इक खुदाई, कबीरा को स्वामी घट घट रहियो समाई।
(जोगी गोरख गोरख कहते हैं, हिंदू राम का नाम जपते हैं, मुसलमान कहते हैं कि एक अल्लाह ही है, लेकिन कबीर का भगवान हर जगह व्याप्त है।)
कबीर जी ने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। उन्हें एक बुनकर के रूप में प्रशिक्षित भी नहीं किया गया था। उनकी कविताएँ बुनाई से जुड़े रूपकों से भरी हुई हैं, परंतु उनका मन पूरी तरह से इस पेशे में नहीं लगता था। उनका जीवन सत्य की खोज की आध्यात्मिक यात्रा थी, जो उनकी कविताों में स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।
ताना बुनना सबहु तज्यो है कबीर, हरि का नाम लिखी लियो सरीर
(कबीर ने कताई और बुनाई, सभी को त्याग दिया है, हरि का नाम अपने संपूर्ण शरीर पर लिख लिया है।)
कबीर को बुनाई करते हुए दर्शाती, 1825 की एक चित्रकारी। स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
अपनी आध्यात्मिक खोज को पूर्ण करने हेतु, वे वाराणसी में प्रसिद्ध संत रामानंद के शिष्य बनना चाहते थे। कबीर ने महसूस किया कि अगर वे किसी तरह से अपने गुरु के गुप्त मंत्र को जान लेंगे, तो उनकी दीक्षा हो सकेगी। संत रामानंद वाराणसी में नियमित रूप से एक निश्चित घाट पर जाते थे। एक दिन जब कबीर ने उन्हें घाट के पास आते देखा, तो वे घाट की सीढ़ियों पर लेट गए और रामानंदजी का पैर उनपर पड़ा, और उनके मूँह से अनायास ही ‘राम’ शब्द निकल पड़ा। कबीर को मंत्र मिल गया और उन्हें बाद में संत द्वारा एक शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया गया। ‘ख़जीनत अल-असफ़िया’ से हमें पता चलता है कि एक सूफ़ी पीर, शेख तक्की, भी कबीर के शिक्षक थे। कबीर के शिक्षण और तत्वज्ञान में सूफ़ी प्रभाव भी काफी स्पष्ट है।
वाराणसी में कबीर चौरा नाम का एक इलाका है, और ऐसा माना जाता है कि वे वहीं बड़े हुए थे।
कबीर ने बाद में लोई नामक एक महिला से शादी की और उनके दो बच्चे हुए, एक बेटा, कमल और एक बेटी कमली थी। कुछ स्रोतों से यह सुझाव भी मिलता है कि उन्होंने दो बार शादी की थी या उन्होंने शादी ही नहीं की थी। जबकि हमारे पास उनके जीवन के बारे में इन तथ्यों को स्थापित करने के साधन नहीं है, हम उनकी कविताओं के माध्यम से उनके द्वारा प्रचारित दर्शन में अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं।
कबीर का आध्यात्मिकता से गहरा संबंध था। मोहसिन फ़ानी की ‘दबिस्तान’ और अबुल फ़ज़ल की ‘आइन-ए-अकबरी’ में, उन्हे ‘मुहाविद’ बताया गया है, यानी एक ईश्वर में विश्वास रखने वाला। प्रभाकर माचवे की पुस्तक ‘कबीर’ की प्रस्तावना में प्रो. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने बताया है कि कबीर राम के भक्त थे, लेकिन विष्णु के अवतार के रूप में नहीं। उनके लिए, राम किसी भी व्यक्तिगत रूप या गुण से परे हैं। कबीर का अंतिम लक्ष्य एक परम ईश्वर को प्राप्त करना था जो बिना किसी गुण के निराकार है, जो समय और स्थान से परे है, और जो कारण-कार्य-संबंध से भी परे है। कबीर का ईश्वर ज्ञान है, आनंद है। उनके लिए ईश्वर शब्द है।
जाके मुँह माथा नहिं नहिं रूपक रप फूप वास ते पतला ऐसा तात अनूप।
(जो चेहरे या माथे या प्रतीकात्मक रूप के बिना है, फूल की सुगंध की तुलना में सूक्ष्म है, ऐसा अनोखा उसका सार है।)
ऐसा प्रतीत होता है कि कबीर उपनिषद-संबंधी अद्वैतवाद और इस्लामी एकत्ववाद से गहराई से प्रभावित थे । उन्हें वैष्णव भक्ति परंपरा द्वारा भी प्रेरणा मिली थी, जिसमें भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण पर ज़ोर दिया जाता है।
उन्होंने जाति के आधार पर भेद स्वीकार नहीं किया। एक कहानी यह है कि एक दिन जब कुछ ब्राह्मण लोग अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगा रहे थे, तब कबीर ने अपने लकड़ी के पात्र को नदी के पानी से भरा और उन लोगों को पीने के लिए दिया। वे लोग निचली जाति के व्यक्ति द्वारा पानी दिए जाने पर बहुत नाराज़ हुए, जिसके उत्तर में कबीर ने कहा, “अगर गंगा जल मेरे पात्र को शुद्ध नहीं कर सकता है, तो मैं कैसे विश्वास कर सकता हूँ कि यह मेरे पापों को धो सकता है।”
दशाश्वमेध घाट, वाराणसी का प्रमुख घाट। कबीर जी यहाँ आए होंगे। स्रोत: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
केवल जाति ही नहीं, कबीर ने मूर्ति पूजा के विरुद्ध भी बात की है और हिंदू तथा मुसलमानों, दोनों, के उन संस्कारों, रीति-रिवाजों और प्रथाओ की आलोचना की जो उनकी दृष्टि मे व्यर्थ थे। उन्होंने उपदेश दिया कि संपूर्ण श्रद्धा से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
लोग ऐसे बावरे, पाहन पूजन जाई घर की चाकिया काहे न पूजे जेही का पीसा खाई
(लोग ऐसे मूर्ख हैं कि वे पत्थरों की पूजा करने जाते हैं, वे उस चक्की (पत्थर) की पूजा क्यों नहीं करते जो उनके लिए खाने के लिए आटा पीसती है।)
उनकी कविता में ये सारे विचार उभरकर आते हैं। उनके आध्यात्मिक अनुभव और उनकी कविताओं को अलग नहीं किया जा सकता है। वास्तव में, वे सचेत रूप से अपनी कविताएँ नहीं लिखते थे। यह उनकी आध्यात्मिक खोज, उनका परमानंद और पीड़ा थी जिसे उन्होंने अपनी कविताओं में व्यक्त किया है। कबीर हर तरह से एक असाधारण कवि हैं। 15वीं शताब्दी में, जब फ़ारसी और संस्कृत प्रमुख उत्तर भारतीय भाषाएँ थीं, तब उन्होंने बोलचाल वाली, क्षेत्रीय भाषा में लिखने का चयन किया। केवल एक ही नहीं, उनके काव्य में हिंदी, खड़ी बोली, पंजाबी, भोजपुरी, उर्दू, फ़ारसी और मारवाड़ी जैसी भाषाओं का मिश्रण है।
भले ही कबीर के जीवन के बारे में विवरण बहुत कम मिलते हैं, लेकिन उनकी कविताएँ आज भी मौजूद हैं। वे एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें उनकी कविताओं के लिए और उनके द्वारा जाना जाता है। कबीर एक साधारण व्यक्ति थे और उनकी कविताओं का सदियों से मौजूद रहना, उनकी कविताओं की महानता का प्रमाण है। मौखिक रूप से प्रसारित होने के बावजूद, कबीर की कविताएँ आज भी अपनी सरल भाषा और आध्यात्मिक विचार और अनुभव की गहराई के कारण जानी जाती हैं। उनकी मृत्यु के कई वर्षों बाद, उनकी कविताएँ लिखी गईं थीं। उन्होंने दो पंक्ति वाले दोहे और लंबे पद (गीत) लिखे जिन्हें संगीतबद्ध किया गया। कबीर की कविताओं को एक सरल भाषा में लिखा गया है, फिर भी उनकी व्याख्या करना मुश्किल है क्योंकि उनमें कई जटिल प्रतीकवाद मौजूद हैं। हम उनकी कविताओं में कोई भी मानकीकृत रूप या छंद (मीटर) नहीं पाते हैं।
माटी कहे कुम्हार से तू क्यों रौंदे मोहे एक दिन ऐसा आयेगा मैं रौंदूंगी तोहे (मिट्टी कुम्हार से कहती है, तुम मुझे क्यों रोंदते हो, एक दिन आएगा जब मैं तुम्हें (मृत्यु के बाद) रौंदूँगी।)
कबीर जी की शिक्षाओं ने कई व्यक्तियों और समूहों को आध्यात्मिक रूप से प्रभावित किया। गुरु नानकजी, दादू पंथ की स्थापना करने वाले अहमदाबाद के दादू, सतनामी संप्रदाय की शुरुआत करने वाले अवध के जीवान दास, उनमें से कुछ हैं जो अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शन में कबीर दास को उद्धृत करते हैं। अनुयायियों का सबसे बड़ा समूह कबीर पंथ के लोग हैं, जो उन्हें मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करने वाला गुरु मानते हैं। कबीर पंथ अलग धर्म नहीं बल्कि आध्यात्मिक दर्शन है।
नामदेव, रैदास और पिपाजी के साथ संत कबीर, जयपुर, 19वीं शताब्दी। स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
कबीर ने अपने जीवन में व्यापक रूप से यात्रा की थी। उन्होंने लंबा जीवन जिया। सूत्र बताते हैं कि अंत में उनका शरीर इतना दुर्बल हो गया था कि वे राम की भक्ति में संगीत नहीं बजा पाते थे। अपने जीवन के अंतिम क्षणों के दौरान, वे मगहर शहर (उत्तर प्रदेश) चले गए थे। एक किंवदंती के अनुसार, उनकी मृत्यु के बाद, हिंदू और मुसलमानों के बीच संघर्ष हुआ। हिंदू उनके शरीर का दाह संस्कार करना चाहते थे जबकि मुसलमान उन्हें दफ़नाना चाहते थे। उसी क्षण एक चमत्कार हुआ और उनके कफ़न के नीचे फूल दिखाई दिए, जिनमें से आधे काशी में जलाए गए और आधे मगहर में दफन किए गए। निश्चित रूप से, कबीर दास की मृत्यु मगहर में ही हुई थी जहाँ उनकी कब्र स्थित है।
मैंने बनारस छोड़ दिया है, और मेरि बुद्धि अल्प हो गई है, मेरा पूरा जीवन शिवपुरी में खो गया, और मृत्यु के समय मैं उठकर मगहर आया हूँ। हे मेरे राजा, मैं एक बैरागी और योगी हूँ। मरते समय, मैं ना तो दुखी हूँ, और ना ही मैं तुझ से अलग हूँ। मन और श्वास जलपात्र हैं, सारंगी सदा ही तैयार रहती है, डोरी पक्की हो गई है, टूटती नहीं है, सारंगी से आवाज़ नहीं आती है। गाओ, गाओ, हे दुल्हन, आशीर्वाद का एक सुंदर गीत गाओ, राजा राम, मेरे पति, मेरे घर आए हैं।
(आदि ग्रंथ- जी.एच. वेस्टकॉट द्वारा 'कबीर एंड कबीर पंथ' से अनुवाद)
कबीर चौरा, कबीर की कब्र, मगहर, उत्तर प्रदेश स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
दोहा अनुवाद श्रेय- 'कबीर', प्रभाकर माचवे
भा. प्रौ. सं. मुंबई
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय
- Phone . [email protected]
- Email . +54 356 945234
भारतीय संस्कृति ऐप
‘भारतीय संस्कृति पोर्टल’ भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित, राष्ट्रीय आभासी पुस्तकालय परियोजना (एनवीएलआई) का एक हिस्सा है। यह पोर्टल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई, द्वारा बनाया और विकसित किया गया है। इस पर उपलब्ध डेटा संस्कृति मंत्रालय की संस्थाओं द्वारा प्रदान किया गया है।
Ask the publishers to restore access to 500,000+ books.
Internet Archive Audio
- Grateful Dead
- Old Time Radio
- 78 RPMs and Cylinder Recordings
- Audio Books & Poetry
- Computers, Technology and Science
- Music, Arts & Culture
- News & Public Affairs
- Spirituality & Religion
- Radio News Archive
- Flickr Commons
- Occupy Wall Street Flickr
- NASA Images
- Solar System Collection
- Ames Research Center
- All Software
- Old School Emulation
- MS-DOS Games
- Historical Software
- Classic PC Games
- Software Library
- Kodi Archive and Support File
- Vintage Software
- CD-ROM Software
- CD-ROM Software Library
- Software Sites
- Tucows Software Library
- Shareware CD-ROMs
- Software Capsules Compilation
- CD-ROM Images
- ZX Spectrum
- DOOM Level CD
- Smithsonian Libraries
- FEDLINK (US)
- Lincoln Collection
- American Libraries
- Canadian Libraries
- Universal Library
- Project Gutenberg
- Children's Library
- Biodiversity Heritage Library
- Books by Language
- Additional Collections
- Prelinger Archives
- Democracy Now!
- Occupy Wall Street
- TV NSA Clip Library
- Animation & Cartoons
- Arts & Music
- Computers & Technology
- Cultural & Academic Films
- Ephemeral Films
- Sports Videos
- Videogame Videos
- Youth Media
Search the history of over 866 billion web pages on the Internet.
Mobile Apps
- Wayback Machine (iOS)
- Wayback Machine (Android)
Browser Extensions
Archive-it subscription.
- Explore the Collections
- Build Collections
Save Page Now
Capture a web page as it appears now for use as a trusted citation in the future.
Please enter a valid web address
- Donate Donate icon An illustration of a heart shape
Bijak Of Kabir Das With Sanskrit Explanation And Commentary Of Swami Hanumat Das Shat Shastri Hanuman Printing Press
Bookreader item preview, share or embed this item, flag this item for.
