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भारत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री – सम्पूर्ण जानकारी | indian textile industry in hindi.

Last Updated: July 7, 2020 By Gopal Mishra 7 Comments

भारत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री 

Indian textile industry in hindi.

Indian Textile Industry in Hindi

अगर मैं भारत के सबसे बड़े corporate houses का नाम लेने को कहूँ तो अमूमन आप – टाटा, बिड़ला और अम्बानी का नाम ले लेंगे, लेकिन अगर मैं आपसे पूछूँ कि इन तीनो में एक कॉमन बात क्या है तो शायद आप सोच में पड़ जाएं!

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मैं बताता हूँ-

इन तीनो में कॉमन है इनकी origin… इनकी शुरुआत. इन तीनो की शुरुआत टेक्सटाइल यानी कपड़ों के धंधे से हुई है.

टाटा बिड़ला अम्बानी की शुरुआत टेक्सटाइल से हुई 

भारत का टेक्सटाइल उद्योग

1850s में सेठ शिव नारायण बिड़ला ने कॉटन ट्रेडिंग का काम शुरू किया. 

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  1870s में जमशेदजी टाटा ने मुंबई के चिंचपोकली में बंद हो चुकी आयल मिल खरीदी और उसे कॉटन मिल में बदल दिया.

1966 में  धीरुभाई अंबानी ने Reliance Commercial Corporation की स्थापना एक पॉलिएस्टर फर्म के रूप में की. बाद में जिसका नाम बदलकर रिलायंस इंडस्ट्रीज कर दिया गया, जो आज दस लाख करोड़ की कम्पनी है. 

यानी ये तीनो ही टेक्सटाइल इंडस्ट्री से उठे और आज भारत ही नहीं विश्व के सबसे बड़े बिजनेस घरानों में गिने जाते हैं.

ख़ास है ये टेक्सटाइल इंडस्ट्री  

दोस्तों, हज़ारों लोगों को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाली ये टेक्सटाइल इंडस्ट्री कुछ ख़ास है…और आज मैं अजय अजमेरा आपसे इसी बारे में बात करूँगा. 

  • पढ़ें : सूरत के कामयाब औंट्राप्रेंयोर अजय अजमेरा के 31 प्रेरक कथन

इस लेख में हम बात करेंगे-

  • कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री दरअसल है क्या?
  • इसका इतिहास क्या है?
  • ये कितनी बड़ी है?
  • इसका भविष्य कैसा है?
  • ऐसे कौन से फैक्टर्स हैं जो भारत में टेक्सटाइल इंडस्ट्री की ग्रोथ को सपोर्ट करते हैं. 
  • और हमारे लिए यहाँ पर क्या opportunity बनती है.

इस लेख का विडियो वर्जन यहाँ देखें 

So, let us start with the most basic question?

क्या है टेक्सटाइल इंडस्ट्री ? / What is textile industry in Hindi ?

दोस्तों, टेक्सटाइल’ शब्द लैटिन शब्द ‘ टेक्सरे ‘ से लिया गया है जिसका अर्थ है बुनाई करना.

So, basically textile means बुना हुआ कपड़ा.

हिंदी में हम टेक्सटाइल इंडस्ट्री को कपड़ा उद्योग या वस्त्र उद्योग भी कहते हैं.

अब इसे आप ऐसे समझिए…

आपने अभी जो कपड़ा पहना हुआ है वो आप तक कैसे पहुंचा… suppose करिए आपने 100% pure cotton की एक रेड टीशर्ट पहनी है….तो ये आप तक कैसे पहुंची?

जिन्हें नहीं पता उन्हें शायद ये जानकार आश्चर्य हो कि इसकी शुरुआत हुई –

  • कॉटन प्लांट या कपास के पौधे के एक बीज से जिसे किसी किसान ने अपने खेत में बोया.

भारत का कपड़ा उद्योग

  • बीज पौधा बना… पौधे में फूल निकले….मशीन या हाथ से इन फूलों को इकठ्ठा किया गया… ट्रांसपोर्ट द्वारा इन्हें फैक्ट्री में पहुंचाया गया ….कई मशीनों से इन्हें प्रोसेस किया गया… cotton bails या रुई के ढेर बनाये गए….जिसकी सफाई करके और कई अन्य मशीनों की मदद से बना धागा यानी yarn. 
  • फिर इन धागों की लड़ियों को red color से dye किया गया…अब इन धागों को horizontally और vertically weave करके  यानी बुन करके कपडा तैयार किया गया.
  • फैशन डिज़ाइनर के निर्देशानुसार इस कपड़े को कट करके… डिजाईन करके टेलर ने आपकी रेड कलर की 100% pure cotton टीशर्ट तैयार की. ट्रासंपोर्ट द्वारा तैयार हुई टीशर्ट विभिन्न बाजारों में पहुंची  फिर आप ऐसे ही किसी बाज़ार गए और किसी दूकान से या शायद ऑनलाइन पोर्टल पर उस टीशर्ट को purchase किया. 

Textile Industry in India

अब उस बीज को बोने से इस टीशर्ट को प्राप्त करने तक के सफ़र में जितनी भी चीजें आयीं वो सब टेक्सटाइल इंडस्ट्री का एक हिस्सा हैं. इसके अलावा एक बहुत बड़ा हिस्सा man made fibres या synthetic fibres, जैसे कि नायलॉन, रेयान, polyster इत्यादि से बने कपड़ों का है.

दोस्तों,  टेक्सटाइल इंडस्ट्री, एग्रीकल्चर के बाद दूसरी सबसे बड़ी employment generate करने वाली इंडस्ट्री है. 

 💡 140 Bn$ की ये इंडस्ट्री साढ़े चार करोड़ (4.5 Cr) लोगों को डायरेक्टली और 6 करोड़ लोगों को इनडायरेक्टली रोजगार उपलब्ध कराती है.  और यही कारण है कि यह किसी भी सरकार के लिए एक बहुत महत्त्वपूर्ण इंडस्ट्री है.

  • पढ़ें: मैं बताता हूँ कैसे करें कपड़ों का बिजनेस!

कितनीं पुरानी है टेक्सटाइल इंडस्ट्री ? History of  Textile Industry in Hindi

पर सवाल उठता है कि ये इंडस्ट्री इतनी बड़ी बनी कैसे?  इसकी शुरुआत कैसे हुई? इंसान ने कपडे बनाने और पहनने कब से शुरू किये?

दोस्तों, अगर सिर्फ टेक्सटाइल या कपड़ों की बात करें तो आदि मानव जानवरों की खालों को कपड़ों के रूप में इस्तेमाल करते थे. 

Stone age यानी पाषाण युग में बुने हुए कपड़ों के मौजूद होने के साक्ष्य हैं. 

कई अध्यनों से अनुमान लगाया गया है कि मनुष्य  1 लाख साल से भी पहले से कपड़े पहन रहा है. 

और कपड़ा सिलने वाली सुई का आविष्कार 50,000 साल पहले हो चुका था. साउथ अफ्रीका में एक गुफा के अन्दर से bird bone से बनी एक सुई की खोज हुई थी. 

अगर भारत की बात करें तो Indus Valley Civilization, जिसे हम हड़प्पा की सभ्यता भी कहते हैं में लोग वस्त्रों के मामले में बहुत विकसित थे. मोहनजोदड़ो में मिली “प्रीस्ट किंग” नाम की साढ़े चार हज़ार साल पुरानी एक मूर्ती में एक व्यक्ति फूलों की कढाई वाला शाल ओढ़े हुए है. 

Origin of textile in Hindi

Priest King

यानी कपड़ों और इंसानों का नाता बहुत पुराना है. 

लेकिन अगर हम मॉडर्न एरा की बात करें जबसे textile का mass production शुरू हुआ तो ऐसा औद्योगिक क्रांति यानी industrial revolution के दौरान England में हुआ.

औद्योगिक क्रांति के युग में, 1733 में फ्लाइंग शटल, फ्लायर-एंड-बॉबिन प्रणाली और 1738 में जॉन वायट और लुईस पॉल द्वारा रोलर स्पिनिंग मशीन जैसे आविष्कारों के माध्यम से उत्पादन की गति बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास किया गया था। । 

लुईस पॉल बाद में 1748 में कार्डिंग मशीन के साथ आए और 1764 में कताई जेनी भी विकसित की गई।

इसके बाद 1784 में  एडमंड कार्टराइट ने पावर लूम का आविष्कार किया।

Power Loom Used in Textile Industry

Power Loom Used in Textile Industry

इन अविष्कारों के कारण 18 वीं शताब्दी में टेक्सटाइल इंडस्ट्री एक मेनस्ट्रीम इंडस्ट्री बन गयी.

भारत में textile industry का आगमन 

अगर भारत की बात करें तो सन 1818 में देश की पहली कपड़ा मिल कोलकाता के निकट स्थापित की गयी. लेकिन सही मायने में कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री की शुरुआत 1850s में हुई, जब एक पारसी कॉटन मर्चेंट ने 1854 में बॉम्बे में कॉटन मिल establish की. धीरे-धीरे सन 1900 आते-आते कोलकाता, मुंबई, अहमदाबाद समेत भारत के कई शहरों में कुल 178 टेक्सटाइल मिल्स रन करने लगीं. 

आज का परिदृश्य  / Today’s Scenario of Textile Industry in Hindi

अब बात करते हैं आज की. आज भारत में टेक्सटाइल मार्केट कितना बड़ा है? हम दुनिया में कहाँ स्टैंड करते हैं और कैसे हम इस क्षेत्र में खुद को और मजबूत बना सकते हैं. 

2018 में घरेलू  textiles and apparel industry  140 Bn $ की थी, जिसमें से 100 Bn $ की खपत तो सिर्फ भारत में ही हो गयी और बाकी का 40 Bn $ का माल विश्व भर में एक्सपोर्ट किया गया. 

Textile and Apparel Industry of India in Hindi

आज ये इंडस्ट्री भारत की कुल GDP का 2.3% contribute करती है. हमारे देश में जितना भी industrial production होता है उसका 13% textile industry ही करती है और भारत के कुल एक्सपोर्ट में भी इसकी 12% की हिस्सेदारी है. 

और ऐसा भी नहीं है कि कपड़ा और परिधान उद्योग stagnate हो रहा हो, नहीं ये तो और भी मजबूती से आगे बढ़ रहा है. 

2019 से 2021 तक इसकी CAGR ( compound annual growth rate) 28% रहने की उम्मीद है.जबकि अगर हम global textile market size की बात करें तो वो  4.24% CAGR के साथ 2025 तक 1.23 trillion USD पहुँचने का अनुमान है.

वहीँ  2024-25 तक हमारे टेक्सटाइल एक्सपोर्ट की वैल्यू 300 Bn $ तक पहुँच जाएगी. 

और वर्ल्ड मार्किट शेयर में हम 5% की हिस्सेदारी से बढकर 15% की हिस्सेदारी तक पहुँच जायेंगे.

Growth Drivers

शायद आप सोच रहे हों कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री इस तरह की phenomenal growth कैसे attain करेगी?

इसे ऐसे समझिये – 

जबरदस्त डिमांड 

  • भारत दुनिया की सबसे तेजी से ग्रो हो रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जाहिर है इससे लोगों की इनकम बढ़ेगी, जिससे उन्हें अपने कपड़ों व परिधानों पर और अधिक खर्च करने की ताकत मिलेगी. 
  • बहुत से उद्योग, टेक्सटाइल इंडस्ट्री के उत्पाद प्रयोग करते हैं, उनसे भी डिमांड बढ़ेगी.

Textile Industry Advantage in India

रॉ मटेरियल की उपलब्धता 

  • पूरी दुनिया में भारत कॉटन और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है. 
  • पॉलिएस्टर, रेशम (सिल्क)  और फाइबर के production में भी हम विश्व में दूसरे स्थान पर हैं. 

सस्ता व स्किल्ड लेबर 

  • इसके अलावा हमारे पास एक बहुत बड़ा एडवांटेज स्किल्ड और unskilled labour की पर्याप्त availability का है. जो कम दाम पर उपलब्ध है जिससे cost of production घट जाता है और हमें competitive advantage देता है. 

सरकार का सपोर्ट 

  • अगर हम Government Support की बात करें तो भी टेक्सटाइल सेक्टर में सरकार ने 100% FDI की अनुमति दी हुई है. और एक्सपोर्ट्स बढाने के लिए  ASEAN ( Association of Southeast Asian Nations) देशों के साथ फ्री ट्रेड भी allow किया गया है. 
  • साथ ही सरकार Scheme For Integrated Textile Parks (SITP) और Technology Upgradation Fund Scheme में भी काफी पैसे इन्वेस्ट कर रही है ताकि private companies के लिए इस सेक्टर को और भी अधिक लुभावना बनाया जा सके और वर्क फ़ोर्स को ट्रेन किया जा सके.

आपके लिए टेक्सटाइल सेक्टर में क्या अवसर हैं… क्या opportunities हैं?

दोस्तों, ये तो साफ़ है कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री का भविष्य बहुत उज्ज्वल है. और past की तरह future में भी भारत के कई करोडपति इसी सेक्टर से निकलेंगे. ऐसे में अगर आप भी इस ग्रोथ का हिस्सा बनाना चाहते हैं तो उसके लिए पहला कदम उठाने का सबसे अच्छा समय – ‘अब’ है.  The biggest opportunity is “NOW”

अब सोचना ये है कि आप इस सेक्टर में क्या कर सकते हैं?

इसके लिए आपको अपनी मौजूदा स्थिति का आंकलन करना होगा.

  • जो लोग बड़ा निवेश करना चाहते हैं वो भारत सरकार द्वारा स्थापित किये जा रहे SITPs में अपना सेटअप लगा सकते हैं. 
  • जो युवा आज जॉब तलाश रहे हैं वे टेक्सटाइल इंडस्ट्री में अपना भविष्य बना सकते हैं. इस इंडस्ट्री में आपको  Engineering, Marketing & Sales, Apparel Manufacturing

Store Operations, Direct Selling, Fashion Publicity, Designer और अन्य कई तरह की जॉब्स मिल सकती हैं.

For details check here:  http://www.sewing.org/html/textilecareers.html, bachelor of scinece in textiles , phd in textile technology management.

  • Fashion Desiging

अपना बिजनेस शुरू करने की opportunity

इसके अलावा एक बहुत बड़ी opportunity थोड़े से निवेश के साथ अपना खुद का गारमेंट बिजनेस शुरू करने की है. मैं इसे बड़ा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज से 25 साल पहले मैंने खुद इस opportunity का लाभ उठाया और आज Ajmera Fashion सूरत के सबसे प्रतिष्ठित और बड़े Saree Manufacturer के रूप में जाना जाता है. 

Start Your Textile and Apparel Business

और सबसे बड़ी बात कि मैंने अपनी आँखों से इस रूट को अपना कर हज़ारों लोगों को अपना business establish करते हुए देखा है. 

