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महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही सत्य और अहिंसा का स्मरण होता है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने किसी दूसरे को सलाह देने से पहले उसका प्रयोग स्वंय पर किया। जिन्होंने बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोङा। महात्मा गाँधी महान व्यक्तित्व के राजनैतिक नेता थे। इन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था। गाँधी जी सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे, और इसे वे पूरी तरह अपने जीवन में लागू भी करते थे। उनके सम्पूर्णं जीवन में उनके इसी विचार की छवि प्रतिबिम्बित होती है। यहीं कारण है कि उन्हें 1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था।

महात्मा गाँधी से संबंधित तथ्य:

पूरा नाम – मोहनदास करमचन्द गाँधी अन्य नाम – बापू, महात्मा, राष्ट्र-पिता जन्म-तिथि व स्थान – 2 अक्टूबर 1869, पोरबन्दर (गुजरात) माता-पिता का नाम – पुतलीबाई, करमचंद गाँधी पत्नी – कस्तूरबा गाँधी शिक्षा – 1887 मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की,

  • विद्यालय – बंबई यूनिवर्सिटी, सामलदास कॉलेज
  • इंग्लैण्ड यात्रा – 1888-91, बैरिस्टर की पढाई, लंदन युनिवर्सिटी

बच्चों के नाम (संतान) – हरीलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास प्रसिद्धि का कारण – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम राजनैतिक पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस स्मारक – राजघाट, बिरला हाऊस (दिल्ली) मृत्यु – 30 जनवरी 1948, नई दिल्ली मृत्यु का कारण – हत्या

महात्मा गाँधी की जीवनी (जीवन-परिचय)

महात्मा गाँधी (2 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948)

जन्म, जन्म-स्थान व प्रारम्भिक जीवन

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर, गुजरात में करमचंद गाँधी के घर पर हुआ था। यह स्थान (पोरबंदर) पश्चिमी भारत में गुजरात राज्य का एक तटीय शहर है। ये अपनी माता पुतलीबाई के अन्तिम संतान थे, जो करमचंद गाँधी की चौथी पत्नी थी। करमचंद गाँधी की पहली तीन पत्नियों की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान इनके पिता पहले पोरबंदर और बाद में क्रमशः राजकोट व बांकानेर के दीवान रहें।

महात्मा गाँधी जी का असली नाम मोहनदास था और इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी। इसी कारण इनका नाम पूरा नाम मोहन दास करमचंद गाँधी पङा। ये अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे। इनकी माता पुतलीबाई, बहुत ही धार्मिक महिला थी, जिस का गाँधी जी के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पङा। जिसे उन्होंने स्वंय पुणे की यरवदा जेल में अपने मित्र और सचिव महादेव देसाई को कहा था, ‘‘तुम्हें मेरे अंदर जो भी शुद्धता दिखाई देती हो वह मैंने अपने पिता से नहीं, अपनी माता से पाई है…उन्होंने मेरे मन पर जो एकमात्र प्रभाव छोड़ा वह साधुता का प्रभाव था।’’

गाँधी जी का पालन-पोषण वैष्णव मत को मानने वाले परिवार में हुआ, और उनके जीवन पर भारतीय जैन धर्म का गहरा प्रभाव पङा। यही कारण है कि वे सत्य और अहिंसा में बहुत विश्वास करते थे और उनका अनुसरण अपने पूरे जीवन काल में किया।

गाँधी जी का विवाह (शादी)/ गाँधी जी का वैवाहिक जीवन

गाँधी जी की शादी सन् 1883, मई में 13 वर्ष की आयु पूरी करते ही 14 साल की कस्तूरबा माखन जी से हुई। गाँधी जी ने इनका नाम छोटा करके कस्तूरबा रख दिया और बाद में लोग उन्हें प्यार से बा कहने लगे। कस्तूरबा गाँधी जी के पिता एक धनी व्यवसायी थे। कस्तूरबा गाँधी शादी से पहले तक अनपढ़ थीं। शादी के बाद गाँधीजी ने उन्हें लिखना एवं पढ़ना सिखाया। ये एक आदर्श पत्नी थी और गाँधी जी के हर कार्य में दृढता से उनके साथ खङी रही। इन्होंने गाँधी जी के सभी कार्यों में उनका साथ दिया।

1885 में गाँधी जी जब 15 साल के थे तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया। लेकिन वह कुछ ही समय जीवित रहीं। इसी वर्ष इनके पिताजी करमचंद गाँधी की भी मृत्यु हो गयी। गाँधी जी के 4 सन्तानें थी और सभी पुत्र थे:- हरीलाल गाँधी (1888), मणिलाल गाँधी (1892), रामदास गाँधी (1897) और देवदास गाँधी (1900)।

गाँधी जी की शिक्षा- दीक्षा

प्रारम्भिक शिक्षा

गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुई थी। पोरबंदर से उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। इनके पिता की बदली राजकोट होने के कारण गाँधी जी की आगे की शिक्षा राजकोट में हुई। गाँधी जी अपने विद्यार्थी जीवन में सर्वश्रेष्ठ स्तर के विद्यार्थी नहीं थे। इनकी पढाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी। हालांकि गाँधी जी एक एक औसत दर्जें के विद्यार्थी रहे, किन्तु किसी किसी प्रतियोगिता और खेल में उन्होंने पुरुस्कार और छात्रवृतियॉ भी जीती। 21 जनवरी 1879 में राजकोट के एक स्थानीय स्कूल में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने अंकगणित, इतिहास और गुजराती भाषा का अध्यन किया।

साल 1887 में जैसे-तैसे उन्होंने राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिये भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया। घर से दूर रहने के कारण वे पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाये और अस्वस्थ होकर पोरबंदर वापस लौट आये। यदि आगे की पढ़ाई का निर्णय गाँधी जी पर छोड़ा जाता तो वह डॉक्टरी की पढ़ाई करके डॉक्टर बनना चाहते थे, किन्तु उन्हें घर से इसकी अनुमति नहीं मिली।

इंग्लैण्ड में उच्च स्तर की पढाई

गाँधी जी के पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार के एक करीबी मित्र भावजी दवे ने उन्हें वकालत करने की सलाह दी और कहा कि बैरिस्टर की पढ़ाई करने के बाद उन्हें अपने पिता का उत्तराधिकारी होने के कारण उनका दीवानी का पद मिल जायेगा।

उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के कुछ सदस्यों ने उनके विदेश जाने के फैसले का विरोध किया, किन्तु गाँधी जी ने अपनी माँ से वादा किया कि वे शाकाहारी भोजन करेगें। इस प्रकार अपनी माँ को आश्वस्त करने के बाद उन्हें इंग्लैण्ड जाने की आज्ञा मिली।

4 सितम्बर 1888 को गाँधी जी इंग्लैण्ड के लिये रवाना हुये। यहाँ आने के बाद इन्होंने पढ़ाई को गम्भीरता से लिया और मन लगाकर अध्ययन करने लगे। हालांकि, इंग्लैण्ड में गाँधी जी का शुरुआती जीवन परेशानियों से भरा हुआ था। उन्हें अपने खान-पान और पहनावे के कारण कई बार शर्मिदा भी होना पड़ा। किन्तु उन्होंने हर एक परिस्थिति में अपनी माँ को दिये वचन का पालन किया।

बाद में इन्होंने लंदन शाकाहारी समाज (लंदन वेजीटेरियन सोसायटी) की सदस्यता ग्रहण की और इसके कार्यकारी सदस्य बन गये। यहाँ इनकी मुलाकात थियोसोफिकल सोसायटी के कुछ लोगों से हुई जिन्होंने गाँधी जी को भगवत् गीता पढ़ने को दी। गाँधी जी लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के सम्मेलनों में भाग लेने लगे और उसकी पत्रिका में लेख लिखने लगे। यहाँ तीन वर्षों (1888-1891) तक रहकर अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की और 1891 में ये भारत लौट आये।

गाँधी जी का 1891-1893 तक का समय

1891 में जब गाँधी जी भारत लौटकर आये तो उन्हें अपनी माँ की मृत्यु का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि वकालत एक स्थिर व्यवसायी जीवन का आधार नहीं है। गाँधी जी ने बंबई जाकर वकालत का अभ्यास किया किन्तु स्वंय को स्थापित नहीं कर पाये और वापस राजकोट आ गये। यहाँ इन्होंने लागों की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरु कर दिया। एक ब्रिटिश अधिकारी को नाराज कर देने के कारण इनका यह काम भी बन्द हो गया।

गाँधी जी की अफ्रीका यात्रा

एक वर्ष के कानून के असफल अभ्यास के बाद, गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के व्यापारी दादा अब्दुला का कानूनी सलाहकार बनने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 1883 में गाँधी जी ने अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान किया। इस यात्रा और वहाँ के अनुभवों ने गाँधी जी के जीवन को एक महत्वपूर्ण मोङ दिया। इस यात्रा के दौरान गाँधी जी को भारतियों के साथ हो रहें भेदभाव को देखा।

ऐसी कुछ घटनाऐं उनके साथ घटित हुई जिससे उन्हें भारतियों और अश्वेतों के साथ हो रहे अत्याचारों का अनुभव हुआ जैसे: 31 मई 1883 को प्रिटोरिया जाने के दौरान प्रथम श्रेणी की टिकट के बावजूद उन्हें एक श्वेत अधिकारी ने गाडी से धक्का दे दिया और उन्होंने ठिठुरते हुये रात बिताई क्योंकि वे किसी से पुनः अपमानित होने के डर से कुछ पूछ नहीं सकते थे, एक अन्य घटना में एक घोङा चालक ने उन्हें पीटा क्योंकि उन्होंने एक श्वेत अंग्रेज को सीट देकर पायदान पर बैठकर यात्रा करने से इंकार कर दिया था, यूरोपियों के लिये सुरक्षित होटलों पर जाने से रोक आदि कुछ ऐसी घटनाऐं थी जिन्होंने गाँधी जी के जीवन का रुख ही बदल दिया।

नटाल (अफ्रीका) में भारतीय व्यापारियों और श्रमिकों के लिये यह अपमान आम बात थी और गाँधी जी के लिये एक नया अनुभव। यहीं से गाँधी जी के जीवन में एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। गाँधी जी ने सोचा कि यहाँ से भारत वापस लौटना कायरता होगी अतः वहीं रह कर इस अन्याय का विरोध करने का निश्चय किया। इस संकल्प के बाद वे अगले 20 वर्षों (1893-1894) तक दक्षिण अफ्रीका में ही रहें और भारतियों के अधिकारों और सम्मान के लिये संघर्ष किया।

दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष का प्रथम चरण (1884-1904) –

  • संघर्ष के इस प्रथम चरण के दौरान गाँधी जी की राजनैतिक गतिविधियाँ नरम रही। इस दौरान उन्होंने केवल सरकार को अपनी समस्याओं और कार्यों से संबंधित याचिकाएँ भेजते थे।
  • भारतियों को एक सूत्र में बाँधने के लिये 22 अगस्त 1894 में “नेटाल भारतीय काग्रेंस का” गठन किया।
  • “इण्डियन ओपिनियन” नामक अखबार के प्रकाशन की प्रक्रिया शुरु की।
  • इस संघर्ष को व्यापारियों और वकीलों के आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

संघर्ष का दूसरा चरण –

  • अफ्रीका में संघर्ष के दूसरे चरण की शुरुआत 1906 में हुई।
  • इस समय उपनिवेशों की राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन हो चुका था, तो गाँधी जी ने नये स्तर से आन्दोलन को प्रारम्भ किया। यहीं से मूल गाँधीवादी प्राणाली की शुरुआत मानी जाती है।
  • 30 मई 1910 में जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।
  • काग्रेंस के कार्यकर्ताओं को अहिंसा और सत्याग्रह का प्रशिक्षण।

महात्मा गाँधी का भारत आगमन

1915 में 46 वर्ष की उम्र में गाँधी जी भारत लौट आये, और भारत की स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन किया। गोपाल कृष्ण गोखले (गाँधी जी के राजनीतिक गुरु) की सलाह पर गाँधी जी नें एक वर्ष शान्तिपूर्ण बिना किसी आन्दोलन के व्यतीत किया। इस समय में उन्होंने भारत की वास्तविक स्थिति से रूबरू होने के लिये पूरे भारत का भ्रमण किया। 1916 में गाँधी जी नें अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। फरवरी 1916 में गाँधी जी ने पहली बार बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में मंच पर भाषण दिया। जिसकी चर्चा पूरे भारत में हुई।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका

चम्पारण और खेडा आन्दोलन (1917-1918)

साल 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में रहने वाले किसानों के हक के लिये गाँधी जी ने आन्दोलन किया। यह गाँधी जी का भारत में प्रथम सक्रिय आन्दोलन था, जिसनें गाँधी जी को पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। इस आन्दोलन में उन्होंने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और इस प्रयोग में प्रत्याशित सफलता भी अर्जित की।

19 वीं शताब्दी के अन्त में गुजरात के खेड़ा जिले के किसान अकाल पड़ने के कारण असहाय हो गये और उस समय उपभोग की वस्तुओं के भी दाम बहुत बढ़ गये थे। ऐसे में किसान करों का भुगतान करने में बिल्कुल असमर्थ थे। इस मामले को गाँधी जी ने अपने हाथ में लिया और सर्वेंट ऑफ इण्डिया सोसायटी के सदस्यों के साथ पूरी जाँच-पड़ताल के बाद अंग्रेज सरकार से बात की और कहा कि जो किसान लगान देने की स्थिति में है वे स्वतः ही दे देंगे बशर्तें सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दें। ब्रिटिश सरकार ने यह प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों का लगान माफ कर दिया।

1918 में अहमदाबाद मिल मजदूरों के हक के लिये भूख हङताल

1918 में अहमदाबाद के मिल मालिक कीमत बढने के बाद भी 1917 से दिये जाने वाले बोनस को कम बंद कर करना चाहते थे। मजदूरों ने माँग की बोनस के स्थान पर मजदूरी में 35% की वृद्धि की जाये, जबकि मिल मालिक 20% से अधिक वृद्धि करना नहीं चाहते थे। गाँधी जी ने इस मामले को सौंपने की माँग की। किन्तु मिल मालिकों ने वादा खिलाफी करते हुये 20% वृद्धि की। जिसके खिलाफ गाँधी जी नें पहली बार भूख हङताल की। यह इस हङताल की सबसे खास बात थी। भूख हङताल के कारण मिल मालिकों को मजदूरों की माँग माननी पङी।

इन आन्दोलनों ने गँधी जी को जनप्रिय नेता तथा भारतीय राजनीति के प्रमुख स्तम्भ के रुप में स्थापित कर दिया।

खिलाफत आन्दोलन (1919-1924)

तुर्की के खलीफा के पद की दोबारा स्थापना करने के लिये देश भर में मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। यह एक राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था, जो अंग्रेजों पर दबाव डालने के लिये चलाया गया था। गाँधी जी ने इस आन्दोलन का समर्थन किया। इस आन्दोलन का समर्थन करने का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता आन्दोलन में मुसलिमों का सहयोग प्राप्त करना था।

असहयोग आन्दोलन (1919-1920)

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान प्रेस पर लगे प्रतिबंधों और बिना जाँच के गिरफ्तारी वे आदेश को सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता वाली समिति ने इन कडे नियमों को जारी रखा। जिसे रोलेट एक्ट के नाम से जाना गया। जिसका पूरे भारत में व्यापक स्तर पर विरोध हुआ। उस विरोधी आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन का नाम दिया गया। असहयोग आन्दोलन के जन्म का मुख्य कारण रोलट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (1919) था।

गाँघी जी अध्यक्षता में 30 मार्च 1919 और 6 अप्रैल 1919 को देश व्यापी हङताल का आयोजन किया गया। चारों तरफ देखते ही देखते सभी सरकारी कार्य ठप्प हो गये। अंग्रेज अधिकारी इस असहयोग के हथियार के आगे बेवस हो गये। 1920 में गाँधी जी कांग्रेस के अध्यक्ष बने और इस आन्दोलन में भाग लेने के लिये भारतीय जनमानस को प्रेरित किया। गाँधी जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर प्रत्येक भारतीय ने इसमें बढ-चढ कर भाग लिया।

इस आन्दोलन को और अधिक प्रभावी करने के लिये और हिन्दू- मुसलिम एकता को मजबूती देने के उद्देश्य से गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन से जोङ दिया।

सरकारी आकडों के अनुसार साल 1921 में 396 हडतालें आयोजित की गयी जिसमें 6 लाख श्रमिकों ने भाग लिया था और इस दौरान लगभग 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ था। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कालेजों में जाना बन्द कर दिया, वकीलों ने वकालात करने से मना कर दिया और श्रमिक वर्ग हङताल पर चला गया। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय नागरिक ने अपने अपने ढंग से गाँधी जी के इस आन्दोलन को सफल बनाने में सहयोग किया। 1857 की क्रान्ति के बाद यह सबसे बङा आन्दोलन था जिसने भारत में ब्रिटिश शासन के अस्तित्व को खतरें में डाल दिया था।

चौरी-चौरा काण्ड (1922)

1922 तक आते आते यह देश का सबसे बङा आन्दोलन बन गया था। एक हङताल की शान्तिपूर्ण विरोध रैली के दौरान यह अचानक हिंसात्मक रुप में परिणित हो गया। विरोध रैली के दौरान पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करके जेल में डालने से भीङ आक्रोशित हो गयी। और किसानों के एक समूह ने फरवरी 1922 में चौरी-चौरा नामक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। इस घटना में कई निहत्थे पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गयी।

इस घटना से गाँधी जी बहुत आहत हुये और उन्होंने इस आन्दोलन को वापस ले लिया। गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, “आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।”

सविनय अवज्ञा आन्दोलन (12 मार्च 1930)

इस आनदोलन का उद्देश्य पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना था। गाँधी जी और अन्य अग्रणी नेताओं को अंग्रेजों के इरादों पर शक होने लगा था कि वे अपनी औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की घोषणा को पूरी करेगें भी या नहीं। गाँधी जी ने अपनी इसी माँग का दबाव अंग्रेजी सरकार पर डालने के लिये 6 अप्रैल 1930 को एक और आन्दोलन का नेतृत्व किया जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

इसे दांङी मार्च या नमक कानून भी कहा जाता है। यह दांङी मार्च गाँधी जी ने साबरमती आश्रम से निकाली। इस आन्दोलन का उद्देश्य सामूहिक रुप से कुछ विशिष्ट गैर-कानूनी कार्यों को करके सरकार को झुकाना था। इस आन्दोलन की प्रबलता को देखते हुये सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिये भेजा। गाँधी जी ने यह समझौता स्वीकार कर लिया और आन्दोलन वापस ले लिया।

भारत छोडो आन्दोलन (अगस्त 1942)

क्रिप्श मिशन की विफलता के बाद गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना तीसरा बङा आन्दोलन छेङने का निर्णय लिया। इस आन्दोलन का उद्देश्य तुरन्त स्वतंत्रता प्राप्त करना था। 8 अगस्त 1942 काग्रेंस के बम्बई अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोङों का नारा दिया गया और 9 अगस्त 1942 को गाँधी जी के कहने पर पूरा देश आन्दोलन में शामिल हो गया। ब्रिटिश सरकार ने इस आन्दोलन के खिलाफ काफी सख्त रवैया अपनाया। इस आन्दोलन को दबाने में सरकार को एक वर्ष से अधिक समय लगा।

भारत का विभाजन और आजादी

अंग्रेजों ने जाते जाते भी भारत को दो टुकङों में बाँट दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की स्थिति बहुत कमजोर हो गयी थी। उन्होंने भारत को आजाद करने के संकेत दे दिये थे। भारत की आजादी के साथ ही जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग राज्य पाकिस्तान की भी माँग होने लगी। गाँधी जी देश का बँटवारा नहीं होने देना चाहते थे। किन्तु उस समय परिस्थितियों के प्रतिकूल होने के कारण देश दो भागों में बँट गया।

महात्मा गाँधी की मृत्यु (30 जनवरी 1948)

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजकर 17 मिनट पर बिरला हाउस में गाँधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। जवाहर लाल नेहरु ने गाँधी जी की हत्या की सूचना इन शब्दों में दी, ‘हमारे जीवन से प्रकाश चला गया और आज चारों तरफ़ अंधकार छा गया है। मैं नहीं जानता कि मैं आपको क्या बताऊँ और कैसे बताऊँ। हमारे प्यारे नेता, राष्ट्रपिता बापू अब नहीं रहे।’

गाँधी जी का जीवन-चक्र (टाईम-लाइन) एक नजर मेः-

1879 – जन्म – 2 अक्टूबर, पोरबंदर (गुजरात)।

1876 – गाँधी जी के पिता करमचंद गाँधी की राजकोट में बदली, परिवार सहित राजकोट आना और कस्तूरबा माखन जी से सगाई।

1879 – 21 जनवरी 1879 को राजकोट के स्थानीय स्कूल में दाखिला।

1881 – राजकोट हाई स्कूल में पढाई।

1883 – कस्तूरबा माखन जी से विवाह।

1885 – गाँधी जी के पिता की मृत्यु, इसी वर्ष इनके पहले पुत्र का जन्म और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु।

1887 – राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की, सामलदास कॉलेज (भावनगर) में प्रवेश।

1888 – पहले पुत्र हरीलाल का जन्म, बैरिस्टर की पढाई के लिये इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान।

1891 – बैरिस्टर की पढाई करके भारत लौटे, अपनी अनुपस्थिति में माता पुतलीबाई के निधन का समाचार, पहले बम्बई बाद में राजकोट में वकालात की असफल शुरुआत।

1892 – दूसरे पुत्र मणिलाल गाँधी का जन्म।

1893 – अफ्रीकी व्यापारी दादा अब्दुला के कानूनी सलाहकार का प्रस्ताव को स्वीकार कर अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान, 31 मई 1893 को प्रिटोरिया रेल हादसा, रंग-भेद का सामना।

1894 – दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष के प्रथम चरण का प्रारम्भ, नेटाल इण्डियन कांग्रेस की स्थापना।

1896 – भारत आगमन (6 महीने के लिये) और पत्नी और एक पुत्र को लेकर अफ्रीका वापस गये।

1897 – तीसरे पुत्र रामदास का जन्म।

1899 – बोअर युद्ध में ब्रिटिश की मदद के लिये भारतीय एम्बुलेंस सेवा प्रदान की।

1900 – चौथे और अन्तिम पुत्र देवदास का जन्म।

1901 – अफ्रीकी भारतियों को आवश्यकता के समय मदद करने के लिये वापस आने का आश्वासन देकर परिवार सहित स्वदेश आगमन, भारत का दौरा, कांग्रेस अधिवेशन में भाग और बबंई में वकालात का दफ्तर खोला।

1902 – अफ्रीका में भारतियों द्वारा बुलाये जाने पर अफ्रीका के लिये प्रस्थान।

1903 – जोहान्सवर्ग में वकालात दफ्तर खोला।

1904 – इण्डियन ओपिनियन सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1906 – जुल्लु युद्ध के दौरान भारतियों को मदद के लिये प्रोत्साहन, आजीवन ब्रह्मचर्य का संकल्प, एशियाटिक ऑर्डिनेन्स के विरोध में प्रथम सत्याग्रह।

1907 – ब्लैक एक्ट (भारतियों और अन्य एशियाई लोगों का जबरदस्ती पंजीयन) के विरोध में सत्याग्रह।

1908 – दक्षिण अफ्रीका (जोहान्सवर्ग) में पहली जेल यात्रा, दूसरा सत्याग्रह (पुनः जेल यात्रा)।

1909 – दक्षिण अफ्रीकी भारतियों की ओर से पक्ष रखने के इंग्लैण्ड यात्रा, नवम्बर (13-22 तारीख के बीच) में वापसी के दौरान हिन्द स्वराज पुस्तक की रचना।

1910 – 30 मई को जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।

1913 – द ग्रेट मार्च का नेतृत्व, 2000 भारतीय खदान कर्मियों की न्युकासल से नेटाल तक की पदयात्रा।

1915 – 21 वर्ष बाद भारत वापसी।

1916 – साबरमती नदी के किनारे (अहमदाबाद में) आश्रम की स्थापना, बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय की स्थापना पर प्रथम बार गाँधी जी का मंच से भाषण।

1917 – बिहार के चम्पारन जिले में नील किसानों के हक के लिये सत्याग्रह आन्दोलन।

1918 – अहमदाबाद में मिल मजदूरों की हक की लङाई में मध्यस्था

1919 – रोलेट एक्ट और जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में सत्याग्रह छेङा, जो आगे चलकर असहयोग आन्दोलन (1920) के नाम से प्रसिद्ध हुआ, यंग इण्डिया (अंग्रेजी) और नवजीवन (गुजराती) सप्ताहिक पत्रिका का संपादन।

1920 – जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में केसर-ए-हिन्द की उपाधि वापस की, होमरुल लीग के अध्यक्ष निर्वाचित हुये।

1921 – असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत बंबई में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में 5 दिन का उपवास।

1922 – चौरी-चौरा कांड के कारण असहयोग आन्दोलन को वापस लिया, राजद्रोह का मुकदमा और 6 वर्ष का कारावास।

1924 – बेलगाम कांग्रेस अधिवेसन में अध्यक्ष चुने गये, साम्प्रदायिक एकता के लिये 21 दिन का उपवास।

1928 – कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में भाग, पूर्ण स्वराज का आह्वान।

1929 – कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस घोषित करके राष्ट्रव्यापी आन्दोलन आरम्भ।

1930 – नमक कानून तोङने के लिये साबरमती आश्रम से दांङी यात्रा जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन का नाम दिया।

1931 – गाँधी इरविन समझौता, गाँधी जी ने दूसरे गोलमाज सम्मेलन में भाग लेने को तैयार।

1932 – यरवदा पैक्ट को ब्रिटिश स्वीकृति।

1933 – साबरमती तट पर बने आश्रम का नाम हरिजन आश्रम रखकर देश में अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलन छेङा, हरिजन नामक सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1934 – अखिल भारतीय ग्रामोद्योग की स्थापना।

1936 – वर्धा में सेवाश्रम की स्थापना।

1937 – दक्षिण भारत की यात्रा।

1940 – विनोबा भावे को पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही के रुप में चुना गया।

1942 – क्रिप्स मिशन की असफलता, भारत छोङो अभियान की शुरुआत, सचिव मित्र महादेव देसाई का निधन।

1944 – 22 फरवरी को गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी जी की मृत्यु।

1946 – बंगाल के साम्प्रदायिक दंगो के संबंध में कैबिनेट मिशन से भेंट।

1947 – साम्प्रदायिक शान्ति के लिये बिहार यात्रा, जिन्ना और गवर्नल जनरल माउन्टबैटेन से भेंट, देश विभाजन का विरोध।

1948 – बिङला हाउस में जीवन का अन्तिम 5 दिन का उपवास, 20 जनवरी को प्रार्थना सभा में विस्फोट, 30 जनवरी को प्रार्थना के लिये जाते समय नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या।

गाँधी जी के अनमोल वचन

  • “पाप से घृणा करो, पापी से नहीं”।
  • “जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते है, वह पहले स्वंय में लाये।”
  • “वास्तविक सौन्दर्य ह्रदय की पवित्रता में है|”
  • “अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है|”
  • “गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है।”
  • “चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए|”
  • “जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है|”
  • “जब भी आप एक प्रतिद्वंद्वी के साथ सामना कर रहे हैं। प्यार के साथ उसे जीतना।”
  • “अहिंसा, किसी भी प्राणी को विचार, शब्द या कर्म से चोट नहीं पहुंचाना है, यहाँ तक कि किसी प्राणी के लाभ के लिए भी नहीं।”
  • “जहाँ प्यार है, वहाँ जीवन है।”
  • “मैं आपके मसीहा (ईशा) को पसन्द करता हूँ, मैं आपके ईसाइयों को पसंद नहीं करता। आपके ईसाई आपके मसीहा (ईशा) के बहुत विपरीत हैं।”
  • “सबसे पहले आपकी उपेक्षा करते है, तब वे आप पर हंसते हैं, तब वे आप से लड़ते हैं, तब आप जीतते है।”
  • “मैं खुद के लिए कोई पूर्णता का दावा नहीं करता। लेकिन मैं सच्चाई के पीछे एक भावुक साधक का दावा करता हूँ, जो भगवान का दूसरा नाम हैं।”
  • “मेरे पास दुनिया को पढ़ाने के लिए कोई नई बात नहीं है। सत्य और अहिंसा पहाड़ियों के जैसे पुराने हैं। मैंनें पूर्ण प्रयास के साथ विशाल पैमाने पर दोनों में प्रयोगों की कोशिश है, जितना मैं कर सकता था।”
  • “कमज़ोर कभी माफ नहीं कर सकते। क्षमा ताकतवर की विशेषता है।”
  • “आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।”
  • “खुशी जब मिलेगी जब जो आप सोचते है, कहते है, और जो करते है, सामंजस्य में हों।”
  • “ऐसे जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो। ऐसे सीखो की तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो।”
  • “किसी राष्ट्र की संस्कृति उसके लोगों के दिलों और आत्माओं में बसती है|”
  • “कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं|”
  • “जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता | दुःख के बिना सुख नहीं होता|”
  • “विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है|”
  • “यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती है।”
  • “राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है|”
  • “चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए।”
  • “हंसी मन की गांठें बड़ी आसानी से खोल देती है|”
  • “काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है|”
  • “लम्बे-लम्बे भाषणों से कहीं अधिक मूल्यवान इंच भर कदम उठाना है।”
  • “आपका कोई काम महत्वहीन हो सकता है, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।”
  • “मेरी आज्ञा के बिना मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचा करता।”
  • “क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है।”
  • “क्षणभर भी बिना काम के रहना ईश्वर से चोरी समझो। मैं आन्तरिक और बाहरी सुख का दूसरा कोई भी रास्ता नहीं जानता।”
  • “अहिंसा में इतनी ताकत है कि वह विरोधियों को भी अपना मित्र बना लेती है और उनका प्रेम प्राप्त कर लेती है।”
  • “मैं हिन्दी के जरिये प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता बल्कि उनके साथ हिन्दी को भी मिला देना चाहता हूँ।”
  • “एक धर्म सभी भाषणों से परे है।”
  • “किसी में विश्वास करना और उसे ना जीना बेईमानी है।”
  • “बिना उपवास के कोई प्रार्थना नहीं और बिना प्रार्थना के कोई उपवास नहीं।”
  • “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।”
  • “मानवता का सबसे बङा हथियार शान्ति है।”

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सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जीवनी

Mahatma Gandhi Biography in Hindi

आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं। अहिंसा और सत्याग्रह के संघर्ष से उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। वो हमेशा कहते थे

“बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो!”

और उनका ये भी मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। इस महान इन्सान को भारत ने राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। उनका पूरा नाम था ‘ मोहनदास करमचंद गांधी ‘ –  Mahatma Gandhi.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनी – Mahatma Gandhi Biography in Hindi

Mahatma Gandhi Biography

महात्मा गांधी जी के बारेमें – Mahatma Gandhi Information in Hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनी – mahatma gandhi in hindi.

आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं, वो इसलिए क्योंकि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi ने अपने अथक प्रयासों के बल पर अंग्रेजो से भारत को आजाद कराया यही नहीं इस महापुरुष ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रहित में लगा दिया। महात्मा गांधी की कुर्बानी की मिसाल आज भी दी जाती है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी  – Mahatma Gandhi के पास सत्य और अहिंसा दो हथियार थे जिन्होनें इसे भयावह और बेहद कठिन परिस्थितयों में अपनाया शांति के मार्ग पर चलकर इन्होनें न सिर्फ बड़े से बड़े आंदोलनों में आसानी से जीत हासिल की बल्कि बाकी लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बने।

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता और बापू जी के नामों से भी पुकारा जाता है। वे सादा जीवन, उच्च विचार की सोच वाली शख्सियत थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सदाचार में गुजारा और अपनी पूरी जिंदगी राष्ट्रहित में कुर्बान कर दी। उन्होनें अपने व्यक्तित्व का प्रभाव न सिर्फ भारत में ही बल्कि पूरी दुनिया में डाला।

महात्मा गांधी महानायक थे जिनके कार्यों की जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। Mahatma Gandhi- महात्मा गांधी कोई भी फॉर्मुला पहले खुद पर अपनाते थे और फिर अपनी गलतियों से सीख लेने की कोशिश करते थे।

महात्मा गांधी जी का जन्म, बचपन, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन – Mahatma Gandhi Childhood

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचन्द गांधी ब्रिटिश हुकूमत के समय राजकोट के ‘दीवान’ थे। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो कि धार्मिक विचारों वाली एक कर्तव्यपरायण महिला थी, उनके महान विचारों का गांधी जी पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

महात्मा गांधी जी का विवाह एवं बच्चे – Mahatma Gandhi Marriage And Family

महात्मा गांधी जी जब 13 साल के थे, तब बाल विवाह की कुप्रथा के तहत उनका विवाह एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा मनकजी के साथ कर दिया गया था। कस्तूरबा जी भी एक बेहद शांत और सौम्य स्वभाव की महिला थी। शादी के बाद उन दोनो को चार पुत्र हुए थे, जिनका नाम हरिलाल गांधी , रामदास गांधी, देवदास गांधी एवं मणिलाल गांधी था।

महात्मा गाधी जी की शिक्षा – Mahatma Gandhi Education

महात्मा गांधी जी शुरु से ही एक अनुशासित छात्र थे, जिनकी शुरुआती शिक्षा गुजरात के राजकोट में ही हुई थी। इसके बाद उन्होंने 1887 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। फिर अपने परिवार वालों के कहने पर वे अपने बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए।

इसके करीब चार साल बाद 1891 में वे अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने स्वदेश भारत वापस लौट आए। इसी दौरान उनकी माता का देहांत हो गया था, हालांकि उन्होंने इस दुख की घड़ी में भी हिम्मत नहीं हारी और वकालत का काम शुरु किया। वकालत के क्षेत्र में उन्हें कुछ ज्यादा कामयाबी तो नहीं मिली लेकिन जब वे एक केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए तो उन्हें रंगभेद का सामना करना पड़ा।

इस दौरान उनके साथ कई ऐसी घटनाएं घटीं जिसके बाद गांधी जी ने रंगभेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और इससे लड़ने के लिए 1894 में नेटल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। इस तरह गांधी जी ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर रंगभेदभाव के मुद्दे को उठाया।

जब इंग्लेंड से वापस लौटे महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi Returned from England

साल 1891 में गांधी जी बरिस्ट्रर होकर भारत वापस लौटे इसी समय उन्होनें अपनी मां को भी खो दिया था लेकिन इस कठिन समय का भी गांधी जी ने हिम्मत से सामना किया और गांधी जी ने इसके बाद वकालत का काम शुरु किया लेकिन उन्हें इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली।

गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा – Mahatma Gandhi Visit to South Africa

Mahatma Gandhi – महात्मा गांधी जी को वकालत के दौरान दादा अब्दुल्ला एण्ड अब्दुल्ला नामक मुस्लिम व्यापारिक संस्था के मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इस यात्रा में गांधी जी का भेदभाव और रंगभेद की भावना से सामना हुआ। आपको बता दें कि गांधी जी दक्षिण अफ्रीका पहुंचने वाले पहले भारतीय महामानव थे जिन्हें अपमानजनक तरीके से ट्रेन से बाहर उतार दिया गया। इसके साथ ही वहां की ब्रिटिश उनके साथ बहुत भेदभाव करती थी यहां उनके साथ अश्वेत नीति के तहत बेहद बुरा बर्ताव भी किया गया था।

जिसके बाद गांधी जी के सब्र की सीमा टूट गई और उन्होनें इस रंगभेद के खिलाफ संघर्ष का फैसला लिया।

जब गांधी जी ने रंगभेद के खिलाफ लिया संघर्ष का संकल्प –

रंगभेद के अत्याचारों के खिलाफ गांधी जी ने यहां रह रहे प्रवासी भारतीयों के साथ मिलकर 1894 में नटाल भारतीय कांग्रेस का गठन किया और इंडियन ओपिनियन अखबार निकालना शुरु किया।

इसके बाद 1906 में दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों के लिए अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की इस आंदोलन को सत्याग्रह का नाम दिया गया।

गांधी जी की दक्षिणा अफ्रीका से वापस भारत लौटने पर स्वागत – Mahatma Gandhi Return to India from South Africa

1915 में दक्षिण अफ्रीका में तमाम संघर्षों के बाद वे वापस भारत लौटे इस दौरान भारत अंग्रेजो की गुलामी का दंश सह रहा था। अंग्रेजों के अत्याचार से यहां की जनता गरीबी और भुखमरी से तड़प रही थी। यहां हो रहे अत्याचारों को देख गांधी – Mahatma Gandhi जी ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जंग लड़ने का फैसला लिया और एक बार फिर कर्तव्यनिष्ठा के साथ वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

स्वतंत्रता सेनानी के रुप में महात्मा गांधी जी – Mahatma Gandhi as a Freedom Fighter

महात्मा गांधी जी ने जब अपनी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा से लौटने के बाद क्रूर ब्रिटिश शासकों द्धारा भारतवासियों के साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों को देखा, तब उन्होंने देश से अंग्रेजों को बाहर खदेड़ने का संकल्प लिया और गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र करवाने के उद्देश्य से खुद को पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया।

उन्होंने देश की आजादी के लिए तमाम संघर्ष और लड़ाईयां लड़ी एवं सत्य और अहिंसा को अपना सशक्त हथियार बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ कई बड़े आंदोलन लड़े और अंतत: अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। वे न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य सूत्रधार थे, बल्कि उन्हें आजादी के महानायक के तौर पर भी जाना जाता है।

हमारा पूरा भारत देश आज भी उनके द्धारा आजादी की लड़ाई में दिए गए  त्याग, बलिदान की गाथा गाता है एवं उनके प्रति सम्मान प्रकट करता है।

गांधी जी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन – Mahatma Gandhi Movements List

महात्मा गांधी के आंदोलनों की सूची निचे दी गयी हैं – 

  • महात्मा गांधी का चंपारण और खेड़ा आंदोलन – Mahatma Gandhi Champaran and Kheda Andolan

चम्पारण और खेडा में जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे। तब जमीदार किसानों से ज्यादा कर लेकर उनका शोषण कर रहे थे। ऐसे में यहां भूखमरी और गरीबी के हालात पैदा हो गए थे। जिसके बाद गांधी जी ने चंपारण के रहने वाले किसानों के हक के लिए आंदोलन किया। जो चंपारण सत्याग्रह के नाम से जाना गया और इस आंदोलन में किसानों को 25 फीसदी से धनराशि वापस दिलाने में कामयाब रही।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और वे जीत गए। इससे लोगों के बीच उनकी एक अलग छवि बन गई।

इसके बाद खेड़ा के किसानों पर अकाली का पहाड़ टूट पड़ा जिसके चलते किसान अपनों करों का भुगतान करने में असमर्थ थे। इस मामले को गांधी जी ने अंग्रेज सरकार के सामने रखा और गरीब किसानों का लगान माफ करने का प्रस्ताव रखा। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने प्रखर और तेजस्वी गांधी जी का ये प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों की लगान को माफ कर दिया।

  • महात्मा गांधी का खिलाफत आंदोलन (1919-1924) – Mahatma Gandhi Khilafat Andolan

गरीब, मजदूरों के बाद गांधी जी ने मुसलमानों द्दारा चलाए गए खिलाफत आंदोलन को भी समर्थन दिया था। ये आंदोलन तुर्की के खलीफा पद की दोबारा स्थापना करने के लिए चलाया गया था। इस आंदोलन के बाद गांधी जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता का भरोसा भी जीत लिया था। वहीं ये आगे चलकर गांधी – Mahatma Gandhi जी के असहयोग आंदोलन की नींव बना।

  • महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन (1919-1920) – Mahatma Gandhi Asahyog Andolan

रोलेक्ट एक्ट के विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियां वाला बाग में सभा के दौरान ब्रिटिश ऑफिस ने बिना वजह निर्दोष लोगों पर गोलियां चलवा दी जिसमें वहां मौजूद 1000 लोग मारे गए थे जबकि 2000 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस घटना से महात्मा गांधी को काफी आघात पहुंचा था जिसके बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलकर आंदोलन करने का फैसला लिया था। इसके तहत गांधी जी ने ब्रिटिश भारत में राजनैतिक, समाजिक संस्थाओं का बहिष्कार करने की मांग की।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने प्रस्ताव की रुप रेखा तैयार की वो इस प्रकार है –

  • सरकारी कॉलेजों का बहिष्कार
  • सरकारी अदालतों का बहिष्कार
  • विदेशी मॉल का बहिष्कार
  • 1919 अधिनियम के तहत होने वाले चुनाव का बहिष्कार
  • महात्मा गांधी का चौरी-चौरा काण्ड (1922) – Mahatma Gandhi Chauri Chaura Andolan

5 फरवरी को चौरा-चौरी गांव में कांग्रेस ने जुलूस निकाला था जिसमें हिंसा भड़क गई थी दरअसल इस जुलूस को पुलिस ने रोकने की कोशिश की थी लेकिन भीड़ बेकाबू होती जा रही थी। इसी दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में बंद कर आग लगा ली। इस आग में झुलसकर सभी लोगों की मौत हो गई थी इस घटना से महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi का ह्रद्य कांप उठा था। इसके बाद यंग इंडिया अखबार में उन्होनें लिखा था कि,

“आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मै हर एक अपमान, यातनापूर्ण बहिष्कार, यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूं”
  • महात्मा गांधी का सविनय अवज्ञा आंदोलन/डंडी यात्रा/नमक आंदोलन (1930) – Mahatma Gandhi Savinay Avagya Andolan/ Dandi March / Namak Andolan

gandhi ki biography in hindi

महात्मा गांधी ने ये आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाया था इसके तहत ब्रिटिश सरकार ने जो भी नियम लागू किए थे उन्हें नहीं मानना का फैसला लिया गया था अथवा इन नियमों की खिलाफत करने का भी निर्णय लिया था। आपको बता दें कि ब्रिटिश सरकार ने नियम बनाया था की कोई अन्य व्यक्ति या फिर कंपनी नमक नहीं बनाएगी।

12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा द्धारा नमक बनाकर इस कानून को तोड़ दिया था उन्होनें दांडी नामक स्थान पर पहुंचकर नमक बनाया था और कानून की अवहेलना की थी।

Mahatma Gandhi – गांधी जी की दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 से लेकर 6 अप्रैल 1930 तक चली। दांडी यात्रा साबरमति आश्रम से निकाली गई। वहीं इस आंदोलन को बढ़ते देख सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिए भेजा था जिसके बाद गांधी जी ने समझौता स्वीकार कर लिया था।

  • महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन- (1942) – Mahatma Gandhi Bharat Chhodo Andolan

ब्रिटिश शासन के खिलाफ महात्मा गांधी ने तीसरा सबसे बड़ा आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ों’ का नाम दिया गया था।

हालांकि इस आंदोलन में गांधी जी को जेल भी जाना पड़ा था। लेकिन देश के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फोड़ के माध्यम से इस आंदोलन को चलाते रहे उस समय देश का बच्चा-बच्चा गुलाम भारत से परेशान हो चुका था और आजाद भारत में जीना चाहता था। हालांकि ये आंदोलन असफल रहा था।

महात्मा गांधी के आंदोलन के असफल होने की कुथ मुख्य वजह नीचे दी गई हैं –

ये आंदोलन एक साथ पूरे देश में शुरु नहीं किया गया। अलग-अलग तारीख में ये आंदोलन शुरु किया गया था जिससे इसका प्रभाव कम हो गया हालांकि इस आंदोलन में बड़े स्तर पर किसानों और विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था।

भारत छोड़ों आंदोलन में बहुत से भारतीय यह सोच रहे थे कि स्वतंत्रता संग्राम के बाद उन्हें आजादी मिल ही जाएगी इसलिए भी ये आंदोलन कमजोर पड़ गया।

गांधी जी का भारत छोड़ो आंदोलन सफल जरूर नहीं हुआ था लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासकों को इस बात का एहसास जरूर दिला दिया था कि अब और भारत उनका शासन अब और नहीं चल पाएगा और उन्हें भारत छोड़ कर जाना ही होगा।

Mahatma Gandhi- गांधी जी के शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलाए गए आंदोलनो ने गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई है और हर किसी के जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ा है।

महात्मा गांधी के आंदोलनों की खास बातें – Important things about Mahatma Gandhi’s movements

महात्मा गांधी -Mahatma Gandhi की तरफ से चलाए गए सभी आंदोलनों में कुछ चीजें एक सामान थी जो कि निम्न प्रकार हैं –

  • गांधी जी के सभी आंदोलन शांति से चलाए गए।
  • आंदोलन के दौरान किसी की तरह की हिंसात्मक गतिविधि होने की वजह से ये आंदोलन रद्द कर दिए जाते थे।
  • आंदोलन सत्य और अहिंसा के बल पर चलाए जाते थे।

समाजसेवक के रुप में महात्मा गांधी जी – Mahatma Gandhi as a Social Reformer

महात्मा गांधी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता होने के साथ-साथ एक महान समाज सेवक भी थे। जिन्होंने देश में जातिवाद, छूआछूत जैसी तमाम कुरोतियों को दूर करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका सभी जाति, धर्म, वर्ग एवं लिंग के लोगों के प्रति एक नजरिया था।

उन्होंने जातिगत भेदभाव से आजाद भारत का सपना देखा था। गांधी जी ने निम्न, पिछड़ी एवं दलित वर्ग को ईश्वर के नाम पर ”हरि”जन कहा था और समाज में उन्हें बराबरी का हक दिलवाने के लिए अथक प्रयास किए थे।  

”राष्ट्रपिता” (फादर ऑफ नेशन) के रुप में महात्मा गांधी जी – Mahatma Gandhi as Father of Nation

सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता की उपाधि भी दी गई थी। उनके आदर्शों और महान व्यक्तित्व के चलते नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने सर्वप्रथम 4 जून, 1944 को सिंगापुर रेडियो से एक प्रसारण के दौरान गांधी जी को ”देश का पिता” कहकर संबोधित किया था।

इसके बाद नेता जी ने 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से एक संदेश प्रसारित करते हुए गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था।  वहीं 30 जनवरी, 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने भारतवासियों को रेडियो पर उनकी मौत का दुखद समाचार देते हुए कहा था कि ”भारत के राष्ट्रपिता अब नहीं रहे”।

महात्मा गांधी का शिक्षा मे योगदान – Mahatma Gandhi Contribution In To Education.

महात्मा गांधी के शिक्षा मे योगदान को समझने से पहले उनके शिक्षा के प्रती विचार को समझना अत्यंत आवश्यक है, जैसा के;

१. ६ साल से १४ साल तक के बच्चो को अनिवार्य तथा निशुल्क शिक्षा प्रदान की जायेगी। २. शिल्प केंद्रित शिक्षा दी जायेगी। ३. शिक्षा का माध्यम केवल मातृभाषा होगी, अंग्रेजी नही। ४. करघा उद्योग, हस्तकला इत्यादी की शिक्षा दी जायेगी, जिसमे कृषी, लकडी का काम, कताई, बुनाई, ,मछली पालन, उद्यान कार्य, मिट्टी का कार्य, चरखा इत्यादी शामिल होगा।

गांधीजी ने आत्मनिर्भर बनाने की शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया, जिससे व्यक्ती का सर्वांगीण विकास हो और खुद्के बलबुते इंसान जीवन मे आगे बढ पाये। इसिलिये उन्हे मुलभूत शिक्षा प्रणाली के जनक के तौर पर देखा जाता है।

शिक्षा संबंधी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य गांधीजी ने सबके सामने रखे,जैसा के ;

१. स्वयं के अनुभव से सिखना और करके देखना: – किसी भी चीज को सिखने के साथ खुद्से करके देखने पर गांधीजी का ज्यादा झुकाव था, उनका मानना था स्वयं से करके देखकर सिखना ही उत्तम शिक्षा होती है।आपस मे चर्चा एवं प्रश्न उत्तर के माध्यम को उनके नजर मे काफी सराहनिय माना गया है, वे किताबी शिक्षा से ज्यादा क्राफ्ट/शिल्प इत्यादी को अधिक महत्व देते थे

२. शारीरिक क्रियाकलाप द्वारा शिक्षा पर गांधीजी ने अधिक बल दिया जिसमे सभी आयु वर्ग के बच्चो को उनके क्षमता अनुसार कार्य दिया जाये।जिससे वो जीवन मे आगे बढते समय अधिक मजबूत विचार और शारीरिक बल अर्जित कर सके।

३. सिखने की अनेक क्रिया और प्रकार का समन्वय कर शिक्षा देने पर गांधीजी का अधिक झुकाव था, जैसे के चित्रकला, हस्तकला और शिल्पकला इनका एक दुसरे से नजदिकी संबंध आता है।तो इस तरह से विभिन्न कलाओ का आपस मे तालमेल साध कर शिक्षा दी जाये।

१४ साल से उपर के आयु के बच्चो को पूर्णतः रोजगार पूरक शिक्षा देने पर गांधीजी का अधिक बल था, जिससे वो बच्चे आगे चलकर रोजगार हेतू सक्षम बन पाये।

गांधीजी ने शिक्षा पद्धती मे सहयोगी क्रिया पर पहल तथा व्यक्तिगत उत्तरदायित्व पर अधिक कार्य किया, ये निष्कर्ष शिक्षा के लिये स्थापित “झाकीर हुसैन समिति” द्वारा दिया गया है।

गांधीजी शिक्षा मे अनुशासन को बहूत अधिक महत्व देते थे, इसके अलावा छात्रो को आत्मबल अधिक बढाने के साथ, वो अध्यापक वर्ग को ब्रह्मचर्य एवं संयमित जीवन जिने की सलाह देते थे।जिससे के छात्रो के सामने आदर्श एवं उच्च आदर्श का उदाहरण प्रस्तुत किया जा सके।

गांधीजी छात्रो मे एवं अध्यापको मे सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता, प्रेम, न्याय और परिश्रम इत्यादी गुणो को विकसित करने पर अधिक बल देते थे।

महात्मा गांधी जी द्धारा लिखी गईं किताबें – Mahatma Gandhi Books

महात्मा गांधी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी, अच्छे राजनेता ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने अपने लेखन कौशल से देश के स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के संघर्ष का बेहद शानदार वर्णन किया है। उन्होंने अपनी किताबों में स्वास्थ्य, धर्म, समाजिक सुधार, ग्रामीण सुधार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर लिखा है।

आपको बता दें कि महात्मा गांधी जी ने  इंडियन ओपनियन, हरिजन, यंग इंडिया, नवजीवन आदि पत्रिकाओं में एडिटर के रुप में भी कार्य किया है। उनके द्धारा लिखी गईं कुछ प्रमुख किताबों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • हिन्दी स्वराज (1909)
  • मेरे सपनों का भारत (India of my Dreams)
  • ग्राम स्वराज (Village Swaraj by Mahatma Gandhi)
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह (Satyagraha in South Africa)
  • एक आत्मकथा या सत्य के साथ मेरे प्रयोग की कहानी (An Autobiography or The Story of My Experiments with Truth (1927) 
  • स्वास्थ्य की कुंजी (Key To Health)
  • हे भगवान (My God)
  • मेरा धर्म(My Religion)
  • सच्चाई भगवान है( Truth is God)

इसके अलावा गांधी जी ने कई और किताबें लिखी हैं, जो न सिर्फ समाज की सच्चाई को बयां करती हैं, बल्कि उनकी दूरदर्शिता को भी प्रदर्शित करती हैं।

महात्मा गांधी जी के स्लोगन – Mahatma Gandhi Slogan

सादा जीवन, उच्च विचार वाले महान व्यक्तित्व महात्मा गांधी जी के ने अपने कुछ महान विचारों से प्रभावशाली स्लोगन दिए हैं। जिनसे देशवासियों के अंदर न सिर्फ देश-प्रेम की भावना विकिसत होती है, बल्कि उन्हें सच्चाई के मार्ग पर चलने की भी प्रेरणा मिलती है, महात्मा गांधी जी के कुछ लोकप्रिय स्लोगन इस प्रकार हैं-

  • आपका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आज आप क्या कर रहे हैं- महात्मा गांधी
  • करो या मरो- महात्मा गांधी
  • शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं आती है, यह एक अदम्य इच्छा शक्ति से आती है- महात्मा गांधी
  • पहले वो आप पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देंगे, फिर वो आप पर हंसेगें, और फिर वो आपसे लड़ेंगे तब आप निश्चय ही जीत जाएंगे – महात्मा गांधी
  • अपना जीवन कुछ इस तरह जियो जैसे की तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसे सीखो जैसे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो- महात्मा गांधी
  • कानों का दुरुपयोग मन को दूषित एवं अशांत करता है- महात्मा गांधी
  • सत्य कभी भी ऐसे कारण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता जो कि उचित हो-महात्मा गांधी
  • भगवान का कोई धर्म नहीं है- महात्मा गांधी
  • ख़ुशी तब ही मिलेगी जब आप, जो भी सोचते हैं, जो भी कहते हैं और जो भी करते हैं, वो सब एक सामंजस्य में हों- महात्मा गांधी

महात्मा गांधी जी की जयंती – Mahatma Gandhi Jayanti

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2 अक्टूबर को पूरे देश में गांधी जयंती ( Gandhi Jayanti ) के रुप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी 1869 में गुजरात के पोरबंदर शहर में जन्में थे। गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे, इसलिए 2 अक्टूबर के दिन को पूरे विश्व में विश्व अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है।

गांधी जयंती के मौके पर स्कूल, कॉलेजों में अन्य शैक्षणिक संस्थानों में तमाम तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत कई बड़े राजनेता दिल्ली के राजघाट पर बनी गांधी प्रतिमा पर सच्चे मन से श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। वहीं गांधी जयंती को राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित किया गया है।

महात्मा गांधी की कुछ खास बातें – Some special things of Mahatma Gandhi

  • सादा जीवन, उच्च विचार –

राष्ट्रपति महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi सादा जीवन उच्च विचार में भरोसा रखते थे उनके इसी स्वभाव की वजह से उन्हें ‘महात्मा’ कहकर बुलाते थे।

  • सत्य और अहिंसा –

महात्मा गांधी के जीवन के 2 हथियार थे सत्य और अहिंसा। इन्हीं के बल पर उन्होनें भारत को गुलामी से आजाद कराया और अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर किया।

  • छूआछूत को दूर करना था गांधी जी का मकसद

Mahatma Gandhi – महात्मा गांधी का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली छुआछूत जैसी कुरोतियों को दूर करना था इसके लिए उन्होनें काफी कोशिश की और पिछड़ी जातियों को उन्होनें ईश्वर के नाम पर हरि ‘जन’ नाम दिया।

महात्मा गांधी जी की मृत्यु – Death of Mahatma Gandhi

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

एक नजर में महात्मा गांधीजी की जीवन कार्य – Mahatma Gandhi Short Biography

  • 1893 में दादा अब्दुला के कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण आफ्रिका को जाना पड़ा। महात्मा गांधी जब दक्षिण आफ्रिका में थे तब उन्हें भी अन्याय-अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका प्रतिकार करने के लिये भारतीय लोगों को संघटित करके उन्होंने 1894 में “ नेशनल इंडियन कॉग्रेस ” की स्थापना की।
  • 1906 में वहा के शासन के आदेश के अनुसार पहचान पत्र साथ में रखना जरुरी था। इसके अलावा रंग भेद नीती के खिलाफ उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।
  • 1915 में महात्मा गांधीजी भारत लौट आये और उन्होंने सबसे पहले साबरमती में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
  • 1919 में उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन शुरु किया।
  • 1920 में असहयोग आंदोलन शुरु किया।
  • 1920 में लोकमान्य तिलक के मौत के बाद राष्ट्रिय सभा का नेवृत्त्व महात्मा गांधी के पास आया।
  • 1920 में नागपूर के अधिवेशन में राष्ट्रिय सभा ने असहकार के देशव्यापी आंदोलन अनुमोदन देनेवाला संकल्प पारित किया। असहकार आंदोलन की सभी सूत्रे महात्मा गांधी पास दिये गये।
  • 1924 में बेळगाव यहा राष्ट्रिय सभा के अधिवेशन का अध्यक्षपद।
  • 1930 में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुआ। नमक के उपर कर और नमक बनाने की सरकार एकाधिकार रद्द की जाये। ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली।
  • 1931 में राष्ट्रिय सभा के प्रतिनिधि बनकर गांधीजी दूसरी गोलमेज परिषद को उपस्थित थे।
  • 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की।
  • 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया।
  • 1934 में गांधीजीने वर्धा के पास ‘सेवाग्राम’ इस आश्रम की स्थापना की। हरिजन सेवा, ग्रामोद्योग, ग्रामसुधार, आदी।
  • 1942 में चले जाव आंदोलन शुरु हुआ। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया।
  • व्दितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी – Mahatma Gandhi ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था। जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युध्द के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली। अंततः 15 अगस्त 1947 में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। गांधीजीने सदैव विभिन्न धर्मो के प्रति सहिष्णुता का संदेश दिया।
  • 1948 में नाथूराम गोडसे ने अपनी गोली से उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस दुर्घटना से सारा विश्व शोकमग्न हो गया था।

महात्मा गांधी महान पुरुष थे उन्होनें अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण काम किए वहीं गांधी जी के आंदोलनों की सबसे खास बात यह रही कि उन्हें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर सभी संघर्षों का डटकर सामना किया।

उन्होनें अपने जीवन में हिंदू-मुस्लिम को एक करने के भी कई कोशिश की। इसके साथ ही गांधी जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि हर कोई उनसे मिलने के लिए आतुर रहता था और उनसे मिलकर प्रभावित हो जाता था।

मोहनदास करमचंद गांधी – Mahatma Gandhi   भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले। विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे।

महात्मा गांधी जी पर बनी फिल्में – Mahatma Gandhi Movie

महात्मा गांधी जी आदर्शों और सिद्धान्तों पर चलने वाले महानायक थे, उनके प्रेरणादायक जीवन पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं। इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अन्य देशप्रेमियों और स्वतंत्रता सेनानियों पर भी बनी फिल्मों में गांधी जी का अहम किरदार दिखाया गया है। यहां हम आपको गांधी जी बनी कुछ प्रमुख फिल्मों की सूची उपलब्ध करवा रहे हैं, जो कि इस प्रकार है-

  • फिल्म- ‘गांधी’ (1982)

डायरेक्शन-   रिचर्ड एटनबरो

गांधी जी का किरदार निभाया- हॉलीवुड कलाकार बने किंस्ले

2- फिल्म- ”गांधी माइ फादर”(2007)

डायरेक्टर- फिरोज अब्बास मस्तान

गांधी जी का किरदार निभाया- दर्शन जरीवाला

3- फिल्म- ”हे राम” (2000)

डायरेक्टर-कमल हसन

गांधी जी का किरदार निभाया- नसीरुद्दीन शाह

4- फिल्म- ”लगे रहो मुन्नाभाई”

डायरेक्टर- राजकुमार हिरानी (2006)

गांधी जी का किरदार निभाया- दिलीप प्रभावलकर

5- फिल्म- ”द मेकिंग ऑफ गांधी”(1996)

डायरेक्टर- श्याम बेनेगल

गांधी जी का किरदार निभाया-रजित कपूर

6- फिल्म- ”मैंने गांधी को नहीं मारा”(2005)

डायरेक्शन- जहनु बरुआ

इसके अलावा भी कई अन्य फिल्में भी गांधी जी के जीवन पर प्रदर्शित की गई हैं।

महात्मा गांधी जी के भजन – Mahatma Gandhi Bhajan

महात्मा गांधी जी के प्रिय भजन जिसे वह अक्सर गुनगुनाते थे-

भजन नंबर 1-

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।। पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।। सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।। वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।। वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।। समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।। जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।। मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।। राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।। वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।। भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।

आपको बता दें कि महात्मा गांधी जी का यह भजन साल 2018 में वैश्विव हो गया था, इस भजन को 124 देशों के कलाकरों ने एक साथ गाकर बापू जी को श्रद्धांजली अर्पित की थी।

भजन नंबर 2-

रघुपति राघव राजाराम,

पतित पावन सीताराम

सीताराम सीताराम,

भज प्यारे तू सीताराम

रघुपति राघव राजाराम ।।

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,

सब को सन्मति दे भगवान

रात का निंदिया दिन तो काम

कभी भजोगे प्रभु का नाम

करते रहिए अपने काम

लेते रहिए हरि का नाम

रघुपति राघव राजा राम ।।

इस भजन के अलावा भी गांधी जी ”साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।।।।……..” आदि भजन भी गुनगुनाते थे ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जो हम आपको यहाँ बतायेंगे …

महात्मा गांधी के बारे में रोचक और अनसुने कुछ तथ्य – Fact about Mahatma Gandhi

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई ऐसे रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जिनके बारे में शायद ही आप जानते हों। जिनके बारे में आज हम आपको अपने इस लेख के द्धारा बताएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं –

1) गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, इनके पिता करम चंद गांधी कट्टर हिंदू थे और जाति से मोध बनिया थे। गांधी जी गुजारात की राजधानी पोरबंदर के दीवान थे, इसके अलावा वे राजकोट और बांकानेर के दीवान भी रह चुके थे। उनकी मातृभाषा गुजराती थी।

2) आजादी के महानायक महात्मा गांधी को एक बहादुर, साहसी और बोल्ड नेता के रुप में तो सभी जानते हैं, लेकिन आपको बता दें कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वह बचपन में काफी शर्मीलें स्वभाव के व्यक्ति थे, यहां तक कि वे अपने सहपाठियों से बात करने में भी हिचकिचाते थे।

3) 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विश्व अंहिसा दिवस के रुप में घोषित किया है, इसलिए उनकी जन्मदिन को अंतराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है।

4) महात्मा गांधी, पुतलीबाई और करमचंद गाधी जी की सबसे छोटी संतान थे, उनके दो भाई और एक बहन भी थी।

Mahatma Gandhi old photo

5) ऐसा माना जाता है कि 12 अप्रैल साल 1919 को रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने गांधीजी को ‘महात्मा’ कहकर संबोधित किया था। हालांकि इसको लेकर भी विद्धानों के अलग-अलग मत हैं।

6) महात्मा गांधी के बारे मे यह भी काफी रोचक है कि, उन्हें 5 बार नोबल पीस प्राइज के लिए नोमिनेट किया गया, लेकिन यह पुरस्कार कभी वह हासिल नहीं कर सके। क्योंकि साल 1948 में यह पुरस्कार मिलने से पहले ही उनकी गोडसे द्दारा हत्या कर दी गई थी। हालांकि नोबल कमेटी ने यह पुरस्कार उस साल किसी को नहीं दिया था।

7) भारत के राष्ट्रपिता को अमेरिका की टाइम मैग्जीन द्धारा साल 1930 में “Man of the year” पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

8) महात्मा गांधी के बारे में यह अति रोचक तथ्य है कि वे अपने पूरे जीवनकाल में कभी अमेरिका नहीं गए और यह भी कहा जाता है कि 24 साल विदेश में रहने के बाद भी वह कभी एयर प्लेन में भी नहीं बैठे।

9) सादा जीवन, उच्च विचार की सोच वाले गांधी जी हर रोज 18 किलोमीटर पैदल चलते थे, उनके जीवनकाल ने इस यात्रा के मुताबिक यह आकलन लगाया जाता है, उनकी पैदलयात्रा पूरी दुनिया के दो चक्कर लगाने के बराबर थी। वहीं साल 1939 में 70 साल की आयु में भी गांधी जी का वजन 46 किलोग्राम था।

10) देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन के 6 साल 5 महीने जेल में बिताए थे। आपको बता दें कि कि गांधी जी को 13 बार गिरफ्तार किया गया था।

11) महात्मा गांधी के प्रभावशाली व्यक्तित्व का प्रभाव पूरी दुनिया में है, इसलिए उनके सम्मान में उनके नाम के 53 मुख्य मार्ग भारत में और 48 सड़कें विदेशों में है।

12) जब 15 अगस्त, 1947 को हमारा भारत देश आजाद हुआ तो उस रात भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी का भाषण सुनने के लिए महात्मा गांधी मौजूद नहीं थे, वे उस दिन उपवास पर थे। आपको बता दें कि 1921 में महात्मा गांधी से देश के आजादी तक हर सोमवार को व्रत रखने का संकल्प लिया था और उन्होंने अपने जीवन में करीब 1 हजार 41 दिन उपवास रखा।

13) आजादी के आदर्श महानायक गांधी जी ने देश के लिए कई आंदोलन किए, कई बार उन्हें राजनीतिक पद अपनाने के लिए भी प्रस्ताव रखा गया, लेकिन गांधी जी ने अपने पूरे जीवन काल में कभी भी राजनीति पद को नहीं अपनाया।

gandhi ki biography in hindi

14) देश को आजादी करवाने के लिए गांधी जी ने तमाम आंदोलन किए और अंग्रेजी के खिलाफ कई सालों तक लड़ाई भी लड़ी, लेकिन अंग्रेजी सरकार ने ही महात्मा की मौत के 21 साल बाद उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया था, जो कि सराहनीय है।

15) महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवनकाल में तमाम संघर्ष और आंदोलन किए और सफलता भी हासिल की। इसके अलावा वे 4 महाद्दीप और 12 देशों में नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए भी जिम्मेदार थे।

16) गांधी जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने वकालत करना शुरु किया था तो, वे कोर्ट में ठीक तरीके से अपना पक्ष भी नहीं रख पाते थे, यहां तक कि पहला केस लड़ते वक्त वह कांपने लगे और बहस बीच में ही छोड़कर बैठ गए, जिससे वह शुरुआती दौर में वकालत करने में फेल हो गए थे।

gandhi ki biography in hindi

हालांकि बाद में वह एक कुख्यात और सफल वकील भी बने। वहीं दक्षिण अफ्रीका में उन्हें वकालत के लिए 15 हजार डॉलर सालाना मिलते थे, जो आज के करीब 10 लाख रुपए के बराबर हैं, वहीं कई भारतीयों की सालाना आय आज भी इससे कम है।

17) गांधी जी के जीवन के आदर्शों और उनके महान विचारों की वजह से उनके तमाम प्रशंसक थे, लेकिन एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी महात्मा गांधी जी के सम्मान में गोल चश्मा पहनते थे।

18) महात्मा गांधी जी के बारे में एक अति रोचक तथ्य है कि वे नकली दांत लगाते थे, जिसे वह अपने कपड़े के बीच में रखते थे और इसका इस्तेमाल सिर्फ खाना खाते वक्त ही करते थे।

19) महात्मा गांधी जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्हें फोटो खिंचवाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन आजादी की लड़ाई के दौरान वह एक ऐसे महानायक थे, जिनकी सबसे ज्यादा फोटो खींची गई थी।

20) महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को गोडसे द्धारा बिरला भवन के बगीचे में कर दी गई थी। उनकी अंतिम यात्रा में काफी लोगों का हुजुम उमड़ा था, उनकी शवयात्रा करीब 8 किलोमीटर लंबी थी, जिसमें पैदल चलने वालों की संख्या करीब 10 लाख थी, जबकि 15 लाख से भी ज्यादा लोग रास्ते में खड़े होकर उनके अंतिम दर्शन कर रहे थे।

आपको बता दें कि महापुरुष महात्मा गांधी जी की शवयात्रा को आजाद भारत की सबसे बड़ी शवयात्रा भी कहा गया है।