- Graphic Violence
- Explicit Sexual Content
- Hate Speech
- Misinformation/Disinformation
- Marketing/Phishing/Advertising
- Misleading/Inaccurate/Missing Metadata
plus-circle Add Review comment Reviews
1,433 Views
6 Favorites
DOWNLOAD OPTIONS
For users with print-disabilities
IN COLLECTIONS
Uploaded by devahindi on March 4, 2021
SIMILAR ITEMS (based on metadata)
- Free writing courses
- Famous poetry classics
- Forums: Poet's • Suggestions
- My active groups see all
- Trade comments
- Print publishing
- Rate comments
- Recent views
- Membership plan
- Contact us + HELP
Dohas (Couplets) I (with translation)
Chalti Chakki Dekh Kar, Diya Kabira Roye Dui Paatan Ke Beech Mein,Sabit Bacha Na Koye [Looking at the grinding stones, Kabir laments In the duel of wheels, nothing stays intact.] ** Bura Jo Dekhan Main Chala, Bura Naa Milya Koye Jo Munn Khoja Apnaa, To Mujhse Bura Naa Koye [I searched for the crooked man, met not a single one Then searched myself, "I" found the crooked one] ** Kaal Kare So Aaj Kar, Aaj Kare So Ub Pal Mein Pralaya Hoyegi, Bahuri Karoge Kub [Tomorrow's work do today, today's work now if the moment is lost, the work be done how] ** Aisee Vani Boliye, Mun Ka Aapa Khoye Apna Tan Sheetal Kare, Auran Ko Sukh Hoye [Speak such words, sans ego's ploy Body remains composed, giving the listener joy] ** Dheere Dheere Re Mana, Dheere Sub Kutch Hoye Mali Seenche So Ghara, Ritu Aaye Phal Hoye [Slowly slowly O mind, everything in own pace happens The gardiner may water with a hundred buckets, fruit arrives only in its season] ** Sayeen Itna Deejiye, Ja Mein Kutumb Samaye Main Bhi Bhookha Na Rahun, Sadhu Na Bhookha Jaye [Give so much, O God, suffice to envelop my clan I should not suffer cravings, nor the visitor go unfed] ** Bada Hua To Kya Hua, Jaise Ped Khajoor Panthi Ko Chaya Nahin, Phal Laage Atidoor [In vain is the eminence, just like a date tree No shade for travelers, fruit is hard to reach] ** Jaise Til Mein Tel Hai, Jyon Chakmak Mein Aag Tera Sayeen Tujh Mein Hai, Tu Jaag Sake To Jaag [Just as seed contains the oil, fire's in flint stone Your temple seats the Divine, realize if you can] ** Kabira Khara Bazaar Mein, Mange Sabki Khair Na Kahu Se Dosti, Na Kahu Se Bair [Kabira in the market place, wishes welfare of all Neither friendship nor enmity with anyone at all] ** Pothi Padh Padh Kar Jag Mua, Pandit Bhayo Na Koye Dhai Aakhar Prem Ke, Jo Padhe so Pandit Hoye [Reading books where everyone died, none became anymore wise One who reads the word of Love, only becomes wise] ** Dukh Mein Simran Sab Kare, Sukh Mein Kare Na Koye Jo Sukh Mein Simran Kare, Tau Dukh Kahe Ko Hoye [In anguish everyone prays to Him, in joy does none To One who prays in happiness, how sorrow can come]
These Dohas or couplets are each complete in themselves and are the most famous of Kabir's poetry, there are many more and many of them are often quoted in India even now. There is profound wisdom hidden in each couplet and they reflect Kabir's way of expressing the most profound thoughts in the simplest words.
Good job done by translating dohas !
Pothi Padh Padh Kar Jag Mua, Pandit Bhayo Na Koye Dhai Aakhar Prem Ke, Jo Padhe so Pandit Hoye [Reading books where everyone died, none became anymore wise One who reads the word of Love, only becomes wise]
This verbal translation, I think, is not quite appropriate. Please consider this:
[No one ever became wise only by reading books.
One who knows and understands love is truly wise.]
This is a great selection of Kabirsaheb's dohe. I have heard many of them before, but I did not know certain words so I could not appreciate them fully. Reading and reflecting on those words have helped me appreciate the wisdom of these dohe. Thank you very much.
liked it and saved trouble
A nice job done in translating Dohas of Kabir.
Your translations are close to the original message. The rhyming pattern has been maintained quiet authentically.These Dohas are evergreen . They were true yesterday , vibrant today and will live for years.
You are doing a good job by sharing these with the greater reading public.
Carry on my friend. with the rest of it..
Best of luck.
I've noticed that,
throughout history those unencumbered with education
Seem to know more than those of us that are.
The first couplet is missing the last word 'KOY' in L2--- the 2 lines always rhyme.
Comments from the archive
Kabir follow.
Make comments, explore modern poetry. Join today for free!
Top poems List all »
Have you read these poets? List all »
More by kabir list all ».
- Send Message
- Open Profile in New Window
कबीर दास की जीवनी
भारत के महान संत और आध्यात्मिक कवि कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में और मृत्यु वर्ष 1518 में हुई थी। इस्लाम के अनुसार ‘कबीर’ का अर्थ महान होता है। कबीर पंथ एक विशाल धार्मिक समुदाय है जिन्होंने संत आसन संप्रदाय के उत्पन्न कर्ता के रुप में कबीर को बताया। कबीर पंथ के लोग को कबीर पंथी कहे जाते है जो पूरे उत्तर और मध्य भारत में फैले हुए है। संत कबीर के लिखे कुछ महान रचनाओं में बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रंथ आदि है। ये स्पष्ट नहीं है कि उनके माता-पिता कौन थे लेकिन ऐसा सुना गया है कि उनकी परवरिश करने वाला कोई बेहद गरीब मुस्लिम बुनकर परिवार था। कबीर बेहद धार्मिक व्यक्ति थे और एक महान साधु बने। अपने प्रभावशाली परंपरा और संस्कृति से उन्हें विश्व प्रसिद्धि मिली।
ऐसा माना जाता है कि अपने बचपन में उन्होंने अपनी सारी धार्मिक शिक्षा रामानंद नामक गुरु से ली। और एक दिन वो गुरु रामानंद के अच्छे शिष्य के रुप में जाने गये। उनके महान कार्यों को पढ़ने के लिये अध्येता और विद्यार्थी कबीर दास के घर में ठहरते है।
इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि उनके असली माता-पिता कौन थे लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनका लालन-पालन एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनको नीरु और नीमा (रखवाला) के द्वारा वाराणसी के एक छोटे नगर से पाया गया था। कबीर के माँ-बाप बेहद गरीब और अनपढ़ थे लेकिन उन्होंने कबीर को पूरे दिल से स्वीकार किया और खुद के व्यवसाय के बारे में शिक्षित किया। उन्होंने एक सामान्य गृहस्वामी और एक सूफी के संतुलित जीवन को जीया।
कबीर दास का अध्यापन
ये माना जाता है कि उन्होंने अपनी धार्मिक शिक्षा गुरु रामानंद से ली। शुरुआत में रामानंद कबीर दास को अपने शिष्य के रुप में लेने को तैयार नहीं थे। लेकिन बाद की एक घटना ने रामानंद को कबीर को शिष्य बनाने में अहम भूमिका निभायी। एक बार की बात है, संत कबीर तालाब की सीढ़ियों पर लेटे हुए थे और रामा-रामा का मंत्र पढ़ रहे थे, रामानंद भोर में नहाने जा रहे थे और कबीर उनके पैरों के नीचे आ गये इससे रामानंद को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे कबीर को अपने शिष्य के रुप में स्वीकार करने को मजबूर हो गये। ऐसा माना जाता है कि कबीर जी का परिवार आज भी वाराणसी के कबीर चौरा में निवास करता है।
वाराणसी में संत कबीर मठ की फोटो है जहाँ संत लोग कबीर के दोहे गाने में व्यस्त है। लोगों को जीवन की सच्ची शिक्षा देने के लिये ये एक अच्छी जगह है।
कबीर मठ वाराणसी के कबीर चौरा में स्थित है और लहरतारा, वाराणसी के पीछे के मार्ग में। नीरुटीला उनके माता-पिता नीरु और नीमा का घर था। अब ये घर विद्यार्थीयों और अध्येताओं के ठहरने की जगह बन चुकी है जो कबीर की रचनाओं को पढ़ते है।
दर्शनशास्त्र
हिन्दू धर्म, इस्लाम के बिना छवि वाले भगवान के साथ व्यक्तिगत भक्तिभाव के साथ ही तंत्रवाद जैसे उस समय के प्रचलित धार्मिक स्वाभाव के द्वारा कबीर दास के लिये पूर्वाग्रह था, कबीर दास पहले भारतीय संत थे जिन्होंने हिन्दू और इस्लाम धर्म को सार्वभौमिक रास्ता दिखा कर समन्वित किया जिसे दोनों धर्म के द्वारा माना गया। कबीर के अनुसार हर जीवन का दो धार्मिक सिद्धातों से रिश्ता होता है (जीवात्मा और परमात्मा)। मोक्ष के बारे में उनका विचार था कि ये इन दो दैवीय सिद्धांतों को एक करने की प्रक्रिया है।
उनकी महान रचना बीजक में कविताओं की भरमार है जो कबीर के धार्मिकता पर सामान्य विचार को स्पष्ट करता है। कबीर की हिन्दी उनके दर्शन की तरह ही सरल और प्राकृत थी। वो ईश्वर में एकात्मकता का अनुसरण करते थे। वो हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे और भक्ति तथा सूफ़ी विचारों में पूरा भरोसा दिखाते थे।
कबीर की कविताएँ
सच्चे गुरु की प्रशंसा से गुंजायमान लघु और सहज तरीकों से कविताओं को उन्होंने बनाया था। अनपढ़ होने के बावजूद भी उन्होंने अवधि, ब्रज, और भोजपुरी के साथ हिन्दी में अपनी कविता लिखी थी। वे कुछ लोगों द्वारा अपमानित किये गये लेकिन उन्होंने कभी बुरा नहीं माना।
कबीर के द्वारा रचित सभी कविताएँ और गीत कई सारी भाषाओं में मौजूद है। कबीर और उनके अनुयायियों को उनके काव्यगत धार्मिक भजनों के अनुसार नाम दिया जाता है जैसे बनिस और बोली। विविध रुप में उनके कविताओं को साखी, श्लोक (शब्द) और दोहे (रमेनी) कहा जाता है। साखी का अर्थ है परम सत्य को दोहराते और याद करते रहना। इन अभिव्यक्तियों का स्मरण, कार्य करना और विचारमग्न के द्वारा आध्यात्मिक जागृति का एक रास्ता उनके अनुयायियों और कबीर के लिये बना हुआ है।
कबीर दास का जीवन इतिहास
सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मुलगड़ी और उसकी परंपरा
कबीरचौरा मठ मुलगड़ी संत-शिरोमणि कबीर दास का घर, ऐतिहासिक कार्यस्थल और ध्यान लगाने की जगह है। वे अपने प्रकार के एकमात्र संत है जो “सब संतन सरताज” के रुप में जाने जाते है। ऐसा माना जाता है कि जिस तरह संत कबीर के बिना सभी संतों का कोई मूल्य नहीं उसी तरह कबीरचौरा मठ मुलगड़ी के बिना मानवता का इतिहास मूल्यहीन है। कबीरचौरा मठ मुलगड़ी का अपना समृद्ध परंपरा और प्रभावशाली इतिहास है। ये कबीर के साथ ही सभी संतों के लिये साहसिक विद्यापीठ है । मध्यकालीन भारत के भारतीय संतों ने इसी जगह से अपनी धार्मिक शिक्षा प्राप्त की थी। मानव परंपरा के इतिहास में ये साबित हुआ है कि गहरे चिंतन के लिये हिमालय पर जाना जरुरी नहीं है बल्कि इसे समाज में रहते हुए भी किया जा सकता है। कबीर दास खुद इस बात के आदर्श संकेतक थे। वो भक्ति के सच्चे प्रचारक थे साथ ही उन्होंने आमजन की तरह साधारण जीवन लोगों के साथ जीया। पत्थर को पूजने के बजाय उन्होंने लोगों को स्वतंत्र भक्ति का रास्ता दिखाया। इतिहास गवाह है कि यहाँ की परंपरा ने सभी संतों को सम्मान और पहचान दी।
कबीर और दूसरे संतों के द्वारा उनकी परंपरा के इस्तेमाल किये गये वस्तुओं को आज भी कबीर मठ में सुरक्षित तरीके से रखा गया है। सिलाई मशीन, खड़ाऊ, रुद्राक्ष की माला (रामानंद से मिली हुयी), जंग रहित त्रिशूल और इस्तेमाल की गयी दूसरी सभी चीजें इस समय भी कबीर मठ में उपलब्ध है।
ऐतिहासिक कुआँ
कबीर मठ में एक ऐतिहासिक कुआँ है, जिसके पानी को उनकी साधना के अमृत रस के साथ मिला हुआ माना जाता है। दक्षिण भारत से महान पंडित सर्वानंद के द्वारा पहली बार ये अनुमान लगाया गया था। वो यहाँ कबीर से बहस करने आये थे और प्यासे हो गये। उन्होंने पानी पिया और कमाली से कबीर का पता पूछा। कमाली नें कबीर के दोहे के रुप में उनका पता बताया।
“कबीर का शिखर पर, सिलहिली गाल
पाँव ना टिकाई पीपील का, पंडित लड़े बाल”