इसके लिए आप मात्र 25 हज़ार रु से शुरुआत कर सकते हैं वो भी अपने घर से अपनी मौजूदा नौकरी या पढाई को करते हुए. इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप इन नंबर्स पर कॉल करें –

➡  +91 9979148251 / 9727560363

 ➡ ये लेख पढ़ें: कम लागत में कैसे शुरू करें साड़ियों का बिजनेस

 ➡ ये विडियो देखें

दोस्तों, उम्मीद करता हूँ टेक्सटाइल इंडस्ट्री पर ये जानकारी आपके काम आएगी और साथ ही आशा करता हूँ कि लाखों करोड़ों लोगों की तरह आप भी इस इंडस्ट्री का हिस्सा बना कर अपना उज्ज्वल भविष्य का निर्माण कर पायेंगे.

cotton clothes essay in hindi

Ajay Ajmera

Founder Ajmera Fashion Surat, Gujarat

——-

ये भी पढ़ें:

  • कैसे शुरू करें मेडिसिन मार्केटिंग का बिजनेस?
  • How to start RO Water Plant कैसे शुरू करें पानी का बिजनेस?
  • कैसे शुरू करें अपना खुद का रेस्टोरेंट?
  • कैसे शुरू करें bakery biscuits का बिजनेस?
  • कैसे बनें एक सफल प्रॉपर्टी डीलर?

Note:  This post is sponsored by “Ajmera Fashion”

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cotton clothes essay in hindi

July 24, 2021 at 11:53 pm

himmat mil gyi fir se ise krne ki thanku sar 🙏🏻

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July 15, 2021 at 4:11 pm

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November 28, 2020 at 1:12 am

Thank you so much

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February 20, 2020 at 1:39 am

I am textile student very informative post sirji

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February 19, 2020 at 7:13 pm

Sir this is so informative information and i m so glad of your website. And i m so thankful for your great website.

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February 19, 2020 at 5:40 pm

Very informative… really we wear a seed.

February 19, 2020 at 5:38 pm

itni vistrit aur achhi janaki ke liye bahut bahut dhanywaad. kripya hindi me aise aur bhi lekh prastut kare

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cotton clothes essay in hindi

cotton clothes essay in hindi

सूती कपड़ों की जानकारी : कॉटन से बने कपड़ों के एक नहीं अनेक फायदे हैं!

Benefits Of Cotton Clothes

सूती कपड़े (Cotton Clothes) की जानकारी के बाद शायद कॉटन के नाम पर 'कुछ भी' खरीदने से आप बच सकते हैं। भले ही कॉटन क्लॉथ स्टाइल व फैशन के मामले में थोड़ा पीछे हैं। मगर सूती कपड़े के फायदे इतने लाजवाब हैं, जो कि बहुत नाम-दाम वाली ड्रेस में शायद ही मिल सके।

वैसे तो सूती कपड़े भी महंगाई, स्टाइल के मामले में पीछे नहीं, इसके साथ ही ये कम से कम और ज्यादा से ज्यादा दाम में भी उपलब्ध हैं। क्योंकि सूती कपड़े भी कई प्रकार के मिलते हैं। बस कॉटन के कपड़ों की पहचान आपको आनी चाहिए।

ये बात सभी जानते हैं कि सूती कपड़े गर्मी के लिए बेहतर होते हैं । लेकिन ऐसा क्यों, इसका सटीक जवाब शायद ही कोई बता पाए।

Table of Contents

प्राकृतिक फाइबर (Natural Fiber)

© Shutterstock

नेचुरल फाइबर के कपड़े अपने आप में औषधीय गुण से भरपूर होते हैं। इस कारण ये दवाई की तरह काम करते हैं। जो फाइबर प्राकृतिक रूप से पेड़-पौधों से प्राप्त अथवा कीड़े द्वारा निर्मित हो उसे प्राकृतिक फाइबर की श्रेणी में रखा जाता है।

जैसे- कपास के पौधे से सूती कपड़ा (Cotton) , अलसी के पौधे से लिनन का कपड़ा (Linen) , रेशम के कीड़ों से रेशम/ सिल्क (Silk) प्राप्त होता है। इनकी सबसे खास बात ये होती है कि प्राकृतिक रेशे से बना कपड़ा स्किन को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाने का काम नहीं करता है।

सूती कपड़ों की खास बातें

कपास से सूती फाइबर बनाए जाते हैं। कपास बेहद नरम और आरामदायक होता है, जो कि आप महसूस कर चुके होंगे! सात ही यह हाइपोलेरगेनिक भी है। इस कारण सूती के कपड़े त्वचा को सांस लेने, गर्म हवा से बचाने, त्वचा की नमी बरकरार रखने में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। ये कपड़े लंबे समय से चले आ रहे हैं।

ऐसा कहा जाता है कि सूती कपड़े गर्म मौसम में शरीर को ठंडक देने व सर्दी के दिनों में शरीर की गर्माहट बनाए रखते हैं। ये कपड़े शरीर और मौसम के बीच एक सामंजस्य बनाए रखते हैं। इस कारण हम आरामदेह महसूस कर पाते हैं।

गर्मी में सूती कपड़ों का महत्व

मॉइस्चराइजिंग/नमी (moisturizing).

गर्मी के दिनों में त्वचा की नमी बरकरार रखना कितना चुनौतीपूर्ण होता है इससे हम सब वाकिफ हैं। अधिकतर लोग नमी बरकार रखने के लिए क्या-क्या जतन करते हैं। चूंकि सूती कपड़े से हवा का आना जाना नहीं रुकता। शरीर की त्वचा को आसानी से ऑक्सीजन मिल जाता है। इस कारण ये सूखते नहीं।

हीट प्रतिरोधी

शुद्ध सूती कपड़े अच्छी गर्मी प्रतिरोधी होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब तापमान 110 डिग्री सेल्सियस से कम होता है, तो ऐसे मौसम में ये शरीर को पूरी तरह बचाने का काम करता है। इसके अलावा धोने के बाद भी इनकी गुणवत्ता बरकरार रहती है जो कि अन्य फाइबर के कपड़ों में नहीं मिलती।

क्षार प्रतिरोध

क्षार के लिए कपास फाइबर प्रतिरोध अपेक्षाकृत बड़ा माना जाता है। ये शरीर के पसीने को सूखाने व सोखने का काम करता है जो कि अन्य कपड़ो में शायद ही मिल सके। ये कीटाणुशोधन के अनुकूल है।

एलर्जी से बचाव

इसमें किसी प्रकार के हानिकारक केमिकल का उपयोग नहीं किया जाता है। इस कारण ये स्किन को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाता है। एलर्जी या रेशेज होने की संभावना बहुत कम होती है। खासकर, गर्मी के दिन में गलत कपड़े पहनने से हमें स्किन से जुड़ी समस्याएं हो जाती हैं।

इस कारण से एलर्जी से ग्रसित लोगों को सूती कपड़े पहनने की सलाह दी जाती है। इनके इसी गुण के कारण ही टी-शर्ट, गंजी/बनियान, अंडरवियर, रूमाल, गमछा जैसे कपड़े इससे ही बनाए जाते हैं। 

अगर आप गर्मी के लिए ड्रेस खरीदने जा रहे हैं तो समर फैशन टिप्स की मदद भी ले सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

सूती कपड़े (Cotton Clothes) की जानकारी यहां पर तथ्यों के आधार पर दी गई है। आप कॉटन क्लॉथ खरीदने से पहले इन फैक्ट्स के आधार पर उनकी जांच कर सकते हैं। क्योंकि बाजार में सूती कपड़ों के नाम पर गलत कपड़े बिक रहे हैं। इसलिए हमें डुप्लीकेट सूती कपड़ों (Duplicate Cottons Clothes) को खरीदने से बचना है। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो कपड़ों के कारण आर्थिक और शारीरिक दोनों प्रकार के नुकसान उठाने पड़ सकते हैं। हमें सूती कपड़ों की खरीदारी (Clothes Shopping) करते वक्त इन बातों का ध्यान रखना है।

अगर आपको इसके अलावा भी सूती कपड़ों को लेकर कोई खास जानकारी हो तो हमें कॉमेंट कर के बता सकते हैं।

Lio

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भारत में टेक्सटाइल इंडस्ट्री – सम्पूर्ण जानकारी | Indian Textile Industry in Hindi

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Gourav Jain

  • May 12, 2023

भारत में टेक्सटाइल इंडस्ट्री – सम्पूर्ण जानकारी | Indian Textile Industry in Hindi

भारत दुनिया में कपड़ा और परिधान के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। दुनिया भर में उपभोक्ता उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े और सस्ती कीमत के कारण भारत से कपड़ा आयात करते हैं। नीचे हमने भारत में कपड़ा उद्योग के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य लिखे हैं –

  • एक अध्ययन के अनुसार, 2021 तक भारतीय कपड़ा उद्योग का मूल्य 223 बिलियन डॉलर है।
  • टेक्सटाइल उद्योग कपास और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है, रेशम में दूसरा सबसे बड़ा, और विश्व स्तर पर हाथ से बुने हुए कपड़े का 95% भारत से है।
  • कपड़ा उद्योग कृषि उद्योग के बाद भारत में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है।

अगर आप भी एक टेक्सटाइल बिज़नेस के मालिक हैं तो आपको इस बिज़नेस के मैनेजमेंट और एकाउंटिंग की जानकारी तो होगी ही, ऐसे में क्या आपको लगता है आप अपना बिज़नेस ठीक से मैनेज कर पा रहे हो? अगर नहीं तो नीचे दी गयी नीली बटन है आपके टेक्सटाइल बिज़नेस का पूरा मैनेजर।

इस आशाजनक परिचय के साथ, आइए हम इस पोस्ट को शुरू करते हैं जहां हम कपड़ा उद्योग से लेकर भारतीय फैशन उद्योग में हाल के रुझानों तक सब कुछ कवर करेंगे। पढ़ते रहिये…

सबसे पहले आप यह तो जानते ही होंगे कि कपड़ा क्या और कितने अलग-अलग प्रकारों का होता है, मगर यह बहुत कम लोग जानते हैं कि कपड़ों का उद्योग मतलब टेक्सटाइल इंडस्ट्री अत्यंत प्राचीन उद्योंगों में शामिल है । 

अगर हम तुलनात्मक होकर बात करें तो खेती-किसानी के बाद भारत में टेक्सटाइल बिज़नेस ही अत्यधिक लोगों को नौकरी, पैसा और रोजगार प्रदान करता है। इस इंडस्ट्री की सबसे अच्छी बात यही है कि यह एक शुरुआत से ही आत्मनिर्भर उद्योग है, चाहे कच्चा सामान का निर्माण हो या उस सामान की सजावट में वृद्धि करके उसे बेचना, यह उद्योग हर स्तर पर भारत की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ और सशक्त बनाता है। 

एक महत्वपूर्ण सच यह भी है कि भारत के तमाम नामी घराने जैसे टाटा, बिरला और अम्बानी जैसे बिज़नेस की शुरुआत और फलन इसी वस्त्र उद्योग से ही हुआ है।

टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए बेस्ट है Lio App

टेक्सटाइल कैटेगरी की सभी रेडीमेड टेम्पलेट्स टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए ही बनाई गई है। डिलीवरी चालान से लेकर, बिल, आदि सभी चीज़ें आप अब आसानी से बना सकते हैं।

वो भी फ्री में

टेक्सटाइल इंडस्ट्री क्या है?

अगर हम साधारण शब्दों में कहें तो टेक्सटाइल का सीधा मतलब होता है “बुना कपड़ा”।

कपड़ा उद्योग वह उद्योग है जिसमें वस्त्र, कपड़े और कपड़ों के रिसर्च, डिजाइन, विकास, निर्माण और वितरण जैसे बड़े-बड़े खंड शामिल हैं। भारत का कपड़ा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है, जो कई सदियों पुराना है।

टेक्सटाइल इंडस्ट्री

कपड़ा उद्योग का कृषि से घनिष्ठ संबंध (कच्चे माल जैसे कपास के लिए) और वस्त्र के मामले में देश की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं ने इसे देश के अन्य उद्योगों की तुलना में अद्वितीय बना दिया है। भारत के कपड़ा उद्योग में भारत के भीतर और दुनिया भर में विभिन्न बाजार क्षेत्रों के लिए उपयुक्त विभिन्न प्रकार के उत्पादों का उत्पादन करने की क्षमता है।

टेक्सटाइल कैसे प्रोसेस किया जाता है?

नीचे इस लेख में हम समझाएंगे कि कच्चे माल जैसे ऊन या कपास की खरीद से लेकर अंतिम उत्पाद के निर्माण तक वस्त्रों को कैसे संसाधित किया जाता है। आज की कपड़ा प्रक्रिया मानव सभ्यता की शुरुआत से ही शुरू होती है।

हालांकि स्वचालित मशीनरी ने अधिकांश पारंपरिक तरीकों को बदल दिया है, आज भी, कई यांत्रिक प्रक्रियाओं के बाद अंतिम उत्पाद प्राप्त किया जाता है।

cotton clothes essay in hindi

हालाँकि, हमने नीचे पूरी प्रक्रिया को पाँच चरणों में सरल बना दिया है –

कपड़ा निर्माण प्रक्रिया के लिए प्राकृतिक और मानव निर्मित (या सिंथेटिक) फाइबर का उपयोग किया जाता है। प्राकृतिक रेशे कपास, ऊन, रेशम आदि हैं। आर्टिफीसियल रेशे पॉलिएस्टर, रेयान, नायलॉन आदि हैं।

फाइबर

पहला कदम इन फाइबर को लेना है। यदि आप प्राकृतिक कपड़ा फाइबर का उपयोग कर रहे हैं, तो उन्हें खेती, कटाई और किसानों से प्राप्त करने की आवश्यकता होती है, जबकि आर्टिफीसियल फाइबर सीधे व्यक्तिगत विनिर्माण संयंत्रों से मंगवाए जाते हैं।

यार्न निर्माण

यार्न निर्माण प्रक्रिया में, कच्चे माल को यार्न में प्रोसेस्ड किया जाता है। फाइबर को साफ करके एक साथ मिलाया जाता है। यदि कोई बिखरा हुआ मलबा या अवशेष है, तो उन्हें तुरंत हटा दिया जाता है ताकि पूरा बैच दूषित न हो।

यार्न निर्माण

इसके बाद कताई प्रक्रिया आती है, जहां कच्चे माल को सूत में काता जाता है।

कपड़ा निर्माण

कपड़ा निर्माण प्रक्रिया में, निर्मित यार्न को बुना जाता है। एक बुनाई मशीन का उपयोग करके यार्न को एक लंबे कपड़े में बनाया जाता है।

कपड़ा निर्माण

फिर इसे हार्नेस नामक विशिष्ट वर्गों के आधार पर विभिन्न रंग और धागे बनाने के लिए एक करघे में खिलाया जाता है।

रंगाई प्रक्रिया

यह रंगाई और फिनिशिंग की प्रक्रिया है, जहां आप कपड़े को अर्ध-तैयार अवस्था में लाते हैं। रंगाई प्रक्रिया में कपड़े में रंग जोड़ना शामिल है, जबकि फिनिशिंग प्रक्रिया में रसायनों को जोड़ना शामिल है।

रंगाई प्रक्रिया

कुछ मामलों में, कपड़ा छपाई भी शामिल है। इस प्रक्रिया में कपड़ों पर प्रिंटर का उपयोग करना शामिल है जहां रसायनों को गर्मी से सक्रिय किया जाता है और कपड़ों पर लगाया जाता है।

अपना टेक्सटाइल बिजनेस मैनेज कीजिये अपनी भाषा में

Lio App में आप अपनी भाषा में अपने बिजनेस को मैनेज कर सकते हैं। Lio App में हिंदी, इंग्लिश, गुजराती, मराठी ऐसी कुल 10 भारतीय भाषाएं उपलब्ध है।

वस्त्र निर्माण.