इनके अलावा भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई ऐसे तथ्य हैं जो कि बेहद रोचक और महत्वपूर्ण है। हालांकि, महात्मा गांधी द्धारा राष्ट्र के लिए दिए गए योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। महात्मा गांधी जैसे शख्सियत का भारतभूमि पर जन्म लेना गौरव की बात है।

अगले पेज पर पढ़िए – राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बार में पुछे गये सवाल…

165 thoughts on “सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जीवनी”

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महात्मा गाँधी ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया। बहुत ही अच्छा लेख लगा एक महान नेता को नमन, धन्यवाद।

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बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आपने थैंक यू

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gandhi ji ka sampoorn parichay hindi me

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Mahatma Gandhi Biography In Hindi – महात्मा गाँधी सम्पूर्ण जीवन परिचय

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – महात्मा गाँधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महान और प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। इनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869, को पोरबंदर, काठियावाड़ (भारत के प्रान्त गुजरात) जगह पर हुआ था, इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी जो सनातन धर्म की पंसारी जाति से संबध रखते थे, और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे।

इनकी माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय की थीं। जो करमचन्द की चौथी पत्नी थी। करमचन्द की पहली तीन पत्नियाँ प्रसव के समय मर गयीं थीं। भक्ति करने वाली माता की देखरेख और प्रभाव के कारण गाँधी जी जैन परम्पराओं के प्रभाव में रहे और बाद में चलकर वही मोहनदास महात्मा गाँधी के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात हो गए। दुर्बलों में जोश की भावना, शाकाहारी जीवन, आत्मशुद्धि के लिये उपवास तथा विभिन्न जातियों के लोगों के बीच सहिष्णुता ये महात्मा गाँधी के कुछ अच्छे विचार थे जिनको वो सभी का बताया करते थे।

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – संछिप्त परिचय – 1869-1948

Mahatma Gandhi Biography In Hindi

पूरा नाम – मोहन दास करमचंद गाँधी अन्य नाम – राष्ट्रपिता, महात्मा, बापू जन्म – 2 अक्टूबर, 1869, को पोरबंदर, काठियावाड़ (भारत के प्रान्त गुजरात) पिता – करमचन्द गाँधी माता – पुतलीबाई परनामी स्कूली शिक्षा – पोरबंदर और राजकोट कॉलेज – शामलदास कॉलेज, यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन, कैरियर – दक्षिण अफ्रीका, प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के सलाहकार के रूप में आंदोलन – चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, स्वराज और नमक सत्याग्रह (नमक मार्च), भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भी बहुत सारे आंदोंलन में गाँधी जी ने भाग लिया।

कम उम्र में शादी विवाह –

1883 में साढे 13 साल की उम्र में ही गाँधी जी का विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। जब गाँधी जी 15 साल के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया, जिसके बाद कुछ ही दिनों में उनकी पत्नी चल बसी उसी साल गाँधी जी के पिता जी भी चल बसे। बाद में गाँधी जी की चार संताने और हुई जिनके बारे में जानकारी हरीलाल गान्धी (1888), मणिलाल गान्धी (1892), रामदास गान्धी (1897) और देवदास गांधी (1900) इस प्रकार है।

महात्मा गाँधी की शिक्षा दीक्षा –

गाँधी जी ने स्कूली शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में पूरी की, उसके बाद वो भावनगर के शामलदास कॉलेज में दाखिला लिए गाँधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा सन 1887 में अहमदाबाद से उत्तीर्ण की थी। ख़राब स्वास्थ्य और गृह वियोग के कारण वह अप्रसन्न ही रहे और कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए।

विदेश में शिक्षा और वकालत –

गाँधी जी अपने परिवारक मित्र मावजी दवे की सलाह पर लन्दन से बैरिस्टर की पढाई करने का फैसला किया और वो वर्ष 1888 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। वहां गाँधी जी को शाकाहारी खाने से सम्बंधित बहुत कठिनाई हुई क्योंकि वहां ज्यादातर लोग मांसाहार पसंद करते थे ऐसे में गाँधी जी को कई दिन भूखे सोना पड़ जाता था। धीरे – धीरे गाँधी जी वहां पर शाकाहारी भोजनालय के बारे में पता किया उसके बाद उनकी खाने पीने की समस्या का समाधान हो पाया। बाद में उन्होंने ‘वेजीटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। जून 1891 में गाँधी भारत लौट आये। उसी समय उनकी माँ का स्वर्गवास हुआ था बाद में गाँधी जी बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की मगर उसमे उनको कुछ खास सफलता नहीं मिली, इसके बाद वो राजकोट वापस आ गए। जहाँ उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने का काम किया मगर उसमे भी उनको सफलता नहीं मिली उसके बाद गाँधी जी को सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत करने का मौका मिला।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में (1893-1914)

गाँधी जी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका गए। पहली बार वो प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के सलाहकार के रूप में उनका चयन किया गया। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये, वहां उन्होंने अपने जीवन में राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल को विकसित किया वहां उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना भी करना पड़ा एक बार Gandhi Ji ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार कर दिया था जिसके बाद उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। यह सब बातें उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ ले ली उसके बाद उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरुकता के लिए काम करने का फैसला लेने का मन बना लिया फिर वे दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए कुछ अच्छे कदम उठाने और उनको न्याय दिलाने के बारे में सोचने लगे।

भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के बारे में गाँधी को वहीँ से बिचार आने लगा उस समय हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था गाँधी जी साउथ अफ्रीका में ही मन बना लिए थे की वो अब अपने देश जाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे और अपने देश को आजाद करवाएंगे।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945)

1914 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये। वहां से वापस आने के बाद गाँधी जी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। उस समय कांग्रेस के एक नेता हुआ करते थे जिनका नाम गोपाल कृष्ण गोखले था, उन्हीं के कहने पर गाँधी जी साउथ अफ्रीका से वापस आये थे। दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने के बाद गाँधी जी ने सबसे पहले देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की।

Sabarmati-Ashram

साबरमती आश्रम: गुजरात में गांधी का घर जैसा 

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह –

गांधी जी बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। बिहार के चंपारण में ब्रिटिश ज़मींदार किसानों को खाद्य फसलों की जगह नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे, और सस्ते मूल्य पर उनसे फसल खरीद लेते थे, जिससे किसानों की हालत दिन बा दिन बिगड़ती जा रही थी, कारण वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। उसी समय एक विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।

1918 में गुजरात की एक जगह खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसानों की हालत बहुत ख़राब हो गयी थी, लोग कर माफ़ी की मांग करने लगे खेड़ा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श करने के लिए गए, अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया। इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गांधी की ख्याति देश भर खूब फैली और गाँधी के महान नेता के रूप में पूरे भारत में प्रचलित होने लगे।

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – खिलाफत आन्दोलन

कांग्रेस के अन्दर और मुस्लिमों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का मौका गाँधी जी को खिलाफत आन्दोलन के जरिये मिला। यह एक विश्वव्यापी आन्दोलन था, जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा किया जा रहा था। प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों के सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी। खिलाफत का नेतृत्व ‘आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस’ द्वारा किया गया।

असहयोग आन्दोलन –

असहयोग आन्दोलन में गाँधी जी ने अनेकों कार्य किये जिसके बारे में अधिक जानकारी के लिए आप mahatma gandhi in hindi wikipedia पर जाकर पूरी जानकारी ले सकते है।

स्वराज और नमक सत्याग्रह –

असहयोग आन्दोलन के समय गिरफ्तार गाँधी जी वर्ष 1924 में रिहा हुए और सन 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। इस दौरान वह स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच मन मुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ते रहे। दिसम्बर 1928 के कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा। अंग्रेजी हुकुमत से कोई जबाब न मिलने पर 31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 को भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया।

बाद में गाँधी जी ने सरकार के खिलाफ नमक पर कर लगाने के कारण नमक सत्याग्रह चलाया उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रेल तक अहमदाबाद से दांडी, गुजरात, तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की। जिसका उद्देश्य था स्वयं द्वारा नमक बनाना जिसके चलते उस समय सरकार ने 60 हजार से अधिक लोगों को गिरप्तार कर लिया। बाद में लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया, फलस्वरूप गांधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए। इस संधि से ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने पर सहमति जता दी उसके बाद सबको रिहा कर दिया।

उसके बाद कांग्रेस का एक प्रतिनिधि लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, लेकिन इसमें कुछ खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए, सरकार फिर से राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की। 1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया उसके बाद गाँधी जी ने भारत को शिक्षित करने, छुआछूत के ख़िलाफ़ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।

हरिजन आंदोलन –

दलित नेता बी आर अम्बेडकर के अथक प्रयासों के बाद भी ब्रिटिश सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन कराने को मंजूरी दे दी जिसके खिलाफ येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसका विरोध किया 1932 की सुबह से छ: दिन का उपवास गाँधी जी ने किया। सरकार को एक समान व्यवस्था (पूना पैक्ट) अपनाने पर मजबूर किया। 8 May 1933 को गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए फिर से 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की। अम्बेडकर जैसे नेता इस आंदोलन से खुश नहीं थे

द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ –

अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया। इसी समय उनकी पत्नी का देहांत 22 फरवरी 1944 को हो गया। उसके बाद गाँधी जी को मलेरिया हो गया, ऐसे में अंग्रेजी हुकूमत उनको जेल में नहीं रखी और रिहा कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाँथ सौंप दी जाएगी।

उसके बाद गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन ख़तम कर दिया और सरकार ने लाखों कैदियों को रिहा कर दिया। उस समय से अंग्रेजों को लगने लगा था की अब भारत को छोड़ देना चाहिए उनके कुछ अफसर और जर्नल ने भारतियों को बताया था की बहुत जल्द भारत को आजादी मिलने वाली है।

देश का विभाजन और आजादी –

Mahatma Gandhi Biography In Hindi, 2nd World War के समाप्त होते-होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आज़ाद करने का संकेत दे दिया था। भारत की आजादी में साथ – साथ योग्यदान देने वाले मुस्लिम नेता जिन्ना ने एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग करने लगे जिसको आप आज पाकिस्तान के नाम से जानतें है गाँधी जी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे पर ऐसा हो न सका। और अंग्रेजों ने देश को दो टुकड़ों – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित कर दिया।

गाँधी जी की हत्या –

Mahatma Gandhi Biography In Hindi, 30 Jan 1948 को महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘ बिरला हाउस ’ में शाम के समय 5:17 पर हत्या कर दी गयी। उस समय गाँधी जी एक सभा को सम्बोधित करने जा रहे थे। उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। इस तरह एक महान नेता का अंत हो गया ऐसा माना जाता है की गाँधी जी में मुख से अंतिम समय में ‘हे राम’ शब्द निकला था। महात्मा गाँधी की मौत के बाद नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया गया बाद में 1949 में में उनको फांसी की सजा सुनाई गयी।

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महात्मा गाँधी की प्रेरणादायी जीवनी | Mahatma Gandhi Biography in Hindi

Mahatma Gandhi in Hindi / सत्य और अहिंसा के रास्ते चलते हुए उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। वो हमेशा कहते थे बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो। और उनका मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। इस महान इन्सान को भारत में राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। उनका पूरा नाम है ‘ मोहनदास करमचंद गांधी ‘ आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं।

गाँधी जी अबतक भारतीय राजनितिक के सबसे पावरफुल लीडर थे। उन्हें भारत में ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा प्राप्त हैं। ये नाम सबसे पहले सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से जारी प्रसारण में कहकर सम्बोधित किया था। गाँधी जी सत्‍य और अहिंसा के पुजारी थे। सफ़ेद धोती, चश्मा और हाथ में लाठी लिए गांधी ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराया था। महात्मा गाँधी समुच्च मानव जाति के लिए मिशाल हैं। उनके बताये सिद्धांत को मानने वाला इंसान कभी भी अपने रास्ते से भटक नहीं सकता है।

Mahatma Gandhi Biography In Hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का संक्षिप्त परिचय – Mahatma Gandhi Biography in Hindi

उन्‍होंने हमेशा सत्‍य और अहिंसा के लिए आंदोलन किए और इसी मार्ग मे चलने की सलाह दी। 24 साल की उम्र में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका गए थे और 21 साल रहे। वहां अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर अत्‍याचार देख बहुत दुखी हुए। उनके साथ भी दक्षिण अफ्रीका में नस्ली भेदभाव हुवा। इन सारी घटनाएं उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुवा। जिसके बाद वे अंग्रेजो से भारत की आजादी ठान ली थी।

महात्मा गाँधी की प्रारंभिक जीवन – Early Life Of Mahatma Gandhi in Hindi

मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म पश्चिमी भारत में वर्तमान गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी सनातन धर्म की  पंसारी  जाति से सम्बन्ध रखते थे और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे।

उनकी माता वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और एक धार्मिक प्रवित्ति की थीं जिसका असर गाँधी जी पर भी हुआ। जिस घर में गाँधी पैदा हुवे थे आज उसे कीर्ति मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस घर का पुनर्निर्माण से तीन मंजिल का ईमारत बनाया गया हैं, जिसमे 22 कमरे हैं। इस घर में गांधीजी की यादें सहेजी गई हैं। पांच साल तक मोहनदास का बचपन इसी घर में बीता। हर दिन शाम पांच बजे यहां गांधीजी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो जेने कहिए रे…’ गाया जाता है। गांधीजी अंतिम बार 1928 में पोरबंदर आए थे।

महात्‍मा गांधी की आत्‍मकथा – Gandhi ji Autobiography in Hindi

महात्‍मा गांधी की आत्‍मकथा में उल्‍लेख मिलता है कि वे पढाई- लिखाई में कोई विशेष अच्‍छे नहीं थे। केवल अपनी स्‍कूल की किताबें ठीक से पढ लें और अध्‍यापकों द्वारा याद करने के लिए दिए गए सबकों को याद कर लें, इतना भी उनसे ठीक से नहीं हो पाता था, इसलिए स्‍कूल के अलावा किसी अन्‍य किताब को पढने की उनकी कभी कोई इच्‍छा नहीं होती थी न ही कभी किसी अन्‍य पुस्‍तक को पढने का उन्‍होंने कोई प्रयास किया।

लेकिन एक बार उन्‍होंने  श्रृवण पितृ भक्ति नाटक  नाम की एक पुस्‍तक पढी जो कि उनके पिताजी की थी। वे उस पुस्‍तक से  श्रृवण  के पात्र से इतना प्रभावित हुए कि जिन्‍दगी भर श्रृवण की तरह मातृ-पितृ भक्‍त बनने की न केवल स्‍वयं कोशिश करते रहे, बल्कि अपने सम्‍पर्क में आने वाले सभी लोगों को ऐसा बनाने का भी प्रयास करते रहे। इसी प्रकार से बचपन में उन्‍होंने “ सत्‍यवादी राजा हरीशचन्‍द्र ” का भी एक दृश्‍य नाटक देखा और उस नाटक के राजा हरीशचन्‍द्र के पात्र से वे इतना प्रभावित हुए कि जिन्‍दगी भर राजा हरीशचन्‍द्र की तरह सत्‍य बोलने का व्रत ले लिया।

राजा हरीशचन्‍द्र के पात्र से उन्‍होंने बालकपन में ही अच्‍छी तरह से समझ लिया था कि सत्‍य के मार्ग पर चलने में हमेंशा तकलीफें आती ही हैं लेकिन फिर भी सत्‍य का मार्ग नहीं छोडना चाहिए और राजा हरीशचन्‍द्र के नाटक के इस पात्र ने ही गांधीजी के सत्‍यान्‍वेषी बनने की नींव रखी।

गांधीजी ने अपनी आत्‍मकथा में लिखा है कि यदि कोई उन्‍हें आत्‍महत्‍या करने की धमकी देता था, तो उन्‍हें उसकी धमकी पर कोई भरोसा नहीं होता था क्‍योंकि एक बार स्‍वयं गाधीजी आत्‍महत्‍या करने पर उतारू थे। उन्‍होंने कोशिश भी की लेकिन उन्‍होंने पाया कि आत्‍महत्‍या की बात कहना और आत्‍महत्‍या की कोशिश करना, दोनों में काफी अन्‍तर होता है।

गांधीजी इस सन्‍दर्भ में जिस घटना का उल्‍लेख करते हैं, उसके अनुसार एक बार गांधीजी को अपने एक रिश्‍तेदार के साथ बीडी पीने का शौक लग गया। क्‍योंकि उनके पास बीडी खरीदने के लिए पैसे तो होते नहीं थे, इसलिए उनके काकाजी बीडी पीकर जो ठूठ छोड दिया करते थे। गांधीजी उसी को चुरा लिया करते थे और अकेले में छिप-छिप कर अपने उस रिश्‍तेदार के साथ पिया करते थे। लेकिन बीडी की ठूठ हर समय तो मिल नहीं सकती थी, इसलिए उन्‍होंने उनके घर के नौकर की जेब से कुछ पैसे चुराने शुरू किए।

अब एक नई समस्‍या आने लगी कि चुराए गए पैसों से जो बीडी वे लाते थे, उसे छिपाऐं कहां। चुराए हुए पैसों से लाई गई बीडी भी कुछ ही दिन चली। फिर उन्‍हे पता चला कि एक ऐसा पौधा होता है, जिसके डण्‍ठल को बीडी की तरह पिया जा सकता है। उन्‍हें बहुत खुशी हुई कि चलो अब न तो बीडी की ठूंठ उठानी पडेगी न ही किसी के पैसे चुराने पडेंगे। लेकिन जब उन्‍होंने उस डण्‍ठल को बीडी की तरह पिया, तो उन्‍हें कोई संतोष नहीं हुआ।

इसके बाद उन्‍हें अपनी पराधीनता अखरने लगी। उन्‍हें लगा कि उन्‍हें कुछ भी करना हो, उनके बडों की ईजाजत के बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते। इसलिए उन दोनों ने सोंचा कि ऐसे पराधीन जीवन को जीने से कोई फायदा नहीं है, सो जहर खाकर आत्‍महत्‍या ही कर ली जाए। लेकिन फिर एक समस्‍या पैदा हो गई कि अब जहर खाकर आत्‍महत्‍या करने के लिए जहर कहां से लाया जाए? चूंकि उन्‍होंने कहीं सुना था कि धतूरे के बीज को ज्‍यादा मात्रा में खा लिया जाए, तो मृत्‍यु हो जाती है, सो एक दिन वे दोनों जंगल में गए और धतूरे के बीच ले आए और आत्‍महत्‍या करने के लिए शाम का समय निश्चित किया। मरने से पहले वे केदारनाथ जी के मंदिर गए और दीपमाला में घी चढाया, केदारनाथ जी के दर्शन किए और एकान्‍त खोज लिया लेकिन जहर खाने की हिम्‍मत न हुई। उनके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे:

¤    अगर तुरन्‍त ही मृत्‍यु न हुर्इ तो ? ¤    मरने से लाभ क्‍या है ? ¤    क्‍यों न पराधीनता ही सह ली जाए ?

आदि… आदि। लेकिन फिर भी दो-चार बीज खाए। अधिक खाने की हिम्‍मत न हुर्इ क्‍योंकि दोनों ही मौत से डरे हुए थे सो, दोनों ने निश्‍चय किया कि रामजी के मन्दिर जाकर दर्शन करके मन शान्‍त करें और आत्‍महत्‍या की बात भूल जाए।

गांधीजी के जीवन की इसी घटना जिसे स्‍वयं गांधीजी ने अनुभव किया था, के कारण ही उन्‍होंने जाना कि आत्‍महत्‍या करना सरल नहीं है और इसीलिए किसी के आत्‍महत्‍या करने की धमकी देने का उन पर कोई प्रभाव नहीं पडता था क्‍योंकि उन्‍हें अपने आत्‍महत्‍या करने की पूरी घटना याद आ जाती थी। आत्‍महत्‍या से सम्‍बंधित इस पूरी घटना का परिणाम ये हुआ कि दोनों जूठी बीडी चुराकर पीने अथवा नौकर के पैसे चुराकर बीडी खरीदने व फूंकने की आदत हमेंशा के लिए भूल गए।

इस घटना के संदर्भ में गांधीजी का अनुभव ये रहा कि नशा कई अन्‍य अपराधों का कारण बनता है। यदि गांधीजी को बीडी पीने की इच्‍छा न होती, तो न तो उन्‍हें काकाजी की बीडी की ठूंठ चुरानी पडती न ही वे कभी बीडी के लिए नौकर की जेब से पैसे चुराते। उनकी नजर में बीडी पीने से ज्‍यादा बुरा उनका चोरी करना था जो कि उन्‍हें नैतिक रूप से नीचे गिरा रहा था।

इसी तरह से गांधीजी के जीवन में चोरी करने की एक और घटना है, जिसके अन्‍तर्गत 15 साल की उम्र में उन पर कुछ कर्जा हो गया था, जिसे चुकाने के लिए उन्‍होंने अपने भाई के हाथ में पहने हुए सोने के कडे से 1 तोला सोना कटवाकर सुनार को बेचकर अपना कर्जा चुकाया था। इस बात का किसी को कोई पता नहीं था, लेकिन ये बात उनके लिए असह्य हो गई। उन्‍हें लगा कि यदि पिताजी के सामने अपनी इस चोरी की बात को बता देंगे, तो ही उनका मन शान्‍त होगा।

लेकिन पिता के सामने ये बात स्‍वीकार करने की उनकी हिम्‍मत न हुई। सो उन्‍होंने एक पत्र लिखा, जिसमें सम्‍पूर्ण घटना का उल्‍लेख था और अपने किए गए कार्य का पछतावा व किए गए अपराध के बदले सजा देने का आग्रह था। वह पत्र अपने पिता को देकर वे उनके सामने बैठ गए। पिता ने पत्र पढा और पढते-पढते उनकी आंखें नम हो गईं। उन्‍होंने गांधीजी को कुछ नहीं कहा। पत्र को फाड़ दिया और फिर से लौट गए।

उसी दिन गांधीजी को पहली बार अहिंसा की ताकत का अहसास हुआ क्‍योंकि यद्धपि उनके पिता ने उन्‍हें उनकी गलती के लिए कुछ भी नहीं कहा न ही कोई दण्‍ड दिया, बल्कि केवल अपने आंसुओं से उस पत्र को गीला कर दिया, जिसे गांधीजी ने लिखा था, और इसी एक घटना ने गांधीजी पर ऐसा प्रभाव डाला कि उन्‍होंने ऐसा कोई अपराध दुबारा नहीं करने की प्रतिज्ञा ले ली। यदि उस दिन, उस घटना के लिए गांधीजी के पिताजी ने गांधीजी के साथ मारपीट, डांट-डपट जैसी कोई हिंसा की होती, तो शायद हम आज उस गांधी को याद नहीं कर रहे होते, जिसे याद कर रहे हैं।

महात्मा गाँधी की विवाह – Mahatma Gandhi Married 

मई 1883 में साढे 13 साल की आयु पूर्ण करते ही उनका विवाह 14 साल की  कस्तूरबा माखनजी  से कर दिया गया। पत्नी का पहला नाम छोटा करके  कस्तूरबा  कर दिया गया और उसे लोग प्यार से  बा  कहते थे। यह विवाह उनके माता पिता द्वारा तय किया गया व्यवस्थित बाल विवाह था जो उस समय उस क्षेत्र में प्रचलित था। लेकिन उस क्षेत्र में यही रीति थी कि किशोर दुल्हन को अपने माता पिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पड़ता था। 1885 में जब गान्धी जी 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया। लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। और इसी साल उनके पिता करमचन्द गन्धी भी चल बसे। मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं जो सभी पुत्र थे। हरीलाल गान्धी 1888 में, मणिलाल गान्धी 1892 में, रामदास गान्धी 1897 में और देवदास गांधी 1900 में जन्मे।

महात्मा गाँधी की शिक्षा और कार्य – Mahatma Gandhi Career History in Hindi

पोरबंदर से उन्होंने मिडिल और राजकोट से हाई स्कूल किया। दोनों परीक्षाओं में शैक्षणिक स्तर वह एक औसत छात्र रहे। मैट्रिक के बाद की परीक्षा उन्होंने भावनगर के शामलदास कॉलेज से कुछ परेशानी के साथ उत्तीर्ण की। जब तक वे वहाँ रहे अप्रसन्न ही रहे क्योंकि उनका परिवार उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहता था। बाद में लंदन में विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वह भारत में आकर अपनी वकालत की अभ्यास करने लगे, लेकिन सफल नहीं हुए। उसी समय दक्षिण अफ्रीका से उन्हें एक कंपनी में क़ानूनी सलाहकार के रूप में काम मिला, वहा महात्मा गांधीजी लगभग 20 साल तक रहे।

वहा भारतीयों के मुलभुत अधिकारों के लिए लड़ते हुए कई बार जेल भी गए। अफ्रीका में उस समय बहुत ज्यादा नस्लवाद हो रहा था, उसके बारे में एक किस्सा भी है, जब गांधीजी अग्रेजों के स्पेशल कंपार्टमेंट में चढ़े उन्हें गाँधीजी को बहुत बेईजत कर के ढकेल दिया। उन्होंने अपनी इस यात्रा में अन्य भी कई कठिनाइयों का सामना किया। अफ्रीका में कई होटलों को उनके लिए वर्जित कर दिया गया। इसी तरह ही बहुत सी घटनाओं में से एक यह भी थी जिसमें अदालत के न्यायाधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने का आदेश दिया था जिसे उन्होंने नहीं माना। ये सारी घटनाएँ गान्धी के जीवन में एक मोड़ बन गईं और विद्यमान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार सिद्ध हुईं।

दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए गान्धी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अन्तर्गत अपने देशवासियों के सम्मान तथा देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाये। वहा उन्होंने सरकार विरूद्ध असहयोग आंदोलन संगठित किया. वे एक अमेरिकन लेखक हेनरी डेविड थोरो लेखो से और निबंधो से बेहद प्रभावित थे। आखिर उन्होंने अनेक विचारो ओर अनुभवों से सत्याग्रह का मार्ग चुना, जिस पर गाँधीजी पूरी जिंदगी चले, पहले विश्वयुद्ध के बाद भारत में ‘होम रुल’ का अभियान तेज हो गया, 1919 में रौलेट एक्ट पास करके ब्रिटिश संसद ने भारतीय उपनिवेश के अधिकारियों को कुछ आपातकालींन अधिकार दिये तो गांधीजीने लाखो लोगो के साथ सत्याग्रह आंदोलन किया।

उसी समय एक और चंद्रशेखर आज़ाद और  भगत सिंह  क्रांतिकारी देश की स्वतंत्रता के लिए हिंसक आंदोलन कर रहे थे। लेकीन गांधीजी का अपने पूर्ण विश्वास अहिंसा के मार्ग पर चलने पर था। और वो पूरी जिंदगी अहिंसा का संदेश देते रहे।

महात्मा गांधी की मृत्यु – Death of Mahatma Gandhi

मृत्यु : 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी। महात्मा गांधी जी 79 साल की उम्र में वे सभी देश वासियों को अलविदा कहकर चले गए।

महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गये आंदोलन – Mahatma Gandhi ke Andolan

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945) – bhartiya swatantrata sangram.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष 1916 से 1945 तक चला। यह संघर्ष भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। जब गाँधी जी अफ्रीका से लौटे थे उस समय तक वे राष्ट्रवादी नेता के तौर पर प्रचलित हो चुके थे। उन्होंने इस आंदोलन में किसानों, मजदूरों, शहरी श्रमिकों को एकजुट किया।

चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह (1918-1919) – Champaran Satyagraha in Hindi

गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1918 में एक सत्याग्रह हुआ। यह गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। यह आंदोलन किसानो पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ था। खेड़ा सत्याग्रह भी गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध आंदोलन था।

खिलाफत आन्दोलन (1919-1924) – Khilafat Andolan in Hindi

ख़िलाफ़त आन्दोलन (1919-1922) भारत में मुख्य तौर पर मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था। गाँधी जी इस आंदोलन में भाग लिए और मुस्लिम-हिन्दू को एकजुट करने में सहयोग किये।

असहयोग आन्दोलन – Asahyog Andolan in Hindi

गांधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी के नेतृत्व मे चलाया जाने वाला यह प्रथम जन आंदोलन था। इस आंदोलन का मकशद था अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना।

स्वराज और नमक सत्याग्रह – Namak Satyagrah

गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह जिसे दांडी मार्च भी कहा जाता हैं। ये ऐतिहासिक सत्याग्रह कार्यक्रम गाँधीजी समेत 78 लोगों के द्वारा अहमदाबाद साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गाँव दांडी तक पैदल यात्रा करके 12 मार्च 1930 को नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून का भंग किया गया था।

  • हरिजन आंदोलन
  • द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’
  • देश का विभाजन और भारत की आजादी

महात्मा गांधीजी की जीवन कार्य – Mahatma Gandhi History

  • 1893 में उन्हें दादा अब्दुला इनका व्यापार कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण आफ्रिका को जाना पड़ा। जब दक्षिण आफ्रिका में थे तब उन्हें भी अन्याय-अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका प्रतिकार करने के लिये भारतीय लोगोंका संघटित करके उन्होंने 1894 में ‘नेशनल इंडियन कॉग्रेस की स्थापना की।
  • 1906 में वहा के शासन के आदेश के अनुसार पहचान पत्र साथ में रखना सक्त किया था। इसके अलावा रंग भेद नीती के विरोध में उन्होंने ब्रिटिश शासन विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया।
  • 1915 में महात्मा गांधीजी भारत लौट आये और उन्होंने सबसे पहले साबरमती यहा सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की.तथा 1919 में उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन में शुरु किया।
  • 1920 में असहयोग आंदोलन शुरु किया।
  •  1920 में लोकमान्य तिलक के मौत के बाद राष्ट्रिय सभा का नेवृत्त्व महात्मा गांधी के पास आया।
  • 1920 में के नागपूर के अधिवेशन में राष्ट्रिय सभा ने असहकार के देशव्यापी आंदोलन अनुमोदन देनेवाला संकल्प पारित किया. असहकार आंदोलन की सभी सूत्रे महात्मा गांधी पास दिये गये।
  • 1924 में बेळगाव यहा राष्ट्रिय सभा के अधिवेशन का अध्यक्ष पद।
  • 1930 में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुवा. नमक के उपर कर और नमक बनाने की सरकार एकाधिकार रद्द की जाये. ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली।
  • 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की।
  • 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया।
  • 1934 में गांधी जी ने वर्धा के पास ‘सेवाग्राम’ इस आश्रम की स्थापना की. हरिजन सेवा, ग्रामोद्योग, ग्रामसुधार, आदी विधायक कार्यक्रम करके उन्होंने प्रयास किया।
  • 1942 में चले जाव आंदोलन शुरु हुआ। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया।
  • व्दितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था, जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युध्द के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली. अंततः 1947 में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। गांधीजीने सदैव विभिन्न धर्मो के प्रति सहिष्णुता का संदेश दिया, 1948 मेंनाथूराम गोडसे ने अपनी गोली से उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस दुर्घटना से सारा विश्व शोकमग्न हो गया था. वर्ष 1999 में बी.बी.सी. द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में गांधी जी को बीते मिलेनियम का सर्वश्रेष्ट पुरुष घोषित किया गया।
  • गांधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर ‘हरि – जन’ नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें।

महात्मा गांधी की पुस्तकों के नाम – Mahatma Gandhi Book’s –

  • माय एक्सपेरिमेंट वुईथ ट्रुथ ( My Experiment With Truth ).
  • हिन्द स्वराज – सन 1909 में
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह – सन 1924 में
  • मेरे सपनों का भारत
  • ग्राम स्वराज
  • ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ एक आत्मकथा
  • रचनात्मक कार्यक्रम – इसका अर्थ और स्थान

Mahatma Gandhi – मोहनदास करमचंद गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले, विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे।

गांधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर ‘हरि – जन’ नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें।

गाँधी जी की आलोचना 

गांधी के सिद्धान्तों और करनी को लेकर प्रयः उनकी आलोचना भी की जाती है। उनकी आलोचना के मुख्य बिन्दु हैं-

  • दोनो विश्वयुद्धों में अंग्रेजों का साथ देना ।
  • खिलाफत आन्दोलनजैसे साम्प्रदायिक आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाना।
  • सशस्त्र क्रान्तिकारियों के अंग्रेजों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यों की निन्दा करना।
  • गांधी-इरविन समझौता- जिससे भारतीय क्रन्तिकारी आन्दोलन को बहुत धक्का लगा।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष पद पर  सुभाष चन्द्र बोस  के चुनाव पर नाखुश होना।
  • चौरी चौरा काण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन को सहसा रोक देना।
  • भारत की स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू  को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना।
  • स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये देने की जिद पर अनशन करना।

Ans : 2 अक्टूबर 1869 को

Ans : गुजराती

Q : महात्मा गांधी किस धर्म के थे?

Ans : गान्धी सनातन धर्म की  पंसारी  जाति से सम्बन्ध रखते थे।

Ans : श्रीमद राजचंद्र जी

Ans : राजकुमारी अमृत

Ans : भारत को आजादी दिलाने में विशेष योगदान रहा था।

Ans : गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।

Ans : 30 जनवरी 1948 को

Q : गांधी जी भारत कब वापस आये?

Ans : गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत में रहने के लिए लौट आए।

Ans : हिन्द स्वराज : सन 1909 में, माय एक्सपेरिमेंट वुईथ ट्रुथ

Ans : सत्य से संयोग नामक आत्मकथा महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई है।

Q : गांधी जी के पत्नी का क्या नाम था?

Ans : कस्तूरबा गांधी

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9 thoughts on “महात्मा गाँधी की प्रेरणादायी जीवनी | mahatma gandhi biography in hindi”.

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Nice information. ..