वे कबीर से बहस करने गये थे लेकिन उन्होंने बहस करना स्वीकार नहीं किया और सर्वानंद को लिखित देकर अपनी हार स्वीकार की। सर्वानंद वापस अपने घर आये और हार की उस स्वीकारोक्ति को अपने माँ को दिखाया और अचानक उन्होंने देखा कि उनका लिखा हुआ उल्टा हो चुका था। वो इस सच्चाई से बेहद प्रभावित हुए और वापस से काशी के कबीर मठ आये बाद में कबीर दास के अनुयायी बने। वे कबीर से इस स्तर तक प्रभावित थे कि अपने पूरे जीवन भर उन्होंने कभी कोई किताब नहीं छुयी। बाद में, सर्वानंद आचार्य सुरतीगोपाल साहब की तरह प्रसिद्ध हुए। कबीर के बाद वे कबीर मठ के प्रमुख बने।
कैसे पहुँचे:
सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मुलगड़ी वाराणसी के रुप में जाना जाने वाला भारत के प्रसिद्ध सांस्कृतिक शहर में स्थित है। कोई भी यहाँ हवाईमार्ग, रेलमार्ग या सड़कमार्ग से पहुँच सकता है। ये वाराणसी हवाई अड्डे से 18 किमी और वाराणसी रेलवे स्टेशन से 3 किमी की दूरी पर स्थित है।
काशी नरेश यहाँ क्षमा माँगने आये थे:
एक बार की बात है, काशी नरेश राजा वीरदेव सिंह जुदेव अपना राज्य छोड़ने के दौरान माफी माँगने के लिये अपनी पत्नी के साथ कबीर मठ आये थे। कहानी ऐसे है कि: एक बार काशी नरेश ने कबीर दास की ढ़ेरों प्रशंसा सुनकर सभी संतों को अपने राज्य में आमंत्रित किया, कबीर दास राजा के यहाँ अपनी एक छोटी सी पानी के बोतल के साथ पहुँचे। उन्होंने उस छोटे बोतल का सारा पानी उनके पैरों पर डाल दिया, कम मात्रा का पानी देर तक जमीन पर बहना शुरु हो गया। पूरा राज्य पानी से भर उठा, इसलिये कबीर से इसके बारे में पूछा गया उन्होंने कहा कि एक भक्त जो जगन्नाथपुरी में खाना बना रहा था उसकी झोपड़ी में आग लग गयी।
जो पानी मैंने गिराया वो उसके झोपड़ी को आग से बचाने के लिये था। आग बहुत भयानक थी इसलिये छोटे बोतल से और पानी की जरुरत हो गयी थी। लेकिन राजा और उनके अनुयायी इस बात को स्वीकार नहीं किया और वे सच्चा गवाह चाहते थे। उनका विचार था कि आग लगी उड़ीसा में और पानी डाला जा रहा है काशी में। राजा ने अपने एक अनुगामी को इसकी छानबीन के लिये भेजा। अनुयायी आया और बताया कि कबीर ने जो कहा था वो बिल्कुल सत्य था। इस बात के लिये राजा बहुत शर्मिंदा हुए और तय किया कि वो माफी माँगने के लिये अपनी पत्नी के साथ कबीर मठ जाएँगे। अगर वो माफी नहीं देते है तो वो वहाँ आत्महत्या कर लेंगे। उन्हें वहाँ माफी मिली और उस समय से राजा कबीर मठ से हमेशा के लिये जुड़ गये।
समाधि मंदिर:
समाधि मंदिर वहाँ बना है जहाँ कबीर दास अक्सर अपनी साधना किया करते थे। सभी संतों के लिये यहाँ समाधि से साधना तक की यात्रा पूरी हो चुकी है। उस दिन से, ये वो जगह है जहाँ संत अत्यधिक ऊर्जा के बहाव को महसूस करते है। ये एक विश्व प्रसिद्ध शांति और ऊर्जा की जगह है। ऐसा माना जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद लोग उनके शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर झगड़ने लगे। लेकिन जब समाधि कमरे के दरवाजे को खोला गया, तो वहाँ केवल दो फूल थे जो अंतिम संस्कार के लिये उनके हिन्दू और मुस्लिम अनुयायियों के बीच बाँट दिया गया। मिर्ज़ापुर के मोटे पत्थर से समाधि मंदिर का निर्माण किया गया है।
कबीर चबूतरा पर बीजक मंदिर:
ये जगह कबीर दास का कार्यस्थल होने के साथ साधना स्थल भी था। ये वो जगह है जहाँ कबीर ने अपने अनुयायियों को भक्ति, ज्ञान, कर्म और मानवता की शिक्षा दी। इस जगह का नाम रखा गया कबीर चबूतरा। बीजक कबीर दास की महान रचना थी इसी वजह से कबीर चबूतरा का नाम बीजक मंदिर रखा गया।
कबीर तेरी झोपड़ी, गलकट्टो के पास।
जो करेगा वो भरेगा, तुम क्यों होत उदास।
देश के लिये कबीर दास का योगदान
उत्तर भारत में अपने भक्ति आंदोलन के लिये बड़े पैमाने पर मध्यकालीन भारत के एक भक्ति और सूफी संत थे कबीर दास। इनका जीवन चक्र काशी (इसको बनारस या वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है) के केन्द्र में था। वो माता-पिता की वजह से बुनकर व्यवसाय से जुड़े थे और जाति से जुलाहा थे। इनके भक्ति आंदोलन के लिये दिये गये विशाल योगदान को भारत में नामदेव, रविदास, और फरीद के साथ पथप्रदर्शक के रुप में माना जाता है। वे मिश्रित आध्यात्मिक स्वाभाव के संत थे (नाथ परंपरा, सूफिज्म, भक्ति) जो खुद से उन्हंट विशिष्ट बनाता है। उन्होंने कहा है कि कठिनाई की डगर सच्चा जीवन और प्यार है।
15वीं शताब्दी में, वाराणसी में लोगों के जीवन के सभी क्षेत्रों में शिक्षण केन्द्रों के साथ ही ब्राह्मण धर्मनिष्ठता के द्वारा मजबूती से संघटित हुआ था। जैसा कि वे एक निम्न जाति जुलाहा से संबंध रखते थे कबीर दास अपने विचारों को प्रचारित करने में कड़ी मेहनत करते थे। वे कभी भी लोगों में भेदभाव नहीं करते थे चाहे वो वैश्या, निम्न या उच्च जाति से संबंध रखता हो। वे खुद के अनुयायियों के साथ सभी को एक साथ उपदेश दिया करते थे। ब्राह्मणों द्वारा उनका अपने उपदेशों के लिये उपहास उड़ाया जाता था लेकिन वे कभी उनकी बुराई नहीं करते थे इसी वजह से कबीर सामान्य जन द्वारा बहुत पसंद किये जाते थे। वे अपने दोहो के द्वारा जीवन की असली सच्चाई की ओर आम-जन के दिमाग को ले जाने की शुरुआत कर चुके थे।
वे हमेशा मोक्ष के साधन के रुप में कर्मकाण्ड और सन्यासी तरीकों का विरोध करते थे। उन्होंने कहा कि अपनों के लाल रंग से ज्यादा महत्व है अच्छाई के लाल रंग का। उनके अनुसार, अच्छाई का एक दिल पूरी दुनिया की समृद्धि को समाहित करता है। एक व्यक्ति दया के साथ मजबूत होता है, क्षमा उसका वास्तविक अस्तित्व है तथा सही के साथ कोई व्यक्ति कभी न समाप्त होने वाले जीवन को प्राप्त करता है। कबीर ने कहा कि भगवान आपके दिल में है और हमेशा साथ रहेगा। तो उनकी भीतरी पूजा कीजिये। उन्होंने अपने एक उदाहरण से लोगों का दिमाग परिवर्तित कर दिया कि अगर यात्रा करने वाला चलने के काबिल नहीं है, तो यात्री के लिये रास्ता क्या करेगा।
उन्होंने लोगों की आँखों को खोला और उन्हें मानवता, नैतिकता और धार्मिकता का वास्तविक पाठ पढ़ाया। वे अहिंसा के अनुयायी और प्रचारक थे। उन्होंने अपने समय के लोगों के दिमाग को अपने क्रांतिकारी भाषणों से बदल दिया। कबीर के पैदा होने और वास्तविक परिवार का कोई पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं है। कुछ कहते है कि वो मुस्लिम परिवार में जन्मे थे तो कोई कहता है कि वो उच्च वर्ग के ब्राह्मण परिवार से थे। उनके निधन के बाद हिन्दू और मुस्लिमों में उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हो गया था। उनका जीवन इतिहास प्रसिद्ध है और अभी तक लोगों को सच्ची इंसानियत का पाठ पढ़ाता है।
कबीर दास का धर्म
कबीर दास के अनुसार, जीवन जीने का तरीका ही असली धर्म है जिसे लोग जीते है ना कि वे जो लोग खुद बनाते है। उनके अनुसार कर्म ही पूजा है और जिम्मेदारी ही धर्म है। वे कहते थे कि अपना जीवन जीयो, जिम्मेदारी निभाओ और अपने जीवन को शाश्वत बनाने के लिये कड़ी मेहनत करो। कभी भी जीवन में सन्यासियों की तरह अपनी जिम्मेदारियों से दूर मत जाओ। उन्होंने पारिवारिक जीवन को सराहा है और महत्व दिया है जो कि जीवन का असली अर्थ है। वेदों में यह भी उल्लिखित है कि घर छोड़ कर जीवन को जीना असली धर्म नहीं है। गृहस्थ के रुप में जीना भी एक महान और वास्तविक सन्यास है। जैसे, निर्गुण साधु जो एक पारिवारिक जीवन जीते है, अपनी रोजी-रोटी के लिये कड़ी मेहनत करते है और साथ ही भगवान का भजन भी करते है।
कबीर ने लोगों को विशुद्ध तथ्य दिया कि इंसानियत का क्या धर्म है जो कि किसी को अपनाना चाहिये। उनके इस तरह के उपदेशों ने लोगों को उनके जीवन के रहस्य को समझने में मदद किया।
कबीर दास: एक हिन्दू या मुस्लिम
ऐसा माना जाता है कि कबीर दास के मृत्यु के बाद हिन्दू और मुस्लिमों ने उनके शरीर को पाने के लिये अपना-अपना दावा पेश किया। दोनों धर्मों के लोग अपने रीति-रिवाज़ और परंपरा के अनुसार कबीर का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। हिन्दुओं ने कहा कि वो हिन्दू थे इसलिये वे उनके शरीर को जलाना चाहते है जबकि मुस्लिमों ने कहा कि कबीर मुस्लिम थे इसलिये वो उनको दफनाना चाहते है।
लेकिन जब उन लोगों ने कबीर के शरीर पर से चादर हटायी तो उन्होंने पाया कि कुछ फूल वहाँ पर पड़े है। उन्होंने फूलों को आपस में बाँट लिया और अपने-अपने रीति-रिवाजों से महान कबीर का अंतिम संस्कार संपन्न किया। ऐसा भी माना जाता है कि जब दोनों समुदाय आपस में लड़ रहे थे तो कबीर दास की आत्मा आयी और कहा कि “ना ही मैं हिन्दू हूँ और ना ही मैं मुसलमान हूँ। यहाँ कोई हिन्दू या मुसलमान नहीं है। मैं दोनों हूँ, मैं कुछ नहीं हूँ, और सब हूँ। मैं दोनों मे भगवान देखता हूँ। उनके लिये हिन्दू और मुसलमान एक है जो इसके गलत अर्थ से मुक्त है। परदे को हटाओ और जादू देखो”।
कबीर दास का मंदिर काशी के कबीर चौराहा पर बना है जो भारत के साथ ही विदेशी सैलानियों के लिये भी एक बड़े तीर्थस्थान के रुप में प्रसिद्ध हो गया है। मुस्लिमों द्वारा उनके कब्र पर एक मस्जिद बनायी गयी है जो मुस्लिमों के तीर्थस्थान के रुप में बन चुकी है।
कबीर दास के भगवान
कबीर के गुरु रामानंद ने उन्हें गुरु मंत्र के रुप में भगवान ‘रामा’ नाम दिया था जिसका उन्होंने अपने तरीके से अर्थ निकाला था। वे अपने गुरु की तरह सगुण भक्ति के बजाय निर्गुण भक्ति को समर्पित थे। उनके रामा संपूर्ण शुद्ध सच्चदानंद थे, दशरथ के पुत्र या अयोध्या के राजा नहीं जैसा कि उन्होंने कहा “दशरथ के घर ना जन्में, ई चल माया किनहा”। वो इस्लामिक परंपरा से ज्यादा बुद्धा और सिद्धा से बेहद प्रभावित थे। उनके अनुसार “निर्गुण नाम जपो रहे भैया, अविगति की गति लाखी ना जैया”।
उन्होंने कभी भी अल्लाह या राम में फर्क नहीं किया, कबीर हमेशा लोगों को उपदेश देते कि ईश्वर एक है बस नाम अलग है। वे कहते है कि बिना किसी निम्न और उच्च जाति या वर्ग के लोगों के बीच में प्यार और भाईचारे का धर्म होना चाहिये। ऐसे भगवान के पास अपने आपको समर्पित और सौंप दो जिसका कोई धर्म नहीं हो। वो हमेशा जीवन में कर्म पर भरोसा करते थे।
कबीर दास की मृत्यु
15 शताब्दी के सूफी कवि कबीर दास के बारे में ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने मरने की जगह खुद से चुनी थी, मगहर , जो लखनउ शहर से 240 किमी दूरी पर स्थित है। लोगों के दिमाग से मिथक को हटाने के लिये उन्होंने ये जगह चुनी थी उन दिनों, ऐसा माना जाता था कि जिसकी भी मृत्यु मगहर में होगी वो अगले जन्म में बंदर बनेगा और साथ ही उसे स्वर्ग में जगह नहीं मिलेगी। कबीर दास की मृत्यु काशी के बजाय मगहर में केवल इस वजह से हुयी थी क्योंकि वो वहाँ जाकर लोगों के अंधविश्वास और मिथक को तोड़ना चाहते थे। 1575 विक्रम संवत में हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ शुक्ल एकादशी के वर्ष 1518 में जनवरी के महीने में मगहर में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। ऐसा भी माना जाता है कि जो कोई भी काशी में मरता है वो सीधे स्वर्ग में जाता है इसी वजह से मोक्ष की प्राप्ति के लिये हिन्दू लोग अपने अंतिम समय में काशी जाते है। एक मिथक को मिटाने के लिये कबीर दास की मृत्यु काशी के बाहर हुयी। इससे जुड़ा उनका एक खास कथन है कि “जो कबीरा काशी मुएतो रामे कौन निहोरा” अर्थात अगर स्वर्ग का रास्ता इतना आसान होता तो पूजा करने की जरुरत क्या है।
कबीर दास का शिक्षण व्यापक है और सभी के लिये एक समान है क्योंकि वो हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और दूसरे किसी धर्मों में भेदभाव नहीं करते थे। मगहर में कबीर दास की समाधि और मज़ार दोनों है। कबीर की मृत्यु के बाद हिन्दू और मुस्लिम धर्म के लोग उनके अंतिम संस्कार के लिये आपस में भिड़ गये थे। लेकिन उनके मृत शरीर से जब चादर हटायी गयी तो वहाँ पर कुछ फूल पड़े थे जिसे दोनों समुदायों के लोगों ने आपस में बाँट लिया और फिर अपने अपने धर्म के अनुसार कबीर जी का अंतिम संस्कार किया।
समाधि से कुछ मीटर दूरी पर एक गुफा है जो मृत्यु से पहले उनके ध्यान लगाने की जगह को इंगित करती है। उनके नाम से एक ट्रस्ट चल रहा है जिसका नाम है कबीर शोध संस्थान जो कबीर दास के कार्यों पर शोध को प्रचारित करने के लिये शोध संस्थान के रुप में है। वहाँ पर शिक्षण संस्थान भी है जो कबीर दास के शिक्षण को भी समाहित किया हुआ है।
कबीर दास: एक सूफी संत
भारत में मुख्य आध्यात्मिक कवियों में से एक कबीर दास महान सूफी संत थे जो लोगों के जीवन को प्रचारित करने के लिये अपने दार्शनिक विचार दिये। उनका दर्शन कि ईश्वर एक है और कर्म ही असली धर्म है ने लोगों के दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी। उनका भगवान की ओर प्यार और भक्ति ने हिन्दू भक्ति और मुस्लिम सूफी के विचार को पूरा किया।