यह अंतिम चरण है जिसमें अर्ध-तैयार कपड़े को तैयार कपड़े में बदल दिया जाता है।

यह कदम प्रक्रियाओं का एक सामूहिक समूह है जिसमें परिधान डिजाइन, पैटर्न बनाना, नमूना बनाना, उत्पादन पैटर्न बनाना, ग्रेडिंग, मार्कर बनाना, कपड़े फैलाना, कपड़े काटना, भागों को काटना, छँटाई, बंडल करना, सिलाई, निरीक्षण, स्पॉट हटाना, इस्त्री करना शामिल है।

वस्त्र निर्माण

फिनिशिंग, अंतिम निरीक्षण, पैकिंग, और शिपमेंट के साथ समाप्त होता है।

टेक्सटाइल इंडस्ट्री का इतिहास क्या है?

ऊपर लिखे वस्त्र उद्योग की जानकारी के बाद यह सवाल आपको जरूर परेशान कर रहा होगा कि क्यों यह उद्योग इतना विशाल है और इसकी विशालता की शुरुआत कहाँ से हुई?

किसी के पास यह आंकड़ा तो नहीं है कि हम और आप मतलब पूरी मनुष्य प्रजाति कपड़े कबसे पहन रही है लेकिन कुछ अध्ययन कहते हैं कि पाषाण युग से मनुष्य कपड़े पहन रहा है। 

अगर हम भारत के वस्त्र इतिहास की बात करें तो हड़प्पा की सभयता में हमारी संस्कृति और हमारे लोग बहुत आगे थे। इससे यह तो साबित हो गया कि कपड़ों और हम इंसानों के रिश्ता लाखों साल पुराना है लेकिन अगर हम आज के युग की बात करें तो यह वस्त्रों का निर्माण औद्योगिक क्रांति के समय इंग्लैंड में शुरू हुआ था।

जब 1733 में पहली बार फ्लाइंग शटल, फ्लायर एंड बॉबिन प्रणाली और 1738 में रोलर स्पिनिंग मशीन के क्रांतिकारी आविष्कार से टेक्सटाइल बिज़नेस यानी वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने का सुदृढ़ कार्य किया गया। 

1738 में स्पिनिंग मशीन के आविष्कार के बाद लुइस पॉल ने 1748 में कार्डिंग मशीन और 1764 में कतई जेनी को भी विकसित किया। फिर ठीक 20 सालों बाद 1784 में पावर लूम का आविष्कार हुआ। इसलिए 18वीं सदी को औद्योगिक क्रांति की वजह से टेक्सटाइल इंडस्ट्री को काफी बल मिला और आज दुनिया भर में इतनी समृद्ध इंडस्ट्री है। 

भारत में टेक्सटाइल इंडस्ट्री का इतिहास

अगर हम इतिहास की बात करें तो वैसे तो सन 1818 में ही कोलकाता के पास 1 कपड़े की मिल शुरू हो गयी थी लेकिन असल में देखा जाए तो कपड़ा उद्योग ने रफ्तार पकड़ी 1850 के बाद जब 1854 में एक पारसी व्यापारी ने बॉम्बे कॉटन मिल की स्थापना की उसके बाद तो 20वीं सदी आते-आते भारत में लगभग 178 कपड़ों की मिल शुरू हो गयी और यह टेक्सटाइल इंडस्ट्री बढ़ती गयी। 

टेक्सटाइल इंडस्ट्री वर्तमान में कहाँ खड़ा है?

हम अगर आपको आंकड़ों के तौर पर बताएं तो भारत के टेक्सटाइल इंडस्ट्री में आज 4.5 करोड़ से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं जिसमे 35 लाख से अधिक हथकरघा के श्रमिक हैं। साल 2018-19 में भारत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने जीडीपी में 5% और निर्यात में 12% का सहयोग किया है। टेक्सटाइल का निर्यात अप्रैल 2021 से अक्टूबर 2021 तक 22.80 बिलियन डॉलर रहा जिसमें से सभी प्रकार के रेडीमेड कपड़े शामिल हैं। 

टेक्सटाइल इंडस्ट्री वर्तमान में कहाँ खड़ा है?

अगर भविष्य की बात करें तो यह टेक्सटाइल इंडस्ट्री का बाज़ार 2029 तक लगभग 209 बिलियन अमेरिकन डॉलर से भी ज्यादा बढ़ जाएगा जिसका सीधा सा मतलब यह होगा कि हमारी विश्व में टेक्सटाइल हिस्सेदारी 5% से बढ़कर 15% हो जाएगी।

भारतीय कपड़ा उद्योग की संरचना और विकास

भारत का कपड़ा उद्योग अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। 2000/01 में, कपड़ा और परिधान उद्योगों का जीडीपी का लगभग 4 प्रतिशत, औद्योगिक उत्पादन का 14 प्रतिशत, औद्योगिक रोजगार का 18 प्रतिशत और निर्यात आय का 27 प्रतिशत (हाशिम) था।

भारत का कपड़ा उद्योग वैश्विक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है, सूती धागे और कपड़े दोनों के उत्पादन में चीन के बाद दूसरा और सिंथेटिक फाइबर और यार्न के उत्पादन में पांचवें स्थान पर है।

अन्य प्रमुख कपड़ा उत्पादक देशों के विपरीत, ज्यादातर छोटे पैमाने पर, गैर-एकीकृत कताई, बुनाई, कपड़ा फिनिशिंग और परिधान बिज़नेस, जिनमें से कई तो अब तक पुरानी तकनीक का उपयोग करते हैं, भारत के कपड़ा क्षेत्र की विशेषता है। 

कुछ, ज्यादातर बड़ी, फर्म “संगठित” क्षेत्र में काम करती हैं, जहां फर्मों को कई सरकारी श्रम और टैक्स नियमों का पालन करना चाहिए। हालाँकि, अधिकांश फर्में छोटे पैमाने के “असंगठित” क्षेत्र में काम करती हैं, जहाँ नियम कम कड़े होते हैं और अधिक आसानी से चोरी हो जाते हैं।

भारतीय कपड़ा उद्योग की अनूठी संरचना टैक्स, श्रम और अन्य नियामक नीतियों की विरासत के कारण है, जिन्होंने बड़े पैमाने पर, अधिक पूंजी-गहन संचालन के साथ भेदभाव करते हुए छोटे पैमाने पर, श्रम-गहन उद्यमों का हमेशा समर्थन किया है। 

संरचना विश्व बाजार के बजाय भारत के मुख्य रूप से कम आय वाले घरेलू उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐतिहासिक नियमों के कारण भी है। नीतिगत सुधार, जो 1980 के दशक में शुरू हुए और 1990 के दशक में जारी रहे, विशेष रूप से कताई क्षेत्र में तकनीकी दक्षता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हुए हैं। 

हालांकि, अतिरिक्त सुधारों के लिए व्यापक गुंजाइश बनी हुई है जो भारत के बुनाई, कपड़ा फिनिशिंग और परिधान क्षेत्रों की दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ा सकते हैं।

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Lio App में टेक्सटाइल बिजनेस केटेगरी में फ्री रजिस्टर हैं और साथ ही अन्य प्रीमियम फीचर्स हैं जिसकी मदद से आप बिजनेस को अकेले संभाल सकते हैं।

भारत के कपड़ा उद्योग की संरचना.

अन्य प्रमुख कपड़ा उत्पादक देशों के विपरीत, भारत के कपड़ा उद्योग में ज्यादातर छोटे पैमाने पर, गैर-एकीकृत कताई, बुनाई, फिनिशिंग और परिधान बनाने वाले व्यापार शामिल हैं। यह अनूठी उद्योग संरचना मुख्य रूप से सरकारी नीतियों की विरासत है जिसने श्रम-केंद्रित, छोटे पैमाने के संचालन को बढ़ावा दिया है और बड़े पैमाने पर फर्मों के साथ भेदभाव किया है:

कम्पोजिट मिलें 

अपेक्षाकृत बड़े पैमाने पर मिलें जो कताई, बुनाई और, कभी-कभी, कपड़े की फिनिशिंग को एकीकृत करती हैं, अन्य प्रमुख कपड़ा उत्पादक देशों में आम हैं। भारत में, हालांकि, इस प्रकार की मिलों का अब कपड़ा क्षेत्र में उत्पादन का केवल 3 प्रतिशत हिस्सा है।

कम्पोजिट मिलें

लगभग 276 मिश्रित मिलें अब भारत में काम कर रही हैं, जिनमें से अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के स्वामित्व में हैं और कई आर्थिक रूप से “बीमार” मानी जाती हैं।

कताई कपास या मानव निर्मित फाइबर को बुनाई और बुनाई के लिए उपयोग किए जाने वाले धागे में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। मोटे तौर पर 1980 के दशक के मध्य में शुरू हुए विनियमन के कारण, कताई भारत के कपड़ा उद्योग में सबसे समेकित और तकनीकी रूप से कुशल क्षेत्र है। 

कताई

हालांकि, अन्य प्रमुख उत्पादकों की तुलना में औसत पौधे का आकार छोटा रहता है, और तकनीक पुरानी हो जाती है। 2002/03 में, भारत के कताई क्षेत्र में लगभग 1,146 छोटे पैमाने की स्वतंत्र फर्में और 1,599 बड़े पैमाने पर स्वतंत्र इकाइयां शामिल थीं।

बुनाई कपास, मानव निर्मित, या मिश्रित धागों को बुने हुए या बुने हुए कपड़ों में परिवर्तित करती है। भारत का बुनाई क्षेत्र अत्यधिक खंडित, छोटे पैमाने पर और श्रम प्रधान है। 

बुनाई

इस क्षेत्र में लगभग 3.9 मिलियन हथकरघा, 380,000 “पावरलूम” उद्यम शामिल हैं जो लगभग 1.7 मिलियन करघे संचालित करते हैं, और विभिन्न मिश्रित मिलों में सिर्फ 137,000 करघे हैं।

“पावरलूम” छोटी फर्में हैं, जिनकी औसत करघा क्षमता स्वतंत्र उद्यमियों या बुनकरों के स्वामित्व में चार से पांच है। आधुनिक शटललेस करघे की क्षमता करघे की क्षमता के 1 प्रतिशत से भी कम है।

फैब्रिक फिनिशिंग 

फैब्रिक फिनिशिंग (जिसे प्रोसेसिंग भी कहा जाता है), जिसमें कपड़ों के निर्माण से पहले रंगाई, छपाई और अन्य कपड़ा तैयार करना शामिल है, पर भी बड़ी संख्या में स्वतंत्र, छोटे पैमाने के उद्यमों का वर्चस्व है।

कुल मिलाकर, लगभग 2,300 प्रोसेसर भारत में काम कर रहे हैं, जिनमें लगभग 2,100 स्वतंत्र इकाइयां और 200 इकाइयां शामिल हैं जो कताई, बुनाई या बुनाई इकाइयों के साथ एकीकृत हैं।

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कपड़े 

परिधान का उत्पादन घरेलू निर्माताओं, निर्माता निर्यातकों और फैब्रिकेटर (उपठेकेदार) के रूप में वर्गीकृत लगभग 77,000 लघु-स्तरीय इकाइयों द्वारा किया जाता है।

कपड़ों की पूरी लिस्ट रखो अपडेटेड

Lio app में आप आसानी से अपने डाटा के साथ कपड़ों या स्टॉक की फोटो भी अपलोड कर सकते हो और उसको सीधा अपने क्लाइंट्स से शेयर कर सकते हो।

फैक्टर्स जो भारत को टेक्सटाइल क्षेत्र में बड़ा बनाते हैं .

हमने आपको यह तो बता दिया की भारत टेक्सटाइल इंडस्ट्री में कितना बड़ा खिलाड़ी है लेकिन अब हम आपको बताएँगे की वो कौनसी चीज़ें हैं जो भारत को बाकी देशों के सामने इस उद्योग में अधिक समृद्ध बनाती है। 

कच्चे सामानों की उपलब्धता 

भारत में सबसे ख़ास यही है कि यहाँ टेक्सटाइल उद्योग के लिए सर्वश्रेष्ठ कच्चे सामानों की उपलब्धता है, आज 21वीं सदी में भारत कॉटन और जुटे का सबसे विशाल उत्पादक है। साथ ही भारत रेशम, पॉलीस्टर और फाइबर के उत्पादन में बस दूसरे नंबर पर ही है। 

सस्ता लेबर 

भारत की जनसँख्या के बारे में आप सभी तो भली-भाँती परिचित होंगे, जब यहाँ लोगों की कमी नहीं है तो टेक्सटाइल क्षेत्र में भी कैसे सीखे और नौसीखिया कारीगरों की कमी होगी। 

सस्ता लेबर 

भारत में ज्यादा लोग मतलब सस्ता लेबर मतलब सीधे आपके कपड़े के उत्पादन की लागत कम हो जाती है जो हमें विश्व भर में काफी लाभ पहुंचाती है।   

अत्यधिक डिमांड 

यह तो भारत की विशेषता ही है की हमारी जनसँख्या की वजह से कभी भी कपड़ों की डिमांड कम हो ही नहीं सकती। हमेशा ही हर प्रकार के कपडे डिमांड में ही रहते हैं जो इस टेक्सटाइल इंडस्ट्री को बहुत ही बढ़ावा देते हैं। 

सरकारी सहयोग 

अगर हम सरकार के रुख की बात करें तो सरकार ने टेक्सटाइल उद्योग में 100% एफ.डी.आई की अनुमति दी है और साथ ही बहुत से देशों में मुफ्त ट्रेड की भी अनुमति दी है।

साथ ही सरकार बहुत सी योजनाओं को लाती रहती है जिससे टेक्सटाइल इंडस्ट्री को प्राइवेट कंपनीयों के लिए और भी अधिक सरल और सुगम बनाया जा सके और वो आकर्षित हो सकें।

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Lio Premium के महीने के बेस्ट प्लान्स ₹79 से, और सालाना प्लान सिर्फ ₹799 से शुरू है। आपके लिए 7 दिनों का Lio प्रीमियम फ्री ट्रायल भी उपलब्ध है।

Lio आपकी कैसे मदद कर सकता है 

अगर आप इस टेक्सटाइल इंडस्ट्री में पहले से हैं तो आपको यह तो मालूम ही होगा की रोज़ इस इंडस्ट्री में कितने डाटा को लिख कर रखना पड़ता है और रोज़ ही नए रजिस्टर को मेन्टेन करना पड़ता है। 

Lio App आपकी इसी तकलीफ को और भी ज्यादा आसान और व्यापार को बेहतर बना सकता है , नीचे पढ़ते हैं कैसे?