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आपने महात्मा गांधी के बारे में बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है। कृपया आगे भी ऐसे ही जानकारी देते रहिएगा। धन्यवाद

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very nice information

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गाँधी जी के विचार में ताकत थी. उनकी जीवनी हमें स्कूल के जीवन की याद दिलाती है. आपके लेख का मै बहुत ही अभारी हूँ. धन्यवाद

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pagal aashu roy

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बहुत ही शानदार लेख है हमें बहुत अच्छी लगी |

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Very bad information.Mahatma Gandhi ne afrika men to kale gore ke bhed bhav ko door krne ka pryas kiya lekin bharat me nahin.

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hindi parichay

महात्मा गांधी की जीवनी: Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay

Information About Mahatma Gandhi in Hindi:  श्री मोहनदास करमचंद गांधी जी (महात्मा गांधी) – (02 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948) – महात्मा गांधी का जीवन परिचय आपको नीचे पढ़ने को मिलेगा।⇓

महात्मा गांधी जी को राष्ट्रीय पिता, बापू जी, महात्मा गांधी भी कहा जाता है। पूरे भारत वर्ष में महात्मा गांधी जी को सुपर फाइटर के नाम से भी जाना जाता है। जिन्होंने कई आंदोलन किये और जीते भी। इन्हे कौन नहीं जानता? पूरे भारत वर्ष में शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो इन्हे नहीं जानता होगा। आज के इस लेख में हम बात केवल  महात्मा गांधी की जीवनी की ही नहीं उनसे जुड़ी घटनाओं की भी बात करेंगे।

मैं आपको कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहा हूँ जिन्हें आपको जानने में बहुत आनंद आयेगा।

महात्मा गांधी का जीवन परिचय पर निबंध

महात्मा गांधी जी भारत के मात्र एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे सम्पूर्ण भारत “बापू जी” के नाम से बुलाता है। बापू जी ने हमेशा एक सदाचार जीवन व्यतीत किया था। महात्मा गांधी जी एक साधारण परिवार में जन्मे थे और उन्होने अपना जीवन अपनी जनता के लिए बिताया। साधारण जीवन जीना बेहद ही मुश्किल होता है और ऐसे साधारण जीवन में बड़े बड़े काम कर देना भी कोई आसान काम नहीं है।

अगर मैं बात करू की गांधी जी ने ऐसा किया क्या जिसकी वजह से भारत की सम्पूर्ण जनसंख्या उन्हे “बापू जी” के नाम से बुलाते है। तो इसे जानने के लिए सम्पूर्ण लेख पढ़ना होगा। बेहद ही आसान शब्दों में  महात्मा गांधी का जीवन परिचय लिखा गया है कृपया ध्यानपूर्वक पढ़ें।

About Gandhiji in Hindi ( Short Bio )

महात्मा गांधी जी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबंदर जिला में 02 अक्तूबर 1869 को एक साधारण से परिवार में उनका जन्म हुआ था। गांधी जी के पिता करमचंद गांधी , कट्टर हिन्दू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात में पोरबंदर रियासत के प्रधानमंत्री थे। गांधी जी की माता अत्यधिक धार्मिक महिला थी, अत: उनका पालन पोषण वैष्णव माता को मानने वाले परिवार में हुआ और उन पर जैन धर्म का भी अधिक गहरा प्रभाव रहा। जिसकी वजह से इसके मुख्य सिद्धांतों जैसे- अहिंसा, आत्म शुद्धि और शाकाहार को उन्होंने अपने जीवन में उतारा था और गांधी जी भी इस नियम को मानते थे।

गांधी जी की शिक्षा अल्फ्रेड हाई स्कूल, राजकोट , यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन से पूरी हुई। पढ़ाई के बाद वो अपने देश भारत वापस लौट आए। गांधी जी का विवाह 13 वर्ष की आयु में ही कर दिया गया। विद्यालय में पढ़ने वाले गांधी जी का विवाह पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा माखनजी से कर दिया गया था। अब हम Mahatma Gandhi Ke Bare Mein (महात्मा गांधी हिस्ट्री हिंदी) विस्तार से जानते हैं।

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Essay on Mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी हिस्ट्री हिंदी निबंध

गांधी जी का जन्म पश्चिमी भारत में गुजरात के एक तटीय पोरबंदर नामक स्थान पर 02 अक्टूबर 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी जी कट्टर हिन्दू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात में काठियावाड़ की छोटी रियासत पोरबंदर के प्रधानमंत्री थे। बाद में वो उनके पिता जी सनातन धर्म की पंसारी जाती से सम्बन्ध रखते थे। वैसे गुजराती भाषा में गांधी का मतलब पंसारी से होता है। इसका मतलब इत्र (perfume) बेचने वाला भी होता है।

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महात्मा गांधी की माता का नाम पुतलीबाई था और वो परनामी वैश्य समुदाय की थी। महात्मा गांधी जी के पिता की पहले तीन पत्नियां थी और प्रसव पीड़ा के कारण उनकी मृत्यु हुई थी जिस कारण करमचंद गांधी जी का चौथा विवाह करना पड़ा था। उनकी माता पहले से ही भगवान की पूजा पाठ में व्यस्त रहती थी तो उनका ये सकारात्मक प्रभाव गांधी जी पर भी पड़ा। जिसकी वजह से गांधी जी हमेशा कमजोरों में ताकत व ऊर्जा की भावना जगाते रहते थे, शाकाहारी खाना, आत्मा की शुद्धि के लिए व्रत भी किया करते थे।

महात्मा गांधी की शिक्षा: Mahatma Gandhi Education in Hindi

बम्बई यूनिवर्सिटी से मेट्रिक 1887 ई में पास किया और उसके आगे की शिक्षा भावनगर के शामलदास स्कूल से ग्रहण की। दोनों ही परीक्षाओं में वह शैक्षणिक स्तर वह एक औसत छात्र रहे। उनका परिवार उन्हें बैरिस्टरी बनाना चाहता था। 4 सितम्बर 1888 ई, को गांधी जी बैरिस्टरी की शिक्षा के लिए लंदन गए जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन ( University College London ) में दाखिला (ADMISSION) लिया।

गांधी जी शुरू से ही शाकाहारी थे और उन्होंने लंदन में भी इस नियम को बनाए रखा। जिस रवैये ने गांधी जी के व्यक्तित्व को लंदन में एक अलग छवि प्रदान की। गांधी जी ने शाकाहारी मित्रों की खोज की और थियोसोफिकल नामक सोसाइटी के कुछ मुख्य सदस्यों से मिले। इस सोसाइटी की स्थापना विश्व बंधुत्व (संपूर्ण एकता) के लिए 1875 ई में हुई थी और तो और इसमें बोध धर्म सनातन धर्म के ग्रंथों का संकलन भी था।

About Mahatma Gandhi in Hindi | ( वकालत का आरम्भ )

  • 👉 इंग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन द्वारा बुलाये जाने पर गांधी जी वापस मुंबई लौट आये और यहां अपनी वकालत शुरू की।
  • 👉 मुंबई (बम्बई) में गांधी जी को सफलता नहीं मिली जिसके कारण गांधी जी को अंशकालिक शिक्षक के पद पर काम करने के लिए अर्जी दाखिल की किन्तु वो भी अस्वीकार हो गयी।
  • 👉 जीविका के लिए गांधी जी को मुकदमों की अर्जियां लिखने का कार्य आरम्भ करना पड़ा। परन्तु कुछ कारणवश उनको यह काम भी छोड़ना पड़ा।
  • 👉 1893 ई में गांधी जी एक वर्ष के करार के साथ दक्षिण अफ्रीका गए।
  • 👉 दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार की फर्म नेटल से यह वकालत करार हुआ था।

Mahatma Gandhi Biography in Hindi Short

महात्मा गांधी जी का विवाह

महात्मा गांधी जी का विवाह कब और किसके साथ हुआ?

सन् 1883 में उनका विवाह कस्तूरबा माखनजी से हुआ। उस समय गांधी जी की उम्र केवल साढ़े तेरह वर्ष थी (13.5 years) और कस्तूरबा मखंजी जी 14 वर्ष की थी। गांधी जी, “कस्तूरबा”  जी को “बा” कह कर बुलाते थे। यह बाल विवाह उनके माता पिता द्वारा तय करा गया था| गाँधी जी और कस्तूरबा जी की उम्र कम थी और उस समय बाल किशोरी दुल्हन को अपने माता पिता के घर रहने का नियम था। कुछ 2 साल बाद सन् 1885 में गांधी जी 15 साल के हो गये थे और तभी उन्हें पहली संतान ने जन्म लिया था, लेकिन कुछ ही समय पश्चात उसकी मृत्यु हो गयी और उसी वर्ष गांधी जी के पिता करमचंद गांधी जी की मृत्यु हो गयी।

महात्मा गांधी के बेटे का नाम क्या था

  • हरिलाल गांधी (1888 ई)
  • मणिलाल गांधी (1892 ई)
  • रामदास गांधी (1897 ई)
  • देवदास गांधी (1900 ई)

विदेश में वकालत व शिक्षा: महात्मा गांधी का जीवन परिचय

4 सितम्बर 1888 ई को गांधी जी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कानून (law) की शिक्षा ग्रहण करने व बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गये। भारत छोड़ते वक्त जैन भिक्षु बेचारजी की दी गयी।

सिख व अपनी माता को दिए गये वचन की “मास मदिरा” का सेवन न करने को लंदन में काफी सक्षम रखा।

हांलाकि, महात्मा गांधी जी ने लंदन में रह कर वहां की सभी रीति रिवाजों को अपनाया व अनुभव किया। उदाहरण के लिए गांधी जी वहां पर नृत्य कक्षाओं में भी जाया करते थे। मगर फिर भी उन्होंने कभी भी अपनी मकान मालकिन द्वारा बनाये मास एवं पत्ता गोभी को नहीं खाते थे। वे शाकाहारी भोजन खाने के लिए शाकाहारी भोजनालय जाते थे। उनकी माता से उन्हें काफी लगाव था वो अपनी माता की कही बातों पर बहुत अमल करते थे। इसी वजह से उन्होंने बौद्धिकता से शाकाहारी भोजन को ही अपनाया।

उन्होंने शाकाहारी समाज की सदस्यता अपनाई और इस कार्यकारी समिति के लिए उनका चयन भी हो गया। जहाँ उन्होंने एक स्थानीय अध्याय की नीव भी रखी। बाद में उन्होंने संस्थाए भी गठित की तभी उनकी मुलाकात कुछ शकाहारी लोगों से हुई जो थिओसोफिकल सोसाइटी के सदस्य थे। इस सोसाइटी की स्थापना 1875ई विश्व बंधुत्व को प्रबल करने के लिए बनाई गयी थी और बौध धर्म एवं सनातन धर्म के साहित्य के अध्यन के लिए समर्पित किया गया था।

उन लोगों के विशेष रूप से कहे जाने पर गांधी जी ने श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ा और जाना। लेकिन गांधी जी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई में और अन्य प्रकार की जाती में विशेष रूचि नहीं रखते थे। इंग्लैंड और वेल्स एसोसिएशन में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आये किन्तु बम्बई में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद अंशकालिक नौकरी वो भी एक स्कूल में प्रार्थना पत्र भेजा वो भी आस्विकर हो गया जिसके कारण उन्हें जरूरतमंदों के लिए राजकोट को अपने मुकाम बना लिया। मगर एक अंग्रेज अधिकारी की बेवकूफी के कारण उन्हें यह पद भी छोड़ना पड़ा।

अपनी आत्मकथा में उन्होंने इस घटना का वर्णन अपने बड़े भाई की और से परोपकार की असफल कोशिश के रूप में किया है। इसी कारणवश उन्होंने 1893ई में एक भारतीय फर्म से नेटाल दक्षिण अफ्रीका में, जो उन दिनों ब्रिटिश का भाग होता था, एक वर्ष के करार पर वकालत का कारोवार स्वीकार किया।

महात्मा गांधी पर निबंध 10 लाइन

Mahatma Gandhi History in Hindi

महात्मा गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा

  • महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका कब गए थे
  • दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के आश्रम का नाम
  • दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों को क्या कहते हैं
  • दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास PDF

दक्षिण अफ्रिका में गांधीजी को भारतीयों पर हो रहे भेदभाव का सामना करना पड़ा।

प्रथम श्रेणी कोच की वैध (VALID) टिकट होने के बाद भी उन्हें तीसरी श्रेणी (3rd category) के डिब्बे में भी जाने से मना कर दिया था और तो और पायदान पर बची हुई यात्रा पर एक यूरोपियन यात्री के अन्दर आने पर चालक द्वारा मार भी खानी पड़ी। उन्होंने अपनी इस यात्रा में कई तरह की बेइज्जती सही और और कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, अफ्रीका के कई होटलों को उनके लिए बंद कर दिया गया।

इन घटनाओं में एक घटना ये भी थी जिसमें एक न्यायधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने के लिए भी कहा। दक्षिण में हो रहे अन्याय को गांधी जी दिल और दिमाग पर ले गये जिस कारण आगे गांधी जी ने अपना जीवन भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ कदम उठाये।

भारत का स्वतंत्रता संघर्ष : महत्वपूर्ण तथ्य

सन् 1916 ई में गांधी जी अपने भारत के लिए वापस भारत आये और अपनी कोशिशों में लग गए।

कांग्रेस के लीडर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गयी थी। मगर पहले हम बात करेंगे चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन के बारें में।

चंपारण और खेड़ा आंदोलन | महात्मा गांधी का जीवन परिचय

1918 ई गांधी जी की पहली उपलब्धि चंपारण (CHAMPARAN) और खेडा सत्याग्रह आन्दोलन में मिली। नील की खेती जैसी खेती जिसे करने से किसानों को कोई फायदा नहीं हो रहा था। अपने खाने पीने तक का कोई खेती नहीं हो पा रही थी बस कुछ घर पर आता और बाकि पैसा कर्ज में काट लिया जाता था। कम पैसे कमाना और ज्यादा कर भरना किसानों पर जुल्म था जो की गांधी जी देखा नहीं गया।

गाँव में गंदगी, अस्वस्थता और अन्य कई तरह की बीमारियां भी फैलाने लगी थी। खेड़ा (KHEDA), गुजरात (GUJARAT) में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक आश्रम बनाया, वहां पर गांधी जी के सभी साथी और अपनी इच्छा से कई लोग आकर समर्थक के रूप में कार्य करने लगे। सबसे पहले तो गांधी जी ने वहां पर सफाई करवाई और स्कूल और अस्पताल बनवाए जिससे ग्रामीण लोगों में विश्वास उत्पन्न हुआ।

उस समय हुए शोर शराबे के कारण गांधी जी को पुलिस ने शोर शराबे से हुई परेशानी के कारण थाने में बंद कर दिया जिसका विरोध पूरे गांव वालों ने किया, बिना किसी कानूनी कारवाही के थाने से छुड़ाने को लेकर गांव वालों ने थाने के आगे धरना प्रदर्शन भी किया। गांधी जी ने अदालत में जमीदारों के खिलाफ टिप्पणी और हड़ताल का नेतृत्व भी किया और गांव के लोगों पर हुए कर वसूली व खेती पर नियंत्रण, राजस्व में बढ़ोतरी को रद्द करने जैसे कई मुद्दों पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करवाए।

Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay

महात्मा गांधी के आंदोलन के नाम

खिलाफत आंदोलन कब हुआ | महात्मा गांधी के आंदोलन के नाम

अब गांधी जी को ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस कहीं न कहीं हिन्दू व मुस्लिम समाज में एकता की कमी की वजह से कमजोर पड़ रही हैं जो की कांग्रेस की नैया डूब भी सकती है तो गांधी जी ने दोनों समाजों हिन्दू व मुस्लिम समाज की एकता की ताकत के बल पर ब्रिटिश की सरकार को बाहर भगाने के प्रयास में जुट गए। इस उम्मीद में वे मुस्लिम समाज के पास गए और इस आन्दोलन को विश्वस्तरीय रूप में चलाया गया जो की मुस्लिम के कालिफ [CALIPH] के खिलाफ चलाया गया था।

गांधी जी सम्पूर्ण राष्ट्रीय के मुस्लिमों की कांफ्रेंस  [ALL INDIA MUSLIM CONFERENCE] रखी थी और वो खुद इस कॉन्फ्रेंस के प्रमुख व्यक्ति भी बने। गांधी जी की इस कोशिश ने उन्हें राष्ट्रीय नेता बना दिया और कांग्रेस में उनकी एक खास जगह बन गयी। कुछ समय बाद ही गांधी जी की बनाई एकता की दीवार पर दरार पड़ने लग गई जिस कारण सन् 1922 ई में खिलाफत आन्दोलन पूरी तरह से बंद हो गया | गांधी जी सम्पूर्ण जीवन ‘हिन्दू मुस्लिम की एकता के लिए’, कार्य करते रहे मगर गांधी जी असफल रहे।

असहयोग आन्दोलन सन् 1920 ई | NON COOPERATION MOVEMENT IN HINDI

गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे और शांतिपूर्ण जीवन जीना पसंद करते थे। पंजाब में जब जलियांवाला नरसंहार जिसे सब अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता हैं। उस घटना ने लोगों के बीच काफी क्रोध और हिंसा की आग लगा दी थी।

दरअसल बात ये थी कि अंग्रेजी सरकार ने सन् 1919 ई रॉयल एक्ट लागू किया। उसी दौरान गांधी जी कुछ सभाएं भी आयोजित करते थे। एक दिन गांधी जी ने शांति पूर्ण एक सभा पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में एक आयोजित की थी और उस शांतिपूर्ण सभा को अंग्रेजों ने बहुत ही बुरी तरह रौंदा था जिसका वर्णन करते भी आंखों से आंसू आता है।

सन् 1920 ई में असहयोग आन्दोलन आरंभ किया गया । इस आन्दोलन का अर्थ था की किसी भी प्रकार से अंग्रेजों की सहायता न करना और किसी भी प्रकार की हिंसा का प्रयोग न की जाये। इस आन्दोलन को गांधी जी का प्रमुख आन्दोलन भी कहा जाता है।  असहयोग आन्दोलन सितम्बर 1920ई – फरवरी 1922 तक चला। गांधी जी को पता था कि ब्रिटिश सरकार भारत में राज करना चाहती है और वो भारत के सपोर्ट के बिना असंभव है। गांधी जी को ये भी पता था कि ब्रिटिश सरकार को कहीं न कहीं भारत के लोगों की सहायता ही पड़ती हैं यदि इस सहायता को बंद करा दिया जाये तो ब्रिटिश सरकार अपने आप ही वापस चली जायेगी या फिर भारतीयों पर जुल्म नहीं करेगी।

गांधी जी ने ऐसा ही किया उन्होंने सभी भारतीयों को बुलाया और अपनी बात को स्पष्ट रूप से समझाया और सभी भारतीयों को गांधी जी की बात पर विश्वास भी हुआ और उन्होंने गांधी जी की कही हुई बातों को गांठ बांध ली, सभी लोग बड़ी मात्रा में शामिल हुए और इस आन्दोलन में अपना योगदान दिया।

सभी भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की सहायता करने से मना कर दिया, उन्होंने अपनी नौकरी त्याग दी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल और कॉलेजों से निकाल लिया, सरकारी नौकरियां, फैक्ट्री, कार्यालय भी छोड़ दिया। लोगों के उस फैसले से कुछ लोग गरीबी व अनपड की मार से झुलसने लगे थे, स्थिति तो ऐसी उत्पन्न हो गयी थी की भारत तभी आजाद हो जाता परन्तु एक घटना जिसे हम चौरा-चौरी के नाम से जानते हैं। जिसकी वजह से गांधी जी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा और आन्दोलन को वहीं समाप्त करना पड़ा।

चोरा चोरी की घटना कब हुई थी? चौरी चौरा की घटना का क्या महत्व था?

उत्तर प्रदेश के चौरा चौरी नामक स्थान पर जब भारतीय शांतिपूर्ण रूप से रैलियां निकाल रहे थे तब अंग्रेजों ने उन पर गोलियां चला दी और कई भारतीयों की मृत्यु भी हो गयी, जिसके कारण भारतीयों ने गुस्से में पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और 22 पुलिस सैनिकों को मार दिया।

गांधी जी का कहना था की “ हमें सम्पूर्ण आन्दोलन के दौरान किसी भी हिंसात्मक प्रकिया का प्रयोग नहीं करना था और हम अभी किसी भी प्रकार से आज़ादी के लायक नहीं हैं “ जिस के कारण गांधी जी ने अपने आन्दोलन को वापस ले लिया था।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन/ डंडी यात्रा / नमक आन्दोलन सन् 1930 – CIVIL DISOBEDIENCE MOVEMENT / DANDI MARCH / SALT MOVEMENT

सविनय अवज्ञा का अर्थ होता है किसी भी बात को ना मानना और उस बात की अवहेलना करना। सविनय अवज्ञा आन्दोलन भी गांधी  जी ने लागू किया था| ब्रिटिश सरकार के खिलाफ ये आन्दोलन था।

इस आन्दोलन में मुख्य कार्य यही था की ब्रिटिश सरकार जो भी नियम लागू करेगी उसे नहीं मानना और उसके खिलाफ जाना जैसे: ब्रिटिश सरकार ने नियम बनाया था की कोई नहीं अन्य व्यक्ति या फिर कोई कंपनी नमक नहीं बनाएगी। तब 12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा द्वारा नमक बनाकर इस कानून को तोड़ दिया था। वे दांडी नामक स्थान पर पहुंच कर नमक बनाया था और कानून का उल्लंघन किया था।

गांधी जी ने साबरमती आश्रम जो की गुजरात के अहमदाबाद नामक शहर के पास ही है 12 मार्च, सन् 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक ये यात्रा चलती रही। 31 जनवरी 1929 को भारत का झंडा लाहौर में फहराया गया था। इस दिन को भारतीय नेशनल कांग्रेस ने आजादी का दिन समझ कर मनाया था। यह दिन लगभग सभी भारतीय संगठनों द्वारा भी माना गया था। इसके बाद ही नमक आन्दोलन हुआ था। 400 किलोमीटर (248 मील) तक का सफ़र अहमदाबाद से दांडी, गुजरात तक चलाया गया था।

गांधी जी सुभाष चन्द्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरू के आजादी की मांग के विचारों को भी सिद्ध किया और अपने विचारों को 2 सालों की वजह 1 साल के लिए रोक दिया। इस आन्दोलन की वजह से 80000 लोगों को जेल जाना पड़ा। लार्ड एडवर्ड इरविन ने गांधी जी के साथ विचार विमर्श किया। इस इरविन गांधी जी की संधि 1931 में हुई। सविनय अवज्ञा आन्दोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने अपनी रजामंदी दे दी थी।

गांधी जी को भारत के राष्ट्रीय कांग्रेस के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। यह सम्मेलन निराशाजनक रहा। इस आयोजन का कारण भारतीय कीमतों व अल्पसंख्यकों पर केंद्रित होना था। लार्ड विलिंगटन ने भारतीय राष्ट्रवादियों को नियंत्रित और कुचलने के लिए नया अभियान आरम्भ किया और गांधी जी को फिर से गिरफ्तार भी कर लिया गया था और उनके अनुयायियों को उनसे मिलने तक भी नहीं जाने दिया। मगर ये युक्ति भी बेकार गयी।

Mahatma Gandhi History in Hindi | हरिजन आंदोलन और निश्चय दिवस क्या है?

1932, डा० बाबा साहेब आंबेडकर जी के चुनाव प्रचार के माध्यम से, सरकार ने अछूत लोगों को एक नए संविधान में अलग निर्वाचन दे दिया। इसके विरुद्ध गांधी जी ने 1932 में 6 दिन का अनशन ले लिया था जिसने सफलतापूर्वक दलित से राजनैतिक नेता पलवंकर बालू द्वारा की गयी। मध्यस्थता वाली एक सामान्य व्यवस्था को अपनाया गांधी जी ने अछूत लोगों को हरिजन का नाम दिया।

डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर ने गांधी जी की हरिजान वाली बात की निंदा की और कहा की दलित अपरिपक्व है और सुविधासंपन्न जाती वाले भारतीयों ने पितृसत्तात्मक भूमिका निभाई है।

अम्बेडकर और उनके सहयोगी दलों को महसूस हुआ की गांधी जी दलितों के अधिकार को समझ नहीं पा रहे हैं या फिर दलित अधिकार को कम आंक रहे हैं। गांधी जी ने ये भी बाते आंकी की वो दलितों के लिए आवाज उठा रहे हैं। पुन संधि में ये साबित हो गया की गांधी जी नहीं अम्बेडकर ही हैं दलितों के असली नेता। उस समय छुआछूत सबसे बड़ी समस्या थी। हरिजन लोगों को मंदिरों में जाने भी नहीं दिया जाता था। केरल राज्य का जनपद त्रिशूर दक्षिण भारत की एक प्रमुख नगरी है, जनपद में एक प्रतिष्ठित मंदिर भी हैं। गुरुवायुर मंदिर जिसमें  कृष्ण भगवान बल रूप के दर्शन कराती मूर्तियां है परंतु वहां पे भी हरिजन लोगों को जाने नहीं दिया जाता था।

भारत छोड़ो आन्दोलन कब शुरू हुआ | QUIT INDIA MOVEMENT IN HINDI

अभी तक के आंदोलनों में ये सबसे ज्यादा प्रभावी आन्दोलन था। सन् 1940 के दशक तक सभी लोग बड़े हो या फिर बच्चा सभी अपने देश की आजादी के लिए लड़ने मरने को तैयार थे। उनमें बहुत गुस्सा भरा था और ये गुस्सा सन् 1942ई में बहुत ही प्रभावशाली रहा, परंतु इस आंदोलन को संचालन करने में हुई कुछ गलतियों के कारण ये आन्दोलन भी असफल रहा। प्रमुख बात ये थी कुछ लोग अपने काम और विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में लगे रहे उस समय उन्हें लगा की अब तो भारत आजाद हो ही जायेगा तो उन्होंने अपने कदम धीरे कर लिए मगर यही बहुत बड़ी गलती थी। इस प्रयास से ब्रिटिश सरकार को ये तो पता चल ही गया था की अब भारत पर उनका राज नहीं चल सकता और भारत फिर आजाद होने के लिए फिर प्रयास करेगा।

महात्मा गांधी जी की मृत्यु कब और किस प्रकार हुई थी?

महात्मा गांधी जी की हत्या कब और कैसे हुई थी

Mahatma Gandhi Death Information in Hindi

30 जनवरी 1948 को गांधी जी अपने बिड़ला भवन में चहलकदमी (walking) कर रहे थे और उनको गोली मार दी गयी थी।

गांधी जी के हत्यारे का नाम नाथूराम गोडसे था। ये राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टर पंथी हिन्दू महासभा के साथ सम्बन्ध थे जिसने गांधी जी को पाकिस्तान को भुगतान करने के मुद्दे पर भारत को कमजोर बनाने के लिए दोषी करार दिया। गौडसे और उनके सह् षड्यंत्रकारी नारायण आप्टे को केस चला कर जेल भेज कर सजा दी गयी थी। नाथूराम गोड से  को 15 नवम्बर 1949 को फांसी दी गयी थी।

राजघाट जो की NEW DELHI में है, यहां पर गांधी जी के स्मारक पर देवनागरी भाषा में हे राम लिखा हुआ है कहा जाता है की गांधी जी को जब गोली लगी थी तब उनके मुख से ‘हे राम’ निकला था। ऐसा जवाहर लाल नेहरू जी ने रेडियो के माध्यम से देश को बताया था।

गांधी जी की अस्थियों को रख दिया गया और उनकी सेवाओं की याद में पूरे देश में घुमाया गया। महात्मा गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद में संगम नदी में 12 फरवरी 1948 ई को जल में प्रवाह कर दिया था। शेष अस्थियों को 1997 में तुषार गांधी जी ने बैंक में नपाए गए एक अस्थि – कलश की कुछ सामग्री को अदालत के माध्यम से इलाहबाद के संगम नामक नदी में प्रवाह कर दिया था। 30 जनवरी 2008 को दुबई में रहने वाले एक व्यापारी ने गांधी जी के अर्थी वाले एक अन्य कलश को मुंबई संग्रहालय में भेजने के उपरांत उन्हें गिरगाम चौपाटी नामक स्थान पर जल में विसर्जित कर दिया गया।

एक अन्य अस्थि कलश आगा खान जो पुणे में है (जहाँ उन्होंने 1942 से कैद किया गया था 1944 तक) वहां समाप्त हो गया था और दूसरा आत्मबोध फेल्लोशीप झील में मंदिर में लॉस एंजिल्स रखा हुआ है। इस परिवार को पता था कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस पवित्र रख का दुरूपयोग भी हो सकता था लेकिन उन्हें यहां से हटाना नहीं चाहती थी क्यूंकि इससे मंदिरों को तोड़ने का खतरा पैदा हो सकता था।

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महात्मा गांधी का जीवन परिचय.

महात्मा गांधी जी का जीवन बहुत ही सीधा और सरल था। उन्हे अहिंसा में विश्वास था उनका मानना था की अगर कोई गाल पर एक चांटा लगा दे तो उसके आगे दूसरा गाल भी कर दो जिससे मरने वाला शर्म के मारे मर जाए और आपसे माफी मांगे। अहिंसा परमों धर्मा गांधी जी का मानना था की अगर किसी समस्या का हल निकालना है तो उसे ठन्डे दिमाग से बिना क्रोध किए निकालने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आप अपने गुस्से से किसी समस्या का हल निकलेंगे तो आप ओर भी ज्यादा उस समस्या में फंसते चले जाएंगे।

गांधी जी ने स्वतंत्रता की लड़ाई बिना किसी अस्त्र शस्त्र के जीत के दिखाई थी। अपनी बेइज्जती होने के बाद भी गुस्से में गलत कदम नहीं उठाया था उन्होने अपने शिष्यों को भी ऐसी ही सलाह दी थी की जिससे उनका जीवन सफल हो जाए। दोस्तों, गांधी जी के जीतने भी आंदोलन थे सब के सब बिना किसी हिंसा, बिना किसी शोर शराबे के चलाये गए थे।

महात्मा गांधी के अनमोल विचार

महात्मा गांधी का नारा था

“कारों या मारो”
“अहिंसा परमो धर्म”
“आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, यतनापूर्ण बहिष्कार, यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।”
“बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो”
“सादा जीवन उच्च विचार”
बनना है तो गांधी जी के जैसा बनने की कोशिश करो बिना लड़ाई झगड़े के अपने जीवन को बदल के रख दो.

Speech on Mahatma Gandhi in Hindi (महात्मा गांधी पर भाषण)

2 October Speech in Hindi: महात्मा गांधी जी का जन्म 02 अक्टूबर सन् 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। महात्मा गांधी जी के पिता करमचंद गांधी जी राजकोट के दीवान हुआ करते थे। महात्मा गांधी जी की माता श्रीमती पुतलीबाई एक साधारण से जीवन को जीने वाली भारतीय नारी थी। महात्मा गांधी जी की माता बड़े ही सीधे स्वभाव की शांत रहने वाली महिला थी जिनकी वजह से महात्मा गांधी जी का स्वभाव भी ठीक उनकी ही तरह रहा। महात्मा गांधी जी के माता पिता बहुत साधारण व्यक्तित्व के लोग थे उनका जीवन साधारण लोगों की ही तरह था।

महात्मा गांधी जी की शुरुआती शिक्षा पोरबंदर में पूर्ण हुई थी जिसके बाद महात्मा गांधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अपनी वकालत की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए। जब महात्मा गांधी जी की वकालत की पढ़ाई पूरी हो गयी तो उन्होने भारत वापस आ कर अपनी वकालत शुरू की।

महात्मा गांधी जी को एक मुकदमे के चलते भारत छोड़ कर कुछ दिनों के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा और वहां उन्होंने भारतीय लोगों की दूरदसा देखी जिस पर उन्हे ये एहसास हुआ की ये बहुत ही गलत हो रहा है। हम भारतीय लोगों के साथ इसे बदला जाना चाहिए नहीं तो हमारे आने वाले वंश इसी तरह रंग भेद और छुआछूत की बीमारी से ग्रसित रहेंगे।

गांधी जी ने बड़े बड़े आंदोलन चलाए और जीते भी, इन आन्दोलन को जीतने की सबसे बड़ी वजह मानव कल्याण के हित में था। गांधी जी ने सब आंदोलन जीते बिना किसी हथियार के इस्तेमाल से और ना बिना किसी दुर्व्यवहार के ये युद्ध जीता। दोस्तों कहने वाली नहीं मानने वाली बात है की महात्मा गांधी जी ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने सादे व्यवहार के साथ ब्रिटिशों को भगाया था और भारत में आजादी का तिरंगा फहराया था।

भारत की आजादी के लिए बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने लोहे के चने चबाये थे। कहा जाए तो आज हिंदुस्तान आजाद हुआ है तो केवल हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के चलते। देश की आजादी के लिए कभी अंग्रेजों की मार खानी पड़ी तो कभी उनकी divide and rule की वजह से अपने हिन्दू मुस्लिम भाइयों में लड़ाई दंगे होते देखे। गांधी जी को केवल अपने स्वतंत्र भारत की ही सूची है हमेशा।

गांधी जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई में लगा दिया। किसी वजह से इनको भारत के राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया हैं।

10 Lines on Mahatma Gandhi in Hindi

आप सभी की जरूरतों को समझते हुए महात्मा गांधी जी के जीवन परिचय में कम शब्दों में जानकारी दी गयी है।

गांधी जी सदा जीवन जीने में बहुत विश्वास करते थे। गांधी जी के जीवन में बहुत से संघर्षों से उनका सामना हुआ लेकिन वो बिना रुके आगे बढ़ते गए और आज उनको राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया है।

गांधी जी अपना सारा जीवन लोगों की भलाई में लगा देना तो कोई बाबूजी से सीखें और उनके जीवन की तरह अपना जीवन जरूरत मंदों के नाम करें।

  • हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी हैं।
  • महात्मा गांधी जी का जन्म 02 अक्तूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक शहर में हुआ था।
  • महात्मा गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है।
  • महात्मा गांधी जी के माता पिता का नाम पुतलीबाई और करम चन्द्र गांधी था।
  • महात्मा गांधी जी को बापू और राष्ट्र पिता के नाम से जाना जाता है।
  • महात्मा गांधी जी को सदा जीवन उच्च विचार पसंद था।
  • महात्मा गांधी जी ने अन्य सभी क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर हमारे देश को ब्रिटिश शासन से छुटकारा दिलाया था।
  • महात्मा गांधी जी ने भारतीय लोगों को सादा जीवन और स्वदेशी अपनाने का विचार दिया था।
  • महात्मा गांधी जी ने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक आंदोलन,और दांडी मार्च जैसे कई महान कार्य किए।
  • महात्मा गांधी जी की हत्या 30 जनवरी, 1948 मे नाथूराम गोडसे द्वारा कर दी गयी थी।
महात्मा गांधी जी की मृत्यु के बाद उनकी याद में और राष्ट्रपिता होने की वजह से उनका चित्र भारत की मुद्रा में देखने को मिलता है।

10 Lines on Mahatma Gandhi in English for Class 1 to 12

Mahatma gandhi essay in english in 500 words: Realizing the needs of all of you, the life introduction of Mahatma Gandhi has given less information.