ऐसा माना जाता है कि उनका संबंध हिन्दू ब्राह्मण परिवार से था लेकिन वे बिन बच्चों के मुस्लिम परिवार नीरु और नीमा द्वारा अपनाये गये थे । उन्हें उनके माता-पिता द्वारा काशी के लहरतारा में एक तालाब में बड़े से कमल के पत्ते पर पाया गया था। उस समय दकियानूसी हिन्दू और मुस्लिम लोगों के बीच में बहुत सारी असहमति थी जो कि अपने दोहों के द्वारा उन मुद्दों को सुलझाना कबीर दास का मुख्य केन्द्र बिन्दु था
पेशेवर ढ़ग से वो कभी कक्षा में नहीं बैठे लेकिन वो बहुत ज्ञानी और अध्यात्मिक व्यक्ति थे। कबीर ने अपने दोहे औपचारिक भाषा में लिखे जो उस समय अच्छी तरह से बोली जाती थी जिसमें ब्रज, अवधि और भोजपुरी समाहित थी। उन्होंने बहुत सारे दोहे तथा सामाजिक बंधंनों पर आधारित कहानियों की किताबें लिखी।
कबीर दास की रचनाएँ
कबीर के द्वारा लिखी गयी पुस्तकें सामान्यत: दोहा और गीतों का समूह होता था। संख्या में उनका कुल कार्य 72 था और जिसमें से कुछ महत्पूर्ण और प्रसिद्ध कार्य है जैसे रक्त, कबीर बीजक, सुखनिधन, मंगल, वसंत, शब्द, साखी, और होली अगम।
कबीर की लेखन शैली और भाषा बहुत सुंदर और साधारण होती है। उन्होंने अपना दोहा बेहद निडरतापूर्वक और सहज रुप से लिखा है जिसका कि अपना अर्थ और महत्व है। कबीर ने दिल की गहराईयों से अपनी रचनाओं को लिखा है। उन्होंने पूरी दुनिया को अपने सरल दोहों में समेटा है। उनका कहा गया किसी भी तुलना से ऊपर और प्रेरणादायक है।
कबीर दास की जन्मस्थली
वाराणसी के लहरतारा में संत कबीर मठ में एक तालाब है जहाँ नीरु और नीमा नामक एक जोड़े ने कबीर को पाया था।
ये शांति और सच्ची शिक्षण की महान इमारत है जहाँ पूरी दुनिया के संत वास्तविक शिक्षा की खातिर आते है।
कबीर दास के दोहे
“जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नहीं
सब अंधियाँरा मिट गया, जब दीपक देखया महीन”
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर”
“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिला कोय
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा ना कोय”
“गुरु गोविन्द दोहू खड़े, कागे लागू पाँय
बलीहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय”
“सब धरती कागज कारु, लेखनी सब वनराय
सात समुन्द्र की मासी कारु, गुरुगुन लिखा ना जाय”
“ऐसी वानी बोलिये, मन का आपा खोय
औरन को शीतल करुँ, खुद भी शीतल होय”
“निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय
बिन पानी बिन साबुन, निर्मल करे सुबव”
“दुख में सिमरन सब करे, सुख में करे ना कोय
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय”
“माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंधे मोहे
एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौंधुगी तोहे”
“चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय
दो पातन के बीच में, साबुत बचा ना कोय”
“मलिन आवत देख के, कलियाँ करे पुकार
फूले फूले चुन लिये, काल हमारी बार”
“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में परलय होयेगी बहुरी करेगा कब”
“पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय
ढ़ाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय”
“साईं इतना दीजीये, जा में कुटुम्ब समाय
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधू ना भूखा जाय”
“लूट सके लूट ले, राम नाम की लूट
पाछे पछताएगा, जब प्रान जाएँगे छुट”
“माया मरी ना मन मरा, मर मर गये शरीर
आशा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर”
संबंधित पोस्ट
संत रविदास की जीवनी – biography of sant ravidas in hindi, बाल गंगाधर तिलक, राम प्रसाद बिस्मिल, सुभाष चन्द्र बोस, लाला लाजपत राय.
- Couplets of Kabir - Kabir ke Dohe with translations
On Kabir
Top 10 dohas of kabir, maati kahe kumhaar se - sant kabir dohas, additional dohas from kabir, fun with kabir and software engineer.
Great compilation!! I have bookmarked it since there is a lot to read. Any pointers for modern day translation of Hari Awadhji or Swami Ram Tirth’s poems?
Very good compilation! Helped me find words of a doha I heard...
Related Articles
Shivpreet singh.
Related Posts
Popular - 30 days.
Blog Archive
- ► September (1)
- ► August (4)
- ► July (2)
- ► June (3)
- ► May (1)
- ► April (1)
- ► February (1)
- ► January (1)
- ► December (4)
- ► November (3)
- ► October (4)
- ► September (7)
- ► August (5)
- ► July (7)
- ► May (3)
- ► March (1)
- ► February (3)
- ► March (2)
- ► January (5)
- ► December (15)
- ► November (2)
- ► October (6)
- ► August (2)
- ► July (4)
- ► May (21)
- ► April (21)
- ► March (35)
- ► February (23)
- ► January (3)
- ► December (2)
- ► November (13)
- ► October (31)
- ► September (47)
- ► August (37)
- ► July (5)
- ► April (3)
- ► January (2)
- ► December (5)
- ► November (8)
- ► October (14)
- ► September (4)
- ► July (3)
- ► June (1)
- ► May (2)
- ► December (8)
- ► November (5)
- ► October (3)
- ► August (6)
- ► June (4)
- ► May (6)
- ► April (5)
- ► February (4)
- ► November (12)
- ► October (8)
- ► August (7)
- ► July (6)
- ► June (12)
- ► May (5)
- ► April (4)
- ► March (7)
- Complete Diwan-e-Goya Bhai Nand Lal Goya in Punjab...
- Kabir on the hypocrisy of the world
- ► December (1)
- ► November (9)
- ► October (16)
- ► September (19)
- ► June (7)
- ► April (18)
- ► March (34)
- ► February (16)
- ► January (11)
- ► November (1)
- ► October (2)
- ► September (12)
- ► August (1)
- ► April (7)
- ► November (6)
- ► October (1)
- ► July (1)
- ► June (11)
- ► April (10)
- ► March (15)
- ► February (24)
- ► January (36)
- ► December (13)
- ► October (5)
- ► September (3)
- ► August (3)
- ► May (62)
- ► April (79)
- ► March (12)
- ► January (35)
- ► December (29)
- ► November (31)
- ► October (44)
- ► September (5)
- ► August (9)
- ► March (4)
- ► February (9)
- ► September (13)
- ► August (28)
- ► July (44)
- ► June (33)
- ► May (15)
- ► April (2)
- ► March (45)
- ► February (43)
- ► January (23)
- ► December (31)
- ► November (20)
- ► September (2)
- ► June (5)
- ► November (4)
Enjoy this post? Rate it!
Kabir Das ke Dohe | Top 10 dohe and their meanings in English
Kabir das, a seminal poet in india’s bhakti movement, imparted profound sayings known as kabir das ke dohe. these timeless couplets, brimming with deep insights, remain relevant today. this article highlights some of his most celebrated dohe, renowned for their philosophical depth and enduring wisdom., table of contents, who was kabir das , what is a doha .
- 1. बडा हुआ तो क्या हुआ जसै ेपेड़ खजर।ू
पंथी को छाया नही फल लागेअति दरू ॥
2. कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगेखरै. .
- ना काहूसेदोस्ती, ना काहूसेबरै.
3. कहेकबीर कैसेनिबाहे, केर बेर को संग
वह झूमत रस आपनी, उसकेफाटत अगं . .
- 4. तिनका कबहूँन निदिं येजो पावन तर होए
कभूउडी अखिँ याँपरेतो पीर घनेरी होए
5. साँई इतना दीजिए जामेंकुटुंब समाय । .
- मैंभी भखा ू ना रहूँसाधुन भखा ु जाय॥
6. माटी कहेकुम्हार से, तुक्या रौंदेमोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैंरौंदगी ू तोय ॥ , 7. माला फेरत जगु भया, फिरा न मन का फेर । , कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥ , 8. गुरु गोविदं दोनों खड़, ेकाकेलागंूपाँय । , बलिहारी गुरु आपनो, गोविदं दियो मिलाय ॥ , 9. पाथर पजू ेहरि मिले , तो मैंपजू ूपहाड़ . , घर की चाकी कोई ना पजू े, जाको पीस खाए संसार , 10. अति का भला न बोलना, अति की भली न चपू , , अति का भला न बरसना, अति की भली न धप। ू , key takeaways .
As human beings, we often find ourselves amidst challenging circumstances and may not know how to approach a particular situation or what the right attitude should be when facing a situation like that. Whenever you find yourself in such a dilemma, you must read Kabir Das ke dohe. He can give you clarity of thoughts and help you understand the real meaning of life.
In this exploration of Kabir Das’s timeless wisdom, we delve into how his teachings, articulated in vernacular Hindi, are gaining prominence in Western universities. This surge in interest not only highlights the growing appeal of Hindi language globally but also underscores Kabir’s universal messages of truth and righteousness, resonating across cultures and academic discussions.
Kabir Das was a 15th-century Indian poet and saint. He was born in Varanasi, Uttar Pradesh. Despite being a Muslim, he was deeply influenced by Swami Ramananda, his teacher and the founder of the Hindu Bhakti Movement. Sant Kabir Das ke dohe (couplets) influenced the Bhakti Movement. The verses he wrote are found in Sikhism’s scripture Guru Granth Sahib as well. He was not only a poet but also an eminent social reformer. He questioned while also critically viewing the meaningless and unethical practices of all religions, particularly Hinduism and Islam.
Besides, Kabir believed in the virtue of truth. He asked everyone to follow the path of righteousness and said serving others serves God. Kabir Das’s legacy continues through the Kabir Panth community. People of this community consider the principles and teachings of Kabir as the basis of their life.
Doha is an age-old form of lyrical verse extensively used by Indian poets. It has been practiced since the beginning of the 6th century A.D. Doha is an independent verse, a couplet, and its meaning is complete in itself.
Kabir Das ke Dohe with meaning
1. बडा ह ु आ तो क्या ह ु आ जसै ेपेड़ खजर।ू .
Meaning – It is of no use being very big or rich if you don’t do any good to others. For example, a palm tree is so tall; however, it is of no use to a traveler because it provides no shade, and the fruit is also at the top. Thus, none can eat it easily.
ना काह ू सेदोस्ती , ना काह ू सेबरै.
Meaning – One should always think well of everyone. There is no need to be over-friendly with anyone, nor should you be hostile to anyone.
Meaning – People who are different cannot live together. If bananas and ber (jujube) trees are planted near each other, the ber tree will swing in the air, whereas banana tree leaves will get torn by its thorns.
4. तिनका कबह ू ँन निदिं येजो पावन तर होए
Meaning – You should not oppress the weak , as you should not trample a speck. When that weak person counterattacks, it will be very painful. Just like a speck of dust in the eye can cause a lot of discomfort.
मैंभी भखा ू ना रह ू ँसाधुन भखा ु जाय॥
Meaning – Kabir requests the almighty to give him only as much as required to feed his family and if any guest comes, then he should be able to feed him too. It means you should only have what you need as there is no use in having too much.
Meaning – The soil tells the pot maker that you think you are kicking and kneading me with your feet but there will be a day when you will be below me (buried after death) and I will knead you.
Meaning – This is sarcasm on people who are blind followers of a religion. Kabir says you spent your life turning the beads of the rosary but could not turn your own heart. Leave the rosary and try to change the evil in your heart.
