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माइटोकॉन्ड्रिया क्या है? माइटोकॉन्ड्रिया की खोज किसने की थी?

माइटोकॉन्ड्रिया यूकेरियोटिक कोशिका के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। माइटोकॉन्ड्रिया के अंदर, सटीक तंत्रों का उपयोग करके शरीर से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं होती हैं, जिसमें विभिन्न प्रोटीन, अणु, और झिल्ली शामिल होते हैं।

इस आर्टिकल में हम माइटोकॉन्ड्रिया क्या है? इसकी परिभाषा, कार्य और संरचना तथा माइटोकांड्रिया की खोज किसने की? के बारे में उल्लेख करेंगे।

माइटोकॉन्ड्रिया क्या है? Mitochondria Kya hai

माइटोकॉन्ड्रिया, जानवरों, पौधों, और कवक की यूकेरियोटिक कोशिकाओं के साइटोप्लाज्म में पाए जाने वाले बहुत महत्वपूर्ण अंग होते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया शरीर के पावर हाउस कहे जाते हैं। ये जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं को पूरा करने के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन में संग्रहीत रासायनिक ऊर्जा से कोशिकाओं के लिए ऊर्जा बनाते हैं।

ये छोटी इकाइयाँ हैं, जो कोशिका के अंदर पाई जाती हैं, और वहां वे कोशिका के विकास में अहम भूमिका निभाती हैं। माइटोकॉन्ड्रिया दोहरी झिल्ली का उपयोग करके कोशिका झिल्ली से जुड़ते हैं। 

जैसा की हम जानते हैं कि कोशिका कई प्रकार कि होती हैं, अतः कोशिका के प्रकार के आधार पर माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या भिन्न-भिन्न होती है।

इसका एक और कारण यह है कि शरीर में ऐसी कोशिकाएं या ऊतक होते हैं जिनकी ऊर्जा की मांग बहुत अधिक होती है, जैसे कि मांसपेशियां, मस्तिष्क या यकृत, तो इस स्थिति में माइटोकॉन्ड्रिया कि संख्या अधिक होती है और जब ऊर्जा कि मांग कम होती है तो माइटोकॉन्ड्रिया कि संख्या कम होती है।

[ यह भी जानिए- जंतु कोशिका क्या होती है?   ]

माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य

माइटोकॉन्ड्रिया में दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं होती हैं: कोशिकीय श्वसन और रासायनिक ऊर्जा का उत्पादन|

कोशिकीय श्वसन

माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाओं के अंदर के वे छोटे अंग होते हैं जो भोजन से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया को कोशिकीय श्वसन (Cellular Respiration) के रूप में जाना जाता है।

रासायनिक ऊर्जा का उत्पादन

माइटोकॉन्ड्रिया की सबसे प्रसिद्ध भूमिका कोशिकाओं की ऊर्जा ATP (Adenosine triphosphate) का उत्पादन है। यह एक जटिल और कई चरण में होने वाली प्रक्रिया है जोकि शरीर के समुचित कार्य के लिए आवश्यक होती है।

माइटोकॉन्ड्रिया की आंतरिक झिल्ली में कई प्रोटीनों से बने एंजाइम कॉम्प्लेक्स होते हैं, जिनमें कई गतिविधियाँ होती हैं, जैसे कि

  • आणविक ऑक्सीजन का उपयोग ।
  • विभिन्न कार्बनिक यौगिकों का अपचयन और ऑक्सीकरण|
  • इलेक्ट्रॉन पंपिंग|

कोशिकाओं की मृत्यु में योगदान

कोशिकाओं की मृत्यु जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। जैसे-जैसे कोशिकाएं पुरानी होती जाती हैं, वे कमजोर हो जाती हैं और नष्ट हो जाती हैं। माइटोकॉन्ड्रिया यह तय करने में मदद करते हैं कि कौन सी कोशिकाएं नष्ट हो गई हैं।

इसके अतिरिक्त माइटोकॉन्ड्रिया साइटोक्रोम सी (cytochrome C) छोड़ते हैं, जो कैसपेज़ (caspase) को सक्रिय करता है। कैसपेज़ कोशिकाओं की मृत्यु के दौरान कोशिकाओं को नष्ट करने में शामिल प्रमुख एंजाइमों में से एक होता है।

यह भी जानिए-  परागण किसे कहते हैं?  ,  पादप कोशिका और जंतु कोशिका में अंतर

माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना

यद्यपि माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना भिन्न-भिन्न हो सकती है, निम्नलिखित भाग हमेशा पाए जाते हैं-

बाहरी झिल्ली

आंतरिक झिल्ली.

माइटोकॉन्ड्रिया बाहर से उनकी बाहरी झिल्ली से बंधे होते हैं, जो एक ही समय में उन्हें एक दूसरे के साथ संवाद करने की अनुमति देता है।

माइटोकॉन्ड्रिया कोशिका से बहुत सारी जानकारी प्राप्त करते हैं, और यही कारण है कि उनके पास छिद्रों के साथ प्रोटीन होते हैं, जिन्हें पोरिन (Porin) कहा जाता है|

माइटोकॉन्ड्रिया में एक आंतरिक झिल्ली होती है जो मैट्रिक्स बनाती है| यह कोशिका के साइटोप्लाज्म के अनुरूप होता है। यहाँ से ATP के रूप में ऊर्जा प्राप्त होती है। वहां होने वाली प्रमुख उपापचय प्रक्रियाएं हैं:

  • ATP (एटीपी) उत्पादन।
  • क्रेब्स चक्र।
  • अमीनो एसिड का ऑक्सीकरण।
  • फैटी एसिड का ऑक्सीकरण|

यह भी जानिए- रंध्र क्या है?

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माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) क्या है ? माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना, संख्या और कार्य क्या है ? सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

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इस आर्टिकल में हम जानेगे की माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) क्या है ? माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना क्या है, माइटोकॉन्ड्रिया के प्रकार या संख्या कितनी है और माइटोकॉण्ड्रिया का कार्य क्या है ? इसी के साथ हम जानेगे की माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का शक्ति गृह क्यों कहा जाता है ?

माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) क्या है ?

माइटोकॉण्ड्रिया की खोज 1890 ई. में अल्टमेन (Altman) नामक वैज्ञानिक ने की थी। अल्टमेन ने इसे  बायोब्लास्ट  तथा बेण्डा ने  माइटोकॉण्डिया  कहा। जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर शेष सभी सजीव पादप एवं जंतु कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनियमित रूप से बिखरे हुए दोहरी झिल्ली आबंध कोशिकांगों (organelle) को सूत्रकणिका या माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) कहा जाता हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं।

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माइटोकॉण्ड्रिया सभी प्राणियों में और उनकी हर प्रकार की कोशिकाओं में पाई जाती हैं।

माइटोकॉण्ड्रिया कोशिकाद्रव्य में की एक बहुत महत्वपूर्ण रचना है जो की कोशिकाद्रव्य में बिखरी रहती है। माइटोकॉण्ड्रिया दोहरी झिल्ली के आवरण से घिरी हुई रचनाएँ होती हैं। माइटोकॉण्ड्रिया का आकार ( size ) और आकृति ( shape ) परिवर्तन होता रहता है ।

माइटोकॉण्ड्रिया की संरचना और विशेषताएँ क्या है ?