Gandhi always believed in living life. He faced many struggles in the life of Gandhi Ji, but he kept moving without stopping and today he has been given the status of Father of the Nation.

If you spend your whole life in the well-being of the people, then one should learn from Bapuji and like his life, make his life in the name of the needy.

  • Our Father of the Nation is Mahatma Gandhi.
  • Mahatma Gandhi was born on 02 October 1869 in a city called Porbandar in Gujarat.
  • Mahatma Gandhi’s full name is Mohandas Karamchand Gandhi.
  • Mahatma Gandhi’s parent’s names were Putlibai and Karam Chandra Gandhi.
  • Mahatma Gandhi is known as Bapu and Father of the Nation. Mahatma Gandhi always loved high thoughts.
  • Mahatma Gandhi along with all other revolutionary freedom fighters got rid of our country from British rule.
  • Mahatma Gandhi had given the idea to the Indian people to adopt a simple life and Swadeshi.
  • Mahatma Gandhi Ji did many great works like the Non-Cooperation Movement, Civil Disobedience Movement, Salt Movement, and Dandi March.
  • Mahatma Gandhi was assassinated on 30 January 1948 by Nathuram Godse.
After the death of Mahatma Gandhi, in the memory of him and being the father of the nation, his picture is seen in the currency of India.

Mahatma Gandhi Poem in Hindi for Students

ऊपर मैंने आपको महात्मा गांधी का जीवन परिचय बताया हैं, अब मैं आपके साथ महात्मा गांधी पर कविताएं  अपडेट करूँगा जो किसी ने ना सुनी हो वो में आपको देने वाला हूँ। कृपया करके इसे पढ़े और अपने मित्रों आदि में शेयर करना ना भूले।

Poem on Mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी जी की वो कविता जिसे दुनिया सबसे ज्यादा प्रिय समझती है।

महात्मा गांधी पर कविता हिंदी में

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर हिन्दी कविता, महात्मा गांधी जयंती पर कविता, gandhi jayanti poem in hindi.

मैं उम्मीद करूंगा की आपको ये लेख अच्छा लगा होगा, अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो देरी ना कीजिए, इस लेख को इतना शेयर कर दीजिये की दुनिया 02 अक्टूबर गांधी जी के जन्मदिन कविताएं को पढ़ कर रो पड़े।

– धन्यवाद

महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Essay in Hindi) का यह लेख यही समाप्त होता है। मुझे उम्मीद है की आपको सभी जानकारी मिली होगी। अगर आपको लेख पसंद आया हो तो इसे शेयर जरुर करें और कमेंट के माध्यम से अपने विचार हमारे साथ व्यक्त करें।

– Biography of Mahatma Gandhi in Hindi

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22 Comments

महात्मा गांधी के बारे में बहुत ही जबरदस्त जानकारी मिली आपकी वेबसाइट को धन्यवाद इतना विस्तार में गांधीजी के बारे में मैंने पहली बार पढ़ा है|

THANK YOU SIR

मुझे बहोत अच्छा लगा मय तुमको गांधी जैसा बनके दिकाउगा ये मेरा आपको वादा है कमसे कम हमारे गावमे तो जररूर बनुगा

अधिक जानकारी मिली। धन्यवाद। ।।।। रामराज सावन

कुछ सही लिखा है कुछ गलत लीखा गया है।

कृपया करके हमे बताये की क्या गलत लिखा है| हम उसको जल्द से जल्द ठीक करेंगे|

Very best news of

Thank-you so much

SAhi ha shaanu

Thank you SIR

Bahut vdia jivan parchey hai

nice blog sir, aapne bhut acha blog likha hai information sari sahi hai & kuch mujhe pata nahi ya bhul gaya tha but aapka blog padhkr aisa laga jaise fir se update ho gaya ho thank you sir kal mujhe apni branch me bolna hai some words about Gandhi g really this artical help me

मुझे ख़ुशी है की आपको जानकारी पसंद आई…!

महात्मागाँधी के जीवनपरिचय एवं सम्पुर्ण्ं ईतिहास सम्बन्धी पुस्तक चाईय

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महात्मा गांधी का जीवन परिचय | Mahatma gandhi history in hindi

महात्मा गांधी की जीवनी .

महात्मा गांधी (मोहनदास करमचंद गांधी) अपने कई अनुयायियों के लिए महात्मा, या “महान आत्मा वाले” के रूप में जाने जाते है । उन्होंने 1900 के दशक की शुरुआत में दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय अप्रवासी के रूप में अपनी सक्रियता शुरू की, और प्रथम विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में ग्रेट ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भारत के संघर्ष में अग्रणी व्यक्ति बन गए। अपनी तपस्वी जीवन शैली के लिए जाने जाते हैं – वे अक्सर केवल एक लंगोटी और शॉल पहनते हैं – और हिंदू धर्म के प्रति आस्था रखते हैं, गांधी को असहयोग की खोज के दौरान कई बार कैद किया गया था, और भारत के सबसे गरीब वर्गों के उत्पीड़न का विरोध करने के लिए कई भूख हड़ताल की, अन्य अन्याय के बीच। 1947 में विभाजन के बाद, उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शांति की दिशा में काम करना जारी रखा। गांधी की जनवरी 1948 में दिल्ली में एक हिंदू कट्टरपंथी ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।

प्रारंभिक जीवन

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, वर्तमान भारतीय राज्य गुजरात में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे. उनकी गहरी धार्मिक मां वैष्णव (हिंदू भगवान विष्णु की पूजा) की पूजा के लिए समर्पित थे. जो जैन धर्म से प्रभावित थीं, आत्म-अनुशासन और अहिंसा के सिद्धांतों द्वारा शासित एक तपस्वी धर्म। 19 साल की उम्र में, मोहनदास ने शहर के चार लॉ कॉलेजों में से एक, इनर टेम्पल में लंदन में कानून की पढ़ाई के लिए घर छोड़ दिया। १८९१ के मध्य में भारत लौटने पर, उन्होंने बंबई में एक कानून अभ्यास की स्थापना की, लेकिन उन्हें बहुत कम सफलता मिली। उन्होंने जल्द ही एक भारतीय फर्म के साथ एक पद स्वीकार कर लिया जिसने उन्हें दक्षिण अफ्रीका में अपने कार्यालय में भेज दिया। गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबाई और उनके बच्चों के साथ लगभग 20 वर्षों तक दक्षिण अफ्रीका में रहे।

क्या तुम्हें पता था? अप्रैल-मई 1930 के प्रसिद्ध नमक मार्च में, अहमदाबाद से अरब सागर तक हजारों भारतीयों ने गांधी का अनुसरण किया। मार्च के परिणामस्वरूप लगभग 60,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें स्वयं गांधी भी शामिल थे।

दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय अप्रवासी के रूप में उनके द्वारा अनुभव किए गए भेदभाव से गांधी स्तब्ध थे। जब डरबन में एक यूरोपीय मजिस्ट्रेट ने उसे अपनी पगड़ी उतारने के लिए कहा, तो उसने मना कर दिया और अदालत कक्ष से निकल गया। प्रिटोरिया के लिए एक ट्रेन यात्रा पर, उन्हें प्रथम श्रेणी के रेलवे डिब्बे से बाहर निकाल दिया गया था और एक यूरोपीय यात्री के लिए अपनी सीट छोड़ने से इनकार करने के बाद एक सफेद स्टेजकोच चालक द्वारा पीटा गया था। उस ट्रेन यात्रा ने गांधी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में कार्य किया, और उन्होंने जल्द ही सत्याग्रह (“सत्य और दृढ़ता”), या निष्क्रिय प्रतिरोध की अवधारणा को अधिकारियों के साथ असहयोग के तरीके के रूप में विकसित करना और पढ़ाना शुरू कर दिया।

निष्क्रिय प्रतिरोध का जन्म

1906 में, ट्रांसवाल सरकार द्वारा  भारतियों के पंजीकरण के संबंध में एक अध्यादेश पारित करने के बाद, गांधी ने सविनयअवज्ञा के एक अभियान का नेतृत्व किया जो अगले आठ वर्षों तक चला । 1913 में अपने अंतिम चरण के दौरान, महिलाओं सहित दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले सैकड़ों भारतीय जेल गए, और हजारों हड़ताली भारतीय खनिकों को कैद किया गया, कोड़े मारे गए और यहां तक ​​कि गोली मार दी गई। अंत में, ब्रिटिश और भारतीय सरकारों के दबाव में, दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने गांधी और जनरल जेन क्रिश्चियन स्मट्स द्वारा किए गए समझौते को स्वीकार कर लिया, जिसमें भारतीय विवाहों की मान्यता और भारतीयों के लिए मौजूदा  टैक्स को खत्म  करने जैसी महत्वपूर्ण बाते शामिल थीं।

जुलाई 1914 में महात्मा गांधी, दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट गए। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश युद्ध के प्रयासों का समर्थन किया, लेकिन उन उपायों के लिए औपनिवेशिक अधिकारियों की आलोचना की जो उन्हें अन्यायपूर्ण लगे। 1919 में, महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियमों के संसद के पारित होने के जवाब में निष्क्रिय प्रतिरोध का एक संगठित अभियान शुरू किया, जिसने औपनिवेशिक अधिकारियों को विध्वंसक गतिविधियों को दबाने के लिए आपातकालीन शक्तियां दीं। अमृतसर में एक बैठक में भाग लेने वाले लगभग 400 भारतीयों के ब्रिटिश नेतृत्व वाले सैनिकों द्वारा नरसंहार सहित हिंसा शुरू होने के बाद वह पीछे हट गये, लेकिन केवल अस्थायी रूप से, और 1920 तक वह भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में सबसे अधिक कार्य करने वाले व्यक्ति थे ।

गृह शासन के लिए अपने अहिंसक असहयोग अभियान के हिस्से के रूप में, महात्मा गांधी ने भारत के लिए आर्थिक स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने ब्रिटेन से आयातित वस्त्रों को बदलने के लिए विशेष रूप से खादर, या होमस्पून कपड़े के निर्माण की वकालत की। गांधी की वाक्पटुता और प्रार्थना, उपवास और ध्यान पर आधारित एक तपस्वी जीवन शैली के आलिंगन ने उन्हें उनके अनुयायियों का सम्मान दिलाया, जिन्होंने उन्हें महात्मा (“महान आत्मा वाला” के लिए संस्कृत) कहा।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC या कांग्रेस पार्टी) के सभी अधिकार के साथ निवेशित, गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक विशाल संगठन में बदल दिया, जिससे ब्रिटिश निर्माताओं और संस्थानों का बहिष्कार किया गया, जो भारत में ब्रिटिश प्रभाव का प्रतिनिधित्व करते थे, जिसमें विधायिका और स्कूल भी शामिल थे।

छिटपुट हिंसा भड़कने के बाद, गांधी ने अपने अनुयायियों को निराश करते हुए, प्रतिरोध आंदोलन की समाप्ति की घोषणा की। ब्रिटिश अधिकारियों ने मार्च 1922 में गांधी को गिरफ्तार कर लिया और उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया; उन्हें छह साल जेल की सजा सुनाई गई थी लेकिन 1924 में एपेंडिसाइटिस के ऑपरेशन के बाद रिहा कर दिया गया था। उन्होंने अगली सेवा के लिए राजनीति में सक्रिय भागीदारी से परहेज किया.

पुराने वर्षों में, लेकिन 1930 में नमक पर औपनिवेशिक सरकार के कर के खिलाफ एक नया सविनय अवज्ञा अभियान शुरू किया, जिसने भारत के सबसे गरीब नागरिकों को बहुत प्रभावित किया।एक विभाजित आंदोलन 1931 में, ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा कुछ रियायतें दिए जाने के बाद, गांधी ने फिर से प्रतिरोध आंदोलन को बंद कर दिया और लंदन में गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करने के लिए सहमत हो गए।

इस बीच, उनकी पार्टी के कुछ सहयोगी-विशेषकर मोहम्मद अली जिन्ना, जो भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए एक प्रमुख आवाज थे- महात्मा गांधी के तरीकों से निराश हो गए, और उन्होंने इसे ठोस लाभ की कमी के रूप में देखा। एक नई आक्रामक औपनिवेशिक सरकार द्वारा उनकी वापसी पर गिरफ्तार, गांधी ने भारत के तथाकथित “अछूतों” (गरीब वर्गों) के इलाज के विरोध में भूख हड़ताल की एक श्रृंखला शुरू की, जिसका नाम उन्होंने हरिजन, या “भगवान के बच्चे” रखा। उपवास के कारण उनके अनुयायियों में हड़कंप मच गया और परिणामस्वरूप हिंदू समुदाय और सरकार द्वारा तेजी से सुधार किए गए।

1934 में, महात्मा गांधी ने ग्रामीण समुदायों के भीतर काम करने के अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, कांग्रेस पार्टी से अपने इस्तीफे के साथ-साथ राजनीति से अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा की। द्वितीय विश्व युद्ध के फैलने से राजनीतिक मैदान में वापस आ गए, गांधी ने फिर से आईएनसी पर नियंत्रण कर लिया, युद्ध के प्रयासों के साथ भारतीय सहयोग के बदले में भारत से ब्रिटिश वापसी की मांग की। इसके बजाय, ब्रिटिश सेना ने पूरे कांग्रेस नेतृत्व को बंदी बना लिया, जिससे आंग्ल-भारतीय संबंधों को एक नए निम्न स्तर पर लाया गया।

विभाजन और मृत्यु

1947 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद, ब्रिटिश, कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग (अब जिन्ना के नेतृत्व में) के बीच भारतीय गृह शासन पर बातचीत शुरू हुई। उस वर्ष बाद में, ब्रिटेन ने भारत को अपनी स्वतंत्रता प्रदान की लेकिन देश को दो प्रभुत्वों में विभाजित कर दिया: भारत और पाकिस्तान। गांधी ने विभाजन का कड़ा विरोध किया, लेकिन वे इस उम्मीद में सहमत हुए कि स्वतंत्रता के बाद हिंदू और मुसलमान आंतरिक रूप से शांति प्राप्त कर सकते हैं। विभाजन के बाद हुए बड़े दंगों के बीच, गांधी ने हिंदुओं और मुसलमानों से एक साथ शांति से रहने का आग्रह किया, और कलकत्ता में दंगे बंद होने तक भूख हड़ताल की।

जनवरी 1948 में, महात्मा गांधी ने एक और उपवास किया, इस बार दिल्ली शहर में शांति लाने के लिए। 30 जनवरी को, उपवास समाप्त होने के 12 दिन बाद, गांधी दिल्ली में एक शाम की प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे, जब उन्हें नाथूराम गोडसे ने गोली मार दी थी, जो महात्मा के जिन्ना और अन्य मुसलमानों के साथ बातचीत करने के प्रयासों से क्रोधित हिंदू कट्टरपंथी थे। अगले दिन, लगभग 1 मिलियन लोगों ने जुलूस का अनुसरण किया क्योंकि गांधी के शरीर को शहर की सड़कों के माध्यम से राज्य में ले जाया गया और पवित्र जमुना नदी के तट पर अंतिम संस्कार किया गया।

It's Hindi

महात्मा गांधी.

जन्म : 2 अक्टूबर, 1869, पोरबंदर, काठियावाड़ एजेंसी (अब गुजरात)

मृत्यु : 30 जनवरी 1948, दिल्ली

कार्य/उपलब्धियां: सतंत्रता आन्दोलन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

महात्मा गांधी के नाम से मशहूर मोहनदास करमचंद गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक नेता थे। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धान्तो पर चलकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से गान्धी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहकर सम्बोधित किया था।

महात्मा गाँधी समुच्च मानव जाति के लिए मिशाल हैं। उन्होंने हर परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इनका पालन करने के लिये कहा। उन्होंने अपना जीवन सदाचार में गुजारा। वह सदैव परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनते थे। सदैव शाकाहारी भोजन खाने वाले इस महापुरुष ने आत्मशुद्धि के लिये कई बार लम्बे उपवास भी रक्खे।

सन 1915 में भारत वापस आने से पहले गान्धी ने एक प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष किया। भारत आकर उन्होंने समूचे देश का भ्रमण किया और  किसानों, मजदूरों और श्रमिकों को भारी भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष करने के लिये एकजुट किया। सन 1921 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभाली और अपने कार्यों से देश के राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित किया। उन्होंने सन 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कई मौकों पर गाँधी जी कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहे।

प्रारंभिक जीवन

मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म भारत में गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर में 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान थे। मोहनदास की माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और अत्यधिक धार्मिक प्रवित्ति की थीं जिसका प्रभाव युवा मोहनदास पड़ा और इन्ही मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। वह नियमित रूप से व्रत रखती थीं और परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी सेवा सुश्रुषा में दिन-रात एक कर देती थीं। इस प्रकार मोहनदास ने स्वाभाविक रूप से अहिंसा,  शाकाहार,  आत्मशुद्धि के लिए व्रत और विभिन्न धर्मों और पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया।

सन 1883 में साढे 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। जब मोहनदास 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। उनके पिता करमचन्द गाँधी भी इसी साल (1885) में चल बसे। बाद में मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं – हरीलाल गान्धी (1888), मणिलाल गान्धी (1892), रामदास गान्धी (1897) और देवदास गांधी (1900)।

उनकी मिडिल स्कूल की शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में हुई। शैक्षणिक स्तर पर मोहनदास एक औसत छात्र ही रहे। सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अहमदाबाद से उत्तीर्ण की। इसके बाद मोहनदास ने भावनगर के शामलदास कॉलेज में दाखिला लिया पर ख़राब स्वास्थ्य और गृह वियोग के कारण वह अप्रसन्न ही रहे और कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए।

विदेश में शिक्षा और वकालत

मोहनदास अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे थे इसलिए उनके परिवार वाले ऐसा मानते थे कि वह अपने पिता और चाचा का उत्तराधिकारी (दीवान) बन सकते थे। उनके एक परिवारक मित्र मावजी दवे ने ऐसी सलाह दी कि एक बार मोहनदास लन्दन से बैरिस्टर बन जाएँ तो उनको आसानी से दीवान की पदवी मिल सकती थी। उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के अन्य सदस्यों ने उनके विदेश जाने के विचार का विरोध किया पर मोहनदास के आस्वासन पर राज़ी हो गए। वर्ष 1888 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। अपने माँ को दिए गए वचन के अनुसार ही उन्होंने लन्दन में अपना वक़्त गुजारा। वहां उन्हें शाकाहारी खाने से सम्बंधित बहुत कठिनाई हुई और शुरूआती दिनो में कई बार भूखे ही रहना पड़ता था। धीरे-धीरे उन्होंने शाकाहारी भोजन वाले रेस्टोरेंट्स के बारे में पता लगा लिया। इसके बाद उन्होंने ‘वेजीटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। इस सोसाइटी के कुछ सदस्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य भी थे और उन्होंने मोहनदास को गीता पढने का सुझाव दिया।

जून 1891 में गाँधी भारत लौट गए और वहां जाकर उन्हें अपनी मां के मौत के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद वो राजकोट चले गए जहाँ उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरू कर दिया परन्तु कुछ समय बाद उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा।

आख़िरकार सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य  स्वीकार कर लिया।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में (1893-1914)

गाँधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। ये सारी घटनाएँ उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ बन गईं और मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उनके मन में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत भारतियों के सम्मान तथा स्वयं अपनी पहचान से सम्बंधित प्रश्न उठने लगे।

दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने भारतियों की नागरिकता सम्बंधित मुद्दे को भी दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के सामने उठाया और सन 1906 के ज़ुलु युद्ध में भारतीयों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया। गाँधी के अनुसार अपनी नागरिकता के दावों को कानूनी जामा पहनाने के लिए भारतीयों को ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में सहयोग देना चाहिए।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945)

वर्ष 1914 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये। इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे और शुरूआती दौर में गाँधी के विचार बहुत हद तक गोखले के विचारों से प्रभावित थे। प्रारंभ में गाँधी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की।

चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह

बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों ने गाँधी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। चंपारण में ब्रिटिश ज़मींदार किसानों को खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे और सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे जिससे किसानों की स्थिति बदतर होती जा रही थी।  इस कारण वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। एक विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। कुल मिलाकर  स्थिति बहुत निराशाजनक थी। गांधीजी ने गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।

सन 1918 में गुजरात स्थित खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसान और गरीबों की स्थिति बद्तर हो गयी और लोग कर माफ़ी की मांग करने लगे। खेड़ा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया। इसके बाद अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया। इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गांधी की ख्याति देश भर में फैल गई और वह स्वतंत्रता आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे।

खिलाफत आन्दोलन

कांग्रेस के अन्दर और मुस्लिमों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का मौका गाँधी जी को खिलाफत आन्दोलन के जरिये मिला। खिलाफत एक विश्वव्यापी आन्दोलन था जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा किया जा रहा था। प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों के सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी। भारत में खिलाफत का नेतृत्व ‘आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस’ द्वारा किया जा रहा था। धीरे-धीरे गाँधी इसके मुख्य प्रवक्ता बन गए। भारतीय मुसलमानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिए सम्मान और मैडल वापस कर दिया। इसके बाद गाँधी न सिर्फ कांग्रेस बल्कि देश के एकमात्र ऐसे नेता बन गए जिसका प्रभाव विभिन्न समुदायों के लोगों पर था।

असहयोग आन्दोलन

गाँधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी की बढती लोकप्रियता ने उन्हें कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता बना दिया था और अब वह इस स्थिति में थे कि अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार जैसे अस्त्रों का प्रयोग कर सकें। इसी बीच जलियावांला नरसंहार ने देश को भारी आघात पहुंचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी थी।

गांधी जी ने स्वदेशी नीति का आह्वान किया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेषकर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। उनका कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहनें। उन्होंने पुरूषों और महिलाओं को प्रतिदिन सूत कातने के लिए कहा। इसके अलावा महात्मा गाँधी ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं और अदालतों का बहिष्कार, सरकारी नौकरियों को छोड़ने तथा अंग्रेजी सरकार से मिले तमगों और सम्मान को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया।

असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता मिल रही थी जिससे समाज के सभी वर्गों में जोश और भागीदारी बढ गई लेकिन फरवरी 1922 में इसका अंत चौरी-चौरा कांड के साथ हो गया। इस हिंसक घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। उन्हें गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाई गयी। ख़राब स्वास्थ्य के चलते उन्हें फरवरी 1924 में सरकार ने रिहा कर दिया।

स्वराज और नमक सत्याग्रह

असहयोग आन्दोलन के दौरान गिरफ़्तारी के बाद गांधी जी फरवरी 1924 में रिहा हुए और सन 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। इस दौरान वह स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच मनमुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ते रहे।

इसी समय अंग्रेजी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत के लिए एक नया संवेधानिक सुधार आयोग बनाया पर उसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं था जिसके कारण भारतीय राजनैतिक दलों ने इसका बहिष्कार किया। इसके पश्चात दिसम्बर 1928 के कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा। अंग्रेजों द्वारा कोई जवाब नहीं मिलने पर 31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया और कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 का दिन भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। इसके पश्चात गांधी जी ने सरकार द्वारा नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नमक सत्याग्रह चलाया जिसके अंतर्गत उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रेल तक अहमदाबाद से दांडी, गुजरात, तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य स्वयं नमक उत्पन्न करना था। इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया और अंग्रेजी सरकार को विचलित करने में सफल रहे। इस दौरान सरकार ने लगभग 60 हज़ार से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा।

इसके बाद लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप गांधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए। गांधी-इरविन संधि के तहत ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए सहमति दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया परन्तु यह सम्मेलन कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादियों के लिए घोर निराशाजनक रहा। इसके बाद गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की।

1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के स्थान पर अब ‘रचनात्मक कार्यक्रमों’ के माध्यम से ‘सबसे निचले स्तर से’ राष्ट्र के निर्माण पर अपना ध्यान लगाया। उन्होंने ग्रामीण भारत को शिक्षित करने, छुआछूत के ख़िलाफ़ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।

हरिजन आंदोलन

दलित नेता बी आर अम्बेडकर की कोशिशों के परिणामस्वरूप अँगरेज़ सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन मंजूर कर दिया था। येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसके विरोध में सितंबर 1932 में छ: दिन का उपवास किया और सरकार को एक समान व्यवस्था (पूना पैक्ट) अपनाने पर मजबूर किया। अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए अभियान की यह शुरूआत थी। 8 मई 1933 को गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की। अमबेडकर जैसे दलित नेता इस आन्दोलन से प्रसन्न नहीं थे और गांधी जी द्वारा दलितों के लिए हरिजन शब्द का उपयोग करने की निंदा की।

द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’

द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ में गांधी जी अंग्रेजों को ‘अहिंसात्मक नैतिक सहयोग’ देने के पक्षधर थे परन्तु कांग्रेस के बहुत से नेता इस बात से नाखुश थे कि जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना ही सरकार ने देश को युद्ध में झोंक दिया था। गांधी ने घोषणा की कि एक तरफ भारत को आजादी देने से इंकार किया जा रहा था और दूसरी  तरफ लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत के लिए भारत को युद्ध में शामिल किया जा रहा था। जैसे-जैसे युद्ध बढता गया गांधी जी और कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो” आन्दोलन की मांग को तीव्र कर दिया।

‘भारत छोड़ो’ स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई। इस संघर्ष में हजारों की संख्‍या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों गिरफ्तार भी कर लिए गए। गांधी जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को समर्थन तब तक नहीं देंगे जब तक भारत को तत्‍काल आजादी न दे दी जाए। उन्होंने यह भी कह दिया था कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह आन्दोलन बन्द नहीं होगा। उनका मानना था की देश में व्याप्त सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है। गाँधी जी ने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ करो या मरो (डू ऑर डाय) के साथ अनुशासन बनाए रखने को कहा।

जैसा कि सबको अनुमान था अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया। इसी दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का देहांत बाद 22 फरवरी 1944 को हो गया और कुछ समय बाद गांधी जी भी मलेरिया से पीड़ित हो गए। अंग्रेज़ उन्हें इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे इसलिए जरूरी उपचार के लिए 6 मई 1944 को उन्हें रिहा कर दिया गया। आशिंक सफलता के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाँथ सौंप दी जाएगी। गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन समाप्त कर दिया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैतिक कैदियों को रिहा कर दिया।

देश का विभाजन और आजादी

जैसा कि पहले कहा जा चुका है, द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होते-होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आज़ाद करने का संकेत दे दिया था। भारत की आजादी के आन्दोलन के साथ-साथ, जिन्ना के नेतृत्व में एक ‘अलग मुसलमान बाहुल्य देश’ (पाकिस्तान) की भी मांग तीव्र हो गयी थी और 40 के दशक में इन ताकतों ने एक अलग राष्ट्र  ‘पाकिस्तान’ की मांग को वास्तविकता में बदल दिया था। गाँधी जी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे क्योंकि यह उनके धार्मिक एकता के सिद्धांत से बिलकुल अलग था पर ऐसा हो न पाया और अंग्रेजों ने देश को दो टुकड़ों – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित कर दिया।

गाँधी जी की हत्या

30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी।

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महात्मा गाँधी की संपूर्ण जीवनी Mahatma gandhi biography hindi

महात्मा गांधी जी ने स्वाधीनता संग्राम में जिस प्रकार अपनी भागीदारी सुनिश्चित की थी वह सराहनीय है। उनके सराहनीय कार्य को पूरे देश ने समर्थन किया था, छोटी सी कद-काठी और साधारण वेशभूषा वाले इस महान व्यक्ति ने भारत देश में अपने जड़ जमा चुके अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का कार्य किया था। अनेकों ऐसे सफल आंदोलन जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव को हिला कर रख दिया था।इस लेख में आप महात्मा गांधी जी के जीवन से परिचय हो सकेंगे।

Table of Contents

महात्मा गाँधी की जीवनी – Mahatma Gandhi biography

नाम – मोहनदास करमचंद गांधी ( महात्मा गांधी )

जन्म – 2 अक्टूबर 1869 

माता – पुतलीबाई

पिता – करमचंद गांधी

पत्नी – कस्तूरबा गांधी

पुत्र – हरिलाल गांधी, मणिलाल गांधी, रामदास गांधी, देवदास गांधी।

gandhi ki biography in hindi

Mahatma Gandhi Quotes

  • मोहनदास करमचंद गांधी को आम जनता महात्मा गाँधी के नाम से जाना जाता है। यही नाम प्रचलित है।
  • राष्ट्रपिता  की उपाधि उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने दी थी।
  • महात्मा गाँधी की उपाधि उन्हें रवीन्द्रनाथ टेगौर ने दी थी।
  • उनकी मातृ भाषा गुजरती थी।
  • महात्मा गांधी का विवाह 13 साल की उम्र में कस्तूरबा माखनजी    से हुआ था।
  • महात्मा गांधी प्रतिदिन करीब 18 किलोमीटर पैदल चलते थे, यानी जिंदगी भर जितना चले उसमें पृथ्वी के दो चक्कर लग जाते।
  • पहली बार दक्षिण भारत में नागरिक अधिकारों की वकालत की।
  • 1914 – 1919 तक प्रथम विश्व युद्ध हुआ जिसमे ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय सैनिकों से शर्त आधारित सहायता मांगी। वह शर्त थी युद्ध के पश्चात वह भारत को स्वतंत्र कर देंगे। किन्तु यह केवल छलावा साबित हुआ, जिसे गाँधी जी हतास हुए और आंदोलन का मार्ग चुना।
  • 1920 में कांग्रेस की कमान संभाली।
  • 1921  में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की बागडोर को संभाला।
  • 5 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया।
  • 4 महाद्वीप 12 मुल्कों में नागरिक अधिकारों से जुड़े आंदोलनों का श्रेय उन्हें जाता है।
  • ब्रिटेन ने उनकी मृत्यु के 21 वर्ष पश्चात उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किए।

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महात्मा गाँधी जी का प्रारंभिक सत्याग्रह 1917

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  • चंपारण सत्याग्रह उस समय किसानों को एक अनुबंध 3/20 वें ( 20 कट्ठा में 3 कट्ठा ) भाग पर नील की खेती करने के लिए बाध्य किया गया , उसे तीन कठिया पद्धति कहते हैं।
  • किसान इससे छुटकारा चाहते थे इसके लिए राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गाँधी जी को आमंत्रित किया।
  • तब महात्मा गाँधी जी ने सत्याग्रह शुरू किया।
  • सरकार जो की जांच के लिए आयोग का गठन किया गया , तब इस पद्धति को समाप्त किया गया।
  • कर वसूली का 25% हिस्सा किसानों को वापस किया गया।
  • महात्मा गाँधी जी के कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर रविंद्र नाथ टैगोर ने उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी।
  • आगे चलकर ‘ राष्ट्रपिता’ की उपाधि उन्हें सुभाष चंद्र बोस द्वारा प्राप्त हुई।

महात्मा गाँधी का चंपारण सत्याग्रह –

  • सत्याग्रह की प्रेरणा महात्मा गाँधी ने डेविड थोरो के निबंध डिसऑबेडिएंस से ली थी।
  • महात्मा गाँधी जी ने सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में किया था।
  • 9 जनवरी 1918 गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए।
  • राजनीतिक गुरु गांधी जी के गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे।
  • भारत में प्रथम सत्याग्रह चंपारण बिहार में हुआ।
  • गोखले जी की सलाह पर 1915 – 1916 दो वर्ष गांधीजी ने भारत भ्रमण किया।
  • उसके बाद 1917 से 1918 के बीच तीन प्रारंभिक आंदोलनों का नेतृत्व किया।

स्वामी विवेकानंद के सुविचार एवं अनमोल वचन

आचार्य चाणक्य के अनमोल वचन

खेड़ा सत्याग्रह 1918 –

  • 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में भीषण अकाल पड़ा।
  • बावजूद उसके सरकार ने मालगुजारी प्रक्रिया बंद नहीं की।
  • अपितु 23% और वसूली बढ़ा दी , जबकि राजस्व व्यवस्था के अनुसार यदि फसल का उत्पादन कुल उत्पादन से एक चौथाई से कम हो तो किसानों का कर्ज पूरी तरह माफ कर देना चाहिए।
  • इस पर महात्मा गाँधी जी ने घोषणा की यदि सरकार गरीब किसानों का कर्ज माफ कर दे तो सक्षम किसान स्वयं  इच्छा से ‘कर’ ( टेक्स )  का भुगतान करेंगे।
  • सरकार ने गुप्त रूप से अपने अधिकारियों से कहा कि जो किसान सक्षम है उन्हीं से कर लिया जाए।