Meaning – A teacher is even greater than God. Kabir quips that if the teacher and the god are both in front of him, who will he greet first? The teacher’s teaching has made it possible for him to see the god.
Meaning – Kabir says people worship idols made from stone. If it was possible to reach the god this way, then he would worship the mountain. But, no one worships the home flour mill (chakki) which gives us the flour to eat.
Meaning – Kabir Das says that too much of anything is not good. One must exercise control and be moderate in everything. Too much talking is not good, and neither is too much quietness. Just like how too much rain is not good, nor is too much sunshine.
- Sant Kabir Das’ sayings are priceless. They stand true to date and people continue to read his couplets and apply the knowledge in real life.
- Kabir Das ji ke dohe are enlightening and pure teachings of life.
- They play a significant role in defining your perception, judgment, and behavior.
- Kabir Das’ sayings were primarily about one faith and religion and he discarded all kinds of discrimination. He taught a lesson of brotherhood to Hindus and Muslims.
- Kabir says that it is possible to get salvation only through Bhakti or devotion.
We hope you enjoyed reading this blog. In case of assistance, reach out to us or drop a comment below!
Liked this blog? Read next: 12 motivational quotes in Hindi for students to succeed!
1. Which are some books where I can find more about Kabir Das ke Dohe?
Answer- “Couplets from Kabir Das,” “Bijak,” “Kabira Vani,” and “Songs of Kabir,” are some of the books which you can buy and read.
2. What was the main message of Kabir Das?
Answer- Kabir Das had the simplest message of love and fraternity. He strongly believed there is only one god, which was the core of his teachings.
3. Was Kabir Das actively involved in the Bhakti Movement?
Answer- Yes, Kabir Das played a pivotal role in the Bhakti Movement. He was the one who voiced his opinions against evil traditions like Sati and child marriage which were bad for society.
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 4.1 / 5. Vote count: 127
No votes so far! Be the first to rate this post.
People also liked
Need of motivational quotes for students to study hard
Top quotes to wish luck for exam
10 incredible top women CTOs to follow
Top 9 famous philosophers of the 1900s
Top 10 YouTubers in India
100 famous quotes and thoughts in English to brighten your day!
Leave a reply cancel reply.
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Please enter an answer in digits: three + 19 =
Start your journey with iSchoolConnect
Need help with your study abroad applications? Try iSchoolConnect for free!
- Study in USA
- Study in UK
- Study in Canada
- Study in Australia
- Study in France
- Study in Netherlands
- Study in Ireland
- Study in Germany
- Study in New Zealand
- GRE Exam 2024
- GMAT Exam 2024
- IELTS Exam 2024
- TOEFL Exam 2024
- SAT Exam 2024
- PTE Exam 2024
- Study Abroad Consultant in Bangalore
- Study Abroad Consultant in Delhi
- Study Abroad Consultant in Mumbai
- Study Abroad Consultant in Noida
- Study Abroad Consultant in Gurgaon
- Student visa for USA 2024
- Student visa for Canada 2024
- Student visa for UK 2024
- How to choose a university for study abroad
- How to choose a career?
- University interview tips
- How to apply?
- Letter of Recommendation (LOR)
- Essay and Statement of Purpose (SOP)
- Study abroad Document checklist
- Finance documents for study abroad
- Cost of studying abroad
- How to apply for abroad scholarships
- Types of scholarships for study abroad
- Student loan for Study abroad
- Accommodation Abroad
- Part-time jobs in abroad
Where to Study?
Tests and Preparation
Study Abroad Near Me
Visa Process
Programs and Universities
Application Process
Fees and Finances
- IAS Preparation
- UPSC Preparation Strategy
Sant Kabir Das Jayanti
Sant Kabir Das was one among the foremost influential saints. He was a 15th-century Indian mystic poet, whose writings influenced the Bhakti movement .
This article will provide relevant information on Sant Kabir Das for candidates preparing for the IAS exam as recently there was news related to Sant Kabir Das.
Sant Kabir Das related context in news –
Sant Kabir Das Jayanti was observed on June 24th 2021 to mark the 644th birth anniversary of Kabir Das.
- Kabirdas Jayanti also referred to as Kabir Prakat Divas is celebrated once a year on the full moon day (Jyeshtha Purnima tithi) in the Hindu month Jyeshtha as per the Hindu lunar calendar. Candidates can check out the Calendars in India on the linked page.
Sant Kabir Das [UPSC Notes]:- Download PDF Here
Candidates preparing for upcoming UPSC Prelims must know that the facts on Sant Kabir Das hold relevance under the Art and Culture section of the civil services exam’s syllabus.
Looking for study material to prepare for the upcoming Civil Services Exam? Refer to the links below and complement your UPSC exam preparation: |
Sant Kabir Das – Overview
About Kabir Das-
- Sant Kabir Das was born in the city of Varanasi, Uttar Pradesh. He was brought up by a Muslim couple who were weavers by profession.
- He was a renowned saint, poet and social reformer of India who lived during the 15th century. His esteemed works and poems describe the greatness and oneness of the Supreme Being.
- Sant Kabir Das was a proponent of Bhakti Movement.
- The legacy of Kabir Das still remains through a sect referred to as Panth of Kabir, a spiritual community that considers him as the founder. Kabir Panth is not a separate religion, but a spiritual philosophy.
- In his poems, Kabir calls himself a julaha and kori . Both mean weaver, belonging to a lower caste. He did not associate himself completely with either Hindus or Muslims.
Check out the List of Bhakti Movement Saints on the linked page.
Education of Sant Kabir Das-
- Kabir did not undertake any formal education. He was not even trained as a weaver. While his poems abound with weaving metaphors, his heart was not fully into this profession. He was on a spiritual journey to seek the truth, which is clearly manifested in his poetry.
Kabir Das was a Follower of –
- Sant Kabir Das’ early life was in a Muslim family. He was brought up by a family of Muslim julahas or weavers, but he was strongly influenced by Vaishnava Saint Swami Ramananda (his teacher), the Hindu bhakti leader.
Sant Kabir Das Literature –
- Sant Kabir Das was a highly acclaimed poet of his time.
- His writings significantly influenced the Bhakti movement.
- Some of his famous writings include ‘Sakhi Granth’, ‘Anurag Sagar’, ‘Bijak’ and ‘Kabir Granthawali’.
- His great writing, Bijak, has a huge collection of poems.
- The writings of Kabir Das were mainly based on the concept of reincarnation and karma.
- After being an illiterate he had written his poems in Hindi mixing with Avadhi, Braj, and Bhojpuri. The poems are called variously as ‘ Dohe’, ‘Saloka’ and ‘Sakhi’ .
- Sant Kabir Das was best known for his two-line couplets, referred to as ‘ Kabir Ke Dohe ‘.
- The major part of his work was collected by the fifth Sikh guru, Guru Arjan Dev.
- The verses of Kabir Das are found in Sikhism’s scripture Guru Granth Sahib.
Language of Kabir Das-
- Kabir’s works were mainly written in the Hindi language.
- In the 15th century, when Persian and Sanskrit were predominant North Indian languages, he chose to write in colloquial, regional language.
- His poetry is a mixture of Hindi, Khari Boli, Punjabi, Bhojpuri, Urdu, Persian and Marwari.
Travels –
- During the last moments of his life, Sant Kabir Das had gone to the city of Maghar (Uttar Pradesh).
- After his death, there arose a conflict between Hindus who wanted to cremate his body and Muslims who wanted to bury it. In a moment of miracle, flowers appeared beneath his shroud, half of which were cremated at Kashi and half buried at Maghar.
- Certainly, Sant Kabir Das died in Maghar where his grave is located.
Recently, the Uttar Pradesh Tourism department has initiated to promote Maghar (place in Uttar Pradesh) as a tourist destination where Hindus have built a temple in memory of Kabir, while Muslims have constructed a mausoleum in his memory.
Aspirants can go through the information on relevant topics provided below for comprehensive preparation-
Contribution of Sant Kabir Das to Bhakti Movement
Sant Kabir Das got fame all over the world because of his influential traditions and culture. He was prejudiced by the existing religious mood of that time like Hinduism, Tantrism as well as personal devotionalism.
- Kabir Das tried to coordinate the religions by giving a universal path which could be followed by all human beings.
- According to him, every life has a relationship with two spiritual principles ( Jivatma and Paramatma) . His view about the moksha is that it is the process of uniting these two divine principles.
- He simply followed the oneness of God. In the Dabistan of Mohsin Fani and Ain-i-Akbari of Abul Fazl, he is mentioned as a ‘ Muwahid ’ (Believer in one God).
- He always opposed the idea of worshipping the idols and showed clear confidence in Bhakti and Sufi ideas.
- He composed poems in a concise and simple style, resonating the admiration for the factual guru.
- He tried to interpret the meaning of the true religion of human beings that one should follow. This has helped the common people to understand his message very easily.
- He was against the caste system imposed by the Hindu community. Not just caste, Kabir also criticised the rites, rituals and customs which he thought were futile.
- From Khajinat al-Asafiya, we find that a Sufi Pir, Shaikh Taqqi was also the teacher of Kabir. Sufi-influence is also quite apparent in Kabir’s teaching and philosophy.
Candidates can also read about the Important Foreign Envoys Who Visited Ancient India on the linked page.
Some related links to prepare for the Art and Culture section of Civil services Exam even better
Get the detailed UPSC Syllabus for the prelims and mains examination and start your Civil Services Exam preparation accordingly.
UPSC Preparation:
IAS General Studies Notes Links | |
Leave a Comment Cancel reply
Your Mobile number and Email id will not be published. Required fields are marked *
Request OTP on Voice Call
Post My Comment
IAS 2024 - Your dream can come true!
Download the ultimate guide to upsc cse preparation, register with byju's & download free pdfs, register with byju's & watch live videos.
कबीर दास के 50 लोकप्रिय दोहे- Kabir Das Ke Dohe with Hindi Meaning
कबीर दास जी की वाणी में अमृत है। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर प्रहार करने का कार्य किया है। कबीर दास जी मुख्य भाषा पंचमेल खिचड़ी है जिसकी वजह से सभी लोग उनके दोहों को आसानी से समझ पाते हैं। जब भी दोहे शब्द सुनाई देता है, तो सबसे ऊपर हमारे जेहन में कबीरदास जी का नाम ही आता है। कबीर दास जी ने सभी धर्मों की बुराइयों और पाखंडों पर व्यंग्य किया है। सभी धर्मों के लोग कबीर दास के मतों को मानते आये हैं और उनके दोहों में जो सीख है, वह हर व्यक्ति को प्रभावित करती है।
इस लेख में हम संत कबीर के 50 सबसे लोकप्रिय दोहे (kabir das ke dohe) पढ़ेंगे और साथ ही उन दोहों के हिंदी अर्थ भी जानेंगे –
दोहा(Dohe) –
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये | औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर | पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूर(ऊँचाई ) पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।
संत कबीर दास के दोहे अर्थ सहित
कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह। देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।।
अर्थ – संत कबीर कहते हैं कि जब तक ये शरीर सही सलामत है, तब तक दूसरों को दान करते रहिये, दूसरों के लिए अच्छे कार्य करते रहिए| जब यह देह राख हो जाएगी फिर इस सुन्दर शरीर को कोई नहीं पूछेगा, तुम्हारी देह शव बन जाएगी| अतः अच्छे कार्य करने का यही सही समय है|
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ॥
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जब से पाने चाह और चिंता मिट गयी है, तब से मन बेपरवाह हो गया है| इस संसार में जिसे कुछ नहीं चाहिए बस वही सबसे बड़ा शहंशाह है|
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥
अर्थ – कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान | शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष (जहर) से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीश(सर) देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज | सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ||
अर्थ – अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है
निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें | बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि निंदक(हमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले) लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय | जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ अर्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय | जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ||
अर्थ – दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं
माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे | एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ||
अर्थ – जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात | देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान की इच्छाएं एक पानी के बुलबुले के समान हैं जो पल भर में बनती हैं और पल भर में खत्म। जिस दिन आपको सच्चे गुरु के दर्शन होंगे उस दिन ये सब मोह माया और सारा अंधकार छिप जायेगा
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये | दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ||
अर्थ – चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और वो कहते हैं कि चक्की के 2 पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता
मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार | फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ||
अर्थ – मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। अर्थात आज आप जवान हैं कल आप भी बूढ़े हो जायेंगे और एक दिन मिटटी में मिल जाओगे। आज की कली, कल फूल बनेगी।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब | पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो, और जो आज करना है वो अभी करो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे
ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग | तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर रौशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूढ लो।
जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप | जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है वहीँ धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप है, और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है
जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान | जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ||
अर्थ – जिस इंसान अंदर दूसरों के प्रति प्रेम की भावना नहीं है वो इंसान पशु के समान है
जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश | जो है जा को भावना सो ताहि के पास ||