Lio App एक मोबाइल फर्स्ट एप्प है जो आपके जीवन के रोज़ के डाटा को सरलता से टेबुलर फॉर्मेट में रिकॉर्ड करने और मैनेज करने में मदद करता है । यह एप्प भारत की 10 भाषाओँ में उपलब्ध है जिसमें हिंदी और इंग्लिश भी शामिल हैं। 

Lio App में आपको 20 से ज्यादा केटेगरी की 60 से अधिक टेम्पलेट्स मिलती हैं जो की पूर्णतः रेडीमेड हैं मतलब आपको सिर्फ चीज़ों को सेलेक्ट करना हैं और अपना डाटा सिर्फ लिखना है।

टेम्पलेट्स से हमारा मतलब है की Lio App में आपको डिजिटल रजिस्टर की पूरी फ़ौज मिलती है जो आपकी रोज़ाना ज़िन्दगी के डाटा को लेकर आपकी लाइफ को आसान बनाती है। 

अभी तक अगर Lio App डाउनलोड नहीं किया है तो हमने नीचे प्रक्रिया दी है जिसे पढ़कर आज ही आप इस एप्प को डाउनलोड कर सकते हैं।

Step 1: उस भाषा का चयन करें जिस पर आप काम करना चाहते हैं। Lio Android के लिए

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Step 2: Lio में फ़ोन नं. या ईमेल द्वारा आसानी से अपना अकॉउंट बनाएं।

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जिसके बाद मोबाइल में OTP आएगा वो डालें और गए बढ़ें।

Step 3: अपने काम के हिसाब से टेम्पलेट चुनें और डाटा जोडें। 

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Step 4: इन सब के बाद आप चाहें तो अपना डाटा शेयर करें। 

Share you files with friends and colleagues in hindi

कपड़ा और गारमेंट इंडस्ट्री भारत के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। यह देश में विदेशी मुद्रा इनकम का मुख्य स्रोत भी है।

भारी मात्रा में कच्चे माल, विभिन्न प्रकार के डिजाइन, एक विशाल और कुशल कार्यबल और सरकारी सहायक कंपनियों के साथ, यह टेक्सटाइल इंडस्ट्री एक मजबूत स्थिति में है और आने वाले दिनों में भारत को महान ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती है।

Download Lio App

मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस आईडियाज | Manufacturing Business Ideas in Hindi

जीएसटी के फायदे और नुकसान GST KE FAAYDE AUR NUKSAAN

जीएसटी के फायदे और नुकसान: एक विस्तृत अध्ययन

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Indian textile history ke bare me jankar kaafi accha laga. Apka yeh blog bahut helpful hai. Mai ek small textile mill owner hu, mujhe yeh toh pata hai ki textile kaise process kiya jata hai. Mujhe bas yeh janna hai ki mai ek cotton textile mill kaise start kar sakta hu apni isi mill se.

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Thankyou Prabhakar Ji, Humne cotton textile ki detailed information ka ek alag blog banaya hai, aap us blog ko padhiye aur aapko jo bhi information chahiye us blog se mil jaegi. Thank you humare blog se judne ke liye.

Cotton textile blog – https://blog.lio.io/cotton-textile-industry-in-hindi/

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भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री पर एक बहुत ही सुंदर और जानकारीपूर्ण ब्लॉग पोस्ट के लिए आपका धन्यवाद! इस लेख से मुझे भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री के इतिहास से लेकर अन्य काफी सारी जानकारी मिली, बहुत बहुत धन्यवाद।

धन्यवाद हरीश जी, आपको हमारा यह ब्लॉग इतना पसंद आया। बिजनेस, मैन्युफैक्चरिंग, सर्विस, ऑटोमेशन आदि किसी भी इंडस्ट्री की जानकारी के लिए हमारे Lio ब्लॉग से जुड़े रहिये।

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Indian textile industry itni badhiya hai mai isliye hamesha se apne papa ke kapde ke business me ana chahta tha aur ab kaafi accha business kar raha hu. Ap mujhe yeh bata sakte hai kya ki Indian me kaunse kapde ki demand kaunse season me hoti hai?

Dhanyawaad Jeevan ji. Apne hamare is blog ko padha aur apni query humse share ki, actually India me basically 3 seasons hi hote hai Garmi, Barsaat aur phir Thand so aap us according basic kapde ki range rakh sakte hain.

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cotton clothes essay in hindi

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कॉटन के बारें में रोचक तथ्य | Cotton in Hindi

Cotton in Hindi

Interesting and Amazing Facts about Cotton in Hindi – कॉटन ( Cotton ) को हिंदी में कपास कहते हैं इससे रूई तैयार की जाती है. भारत में इसे सफेद सोना ( White Gold ) भी कहा जाता हैं. Cotton के बारें में रोचक तथ्यों को जानने के लिए इस पोस्ट को जरूर पढ़े.

कपास के बारें में रोचक जानकारियाँ | Facts about Cotton in Hindi

  • विश्व में सबसे अधिक कपास ( Cotton ) का उत्पादन चीन (China) में होता हैं.
  • कॉटन उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है, भारत ( India ) में सबसे ज्यादा कपास गुजरात में पैदा होता हैं.
  • कपास का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जो ये दर्शाता है की भारतीयों को कपास से सूती वस्र बानाने का ज्ञान प्राचीन काल से ही है.
  • लम्बें रेशे वाले कपास सबसे सर्वोत्तम प्रकार के होते है इससे उच्च कोटि का कपड़ा बनाया जाता हैं.
  • हड़प्पा निवासी कपास के उत्पादन में संसार भर में प्रथम माने जाते थे. कपास उनके प्रमुख उत्पादनों में से एक था.
  • Cotton सभी मौसमों के लिए अच्छा है क्योंकि यह गर्मियों में शरीर को ठंडा और सर्दियों में गर्म रखते हैं.

Interesting Facts about Cotton in Hindi

  • एली व्हिटनी ( Eli Whitney ) ने औद्योगिक क्रांति के दौरान कॉटन जिन (Cotton Gin) का आविष्कार किया जिसने कॉटन उद्योग का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया. कॉटन जिन एक ऐसी मशीन है, जो कपास के रेशों को जल्दी और आसानी से अपने बीजों से अलग करती है.
  • कपास का उत्पादन दुनिया के 100 से अधिक देशों में होता है, लेकिन उनमें से छह – चीन, भारत, पाकिस्तान, अमेरिका, ब्राजील और उज्बेकिस्तान – उत्पादन का लगभग 80% योगदान करते हैं.
  • दुनिया में कपास की 43 प्रजातियाँ हैं और कुछ कपास पेड़ों पर उगती है.
  • कपास अपने वजन का 27 गुना पानी अवशोषित कर सकता है.
  • ऑस्ट्रेलिया और मिस्र दुनिया में सबसे अधिक गुणवत्ता वाले कॉटन ( Best Quality Cotton ) का उत्पादन करते हैं.

Amazing Facts about Cotton in Hindi

  • सिन्धु घाटी सभ्यता के प्राचीन शहर मोहनजोदड़ो में 5,000 साल पुराने सूती कपड़े मिले.
  • 1800 के दशक के अंत में थॉमस एडिसन द्वारा निर्मित पहले प्रकाश बल्ब में एक सूती धागे का रेशा होता था.
  • अमेरिका में जो कागज के नोट ( Paper Money )75% कपास और 25% लिनन के मिश्रण से बना होता है.
  • कपास और इसके उप-उत्पादों का उपयोग करके बैंक नोट, मार्जरीन, रबर और चिकित्सा जैसे उत्पादों का उत्पादन में किया जाता है.

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Essay on clothing industry in hindi वस्त्र उद्योग पर निबंध.

Read an essay on Clothing Industry in Hindi. वस्त्र उद्योग पर निबंध। Today you are going to learn about an essay on clothing industry in Hindi or Textile Industry in Hindi. We have added more than 400 words to describe an essay on clothing Industry in Hindi.

hindiinhindi Essay on Clothing Industry in Hindi

Essay on Clothing Industry in Hindi

भारत का वस्त्र उद्योग पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है। यहाँ के खादी वस्त्र, बनारसी साड़ियाँ, कश्मीरी शॉल आदि की देश-विदेश में खूब माँग रहती है। इन सभी में भारत के अलग-अलग राज्यों की संस्कृति की झलक दिखाई देती है। यही वजह है कि कश्मीर घूमने जाने वाले अपने मित्रों से हम वहाँ की पशमीना शॉल लाने के लिए कहना नहीं भूलते, तो बाजार जाने पर सिल्क के कपड़े हमेशा दक्षिण भारत के खास सिल्क के ही माँगते हैं। वर्षों से इन वस्त्रों की देश-दुनिया में माँग बरकरार है तो इसके पीछे वजह भी है। आज जबकि पूरी दुनिया में मशीनों से तैयार कपड़ा पहना और बेचा जा रहा है, तब पूरी तरह से हाथ से तैयार खादी सभी का ध्यान अपनी ओर खींचती है। न केवल यह हाथ से बनाई जाने के कारण खास है, बल्कि उपयोग के लिहाज से भी यह अच्छी रहती है। इसे सर्दियों और गर्मियों दोनों में ही पहना जा सकता है। गांधीजी के समय चलन में आने वाली खादी आज दुनिया में सबसे ज्यादा और सबसे महँगे बिकने वाले वस्त्रों में से एक है।

वहीं दक्षिण भारत की सिल्क की साड़ियाँ भी अपने बेहतरीन सिल्क और सुंदर, बॉर्डर के लिए जानी जाती हैं। खासकर मैसूर के कोलेगल, तमिलनाडु के काँचीपुरम् और आंध्र प्रदेश के अरनी की सिल्क साड़ियाँ खूब पसंद की जाती हैं। दक्षिण भारत के अतिरिक्त असम का मुगा सिल्क भी उच्च गुणवत्ता वाला होता है। यहाँ का पारंपरिक परिधान, मेखला चादर आदि इसी से बनाए जाते हैं। इस पर विभिन्न डिजाइनें बनी रहती हैं।

भारत के अलग-अलग राज्यों के वस्त्रों की अपनी विशेषताएँ हैं। दक्षिण से थोड़ा ऊपर चलें तो आता है बंगाल। सांस्कृतिक रूप से अत्यंत समृद्ध बंगाल अपने मलमल के लिए मशहूर है। कई तरह की सुइयों के प्रयोग से रंग-बिरंगे धागों से बना मलमल बेहद नरम होता है। बंगाल के अलावा भी आज भारत के कई राज्यों में मलमल बनाया जाता है। कशीदे, छापे, फूलों के डिजाइन वाला और जामदानी मलमल पूरी दुनिया में लोगों की पहली पसंद बन चुका है। आज भारत में इतनी तरह के वस्त्र मिलते हैं, तो इसलिए कि अलग-अलग राज्यों में स्थानीय कारीगरों ने अपने हुनर को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया है।

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History of “Clothes”, “कपड़े” Who & Where invented, Paragraph in Hindi for Class 9, Class 10 and Class 12.

History of Clothes in Hindi

(मनुष्य को तन ढकने के लिए जरूरी)

प्रारम्भ में मनुष्य नंगे बदन रहता) था। सदी में उसे कपड़ों की जरूरत । महसूस हुई। उसने मारे गए जानवरों की खाल और फर को शरीर पर लपेटकर अपनी आवश्यकता की पूर्ति की पर लपेटने में उसे परेशानी होती थी। कई बार  वह खुल जाती थी और उसे अपने हाथों से थमना पड़ता था। उसके हाथ दूसरे काम, जैसे-शिकार करना, सामान ढोना आदि नहीं कर पाते थे। उसने एक नुकीली हड्डी से उस खाल में दो छेद किए। और फिर हड्डी को उसमें फंसा दिया। इस प्रकार वह हड्डी बटन | का काम करने लगी।

अब मनुष्य को नंगे रहना बुरा लगने लगा; उसने कपड़ों की तलाश प्रारम्भ की। उसे ऐसे कपड़ों की तलाश थी, जो धोने पर जल्दी सूख जाएं और पहनने में अच्छे लगे। कपड़ों का आविष्कार किसने किया, यह तो ज्ञात नहीं है; पर यह अनुमान लगाया

 जाता है कि उत्तपाषाण युग में कपड़े बनाने और उन्हें पहनने की परम्परा प्रांरभ हुई। धीरे-धीरे कपड़े पहनना सिर्फ शरीर के बचाव के लिए ही आवश्यक नहीं रहा वरन् वह समाज में व्यक्ति की स्थिति को भी दर्शाने लगा। गरीब लोग साधारण वस्त्र पहनने लगे, जबकि अमीर  लोग उत्तम वस्त्रों की तलाश करने लगे।

अमेरिका में 1793 में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई। एली व्हाइट ने नो बकपासा के रेशों से बीज निकालने के लिए मशीन तैयार की। दूसरी ओर सामुवोल्ला स्लेटर, जो बुनाई मजदूर था, ने पहली कपड़ा मिल लगाई।

अब मानुष्य कपास से बने सूती कपड़ों से सन्तुष्ट नहीं था। उसने कृत्रिमा रेशों से मनपसन्द कपड़े तैयार करना प्रांरभ किया। नायलॉन इस दिशा में पहला प्रयास था। धीरे-धीरे सिंथेटिक कपड़ों की बाढ़-सी आ गाई  

पहले कपड़े हाथ से सिल जाते थे, फिर सिलाई मशीन  आ गई। लोग ह्माथा या पौरों से चलनेवाली मशीन से कपड़े सिलने लगे। उसके बाद बिजली की स्वचालित मशीनें आई और अब रेडीमेड कपड़ों की बाढ़-सी आ गाई है।

कपड़ों की दिशा में प्रयोग अभी जारी हैं। पर्वतारोहण के लिए अलग कपड़े बनाए जाते है। अंतरिक्ष यात्री अलग किस्म के कपड़े पहनते हैं।

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कपास की फसल (Cotton Crop in India)

कपास (cotton) भारत में सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसलों (cash crops) में से एक है और यह कृषि अर्थव्यवस्था के साथ – साथ औद्योगिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण । भारत में कपास 60 लाख किसानों को प्रत्यक्ष आजीविका प्रदान करता है और अप्रत्यक्ष रूप से इसकी संबद्ध प्रक्रियाओं जैसे व्यापार और प्रसंस्करण में लगभग 4- 5 करोड़ लोगों को रोजगार देता है । भारत के सबसे बड़े उद्योग सूती वस्त्र उद्योग (textile industry) के लिए यह कच्चे माल के रूप में कार्य करता है । भारत के ऐसे राज्य जहाँ काली मिट्टी पाई जाती है – जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु – वहां इसकी खेती प्रमुखता से की जाती है । इस लेख में हम कपास की खेती से जुड़ी जानकारियों पर चर्चा करेंगे ।

हिंदी माध्यम में UPSC से जुड़े मार्गदर्शन के लिए अवश्य देखें हमारा हिंदी पेज  IAS हिंदी ।

नोट : यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे  UPSC Prelims Syllabus in Hindi का अच्छी तरह से अध्ययन कर लें, और इसके बाद ही  अपनी तैयारी की योजना बनाएं ।

कपास की फसल कहाँ उगाई जाती है?