भगत सिंह के प्रेरणादायक सुविचार

चंद्रशेखर आजाद के महान सुविचार

अहमदाबाद मिल हड़ताल –

  • यह आंदोलन भारतीय कपड़ा मिल मालिकों के विरोध में था।
  • यहां पर मजदूरों के बोनस को लेकर महात्मा गाँधी जी ने भूख हड़ताल करने को कहा तथा स्वयं भी भूख हड़ताल की।
  • यह उनकी पहली भूख हड़ताल थी , उसके फलस्वरूप मिल मालिक समझौते को तैयार हो गए।
  • इस मामले को एक ट्रिब्यूनल को सौंपा गया , जिसने मजदूरों का पक्ष लेते हुए 35% बोनस देने का फैसला सुनाया।

खिलाफत आंदोलन –

  • 1919 से 1924 तक पुणे में तुर्की में खलीफा के पद की स्थापना करने के लिए अंग्रेजों पर दबाव बनाना।
  • रोलेट बिल जलियांवाला बाग के फलस्वरूप अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी ने खिलाफत आंदोलन का संगठन किया।
  • 1919 में कांग्रेस की स्थिति बेहत दयनीय थी उसकी स्थिति को सुधरने के लिए गाँधी जी ने कांग्रेस का दामन संभाला।
  • गाँधी जी ने हिन्दू मिस्लिम को एक साथ करने का सफल प्रयास किया।
  • महात्मा गाँधी जी के प्रभाव से खिलाफत तथा असहयोग आंदोलन एकमत हो गए।

सुभाष चंद्र बोस के सर्वश्रेष्ठ अनमोल वचन

सावित्रीबाई फुले कोट्स, सुविचार, एवं अनमोल वचन

खलीफा पद की समाप्ति –

  • राष्ट्रीयतावादी मुस्तफा कलाम ने 3 मार्च 1924 को समाप्त कर दिया।
  • महात्मा गाँधी जी धर्म के ऊपरी आवरण को दरकिनार करते हुए हिंदू – मुस्लिम एकता के आधार को पहचाना।
  • उसके बीच आपसी झगड़ा था लेकिन सभ्यता , मुल्क , एकता भी थी।

असहयोग आंदोलन 1920 –

  • असहयोग आंदोलन में शांति और अहिंसा को मुख्य रूप से हथियार बनया गया।
  • किन्तु जलियावाला बाग़ कांड से आहत महात्मा गाँधी जी ने यह आंदोलन वापस ले लिया।
  • श्री चिमनलाल सीतलवाड़ के अनुसार – वायसराय लॉर्ड  रीडिंग कुर्सी पर हताश बैठ गया और अपने दोनों हाथों सिर थाम कर फूट पड़ा।
  • उस आंदोलन ने ब्रिटिश राज्य की जड़ों पर प्रहार किया।
  • उद्देश्य ब्रिटिश भारत की राजनीतिक आर्थिक तथा सामाजिक संस्था का बहिष्कार करना और शासन की मशीनरी को बिल्कुल ठप करना।
  • आरंभ 1920 में राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन से।

महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन को सफल बनाने हेतु किए गए प्रयास –

  • सरकारी उपाधियां , अवैतनिक तथा अवैतनिक पदों का त्याग।
  • सरकारी उत्सवों तथा दरबारों में सम्मिलित ना होना।
  • 1919 के अधिनियम के अंतर्गत होने वाले चुनावों का बहिष्कार।
  • सरकारी एवं अर्ध सरकारी स्कूलों का त्याग।
  • सरकारी आंदोलनों का बहिष्कार।
  • विदेशी सामानों का बहिष्कार।

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आंदोलन समाप्ति एवं उसका कारण –

  • महात्मा गाँधी जी ने कहा था आंदोलन पूरी तरह अहिंसक होना चाहिए , किंतु फरवरी 1922 चौरी – चौरा कांड की वजह से इसे स्थगित कर दिया गया।

चोरी चोरा कांड –

  • यह आंदोलन १९२० से आरम्भ हुआ।
  • चौरी – चौरा उत्तर प्रदेश में , 4 फरवरी 1922 गोरखपुर के पास एक कस्बा है।
  • गाँधी जी ने आग्रह किया था की यह आंदोलन पूर्ण रूप से अहिंसक होना चाहिए।
  • यहां 4 फरवरी 1922 में भारतीय आंदोलनकारियों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी।
  • जिससे उसमें छिपे हुए 22 पुलिसकर्मी जिंदा जल गए।
  • इस घटना को चोरी – चोरा कांड के नाम से जाना जाता है।
  • इससे दुखी तो कर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।

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असहयोग आंदोलन के पश्चात –

  • नेहरू रिपोर्ट 1928 लॉर्ड बर्कन हेड भारत सचिव ने राष्ट्रीय नेतृत्व को एक ऐसा संविधान बनाने की चुनौती दी जिसे सभी स्वीकार करें 1927 के मद्रास अधिवेशन में यह तय किया गया कि अन्य राजनीतिक दलों की सहमति से संविधान का मसौदा बनाया जाए 19 मई 1928 को डॉ अंसारी की अध्यक्षता में सम्मेलन हुआ इसमें मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई जिसे संविधान का मसौदा तैयार करने का कार्य सौंपा नेहरू समिति ने 28 अगस्त 1928 को अपनी रिपोर्ट सौंपी से लखनऊ में आयोजित सभा में स्वीकार कर लिया गया

नेहरू समिति रिपोर्ट की सिफारिशें –

  • भारत को डोमीनियन स्टेट का दर्जा दिया जाए।
  • संप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को समाप्त किया जाए।
  • संयुक्त निर्वाचन प्रणाली अपनाई जाए।
  • भारत में धर्मनिरपेक्ष राज्य होगा किंतु अल्पसंख्यकों के धार्मिक एवं सांस्कृतिक हितों का पूर्ण संरक्षण होगा।
  • केंद्र एवं प्रांत में संघीय आधार पर शक्ति विभाजन।
  • भारत में उच्चतम न्यायालय की स्थापना।
  • संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना।

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साइमन कमीशन –

  • 1919 के भारत शासन अधिनियम की समीक्षा के लिए इस आयोग का गठन 1927 में किया गया।
  • अध्यक्ष  – सर जॉन साइमन थे।
  • विरोध का कारण  – इस आयोग में एक भी भारतीय नहीं था , इसलिए भारतीयों को लगता था कि इसकी रिपोर्ट में पक्षपात होगा और अंग्रेजो के हितों का ध्यान रखा जाएगा।
  • बहिष्कार का निर्णय  – कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन 1927 में एम. ए. अंसारी की अध्यक्षता में।
  • भारत आगमन – 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन मुंबई भारत पहुंचा।

साइमन कमीशन से जुड़े कुछ तथ्य –

  • जब लाहौर आंदोलन में  लाठी चार्ज में लाला लाजपतराय घायल हुए तो उन्होंने कहा – ” मेरे ऊपर लाठियों से किया गया एक एक बार अंग्रेज शासन की ताबूत की आखिरी कील साबित होगी “
  • 1928 से 1929 के बीच कमीशन दो बार भारत आया। और मई 1930 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस पर लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन पर विचार होना था।

साइमन कमीशन की प्रमुख सिफारिशें –

  • प्रांतों में द्वैध शासन खत्म हो।
  • अखिल भारतीय संघ के विचारों को ना माना जाए।
  • वर्मा को ब्रिटिश भारत से अलग किया जाए उसका अलग संविधान हो।

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महात्मा गाँधी द्वारा दांडी मार्च नमक सत्याग्रह –

  • महात्मा गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से 78 अनुयायियों के साथ 24 दिनों की पदयात्रा की ।
  • वह 5 अप्रैल को दांडी पहुंचकर 6 अप्रैल को नमक का कानून तोड़ा।
  • सुभाष चंद्र बोस ने इसकी तुलना नेपोलियन के 23 मार्च व मुसोलिनी के रोम मार्च से की थी।
  • धरसना में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व सरोजिनी नायडू , इमाम साहब मणिलाल महात्मा गाँधी जी के बेटे ने किया।
  • उत्तर पूर्व में इस आंदोलन का नेतृत्व 13 वर्षीय नागा महिला ने किया।
  • जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें ‘ रानी ‘ की उपाधि दी।
  • इन्हें नागालैंड की जॉन ऑफ आर्क भी कहा जाता है।

गोलमेज सम्मेलन –

  • साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार विमर्श के लिए 1930 में लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन हुआ।
  • सदस्य 89 सदस्यों ने भाग लिया किंतु कांग्रेस ने नहीं।

महात्मा गाँधी इरविन समझौता –

  • ब्रिटिश राजनीति कांग्रेस व गांधी जी का साथ चाहते थे इसी के चलते गांधीजी और वायसराय के बीच वायसराय इरविन समझौता हुआ।

महात्मा गाँधी इरविन समझौते का उद्देश्य –

  • इसके तहत कांग्रेस की ओर से द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने तथा सविनय अवज्ञा बंद करने की बात मान ली गई।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन –

  • 1931 में द्वितीय गोल में सम्मेलन हुआ , जिसमें महात्मा गाँधी जी ने कांग्रेस के सदस्य के रूप में भाग लिया।
  • लेकिन सांप्रदायिक समस्या के विवाद के कारण असफल रहा।

सविनय अवज्ञा आंदोलन –

  • 1930, 6 अप्रैल ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं मुख्य रूप से महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में चलाया गया।
  • यंग इंडिया समाचार पत्र लिख द्वारा सरकार से एक ग्यारह सूत्रीय मांगें की और उनके मांगे जाने पर सत्याग्रह की चर्चा बंद करने को कहा।
  • व 31 जनवरी 1930 तक का समय दिया।
  • सरकार ने मांगे नहीं मानी तब सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया।
  • प्रमुख कार्यक्रम नमक कानून तोड़ना, कर भुगतान न  करना, विदेशी सामानों का बहिष्कार, सरकारी सेवाओं का त्याग आदि।

लाल बहादुर शास्त्री के सुविचार

बाला साहब ठाकरे सुविचार

सविनय अवज्ञा आंदोलन के उद्देश्य –

  • कुछ विशिष्ट प्रकार के गैर कानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना।
  • प्रभाव- ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए सख्त कदम उठाए और गांधी जी समेत अनेक नेताओं को जेल में डाल दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन –

  • भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त 1942 को आरंभ हुआ। भारत को जल्दी आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक बड़ा फैसला था।
  • मूल मंत्र करो या मरो ( डू एंड डाई )
  • परिणाम  – यह आंदोलन भारत को स्वतंत्र भले ना करवा पाया हो , लेकिन इसका दूरगामी परिणाम निकला।
  • इसलिए इसे ” भारत की स्वाधीनता के लिए किया जाने वाला अंतिम महा प्रयास। ” कहा गया।
  • माउंटबेटन की घोषणा लॉर्ड माउंटबेटन को फरवरी 1947 में भारत का वायसराय नियुक्त किया गया।
  • तब उसने ऐलान कर दिया कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दे दी जाए लेकिन उसका विभाजन भी होगा।

महात्मा गांधी से जुड़े आंदोलनों की विशेषता –

  • सामाजिक व जमीनी स्तर से जुड़े होते थे।
  • समाज से जुड़े समस्याओं के प्रति आंदोलन का रूप हुआ करता था।
  • महात्मा गांधी के द्वारा प्रायोजित आंदोलन पूर्ण रूप से  अहिंसक ( शांति रूप से )  हुआ करते थे।
  • हिंसा होने पर उस आंदोलन को तुरंत समाप्त कर दिया करते थे।
  • आंदोलन में साधारण किसान व साधारण लोग मुख्य रूप से शामिल हुआ करते थे।

महात्मा गांधी का सामाजिक जीवन

अब हम चर्चा करेंगे महात्मा गांधी के सामाजिक जीवन पर

  • महात्मा गांधी साधन संपन्न होते हुए भी एक साधारण व्यक्ति की भांति जीवन व्यतीत करते थे।
  • महात्मा गांधी ने लंदन से वकालत की पढ़ाई की , वहां के परिवेश में रहे, किंतु भारत आने पर वह पूर्ण रूप से भारतीय जीवन ही व्यतीत किया करते थे।
  • उनके वस्त्र पहनावा – ओढावा   बड़े ही सादे और साधारण से भी साधारण हुआ करता था।
  • वह सत्य – अहिंसा के पुजारी थे।
  • उन्होंने ईश्वर-अल्लाह सभी को समान रूप से स्वीकार किया, और सब को सुखी संपन्न रहने की प्रार्थना की।

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सामाजिक बराबरी के पक्षधर –

  • महात्मा गांधी समाज में ऊंच-नीच के बंधन को तोड़ना चाहते थे।
  • उन्होंने कई आंदोलनों में ऊंच-नीच भेद – भाव छुआ – छूत आदि को त्याग कर सबको एक समान रूप से स्वीकार करने की बात कही।

बलि प्रथा पर रोक –

महात्मा गांधी सत्य व अहिंसा के पुजारी थे , इसलिए वह समाज में फैले बाह्य आडंबर आदि को और स्वीकार करते हुए उस पर आपत्ति भी दर्ज की।

एक समय की बात है गांधीजी चंपारण जिले में आंदोलन के दौरान रुके हुए थे , वहां उन्होंने देखा के एक जनसमूह देवी माता की पूजा करने के लिए मंदिर की ओर जा रहा था।

उस भीड़ में से एक बकरे की आवाज बड़े जोर से आ रही थी।  वह बकरा कराह रहा था यह सुनते हुए गांधी जी ने आश्चर्य किया कि यह भीड़ पूजा करने के लिए जा रही है और बकरे की आवाज आ रही है। इस पर आश्चर्य करते हुए उन्होंने अपने सहयोगी साथी से जानकारी मांगी। गाँधी जी के सहयोगी ने बताया कि वह काली माता की पूजा करने जा रहे हैं , और उनकी प्रसन्नता के लिए बकरे की बलि दी जाने वाली है।

इस पर महात्मा गांधी जी तुरंत मंदिर पहुंचे और उन्होंने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा ! कि ” यदि काली माता बकरे की बलि से प्रसन्न होती है  , तो मनुष्य रूप से में बलि देने पर और प्रसन्न होंगी , इसलिए बकरे के स्थान पर मेरी बली स्वीकार की जाए ! ” सभी ने आश्चर्य किया और वास्तविकता को समझते हुए गांधी जी से क्षमा मांगते हुए बकरे को आजाद कर दिया।

इस प्रकार की अनेक घटनाओं से पता चलता है कि वह धार्मिक बाहरी आडंबर ओं के विरोधी थे।

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1 thought on “महात्मा गाँधी की संपूर्ण जीवनी Mahatma gandhi biography hindi”

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महात्मा गांधी की जीवनी – Biography of mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma Gandhi in Hindi): भारत महान व्यक्ति की महान भूमि है. भारत की भूमि ऋषियों, संतों, कवियों, लेखकों, दार्शनिकों, सुधारकों, परोपकारियों और योग महापुरुषों को युगों-युगों तक लाभान्वित करके धन्य रही है. इस भूमि के बुरे समय में कई सारे महान व्यक्तियों का जन्म हुआ है. उन महापुरुषों में से एक अमर, परोपकारी, युग-निर्माता महात्मा गांधी हैं. तो चलिए महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma gandhi in Hindi) के बारे में विस्तार रूप से जानते हैं.

प्रस्तावना     

देश और राष्ट्र के बुरे समय में महापुरुष प्रकट होते हैं. व्यक्तिगत सुख और आत्मग्लानि को अनदेखा करते हुए, वे सभी महापुरुष मानव समाज के हित के लिए स्वयं को समर्पित करते हैं. कई प्रतिकूल वातावरण और स्थितियों में, वे अपने जीवन के साथ आगे बढ़ते हैं. निस्वार्थ सेवा, बलिदान और समर्पित जीवन के लिए, उन्हें सार्वजनिक रूप से महापुरुष कहा जाता है. अपने स्वयं के सिद्धांतों और आदर्शों के आधार पर, वे जन-कल्याण को जीवन के संकल्प के रूप में लेते हैं. लंबे समय तक विदेशी शासन में रहे भारतीयों का सार्वजनिक जीवन बाधित हो गया था. भारत के इतने बुरे समय में एक महान व्यक्ति का जन्म हुआ. वे भारतमाता के एक योग्य संतान, जो सत्य और अहिंसा के संरक्षक, शांति और दोस्ती के सर्वोच्च साधक और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेता महामहिम महात्मा गांधी थे. यह आदर्श पुरुष पूरे भारत में ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में प्रतिष्ठित है. वह उसी समय एक ईमानदार राजनीतिज्ञ, प्रख्यात समाज सुधारक, प्रख्यात लोक सेवक, कुशल वकील और मजबूत मानवतावादी नेता थे.

संक्षिप्त जीवनी

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था. उनका असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था. लेकिन दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान, उन्हें ‘महात्मा गांधी’ के रूप में जाना जाता था. उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और  माता का नाम पुतुलीबाई गांधी था. उनका परिवार वैष्णव धर्म का अनुसरण करता था. गांधी कम उम्र से ही अपने धार्मिक माता-पिता से प्रभावित थे. वह अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थे. इसलिए उनका बचपन काफी आनंद में बीता था. उस समय समाज में बाल विवाह का प्रचलन था. महज तेरह साल की उम्र में उन्होंने कस्तूरबा से शादी कर ली. राजकोट में स्कूल से शिक्षा समाप्त करने के बाद, उन्होंने सत्रह वर्ष की आयु में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद वह लंदन चले गए, जहाँ उन्होंने अपनी कानून की शिक्षा पूरी की और भारत लौट आए. भारत में कुछ दिनों की वकालत करके, वह दक्षिण अफ्रीका चले गए. वह दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे कर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए. आजादी के कुछ महीने बाद 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे नाम के एक व्यक्ति ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी. इस प्रकार 79 वर्ष की आयु में उनका जीवन समाप्त हो गया था.

mahatma gandhi ki jivani

दक्षिण अफ्रीका में गांधी   

उस समय, बहुत सारे भारतीय दक्षिण अफ्रीका में रह रहे थे. गांधीजी ने 1893 में दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले एक भारतीय व्यापारी के पक्ष में मुकदमा लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की. अपने प्रवास के दौरान, उन्होंने देखा कि गोरे लोग अश्वेत अफ्रीकियों और भारतीयों से घृणा कर रहे थे. उनकी नस्लवादी नीतियों ने गांधीजी को बहुत परेशान किया था. अफ्रीकियों के खिलाफ श्वेत सरकार का उत्पीड़न और दुराचार धीरे धीरे बढ़ने लगा था. इसलिए अफ्रीकियों और भारतीयों को संगठित करके, गांधीजी ने सत्य और अहिंसा के माध्यम से गोरों के खिलाफ एक आंदोलन चलाया. गांधीजी द्वारा इस तरह के आंदोलन को उस दिन के बाद से ‘सत्याग्रह’ के रूप में जाना जाता है. गांधीजी इस आंदोलन में सफल रहे. तब भारतीयों ने उन्हें “महात्मा” का ताज पहनाया. दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह ने बाद में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया. इससे दुनिया के राजनीतिक इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई.

स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे

गांधीजी के भारत लौटने से बहुत पहले, अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे. उस समय की ब्रिटिश सरकार के अन्याय और अत्याचार के कारण भारतीय बहुत दयनीय जीवन जी रहे थे. इसलिए गांधीजी ने भारतीय लोगों का प्रतिनिधित्व किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई. बिहार के चंपारण में उत्पीड़ित किसानों का आंदोलन, अहमदाबाद में मजदूर आंदोलन, पंजाब के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और गांधीजी ने इन सभी आंदोलनों का नेतृत्व किया था. उन्होंने अहमदाबाद के पास साबरमती नदी के पास एक आश्रम स्थापित किये और उस ‘साबरमती’ आश्रम से सत्याग्रह की रूपरेखा तैयार की. उनके मजबूत नेतृत्व में, 1921 में असहयोग आंदोलन, 1930 में नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का गठन किया गया. उन्हें इसके लिए बार-बार कैद किया गया, लेकिन वह निराश नहीं हुए और न ही अपने रास्ते से भटक गए. अपने दुःख-दर्द से भरे शरीर और अपनी पत्नी के खोने के दुःख के बावजूद, वह अपने मार्ग में बने रहे. जब उन्हें कैद किया गया था, तब भी उनके इशारे और प्रेरणा पर सत्याग्रह जारी रहा. आंदोलन के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार की नींव कमजोर पड़ने लगी. आखिरकार, 15 अगस्त 1947, को भारत को स्वतंत्रता मिली.

जीवन के सिद्धांत और आदर्श

महात्मा गांधी का जीवन दर्शन उच्चतम क्रम का था. वह सत्य और अहिंसा के पुजारी थे,  बलिदान और निस्वार्थता के प्रतीक थे. चरित्र निर्माण उनके जीवन की कुंजी थी. समानता और दोस्ती के साथ वह जीवन के लिए प्रसिद्ध थे, उनकी राय में, सभी मानव जाति, धर्म या रंग की परवाह किए बिना समान हैं. वह कर्म में विश्वास करते थे. इसलिए, उन्हें एक कार्यकर्ता के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है. उनके आदर्श कुटीर उद्योग के विकास और आत्मनिर्भरता थे. वह बड़े या छोटे, अमीर या गरीब, के साथ भेदभाव से दूर थे. धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव उनके जीवन के अंतिम लक्ष्य थे. गांधीजी के सरल और सहज जीवन यात्रा, निर्भरता और चरित्र के लिए हमेशा याद किया जाता है.

महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद, भारत ने एक नि: स्वार्थ लोक सेवक को खो दिया. हम आज भी उनके योजनाबद्ध राम राज्य  से बहुत दूर हैं. हालांकि महात्मा गांधी के भौतिक शरीर नहीं है फिर भी उनके आदर्श भारतीय लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं. उनकी अहिंसक सोच और सिद्धांत, यथार्थवादी विचार और न्यायसंगत निर्णय आज भी भारत के लोगों को प्रेरित कर रहा है. अतिवादी राष्ट्रवाद और निम्न नस्लीय दृष्टिकोण गांधीवाद के विपरीत हैं. यदि हम सभी भारतीय सत्य और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, तो गांधीजी की आत्मा को शांति मिलेगी.

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ये था हमारा लेख महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma Gandhi in Hindi ). उम्मीद करता हूँ की आपको पसंद आया होगा. अगर आपको गांधीजी की बारे में और कुछ पता है, तो हमे comment करके बताएं. मिलते हैं.

1 thought on “महात्मा गांधी की जीवनी – Biography of mahatma Gandhi in Hindi”

Bohot lamba tha agee se please thora chota likhiyega .by the way thanks for your essay.

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महात्मा गांधी की जीवनी, जीवन परिचय और निबंध : Mahatma Gandhi Biography

महात्मा गांधी की जीवनी (Mahatma Gandhi Ki Jivani), जीवन परिचय और निबंध : Mahatma Gandhi Biography in Hindi , मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें राष्ट्रपिता और बापू जैसे कई नामों से जाना जाता है, भारत के महान पुरोधा और राजनेता थे और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के महान क्रांतिकारी, जिन्होंने अपने विचारों से पूरी दुनिया में एक विशेष पहचान बनाई। अहिंसा, परमो धर्म और सत्य, जैसे शक्तिशाली विचारो से भारत को स्वतंत्रता और स्वराज्य प्राप्त करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, राष्ट्रपिता का दर्जा सबसे पहले सुभाष चंद्र बोस ने गांधी को दिया था क्योंकि उनका मानना ​​​​था कि गांधीजी ने ही स्वतंत्रता आंदोलन को एक तरह से पुख़्ता दिशा दी थी।

महात्मा गांधी की जीवनी | Mahatma Gandhi Biography

महात्मा गांधी की जीवनी

Mahatma Gandhi Biography in Hindi

गांधी जी ने भारत की आजादी की राह पक्की करने के लिए जीवन में कई अनावश्यक चीजों का त्याग किया था, उन्होंने ये सीख़ भगवद गीता, बाइबिल और बुद्ध चरित जैसी किताबों से प्राप्त किया, जिससे वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सत्य और त्याग सबसे महत्वपूर्ण धर्म है। गांधीजी अहिंसा के पुजारी थे, उनका मानना ​​था कि अगर कोई आपको एक गाल पर थप्पड़ मारे तो वह अपना दूसरा गाल उसके आगे रख दें, उनका मानना ​​था कि ऐसा करने से आपके विरोधी का दिमाग अक्सर बदल जाता है, उनका यह भी मानना था कि भले ही कोई आपके साथ नीच व्यवहार करता हो, फिर भी आपको उसके साथ सम्मान से पेश आना चाहिए।

विदेश में बैरिस्टर (वकालत) की शिक्षा प्राप्त करने के बाद, वे दक्षिण अफ्रीका में लंबे समय तक रहे, अपने काम के साथ-साथ उन्होंने कई सत्याग्रह आंदोलन भी किए और भारतीय प्रवासियों के अधिकारों के उल्लंघन को रोका तथा उन्हें सामाजिक और राजनीतिक अधिकार दिलाये।

महात्मा गांधी की जीवनी

गांधी का परिवार पोरबंदर से जुड़ा था, उनके दादा उत्तम चंद गांधी या ओता गांधी को किसी कारण से पोरबंदर जाना पड़ा और जूनागढ़ राज्य में शरण लेनी पड़ी, उत्तम चंद के पांचवें पुत्र करमचंद गांधी या कबा गांधी थे जो पोरबंदर में दीवान के पद पर कार्यरत थे। जिनका चार बार विवाह हुआ था, जिनमें से अंतिम पत्नी पुतलीबाई की एक बेटी और तीन बेटे थे, जिनमें से महात्मा गांधी अंतिम थे।

गांधी का प्रारंभिक जीवन

महात्मा गांधी का जन्म 02 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में हुआ था। उनका बचपन पोरबंदर में बीता, और वही से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की, उनका स्कूली जीवन एक औसत छात्र का ही था, बचपन में वे पढ़ाई में इतने अच्छे नहीं थे। और बहुत ही शर्मीले स्वाभाव के थे। सात साल की उम्र में, गांधी के पिता करमचंद को राजकोट के स्थानीय दरबार में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसके बाद उनकी आगे की शिक्षा राजकोट में हुई। उन्होंने राजकोट से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। महात्मा गांधी की शादी बचपन में ही 13 साल की उम्र में हो गई थी। उनकी पत्नी का नाम कस्तूरबाई (कस्तूरबा गांधी) था, उनकी पत्नी पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन स्वाभाविक रूप से सीधी, स्वतंत्र, मेहनती और बहुत कम बोलने वालो में से थीं। गांधी के अंदर देशभक्ति की चाह जगी थी, हालाँकि उन्हें बचपन में स्वराज शब्द का अर्थ भी नहीं पता था, लेकिन उन्हें पता था कि आज़ादी क्या है।

महात्मा गाधी का जन्म एक वैष्णव परिवार में हुआ था, उनके माता-पिता धर्म और पूजा के प्रति बहुत सक्रिय थे, हालाँकि गांधीजी को बचपन में पूजा पाठ में अधिक रूचि नहीं थी, लेकिन उनके शर्मीले व्यक्तित्व और भूतों के डर की वज़ह से  एक दासी के कहने पर राम नाम का जाप शुरू किया। दासी का, बचपन में बोया गया राम नाम का बीज उनको अंत तक काम आया और वह उनके पास रहा तथा उनका मन हमेशा राम नाम की भक्ति में ही लीन रहा।

मैट्रिक के बाद, उन्होंने आगे की शिक्षा के लिए भावनगर के शामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन उनकी इच्छा वहां पड़ने की नहीं थी, अपने पिता के पुराने मित्र की सलाह पर, उन्होंने विदेश में आगे की पढ़ाई करने का फैसला किया, 16 साल की उम्र में उनके पिता करमचंद की मृत्यु हो गई। बीमारी के कारण मरे काबा गांधी का व्यक्तित्व  ईमानदार, सच्चे, उदार लेकिन गुस्सैल व्यक्ति का था। माँ एक घरेलु तथा आध्यात्मिक प्रवृति की महिला थीं।

महात्मा गांधी की लन्दन में शिक्षा और वापसी

आगे की पढ़ाई के लिए,  मोहनदास 1888 में मुंबई बंदरगाह से लंदन के लिए रवाना हुए। वहां जाने के बाद शुरू में उन्हें, अंग्रेजी भाषा की अधिक समझ न होने और भोजन में मांस मदिरा न खाने की माँ की हिदायत की वजह से कई दिनों तक भूखा और परेशान रहना पड़ा। काफी दूर पर उन्हें शाकाहारी भोजन की व्यवस्था मिली। यहाँ तक की बुनियादी जरूरतों के लिए भी भाषा की कम समझ की वज़ह से बहुत परेशानी उठानी पड़ी। 

विदेश में रहते हुए उन्होंने अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा सीखा, फ्रेंच यूरोप की राष्ट्रीय भाषा थी, इसलिए आम बोलचाल में वहां इसका इस्तेमाल किया जाता था, और अपनी बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने एक विदेशी दोस्त के कहने पर भगवद गीता का पाठ किया, जिसका उन पर बहुत ही उत्कृष्ट प्रभाव पड़ा और भगवत गीता उनके लिए सबसे अच्छी मार्गदर्शक पुस्तक बन गयी।

इसके अलावा, उन्होंने अर्नोल्ड की बुद्ध चरित “द लाइट ऑफ एशिया” पढ़ी, जिसके बाद उनकी रुचि धर्म और भारतीय संस्कृति में हो गई। जिससे वह बहुत प्रभावित हुए और उन्हें पता चला कि त्याग ही वास्तविक धर्म है।

10 जून 1891 को गांधी बैरिस्टर की परीक्षा पास कर बैरिस्टर कहलाए और भारत लौट आए। 

अफ्रीका की यात्रा

महात्मा गांधी को अपनी वकालत के दौरान दादा अब्दुल्ला और अब्दुल्ला नामक एक मुस्लिम व्यापारिक संस्था के मुकदमे के संदर्भ में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा करनी पड़ी थी। इस यात्रा के दौरान गांधीजी को भेदभाव और रंगभेद का सामना करना पड़ा। आपको बता दें कि गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में सफल होने वाले पहले भारतीय मानव थे जिन्हें अपमानजनक तरीके से ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। यहां उनके साथ भी अश्वेत नीति के तहत बहुत बुरा व्यवहार किया गया। जिसके बाद गांधी जी के धैर्य की सीमा टूट गई और उन्होंने इस रंगभेद के खिलाफ लड़ने का फैसला किया।

जब गांधीजी ने रंगभेद के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया, रंगभेद के अत्याचारों के खिलाफ, गांधी ने यहां रहने वाले प्रवासी भारतीयों के साथ 1894 में नटाल इंडियन कांग्रेस का गठन किया और इंडियन ओपिनियन अखबार निकालना शुरू किया।

इसके बाद 1906 में दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों के लिए अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया, इस आंदोलन को सत्याग्रह का नाम दिया गया।

उन्होंने अपने जीवन के मूल्यवान 21 वर्ष अफ्रीका में बिताए, जहां उन्होंने गहरा राजनीतिक, कानूनी और नेतृत्व का अनुभव प्राप्त किया।

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शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं आती है, यह एक अदम्य इच्छा शक्ति से आती है –  महात्मा गांधी

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भारत में गांधी के प्रमुख आंदोलन

वैसे गांधी जी ने कई आंदोलन किए, उन्होंने जीवन भर किसानों, मजदूरों और अन्य वर्गों के लिए कई आंदोलन किए, जिनमें से कई प्रमुख आंदोलनों की सूची इस प्रकार है –

  • चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा सत्याग्रह (1917 से 1918)
  • खिलाफत आंदोलन (1919 में)
  • असहयोग आंदोलन (1920 से 1922)
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी मार्च (1930 में)
  • भारत छोड़ो आंदोलन (1942 में)

1. चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा में गांधी का सत्याग्रह

1917 से 1918 तक गांधीजी ने तीन मुख्य सत्याग्रह आंदोलन किए, जिसके दौरान उन्हें अपार सफलता मिली, जिसमें उन्होंने चंपारण (बिहार), अहमदाबाद और खेड़ा (गुजरात) में आंदोलन किए, जो उन स्थानों के नाम पर थे।

सबसे पहले, चंपारण का सत्याग्रह आंदोलन , जिसके लिए गांधी जी शुरू में तैयार नहीं थे, लेकिन राजकुमार शुक्ल के बार-बार कहने के बाद, वे आखिरकार चंपारण में आंदोलन करने के लिए सहमत हुए, चंपारण जो कि बिहार में है, जहां तिनकठिया का नियम अंग्रेजों ने लगा रखा था, जिसके दौरान किसानों के लिए अपने 3/20 हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य कर दिया गया था, इससे किसानों को बहुत नुकसान हो रहा था।

फिर गांधीजी ने चंपारण में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया जिसे चंपारण आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है, उन्होंने बहुत ही शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन किया और अंग्रेजों को आश्वस्त कर अपनी बात रख कर उसको मनवाया और आंदोलन में सफलता पायी।

अहमदाबाद में मिल मजदूरों और मालिकों के बीच बोनस को लेकर गहन विवाद हो रहा था, जिसके समाधान के लिए मजदूरों ने गांधीजी से मदद की गुहार लगाई और गांधीजी इसके लिए राजी हो गए। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान महंगाई बढ़ गई थी, लेकिन मिल मजदूरों की मजदूरी नहीं बढ़ी थी और मजदूरों को बोनस भी नहीं दिया जा रहा था। फिर एक छोटे से अनशन के बाद गांधीजी को सफलता मिली और मिल मजदूरों को उनका हक मिला। पहले से मिल रहे बोनस, जो की मिल मालिको के लिए अधिक राशि थी, से भी अधिक दिलवाया।

खेड़ा में फसल नष्ट होने के बाद भी अंग्रेजों द्वारा जबरन किसानों से कर वसूल किया जा रहा था, जो गांधीजी को पसंद नहीं आया और उन्होंने सरकार के कर वसूलने के नियमों की अवहेलना करने का फैसला किया और उस आंदोलन में सफल भी हुए।