अर्थ – कमल जल में खिलता है और चन्द्रमा आकाश में रहता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जब जल में चमकता है तो कबीर दास जी कहते हैं कि कमल और चन्द्रमा में इतनी दूरी होने के बावजूद भी दोनों कितने पास है। जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा खुद कमल के पास आ गया हो। वैसे ही जब कोई इंसान ईश्वर से प्रेम करता है वो ईश्वर स्वयं चलकर उसके पास आते हैं।
जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान | मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ||
अर्थ – साधु से उसकी जाति मत पूछो बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करिये, उनसे ज्ञान लीजिए। मोल करना है तो तलवार का करो म्यान को पड़ी रहने दो।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए | यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ||
अर्थ – अगर आपका मन शीतल है तो दुनियां में कोई आपका दुश्मन नहीं बन सकता
ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग | प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि अब तक जो समय गुजारा है वो व्यर्थ गया, ना कभी सज्जनों की संगति की और ना ही कोई अच्छा काम किया। प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान है और भक्ति करने वाला इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता है।
तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार | सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ||
अर्थ – तीर्थ करने से एक पुण्य मिलता है, लेकिन संतो की संगति से 4 पुण्य मिलते हैं। और सच्चे गुरु के पा लेने से जीवन में अनेक पुण्य मिल जाते हैं
तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय | सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि लोग रोजाना अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को कोई साफ़ नहीं करता। जो इंसान अपने मन को भी साफ़ करता है वही सच्चा इंसान कहलाने लायक है।
प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए | राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और नाही प्रेम कहीं बाजार में बिकता है। जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना शीश(क्रोध, काम, इच्छा, भय) त्यागना होगा।
जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही | ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जिस घर में साधु और सत्य की पूजा नहीं होती, उस घर में पाप बसता है। ऐसा घर तो मरघट के समान है जहाँ दिन में ही भूत प्रेत बसते हैं
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में सूप जैसा गुण होना चाहिए। जैसे सूप में अनाज के दानों को अलग कर दिया जाता है वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए।
पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत | अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया। अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही | सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकार(मैं) था, तब मेरे ह्रदय में हरी(ईश्वर) का वास नहीं था। और अब मेरे ह्रदय में हरी(ईश्वर) का वास है तो मैं(अहंकार) नहीं है। जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए | मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो उसे नहाने का क्या फायदा, जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली में तेज बदबू आती है।
प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय | लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ||
अर्थ – जिसको ईश्वर प्रेम और भक्ति का प्रेम पाना है उसे अपना शीश(काम, क्रोध, भय, इच्छा) को त्यागना होगा। लालची इंसान अपना शीश(काम, क्रोध, भय, इच्छा) तो त्याग नहीं सकता लेकिन प्रेम पाने की उम्मीद रखता है
कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर | जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुःख को समझता है वही सज्जन पुरुष है और जो दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे इंसान होने से क्या फायदा।
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और । हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि वे लोग अंधे और मूर्ख हैं जो गुरु की महिमा को नहीं समझ पाते। अगर ईश्वर आपसे रूठ गया तो गुरु का सहारा है लेकिन अगर गुरु आपसे रूठ गया तो दुनियां में कहीं आपका सहारा नहीं है।
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी | एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि तू क्यों हमेशा सोया रहता है, जाग कर ईश्वर की भक्ति कर, नहीं तो एक दिन तू लम्बे पैर पसार कर हमेशा के लिए सो जायेगा
नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय | कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि चन्द्रमा भी उतना शीतल नहीं है और हिम(बर्फ) भी उतना शीतल नहीं होती जितना शीतल सज्जन पुरुष हैं। सज्जन पुरुष मन से शीतल और सभी से स्नेह करने वाले होते हैं
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय | ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि लोग बड़ी से बड़ी पढाई करते हैं लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता। जो इंसान प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान् है
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय | जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ||
अर्थ – जब मृत्यु का समय नजदीक आया और राम के दूतों का बुलावा आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि जो आनंद संत और सज्जनों की संगति में है उतना आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा।
शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान | तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ||
अर्थ – शांत और शीलता सबसे बड़ा गुण है और ये दुनिया के सभी रत्नों से महंगा रत्न है। जिसके पास शीलता है उसके पास मानों तीनों लोकों की संपत्ति है।
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये | मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके। मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाये।
माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए | हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि मक्खी पहले तो गुड़ से लिपटी रहती है। अपने सारे पंख और मुंह गुड़ से चिपका लेती है लेकिन जब उड़ने प्रयास करती है तो उड़ नहीं पाती तब उसे अफ़सोस होता है। ठीक वैसे ही इंसान भी सांसारिक सुखों में लिपटा रहता है और अंत समय में अफ़सोस होता है।
ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार | हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार तो माटी का है, आपको ज्ञान पाने की कोशिश करनी चाहिए नहीं तो मृत्यु के बाद जीवन और फिर जीवन के बाद मृत्यु यही क्रम चलता रहेगा
कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार | साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है, कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता। वहीँ सज्जन विचार और बोल अमृत के समान हैं
आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर | इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस दुनियां में आया है उसे एक दिन जरूर जाना है। चाहे राजा हो या फ़क़ीर, अंत समय यमदूत सबको एक ही जंजीर में बांध कर ले जायेंगे
ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय | सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में बदला जा रहा है।
कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय | भक्ति करे कोई सुरमा, जाती बरन कुल खोए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती। भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है।
दोहा(Dohe) – कागा का को धन हरे, कोयल का को देय | मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि कौआ किसी का धन नहीं चुराता लेकिन फिर भी कौआ लोगों को पसंद नहीं होता। वहीँ कोयल किसी को धन नहीं देती लेकिन सबको अच्छी लगती है। ये फर्क है बोली का – कोयल मीठी बोली से सबके मन को हर लेती है।
लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट | अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार ज्ञान से भरा पड़ा है, हर जगह राम बसे हैं। अभी समय है राम की भक्ति करो, नहीं तो जब अंत समय आएगा तो पछताना पड़ेगा।
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय । कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि तिनके को पाँव के नीचे देखकर उसकी निंदा मत करिये क्यूंकि अगर हवा से उड़के तिनका आँखों में चला गया तो बहुत दर्द करता है। वैसे ही किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
अर्थ – कबीर दास जी मन को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन! दुनिया का हर काम धीरे धीरे ही होता है। इसलिए सब्र करो। जैसे माली चाहे कितने भी पानी से बगीचे को सींच ले लेकिन वसंत ऋतू आने पर ही फूल खिलते हैं।
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि माया(धन) और इंसान का मन कभी नहीं मरा, इंसान मरता है शरीर बदलता है लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती।
मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख, मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि मांगना तो मृत्यु के समान है, कभी किसी से भीख मत मांगो। मांगने से भला तो मरना है
ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि. मूरख लोग न जानिए , बाहर ढूँढत जाहिं
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जैसे आँख के अंदर पुतली है, ठीक वैसे ही ईश्वर हमारे अंदर बसा है। मूर्ख लोग नहीं जानते और बाहर ही ईश्वर को तलाशते रहते हैं।
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये, ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे। जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनियां रोये और हम हँसे।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि किताबें पढ़ पढ़ कर लोग शिक्षा तो हासिल कर लेते हैं लेकिन कोई ज्ञानी नहीं हो पाता। जो व्यक्ति प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ ले और वही सबसे बड़ा ज्ञानी है, वही सबसे बड़ा पंडित है।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ – किसी विद्वान् व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है म्यान का नहीं।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ
अर्थ – जो लोग लगातार प्रयत्न करते हैं, मेहनत करते हैं वह कुछ ना कुछ पाने में जरूर सफल हो जाते हैं| जैसे कोई गोताखोर जब गहरे पानी में डुबकी लगाता है तो कुछ ना कुछ लेकर जरूर आता है लेकिन जो लोग डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रहे हैं उनको जीवन पर्यन्त कुछ नहीं मिलता
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत
अर्थ – इंसान की फितरत कुछ ऐसी है कि दूसरों के अंदर की बुराइयों को देखकर उनके दोषों पर हँसता है, व्यंग करता है लेकिन अपने दोषों पर कभी नजर नहीं जाती जिसका ना कोई आदि है न अंत
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय
अर्थ – कबीरदास जी इस दोहे में बताते हैं कि छोटी से छोटी चीज़ की भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए क्यूंकि वक्त आने पर छोटी चीज़ें भी बड़े काम कर सकती हैं| ठीक वैसे ही जैसे एक छोटा सा तिनका पैरों तले कुचल जाता है लेकिन आंधी चलने पर अगर वही तिनका आँखों में पड़ जाये तो बड़ी तकलीफ देता है
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि ज्यादा बोलना अच्छा नहीं है और ना ही ज्यादा चुप रहना भी अच्छा है जैसे ज्यादा बारिश अच्छी नहीं होती लेकिन बहुत ज्यादा धूप भी अच्छी नहीं है
कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन, कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन
अर्थ – केवल कहने और सुनने में ही सब दिन चले गये लेकिन यह मन उलझा ही है अब तक सुलझा नहीं है| कबीर दास जी कहते हैं कि यह मन आजतक चेता नहीं है यह आज भी पहले जैसा ही है|
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि
अर्थ – जो व्यक्ति अच्छी वाणी बोलता है वही जानता है कि वाणी अनमोल रत्न है| इसके लिए हृदय रूपी तराजू में शब्दों को तोलकर ही मुख से बाहर आने दें|
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना, आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना
अर्थ – हिन्दूयों के लिए राम प्यारा है और मुस्लिमों के लिए अल्लाह (रहमान) प्यारा है| दोनों राम रहीम के चक्कर में आपस में लड़ मिटते हैं लेकिन कोई सत्य को नहीं जान पाया|
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत | चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत ||
अर्थ – सज्जन पुरुष किसी भी परिस्थिति में अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे कितने भी दुष्ट पुरुषों से क्यों ना घिरे हों| ठीक वैसे ही जैसे चन्दन के वृक्ष से हजारों सर्प लिपटे रहते हैं लेकिन वह कभी अपनी शीतलता नहीं छोड़ता|
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि सबके साथ मेलजोल के साथ रहना चाहिए। ना कोई दोस्त है और ना ही कोई दुश्मन, सभी एक समान हैं और सबके साथ अच्छा व्यव्हार करना चाहिए
कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई
अर्थ – संत कबीर कहते हैं कि समुंदर की लहरें अपने साथ मोती बिखेरती आती हैं। बगुला मोती नहीं पहचाना जबकि हंस उन मोतियों को पहचानकर उन्हें खा लेता है। अर्थात जिस चीज़ का महत्व जो व्यक्ति समझता है वही उसका फायदा ले सकता है, जिस व्यक्ति को महत्त्व नहीं पता, वह उस चीज़ को पाकर भी उसका लाभ नहीं उठा पाता
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जब गुड़ को ग्राहक मिल जाता है तो वह अच्छे दामों में बिकता है और अगर गुड़ को ग्राहक नहीं मिलता तो वह कोड़ी के दामों में जाता है। अर्थात किसी वस्तु का सही महत्त्व समझने वाला ही उसका सही मूल्यांकन कर सकता है, अन्यथा मूर्ख व्यक्ति के लिए हीरा और पत्थर दोनों के ही समान होते हैं।
संत कबीरदास के सभी दोहे मानव सोच पर व्यंग्य करते प्रतीत होते हैं| संत कबीर के ये दोहे आपने बचपन में किताबों में भी पढ़े होंगे| दोहों के माध्यम से जो कबीरदास जी ने सन्देश दिया है वह वाकई सोच परिवर्तित कर देने वाला है| अगर आपके पास भी कुछ अच्छे कबीर दास के दोहे हैं तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं ताकि हम उन्हें भी यहाँ शामिल कर सकें| धन्यवाद!!!
Related Articles
- 63 Desh Bhakti Shayari in Hindi | देश भक्ति शायरी सुविचार
- 2024 Independence Day Quotes in Hindi स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें
Motivational Quotes in Hindi | अद्भुत मोटिवेशनल कोट्स
Suvichar in Hindi | काबिल बनाने वाले सुविचार हिंदी में
- {जय हिन्द} स्वतंत्रता दिवस शायरी | Independence Day Shayari in Hindi
- 5 Famous – देशभक्ति गीत – Desh Bhakti Geet in Hindi
- देशभक्ति कविता इन हिंदी : चन्द्रशेखर आजाद! Desh Bhakti Poem
HindiVyakran
- नर्सरी निबंध
- सूक्तिपरक निबंध
- सामान्य निबंध
- दीर्घ निबंध
- संस्कृत निबंध
- संस्कृत पत्र
- संस्कृत व्याकरण
- संस्कृत कविता
- संस्कृत कहानियाँ
- संस्कृत शब्दावली
- पत्र लेखन
- संवाद लेखन
- जीवन परिचय
- डायरी लेखन
- वृत्तांत लेखन
- सूचना लेखन
- रिपोर्ट लेखन
- विज्ञापन
Header$type=social_icons
- commentsSystem
10 lines on kabir das in hindi
10 lines on kabir das in hindi : कबीरदास जी हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे। कबीरदास जी का जन्म सन 1398 में लहरतारा के निकट काशी में हुआ। इनका पालन-पोषण नीरू तथा नीमा नामक जुलाहे दम्पति ने किया। कबीरदास जी का विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ जिससे इन्हें दो संतानें हुईं। इन्होने अपने पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री का नाम कमाली रखा। कबीर दास जी प्रसिद्द वैष्णव संत रामानंद जी को अपना गुरु मानते थे।
- कबीरदास जी हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे।
- कबीरदास जी का जन्म सन 1398 में लहरतारा के निकट काशी में हुआ।
- कबीर जी का पालन-पोषण नीरू तथा नीमा नामक जुलाहे दम्पति ने किया।
- कबीरदास जी का विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ जिससे इन्हें दो संतानें हुईं।
- इन्होने अपने पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री का नाम कमाली रखा।
- कबीर दास जी प्रसिद्द वैष्णव संत रामानंद जी को अपना गुरु मानते थे।
- कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया
- कबीर की वाणी को साखी, सबद और रमैनी तीनो रूपों में लिखा गया है।
- इनकी वाणियों का संग्रह इनके शिष्यों द्वारा बीजक नामक ग्रन्थ में किया गया।
- वह एक ईश्वर को मानते थे तथा किसी भी प्रकार के कर्मकांड के विरोधी थे।
- उन्होंने आजीवन समाज में व्याप्त कुरीतियों आडम्बरों की आलोचना की।
- वह अंतिम समय में मगहर चले गए जहाँ 1518 ई में उनकी मृत्यु हो गयी।
Good vyakaran
100+ Social Counters$type=social_counter
- fixedSidebar
- showMoreText
/gi-clock-o/ WEEK TRENDING$type=list
- गम् धातु के रूप संस्कृत में – Gam Dhatu Roop In Sanskrit गम् धातु के रूप संस्कृत में – Gam Dhatu Roop In Sanskrit यहां पढ़ें गम् धातु रूप के पांचो लकार संस्कृत भाषा में। गम् धातु का अर्थ होता है जा...