भारत में, कपास 9 प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में उगाया जाता है । उत्तरी क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान, मध्य क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश तथा दक्षिणी क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु । इसके अलावा, उड़ीसा में भी कपास उगाया जाता है । कपास के 4 प्रकार होते हैं:

गॉसिपियम हिर्सुटम – यह मध्य अमेरिका, मैक्सिको, कैरिबियन मूल की प्रजाति है । 

गॉसिपियम बार्बडेंस – यह लंबे रेशे वाले कपास के रूप में जाना जाता है, जो उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका मूल की प्रजाति है ।

गॉसिपियम अर्बोरियम – यह कपास, भारत और पाकिस्तान मूल की प्रजाति है ।

गॉसिपियम हर्बेसियम – यह  दक्षिणी अफ्रीका और अरब प्रायद्वीप मूल की प्रजाति है ।

कपास एक रेशेदार फसल है । इसमें नरम, व स्थिर रेशे (फाइबर) होते हैं जिनका कपड़ा उद्योग में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है । फाइबर लगभग शुद्ध सेल्यूलोज से बना होता है और इसमें वैक्स, वसा और पानी के कुछ अंश होते हैं । कपास उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय प्रदेशों में उगाया जाता है । खेत की परिस्थितियों में बेहतर अंकुरण के लिए न्यूनतम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता होती है । वनस्पति वृद्धि के लिए इष्टतम तापमान 21-27 डिग्री सेल्सियस है और यह 43 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को सहन कर सकता है । लेकिन 21 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान फसल के लिए हानिकारक है । फल लगने की अवधि के दौरान ठंडी रातों के साथ गर्म दिन अच्छे बीजकोष और फाइबर के विकास के लिए अनुकूल होते हैं ।

कपास विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती है, जिसमें उत्तर भारत की अच्छी तरह से जल निकासी वाली गहरी जलोढ़ मिट्टी से लेकर मध्य क्षेत्र में अलग -अलग गहराई की काली चिकनी मिट्टी और दक्षिण क्षेत्र में काली और मिश्रित काली और लाल मिट्टी शामिल है । कपास लवणता के प्रति अर्ध -सहिष्णु है और जल जमाव के प्रति संवेदनशील है और इस प्रकार अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी इसके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

कपास की फसल कब उगाई जाती है?

कपास की बुवाई का मौसम अलग-अलग क्षेत्रों में और फसल की नस्ल के आधार पर काफी भिन्न होता है और आम तौर पर उत्तर भारत में यह  (अप्रैल-मई) होता है जबकि दक्षिण की ओर इसकी बुआई में देरी होती है । कपास देश के प्रमुख भागों में खरीफ की फसल है -जैसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्से । इन क्षेत्रों में, सिंचित फसल मार्च से मई में बोई जाती है और मानसून की शुरुआत के साथ जून- जुलाई में वर्षा आधारित फसल होती है । तमिलनाडु में, सिंचित और वर्षा आधारित फसल का प्रमुख भाग सितंबर -अक्टूबर में लगाया जाता है, जबकि दक्षिणी जिलों में फसल की बुवाई नवंबर तक बढ़ा दी जाती है । कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में, देसी कपास आमतौर पर अगस्त-सितंबर में बोई जाती है । इसके अलावा, तमिलनाडु में गर्मियों की बुवाई फरवरी-मार्च के दौरान भी की जाती है । आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की धान की परती भूमि में कपास की बुवाई दिसंबर के दूसरे पखवाड़े से जनवरी के मध्य तक होती है ।

कपास की खेती के लिए 4 साल में एक बार बारहमासी खरपतवारों को नष्ट करने के लिए गहरी जुताई की सलाह दी जाती है । मानसून- पूर्व बारिश शुरू होने से पहले खेत को तैयार किया जाता है । नमी संरक्षण और खरपतवार प्रबंधन के लिए सूखी भूमि में मेड़ों और खांचों पर बुवाई की जाती है । कपास की आमतौर पर बाढ़- सिंचाई (flood irrigation) होती है । हालांकि ड्रिप-इरिगेसन विधि द्वारा सिंचाई अधिक प्रभावी और पानी की बचत होती है । ड्रिप सिंचाई विशेष रूप से मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों के संकरों में लोकप्रिय हो रही है । उपलब्ध मिट्टी की नमी के 50-70% की कमी पर कपास की सिंचाई की जानी चाहिए । उत्तरी क्षेत्र की बलुई दोमट भूमि में सामान्यतः 3-5 सिंचाइयां दी जाती हैं । तमिलनाडु की कम जल धारण क्षमता वाली लाल रेतीली दोमट मिट्टी पर 10-12 हल्की सिंचाई की जा सकती है ।

नोट : UPSC 2023 परीक्षा की तिथि करीब आ रही है, आप खुद को नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi से अपडेट रखने के लिए BYJU’S के साथ जुड़ें, यहां हम महत्वपूर्ण जानकारियों को सरल तरीके से समझाते हैं ।

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cotton clothes essay in hindi

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Kheti Ki Jankari

कपास की खेती कैसे करें | Cotton Farming in Hindi | कपास का उपयोग

Table of Contents

कपास की खेती से सम्बंधित जानकारी

कपास (Cotton) की खेती किसानो के लिए फायदे की खेती के रूप में जानी जाती है इसकी पैदावार नगद फसल के रूप में होती है कपास की फसल को बाजार में बेच कर किसान अच्छी कमाई भी करते है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आता है देश के कई राज्यों में इसकी फसल को किया जाने लगा है | बाजारों में आज कपास की कई तरह की किस्मे देखने को मिल जाती है |

cotton clothes essay in hindi

तटीय इलाको में इसकी अधिक पैदावार होती है तथा लम्बे रेशें वाले कपास को ज्यादा सर्वश्रेष्ठ माना जाता है | यदि आप भी कपास की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस पोस्ट में आपको कपास की खेती से जुड़ी जानकारी कपास की खेती कैसे करें, Cotton Farming in Hindi, कपास का उपयोग इसके बारे में बताया गया है |

कालमेघ की खेती कैसे करें

कपास की खेती कैसे करे ( How to Cultivate Cotton)

कपास की खेती मेहनती खेती के रूप में जानी जाती है, कपास की खेती करने में अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है | इसका उपयोग कपड़े बनाने में किया जाता है, इसमें रूई से बीज़ो को साफ कर रूई का उपयोग कपड़ो के रेशें बनाने तथा बीज़ो से तेल निकाला जाता है | तेल निकालने के बाद बीज़ो का जो हिस्सा बचता है, उसे पशुओ के खाने में इस्तेमाल करते है |

इसकी खेती के लिए किसी खास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है, कपास की खेती कई जगह होने के कारण बाजार में इसकी कई किस्मे देखने को मिल जाती है इसे सफ़ेद सोना भी कहा गया है | कपास की खेती में सिंचाई की ज्यादा जरूरत न होने के कारण इसे कभी भी उगाया जा सकता है|

सब्जी की खेती कैसे करें

कपास की खेती की लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Cotton Cultivation)

बुलई दोमट मिट्टी और काली मिट्टी को कपास की खेती के लिए अच्छा माना जाता है, ऐसी मिट्टी में कपास की उपज काफी अच्छी होती है | लेकिन वर्तमान समय में कई तरह की किस्मे बाजार में आ चुकी है, जिससे कपास को अब पहाड़ी और रेतीली जगहों पर भी आसानी से ऊगा सकते है, कपास की खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है | इसलिए इसे अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में उगाना चाहिए | इसके लिए भूमि का P.H. मान 5.5 से 6 के मध्य होना चाहिए |

कपास की खेती की लिए जरूरी जलवायु और तापमान ( For Cotton Cultivation Required Climate and Temperature)

वैसे तो कपास की खेती में किसी खास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु जब पौधों में फल लगने लगे तब इसे सर्दियों में गिरने वाले पाले से हानि होती है | जब इसमें टिंडे निकलने लगे तब इसे तेज चमक वाली धूप की आवश्यकता होती है |

कपास की खेती में तापमान की विशेष जरूरत नहीं होती है, जब कपास के बीज खेत में अंकुरित होने लगे तब इसे 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है | इसके बाद इसके पौधों को बड़ा होने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | इससे अधिक तापमान पर भी यह अच्छी वृद्धि कर सकते है|

मसालों की खेती कैसे करें

कपास की विकसित किस्मे ( Developed Varieties of Cotton)

वर्तमान समय में बाजार में कपास की कई विकसित किस्मे देखने को मिलती है, यह सभी किस्मे अलग – अलग श्रेणियों में रक्खी गयी है | कपास के रेशो के आधार पर इनकी किस्मो को अलग-अलग श्रेणी में रखा गया है | रेशो के आधार पर इन्हे तीन भागो में बांटा गया है | जिनकी जानकारी इस प्रकार दी गई है:-

छोटे रेशें वाली कपास ( Short Fiber Cotton)

इस किस्म के कपास की रेशें 3.5 सेंटीमीटर से भी कम लम्बे होते है | यह उत्तर भारत में अधिक उगाई जाने वाली किस्म है यह असम, हरियाणा, राजस्थान, त्रिपुरा, मणिपुर, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मेघालय में अधिक उगाई जाती है | उत्पादन की बात करे तो कपास के कुल उत्पादन का 15% उत्पादन इस राज्यों से होता है |

मध्यम रेशें वाली कपास ( Medium Fiber Cotton)

इस श्रेणी में आने वाले कपास के रेशों की लम्बाई 3.5 से 5 सेंटीमीटर के मध्य होती है | यह कपास की मिश्रित श्रेणी में आता है, इस तरह की किस्म का उत्पादन भारत के लगभग हर हिस्से में होता है | इस तरह के कपास का उत्पादन का लगभग 45% हिस्सा उत्पादित होता है |

बड़े रेशेदार कपास ( Large Fibrous Cotton)

कपास की श्रेणियों में इस कपास को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, इस कपास के रेशे की लम्बाई 5 सेंटीमीटर से अधिक होती है | यह रेशा उच्च कोटि के कपड़ो को तैयार करने में उपयोग होता है | यह किस्म भारत में दूसरे नंबर पर उगाई जाती है, तटीय हिस्सों में इसकी खेती को मुख्य रूप से किया जाता है, इसलिए यह समुद्री द्वीपीय कपास भी कहलाता है | कपास के कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 40% तक की होती है |

ड्रोन से खेती कैसे करे

कपास की खेती के लिए जुताई का तरीका ( Method of Tillage for Cotton Cultivation)

इसके लिए पहले खेत की अच्छे से जुताई करवा दे फिर उसे ऐसे ही छोड़ दे, फिर उसमे गोबर की खाद को डाल कर दो से तीन बार फिर से जुताई करवा दें जिससे गोबर और खाद मिट्टी में अच्छे से मिल जायेंगे|

इसके बाद खेत में पानी लगाना चाहिए पानी के सूख जाने के बाद खेत की फिर से जुताई कर दें | ऐसा करने से खेत में लगने वाले सभी खरपतवार निकल जायेंगे और जुताई के बाद एक बार फिर से खेत में पानी लगा दें|

इसके बाद खेत की समतल तरह से पाटा लगाकर जुताई करे | अब जमीन के समतल हो जाने पर खेत में उवर्रक डालकर खेत की जुताई खेत में पाटा लगाकर कर दे | फिर दूसरे दिन खेत में बीज़ो को लगा दें, खेत में कपास का बीज लगाना शाम के वक़्त ज्यादा अच्छा माना जाता है|

लाख (लाह) की खेती कैसे करे

कपास के बीज की रोपाई का सही तरीका ( Correct way of Planting Cotton Seeds)

कपास के बीज़ो को खेत में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए | जिससे बीज़ो में लगने वाले कीट रोग का खतरा कम हो जाता है | कार्बोसल्फान या इमिडाक्लोप्रीड से बीज़ो को उपचारित कर खेत में लगाना चाहिए |

देशी किस्म के बीज़ो को खेत में लगाते समय दो लाइन के बीच 40 सेंटीमीटर तथा दो पौधों की बीच में 30 से 35 सेंटीमीटर की दूरी का होना जरूरी होता है |

वही अगर अमेरिकन किस्म के बीज़ो की बात करे तो इसमें दो लाइनो की बीच 50 से 60 सेंटीमीटर की दूरी तथा दो पौधों की बीच में 40 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए | इन बीज़ो को ज्यादा अंदर नहीं लगाना चाहिए, इससे इन्हे बाहर निकलने में दिक्कत हो सकती है तथा प्रति एकड़ के एरिये में 4 किलो तक बीज लगाए जा सकते है |

संकर बीटी वाले पौधों के बीज खेत में लगाते समय दो कतारों के बीच 100 सेंटीमीटर तथा दो पौधों के बीच में 60 से 80 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए | यह लम्बी दूरी तक फैलने वाले पौधे होते है, इसलिए इसे एक बीघा खेत में 450 ग्राम बीज ही लगाने चाहिए|

औषधीय पौधों की खेती कैसे करे

कपास की खेती में खरपतवार पर नियंत्रण ( Weed Control in Cotton Cultivation)

कपास की खेती में जब पौधों में फूल लगने वाले हो तब खरपतवार पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए | उस समय कई तरह के खरपतवार उग आते है, जिसमे कई प्रकार की कीट जन्म लेते है | यही कीट पौधों में कई तरह के रोग उत्पन्न करते है | इन रोगो से बचाव के लिए ही खरपतवार नियंत्रण पर अधिक ध्यान देना चाहिए |

इसके लिए समय – समय पर कपास के खेत की निराई – गुड़ाई करते रहना चाहिए | खेत में बीज लगाने के 25 दिन के बाद से ही निराई – गुड़ाई शुरू कर देनी चाहिए | इससे पौधों के विकास में किसी तरह की रुकावट नहीं आती है, तथा पौधे अच्छे से विकास भी कर पाते है |