प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिया एक बाहरी झिल्ली एवं एक अन्तः झिल्ली से चारों ओर घिरी रहती है तथा इसके बीच में एक तरलयुक्त गुहा होती है, जिसे  माइटोकॉण्ड्रियल गुहा (Mitochondrial cavity)  कहते हैं। बाहरी झिल्ली की सतह पर वृंतविहीन कण पाये जाते है, जिन्हें पारर्सन की उपइकाई (subunits of parson) कहा जाता है।

माइटोकॉण्ड्रिया की बाहरी झिल्ली सपाट और अन्दर वाली झिल्ली मैट्रिक्स की ओर ऊँगली समान नलिकाओं (पादपों में) अथवा क्रिस्टी (जन्तुओं में) जैसी रचनाएँ बनाती हैं।

माइटोकॉण्ड्रिया कोशिकाद्रव्य में कणों ( Chondriomits ), सूत्रों ( Filament ), छड़ों ( Chondriconts ) और गोलकों ( Chondriospheres ) के रूप में बिखरा रहता है।

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बाहरी झिल्ली

माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली प्रोटीन और फॉस्फोलिपिड  की बनी होती है इसमें फॉस्फेटिडिल कोलीन की मात्रा अधिक होती है। इसकी मोटाई 60-70 Å होती है।

इसकी बाहरी झिल्ली द्वारा बहुत बड़े अणुओं (6000 kD) का स्थानांतरण हो सकता है।

माइटोकॉन्ड्रिया में बड़ी संख्या में धंसे हुए प्रोटीन  (integral proteins)  होते हैं जिन्हें पोरिन (porins) कहा जाता है।

आंतरिक झिल्ली

माइटोकॉन्ड्रिया की आंतरिक झिल्ली पर ऑक्सीडेटिव फॉस्फोराइलेशन के एंजाइम पाए जाते है इस झिल्ली पर एटीपी संश्लेषण की प्रक्रिया होती है।

भीतरी झिल्ली  (Inner membrane)  की बाहरी सतह को सी-फेस  (C-Face)  तथा आंतरिक सतह को एम-फेस  (M – Face)  कहा जाता है।

क्रिस्टी (Cristae)

आंतरिक झिल्ली में कई उभार ( projection ) होते हैं जिन्हें क्रिस्टी ( Cristae ) कहा जाता है।

क्रिस्टी में टेनिस के रेकेट के समान की संरचना होती हैं जिन्हें ऑक्सीसोम या F2 कण या आंतरिक झिल्लिका उपइकाई ( i nner membrane subunit) कहा जाता है।

ऑक्सीसोम का निर्माण दो कारकों F0 तथा F1 के द्वारा होता है। F0 कण ऑक्सीसोम के आधार पर होता है।ऑक्सीसोम एटीपीस एंजाइम होते हैं जो ऑक्सीडेटिव फास्फोरिलीकरण में भाग लेता हैं। जो आंतरिक झिल्ली के साथ F1 कण के जुड़ने में मदद करता है। और F0 F1 कण  को  OSCP (oligomycin sensitivity conferring protein)  कहा जाता है। दो ऑक्सीसम के बीच की दूरी 100Å होती  है।

आधात्री (Matrix)

आंतरिक झिल्ली से घिरे हुए स्थान में भरे द्रव को मैट्रिक्स कहते है जिसमे कुल माइटोकॉन्ड्रियन प्रोटीन का लगभग 2/3 भाग होता है। ये प्रोटीन में क्रेब्स चक्र एंजाइम, श्वसनकारी एंजाइम होते है।

विशेष माइटोकॉन्ड्रियल राइबोसोम, टी-आरएनए और माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए जीनोम की कई प्रतियां शामिल हैं।

माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (Mitochondrial DNA)

माइटोकॉण्ड्रिया के मैट्रिक्स में क्रैब्स चक्र के एन्जाइम, DNA, राइबोसोम तथा RNA स्थित होते हैं इसलिए माइटोकॉण्ड्रिया को अर्धस्वायत्त कोशिकांग (semi autonomous organelle) कहा जाता है।

इसमें माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mt-DNA) उपस्थिति होता है। जिसके कारण यह अपने प्रोटीन एवं एंजाइमों का निर्माण खुद कर सकता है।

Mitochondrial DNA  द्विरज्जुकी ( double stranded ), नग्न ( naked ) दानेदार ( granular ), गोलाकार ( circular ), उच्च G-C अनुपात  (higher G-C ratio)  वाला अणु है। माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mt-DNA) कोशिक के कुल डीएनए का 1% भाग होता है।

माइटोकॉन्ड्रिया में  जीनोम (mt-DNA) का आकार छोटा होता है। लेकिन जीन की संख्या बहुत अधिक होती है।

mt-DNA का आकार जानवरों की तुलना में पौधे में अधिक होता है।

mt-DNA में उत्परिवर्तन से लेबर ऑप्टिक न्यूरोपैथी (Labour Optic Neuropathy)  विकार उत्पन्न होता है। जिसमें नेत्र की दृक तंत्रिका (Optic Nerve) से जुड़े न्यूरॉन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

mt-डीएनए का उपयोग  Phylogenetic  संबंधों के अध्ययन के लिए किया जाता है।

माइट्रोकान्ड्रिया के द्वारा मानव इतिहास का अध्ययन और खोज भी की जा सकती है, क्योंकि उनमें पुराने गुणसूत्र उपलब्ध होते हैं। शोधकर्ता वैज्ञानिकों ने पहली बार कोशिका के इस ऊर्जा प्रदान करने वाले घटक को एक कोशिका से दूसरी कोशिका में स्थानान्तरित करने में सफलता प्राप्त की है। माइटोकांड्रिया में दोष उत्पन्न हो जाने पर मांस-पेशियों में विकार, एपिलेप्सी, पक्षाघात और मंदबद्धि जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं

माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य

इसमें कोशकीय श्वसन ( Cellular respiration )  होता है।

न्यूरॉन्स में पाए जाने वाले माइटोकॉन्ड्रिया न्यूरोहोर्मोन के निर्माण में मदद करते हैं।

विटललोजेनेसिस ( Vitellogenesis ) के दौरान माइटोकॉन्ड्रिया में  mitochondrial kinase  एंजाइम पीतक ( Yolk ) को घना और अघुलनशील बनाता है।

माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का पावर हाउस क्यों कहा जाता है ?

माइटोकॉन्ड्रिया में एटीपी का संश्लेषण  (ATP production) , एटीपी का भंडारण ( ATP storage ) और एटीपी का परिवहन ( transport ) होता है। ये तीनों कार्य माइटोकॉन्ड्रिया में होने के कारण माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का पावर हाउस ( कोशिका का शक्ति गृह  (Power house of the cell)  कहा जाता है।

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चूँकि सभी आवश्यक रासायनिक क्रियाओं को करने के लिए माइटोकॉण्ड्रिया ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसे कोशिका का बिजलीघर भी कहा जाता है,

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माइटोकॉन्ड्रिया की खोज, संरचना तथा कार्य (Mitochondria)

Hamid Ali

माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria)

Mitochondria शब्द ग्रीक भाषाके दो शब्दों Mitos यानि धागा (Thread) तथा Chondrion यानि   कण (granule) से बना है। इसलिए माइटोकॉन्ड्रिया को सूत्रकणिका भी कहते है।

माइटोकॉन्ड्रिया की खोज (Discovary of Mitochondria)

इसको कोलीकर (kolliker ) द्वारा पहली बार कीटों की रेखित मांसपेशियों (striated muscles) में देखा गया।

Mitochondria शब्द सी. बेंडा ( Benda ) द्वारा दिया गया था।

फ्लेमिंग Fleming ने माइटोकॉन्ड्रिया  को filla तथा ऑल्टमैन ( Altman ) ने बायोप्लास्ट ( bioplast ) कहा। इसे कोशिकांग (cell organelle) माना।

माइटोकॉन्ड्रिया रिकेट्सिया बैक्टीरिया (rickettsia bacteria) के समान होता है।

यह मातृ वंशानुक्रम (maternal inheritance)) या साइटोप्लाज्मिक वंशानुक्रम (cytoplasmic inheritance) का उदाहरण है।

माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या (Number of Mitochondria)

इसकी संख्या भिन्न-भिन्न कोशिकाओं में भिन्न-भिन्न होती है  जैसे अधिक चयापचय गतिविधि वाले कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रिया की अधिक संख्या होती है।

आम तौर पर एक कोशिका में इनकी संख्या 1000-1600 होती है।

प्रोकैरियोटिक कोशिका, अनऑक्सी श्वसन करने वाली कोशिकाओं और स्तनधारीयों की वृद्ध RBC में इनकी संख्या कम होती है।

माइक्रेस्टेरिय्स हरित शैवाल (Micrasterias green algae) और स्पोरोज़ोइट (sporozoite) की कोशिका में एक माइटोकॉन्ड्रिया होता है।

काओस काओस अमीबा (Chaos Chaos amoeba)  और प्लेमीक्सा (pleomyxa) में 5 लाख माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं।