उपरोक्त तीन आंदोलनों ने गांधी जी को एक विशेष पहचान दी और अब वे भारत के लोगों की नजर में एक सम्मानित व्यक्ति बन गए थे तथा गांधी जी देश के लोगों के दिल के करीब आ गए थे।

2. खिलाफत आंदोलन

खिलाफत आंदोलन एक मुस्लिम बहुल आंदोलन था, जब प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्की के ख़लीफ़ा  का प्रभुत्व कमजोर हो रहा था, तब भारत से आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस, खलीफा का समर्थन करना चाहता था।

इसके लिए मुस्लिम समुदाय के लोगो ने गांधीजी से खिलाफत आंदोलन  को व्यापक रूप से फैलाने और आंदोलन का समर्थन करने का आग्रह किया।

इसने गांधी को मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी जगह बनाने का मौका दिया, इस आंदोलन के माध्यम से गांधीजी ने सभी मुसलमानों से अनुरोध किया कि वे अपने सभी सम्मान और पदक अंग्रेजों को वापस कर दें और ब्रिटिश सरकार का विरोध करें।

3. गांधी का असहयोग आंदोलन

देश की जनता के सहयोग के बिना किसी भी सरकार का काम कर पाना असंभव है, जब भारत में रॉलेट एक्ट पारित हुआ, तो लोगों में बहुत आक्रोश था। ब्रिटिश सरकार के बहिष्कार की बात चल रही थी, उस समय पंजाब के जलियांवाला बाग में एक शांति सभा का आयोजन किया गया था, जिस पर अंग्रेजों ने गोलियां चलाईं और कई लोगों की जान चली गई।

बापू ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया, जिसका मूल उद्देश्य बिना किसी हिंसा के ब्रिटिश सरकार का बहिष्कार करना था।

गांधीजी और लोगों का मानना ​​था कि ब्रिटिश सरकार हम पर शासन इसलिए कर पा रही है क्योंकि उन्हें भारतीयों का समर्थन मिल रहा है, इसलिए उनका मानना ​​था कि अगर बिना किसी हिंसा के ब्रिटिश सरकार का सहयोग बंद कर दिया गया, तो हमें आजादी मिलेगी, बस क्या था।

इस आंदोलन के दौरान लोगों ने सक्रिय भाग लेना शुरू कर दिया, लोगों ने सरकारी कार्यालयों से इस्तीफा दे दिया, बच्चों ने अंग्रेजी स्कूल से अपना नाम काटवा लिया और अंग्रेजी कपड़ों का बहिष्कार किया और खादी के कपड़े पहनने लगे।

आंदोलन बहुत शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था कि अचानक पता चला कि उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा नामक इलाके में जन आंदोलन हिंसक हो गया है, जहां कुछ लोगों ने एक पुलिस मुख्यालय में आग लगा दी, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए। इस हिंसक कार्रवाई से गांधीजी को गहरा दुख पहुंचा और 1922 में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।

4. गांधी जी का सविनय अवज्ञा आन्दोलन

यह आंदोलन गांधीजी का एक और महत्वपूर्ण आंदोलन था, जो असहयोग आंदोलन के कई साल बाद शुरू हुआ था।

12 मार्च 1930 को गांधी जी और उनके आश्रम के 78 अन्य साथियों ने साबरमती आश्रम से दूर दांडी गाँव की ओर पैदल यात्रा निकाली, जहाँ गांधी ठीक 6अप्रैल 1930 को दांडी गाँव पहुँचे, उन्होंने अपनी मुट्ठी में समुद्र के पानी के वाष्पीकरण से बने नमक को उठाकर सरकार के आदेशों की अवज्ञा की।

लगभग 24 दिनों तक चली इस यात्रा में हजारों की संख्या में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और बिना कोई टैक्स दिए नमक का उत्पादन कर इस यात्रा को गांधी जी ने सफल बनाया।

इस आंदोलन में 70 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

उसी समय, भारतीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी, उन्होंने कांग्रेस में गांधी के अहिंसक सत्याग्रह आंदोलन के उद्देश्य को समायोजित किया और उनके नेतृत्व में, कई आंदोलनों और बैठकों की, अंततः अंग्रेजों को अपने घुटनों पर आने के लिए मजबूर होना पड़ा। और सविनय अवज्ञा आंदोलन सफल रहा।

सविनय अवज्ञा की लोकप्रियता को देखकर ब्रिटिश सरकार डर गई और इस तूफान को रोकने के लिए उसने 5 मार्च 1931 को गांधी और लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता किया जिसे गांधी-इरविन पैक्ट कहा जाता है।

इस राजनीतिक समझौते के तहत सविनय अवज्ञा आंदोलन को सशर्त समाप्त कर दिया गया था, जिसमें ब्रिटिश सरकार को उन सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करना था जिनके खिलाफ हिंसा का कोई अपराध नहीं था।

5. भारत छोड़ो आंदोलन

भारत छोड़ो आंदोलन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान शुरू किया गया था, हालांकि यह युद्ध विश्व स्तर पर हो रहा था, लेकिन यह भारत की आजादी के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। जहां अंग्रेजो की दमनकारी नीतिया लोगों का शोषण कर रही थी और दूसरी ओर वह विश्व युद्ध के लिए भारतीयों का इस्तेमाल भी कर रही थी।

इस समय गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन की मांग की थी और गांधीजी ने भारत के लोगों से अंग्रेजों को कोई भी सहयोग नहीं देने की मांग की, क्योंकि यही उचित समय था जब अंग्रेजों पर दबाव डालकर अपनी बातों को मनवाया जा सकता  जाता था। गांधीजी ने अंग्रेजों को एक संकेत दिया था कि भारत के लोग युद्ध में सहयोग करेंगे, केवल यह सुनिश्चित किया जाये कि युद्ध के बाद ब्रिटिश, भारत से चले जाएंगे और भारत में पूर्ण स्वराज होगा।

क्योंकि किसी बड़े आंदोलन को करने में समय अधिक लग जाता था और उसमे लोगो का उत्साह, आंदोलन के सफ़ल होने तक, समय के साथ कम पड़ जाता था। परन्तु भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए बापू ने लोगों से करो या मरो का आह्वाहन किया।

इस आंदोलन का फायदा यह हुआ कि दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति तक अंग्रेजों को समझ आ गया था कि अब भारत जग चुका है, फिर अंग्रेजों ने देश को अपनी सत्ता सौंप दी। और इस तरह भारत अंग्रेजों की ग़ुलामी से आज़ाद हुआ।

गांधी की मृत्यु

30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या कर दी गई थी। बापू को नाथूराम गोडसे, नामक एक आदमी ने गोलियों से भूनकर मार डाला था, हालांकि नाथूराम गोडसे को बाद में अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन गांधी की मौत देश के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। जिसकी भरपाई असम्भव थी असंभव है और असंभव ही रहेगी।

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महात्मा गांधी का जीवन परिचय | Mahatma Gandhi Biography in Hindi

महात्मा गांधी का जीवन परिचय | mahatma gandhi biography in hindi | mahatma gandhi ki jivani | महात्मा गांधी का जन्म, मृत्यु, पिता का नाम, माता का नाम, बेटों के नाम, बेटी का नाम.

भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने में महात्मा गांधी का अहम योगदान था। वे सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक थे। विभिन्न जाति और धर्म वाले भारत की जनता में एकता स्थापित करने तथा उनमें राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न करने में महात्मा गांधी की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे मरते दम तक हिंदू मुस्लिम एकता की कोशिश करते रहे। सत्य और अहिंसा का समर्थक होने के कारण ही उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई थी। भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने में उनकी अहम भूमिका को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई थी। इस पोस्ट में हम महात्मा गांधी की जीवनी तथा इनका स्वतंत्रता आंदोलन में क्या-क्या योगदान रहा, पढ़ेंगे। इसमें हम यह भी पढ़ेंगे कि इनकी छूत वर्गों (non-touchable classes) के प्रति क्या सोच थी तथा इनके  बी आर अंबेडकर के साथ संबंध कैसे थे।

महात्मा गांधी का पारिवारिक परिचय

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ईस्वी में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। यह एक बनिया परिवार से संबंध रखते थे। इनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर, राजकोट और कुछ काठियावाड़ी राज्यों के दीवान थे। इनकी माता पुतलीबाई एक कट्टर धार्मिक महिला थी। महात्मा गांधी के ऊपर उनकी माता का बहुत प्रभाव था। 13 वर्ष की आयु में इनका विवाह कस्तूरबा गांधी के साथ हो गया। विवाह के समय कस्तूरबा गांधी की आयु 14 वर्ष थी। महात्मा गांधी के चार पुत्र थे – हरिलाल, मणिलाल, देवदास, रामदास। इनकी कोई बेटी नहीं थी।

शैक्षिक परिचय

महात्मा गांधी की प्रारंभिक शिक्षा काठियावाड़ के हाई स्कूल में हुई। नवंबर 1987 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। जनवरी 1988 में उन्होंने भावनगर के सामल दास कॉलेज में एडमिशन लिया और अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई कंप्लीट की। उच्च शिक्षा के लिए लंदन और इनर टेंपल गए। लंदन में उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री हासिल की। लंदन से वापस आने के बाद उन्होंने मुंबई हाईकोर्ट में वकालत करना शुरू किया। क्वकालत के दौरान अपने मिशन के लिए वह नटाल और तत्पश्चात ट्रांसवाल सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने के लिए प्रवेश लिया और वहीं पर बसने का इरादा किया।

महात्मा गांधी का दक्षिण अफ्रीका प्रस्थान

ब्रिटेन में कानून की शिक्षा लेने के बाद में महात्मा गांधी वकालत करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। दक्षिण अफ्रीका के विभिन्न ब्रिटिश उपनिवेशों में भारतीयों की स्थिति ठीक नहीं थी। उन्हें नस्लवाद ,भेदभाव, और हीन भावना का शिकार होना पड़ता था तथा  अफ्रीकी  व अश्वेत एशियाई लोगों के साथ में गंदी बस्तियों में रहना पड़ता था। उन्हें 9:00 PM बजे के बाद घर से निकलने की अनुमति नही थी। उन्हें सार्वजनिक फुटपाथ पर भी चलने की अनुमति नहीं थी।

उन्होंने सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह चलाएं तथा नस्लवादी अधिकारियों के विरुद्ध संघर्ष किया। ट्रांसवाल सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी के रूप में नामित होने के बाद ट्रांसवाल ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की महात्मा गांधी ने नीव डाली। वे इस संगठन के सेक्रेटरी और मुख्य कानूनी सलाहकार बने। वर्ष 1903 में इंडियन ओपिनियन और फिनिक्स बस्ती की नई डाली। 1906 में स्ट्रेचर वाही कोर का नेतृत्व किया। एशियाई विरोधी कानून, 1906 के विरोध में आंदोलन किया। अधिनियम वापसी के बारे में प्रतिनिधित्व मॉडल में इंग्लैंड गए।

अफ्रीका में सविनय अवज्ञा आंदोलन

एक्ट के विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। जनरल स्मार्ट्स और गांधी के मंदिर वार्ता हुई और समझौता हुआ। बाद में स्मार्ट्स ने समझौते को ना मंजूर कर दिया और कानून वापस लेने के वायदे से मुकर गये। सविनय अवज्ञा आंदोलन को पुन चालू किया। कानून तोड़ने के अपराध में इन्हें दो बार बंदी बनाया गया। वर्ष 1909 में पुणे इंग्लैंड में ब्रिटिश जनता के समक्ष भारतीय पक्ष प्रस्तुत करने गए। ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और उनके साथ समझौता करना पड़ा।  इस प्रकार उन्होंने  अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों को की रक्षा की।  महात्मा गांधी 1894 से लेकर 1915 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे।

महात्मा गांधी का भारत में आगमन

गांधीजी 40 वर्ष की आयु में 1915 में भारत लौटे। पूरे 1 वर्ष तक उन्होंने देश का भ्रमण किया और भारतीय जनता की दशा को समझा। फिर उन्होंने 1916 में अहमदाबाद के पास साबरमती आश्रम की स्थापना की। उनके मित्रों और अनुयायियों ने वहां रहकर सत्य तथा अहिंसा को समझा  तथा इसका प्रयोग भी करना शुरू किया।

उनके द्वारा चलाए गए आंदोलन

महात्मा गांधी ने भारत में आकर सर्वप्रथम अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। सन 1917 में चंपारण की खेती और श्रमिकों की समस्या को हल किया। 1918 में खेड़ा अकाल और अहमदाबाद में मिल हड़ताल की समस्या के समाधान में मदद की और कार्यकर्ता भर्ती अभियान चलाया। सन 1919 में रोलर एक्ट के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया। जब वे दिल्ली जा रहे थे तो रास्ते में कोसी में गिरफ्तार कर लिये गए । उन्हे मुंबई वापस भेज दिया गया।

सन 1919 में ही पंजाब में अशांति फैली और पंजाब की जनता के ऊपर  ब्रिटिश अधिकारियों के द्वारा  अत्याचार किया गया। इसकी जांच करने के लिए कांग्रेस के द्वारा एक कमेटी बनायी गयी। इस कमेटी के वे सदस्य बनाए गए । खिलाफत आंदोलन में भाग लिया। 1920 में असहयोग आंदोलन आरंभ किया। 1921 में लोर्ड रीडिंग के साथ साक्षात्कार हुआ। सन 1921 में हुए कांग्रेस अधिवेशन में मुख्य कार्य संचालक बनाए गए। 1922 में चोरी चोरा आंदोलन के कारण सविनय होगा आंदोलन स्थगित कर दिया। मार्च 10 1922 गिरफ्तार हुए और 6 वर्ष के साधारण कारावास की सजा हुई।

महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह

गांधी जी ने अपनी सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग भारत में 1917 में किया। ब्रिटिश अधिकारी किसानों से जबरदस्ती नील की खेती कराते थे तथा किसानों को अपनी उपज कम दामों पर बेचने के के लिए विवश करते थे। अंग्रेज अधिकारियों के ऐसे रूपों के चलते किसान बहुत परेशान थे। महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत में लौटने पर किसानों ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह के बारे में सुना था। किसान अपनी समस्या को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में उन्हें सफलता मिली। यह ‘महात्मा गांधी का जीवन परिचय’ में उनका प्रथम आन्दोलन है।

अहमदाबाद में मजदूरों की हड़ताल

1917 में अहमदाबाद के मील मालिकों तथा श्रमिकों के बीच में विवाद चल रहा था। मजदूर मालिकों से अपनी मजदूरी बढ़ाने के लिए कह रहे थे। लेकिन मील मलिक उनकी मजदूरी नहीं बढ़ा रहे थे।  मजदूर लोग महात्मा गांधी के पास गए। महात्मा गांधी ने उन्हें राय दी कि वें 35% वृद्धि के लिए मांग करें और हड़ताल पर चले जाए और याद रखें कि हड़ताल के दौरान मिल मालिकों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा न हो। महात्मा गांधी जी ने उनका साथ देने के लिए आमरण अनशन किया। मील मालिकों पर प्रेशर पड़ने पर उन्होंने श्रमिकों की मजदूरी में 35% की वृद्धि की। इस प्रकार यह महात्मा गांधी के सत्याग्रह की दूसरी सफलता थी। यह ‘महात्मा गाँधी का जीवन परिचय’ में उनका द्वितीय आन्दोलन है।

खेड़ा सत्याग्रह

1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में बाढ़ के कारण किसानों की फसले बर्बाद हो गई। वें लगान देने के में अक्षम हो गए। लेकिन सरकार उनसे किसी भी हालत में लगान वसूल करना चाहती थी। महात्मा गांधी ने उन किसानों की मदद की और उन्हें सत्याग्रह करने के लिए कहा। लेकिन बाद में जब पता चला कि सरकार उन्ही किसानों से लगन दे रही है जों इसके सक्षम हैं। यह जानने के बाद महात्मा गांधी ने इस सत्याग्रह को वापस ले लिया। इसी सत्याग्रह में वल्लभभाई पटेल उनके अनुयाई बने।

रोलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह

अंग्रेजी सरकार ने रोलेट एक्ट बनाया जिसके अनुसार पुलिस शक के आधार पर बिना मुकदमा चलाएं किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी और जेल में बंद कर सकती थी। इस एक्ट का सभी राष्ट्रवादियों ने विरोध किया। महात्मा गांधी ने भी इसका विरोध किया। उन्होंने एक सत्याग्रह सभा बनाई। इसके सदस्य को इस कानून का पालन न करने की राय दी गई। सभी सदस्यों को गांव-गांव में जाकर राष्ट्रवाद का प्रचार करने के लिए कहा गया। महात्मा गांधी के आह्वान पर 1919 में मार्च और अप्रैल महीना में देशभर से लोग इस आन्दोलन में कूद पड़े। पूरा देश एक नए जोश से गया। लोग सड़कों पर निकल पड़े और प्रदर्शन करने लगे। हिंदू मुस्लिम एकता के नारे लगने लगे। भारतीय जनता विदेशी शासन के अपमान को और अधिक सहन नहीं करना चाहती थी।

जलियांवाला बाग

रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी जी ने 6 अप्रैल 1919 को  एक व्यापक हड़ताल का आह्वान किया था।  इस आह्वान के परिणामस्वरूप उमड़े जन सैलाब को दबाने के लिए अंग्रेजी सरकार ने दमन की नीति अपनाई। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बजाई गई। अपने प्रिय नेता सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को  भारी भीड़ जलियांवाला बाग में इकट्ठी हुई थी। यह बाग तीन ओर से मकान से गिरा हुआ है और इसमें बाहर निकलने का रास्ता भी एक ही है। अमृतसर के फौजी कमांडर जनरल डायर ने जलियांवाला बाग का मुख्य द्वार बंद कर कराकर निहत्थी जनता पर गोली चलवा दी। जनता के ऊपर मशीन गन से गोलियां बरसाई गई। इधर-उधर भागती हुई जनता को कोड़ों से से पीटा गया। इस घटना के बाद पूरे पंजाब में मार्शल ला लगा दिया गया।

खिलाफत आन्दोलन

शब्द खिलाफत का अर्थ विरोध करना होता है। यह आन्दोलन अंग्रेजों का विरोध करने तथा खलीफा को पुनः उनका पद दिलाने के लिए हुआ था।  खलीफा ऑटोमन साम्राज्य ( तुर्की साम्राज्य)  का सुल्तान होता था।  यह पद विश्वभर के मुसलमानों के लिए उच्चतम राजनातिक तथा आध्यात्मिक पद होता था। 1914 से 1918 तक प्रथम विश्न युद्ध हुआ। इसमे एक तरफ मित्र राष्ट (ब्रिटेन, फ्रास आदि) थे और  दूसरी तरफ सेन्टृल पॉवर ( ऑस्टृिया और हंगरी, जर्मनी, ट्रकी साम्राज्य)। ट्रकी का सुल्तान जर्मनी का साथ दे रहा था।

युद्ध के समय ट्रकी की जनता का साथ लेने के लिए अंग्रेजों ने घोषणा की कि इस विश्व  युद्ध के बाद ट्रकी से बदला नही लिया जायेगा और वे ट्रकी साम्राज्य को भी छिन्न-भिन्न नही होने देंगे। 28 जून, 1919 को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर के साथ प्रथम विश्व युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया।

लेकिन इस युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकारअपने वायदों को भूल गई। उन्होंने वर्साय की संधि के अनुसार टर्की के सुल्तान को बंदी बना लिया। तुर्की के साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया। ब्रिटिश सरकार के इस विश्वासघास के करण दुनिया भर के मुसलमान नाराज हो गए। उन सब ने अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया।

भारत में खिलाफत आन्दोलन

भारत में भी मुसलमानों ने अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया। खलीफा के पद को बनाये रखने के लिए तथा अंग्रेजों के विरोध करने के लिए भारत में जो आंदोलन हुआ, उसे खिलाफत आन्दोलन कहा गया।

खिलाफत आन्दोलन  को संचारित करने के लिए  1919 में एक खिलाफत कमेटी बनायी गयी। इस कमेटी के सदस्य थे-  मौहम्मद अली, शौकत अली, हकीम अजमल खान, हजरत मोहानी और मौलाना अब्दुल कलाम अजाद। इस आन्दोलन के लिए दिल्ली में अखिल भारतीय सम्मेलन किया गया। महात्मा गांधी को इस सम्मेलन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। महात्मा गाँधी ने हिन्दू मुस्लिम एकता को स्थापित करने के लिए  इस आन्दोलन की अध्यक्षता को स्वीकार किया।

1922 में तुर्की  के लोगों के द्वारा युवा नेता मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृव्य में खलीफा को उसके पद से पूर्णतया हटा दिया गया। इसके साथ ही भारत में भी यह आन्दोलन बन्द हो गया। अप्रत्यक्ष रूप से यह आन्दोलन अपने उद्देश्य को प्राप्त नही कर सका लेकिन भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता को स्थापित करने तथा राष्ट्रवाद को बढ़ाने में यह आन्दोलन सफल हुआ।

असहयोग आन्दोलन

महात्मा गांधी का यह प्रथम महत्वपूर्ण  राष्ट्रव्यापी आन्दोलन था। पंजाब में अंग्रेजों के द्वारा जनता पर किया जाने वाला अत्याचार, माण्ट-फोर्ड सुधार, रौलेट एक्ट, जलियावाला बाग जैसी घटनाओं ने भारतीय जनता के मन में अत्यधिक रोष उत्पन्न कर दिया था। महात्मा गाँधी ने प्रथम विश्व यूद्ध के दौरान अंग्रेजों के साथ सहयोग किया था। इस सहयोग के लिए उन्हे केसर-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित किया गया था। लेकिन इन उपरोक्त घटनाओं को देखकर अंग्रेजों को वे शैतान कहने लगे। देश की जनता में लगी गुस्से की जवाला को देखकर उन्होने भांप लिया कि यह आन्दोलन करने का सही समय है।

देश में उत्पन्न हुई भयावह स्थिति पर विचार करने के लिए सितम्बर 1920 में कांग्रेस के अधिवेशन को आहुत किया गया। इस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। अंग्रेजों को शैतान कहते हुए उन्होंने कहा कि अब इनके साथ सहयोग करना नितान्त असम्भव है। उन्होंने कहा कि हम इनके विरूध्द तब तक असहयोग आन्दोलन चलायेंगे जब तक स्वराज्य प्राप्त नही कर लेते। लाला लाजपत राय ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। पंडित मदन मोहन मालवीय, चितरंजन दास, श्रीमती एनी बेसेण्ट तथा खारपड़े ने इस आन्दोलन का विरोध किया था। महात्मा गांधी के पक्ष में 2728 और विरोध में 1855 मत पड़े। 873 मतों से यह प्रस्ताव स्वीकृत हो गया।

दिसम्बर 1920 में कलकत्ता अधिवेशन में पुनः यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ।  महात्मा गाँधी ने जनता के सामने निम्न कार्यक्रम रखे –

  • विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार
  • सरकारी न्यायालयों का बहिस्कार
  • सरकारी स्कूल/कॉलेजों का बहिस्कार
  • सरकार द्वारा दी गई उपाधियों का परित्याग
  • सरकारी नौकरियों का परित्याग
  • भारतीयों को मेसापोटामिया में जाकर नौकरी करने से इंकार

महात्मा गाँधी ने इस आन्दोलन की शुरूआत केसर-ए-हिन्द की उपाधि को त्यागकर की। यह आन्दोलन देशभर में जोर-शोर से चला। हजारों छात्रों ने अपने स्कूल-कॉलेजों का बहिस्कार किया। कर्मचारियों ने अपनी-अपनी नौकरियों को छोड़ दिया। वकीलों ने अपनी-अपनी वकालते छोड़ दी। इन वकीलों में बंगाल के देशबंधु चितरंजन दास, पंजाब के लाला लाजपत राय, गुजरात के विट्ठल भाई पटेल तथा वल्लभभाई पटेल, मद्रास के चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, उत्तर प्रदेश के मोतीलाल नेहरू तथा जवाहरलाल नेहरू तथा बिहार के डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद आदि प्रमुख थे। विदेशी वस्त्रों का भी आम जनता द्वारा बहिष्कार किया गया। सन 1919 के अधिनियम के अंतर्गत गठित होने वाली विधानसभा का बहिष्कार किया गया।

इसी आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना की गई। गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, राष्ट्रीय मुस्लिम विद्यालय अलीगढ़, जामिया मिलिया, दिल्ली, काशी विद्यापीठ आदि इसी दौरान स्थापित किए गए।

कांग्रेस में इस आंदोलन के बीच में सरकार के साथ समझौता करने की कोशिश की। लेकिन सरकार के अड़ियल रवैये के चलते समझौता नहीं हो सका। सरकार ने भी आंदोलन को कुचलने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी। कांग्रेस स्वयंसेवक दल को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। देशभर में 50000 आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी हुई। गांधी जी को छोड़कर कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया। विभिन्न स्थानों पर होने वाली सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 4 मार्च 1930 ई को ननकाना साहिब के गुरुद्वारे में सिक्खों पर गोलियां चलाई गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस कार्रवाई में 70 व्यक्ति मारे गए।

चौरी-चौरा कांड एवं आंदोलन का स्थगन

5 फरवरी 1922 ई को गोरखपुर जिले में चौरी-चोरा नामक स्थान पर एक घटना हुई। कुछ व्यक्ति शांतिपूर्ण तरीके से अपना जुलूस निकाल रहे थे। तभी पुलिस ने आकर उनके ऊपर गोली चला दी। गोली चलाने के कारण भीड़ क्रोधित होकर हिंसक हो गई। उन्होंने  थाने को घेर लिया और उसमें आग लगा दी। इस घटना में 21 सिपाहियों और एक दरोगा की मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना से गांधीजी बहुत दुखी हुए और उन्होंने 5 फरवरी 1922 को आंदोलन को वापस ले लिया।

10 मार्च 1922 ई को महात्मा गांधी को पुलिस के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और उनको 6 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई।लेकिन गांधी जी के बीमारी के कारण उन्हें 5 फरवरी 1924 ई को जेल से रिहा कर दिया गया।

आंदोलन के स्थगित किए जाने पर प्रतिक्रियाएं

इस आंदोलन को स्थगित किए जाने के कारण राजगोपालाचारी, मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, शौकत अली, मुहम्मद अली जिन्ना, सुभाष चन्द्र बोस तथा लाला लाजपत राय महात्मा गाँधी से असंतुष्ट हो गये। मोतीलाल नेहरू और लाला लाजपत राय ने जेल में ही महात्मा गांधी को पत्र लिखा कि जब आन्दोलन सफल होने की स्थिति में था तो इसे बन्द करने की जरूरत क्या थी। किसी एक स्थान पर हुए दंगे के कारण संपूर्ण देश को दंड देना  क्या उचित है। यदि जुम्मू कश्मीर में कोई हिंसक घटना हो जाती है तो क्या इसकी सजा कन्या कुमारी के लोगों को मिलेगी।

यह आन्दोलन सफल हुआ या असफल

प्रत्यक्ष रूप से यह आन्दोलन सफल नही हुआ परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से यह आन्दोलन सफल हुआ। इस आन्दोलन की निम्नलिखित सफलताए है-

  • भारतीय जनता में राष्टृवाद की भावना उत्पन्न की।
  • ब्रिटिश सरकार की नीव हिला दी।
  • स्वराज्य का संदेश घर-घर पहुँचाया।
  • भारत के विभिन्न वर्गों के बीच एकता स्थापित की।

सविनय अवज्ञा आंदोलन

यह महात्मा गांधी का दूसरा बड़ा राष्ट्रव्यापी आंदोलन था। साइमन कमीशन के बाद में ऐसी बहुत सी परिस्थितियां बन गई थी जिसके कारण एक देशव्यापी आंदोलन को चलाया जाना आवश्यक हो गया था। सरकार ने नेहरू रिपोर्ट को मानने से मना कर दिया था। महात्मा गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को चलाने की घोषणा कर दी। उन्होंने इस आंदोलन को शान्ति, विनम्रता और अहिंसक तरीके से संचारित करने के लिए कहा। इस आंदोलन की शुरुआत गांधी जी की दांडी यात्रा से हुई। इसमें गांधी जी ने नमक बनाकर सरकारी कानून को तोड़ा।

दांडी यात्रा

सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ दांडी यात्रा की ऐतिहासिक घटना से हुआ है। इसमें गुजरात के साबरमती आश्रम के 79 सदस्यों ने भाग लिया। 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने अपने 79 सदस्यों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा के लिए प्रस्थान किया। 200 मील की दूरी पैदल ही 24 दिन में तय की गई। यात्रा को मैन रोड से न होकर गांव के बीच से होकर जाने की प्लानिंग की गई। ताकि इसमें अधिक से अधिक व्यक्ति को जोड़ा जा सके। जहाँ-जहाँ यह यात्रा रूकी, वंही पर हजारों लोग उसमे शामिल हो गये।

महात्मा गांधी जन समुदाय के साथ 5 अप्रैल 1930 को समुद्र किनारे दांडी नामक स्थान पर पहुंचे। 6 अप्रैल 1930 को आत्म शुद्धि के बाद उनहोंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और इस तरह से नमक बनाकर अंग्रेजों के कानून को तोड़ा और इस तरह से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का कार्यक्रम

दांडी नामक स्थान पर गांधी जी ने निम्न कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई –

  • विदेशी कपड़ों को जला देना।
  • अस्पृश्यता का त्याग करना।
  • विद्यार्थी तथा शिक्षक अपना स्कूल छोड़ दे।
  • सरकारी नौकर अपनी नौकरी छोड़ दे।
  • मादक पदार्थों का विरोध करें।

महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन की गति बढ़ गई है।

गोलमेज सम्मेलन

प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 को ब्रिटेन में लंदन में संपन्न हुआ कांग्रेस और महात्मा गांधी ने इस आंदोलन में भाग नहीं लिया। दूसरा गोलमेज सम्मेलन सितंबर 1931 में हुआ। इसमें कांग्रेस के  एकल प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी सम्मिलित हुए। तृतीय गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर 1932 को हुआ। बाबा साहेब आंबेडकर इन तीनों सम्मेलनों में शामिल हुए।

कांग्रेस इसमे शामिल नही हुई। सरकारी की दमनकारी नीति के कारण सविनय अवज्ञा आंदोलन धीरे-धीरे स्वयं समाप्त होता चला गया। 8 में 1935 को गांधी जी को जेल से मुक्त कर दिया गया महात्मा गांधी जी का विचार था कि जनता के वह आतंक को दूर करने के लिए आंदोलन स्थापित किया जाए अतः मार्ग 1934 में आंदोलन में स्थगित कर दिया गया।

प्रथम् गोलमेज सम्मेलन में सम्मेलन में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर ने दलित समाज के पक्ष में एक जोरदार भाषण दिया। इसमे दलितो के लिए अलग कम्युनल अवार्ड देने की मांग की। उन्होंने कहा कि जैसे सिख और मुस्लिम हिन्दुओं से अलग है, वैसे ही दलित भी। दलितों को हिन्दु समाज से बहिस्कृत करके रखा है। वें हिन्दु ब्रिटिश सरकार को सोचने पर मजहबूर कर दिया। उस समय एक तरफ भारतीयों हिन्दुओं का अंग्रजों की गुलामी से मुक्ति का आन्दोलन चल रहा था, तो वहीं दूसरी तरफ निम्न जातियों का उच्च जातियों की गुलामी से मुक्ति के लिए आन्दोलन चल रहा था। अंग्रेजों के द्वारा भारतीयों पर किया जाने वाले अत्याचार की  अपेक्षा उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों पर किया जाने वाला जाने वाला अत्याचार बहुत अधिक था। पहले मुक्ति  आन्दोलन का नेतृव्य करनेे वाले बहुत नेता थे जबकि दुसरे मुक्ति आन्दोलन का नेतृव्य करने वाला एक ही नेता था – डॉ. भीमराव अम्बेड़कर।

बाबा साहेब डॉ. भामराव अम्बेड़कर की द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में की गई माँग को अमलीजामा पहनाते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने 16 अगस्ट 1932 को कम्युनल अवार्ड की घोषणा की। इस घोषणा में निम्नलिखित प्रावधान किए गये-

  • इसमे मुस्लिमोंं, सिक्खों, ईसाईयों,एंग्लों-इंडियन, यूरोपियनों तथा दलितों को पृथक निर्वाचक पध्दति ( separate electorate) दिया गया।
  • इसमे यह व्यवस्था की गई कि दलितों का अपना अलग निर्वाचक मंंडल होगा। इसमे प्रतिनिधि भी दलित होगा और वोट भी दलित होगा। इस प्रकार जो प्रधिनिधि होगा, वह पूर्णतया अपने दलित समाज के प्रति जिम्मेदार होगा।
  • दलितों को दो वोट देने का अधिकार दिया गया। एक वोट अपने प्रतिनिधि के लिए तथा दूसरी वोट सामन्य प्रतिनिधि के लिए।
  • प्रान्तों की व्यवस्थापिकाओं में सीटों की संख्या को दुगना कर दिया गया। दलितों के लिए 71 सीटों को आरक्षित कर दिया गया।
  • विश्वविद्यालयों, जमीनदारों, उद्योग. व्यापार तथा श्रम में भी  पृथक निर्वाचक पध्दति की व्यवस्था की गई तथा सीटे आरक्षित की गई।

महात्मा गांधी कट्टर हिन्दु नेता थे। वे हर हाल में वर्ण व्यवस्था को बनाये रखना चाहते थे। उनका विचार था कि सभी जातियों को अपने वर्ण के अनुसार काम करना चाहिए। कम्युनल अवार्ड की घोषणा के समय वे पुणे की यरवदी जेल में थे। इसके विरोध में उन्होंने आमरण अनशण शुरू कि दिया। गाँधी जी उस समय बहुत बडे नेता थे। उनके आमरण करने से पूरे देश की जनता भड़क गयी और बाबा साहेब के विरोध में आन्दोलन करने लगी। बाबा साहेब को धमकी मिलने लगी कि गाँधी जी कुछ हो गया दलित समाज के साथ बुरे से बुरा व्यवहार करेंगे।