कपास के खेत में उवर्रक की सही मात्रा ( The Right Amount of Fertilizer in the Cotton Field)

कपास की खेती करने के लिए खेत में लगभग 15 गाड़ी गोबर की खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से डालनी होती है, इसके बाद इस खाद को उस खेत में अच्छे से मिला दें | बुवाई के समय नाइट्रोजन और फास्फोरस की पर्याप्त मात्रा को किस्मो के अनुसार उस खेत में डालनी चाहिए |

यदि बीज संकर बीटी कपास के है, तो उसमे जिंक सल्फेट की पर्याप्त मात्रा को मिलाकर खेत में छिड़काव करना चाहिए | वही अमेरिकन किस्म के कपास में फास्फोरस, डीएपी और सल्फर की पर्याप्त मात्रा का छिड़काव खेत में करने से अच्छी पैदावार होती है|

कपास की सिंचाई का तरीका ( Cotton Irrigation Method)

कपास की खेती में बहुत ही कम पानी की जरूरत होती है, यदि फसल बारिश के मौसम में की गयी है तो इसे पहली सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, और यदि खेती बारिश के मौसम में नहीं की गयी है तो 45 दिन के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए |

कपास के पौधे अधिक धूप में अच्छे से विकसित होते है इसलिए पहली सिंचाई करने के बाद जरूरत पड़ने पर ही इसकी सिंचाई करनी चाहिए किन्तु पौधों में फूल लगने के वक़्त खेत में नमी की उचित मात्रा  बनी रहनी चाहिए जिससे पौधों के फूल झड़े नहीं, किन्तु अधिक पानी भी नहीं देना चाहिए इससे फूलो के ख़राब होने का खतरा हो सकता है |

जब फूल से टिंडे बनने लगे तब खेत में 15 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए, जिससे टिंडे का आकार बड़ा तथा पैदावार भी अधिक होती है |

भांग की खेती कैसे करें

कपास की पौधों में लगाने वाले रोग ( Cotton Plant Diseases)

कपास के पौधों में भी कई तरह के रोग लगते है, जो कि कीट की वजह से लगते है | ऐसे ही कुछ रोगो के बारे में यहाँ बताया गया है, जिनकी जानकारी कुछ इस प्रकार है:-

हरा मच्छर कीट रोग ( Green Mosquito Pest Disease)

इस तरह का रोग नयी पत्तियों पर देखने को मिलता है हरा मच्छर कीट रोग पत्तियों की निचली सतह पर शिराओ के पास बैठकर रस चूसते रहते है, जिस वजह से पत्तिया पीली पड़ जाती है, और कुछ समय पश्चात यह पत्तिया टूट कर नीचे गिर जाती है | इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL या मोनोक्रोटोफॉस 36 SL का उचित मात्रा में छिड़काव करने से इस रोग से बचाव किया जा सकता है |

इसी तरह से सफ़ेद मक्खी कीट भी पत्तियों पर पाई जाती है यह भी पत्तियों की निचली सतह पर बैठकर रस चूसती है यह कीट पत्तियों पर चिपचिपा प्रदार्थ छोड़ देती है जिससे पत्तियों में पत्ता मरोड़ नमक रोग हो जाता है इससे भी पत्तिया सूख कर गिर जाती है कुछ नयी तरह की किस्मे है जिनमे यह रोग नहीं लगता है, जैसे – बीकानेरी नरमा, आर एस- 875, मरू विकास आदि | अन्य किस्म के पौधों पर इस रोग से बचाव के लिए ट्राइजोफॉस 40 EC या मिथाइल डिमेटान 25 EC की पर्याप्त मात्रा में छिड़काव करना चाहिए|

चितकबरी सुंडी नामक कीट ( Pied Beetle)

चितकबरी सुंडी नामक कीट जब फूल टिंडे बनते है, तब उन पर आक्रमण करता है | जिससे पौधे का ऊपरी भाग सूखने लगता है, तथा टिंडे की पंखुड़ी पीली पड़ जाती है, और टिंडे के अंदर का कपास ख़राब हो जाता है | इस कीट से बचाव के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 SL, क्लोरपायरीफास 20 EC, मेलाथियान 50 EC में से किसी एक दवा का छिड़काव पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए |

तेल कीट रोग ( Oil Pest Disease)

तेल कीट रोग की वजह से पत्तियों को ज्यादा हानि होती है, यह काले रंग का कीट होता है जो कि छोटे आकार का होता है | इस तरह के कीट से रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 S.L. या थायोमिथाक्जाम 25 WG नामक दवा का छिड़काव पर्याप्त मात्रा में करते रहना चाहिए |

तम्बाकू लट कीट रोग ( Tobacco Braided Pest Disease)

पौधे के लिए यह कीट अधिक हानिकारक माना जाता है, यह कीट लम्बे आकार का होता है जो कि पत्तियों को खाकर उन्हें जालीनुमा बना देता है, जिससे पत्तिया पूरी तरह से नष्ट हो जाती है | इस कीट से बचाव के लिए फलूबैन्डीयामाइड 480 S, थायोडिकार्ब 75 SP और इमामेक्टीन बेंजोएट 5 S G दवा का छिड़काव करते रहना चाहिए |

झुलसा कीट रोग से बचाव ( Prevention of Scorch Pest Disease)

अन्य कीट रोगो की तुलना में झुलसा कीट रोग अधिक खतरनाक होता है इस रोग के लग जाने पर टिंडे पर काले रंग के चित्ते बनने लगते है, और टिंडा समय से पहले खिल जाता है, जिससे उसका रेशा भी ख़राब हो जाता है | यह कीट रोग कम समय में ही पौधे को पूरी तरह से नष्ट कर देता है | इस तरह के रोग से बचाव के लिए काँपर ऑक्सीक्लोराइड दवा का छिड़काव पौधों पर नियमित रूप से करना चाहिए साथ ही बीज को बोने के वक़्त बाविस्टिन कवकनाशी दवा से उपचारित करना चाहिए |

पौध अंगमारी रोग से बचाव ( Plant Blight Disease Prevention)

इस रोग के हो जाने पर कपास के टिंडो के पास वाले पत्ते लाल कलर के हो जाते है, खेत में नमी होने पर भी पौधा मुरझाने लगता है | इस रोग के लग जाने पर पौधा कुछ दिन बाद ही नष्ट हो जाता है | इस रोग की रोकथाम के लिए एन्ट्राकाल या मेन्कोजेब का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए|

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग से बचाव ( Preventing Alternaria Leaf Spot Disease)

यह बीज जनित रोग होता है, जिसके लग जाने पर पहले पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है | फिर काले भूरे रंग का गोलाकार बन जाता है, यह रोग पत्तियों को जल्द ही गिरा देता है | इसका असर पैदावार को सिमित कर देता है, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक दवा से इस पर छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

जड़ गलन रोग से बचाव ( Root Rot Disease Prevention)

जड़ गलन यह समस्या पौधों में ज्यादा पानी की वजह से देखने को मिलती है, इससे बचाव के लिए एक ही तरीका है कि खेत में जल का भराव न रहने दें | इस तरह की समस्या अधिकतर बारिश के मौसम में देखने को मिलती है | इस रोग में पौधा शुरुआत से ही मुरझाने लगता है, इससे बचाव के लिए खेत में बीज को लगाने से पहले कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यूपी 0.3% या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी 0.2% से उपचारित कर लेना चाहिए | कपास की फसल के साथ मोठ की बुवाई करने से भी इसका बचाव किया जा सकता है|

पत्ता गोभी की खेती कैसे करें 

कपास की तुड़ाई का सही समय ( Cotton Harvest Time)

कपास की तुड़ाई को सितम्बर से अक्टूबर माह के दौरान शुरू कर देनी चाहिए | जब कपास के टिंडे 40 से 60 प्रतिशत तक खिल जाये तब पहली तुड़ाई करनी चाहिए | फिर जब सभी टिंडे पूरी तरह से खिल जाये तब उसकी तुड़ाई कर ले |

कपास की पैदावार और लाभ ( Cotton Production and Benefits)

कपास की खेती से किसानो की अच्छी आमदनी हो जाती है, अलग – अलग तरह की किस्मो से अलग -अलग तरह की पैदावार होती है | जैसे देशी किस्म की कपास में प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल और अमेरिकन किस्म में प्रति हेक्टयेर 30 क्विंटल तक की पैदावार होती है, तथा बीटी कपास में 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से भी ज्यादा होती है | कपास का बाजारी भाव 5 हजार प्रति क्विंटल तक होता है | जिससे किसान भाई एक बार में कपास की खेती कर तीन से चार लाख तक प्रति हेक्टेयर की कमाई कर सकते है|

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बीज से कपास उगाना (Growing Cotton from Seed)

जैसा कि टमाटर, काली मिर्च और अन्य पौधों के साथ होता है| कपास के पौधे स्वभाव से बारहमासी होते हैं। हालाँकि चूंकि हम हर साल काफी समान और संतोषजनक उत्पादन लेने की उम्मीद करते हैं, इसलिए हम इसे वार्षिक रूप से खेती करते हैं। दुर्भाग्य से कपास की खेती व्यावसायिक रूप से केवल विशिष्ट बढ़ती परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में ही की जा सकती है। ताजा और सावधानी से चुने गए कपास के बीज खरीदना अच्छी उपज की दिशा में पहला कदम है। दूसरा चरण खेत की तैयारी है, ताकि यह बीजों को तैयार कर सके और उनके अंकुरण को सुगम बना सके।

कपास के बीजों की बुवाई वसंत ऋतु में होती है। उर्वरक, सिंचाईऔर कीट नियंत्रण अच्छी उपज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और अधिकांश लागतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दुर्भाग्य से कपास के पौधे विभिन्न खरपतवारों के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं, जो पानी, पोषक तत्वों और सूर्य के प्रकाश तक पहुंच के मामले में उनके साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। कपास खरपतवार नियंत्रण तकनीक और प्रबंधन देशों के बीच काफी भिन्न हैं।

कपास के पौधे की जलवायु आवश्यकताएँ (Cotton Plant Climatic Requirements)

कपास एक ऐसा पौधा है, जिसे लंबी ठंढ-मुक्त अवधि, बहुत अधिक गर्मी और भरपूर धूप की आवश्यकता होती है। यह गर्म और आर्द्र जलवायु को तरजीह देता है। यदि मिट्टी का तापमान 60°F (15°C) से कम है, तो कपास के बीजों का अंकुरण दर कम होगा। सक्रिय वृद्धि के दौरान, आदर्श वायु तापमान 70 से 100°F (21-37°C) होता है। 100 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर का तापमान वांछनीय नहीं है। हालांकि औसत कपास का पौधा 110°F (43°C) तक के तापमान में बिना किसी नुकसान के छोटी अवधि के लिए जीवित रह सकता है, लेकिन यह नमी के स्तर पर भी निर्भर करता है। कपास के पौधों की सफलतापूर्वक खेती करने के लिए हमें परिपक्व (गर्मी) और फसल के दिनों (शरद ऋतु के दौरान) के दौरान बार-बार बारिश नहीं होगी।

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कपास के उपयोग (Cotton Uses)

कपास ने मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जब से इसका पहली बार उपयोग किया गया था, जो मानव विज्ञानी प्रागैतिहासिक काल से पहले के हैं। आज दुनिया में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला फाइबर, कपास अत्यंत बहुमुखी, मुलायम और मजबूत है। इसके उपयोग इस प्रकार है-

कपड़े (Cloths)

कपड़ों के लेबल पर आमतौर पर देखे जाने वाले कई कपड़े सूती रेशों से उत्पन्न होते हैं| कपास को मखमल, कॉरडरॉय, डेनिम, जर्सी, फलालैन, वेलोर और चेम्ब्रे में बुना या बुना जा सकता है। इसका मतलब है कि हमारे पास पहनने वाले कपडे कपास से निर्मित है, भले ही उस पर लेबल पर कपास न लिखा हो। सूती और संबंधित कपड़ों का उपयोग परिधान उद्योग में लगभग सब कुछ बनाने के लिए किया जाता है|

अन्य उपभोक्ता उत्पाद (O ther Consumer Products)

कपास को आसानी से कई उत्पादों में संसाधित किया जा सकता है, जिनका उपयोग हम दैनिक आधार पर करते हैं, जैसे कॉफी फिल्टर, बुक बाइंडिंग, पेपर और बैंडेज। बिनौला तेल, जो कपास के पौधों के कुचले हुए बीजों से बनता है, साबुन, सौंदर्य प्रसाधन और मार्जरीन सहित कई उत्पादों में उपयोग किया जाता है। कपास उपयोग किए जाने वाले कई उत्पादों का एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसमें तंबू और तिरपाल, मछली पकड़ने के जाल, डोरियां और रस्सियां ​​शामिल हैं।

कृषि और औद्योगिक अनुप्रयोग ( Agricultural and Industrial Applications)

कपास एक खाद्य और रेशेदार फसल है। कपास के बीज अक्सर मवेशियों और घोड़ों को प्रोटीन के स्वस्थ स्रोत के रूप में खिलाए जाते हैं। मनुष्य कपास में पाए जाने वाले सेल्यूलोज को पचा नहीं सकता, लेकिन जानवरों में एक विशेष एंजाइम होता है जो इसे तोड़ देता है। यहां तक ​​कि कपास के पौधे के डंठल और पत्तियों को भी उपयोगी बनाया जा सकता है| मिट्टी को समृद्ध करने के लिए डंठल को जमीन के नीचे जोता जाता है और उनसे निकाले गए रेशे का उपयोग कागज और कार्ड बोर्ड (Card Board) बनाने में किया जाता है।

इसके अलावा कपास फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals) से लेकर रबर और प्लास्टिक तक लगभग हर उद्योग में एक कार्य करता है। कॉटन लिंटर्स (छोटे रेशे जो पौधे पर जुताई के बाद बने रहते हैं) का उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में एक्स-रे, स्वैब और कॉटन बड्स के साथ-साथ क्लीनरूम सूट और आपूर्ति में किया जाता है। कॉटन लिंटर्स का उपयोग गद्दे, फर्नीचर, ऑटोमोबाइल कुशन और यहां तक ​​कि फ्लैट स्क्रीन टीवी (Flat Screen TV) में भी किया जाता है।

कपास सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली और बहुमुखी सामग्री में से एक है। कपड़ों, लिनेन और घरेलू आपूर्ति जैसे दैनिक उपयोग किए जाने वाले कई उत्पादों के लिए हमारे पास कपास है। जिन सेवाओं पर हम भरोसा करते हैं, जैसे चिकित्सा और ऑटोमोबाइल उद्योग, सेवाओं के उत्पादन और वितरण में कपास पर निर्भर हैं। अपने चारों ओर देखें – संभावना है, आप दो हाथों पर गिन सकते हैं कि आप कितनी चीजें देखते हैं जो कपास या उसके उप-उत्पादों से बनाई गई थीं, वास्तव में कपास हर जगह है।

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भारत में सबसे बड़ा कपास उत्पादक राज्य कौन सा है ( Largest Cotton Producing State in India)

गुजरात (gujrat).