- दो मित्रों के बीच परीक्षा को लेकर संवाद - Do Mitro ke Beech Pariksha Ko Lekar Samvad Lekhan दो मित्रों के बीच परीक्षा को लेकर संवाद लेखन : In This article, We are providing दो मित्रों के बीच परीक्षा को लेकर संवाद , परीक्षा की तैयार...
RECENT WITH THUMBS$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0
- 10 line essay
- 10 Lines in Gujarati
- Aapka Bunty
- Aarti Sangrah
- Akbar Birbal
- anuched lekhan
- asprishyata
- Bahu ki Vida
- Bengali Essays
- Bengali Letters
- bengali stories
- best hindi poem
- Bhagat ki Gat
- Bhagwati Charan Varma
- Bhishma Shahni
- Bhor ka Tara
- Boodhi Kaki
- Chandradhar Sharma Guleri
- charitra chitran
- Chief ki Daawat
- Chini Feriwala
- chitralekha
- Chota jadugar
- Claim Kahani
- Dairy Lekhan
- Daroga Amichand
- deshbhkati poem
- Dharmaveer Bharti
- Dharmveer Bharti
- Diary Lekhan
- Do Bailon ki Katha
- Dushyant Kumar
- Eidgah Kahani
- Essay on Animals
- festival poems
- French Essays
- funny hindi poem
- funny hindi story
- German essays
- Gujarati Nibandh
- gujarati patra
- Guliki Banno
- Gulli Danda Kahani
- Haar ki Jeet
- Harishankar Parsai
- hindi grammar
- hindi motivational story
- hindi poem for kids
- hindi poems
- hindi rhyms
- hindi short poems
- hindi stories with moral
- Information
- Jagdish Chandra Mathur
- Jahirat Lekhan
- jainendra Kumar
- jatak story
- Jayshankar Prasad
- Jeep par Sawar Illian
- jivan parichay
- Kashinath Singh
- kavita in hindi
- Kedarnath Agrawal
- Khoyi Hui Dishayen
- Kya Pooja Kya Archan Re Kavita
- Madhur madhur mere deepak jal
- Mahadevi Varma
- Mahanagar Ki Maithili
- Main Haar Gayi
- Maithilisharan Gupt
- Majboori Kahani
- malayalam essay
- malayalam letter
- malayalam speech
- malayalam words
- Mannu Bhandari
- Marathi Kathapurti Lekhan
- Marathi Nibandh
- Marathi Patra
- Marathi Samvad
- marathi vritant lekhan
- Mohan Rakesh
- Mohandas Naimishrai
- MOTHERS DAY POEM
- Narendra Sharma
- Nasha Kahani
- Neeli Jheel
- nursery rhymes
- odia letters
- Panch Parmeshwar
- panchtantra
- Parinde Kahani
- Paryayvachi Shabd
- Poos ki Raat
- Portuguese Essays
- Punjabi Essays
- Punjabi Letters
- Punjabi Poems
- Raja Nirbansiya
- Rajendra yadav
- Rakh Kahani
- Ramesh Bakshi
- Ramvriksh Benipuri
- Rani Ma ka Chabutra
- Russian Essays
- Sadgati Kahani
- samvad lekhan
- Samvad yojna
- Samvidhanvad
- Sandesh Lekhan
- sanskrit biography
- Sanskrit Dialogue Writing
- sanskrit essay
- sanskrit grammar
- sanskrit patra
- Sanskrit Poem
- sanskrit story
- Sanskrit words
- Sara Akash Upanyas
- Savitri Number 2
- Shankar Puntambekar
- Sharad Joshi
- Shatranj Ke Khiladi
- short essay
- spanish essays
- Striling-Pulling
- Subhadra Kumari Chauhan
- Subhan Khan
- Suchana Lekhan
- Sudha Arora
- Sukh Kahani
- suktiparak nibandh
- Suryakant Tripathi Nirala
- Swarg aur Prithvi
- Tasveer Kahani
- Telugu Stories
- UPSC Essays
- Usne Kaha Tha
- Vinod Rastogi
- Vrutant lekhan
- Wahi ki Wahi Baat
- Yahi Sach Hai kahani
- Yoddha Kahani
- Zaheer Qureshi
- कहानी लेखन
- कहानी सारांश
- तेनालीराम
- मेरी माँ
- लोककथा
- शिकायती पत्र
- हजारी प्रसाद द्विवेदी जी
- हिंदी कहानी
RECENT$type=list-tab$date=0$au=0$c=5
Replies$type=list-tab$com=0$c=4$src=recent-comments, random$type=list-tab$date=0$au=0$c=5$src=random-posts, /gi-fire/ year popular$type=one.
- अध्यापक और छात्र के बीच संवाद लेखन - Adhyapak aur Chatra ke Bich Samvad Lekhan अध्यापक और छात्र के बीच संवाद लेखन : In This article, We are providing अध्यापक और विद्यार्थी के बीच संवाद लेखन and Adhyapak aur Chatra ke ...
Join with us
Footer Social$type=social_icons
- loadMorePosts
Paragraph on Kabir Das
Saint Kabir Das was a great Saint. He is revered by both Hindu and Muslim communities. For knowing more about the great Saint of India we have created some of the important paragraphs in the below section. Kindly read it.
Short and Long Paragraphs on Sant Kabir Das
Paragraph 1 – 100 words.
Saint Kabir Das was a great poet and spiritual leader of India. He was born in 1440 in Varanasi, as per historical sources it is believed that he was born in the family of weaver couple Neeru and Neema. He lived around the 15th Century. He brought a renaissance in Spiritual or Bhakti Movement development.
He is a most revered saint not only in Hinduism but Islam and Sikhism too. The word ‘Kabir’ means great in Islam. His verses are found in Guru Granth Sahib. He spent his early years in a Muslim family. He was highly influenced by his teacher, Saint Ramananda.
Paragraph 2 – 120 Words
Kabir Das was a spiritual poet, who is solely credited for the development of the Bhakti Movement in Hinduism. He is also respected by Islam and Sikh community. Interestingly, the great Saint Kabir Das Ji is acclaimed by both Hindu and Muslim communities on religious beliefs. But, it is said that Saint Kabir Das was fond of both religions and he used to wear sacred threads of both communities.
He got his spiritual training from Guru Ramananda. It was considered that Kabir Das Ji was brought up by a Muslim Family. He was cared for by the Weaver couple in Lahartara, Varanasi. The weaver couple very lovingly adapted the newborn Kabir Das and trained his in their family weaver business.
Paragraph 3 – 150 Words
Kabir Das is a great saint of India. The Kabir Panth Community worship his ideologies. The Kabir Panth followers are called Kabir Panthis and in northern India, there are huge followers of Kabir Das. Kabir Das Ji was brought up by a weaver poor family. He has written Dohas and Dohavali. Some of his famous writings are Brijak, Kabir Granthawali, Anurag Sagar, Sakshi Granth, etc. He met his Guru on the bank of river Ganges. Under his guidance, he devoted himself to spirituality.
His Dohas are considered as one of the most pious writings. The wordings of each Doha is based on the social and spiritual path. People worship him as the spiritual Guru. The Kabir Panthis are religious sects, they devout themselves in the prayers and worship. It is said that still, Kabir Das Ji’s family is living in Lahartara Varanasi. There is a Kabir Monastery established in the memory of Saint Das in Kabir Chaura, Varanasi and in Lahartara, Varanasi.
Paragraph 4 – 200 Words
Kabir Das was a highly respected saint and spiritual mentor in India. His writings are considered moral and social lessons of every age group. Kabir Das Ji was a supporter of the concept of “Jivatma” and “Parmatma”. He emphasized the universal path of faith for both Hindu and Muslim followers. As per his sayings, every life dwelling on earth has a relationship with two principals i.e. Jivatma and Parmatma. He said that Moksha can be achieved when these two principles will unite.
His famous Brijak is a collection of poems that are based on the view of spirituality. He always talked about the oneness of God. His philosophies were written in simple Hindi vernacular language. His philosophies were based on the Bhakti Marg and that were very similar to the Sufism.
He never attended school and never got an education but irrespective of that he was a master of Avadh, Brij, and Bhojpuri. His Dohas and Poems were written in a mixture of all these languages. His concise and simple writing technique was easily grabbed by all. His Dohas are part of the Academic syllabus in school and college level. It is none other than his legacy that influenced several people to follow his ideologies.
Paragraph 5 – 250 Words
Saint Kabir Das was a historical poet. His legacy still continues, people follow his ideologies. He is worshipped by Hindu, Muslim, and Sikh communities. His concept of the oneness of God-inspired thousands of people. The scholars and Kabir Panthis followed his philosophies and study the concept of spirituality shown by him. Saint Kabir Das’s poems and Dohas are translated into several languages.
Banis is the poetic language of Kabir Panthis. His poems are divided into three major categories i.e. Dohas, Sakhi, and Shlok. Sakhi is the highest and supreme truth. Saint Kabir Das has been credited for Bhakti and Sufi Movement in India. He always believed in equality in all sections of society. He always supports the oneness of God. He said that irrespective of our religious differences, the supreme power is one for all. Kabir Das’ property in Kabir Chaura, Varanasi is renamed as Neeru Tila.
The Kabir Das Poems were translated into English by Rabindra Nath Tagore. Saint Kabir’s legacy is carried forward by Kabir Panthis. The Kabir Panthis Community has founded thousands of years ago after the demise of Saint Kabir Das. Kabir Das Ji said Truth is the Ram, the person who is beloved as Maryada Purshottam and one who is detached from the materialistic world. It is said that there are approx 9.6 Million Kabir Panthis. They are dispersed in the northern part of India. Let’s have a look at one of Kabir Das’s Granthavali translated by Charlotte Vaudeville:
“Reading a book after book the whole world died, and none ever became learned!
But understanding the root matter is what made them gain the knowledge!”
FAQs: Frequently Asked Questions
Ans. Kabir Das was born in the 15th Century.
Ans. Kabir Das was born in Varanasi.
Ans. Kabir Das’ most famous work was Kabir Ke Dohe.
Ans. The Bhakti movement was influenced by the writings of Kabir Das.
Related Posts
Paragraph on moral values, paragraph on republic day of india 2023, paragraph on national festivals of india, paragraph on national flag of india, paragraph on importance of republic day of india, paragraph on education, paragraph on my best friend, paragraph on zoo, paragraph on diwali.
संत कबीर दास पर निबंध
Essay On Sant Kabir Das In Hindi : संत कबीर दास जी का जन्म काशी में हुआ था। संत कबीर दास जी जिन्होंने गरीब परिवार में जन्म लिया था। कबीर दास जी की सोच अन्य लोगों से अलग थी। कबीर दास जी के बारे में निबंध के रूप में जानकारी इस आर्टिकल में हम आप तक पहुंचाने वाले हैं।
इस आर्टिकल में आपको Essay On Sant Kabir Das In Hindi के बारे में संपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी। इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।
Read Also: हिंदी के महत्वपूर्ण निबंध
संत कबीर दास पर निबंध | Essay On Sant Kabir Das In Hindi
संत कबीर दास पर निबंध (250 शब्दों में).