जन्तुकोशिकाओं में पादप कोशिकाओं की तुलना में अधिक माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना (Structure of Mitochondria)

आमतौर पर यह सॉसेज के आकार का या बेलनाकार, तंतुमय या छड़जैसा होता है

इसका व्यास 0.2-1.0µm और लंबाई 1.0-4.1µm होती है।

माइटोकॉन्ड्रिया एक दोहरी झिल्ली आबंध संरचना है, जिसमें निम्न घटक होते हैं-

बाहरी झिल्ली (Outer membrane)

माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली प्रोटीन और फॉस्फोलिपिड (1: 1 अनुपात) की बनी होती है इसमें फॉस्फेटिडिल कोलीन की मात्रा अधिक होती है। इसकी मोटाई 60-70 Å होती है।

इसकी बाहरी झिल्ली द्वारा बहुत बड़े अणुओं (6000 kD) का स्थानांतरण हो सकता है।

इसमें बड़ी संख्या में धंसे हुए प्रोटीन (integral proteins) होते हैं जिन्हें पोरिन (porins) कहा जाता है।

Important – बाहरी झिल्ली की सतह पर वृंतविहीन कण पाये जाते है, जिनसे पार्सन की उपइकाई (subunits of parson) कहा जाता है।

परिमाइटोकॉन्ड्रियल अवकाश ( Perimitochondrial space )

यह माइटोकॉन्ड्रिया की दोनों झिल्लियों के मध्य 80-100Å आकार का रिक्त स्थान होता है।

भीतरी झिल्ली ( Inner membrane )

यह माइटोकॉन्ड्रिया की आंतरिक झिल्ली है जिस पर ऑक्सीडेटिव फॉस्फोराइलेशन के एंजाइम पाए जाते है इस झिल्ली पर एटीपी संश्लेषण की प्रक्रिया होती है।

भीतरी झिल्ली (Inner membrane) की बाहरी सतह को सी-फेस (C-Face) तथा आंतरिक सतह को एम-फेस (M – Face) कहा जाता है।

क्रिस्टी (Cristae)

आंतरिक झिल्ली में कई उभार (projection) होते हैं जिन्हें क्रिस्टी (Cristae) कहा जाता है।

क्रिस्टी में टेनिस के रेकेट के समान संरचना होती हैं। जिन्हें F2 कण या ऑक्सीसोम या आंतरिक झिल्लिका उपइकाई ( i nner membrane subunit) कहा जाता है। ऑक्सीसोम एटीपीस एंजाइम होते हैं जो ऑक्सीडेटिव फास्फोरिलीकरण में भाग लेता हैं।

ऑक्सीसोम का निर्माण दो कारकों F0 तथा F1 के द्वारा होता है। F0 कण ऑक्सीसोम के आधार पर होता है। जो आंतरिक झिल्ली के साथ F1 कण के जुड़ने में मदद करता है। और F0 F1 कण  को OSCP (oligomycin sensitivity conferring protein) कहा जाता है। दो ऑक्सीसम के बीच की दूरी 100Å होती  है।

आधात्री (Matrix)

आंतरिक झिल्ली से घिरे हुए स्थान में भरे द्रव को मैट्रिक्स के रूप में जाना जाता है।

इसमें कुल माइटोकॉन्ड्रियन प्रोटीन का लगभग 2/3 भाग होता है। ये प्रोटीन में क्रेब्स चक्र एंजाइम, श्वसनकारी एंजाइम होते है।

विशेष माइटोकॉन्ड्रियल राइबोसोम, टी-आरएनए और माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए जीनोम की कई प्रतियां शामिल हैं।

माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए ( Mitochondrial DNA )

माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को अर्ध-स्वायत्त कोशिकांग ( semi-autonomous orgenelle)कहा जाता है क्योंकि उनमें माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mt-DNA) उपस्थिति होता है। जिसके कारण यह अपने प्रोटीन एवं एंजाइमों का निर्माण खुद कर सकता है।

Mitochondrial DNA द्विरज्जुकी (double stranded), नग्न (naked) दानेदार (granular), गोलाकार (circular), उच्च G-C अनुपात (higher G-C ratio) वाला अणु है। माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mt-DNA) कोशिक के कुल डीएनए का 1% भाग होता है।

माइटोकॉन्ड्रिया में  जीनोम (mt-DNA) का आकार छोटा होता है। लेकिन जीन की संख्या बहुत अधिक होती है।

mt-DNA का आकार जानवरों की तुलना में पौधे में अधिक होता है।

mitochondria-ki-khoj-sanrachna-kaary

mt-DNA में उत्परिवर्तन से लेबर ऑप्टिक न्यूरोपैथी (Labour Optic Neuropathy) विकार उत्पन्न होता है। जिसमें नेत्र की दृक तंत्रिका (Optic Nerve) से जुड़े न्यूरॉन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

mt-डीएनए का उपयोग Phylogenetic संबंधों के अध्ययन के लिए किया जाता है।

राइबोसोम तथा आरएनए (Ribosome and RNA)

माइटोकॉन्ड्रिया में 70S राइबोसोम होता है जो 50S व 30S उपइकाईयों से बना होता है। तथा कुछ मात्रा में आरएनए पाया जाता है।

माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य (Functions of Ribosome)

इसमें कोशकीय श्वसन (Cellular respiration)  होता है।

इसमें एटीपी का संश्लेषण (ATP production), एटीपी का भंडारण (ATP storage) और परिवहन (transport) होता है। ये तीनों कार्य माइटोकॉन्ड्रिया में होने के कारण इसको कोशिका का शक्ति गृह  (Power house of the cell) कहा जाता है।

न्यूरॉन्स में पाए जाने वाले माइटोकॉन्ड्रिया न्यूरोहोर्मोन के निर्माण में मदद करते हैं।

विटललोजेनेसिस (Vitellogenesis) के दौरान माइटोकॉन्ड्रिया में mitochondrial kinase एंजाइम पीतक (Yolk) को घना और अघुलनशील बनाता है।

माइटोप्लास्ट (Mitoplast)

यदि माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली को हटा दिया जाए तो इसे माइटोप्लास्ट कहते हैं। बाहरी झिल्ली को हटा देने के बाद भी माइटोकॉन्ड्रिया कार्य कर सकता हैं।

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Mitochondria (माइटोकाॅण्ड्रिया) क्या है? खोज, संरचना व कार्य

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माइटोकाॅण्ड्रिया क्या है? | Mitochondria In Hindi

माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली प्रोटीन और फॉस्फोलिपिड की बनी होती है। इसमें फॉस्फेटिडिल कोलीन की मात्रा अधिक होती है। माइटोकॉण्ड्रिया की खोज 1890 ई. में अल्टमेन (Altman) नामक वैज्ञानिक ने की थी। अल्टमेन ने इसे बायोब्लास्ट तथा बेण्डा ने माइटोकॉण्डिया कहा। जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर शेष सभी सजीव पादप एवं जंतु कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनियमित रूप से बिखरे हुए दोहरी झिल्ली आबंध कोशिकांगों (organelle) को सूत्रकणिका या माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) कहा जाता हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं।

माइटोकॉण्ड्रिया की संरचना | Structure Of Mitochondria In Hindi

Mitochondria

माइटोकॉण्ड्रिया सभी प्राणियों में और उनकी हर प्रकार की कोशिकाओं में पाई जाती हैं। कोशिका के अंदर एक नलिकाकार, वेलनाकार, अंडाकार संरचना कोशिका द्रव्य में बिखरी अवस्था में पड़ी रहती है तथा कोशिका में यह दो प्रकार की झिल्लियों से घिरी रहती है। बाह्य झिल्ली (outer membrane) तथा आंतरिक झिल्ली (inner membrane) कहलाती है। भिन्न-भिन्न कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी संरचना भिन्न-भिन्न हो सकती है, परन्तु निम्नलिखित भाग हमेशा पाए जाते हैं।

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  • आन्तरिक झिल्ली (Inner Membrane)
  • क्रिस्टी (Cristae)
  • आधात्री (Matrix)
  • माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (Mitochondrial DNA)
  • राइबोसोम (Ribosome)

बाहरी झिल्ली (Outer Membrane) क्या होती है? | Mitochondria Outer Membrane In Hindi

माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली प्रोटीन और फॉस्फोलिपिड की बनी होती है। इसमें फॉस्फेटिडिल कोलीन की मात्रा अधिक होती है। इसकी मोटाई 60-70 Å होती है। माइटोकॉन्ड्रिया की यह भित्ति लचीली अर्ध पारगम्य तथा अणुओं को अपनी ओर आकर्षित करने वाली होती है, जो अपने आंतरिक भागों में पोषक पदार्थ जैसे कार्बोहाइड्रेट, ग्लूकोज, बसा, प्रोटीन आदि को क्रेब साइकिल तथा ग्लाइकोलाइसिस के माध्यम से जाने देती है। माइटोकॉन्ड्रिया में बड़ी संख्या में धंसे हुए प्रोटीन (Integral Proteins) होते हैं, जिन्हें पोरिन (Porins) कहा जाता है।

आंतरिक झिल्ली (Inner Membrane) क्या होती है? | Mitochondria Inner Membrane In Hindi

यह आन्तरिक झिल्ली है जिसके बीच में एक रिक्त स्थान होता है जिसमें आन्तरिक रूप से उंगलियों के समान बहुत से उभार पाये जाते हैं। इन उँगली सदृश उभारों को माइटोकान्ड्रियल क्रेस्ट या क्रिस्टी कहते हैं। क्रस्टी केन्द्रीय रिक्त स्थान को आपसी सम्बन्धित कोष्ठकों में विभाजित करती है। आन्तरिक झिल्ली में दो सतह होती है जिन्हें क्रमशः बाह्य तथा आन्तरिक सतह (Outer and inner surface) कहते हैं।

क्रिस्टी (Cristae) क्या होती हैं? | Mitochondria Cristae In Hindi

माइटोकॉन्ड्रिया में अंगुलाकार प्रवर्धों में अनेक छोटे-छोटे कणों के समान संरचनाएं लगी होती है। जिन्हें क्रिस्टी कहते हैं। इन्हीं कृस्टियों में क्रेब्स साइकिल संचालित होती है। जो शरीर को लगातार संचालित करने के लिए ऊर्जा उपलब्ध कराती है अतः क्रिस्टी माइटोकॉन्ड्रिया एवं मानव शरीर का एक विशेष अंग है। क्रिस्टी में टेनिस के रेकेट के समान संरचना होती है। जिन्हें ऑक्सीसोम या F2 कण या आंतरिक झिल्लिका उप इकाई (inner membrane subunit) कहा जाता है।

आधात्री (Matrix) क्या होता है? | Mitochondrial Matrix In Hindi

माइटोकांड्रिया के अंदर द्रव के रूप में एक पदार्थ भरा रहता है। जो माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित माइटोकॉन्ड्रियल अंगक जैसे (माइटोकॉन्ड्रियल DNA, राइबोसोम) आदि को एक दूसरे से अलग करता है एवं उन्हें एक दूसरे में घिसने से बचाता है। अतः यह माइटोकॉन्ड्रिया में इंजन ऑयल (Engine Oil) की भांति काम करता है। माइटोकॉन्ड्रिया मैट्रिक्स या द्रव पदार्थ कहलाता है।

माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (Mitochondrial DNA) क्या होता है? | Mitochondrial DNA In Hindi

मानव शरीर की समस्त कोशिकाओं में डीएनए कोशिका की कुल डीएनए का 1% मात्रा में उपस्थित होता है अतः इसमें भी दोनों क्षारकें प्यूरीन एवं पाइरामिडीन समान अनुपात में होती हैं। जैसे- (एडीनिन-ग्वानिन) एवं (साइटोसिन-थायमीन) माइटोकॉन्ड्रिया में माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (Mt-DNA) उपस्थित होता है। जिसके कारण यह अपने प्रोटीन एवं एंजाइमों का निर्माण खुद कर सकता है।

राइबोसोम (Ribosome) क्या होते है? | Mitochondrial Ribosome In Hindi

माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में अनेक छोटे-छोटे दानेदार कणों के रूप में संरचनाएं पड़ी रहती हैं जिन्हें राइबोसोम कहते हैं। राइबोसोम समस्त कोशिकाओं के कोशिका द्रव एवं माइट्रोकांड्रियल द्रव्य में उपस्थित होते हैं, यह दो उप इकाइयों 70S एवं 80S हो सकती हैं। राइबोसोम में प्रोटीन का निर्माण होता है अतः राइबोसोम को प्रोटीन की फैक्ट्री के नाम से जाना जाता है।

आप ये भी पढ़ सकते हैं- Endoplasmic Reticulum क्या है? संरचना, प्रकार व कार्य

माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य क्या है? | Functions Of Mitochondria In Hindi

  • माइटोकॉन्ड्रिया का सबसे महत्वपूर्ण कार्य ऑक्सीडेटिव फास्फारिलीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से ऊर्जा का उत्पादन करना है । यह निम्नलिखित प्रक्रिया में भी शामिल है।
  • कोशिका की चयापचय गतिविधि को नियंत्रित करता है।
  • नई कोशिकाओं और से गुणन के विकास को बढ़ावा देता है।
  • लीवर की कोशिकाओं में अमोनिया को डिटॉक्स करने में मदद करता है।
  • एपोप्टोसिस या प्रोग्राम्ड सेल डेथ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • रक्त के कुछ हिस्सों और विभिन्न हार्मोन जैसे टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन के निर्माण के लिए जिम्मेदार सेल के डिब्बों के भीतर कैल्शियम आयनों की पर्याप्त मात्रा बनाए रखने में मदद करता है।
  • यह विभिन्न कोशिकीय गतिविधियों जैसे कोशिकीय विभेदन, कोशिका संकेतन, कोशिका जीर्णता, कोशिका चक्र को नियंत्रित करने और कोशिका वृद्धि में भी शामिल है।
  • कोशिका के अंदर यही कोशिकांग कोशिकीय श्वसन संपन्न कराता है एवं एटीपी का निर्माण करता है।
  • क्रेब्स साइकिल का संचालन माइटोकॉन्ड्रिया के अंदर क्रिस्टी में होता है। जिससे ऊर्जा मुक्त होती है।
  • ग्लूकोस के एक अणु के ऑक्सीकरण से 673 किलो कैलोरी या 38 एटीपी का निर्माण होता है।

माइटोकॉन्ड्रिया के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently asked questions about Mitochondria In Hindi

माइटोकांड्रिया की खोज अल्टमैन ने 1886 में की थी।

माइटोकॉन्ड्रिया को अन्य दूसरे नाम सूत्रकणिका के नाम से भी जाना जाता है। माइटोकॉन्ड्रिया को ऊर्जा का पावर हाउस भी कहते हैं।

क्योंकि माइटोकॉन्ड्रिया की क्रिस्टी में ऊर्जा एटीपी के रूप में संरक्षित रहती है। अतः इस प्रकार इसे ऊर्जा का पावर हाउस कहते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया नाम 1898 में बेंडा द्वारा पेश किया गया था और शुक्राणुजनन के दौरान इन संरचनाओं की उपस्थिति का जिक्र करते हुए ग्रीक “मिटोस” (धागा) और “चोंड्रोस” (ग्रेन्युल) से उत्पन्न होता है।

माइटोकॉन्ड्रिया में राइबोसोम माइटोकॉन्ड्रिया के द्रव में स्थित होते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया की आंतरिक भित्ति में अनेक उभार समान संरचनाए पाई जाती हैं, जिन्हें क्रिस्टी कहते हैं।

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माइटोकॉन्ड्रिया के कार्यों का वर्णन करें , functions of mitochondria in hindi works 5 कार्य लिखिए

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पढ़े माइटोकॉन्ड्रिया के कार्यों का वर्णन करें , functions of mitochondria in hindi works 5 कार्य लिखिए ?

माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य (Functions of Mitochondria)

(1) माइटोकॉन्ड्रीया में विभिन्न प्रकार की महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ, जैसे-ऑक्सीडेशन, डिहाइड्रोजिनेशन, ऑक्सीडेटिव फॉस्फोराइलेशन आदि सम्पन्न होती हैं। इन क्रियाओं के लिए आवश्यक एन्जाइम्स माइटोकॉन्ड्रीया में ही पाये जाते है । इनके अतिरिक्त फॉस्फेट व एडीनोसीन डाइ- फोस्फेट की ईंधन के रूप में तथा ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इन क्रियाओं से उत्पादन के रूप में ATP, CO, तथा H2O निकलते हैं । अतः माइटोकॉन्ड्रीया कोशिका के श्वसन अंगों की तरह कार्य करते हैं। इस प्रकार इनका मुख्य कार्य (i) कोशिका में विघटित खाद्य पदार्थों से बनने वाले अन्तः पदार्थों, जैसे- शर्करा, अमीनो अम्ल व वसा अम्लों का ऑक्सीकरण करना है। इसके अतिरिक्त ATP संश्लेषण व संचय करना है । यह ATP कोशिका में होने वाली अन्य जैविक क्रियाओं में उपयोग में ले ली जाती है।

(2) बीज अंकुरण के समय माइटोकॉन्ड्रीया अधिक सक्रिय होकर श्वसन क्रिया की दर को बढ़ा देते है।

(3) स्पर्मेटिड्स से शुक्राणु बनने के समय माइटोकॉन्ड्रीया एक साथ जुड़कर अक्षीय तन्तु (axial filament) के चारों ओर माइटोकॉन्ड्रीय सर्पिल बनाते हैं ।

(4) अण्ड में पाये जाने वाले माइटोकॉन्ड्रीया अधिक मात्रा में योक प्रोटीन का संचय करते हैं। तथा उसे योक प्लेटलेट्स में बदलते रहते हैं ।

(5) माइटोकॉन्ड्रीयल झिल्लियाँ Cat”, Mg” तथा PO, आयन के सक्रिय स्थानान्तरण में सक्षम होती हैं।

माइटोकॉन्ड्रीया का जीवात जनन (Biogenesis of Mitochondria)

माइटोकॉन्ड्रीया की उत्पत्ति हेतु विभिन्न मत दिये गये हैं-

(1) अन्य कोशिकांगों से उत्पत्ति (Origin from other cell organelles )

(a) प्लाज्मा कला से (From plasma membrane) रॉबर्टसन (Robertson) झिल्ली बेलनाकार ( tubular ) संरचना बनाती हैं जो कि बाद में वक्र रूप धारण कर या बलित होक माइटोकॉन्ड्रीया प्लाज्मा झिल्ली के कोशिका द्रव्य में अन्तर्वलित होने से बनते हैं। प्रारम्भ में माइटोकॉन्ड्रीया का निर्माण करता है ( चित्र 2.23)।

उपरोक्त वर्णित क्रिया द्वारा माइटोकॉन्ड्रीया की उत्पत्ति अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Bade, 1964) केन्द्रक आवरण – ( Bell and Muhlethaler, 1962) तथा गाल्जीकाय उपकरण (Novikoff & Thread Gold, 1967) आदि को बनाने वाली कलाओं से भी होती है ।

 (2) पूर्ववर्ती माइटोकॉन्ड्रिया से (From pre-existing Mitochondria)

लक तथा कलाडे (Luck & Claude, 1963, 1965) के अनुसार पूर्ववर्ती माइटोकॉन्ड्रीया से मुकुलन द्वारा दोहरी झिल्ली युक्त कलिकाएँ बनती हैं वे अंतत: विकसित होकर नये माइटोकॉन्ड्रिया बनाती हैं।

कई बार माइटोकॉन्ड्रिया लम्बाई में बढ़ जाते हैं। उनमें आंतर कला 2 या 3 पटों द्वारा माइटोकॉन्ड्रीया को खण्डों में तोड़ देती है। प्रत्येक खण्ड एक नये माइटोकॉन्ड्रीया में बदल जाता है। (3) प्रौकैरिओटिक उत्पत्ति (Prokaryotic origin)

ओल्टमैन (Altmann) ने माइटोकॉन्ड्रीया को स्वतः जनित इकाइयाँ माना । किन्तु सागर (Sagar, 1967) ने माइटोकॉन्ड्रीया की उत्पत्ति के लिए सिम्बायोन्ट सिद्धान्त (symbiont theory) दिया । उन्होंने माइटोकॉन्ड्रीया तथा जीवाणु में पायी जाने वाली विभिन्न समानताओं को देखा तथा बताया कि माइटोकॉन्ड्रीया की उत्पत्ति जीवाणु जैसे प्रोकैरिओट्स से हुई है। जो कि बहुत समय पूर्व यूकैरियोटिक कोशिकाओं में प्रवेश कर गए थे तथा सहजीवन यापन कर रहे थे। अतः यूकैरिओटिक कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रीया सहजीवी प्रकृति प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि इनमें प्रोटीन संश्लेषण व DNA द्विगुणन की क्षमता होती है, इसलिए ये आंशिक रूप से यूकैरिओटिक कोशिका के केन्द्रक व कोशिकाद्रव्य पर निर्भर करते हैं।

  • गाल्जी सम्मिश्र (Golgi complex or Lipochondrion or Dictyosome)

जीवों की कोशिकाओं में अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (endoplasmic reticulum) से सम्बद्ध थैलीनुमा संरचनाएँ, जो समूहों में पायी जाती हैं तथा झिल्लियों द्वारा निर्मित होती हैं, जिनमें द्रव भरा रहता है, गाल्जीकाय ( Golgi body) अथवा गाल्जी सम्मिश्र कहलाती हैं ।

इन कोशिकांगों को सर्वप्रथम एल. सेन्ट. जोर्ज (L. St. George, 1867 ) ने खोजा किन्तु कैमिलो गाल्जी (C. Golgi, 1885) ने इन्हें तंत्रिका कोशिकाओं में देखा तथा उनके नाम पर ही इन्हें गाल्जी सम्मिश्र (Golgi complex) कहा गया।

उपस्थिति (Occurrence)

प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं को छोड़कर सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में गाल्जी सम्मिश्र पाया जाता है, जैसे- परिपक्व लाल रक्त कणिकाएँ एवं शुक्राणु कोशिकाओं में इसके अलावा कुछ पादप समूहों की काशिकाओं में, जैसे- कवकों, ब्रायोफाइट्स, टैरिडाफाइट्स तथा संवहनी पादपों की चालनी नलिकाओं में। पादपों में इन संरचनाओं को डिक्टियोसोम (Dictyosome ) कहते हैं, क्योंकि ये चपटी थैलीनुमा संरचनाओं से बने जाल की तरह दिखाई देती हैं। कोशिका द्रव्य में इनका वितरण नियत स्थान पर हो सकता है, जैसे-कशेरूकी प्राणियों में, किन्तु अकशेरूकी प्राणियों तथा पादप कोशिकाओं में ये यह प्रायः कोशिका द्रव्य में विसरित है। तंत्रिका कोशिकाओं में ये केन्द्रक के चारों ओर पायी जाती हैं। कोशिका में इनकी उपस्थिति का सीधा सम्बन्ध केन्द्रक उपस्थिति से होता है । सामान्यतया सक्रिय कोशिका में ये कोशिकांग अत्यधिक विकसित होते हैं किन्तु परिपक्व कोशिकाओं अथवा जिन कोशिकाओं में पोषण की कमी होती है उनमें ये अपहासित हो जाते हैं । इनके पुनर्निर्माण के लिए प्रोटीन अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (ER) द्वारा प्राप्त होता है ।

आकार एवं परिमाप (Size & Shape)

विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में, इनकी सक्रियता के आधार पर गाल्जी सम्मिश्र की संरचना व आकार बदलता रहता है। अधिक सक्रिय कोशिकाओं में जैसे स्रावित कोशिकाओं एवं तंत्रिका कोशिकाओं में गाल्जी सम्मिश्र पूर्ण रूप से विकसित होता है तथा जाल के समान दिखाई देता है जबकि पोषण रहित, असक्रिय कोशिकाओं में ये कम विकसित होता है। पादप कोशिकाओं में इनका परिमाप लगभग 1 से 3mp लम्बा तथा 0.5mp ऊँचा होता है ।

संरचना (Structure )

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने पर एक पूर्ण विकसित गाल्जी सम्मिश्र तश्तरी की आकृति की संरचना दिखाई देती है जिसमें अग्र संरचनाएँ होती है ( चित्र 2.24)