भारत में प्रमुख कपास उत्पादक गुजरात है। यह भारत में 95 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है और 26.59 लाख हेक्टेयर में फैला है। वार्षिक वर्षा और काली मिट्टी के कारण यह राज्य भारत में कपास उत्पादन के लिए 2019-20 में एक लाभदायक क्षेत्र है। लोकप्रिय कपास उत्पादन क्षेत्र वडोदरा, मेहसाणा, भरूच, सुरेंद्रनगर और अहमदाबाद हैं। कपास के विशाल उत्पादन के कारण गुजरात कपड़ा उद्योग के लिए एक केंद्रीय राज्य है।

महाराष्ट्र ( Maharashtra)

महाराष्ट्र भारत में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है और भारत में 82 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है। महाराष्ट्र में कपास का उत्पादन 42.54 लाख हेक्टेयर है। महाराष्ट्र के सबसे बड़े कपास उत्पादक क्षेत्र के रूप में यवतमाल (Yavatmal), विदर्भ (Vidarbha), खानदेश (Khandesh), मराठवाड़ा (Marathwada), अकोला (Akola), वर्धा (Wardha) और अमरावती (Amravati) हैं।

तेलंगाना ( Telangana)

तेलंगाना भारत में लगभग 53 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है और 18.27 लाख हेक्टेयर में फैला है।गुंटूर (Guntur), अनंतपुर (Anantapur), प्रकाशम (Prakasam) और कुरनूल राज्य के प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र हैं।

राजस्थान ( Rajasthan)

राजस्थान भारत में 25 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है और भारत के 6.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करता है। क्षेत्र भीलवाड़ा (Bhilwara), अजमेर (Ajmer), चित्तौड़गढ़ (Chittorgarh), झालावाड़, पाली और हनुमानगढ़ हैं।

हरियाणा (Hariyana)

हरियाणा 22 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है और 5वें स्थान पर है। कपास के बागान हरियाणा में 7.08 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं। प्रमुख क्षेत्र फतेहाबाद (Fatehabad), सिरसा (Sirsa), हिसार (Hisar), भिवानी, झज्जर, चरखी दादरी, फरीदाबाद, मेवात, पलवल, पानीपत, करनाल, गुरुग्राम, रोहतक, जींद और कैथल हैं।

मध्य प्रदेश ( Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश में हर साल 20 लाख गांठ का उत्पादन होता है। मध्य प्रदेश में 5.79 लाख हेक्टेयर कपास उत्पादन से आच्छादित है। कपास उत्पादन क्षेत्र भोपाल, देवास, रतलाम, निमाड़ और शाजापुर हैं।

कर्नाटक (Karnataka)

भारत में कपास की 18 लाख गांठों के साथ, कर्नाटक भारत के सबसे बड़े कपास उत्पादक राज्य में 7वें स्थान पर है। कपास कर्नाटक राज्य के 6.88 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है। कपास उत्पादन के लिए आदर्श परिस्थितियों के कारण उत्तरी कर्नाटक के पठार में कपास की वृद्धि हुई। प्रमुख कारण धारवाड़, गुलबर्गा, धारवाड़, बेल्लारी और बेलगाम हैं।

पंजाब (Punjab)

पंजाब भारत में प्रति वर्ष 13 लाख गांठ का उत्पादन करता है और 2.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करता है। प्रमुख क्षेत्र लुधियाना, मोगा, भटिंडा, फरीदकोट, संगरूर और मनसा हैं।

तमिलनाडु (Tamil Nadu)

तमिलनाडु राज्य कपास की 6 लाख गांठों का योगदान करता है और राज्य में 1.31 लाख हेक्टेयर भूमि को कवर करता है। तमिलनाडु में वेल्लोर, रामनाथपुरम, कोयंबटूर, सेलम और मदुरै, तिरुचिरापल्ली कपास उत्पादक जिले हैं।

उड़ीसा (Orissa)

उड़ीसा भारत के लिए प्रति वर्ष 4 लाख कपास और 1.58 लाख हेक्टेयर क्षेत्र का उत्पादन करता है। सुबर्णापुर उड़ीसा का प्रमुख कपास उत्पादन राज्य है।

95 लाख26.59 लाख556.22
82 लाख42.54 लाख 307.71
53 लाख18.27 लाख 437.33
25 लाख6.29 लाख675.68
22 लाख7.08 लाख552.26
20 लाख5.79 लाख664.50
18 लाख6.88 लाख 370.64
13 लाख2.68 लाख 729.48
6 लाख1.31 लाख 778.63
4 लाख 1.58 लाख 484.18

एरोपोनिक तकनीक (प्रणाली) से खेती कैसे करे

विश्व के टॉप 10 कपास उत्पादक देश (Top 10 Cotton Producing Countries in the World)

भारत शीर्ष कृषि प्रधान देश है जो दुनिया में कपास की सबसे बड़ी फसल पैदा करने वाला देश है। यहां, हम रैंकिंग और उत्पादन (1000 480 lb. गांठ) के साथ विश्व के सबसे बड़े कापा उत्पादन देशों को दिखा रहे हैं। 28500 (1000 480 lb. गांठ) के साथ भारत सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। भारत में कपास उत्पादन के लिए 125.84 लाख हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है। विश्व के प्रमुख कपास उत्पादक देश इस प्रकार हैं-

1.भारत (India)
2.चीन (China)
3.अमेरिका (America)
4.ब्राजील (Brazil)
5.पाकिस्तान (Pakistan)
6.तुर्की (Turkey)
7.उज़्बेकिस्तान (Uzbekistan)
8.ऑस्ट्रेलिया (Australia)
9.ग्रीस (Greece)
10.बेनिन (Benin)

दुनिया किसी भी अन्य प्राकृतिक फाइबर की तुलना में कपास का अधिक उपयोग करती है और इसे मुख्य रूप से उगाया जाता है और कपड़ा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। कपास के पौधे के अन्य हिस्सों को अच्छे उपयोग में लाया जाता है और खाद्य पदार्थों, प्लास्टिक और कागज उत्पादों के उत्पादन में उपयोग किया जाता है। क्योंकि कपास एक नेचुरल प्रोडक्ट है और जिस प्रकार इसको कपड़ों के रूप में डिजाइन अर्थात आकृति के साथ  निर्मित किया जाता है, उसके कई लाभ हैं, जैसे कि ह्यूमिडिटी को कंट्रोल करने, इन्सुलेट करने, आराम प्रदान करने की क्षमता और यह हाइपोएलर्जेनिक (Hypoallergenic), वेदरप्रूफ भी है और एक टिकाऊ कपड़ा है।

कमल ककड़ी क्या होता है

कपास और पॉलिएस्टर के लक्षण (C otton and Polyester Characteristics)

कपास फसलों से काटा गया एक प्राकृतिक कपड़ा है, जबकि पॉलिएस्टर प्राकृतिक रसायनों से प्राप्त मानव निर्मित बहुलक है। दशकों से वस्त्र निर्माताओं ने मिश्रित कपास और पॉलिएस्टर का उपयोग किया है ताकि वह दोनों के लाभों का आनंद प्राप्त कर सकें। मिश्रण में कई विशेषताएं हैं जो इसे आधुनिक कपड़ों में उपयोग के लिए आदर्श बनाती हैं-

कपास की व्यक्तिगत विशेषताएं (Individual Characteristics)

कपास एक नरम, रेशेदार पदार्थ है जो कपास के पौधों से उगता है और यह सांस लेने योग्य होने के कारण एक लोकप्रिय कपड़ों का फाइबर है। कपास नमी को अच्छी तरह से अवशोषित करती है, पानी में अपने वजन का लगभग 24 से 27 गुना तक बरकरार रखती है। दूसरी ओर पॉलिएस्टर एक मजबूत मानव निर्मित फाइबर है, जो कम होने और झुर्रियों का प्रतिरोध करता है। यह एक बहुलक है जो कोयले, वायु जल और तेल से पेट्रोकेमिकल्स का उप-उत्पाद है। ड्यूपॉन्ट कंपनी (DuPont Company) ने वर्ष 1953 में पॉलिएस्टर फाइबर (Polyester Fiber) का उत्पादन शुरू किया था।

मिश्रण लाभ (Mixture Advantage)

मिश्रण कपास के आराम को शिकन प्रतिरोध और पॉलिएस्टर की मजबूती के साथ जोड़ता है। यह कपड़ों को धोना आसान और अधिक आरामदायक बनाता है। यह टिकाऊ है, उच्च तापमान का सामना करता है और अपने रंग को लंबे समय तक रखता है। सामग्री भी जल्दी सूख जाती है, और आप इसे शुद्ध कपास की तुलना में कम तापमान पर इस्त्री कर सकते हैं।

इतिहास (History)

निर्माताओं ने पहली बार 1960 के दशक में पॉलिएस्टर को कपास के साथ मिश्रित करना शुरू किया, और यह अपने लाभकारी गुणों के कारण दुनिया भर में फैशन में लोकप्रिय हो गया। इसके लाभों के बावजूद, कुछ उपभोक्ता पॉलिएस्टर की भावना को नापसंद करते हैं और अधिक आराम के लिए 100 प्रतिशत कपास का अनुरोध करते हैं। पॉलिएस्टर-कपास (Polyester-Cotton) का मिश्रण आज कपड़ों के निर्माण में एक आम सामग्री है।

विनिर्माण देश (Manufacturing Country)

संयुक्त राज्य अमेरिका, सुदूर पूर्व और भारत आज पॉलिएस्टर कपड़ों के शीर्ष उत्पादक हैं। आयरलैंड में निर्माता बड़ी मात्रा में पॉलिएस्टर यार्न का उत्पादन भी करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत कपास के प्रमुख निर्यातक हैं, साथ ही ब्राजील (Brazil), उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) और पाकिस्तान (Pakistan) भी हैं। दूसरी ओर सुदूर पूर्व अपने कपास का अधिकांश आयात करता है।

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भारतीय वस्त्र व वेशभूषाएं | Indian Dress Clothing Names & Information Of All States In Hindi

Indian Dress Clothing Names & Information Of All States In Hindi भारतीय वस्त्र व वेशभूषाएं : भारत एक विशाल देश है. अलग अलग राज्यों एवं भौगोलिक प्रदेशों में बंटा होने के कारण यहाँ की जातीयता, भूगोल, जलवायु और क्षेत्र की सांस्कृतिक परंपराओं के अनुसार विभिन्न प्रकार के वस्त्र व वेशभूषाएं (Dress Clothing) पहने जाते है.

एक लंगोट के साथ सभी प्रकार के कपड़ों की डिजाइन की गई है. उत्सव के मौकों व विवाह आदि आयोजन पर भारत की परम्परावादी वस्त्र पहने देखे जा सकते है.

भारतीय वस्त्र व वेशभूषाएं Indian Dress Clothing Names In Hindi

भारतीय वस्त्र व वेशभूषाएं | Indian Dress Clothing Names & Information Of All States In Hindi

वस्त्र हर इन्सान की पहली आवश्यकता होती है. अपने शरीर की सुरक्षा एवं व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए वस्त्र पहने जाते है. भारत में मौसम के अनुसार अलग अलग कपड़े पहने जाते है.

जैसे गर्मियों में हलके व सूती वस्त्र, सर्दियों में ऊनी व रेशमी कपड़े तथा वर्षा ऋतू में जल्दी सूखने वाले वस्त्र. इसके अतिरिक्त विभिन्न लिंग, जाति व क्षेत्र के लोग अलग अलग प्रकार के कपड़े पहनते है.

पुरुषों के वस्त्र- पैंट, शर्ट, कमीज, धोती, कुर्ता और पायजामा पहनते है. स्त्रियाँ धोती, साड़ियाँ, सलवार और कुर्ता पहनती है. कई पुरुष सिर पर टोपी, साफा या पगड़ी पहनते है.

ग्रामीण क्षेत्र में बुजुर्ग लोग धोती, कुर्ता एवं पगड़ी साफा पहनते है. जबकि शहरों में पेंट, शर्ट, बरमूडा आदि का प्रचलन है. स्त्रियाँ गाँवों में साड़ी, लूगड़ा लहंगा, पेटीकोट आदि पहनती है. जबकि शहरों में साड़ी, पेटीकोट, कुर्ता, पायजामा, जिन्स, टॉप आदि पहनती है.

विभिन्न ऋतुओं में शरीर की आवश्यकता भिन्न भिन्न होने के कारण विभिन्न ऋतुओं में भिन्न भिन्न प्रकार के कपड़े पहने जाते है.

भारत में गर्मियों में पहने जाने वाले वस्त्र (summer season clothes information)

  • गर्मियों में हम हल्के रंग के कपड़े पहनते है. गहरे रंग के कपड़े अपेक्षाकृत अधिक ऊष्मा अवशोषित करते है. हल्के रंग के कपड़े उष्मीय विकिरणों के अधिकाँश भाग को प्रवर्तित कर देते है. जिससे गर्मी कम लगती है.
  • अतः गर्मियों में हल्के रंग के कपड़े अधिक आरामदायक लगते है.
  • गर्मी में सूती वस्त्र पहने जाते है. इस ऋतु में शरीर से पसीना अधिक निकलता है. सूती वस्त्र पसीने को सोख लेते है. तथा शरीर को ठंडक प्रदान करते है. अतः गर्मियों में सूती वस्त्र पहनना अधिक सुखकर लगता है.

सर्दियों में पहने जाने वाले वस्त्र (winter season clothes name in hindi)

सर्दियों में गहरे रंग के वस्त्र पहनना अधिक सुखकर लगता है. क्योंकि गहरे रंग के वस्त्र अपेक्षाकृत अधिक ऊष्मा अवशोषित कर शरीर को गर्मी देते है. अतः गहरे रंग के वस्त्रों में कम ठंड लगती है.

हम सर्दियों में हम ऊनी व रेशमी वस्त्र पहनते है. ऊन ऊष्मारोधी होती है. इसके अतिरिक्त ऊन के रेशों के बिच वायु विद्यमान रहती है. यह वायु हमारे शरीर की ऊष्मा को ठंडे बाहरी परिवेश की ओर निकलने से रोकती है. अतः हमें उष्णता का अनुभव होता है.

इस ऋतु में पहने जाने वाले कपड़ो में जैकेट,स्कार्फ, टोपी, दस्ताने, स्वेटर, कोट व टोपी मुख्य है.

भारतीय कपड़े विश्व भर में क्यों प्रसिद्ध थे?