संत कबीर दास का जन्म 1398 मे लहर तारा काशी मे हुआ था। कबीर जी के पिताजी का नाम नीरू और माताजी का नाम नीमा था। कबीर दास जी का जन्म ब्राह्मणी विधवा के परिवार मे हुआ था और वह समाज के लोगो के डर से वह तालाब के पास शिशु बालक कबीर दास जी को छोड़ आयी थी। तभी एक नीरू नाम का जुलाहे तालाब के पास से गुजर रहा था, तभी उसकी नज़र पड़ी कि तालाब के किनारे टोकरी एक शिशु देखा और उस शिशु कबीर जी को अपने घर लाया और उसका पालन-पोषण अपने संतान की तरह किया।
कबीरदास जी की परिस्थियां बहुत खराब थी इसलिये कबीर जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने मे असमर्थ रहे। कबीर जी ने अपनी शिक्षा गुरु स्वामी जी रामनंद से प्राप्त किया था। गुरु स्वामी जी रामनंद ने कबीर दास जी को अत्याचार, समाज मे फैले जाति-पात का अंधविश्वास के लिये विरोध करने की शिक्षा देते थे।
कबीर दास जी एक महान कवि थे और एक समाजसेवक सुधारक भी थे। कबीर दास जी ने अपना जीवन समाज सेवा मे निकाल दिया। समाज मे कुरीतियों, पाखंड, अत्याचार, छुआछूत के विरुद्ध अपने कदम आगे बढ़ाया और समाज के लिये सभी लड़ाई मे अपना सहयोगदान दिया। वह यही कहते थे कि कोई भी धर्म अलग नहीं होता है हम सब एक ही ईश्वर की देन है, हम सबको एक ही ईश्वर ने बनाया है। फिर धर्म, जाति, छुआछूत पर अंधविश्वास नहीं करना चाहिये। हम सब एक ईश्वर की देन है और हिन्दू-मुस्लिम, ईसाई सब आपस मे भाई-भाई है।
कबीर दास जी ने कहा कि समाज मे हिंसा का विरोध करते हुए कहा कि जीव-जंतुओं को मार कर उनका मांस नहीं खाना चाहिये, क्योंकि किसी जीव का मांस खा कर पाप का भागदारी नहीं बनना चाहिये। कबीर दास जी ने कहा कि अगर भगवान की पत्थर की मूर्ति की पूजा करने से ईश्वर की प्राप्ति होती है तो पहाड़ को भी पूजने के लिये सदैव तैयार हूँ। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होता पत्थर की मूर्ति पूजा करने से कोई भी व्यक्ति को ईश्वर नहीं मिलते है।
अगर आप ईश्वर की प्राप्ति करना चाहते है तो ईश्वर के प्रति सच्चे मन से पूजा, अर्चना करें और ईश्वर की भक्ति मे अपना सब कुछ समर्पित कर देना चहिये। ईश्वर की भक्ति मे मन लगा कर लीन होना चाहिये तभी हमें ईश्वर की प्राप्ति होती है।
संत कबीर दास पर निबंध (800 शब्दों में)
संत कबीर दास जी हमारे हिंदी साहित्य के जाने-माने कवि होने के साथ साथ महान समाज सुधार भी थे। उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और कुरीतियों को खत्म करने की बहुत कोशिश की। इस कारण उन्हें समाज से बाहर कर दिया गया। परंतु वह अपने निर्णय पर अटल रहे वह अपनी अंतिम सांस तक जनकल्याण मैं लगे रहे।
संत कबीर दास जी का जन्म काशी के लहरतारा नामक क्षेत्र में हुआ। इनका जीवन शुरु से ही संघर्ष से भरा हुआ था। उनकी माता एक ब्राह्मण विधवा थी उसने ॠषि मुनियो के आशीर्वाद से इनको जन्म तो दे दिया लेकिन लोक लाज के डर से इन्हें तालाब के पास छोड़ दिया। उनकी माता हिंदू थी। परंतु उनका लालन पालन एक मुस्लिम पति पत्नी ने किया। मुस्लिम दंपति में इनका लालन पालन बेटे की तरह किया।
उन्होंने ही इनका नाम कबीर रखा जिसका अर्थ होता है, श्रेष्ठ। मुस्लिम अभिभावको द्वारा इनका पालन पोषण किये जाने के बावजूद भी इन्होंने दोनों धर्म में से किसी को भी वरीयता नहीं दी। कबीरदास जी भारतीय इतिहास के महान कवि थे। उन्होंने भक्ति काल में जन्म लिया। उन्होंने कई रचनाएँ की और हमेशा के लिए अमर हो गए।
इन्होने निर्गुण ब्रह्म को अपनाया उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव हित व कल्याण में लगा दिया। उन्होंने बहुत अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। वह शुरू से ही साधु संतो के साथ साथ रहते थे। उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित थे। समाज मैं फैली कुरीतियों व अत्याचारों और धर्म के नाम पर किए जाने वाले पाखंडो का घोर विरोध करते थे। इसी कारण उन्होंने निर्गुण ब्रह्म को अपनाया। वह रामानंद जी से प्रभावित थे।
संत कबीर दास जी के बारे में
कबीर दास जी जो कि रामानंद जी के सबसे चहेते शिष्य थे। कबीर दास जी के दोहे व भजन आज भी घर घर में बजाये जाते है, वह बेहद ही ज्ञानी थे। उन्होंने स्कूली शिक्षा नहीं ली थी। परंतु हिंदी ,अवध, ब्रज, भोजपुरी भाषा पर इनकी पकड़ बहुत अच्छी थी और यह राजस्थानी, हरियाणवी जैसी खड़ी भाषाओं में महारथी थे।
इनकी रचनाओं में सब भाषाओं का मिश्रण मिलता हैं। इसीलिए इनकी भाषा को खिचडी भाषा कहा जाता था। कबीरदास जी ने आम भाषा में शिक्षा नहीं ली थी। इसलिए इन्होंने खुद कुछ नहीं लिखा। इनके शिष्य धर्मदास ने उनके बोल को संग्रहित करके बीजक नामक ग्रंथ की रचना की। बीजक ग्रंथ के तीन भाग है। पहला भाग साखी, दूसरा सबद, तीसरा रमैनी। सुखनिधन, होली आगम आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएं थी।
कबीर दास जी का शिष्य
एक बार की बात है कबीरदास सीढ़ियों पर सो रहे थे तभी वहां से स्वामी रामानंद जी गुजरे और अनजाने में उन्होंने कबीरदास जी पर अपने पैर रख दिए। ऐसा करने के बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वहां राम राम कहने लगे और इस प्रकार उन्हें कबीरदास जी को अपना शिष्य बनाना पड़ा। इस प्रकार कबीरदास को रामानंद जी का सानिध्य प्राप्त हुआ।
रामानंद जी जो कुछ कहते कबीर दास जी उसे याद कर लेते और अपने जीवन में उस पर अम्ल करते थे। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी हमारे समाज में बहुत सी कुरीतियां है। कबीर दास जी ने इसका पूरा विरोध किया था। उनका मानना था कि भगवान व्रत और उपवास से खुश नहीं होते। क्योंकि ऐसा व्रत करने से क्या फायदा जिसके बाद आप झूठ बोलते हैं। जीवहत्या करते हैं।
उन्होंने सभी धर्मों में इस विधान का विरोध किया। कबीर दास कहते थे। सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है। इसे कोई झूठला नहीं सकता। सत बराबर तप नही झूठ बराबर नहीं पाप, उनका मानना था। सब ही धर्म एक हैं। हर किसी के मन में भगवान का वास है। खुद के विचार शुद्ध रखो यही सबसे बड़ी भक्ति हैं। तभी खुद दो धर्मों से संबंधित होने की पश्चात ही किसी धर्म विशेष को नहीं मानते थे।
संत कबीर दास जी द्वारा रचित दोहे और कविताएँ
कबीर दास जी का नाम बड़े-बड़े कवियों की लिस्ट में शामिल है। क्योंकि कबीर दास जी द्वारा लिखित दोहे और भजन आज भी लोगों के घरों में गूंजते हैं। कबीर दास जी की सोच अलग प्रकार की थी, उन्होंने कई अहम बातें लोगों को बधाई जिनसे लोगों की जिंदगी संवर गई कबीर दास जी के द्वारा लिखी गई बातों को यदि व्यक्ति अपने रियल लाइफ में उतार देता है तो उस व्यक्ति को लाइफ की कई प्रकार की बाधाएं से छुटकारा मिल जाता है।
कबीर दास जी के बारे में हर कोई व्यक्ति जानता है। कबीर दास जी ने कई अहम रचनाएं की है। कबीर दास जी द्वारा लिखे गए दोहे आज भी लोकप्रिय है और लोग उन दोहों को अच्छे तरीके से मानते भी हैं। कबीर दास जी ने अपना जीवन गरीबी में गुजारा था। कबीर दास जी ने हर समय सकारात्मक सोच रखी और अन्य लोगों को भी आगे बढ़ने की सलाह दी कबीर दास जी ने एक बात कही थी कि जो व्यक्ति झूठ बोलता है वह सबसे बड़ा पाप करता है।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह “संत कबीर दास पर निबंध (Essay On Sant Kabir Das In Hindi)” पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरुर करें। आपको यह कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।
- गुरु पूर्णिमा पर निबंध
- स्वामी विवेकानंद पर निबंध
- सुभाष चंद्र बोस पर निबंध
Related Posts
Comments (2).
Yes absolutely I’m thankful TO YOU
Best Sir ☺️☺️☺️???
Leave a Comment जवाब रद्द करें
- Primary School
Short essay on Sant Kabir Das in Sanskrit
Explanation:
Kabir Das was a 15th-century Indian mystic poet and saint, whose writings influenced Hinduism's Bhakti movement and his verses are found in Sikhism's scripture Guru Granth Sahib. His early life was in a Muslim family, but he was strongly influenced by his teacher, the Hindu bhakti leader Ramananda.
Kabir suggested that Truth is with the person who is on the path of righteousness, considered everything, living and non living, as divine, and who is passively detached from the affairs of the world.To know the Truth, suggested Kabir, drop the "I" or the ego.Kabir's legacy survives and continues through the Kabir panth ("Path of Kabir"), a religious community that recognises him as its founder and is one of the Sant Mat sects. Its members are known as Kabir panthis.
Hope it helps you
Mark me as brainlist
fo.l.l.o.w m.e for more answers
COMMENTS
e. Kabir (1398-1518 CE) [ 1 ]: 14-15 was a well-known Indian mystic poet and sant. His verses are found in Sikhism's scripture Guru Granth Sahib, the Satguru Granth Sahib of Saint Garib Das, [ 2 ] and Kabir Sagar of Dharamdas. [ 3 ][ 4 ][ 5 ] Today, Kabir is an important figure in Hinduism, Sikhism and Islam, especially in Sufism. [ 6 ]
कबीर दास पर संस्कृत निबंध (Essay on Kabir Das in Sanskrit) कबीर दास पर संस्कृत ...
The Life of Sant Kabir Das It was sometime in mid 15th century that the poet-saint Kabir Das was born in Kashi (Varanasi, Uttar Pradesh). The details about the life of Kabir are shrouded in uncertainty. There are differing opinions, contrasting facts and multiple legends about his life. Even sources discussing his life are scanty. Earliest sources include the Bijak and Adi Granth.
Kabir Das Ka Jivan Parichay: संत कबीर दास 15वीं सदी में हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि, विचारक माने जाते हैं। इनका संबंध भक्तिकाल की निर्गुण शाखा ...
संत कबीर दास का जीवन संत-कवि कबीर दास का जन्म 15वीं शताब्दी के मध्य में काशी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। कबीर के जीवन के विवरण कुछ अनिश्चित हैं ...
PCnF_bijak-of-kabir-das-with-sanskrit-explanation-and-commentary-of-swami-hanumat-das Identifier-ark ark:/13960/t2x45291b Ocr tesseract 5..-alpha-20201231-7-gc75f Ocr_detected_lang hi Ocr_detected_lang_conf 1.0000 Ocr_detected_script Devanagari Ocr_detected_script_conf 0.9992 ...
कबीर दास की जीवनी एक नज़र में (kabir das ka jeevan parichay) कबीरदास का जन्म; कबीर की शिक्षा (Kabir ki Shiksha) कबीर की रामानंद द्वारा गुरु दीक्षा (Kabir Das ke Guru)
Analysis (ai): This collection of dohas expresses Kabir's philosophical teachings on themes such as the futility of worldly possessions, the importance of self-reflection, and the omnipresence of the divine. The poems are characterized by their simple and direct language, often employing metaphors and analogies drawn from everyday life.
movement in Northern India. The name Kabir comes from Arabic Al-Kabīr which means 'The Great' - the 37th Name of God in the Qur'an and Das means „slave‟ or „servant‟ in Sanskrit. He lived during the close of the 14th century and in the beginning of the 15th century. The birth of Kabir remains shrouded in mystery and legend.
The years of Kabir's birth and death are uncertain. [10] [11] Some historians favor 1398-1448 as the period Kabir lived, [12] [13] while others favor 1440-1518. [3] [14] [15] Generally, Kabir is believed to have been born in 1398 (Samvat 1455), [1]: 14-15 on the full moon day of Jyeshtha month (according to the historical Hindu calendar Vikram Samvat) at the time of Brahmamuharta.
जानिए कबीर दास के बारे में, कबीर दास की जीवनी, अध्यापन, कविताएँ, रचनाएँ, जीवन इतिहास, देश के लिये योगदान, धर्म, भगवान और कबीर दास की मृत्यु के बारे में।
Kabir Das (or Sant Kabir, Bhagat Kabir) was a 15th-century Indian mystic poet and saint, whose writings influenced Bhakti movement and his verses are found in Guru Granth Sahib. While he seemed to have spent his early life in a Muslim family, he was strongly influenced by his teacher, the Hindu bhakti saint Bhagat Ramananda (Kat Jaiyeh Re).
Meaning - Kabir requests the almighty to give him only as much as required to feed his family and if any guest comes, then he should be able to feed him too. It means you should only have what you need as there is no use in having too much. 6. माटी कहेकुम्हार से, तुक्या रौंदेमोय ।.
Proceedings of the Indian History Congress, Volume 47. "Sanskrit is the stagnant water of the Lord's private well," Kabir said, whereas "the spoken language is the rippling water of the running stream." "The bhakti poets composed in the regional languages, deliberately breaking the literary and religious hold of Sanskrit.".
A prominent figure in the realm of spirituality, Sant Kabir Das was a mystic poet from the 15th-century India. His profound literary contributions played a pivotal role in shaping the Bhakti movement . This article aims to provide comprehensive information about Sant Kabir Das, particularly for individuals preparing for the IAS exam .His teachings have recently been in the news, making it ...
#Essayguruji #Sanskritessay#अनुच्छेदलेखन#essayonkabirdasinenglish #कबीरदासपरनिबंधसंस्कृतमें
My discovery of Kabir started not with his dohas but from history textbook of class 6th or 7th along with other bhakti religious gurus. He never stood out to me beyond some 8 or 10 lines of the book. Kabir in my life has been very different, unappealing, because I never learned to see him beyond another topic that I need to study.
Sant Kabir Das was one among the foremost influential saints. He was a 15th-century Indian mystic poet, whose writings influenced the Bhakti movement.. This article will provide relevant information on Sant Kabir Das for candidates preparing for the IAS exam as recently there was news related to Sant Kabir Das.. Sant Kabir Das related context in news -
इस लेख में हम संत कबीर के 50 सबसे लोकप्रिय दोहे (kabir das ke dohe) पढ़ेंगे और साथ ही उन दोहों के हिंदी अर्थ भी जानेंगे -
10 lines on kabir das in hindi : कबीरदास जी हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे। कबीरदास जी का जन्म सन 1398 में लहरतारा के निकट काशी में हुआ। इनका पालन-पोषण ...
Paragraph 1 - 100 Words. Saint Kabir Das was a great poet and spiritual leader of India. He was born in 1440 in Varanasi, as per historical sources it is believed that he was born in the family of weaver couple Neeru and Neema. He lived around the 15th Century. He brought a renaissance in Spiritual or Bhakti Movement development.
Essay On Sant Kabir Das In Hindi: संत कबीर दास जी का जन्म काशी में हुआ था। संत कबीर दास जी जिन्होंने गरीब परिवार में जन्म लिया था। कबीर दास जी की सोच अन्य लोगों से अलग थी ...
Short essay on Sant Kabir Das in Sanskrit Get the answers you need, now!