(1) केन्द्रीय, चपटे कोश अथवा सिस्टर्नी (Flattened Sacs or cisternae)

(2) परिधीय नलिकाओं तथा पुटिकाओं के गुच्छे (Clusters of tubules and Vesicles)

( 3 ) अन्तस्थ, स्रावक पुटिकाएँ ( secretary Vesicles )

(4) बड़ी पुटिकाएँ अथवा गाल्जीयन रिक्तिकाएँ (Large Vesicles or

 (1) चपटे कोश अथवा सिस्टर्नी (Flattened sacs or vacuoles)

ये थैलीनुमा चपटी, लम्बी नलिकाकार, द्रव से भरी हुई संरचनाएँ होती हैं। सामान्यतया प्रत्येक गाल्जीकाय में इनकी संख्या 4 से 7 तक हो सकती है किन्तु उच्च श्रेणी के जीवों में गाल्जीकाय में इनकी संख्या 30 तक हो सकती है। प्रत्येक सिस्टनी ( cisternae) दोहरी झिल्ली से आबद्ध लगभग 520 A चौड़े अवकाश युक्त संरचना होती है। दो सिस्टर्नी के बीच लगभग 200-300 A का अन्तर अवकाश (Inter cisternal space) होता है। सिस्टनी एक-दूसरे के ऊपर व्यवस्थित होकर सिस्टर्नी स्तम्भ (Stack) बनाती हैं। सिस्टन केन्द्रक आवरण या अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के पास समानान्तर (Parallel) या संकेन्द्रित (concentric) रूप से व्यवस्थित रहती हैं। प्रत्येक सिस्टर्नी स्तम्भ की अग्र अथवा ऊत्तल (Convex) सतह की ओर छोटी, छिद्रित (Fenestrated) सिस्टर्नी, गाल्जीकाय का निर्माण मुख (forming face) बनाती है। अन्त: प्रद्रव्यी जालिका (ER) से अलग हुई ट्रांजिशन पुट्टिकाएँ एवं कोश यहाँ एकत्रित होकर नयी सिस्टर्नी बनाती हैं। सिस्टर्नी स्तम्भ की पश्च सतह अवतल होती है तथा गाल्जीकाय का परिपक्व मुख बनाती हैं। जिस पर स्रावक पुटिकाएँ (Secretory vesicles) या बड़ी रिक्तिकाएँ पायी जाती हैं। गाल्जी में बने स्राव सिस्टर्नी में एकत्रित हो जाते हैं। यह द्रव हायलोप्लाज्म कहलाता है। इसका घनत्व गाल्जी सम्मिश्र की सक्रियता पर निर्भर करता है। इस द्रव का सान्द्रण बढ़ जाने पर स्रावक पुटिकाओं का निर्माण होता रहता है। ये पुटिकाएँ अन्त में लाइसोसोम्स (Lysosomes) में रूपान्तरित हो जाती हैं।

इस प्रकार गाल्जीकाय को एक ध्रुवीय संरचना कह सकते हैं जिसके निर्माण मुख पर नयी सिस्टर्नी का निर्माण होता रहता है तथा परिपक्व मुख पर पुरानी सिस्टर्नी के टूटने से स्रावक पुटिकाओं तथा रिक्तिकाओं का निर्माण होता रहता है ।

(2) नलिकाओं व पुटिकाओं के गुच्छे (Clusters of tubules & Vesicles)

ये छोटी, बूँदों के समान संरचनाएँ होती हैं जिनका व्यास 600 À तक होता है। ये गॉल्जीकाय की उत्तल निर्माण सतह से सम्बद्ध होती हैं तथा चिकनी अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Smooth endoplasmic reticulum) तथा गाल्जी सिस्टर्नी के बीच पायी जाती हैं। इनका निर्माण सिस्टर्नी नलिकाओं में मुकुलन (budding) अथवा उनके सिरों पर संकुचन (constriction) उत्पन्न होने से भी होता है। बाद में ये स्वतन्त्र रूप से बाहरी हायलोप्लाज्म में बिखर जाती हैं। सिस्टर्नी नलिकाओं से दो प्रकार की पुटिकाएँ जुड़ी रहती हैं ।

(3) चिकनी स्त्रावक पुटिकाएँ (Smooth Secretory Vesicles)

(1) चिकनी पुटिकाएँ (Smooth vesicles ) — इनकी सतह चिकनी होती है। ये चपटी 20 से 80mp व्यास वाली पुटिकाएँ हैं। जिसमें स्रावी पदार्थ पाये जाते हैं इन्हें स्रावी पुटिकाएँ ( Secretary vesicles) कहते हैं।

(2) खुरदरी पुटिकाएँ (Rough vesicles) – ये गोलाकार अतिवृद्धियाँ होती हैं । जिनका व्यास 50 m ́ होता है। इनकी सतह खुरदरी होती है। ये सिस्टर्नी के सिरों पर पायी जाती है ।

(4) गाल्जीयन रिक्तिकाएँ ( Golgian Vacuoles)

ये बड़े थैले जैसी, अनियमित ग्रंथिल संरचनाएँ हैं जो गाल्जीबॉडी के परिपक्व मुख की तरफ पायी जाती हैं। इनका निर्माण सिस्टर्नी के विस्तार या स्रावी पुटिकाओं के संयुग्मन ( fusion ) से होता है। पैटेला बल्गेटा (Patella bulgata) में इनका व्यास लगभग 750 A से 6,000 A तक हो सकता है।

गाल्जी सम्मिश्र के प्रत्येक सिस्टर्नी स्तम्भ में ध्रुवीयता पाई जाती है। इसमें अग्र निर्माण मुख केन्द्रक कला (nuclear membrane) या अन्त: प्रद्रव्यी जालिका (endoplasmic reticulum) के पास होता है तथा पश्च परिपक्व मुख प्लाज्मा कला के पास होती है । निर्माण मुख पर नलिकाएँ एवं पुटिकाएँ होती हैं जबकि परिपक्व मुख पर विशिष्ट पुटिकाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें ‘ग्रेल’ (Grel golgi element, Smooth endoplasmic reticulum and Lysosome ) कहते हैं। कोशिका में प्लाज्मा कला (Plasma membrane) तथा गाल्जी के बीच पाए जाने वाले स्थल ‘ग्रेल’ में स्रावक पुटिकाएँ Vesicles) मिलती हैं। जिनमें अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के सान्द्रित स्राव रहते हैं जो कि (Zymogen) कणिकाओं में परिवर्तित होते रहते हैं । अन्त में ये स्राव कोशिका से बाहर विसर्जित कर दिये जाते हैं या इन्हें लाइसोसोम्स में बन्द कर दिया जाता है।

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माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria) कार्य और संरचना, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria), माइटोकॉन्ड्रिया की खोज (detection of mitochondria).

  • सर्वप्रथम कोलिकर ने वर्ष 1990 इन्हें कीटों की रेखित पेशियों में देखा था।
  •  फ्लेेमिंग (1882) उन्हें फाइलिया तथा आर. अल्टमान (1894) ने बायोब्लास्ट नाम दिया। इनकी खोज का श्रेय फ्लेमिंग एवं अल्टमान को दिया जाता है।
  • सी. बेंडा (1897) ने इन्हें माइटोकॉन्ड्रिया नाम दिया।
  • सर्वप्रथम पादप कोशिकाओं (Plant cell) में एफ.मिविस (1904) में इनकी उपस्थिति देखी।

माइटोकॉन्ड्रिया का आकार (Mitochondria size)

  • इनका आकार गोलाकार, छडीनुमा अथवा धागेनुमा संरचनाएं होती है।
  • इनकी औसत लम्बाई 5 से 8 माइक्रोन और व्यास 0.5 से 1 माइक्रोन होता है।
  • सामान्यतः इनकी संख्या एक कोशिका में 50 से 5000 तक हो सकती है।

माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना (Structure of Mitochondria)

माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित पदार्थ (substance present in mitochondria), माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य (functions of mitochondria).

  • माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का पावर हाउस या ऊर्जा घर कहां जाता है इसमें ऑक्सीश्वसन के दौरान निकलने वाली ऊर्जा एडिनोसीन ट्राईफॉस्फेट (ATP) के रूप में संचित रहती है। जब कोशिका को विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है तो यह है एडिनोसिन ट्राई फास्फेट (ATP) एडिनोसिन डायफॉस्फे गईट अणु एवं ऊर्जा में टूट जाती है।
  • यह क्रेब्स चक्कर (Krebs cycle) ग्लाइकोलाइसिस के द्वारा ग्लूकोज अणु दो पाइरूविक अणुओं में टूट जाता है जिनका ऑक्सीकरण एक चक्रीय पथ के रूप में मैट्रिक्स में उपस्थित विभिन्न श्वसन एंजाइमों के द्वारा होता है जिसे के क्रेब्स चक्र (Krebs cycle) कहते हैं
  • ऑक्सीफॉस्फोरिलेशन  यह क्रिया ऑक्सीसोम कणों में होती है जो माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) की भीतरी दिल्ली पर स्थित होते हैं
  • माइटोकॉन्ड्रिया प्रकाशीय श्वसन (Photorespiration) की क्रिया में भाग लेने वाला एक प्रमुख कोशिकांग है

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माइटोकॉन्ड्रिया क्या है || what is mitochondria in hindi.

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माइट्राकान्ड्रिया (Mitochondria )

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What is Mitochondria-in Hindi। सूत्रकणिका या माइटोकॉन्ड्रिया हिंदी में

माइटोकॉन्ड्रिया.

Table of Contents

Mitochondria-माइटोकांड्रिया या सूत्रकणिका डबल मेम्ब्रेन, सेमी-ऑटोनोमॉस (double membranous, semiautonomous cell organelles) सेल ओर्गानेल्स है, और कुछ को छोड़कर (such as mature RBC) सभी यूकेरियोट्स सेल में पाई जाती है।

ऐतिहासिक पहलू

Historical view-माइटोकॉन्ड्रिया एरोबिक यूकेरियोट्स के कोशिका अंग हैं जो एरोबिक श्वसन की (site of aerobic respiration) साइट है।

माइटोकॉन्ड्रिया में ऑक्सीडेटिव डीकार्बाक्सिलेशन, फॉस्फोराइलेशन और एरोबिक श्वसन का क्रेब्स चक्र (oxidative decarboxylation, phosphorylation and aerobic Respiration) होता है।

इसलिए कोशिका के शक्ति गृह (power hose of the cell)कहलाते हैं, क्योंकि वे वायुजीवी श्वसन में ऊर्जा मुक्त करने के प्रमुख केंद्र हैं।

Mitochondria in english

माइटोकॉन्डिया को पहली बार कोल्लिकर (kollicker) ने 1880 में देखा था।

बेंडा (Benda-1897) ने माइटोकॉन्ड्रिया का वर्तमान नाम दिया (Greek word- mitos-thread, chondrion-grain)

माइटोकॉन्ड्रिया को जेनस ग्रीन डाई के साथ स्टेन या कलर किया जा सकता है और प्रकाश माइक्रोस्कोप की मदद से आसानी से पहचाना जा सकता है। अल्ट्रास्ट्रक्चर का अध्ययन केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के तहत किया जा सकता है।

प्रोकैरियोट्स और एनारोबिक यूकेरियोट्स (prokaryotes & Anaerobic eukaryotes) में माइटोकॉन्ड्रिया अनुपस्थित होती हैं।

स्तनधारियों की परिपक्व लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी/एरिथ्रोसाइट-mature RBC/erythrocytes) में माइटोकॉन्ड्रिया  नहीं पाई जाती हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या

Number of mitochondia-माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या अलग अलग सेल में भिन्न होती है। माइटोकॉन्ड्रिया संख्या सेलुलर गतिविधियों (metabolic activity of cell) पर निर्भर करती है।

निष्क्रिय बीजों (non germinating seed) की कोशिकाओं में बहुत कम माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं, जबकि अंकुरित बीजों (germinating seed) में कई माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं।

सामान्य तौर पर पौधों की कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या कम पायी जाती है, जबकि जंतुओं की सेल में माइटोकांड्रिया की संख्या ज़्यादा पायी जाती है।

सेल में स्थिति

Position of mitochondria in cell-कोशिका में माइटोकॉन्ड्रिया की स्थिति ऊर्जा और अमीनो एसिड की आवश्यकता पर निर्भर करती है।

अविशिष्ट कोशिकाओं (in unspecialized cell) में माइटोकॉन्ड्रिया बेतरतीब ढंग से पूरे कोशिका द्रव्य (distributed in cytoplasm) में वितरित होते हैं।

अवशोषक और सीक्रेटरी (peripheral position absorptive & secretory in secretory cell) कोशिकाओं में, वे परिधीय कोशिका द्रव्य में स्थित होते हैं।

मांसपेशियों के तंतुओं में वे सिकुड़ते तत्वों (contractile filaments) के बीच लाइट बैंड के क्षेत्रों में पंक्तियों (in rows) में होते हैं।

सेल डिवीज़न के दौरान, अधिक माइटोकॉन्ड्रिया स्पिंडल फैब्रिस के चारों (around the spindle fibres) तरफ़ जमा हो जाती हैं ।

फ्लाजिला और सेलिआ (base of cilia & flagella) के आधार पर माइटोकॉन्ड्रिया अधिक  संख्या में होते हैं, ताकि, उन्हें मूवमेंट के लिए ऊर्जा प्रदान की जा सके।

आकृति और माप

shape & size-माइटोकॉन्ड्रिया का आकार बाह्यरेखा में बेलनाकार (slender in outline) होता है।

आकार-1.0 – 4.1 माइक्रोमीटर लंबाई और व्यास  (diameter in micrometer) 0.2 – 1.0 माइक्रोमीटर (औसत 0.5) है

रासायनिक संरचना

chemical composition-विभिन्न अनुपात में निम्नलिखित कार्बनिक जैव अणु (biochemical) मौजूद हैं-

प्रोटीन और एंजाइम (protein & enzymes) 60-70%

लिपिड (lipid) 25 – 35%

आरएनए  (RNA) 5 – 7%

इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप संरचना

electron microscopic structure-माइटोकॉन्ड्रिया में दो झिल्ली या दो कक्ष (two membranes or compartments) होते हैं, बाहरी और आंतरिक। ये दो झिल्लियां माइटोकॉन्ड्रिया का एनवेलप (envelop) बनाती हैं।

प्रत्येक झिल्ली की मोटाई 60-75 एंगस्ट्रॉम होती है।

बाहरी झिल्ली की संरचना (outer membrane)

बाहरी झिल्ली चिकनी होती है। यह कई चयापचयों के लिए पारगम्य है।

यह पोरिन नामक प्रोटीन चैनलों की उपस्थिति के कारण होता है या जो सूक्ष्म छिद्रों का निर्माण करते हैं। लिपिड संश्लेषण से जुड़े कुछ एंजाइम झिल्ली में स्थित होते हैं

आंतरिक झिल्ली की संरचना

inner membrane-यह केवल कुछ केमिकल्स के लिए पारगम्य (permeable) है।

इसमें कार्डियोलिपिन (चार फैटी एसिड युक्त-cardiolipin) नामक डबल फॉस्फोलिपिड अधिक होते हैं, जो झिल्ली को आयनों के लिए impermeable बनाता है।

आंतरिक झिल्ली को अंगुली की तरह मैट्रिक्स की तरफ की तरफ अंदर की ओर मुड़ा हुआ होता है, जिसे क्रिस्टी कहते हैं।

क्रिस्टी आंतरिक झिल्ली के सतह क्षेत्र को बढ़ाने के लिए हैं।

आंतरिक झिल्ली में श्वसन श्रृंखला एंजाइम या ईटीएस (इलेक्ट्रॉन परिवहन प्रणाली) के घटक होते हैं।

 F0 – F1 कण या ऑक्सीसोम

F0-F1 particle/Oxysomes-आंतरिक झिल्ली के साथ-साथ क्रिस्टी में छोटे पेपर पिन जैसी संरचनाएं होती हैं, जिन्हें प्राथमिक कण (elementary particle) या F0 – F1 कण या ऑक्सीसोम (या ऑक्सीसोम) नाम दिया जाता है।