एक तरफ आज जहां भारतीय पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित होकर पश्चिमी कपड़ों को ज्यादा पसंद करते हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय कपड़े विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध है।

भारतीय कपड़ों को विदेशी लोग बहुत ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि भारतीय कपड़ों में ना सिर्फ सुंदरता और सौम्यता नजर आती है बल्कि भारतीय कपड़ों में भारतीय संस्कृति की झलक देखने को भी मिलती है।

साथ ही साथ भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के अनुसार कपड़ों में वहां की भौगोलिक शैली भी नजर आती है। सबसे खूबसूरत संस्कृति से जुड़े भारतीय कपड़े राजस्थान में ज्यादा देखने को मिलते हैं।

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में एक ही कपड़े को लोग अलग-अलग तरह से पहनते हैं इस वजह से भी विदेशियों को भारतीय कपड़े बहुत अच्छे लगते हैं।

भारत का राष्ट्रीय वस्त्र क्या है?

हालांकि सरकार ने अभी तक किसी भी वस्त्र को राष्ट्रीय वस्त्र घोषित नहीं किया है लेकिन जोधपुर के ट्रेडिशनल कपड़े कोट पैंट को भारत का राष्ट्रीय वस्त्र कहा जा सकता है। क्योंकि आजकल ज्यादातर लोग कोट पैंट को ज्यादा पहनते हैं।

भारतीय धर्म और संस्कृति की 10 वेशभूषाएं

भारत एक ऐसा देश है जिसमें वेशभूषा भी धर्म और संस्कृति को प्रदर्शित करती है अलग-अलग तरह की वेशभूषा अलग-अलग धर्म और संस्कृति का प्रतीक मानी जाती है।

सर का पहनावा – भारत में अलग-अलग धर्म जाति के लोग अलग-अलग तरह की चीजें सर पर पहनते हैं। यह चीजें उनके धर्म व संस्कृति को प्रदर्शित करती हैं। टोपी, पगड़ी, साफा इसके मुख्य उदाहरण है।

साड़ी – साड़ी को हमारे देश का सबसे सांस्कृतिक वस्त्र माना जाता है। हिंदू धर्म और संस्कृति के अनुसार औरतों को साड़ी ही पहननी चाहिए।

कुर्ता और पजामा – भारत में पुरुष कुर्ता और पजामा पहनते हैं। कुर्ता पजामा पुरुषों की शान मानी जाती हैं।

इन सबके अलावा सलवार और कुर्ती, धोती लहंगा चोली जैसे वस्त्र भी संस्कृति व धर्म का प्रतीक माने जाते हैं।

भारत के राज्यों में पहने जाने वाले वस्त्र (names of dresses of indian states)

जम्मू कश्मीर के वस्त्र (information about jammu kashmir dress).

  • फिरन (phiran) – पुरुषों व महिलाओं द्वारा ढीला ढाला चोगे की तरह पहने जाने वाला वस्त्र
  • तरंगा (taranga) – कश्मीरी महिलाओं द्वारा सिर पर पहने जाने वाला वस्त्र
  • बुरगा (buraga) – महिलाओं द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र
  • पठानी सूट (pathani suit) – पुरुषों के इस वस्त्र को खान ड्रेस के नाम से भी जाना जाता है, यह विशेषकर श्रीनगर के क्षेत्र में लोकप्रिय है.
  • कसाबा (KASABA)-  फिरन के साथ पहने जाने वाली लाल रंग की टोपी
  • कुंटोप्स (KUNTOPS) – लद्दाखी महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला ऊनी गाउन. इसके साथ BOK भी पहना जाता है.
  • गौचा (GOUCHA)-  लद्दाखी पुरुषों द्वारा गले में पहने जाने वाला भेड़ की खाल का बना ऊनी वस्त्र

हिमाचल प्रदेश के वस्त्र व उनके नाम (information of himachal pradesh dresses)

  • लौन्चारी (LUANCHARI)-  हिमाचल प्रदेश की महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र
  • राहिदे (RAHIDE) -हिमाचल प्रदेश की महिलाओं द्वारा सिर पर पहना जाने वाला वस्त्र
  • पट्टू (PATTO), लिंगचय (LINGCHAY) – विभिन्न प्रकार के शोल
  • तेपांग (TEPANG)-  पुरुषों द्वारा पहनी जाने वाली किन्नोरी टोपी
  • छुबा (CHHUBA)-  अचकन जैसा लम्बा ऊनी कोट जो पुरुषों द्वारा पहना जाता है.
  • गछांग (GACHANG)- पुरुषों द्वारा कमर पर पहने जाने वाला वस्त्र
  • सुथान (SUTHAN) – पुरुषों द्वारा पहने जाने वाला ऊनी या सूती पायजामा
  • किरा (KIRA)- महिलाओं द्वारा कमर पर बाँधी जाने वाली बेल्ट
  • लिंगजिमा, शानो-  विभिन्न प्रकार की टोपियाँ
  • रिगोया (RIGOYA) -पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला लम्बा ऊनी कोट
  • होजुक (HOOJUK)-  महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली एक प्रकार की कमीज

मिजोरम के वस्त्र (Mizoram Traditional Dresses)

  • पुआनचेई (PUANCHEI) – मिजो महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र
  • पुआन (PUON) मिजो पुरुषों द्वारा पहने जाने वाला एक वस्त्र
  • जापी, लुखुम, खुम्बेयु-  विभिन्न प्रकार की मिजो टोपियाँ

आसाम के वस्त्र (assam dress information)

  • मुगा (MUGA), मेखला, चादर व इरी चादर -आसामी महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र
  • महिलाओं के अन्य वस्त्र-  रिगु, रिजाम्फाई, रिहा, रिखाओस, चेखमचुम, फेफेक, हुरा आदि.
  • सम्पा-  मिशिंग जाति की महिलाओं द्वारा कमर में पहने जाने वाला वस्त्र
  • रिका, फेटोंग, शो-  असम के पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र
  • रिनसासो-  पुरुषों के द्वारा पहने जाने वाला स्कार्फ
  • मिबु-  पुरुषों द्वारा पहने जाने वाला कवर कोट

अरुणाचल प्रदेश के वस्त्र (arunachal pradesh dress name)

  • मुशाइक्स (MUSHAIKS) – महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली एक प्रकार की जैकेट
  • मुकाक (MUHAKAK)-  पुरुषों द्वारा कमर में बाधा जाने वाला एक वस्त्र.

मेघालय के वस्त्र (meghalaya traditional dress name)

  • जैनसेम (JAINSEM) – महिलाओं द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र
  • डकमानडा-  गारो महिलाओं द्वारा कमर में बाँधा जाने वाला लुंगी की तरह का एक वस्त्र
  • किरशाह (KYRSHAH)-  जयन्तिया महिलाओं द्वारा सिर पर पहने जाने वाला वस्त्र, यह खेत में काम करते समय पहना जाता है.
  • एकिंग, टेपमोह, जैन्कुप, थो, खिरवांग-  महिलाओं के विभिन्न वस्त्र.

सिक्किम के वस्त्र (Sikkim traditional dress name)

  • थोकरो-डूम (thokro dum)-  सिक्किम की लेपचा जाति के पुरुषों द्वारा पहने जाने वाली पोशाक जिनमें एक सफ़ेद पायजामा, एक कमीज और एक टोपी होती है.
  • डुमवुम या डूमडयाम- महिलाओं द्वारा साड़ी की तरह पहने जाने वाला वस्त्र.
  • खो या बाखू, हांजू, कुशेन, फारिया, चौबंदी, चोलो, होम्बारी, पांग्ड़ेंन, टागो, न्यामरेक, टारो-  सिक्किम की महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली पोशाक
  • पाचाउरी (PACHAURI)-  सिक्किम की नेपाली महिलाओं द्वारा नृत्य करते समय पहनी जाने वाली पोशाक

भारत के राज्यों के प्रमुख वस्त्र और उनके नाम (29 states of india and their dresses names in hindi)

नागालैंड किल्ट, लुंगपेंसू
मणिपुरखामेन चाटपाफेनेक,इनाफी, सारांगे
 त्रिपुरा रिकुटू गमचा, कुबाई रिगनाई, रिसा, रिकुट
 झारखंड भागवान पांची व परहान
 लक्षद्वीप काची, थाट्म
 केरल मुंडू व नेरियाथु मुन्डुम व नेरियाथुम
 गुजरात चोरनोस, केडिया या अंगरखू, फेंटों, कफानी या फरहन चानियों, पोल्कू, आभा या कांजरी, आभास (महिला पुरुष दोनों)
 पंजाब टाम्बा/तहमल व फुलकारी शरारा, लांचा
 गोवा – पानो भाजू
 महाराष्ट्र फतुई नववारी (साड़ी)
 आंध्रप्रदेश कमरी, फेज टोपी –
 कर्नाटक धोतरा –
 मध्यप्रदेश – माहेश्वरी साड़ी
 उत्तराखंड – चुंग, फूया बेल

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Traditional Indian Clothes Posted by kunthra on Nov 23, 2009 in Hindi Language

A दुपट्टा is a long scarf that covers the shoulders and is worn over the head. The दुपट्टा can be made out of cotton, silk, and may be lined with gold threads. The दुपट्टा may be plain or monocolored, or lined with intricate patterns. During the Mughal Times, the दुपट्टा was worn for modesty, but now not only is it for modesty, it is also a fashion statement. Nowadays one side of the दुपट्टा can be thrown over one shoulder.

A धोती is a piece of cloth that is knotted and worn around the waist by men. The धोती is considered a type of formal clothing. For purposes of convenience, sometimes the ends of the धोती is folded; thereby showing the legs. However when talking to a superior or a woman, it is disrespectful to have the layers of the धोती folded. Usually some type of कुरता is worn in addition to the  धोती.

A कुरता is a long sleeved gown that falls below the knees. Usually some sort of trouser is worn in addition to the कुरता . Sometimes the front of the कुरता is lined with buttons. The buttons may be precious gemstones. I’ve even seen a v neck version, but this was probably a fusion of Western and Indian clothing styles. Nowadays, the cuff of the sleeves are decorated and hemmed in a decorative manner.

A चोली is a light, fabric dress worn by girls and unmarried women. The sleeves are short-sleeved and the dress covers the ankles. The most popular types of fabric tend to be thin like satin and silk. The चोली is a common form of traditional wear at weddings and other formal events. The चोली is popular because it can be form fitting without being too revealing or immodest.

cotton clothes essay in hindi

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Nice post, Good way to give knowledge about Indian Traditional clothes….

Clothes in Hindi

Knowing some words for clothes in Hindi will be useful in all kinds of situations. Whether you’re strolling in a city or adventuring away from the crowds, after this free audio lesson you’ll be able to describe what you need to suit the weather, or what you’re looking for when shopping for clothes in India.

If you’re traveling on vacation it’s likely you’ll be more dependent on the weather , especially if you’re planning to spend a lot of time outside. You'll enjoy yourself a lot more if you have the appropriate clothing! What’s the Hindi word for jacket? How do you explain that you need a pair of thick socks for walking? Listen to the native-speaker’s pronunciation and practice saying the Hindi words aloud until you feel confident.

Resources for further reading: Learning Hindi online The top ten hacks to fast-tracking your Hindi

Pronouncing clothes in Hindi

Practice your pronunciation with rocket record.

Rocket Record lets you perfect your Hindi pronunciation. Just listen to the native speaker audio and then use the microphone icon to record yourself. Once you’re done, you’ll get a score out of 100 on your pronunciation and can listen to your own audio playback. (Use a headset mic for best results.) Problems? Click here!

Let's get started....

स्विम ट्रंक

svima ṭraṃka

Swim trunks

तैरने के कपड़े

tairane ke kapaḍa़e

हल्के कपड़े

halke kapaḍa़e

Light clothing

garam kapaḍa़e

Warm clothing

सैंडल / चप्पल

saiṃḍala / cappala

मोटी मोज़े की जोड़ी

moṭī moja़e kī joḍa़ī

A pair of thick socks

दस्ताने की जोड़ी

dastāne kī joḍa़ī

A pair of gloves

An umbrella

Socks in Hindi

If you are lucky enough to have some sunny weather you might also need…

धूप का चष्मा / सन ग्लास

dhūpa kā caṣmā / sana glāsa

The sunglasses

The sunscreen

If the weather is no good, you may want to say that you are boiling hot, freezing cold, wet or miserable. See which one of these phrases suits you...

मै ठंडा / ठंडी हूँ

mai ṭhaṃḍā / ṭhaṃḍī hūn

I'm cold.

मैं बहुत ठंडा हूँ ।

maiṃ bahuta ṭhaṃḍā hūn ।

I'm freezing.

मुझे गर्मी लग रही है ।

mujhe garmī laga rahī hai ।

I'm (feeling) hot.

मुझे पसीना आ रहा है ।

mujhe pasīnā ā rahā hai ।

I'm sweating.

मेरे पैर ठंडे हैं ।

mere paira ṭhaṃḍe haiṃ ।

My feet are cold.

मेरी उन्गलियाँ बहुत ठंडी हैं ।

merī ungaliyām̐ bahuta ṭhaṃḍī haiṃ ।

My fingers are frozen.

मै गीला हूँ ।

mai gīlā hūn ।

I'm wet.

So whether it’s boiling hot, freezing cold, or humid and sticky... you now have the right language to communication how you feel, and what clothing you need to match the conditions. Well done!

Here are a few recommended Hindi lessons to try next!

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फिर मिलेंगे (phir milenge),

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    Read this article in Hindi to learn about the cotton textile industries situated in India. सूती वस्त्र उद्योग भारत के पुराने उद्योगों में से एक है । इस उद्योग से भारत की बड़ी जनसंख्या को रोजगार मिलता है ...

  18. कपास की खेती कैसे करें

    कपास की खेती से सम्बंधित जानकारी कपास (Cotton) की खेती किसानो के लिए फायदे की खेती के रूप में जानी जाती है इसकी पैदावार नगद फसल के रूप में होती है कपास की फसल ...

  19. भारतीय वस्त्र व वेशभूषाएं

    यहाँ पढ़ें भारत के सभी राज्यों एवं भौगोलिक प्रदेशों में पहले पहले पहने जाते हुए वस्त्र के नाम एवं कपड़े की सूची. कपड़े की परम्परा, स्त्री कपड़े, पुरुष कपड़े ...

  20. Traditional Indian Clothes

    Traditional Indian Clothes Posted by kunthra on Nov 23, 2009 in Hindi Language. A दुपट्टा is a long scarf that covers the shoulders and is worn over the head. The दुपट्टा can be made out of cotton, silk, and may be lined with gold threads. The दुपट्टा may be plain or monocolored, or lined with intricate ...

  21. Essay on Cotton in Hindi

    Welcome to my channel#StudyPrideHubHello EveryoneToday in this video we will learnHow to write Essay on cotton, Essay on cotton fibre, Essay on cotton in ...

  22. Clothes in Hindi

    Learn how to say clothes in Hindi and describe what you need to suit the weather or shop for clothes in India. Listen to native-speaker pronunciation, practice with Rocket Record and get flashcards and reinforcement activities.

  23. Essay on Cotton in Hindi

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