एक माइटोकॉन्ड्रिया में 1 x 104 – 1 x 105 प्राथमिक कण होते हैं।

प्रत्येक F0 – F1 कणों में एक हेड, एक स्टॉक और एक आधार (head,stalk and base) होता है। आधार (F0 सबयूनिट्स) लगभग 11 एनएम लंबा और 1.5 एनएम (nm-nano meter) मोटाई का है।

स्टॉक 5 एनएम लंबा और 3.5 एनएम चौड़ा है। हेड (F1 सबयूनिट) का व्यास 8.5 एनएम है।

F0 – F1 कण ATP-ase के रूप में कार्य करते हैं। इसलिए ये ऑक्सीडेटिव फॉस्फोराइलेशन के दौरान एटीपी संश्लेषण (site of ATP synthesis) की साइट हैं।

इलेक्ट्रॉन परिवहन के एंजाइम प्राथमिक कणों के संपर्क में आंतरिक झिल्ली में स्थित होते हैं।

एडहेसन साइट

कहीं-कहीं बाहरी और भीतरी माइटोकॉन्ड्रियल झिल्लियां संपर्क में आ जाती हैं। उन्हें एडहेसन साइट (adhesive site) कहा जाता है।

एडहेसन साइट माइटोकॉन्ड्रियन के विशेष पारगमन (special transport site) क्षेत्र हैं जो बाहर से अंदर और इसके विपरीत सामग्री के हस्तांतरण के लिए होते हैं।

बाहरी कक्ष (पेरिमिटोकॉन्ड्रियल स्पेस)

यह माइटोकॉन्ड्रियल एनवेलप के बाहरी और आंतरिक झिल्ली के बीच मौजूद होता है। आमतौर पर, यह 60 – 100 एंगस्ट्रॉम (60-100 angstrom) चौड़ा होता है।

यह क्रिस्टी के रिक्त स्थान में फैली हुई है। कक्ष में एक द्रव होता है जिसमें कुछ एंजाइम होते हैं।

आंतरिक कक्ष

inner chamber-यह माइटोकॉन्ड्रियन का fluidy part बनाता है। आंतरिक कक्ष में एक अर्ध-द्रव मैट्रिक्स (matrix) होता है।

मैट्रिक्स में निम्नलिखित केमिकल्स पाए जाते हैं-

प्रोटीन कण (protein particle)

70 एस-राइबोसोम (70-s ribosomes) जो प्रोकैरियोटिक राइबोसोम के समान होते हैं

आरएनए (टी-आरएनए t-RNA)

डीएनए (माइटोकॉन्ड्रियल या एमटी-डीएनए) -एक सिंगल सर्कुलर डबल स्ट्रैंडेड (single, circular, double stranded DNA)।

क्रेब्स या टीसीए चक्र के एंजाइम (सक्सेनेट डिहाइड्रोजनेज को छोड़कर जिसमें झिल्ली आधारित स्थान होता है)।

अमीनो एसिड और फैटी एसिड मेटाबोलिज्म के एंजाइम

माइटोकॉन्ड्रिया की स्वायत्तता- सेमीऑटोनॉमस सेल ऑर्गेनेल

निम्नलिखित कारणों से माइटोकॉन्ड्रिया को अर्ध-स्वायत्त कोशिका अंग माना जाता है-

  • माइटोकॉन्ड्रिया का अपना डीएनए होता है जो स्वतंत्र रूप से रेप्लिकेट कर सकता है।
  • माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए अपने स्वयं के एम-आरएनए, टी-आरएनए और आर-आरएनए का उत्पादन करता है।
  • माइटोकॉन्ड्रियल के पास अपने स्वयं के राइबोसोम (70 एस प्रकार) होते हैं।
  • माइटोकॉन्ड्रिया अपने स्वयं के कुछ संरचनात्मक प्रोटीनों के साथ-साथ एंजाइमों का संश्लेषण करते हैं।
  • हालाँकि अधिकांश माइटोकॉन्ड्रियल प्रोटीन या एंजाइम सेल के नुक्लिएर डीएनए के निर्देशों के तहत संश्लेषित होते हैं।
  • माइटोकॉन्ड्रिया अपने मेटाबोलिक रिएक्शंस के लिए आवश्यक कुछ एंजाइमों का संश्लेषण करते हैं।
  • नए माइटोकॉन्ड्रिया पहले से मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया के विभाजन / बाइनरी विखंडन (binary fission) द्वारा विकसित होते हैं।
  • हालांकि, माइटोकॉन्ड्रिया पूरी तरह से स्वायत्त नहीं हैं।
  • उनकी संरचना और कार्यप्रणाली दोनों आंशिक रूप से कोशिका के केंद्रक और कोशिका द्रव्य से सामग्री की उपलब्धता द्वारा नियंत्रित होती हैं।
  • माइटोकॉन्ड्रिया को सहजीवन (Co-existence) माना जाता है (मार्गुलिस, 1971 और एंडोसिम्बियन सिद्धांत-Endosymbiont theory)  के अनुसार माइटोकॉन्ड्रिया, यूकेरियोटिक कोशिकाओं के साथ विकास के काफी पहले से जुड़ी हुई थीं।

माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य

Functions of Mitochondria-

  • माइटोकॉन्ड्रिया साइट एरोबिक श्वसन है जिसमें श्वसन सब्सट्रेट पूरी तरह से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी में ऑक्सीकृत हो जाते हैं।
  • इस प्रक्रिया में मुक्त होने वाली ऊर्जा को प्रारंभ में एटीपी के रूप में संग्रहित किया जाता है।
  • एटीपी का उपयोग कोशिका की विभिन्न ऊर्जा की आवश्यकता वाली प्रक्रियाओं जैसे पेशी संकुचन, तंत्रिका आवेग चालन, जैवसंश्लेषण, झिल्ली परिवहन, कोशिका विभाजन, गति आदि में किया जाता है।
  • एटीपी के निर्माण के कारण माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का पावर हाउस कहा जाता है।
  • माइटोकॉन्ड्रिया कई जैव रसायनों  (various biochemicals) जैसे क्लोरोफिल, साइटोक्रोम, पाइरीमिडीन, स्टेरॉयड, एल्कलॉइड आदि, के संश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण करते हैं।
  • माइटोकॉन्ड्रिया के आंतरिक कक्ष के मैट्रिक्स में फैटी एसिड के संश्लेषण (enzyme for fatty acid synthesis) के लिए एंजाइम मौजूद होते हैं।
  • कई अमीनो एसिड का संश्लेषण (many amino acid synthesize) माइटोकॉन्ड्रिया में होता है।
  • पहले गठित अमीनो एसिड ग्लूटामिक एसिड और एसपारटिक एसिड (glutamic and aspartic acid) हैं।
  • माइटोकॉन्ड्रिया आवश्यकता पड़ने पर (can store and release calcium ions) कैल्शियम को स्टोर और रिलीज कर सकता है।
  • ज़्यादातर जीवों में माइटोकांड्रिया मैटरनल इनहेरिटेंस (maternal inheritance) से आती है, जैसे की ह्यूमन में ये ओवम (present in ovum) से नई जनरेशन में पहुँचती है ।
  • माइटोकॉन्ड्रिया फोटोरेस्पिरेटरी मार्ग (Photorespiratory pathway or C2 cycle) में क्लोरोप्लास्ट और पेरॉक्सिसोम (chloroplast & peroxisomes) के दौरान भी शामिल होते हैं, जो C3 पौधों में वेस्टफुल प्रोसेस है।

आज की पोस्ट में हमने माइटोकांड्रिया के बारे में समझा साथ ही यह भी देखा कि माइटोकांड्रिया कितनी ज़रूरी सेल ऑरगॅनेल्स है।

उम्मीद है यह पोस्ट आपको पसंद आया होगा। आपकी तरफ से किसी भी प्रकार की राय और सुझाव का स्वागत रहेगा।

इसके अलावा यदि कोई मिस्टेक्स हुई है तो उसे भी बताएं हम उसे पोस्ट में अपडेट करने की पूरी कोशिश करेंगे।

अपना कीमती समय देने के लिए आपका धन्यवाद।

आप की ऑनलाइन यात्रा शुभ हो।

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