पंडित मदन मोहन मालवीय, सर तेज बहादुर सप्रू तथा राजगोपालाचारी separate electorate demand  को वापस लेने के लिए उनसे मिले। कस्तूरबा गांधी ने भी उनसे अपने सुहाग की भीख माँगी। उनके ऊपर अत्यधिक दबाव पड़ने पर वे गाँधी के साथ बात करने पर राजी हो गये। 24 सितम्बर 1932 को दोनों के मध्य जो समझौता हुआ, उसे ही पना पैैक्ट के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार गाँधी जी ने बाबा साहेब की पाँच की मेहनत के ऊपर पानी फेर दिया। बाबा साहेब  ने भी गाँधी जी के ऊपर दबाव बना कर अपने समाज के लिए सीटे आरक्षित करने के लिए कहा।

पुना पैक्ट के अनुसार पृथक निर्वाचक मंडल के प्रावधान के समाप्त कर दिया गया। इसके स्थान पर दलितों के लिए  प्रातीय व्यवस्थापिकाओं में सीटों की संख्या को दुगना करके 148 कर दिया।  केन्द्रीय विधानमंडल  में भी 18%  सीटे दलितों के लिए सुरक्षित कर दी गयी। इसके साथ ही स्थानीय निकायों तथी अन्य सेवाओं में भी इसके लिए सीटे सुरक्षित की गयी।

भारत छोड़ो आंदोलन

वर्धा प्रस्ताव के निर्णय के अनुसार 7 अगस्त 1942 ई को मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमीशन का अधिवेशन प्रारंभ हुआ इस अधिवेशन में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया।

1942 तक कांग्रेस यह जान गई थी कि अंग्रेज आसानी से भारत को छोड़कर जाने वाले नहीं थे। इसलिए उन्होंने एक बड़ा आंदोलन करने का निश्चय किया। लेकिन इस आंदोलन की तिथि की घोषणा नहीं की गई क्योंकि गांधी जी पहले अंग्रेजों के साथ वार्ता करना चाहते थे। गांधी जी ने कांग्रेस कार्य समिति के सामने 70 मिनट का ओजस्वी भाषण दिया। इसी भाषण में उन्होंने करो या मरो का संदेश दिया। 8 अगस्त 1942 को रात 10:30 बजे भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित हुआ।

इस प्रस्ताव की प्रमुख बातें निम्न है

  • भारत को अब अंग्रेजों को हर हाल में स्वतंत्र कर देना चाहिए।
  • ब्रिटिश सरकार भारत को शीघ्र छोड़ दें।
  • देश के प्रमुख दलों और समूह का सहयोग प्राप्त करने वाली एक अस्थाई सरकार की स्थापना की जाए।
  •  भारत का संविधान संघात्मक होगा जिसमें इकाइयों को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी।
  • यदि प्रस्ताव की मांगों को नही माना गया तो गांधी जी के नेतृत्व में जनता आंदोलन आरंभ करेंगी।

8 अगस्त 1942 को कांग्रेस द्वारा यह स्वीकृत किया गया कि इस आंदोलन को शुरू करने से पहले महात्मा गांधी वायसराय से बात करेंगे। लेकिन सरकार ने गांधी जी को वायसराय से बात करने का अवसर नहीं दिया। 9 अगस्त 1942 की सुबह ही महात्मा गांधी और कार्य समिति के सभी सदस्यों को सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस के सभी नेताओं को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। इस गिरफ्तार की खबर सुनकर के जनता में आक्रोश का तूफान उमर पाड़ा

अब आंदोलन को नेतृव्य  प्रदान करने वाला कोई नेता नहीं रहा। महात्मा गांधी ने 70 मिनट के अपने भाषण के दौरान 12 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इन 12 सूत्री कार्यक्रम में संपूर्ण देश में हड़ताल करने, सार्वजनिक सभा करने, नमक बनाने और लगान देने से मना करने के लिए कहा गया था। आंदोलन के कार्यक्रम के प्रमुख बिंदु थे-

  • महात्मा गांधी द्वारा दिया गया करो या मरो का नारा
  • सार्वजनिक सभा करने, नमक बनाने तथा लगान  देने से मना करने पर विशेष बल दिया गया।
  • पुलिस थाना, तहसीलों को अहिंसक तरीके से घेरने पर बल दिया गया।

शुरू मैं यह आंदोलन बहुत तीव्र गति से चला। लेकिन बाद में सरकार की दमनकारी नीति के चलते यह आंदोलन धीमा पड़ता  चला गया और 9 मई 1944 ई तक चला।

गाँ धी जी की यह आन्दोलन भी असफल हुआ।

महात्मा गांधी की   पुस्तकें (Mahatma Gandhi Books)

  • हिन्द स्वराज – सन 1909 में
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह – सन 1924 में
  • मेरे सपनों का भारत
  • ग्राम स्वराज
  • ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ एक आत्मकथा
  • रचनात्मक कार्यक्रम – इसका अर्थ और स्थान

30 जनवरी सन 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी थी। उन्हें 3 गोलियां मारी गयी थी और उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे -‘हे राम’। उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में राज घाट पर उनका समाधी स्थल बनाया गया हैं। महात्मा गांधी जी 79 साल की उम्र में  सभी देश वासियों को अलविदा कहकर चले गए.

यह भी पढ़े-

सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय

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महात्मा गांधी की जीवनी- Mahatma Gandhi Biography Hindi

आज हम इस आर्टिकल में आपको महात्मा गांधी की जीवनी- Mahatma Gandhi Biography Hindi के बारे बताएंगे।

Mahatma Gandhi जी भारत और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे और वे सत्याग्रह के माध्यम से प्रतिकार के अग्रणी नेता थे।

उनकी इस अवधारणा की नींव संपूर्ण अहिंसा के सिद्धांत पर रखी रखी गई थी।

महात्मा गांधी जी ने भारत को स्वतंत्र कराने में अपनी अहम भूमिका निभाई।

उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन, नमक सत्याग्रह आंदोलन आदि आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ थ।

उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।

उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था जो कि सनातन धर्म के पंसारी जाति से संबंध रखते थे।

इनके पिता कट्टर हिंदू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात में काठियावाड़ की रियासत पोरबंदर के प्रधानमंत्री थे।

इनकी माता का नाम पुतलीबाई थाऔर वे परनामी वैश्य समुदाय की थी।

महात्मा गाँधी के अन्य नाम बापू, राष्ट्रपति, गांधी जी थ।

गांधी जी का विवाह 1883 में 13.5 वर्ष की आयु में कस्तूरबा से हुआ था।

गांधीजी ” कस्तूरबा” को “बा” कह कर बुलाते थे।

उनका यह बाल विवाह उनके माता -पिता के द्वारा तय किया गया था।

महात्मागांधी के चार पुत्र थे जिनके नाम इस प्रकार है –

  • हरिलाल गांधी (1888ई .)
  • मणिलाल गांधी (1892ई. )
  • रामदास गांधी (1897 ई.)
  • देवदास गांधी (1900ई.)

महात्मा गांधी के शिक्षा

मोहनदास करमचंद गांधी ने 1887 मैट्रिक की परीक्षा मुंबई यूनिवर्सिटी से पुरी की और इसके आगे की परीक्षा के लिए भी भावनगर के शामलदास स्कूल में गए।

महात्मा गांधी का परिवार उन्हें बारिस्टर बनाना चाहता था।

सितंबर 1818 ई. को गांधी जी बारिस्टर पढ़ाई के लिए लंदन गए जहां पर उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में दाखिला लिया ।

गांधी जी ने अपनी मां को दिए हुए वचन के अनुसार अपने  शाकाहारी भोजन ही किया।

गांधीजी शुरू से ही शाकाहारी थे और उन्होंने लंदन में भी अपने इस नियम को बनाए रखा।

गांधीजी के व्यक्तित्व ने उसकी लंदन में एक अलग ही छवि प्रदान की। गांधीजी ने लंदन में थियोसोफिकल नामक सोसाइटी के मुख्य सदस्यों से मिले। सोसायटी की स्थापना विश्व बंधुत्व के लिए 1875 में हुई थी और तो और इसमें बौद्ध धर्म, सनातन धर्म के ग्रंथों का संकलन भी था।

वकालत का आरंभ – महात्मा गांधी की जीवनी

इंग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन द्वारा बुलाए जाने पर गांधीजी वापस मुंबई लौट आए और उन्होंने यही पर अपनी वकालत की पढ़ाई शुरू की।

मुंबई में गांधी जी को सफलता नहीं मिली जिसके कारण गांधी जी गांधी जी ने कुछ समय के लिए शिक्षक के पद पर काम करने के लिए एक अर्जी दी लेकिन उसे भी अस्वीकार कर दिया गया।अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए गांधी जी को मुकदमों की अर्जी लिखने का काम शुरू करना पड़ा परंतु कुछ समय बाद ही उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा।

1893 ई. में  महात्मा गांधी जी एक वर्ष  के करार के साथ दक्षिण अफ्रीका गए।

दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार की फर्म नेटल से यह वकालत करार हुआ था।

महात्मा गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा

दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी को भारतीयों पर हो रहे भेदभाव का सामना करना पड़ा।

उन्हें प्रथम श्रेणी उसकी वेध टिकट होने के बाद भी तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इंकार कर दिया गया और उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था।इतना ही नहीं यात्रा करते समय पायदान पर एक अन्य यूरोपीय यात्री के अंदर आने पर उन्हें चालक से मार भी खानी पड़ी। इन्हें अपनी इस यात्रा के दौरान कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

अफ्रीका के कई होटलों में उनको आने के लिए मना कर दिया गया। इसी तरह ही कई घटनाओं में से यह एक भी थी जिसमें अदालत के न्यायधीश ने उन्हें अपने पगड़ी उतारने का आदेश दे दिया था जिसे उन्होंने मानने से मना कर दिया।

गांधी जी के साथ हुई यही सारी घटनाएं उनके जीवन में एक नया मोड़ ले कर आई और विद्यमान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरूकता का कारण बने तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार साबित हुई।अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हुए गांधी जी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अंतर्गत अपने देशवासियों के सम्मान तथा अपने देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाए।

भारतीयों के आजादी के लिए संघर्ष

1916 ई. गांधी जी अपने भारत के लिए वापस भारत आए और अपनी कोशिशों में लग गए।

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन पर अपने विचार व्यक्त किए लेकिन उनके विचार भारत के मुख्य मुद्दों, राजनीति तथा उस समय के कांग्रेस दल के प्रमुख भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर आधारित थे, जो कि एक सम्मानित नेता थे।

चंपारण और खेड़ा – महात्मा गांधी की जीवनी

गांधी जी को सब अपनी पहली बड़ी उपलब्धि 1918 में चंपारण सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह में मिली हालांकि अपने निर्वाह के लिए नील की खेती की खेती करने के बजाय नगद पैसा देने वाली खाद्य फसलों की खेती करने वाली आंदोलन भी महत्वपूर्ण रहे।

जमीदारों की ताकत का दमन करते हुए भारतीयों के नाम पत्र भरपाई बता दिया गया, जिससे वे अत्यधिक गरीबी से गिर गए। गांव में गंदगी अस्वस्थता और अन्य कई तरह की बीमारियां फैलाने लगी थी।

खेड़ा, गुजरात में भी यही समस्या थी।

पहले तो गांधीजी ने वहां पर सफाई करवाई और स्कूल और अस्पताल बनवाए जिससे ग्रामीण लोगों को उन पर विश्वास हुआ। उस समय हुए शोर शराबे के कारण गांधी जी को शोर-शराबे से हुई परेशानियों के लिए थाने में बंद कर दिया गया जिसका विरोध पूरे गांव वालों ने किया।बिना किसी कानूनी कार्रवाई के गांधी जी को थाने में बंद करने के लिए और उन्हें वहां से छुड़वाने के लिए गांव के लोगों ने थाने के आगे धरना प्रदर्शन भी किया।

गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हड़ताल का नेतृत्व किया जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के मार्गदर्शन में उस क्षेत्र के गरीब किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति मंजूर करने तथा खेती पर नियंत्रण राजसव में बढ़ोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रहित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

महात्मा गांधी को सबसे पहले पलवल स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था

गांधी जी के नेतृत्व में दिए गए आंदोलन

  • असहयोग आंदोलन(1920)
  • स्वराज और नमक सत्याग्रह, डंडी यात्रा (1930)
  • दलित आंदोलन (1932)
  • द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन(1942)

महात्मा गांधी के नारे

  • “करो या मरो”
  • “हिंसा परमो धर्म”
  • “आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान यतना पूर्ण बहिष्कार यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूं।”
  • “बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, और बुरा मत कहो”
  • “सादा जीवन उच्च विचार”

महात्मा गांधी की मृत्यु – महात्मा गांधी की जीवनी

30 जनवरी 1948 को गांधी जी अपने बिड़ला भवन में घूम रहे थे और उनको गोली मार दी गई थी।

हत्यारे का नाम नाथु राम गोडसे था यह एक राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टरपंथी हिंदू महासभा के के साथ संबंध थे।

जिसने गांधी जी को पाकिस्तान को भुगतान करने के मुद्दे पर भारत को कमजोर बनाने के लिए दोषी करार दिया था।

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महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi

महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi -परम पूज्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कोन नही जानता हैं | सत्य और अहिंसा को वो मूरत जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी भारत की आजादी में लगा दी|

एक लकड़ी के सहारे चलने वाले गाँधीबाबा ने सत्य अहिंसा को अपना शस्त्र बनाकर करोड़ो हिन्दुस्थानियो के साथ जंग-ए-आजादी लड़ी| उनकी कुर्बानियों की वजह से ही आज हम खुले वातावरण में सांस ले रहे हैं|

ऐसी महान आत्मा के जन्म के लिए धरती स्वय तरस जाती हैं| मानवता और हिन्दू मुस्लिम एकता की मिशाल बने महात्मा गांधी के जीवन में विपतियों के सिवाय कुछ नही था| जिन्हें सता प्राप्ति का कोई लोभ न था|

प्यारा था तो वतन और उसकी आजादी| ऐसें प्रेरणादायक महापुरुष महात्मा गांधी का जीवन परिचय जीवनी और इतिहास में उनके जीवन से जुड़ीं मुख्य घटनाओं पर प्रकाश डालने की छोटी सी कोशिश की गईं हैं|

गांधी जी की जीवनी व इतिहास (Gandhiji’s biography and history)

आज इस हस्ती के बारे में कोन नही जानता देश का बच्चा-बच्चा महात्मा गांधी की ऑटोबायो ग्राफी से वाकिफ हैं, गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गाँधी था| इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर शहर में हुआ था| उस समय यह प्रान्त बम्बई प्रेजिडेंसी के अंतर्गत आता था|

इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी जो पंसारी जाति के थे| अग्रेज सरकार में वो दीवान के पद पर सेवारत थे| इनकी माँ का नाम पुतलीबाई था | जो मध्यम वर्ग से आती थी |

गृहणी का काम किया करती थी| दरअसल पुतलीबाई करमचन्द गांधी की चौथी पत्नी थी| इनसे पूर्व की तीन पत्नियों का देहांत हो चूका था|

महात्मा गांधी का आरंभिक जीवन (Early life of Mahatma Gandhi)

कट्टर हिंदूवादी विचारधारा के परिवार में जन्मे गाँधी के जीवन पर भी धार्मिक परवर्तियो का प्रभाव पड़ा| इनकी माता धार्मिक विचारो वाली महिला था| इनके पिताजी करमचंद गाँधी को कबा गाँधी उपनाम से भी जाना जाता हैं|

हालाँकि वे शिक्षित तो नही थे| मगर जीवन के कड़े अनुभवो ने उनमे ऐसी शिक्षा का प्रदुभाव कर दिया था| जिससे वे हित और अहित को भली भांति जानते थे|

वे नही चाहते थे उनका बेटा मोहनचंद इसी अंग्रेजी हुकूमत का बाशिंदा बने| इसी पर इन्होने मोहनदास का दाखिला स्थानीय सामलाल कॉलेज में दिलाया| जहा से स्कूली शिक्षा पूरी करने के त्त्पश्तात गाँधी को बम्बई विश्विद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए भेज दिया|

उन्हें शुरुआत से पढ़ाई में मन नही लगता था इसकी वजह अंग्रेजी भाषा थी| वे अग्रेंजी और अपनी मातृभाषा गुजराती में पूर्णत सामजस्य नही बिठा पाते थे| गाँधी बचपन से अपनी लिखावट में अच्छे नही थे|

उनका मन और कही था| मगर परिवार तो कुछ और ही चाहता था| महात्मा गांधी शुरू से ही बेहद सवेदनशील इंसान थे| मानव पीड़ा उनके लिए सबसे बड़ा दर्द था| इसमे कमी लाने के लिए वे डोक्टर बनना चाहते थे|

मगर कट्टर ब्रह्मण वादी सोच अपने कुल में चिर फाड़ और ऐसे कार्यो को बिलकुल इजाजत नही देती थी| अपनी कुल परम्परा के मुताबिक उन्हें वकील बनने की हिदायत दी गईं|

ब्रिटिश भारत में उस समय लो की शिक्षा का स्तर न्यून था| इसलिए माता-पिता ने महात्मा गांधी को इंग्लैंड भेजने का निश्चय किया गया|

गांधी जी की अफ्रीका यात्रा व भारत लौटना (Gandhiji’s visit to Africa and returning to India)

गांधी जब 19 वर्ष के थे तो कॉलेज में मन ना लगने के कारण इन्हे इंग्लैंड जाने का ऑफर मिला| जिन्हें गांधी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया| कानून की पढ़ाई करने जाने से पूर्व इनकी मुलाकात एक जैन भिक्षु के साथ हुई|

कुछ दिन साथ रहने के बाद इनका काफी प्रभाव पड़ा| इसके अतिरिक्त इनकी जीवनचर्या पर माँ के विचारो का प्रभाव पड़ा| लन्दन में रहने के दोरान उनके शाकाहारी जीवन प्रवर्ती में बड़ा बदलाव आया|

अग्रेंजी रीती-रिवाज और शैली से बिलकुल अलग और शाकाहारी और साधू के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे| बोध धर्म की एक संस्था थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्यता ग्रहण की और इसके साथ काम करते रहे

लन्दन से बेरिस्टर की डिग्री हासिल करने के बाद मुंबई लौट आए| यहाँ उन्होंने कई बार वकालत की| मगर उन्हें यहाँ इतनी सफलता नही मिली| एक अग्रेज अधिकारी की लापरवाही के कारण गांधी को इस जॉब से हाथ धोना पड़ा फिर उन्हें एक शिक्षक के रूप में एक संस्था द्वारा आमत्रित किया गया| मगर गांधी ने इच्छा न जताते हुए अनिच्छा जाहिर की|

उस समय अग्रेंजी हुकूमत दक्षिण अफ्रीका में भी थी| अत: रिश्तेदारों के बुलावे पर महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर गये| मगर यहाँ उन्हें जो कुछ झेलना पड़ा  Mahatma Gandhi Biography  में इसका वर्णन आगे दिया जा रहा हैं|

जीवन की घटनाएं

यदि मोहनदास कर्मचन्द गाँधी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा नही करते तो शायद वो महात्मा गांधी  भी नही बनते | जब 1895 में गांधीजी ने अफ्रीका की यात्रा की तो उस समय वहा ब्रिटिश हुकूमत थी| जो वहा के निवासियों और अग्रेंजो के बिच रंगभेद की दीवार खड़ी कर चुके थे|

काले और गोरे लोगों के बिच हर क्षेत्र में भेदभाव किया जाता था| यहाँ तक कि वे एक ही बस्ती में नही रह सकते थे| गांधीजी ने जब दक्षिण अफ्रीका में पहला ही कदम रखा| तो उन्हें रंगभेद का शिकार होना पड़ा|

एक घटना जिन्होंने अग्रेंजो के प्रति गुस्सा भर दिया | जब वे रेल मे यात्रा कर रहे थे| तब उनके पास फरिस्त क्लास की वैध्य टिकट होने के बावजूद डिब्बे में सवार गोरे लोगों ने उन्हें थर्ड क्लास में जाना को कहा गया| महात्मा गाँधी ने जब इसका विरोध किया तो कुछ गोरे लोगों ने उठाकर उन्हें चलती गाड़ी से बाहर फेक दिया|

उस समय गांधी की वेशभूषा एक धोती कुर्ता और पगड़ी पहने थी| गोरे लोगों ने उन्हें अपनी बस्ती के आस-पास आने जाने रेस्टोरेंट में रुकने से पाबंदी लगा दी| साथ ही जब वे एक मुकदमें को लेकर कोर्ट गये तो अग्रेंजी कोर्ट ने उन्हें पगड़ी तक उतारने का आदेश दिया|

उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की तादाद बड़ी संख्या में थी, उनके साथ रंगभेद का घोर अपमान किया जाता था| गांधी ने भारतीयों को जाग्रत कर जुलू से अग्रेंजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया| इन्होने भारतीय जनमत इंडियन ओपिनियन के जरिए भारतीयों को न्याय दिलाने की कोशिश भी की|

दक्षिण अफ्रीका से भारत आना

कई सफल और विफल प्रयासों के बाद महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका छोड़कर 1915 में अपने वतन हिंदुस्तान लौट आए| भारत आकर इन्होने भारतीयों की अपने ही देश में राजनितिक आर्थिक दुर्दशा देखी|

अग्रेजो की फुट डालो और राज करो की निति का पूर्ण अध्ययन करने के बाद उन्होंने कई सभाओ को सम्बोधित किया| उस समय भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) थे| जो महात्मा गांधी के विचारों से सहमत थे|

गांधीजी उस समय प्रत्येक क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे ताकि वास्तविक स्थति का पता लगाया जाए| तभी उनसे गुजरात के खेड़ा और बिहार के चम्पारण के किसान अपनी परेशानियों को लेकर पहुचे|

अंग्रेजी हुकूमत उन से अन्यायपूर्ण तरीके से नील और अफीम की खेती करवाती थी| गाँधी जी ने बहुत सोच-विचार के बाद इन किसान की आवाज बनने का निर्णय किया और हजारो किसानो और किसान नेताओ के साथ 1918 में खेड़ा चम्पारण का आन्दोलन आरम्भ कर दिया|

यह पहला अवसर था जब मोहनदास कर्मचन्द गांधी को लोगों ने बापू और महात्मा गांधी  के नाम से पुकारना शुरू किया| इस आन्दोलन में किसानो की तरफ से रखी गईं मांगो में बढे हुए राजस्व में कमी, कृषक का उनके खेत पर पूर्ण स्वामित्व, साथ ही सभी अन्यायपूर्ण सहमती पत्र रद्द किये गये|

अंग्रेजी हुकूमत ने खेड़ा और चम्पारण के किसानो की आवाज दबाने की पूरी कोशिश की महात्मा गांधी को जेल में भी डाला गया| मगर किसानो के आन्दोलन की बढती लोकप्रियता और दवाब के कारण सरकार को अपने कदम वापिस लेने पड़े|

इस आन्दोलन से बिखरे समाज में न केवल एकता लाने का काम किया बल्कि महात्मा गांधी की लोकप्रियता भी बढ़ी| लोगों में यह विश्वास जगा कि शांतिपूर्ण तरीको से भी सरकार पर दवाब बनाकर अपनी मांगे मनवाई जा सकती हैं|

महात्मा गांधी के आंदोलन नमक सत्याग्रह (Salt satyagraha)

दांडी नमक यात्रा गांधीजी की एक विरोधात्मक रैली और आन्दोलन था| जिनमे हजारो लोगों ने भाग लिया था| 5 अप्रैल 1930 को गुजरात की दांडी नामक स्थल से आरम्भ की गईं|

लगभग 450 किलोमीटर की इस यात्रा को पूरी कर महात्मा गांधी ने सत्याग्रहियों के साथ मिलकर नमक बनाकर अंग्रेजी सरकार के उस नमक कानून का उल्लघंन किया| इस आन्दोलन से अंग्रेजी सरकार की नीव पूर्णत हिलाकर रख दी थी|

12 मार्च के दिन लगभग 1 लाख से अधिक लोगों ने सरकार के नामक निर्माण और उसकी बिक्री के एकाधिकार का हनन कर सरकार को कड़ा संदेश देने का कार्य किया| महात्मा गांधी के इस आन्दोलन के बाद तकरीबन 70 हजार लोगों को जेल में डाला गया|

आखिर मार्च 1931 को इरविन गांधी समझोते के बाद सभी कैदियों को रिहा करने के साथ सरकार ने सभी सत्याग्रहियों की मांग को स्वीकार कर लिया| जिसके बाद गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को रोक दिया|

दांडी नमक यात्रा और खेड़ा चम्पारण के अतिरिक्त महात्मा गांधी ने कई बड़े राजनितिक और सामाजिक आन्दोलन किये जिसकी वजह से अंग्रेजी सता को कमजोर और भारतीय आंदोलनकारियो के विशवास को मजबूत करने में मदद मिली| आएये Mahatma Gandhi Biography में जानते हैं उनके कुछ प्रभावशाली जन-आंदोलनों के बारे में सक्षिप्त में|

अन्य आंदोलन

असहयोग आन्दोलन -गांधीजी के सबसे लोकप्रिय जनआंदोलनों में से एक था| पहले विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेजी सरकार ने भारत में समाचार पत्रों पर पूर्णत पाबंदी लगा दी|

साथ ही इसका उलघंन करने पर बिना कोई न्याय प्रक्रिया के कठोर कारावास का प्रावधान कर दिया| महात्मा गांधी ने इस रोलेट एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया| इस विरोध का सबसे अधिक प्रभाव पंजाब में पड़ा|

वहा पर सालो से अंग्रेजी हुकूमत की सेवा करने वाले लोगों को भी जेलों में डाला गया| महात्मा गांधी के आव्हान पर हजारो युवको ने अम्रतसर और आस-पास के सभी शहरों में हड़ताल पर चले गये| बाजार पूरी तरफ ठप हो गये थे|

सभी सत्याग्रही पंजाब के जलियावाला बाग़ नामक स्थान पर एकत्रित होकर शांति पूर्ण सभा कर रहे थे| अंग्रेजी सरकार को इसकी सुचना मिलने पर जनरल डायर के आदेश पर उन बेकसूर लोगों को गोलियों से भुन दिया गया| 

भारतीय इतिहास में इस हत्याकांड को जालियाँवाला बाग हत्याकांड Jallianwala Bagh massacre के नाम से जाना गया|

सरकारी आकड़ो के अनुसार इस में चार सो लोग मारे गये| मगर मरने की वास्तविक संख्या 2 हजार से अधिक थी| सरकार के इस दमनकारी रवैये के बाद महात्मा गांधी ने देशभर में सविनय आन्दोलन आरम्भ कर दिया|

1921 तक चले इस प्रोटेस्ट के लिए सभी भारतीय लोगों की अंग्रेजी नौकरी और सेना सहित किसी कार्य में सहयोग न करने की अपील की गईं|

तक़रीबन चार सौ हडतालों में 10 लाख से अधिक मजदूर और किसान सम्मलित हुए थे| इस आन्दोलन से भले ही भारत को आजादी नही मिल पाई हो मगर अंग्रेजो को यह एहसास हो चूका था| कि अब भारत को अधिक वर्षो तक दबाकर नही रखा जा सकता|

भारत छोड़ो आन्दोलन ( Quit India Movement ) -अभी तक के महात्मा गांधी के सभी आंदोलनों में सबसे व्यापक और शक्तिशाली आंदोलनों में से भारत छोड़ो आन्दोलन सबसे अधिक प्रभावकारी था|

सरकार के दमनकारी रेवैये के कारण गाँधी को दुश्मन बना चुके थे| इस आन्दोलन की शुरुआत तो दुसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत से ही हो गईं|

महात्मा गांधी इस विश्व युद्ध का फायदा उठाना चाहते थे| सरकार की शक्ति दोनों तरफ बटी होने के कारण इस आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी रूप से शुरू किया गया|

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के बाद यह पहला अवसर था जब वतन की आजादी की खातिर सभी वर्ग जिनमे बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी इस जन आन्दोलन में हिस्सा लिया|

महात्मा गांधी ने अब तक सरकार के खिलाफ उपयोग किये गये सभी उपक्रमों का एक साथ प्रयोग किया| जिनमे अहिंसा सत्याग्रह अवज्ञा के साथ-साथ हिंसा भी बड़े पैमाने में इस आन्दोलन में शामिल रही| गाँधी के लिए यह आन्दोलन उनकी पराकाष्टा थी| वर्ष 1942 में ही इन्होने करो या मरो का नारा दिया था|

इसी दोरान उन्हें दो वर्ष तक की कठोर कारावास में भी रहना पड़ा| जेल से छुटने के बाद उनकी पत्नी कस्तूरबा गाँधी और परम मित्र और सहयोगी महादेव देसाई का निधन हो चूका था|  डू ऑर डाय के नारे के बाद लाखो की संख्या में आंदोलनकारी सड़को पर उतर आए थे|

कही सरकार की सेना पर हमला हो रहा था तो कही लुट मार मची थी| बड़ी संख्या में जेल भरो निति से अपनी गिरफ्तारी दे रहे थे| 1943 तक भारत छोड़ो आन्दोलन को सरकार ने दबा भी दिया था| मगर सभी कैदियों की रिहाई के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के संकेत भी दे दिए|

हरिजन आंदोलन (Harijan movement) -डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा भारत के नए सविधान में मुस्लिम और हिन्दू निर्वाचन क्षेत्रो के अतिरिक्त दलित समुदाय के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र में आरक्षण की माग की|

इस पर अंग्रेजी सरकार भी सहमत थी| मगर सितम्बर में महात्मा गांधी ने इस जातीय विभाजन को रोकने के लिए 6 दिनों तक भूख हड़ताल की|

आखिर तीनो पक्षों ने मिलकर इस नई व्यवस्था को छोड़कर पुन: पुरानी व्यवस्था को अपनाए रखा| महात्मा गांधी दिन हिन् और पिछड़े वर्ग के उद्दारक थे| इन्होने सामाजिक आन्दोलन द्वारा समाज में दलितों की स्थति सुधारने के कई अथक प्रयास किये|

जिनमे से एक था अछूत वर्ग के लोगों को अब से हरिजन नाम से बुलाए जाने की व्यवस्था की शुरुआत की|इन्ही के प्रयासों की बदोलत नीची जाति के लोगों का धार्मिक स्थलों में प्रवेश संभव हो पाया|

महात्मा गांधी की आलोचना (Criticism of Mahatma Gandhi)

एक महान देश नायक और राष्ट्रपिता होने के बावजूद उनके काम करने का तौर तरीका और किसी सम्प्रदाय के प्रति नजदीकी और किसी के साथ दुरी बनाए रखने के विषय पर महात्मा गांधी पर कई तरह के आरोप और आलोचनाए हुई हैं|

  • शुरुआत के दोनों वर्ल्ड वॉर में ब्रिटिश राज्य को समर्थन देना|
  • अग्रेंजो की दमनकारी निति के आगे सत्य और अहिंसा बेकार हैं|
  • देश को आजादी मिलने के बाद प्रधानमन्त्री पद के लिए नेहरु को समर्थन देना|
  • जब असहयोग आन्दोलन पुरे उफान पर था अग्रेंजी पुलिस थाने पर हमले से आन्दोलन वापिस ले लेना|
  • भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान का विभाजन
  • विभाजन में पाकिस्तान को 55 करोड़ की आर्थिक मदद मज़बूरी से दिलाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठना|
  • कांग्रेस के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार नेताजी सुभाषचंद्र बोस को समर्थन ना देना|
  • गांधी-इरविन समझौता जो पूर्णत अंग्रेजी हुकूमत के फायदे की शर्तो पर था इसे मंजूरी देना|
  • सशस्त्र क्रान्तिकारियों को हताश करना उनकी राह में रोड़ा बनना|

महात्मा गांधी की बेटी का नाम

बहुत से लोग महात्मा गांधी की बायोग्राफी में जानना चाहते हैं कि बापू की बेटी का क्या नाम था. मगर उनको संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता हैं. इसका कारण यह है कि बापू की कोई बेटी नहीं थी. उनके चार बेटे थे जिनका नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास.

गांधी अपने दो भाइयों और एक बहिन में सबसे छोटे थे. इनकी बहिन का नाम रलियत और दो भाइयों के नाम लक्ष्मीदास और कृष्णदास था. नंद कुंवरबेन, गंगा ये गांधीजी की भाभियाँ थी.

आज के समय में हम महात्मा गाँधी के वंशजों की बात करें तो उनके 154 परिवार के सदस्य हैं जो दुनियां के 6 देशों में रह रहे हैं. जिनमें 12 चिकित्सक और इतने ही प्रोफेसर हैं. इनके अलावा इंजीनियर, पत्रकार, वकील, प्रशासनिक अधिकारी, चार्टेड एकाउंटेंट और 4 पीएचडी डिग्री धारी भी शामिल हैं.

महात्मा गांधी की मृत्यु हत्या Death of Mahatma Gandhi

30 जनवरी 1948 का दिन शाम पांच बजकर 20 मिनट का समय हो रहा था. आज बापू रोजाना की प्रार्थना सभा में कुछ देरी से जा रहे थे. बिरला भवन में उनकी सरदार पटेल के साथ एक अहम बैठक थी इसी वजह से उनकी देरी हो गई थी.

आभा और मनु के कंधे पर हाथ रखे महात्मा गांधी तेजी से बिडला भवन की तरफ निकल रहे थे उनके साथ कुछ अनुयायी थे. तभी उनके सामने नाथूराम गोडसे नामक एक शख्स आकर प्रणाम मुद्रा में झुकता है तथा उन्हें आगे बढने से रोक देता हैं.

इस पर मनु उन्हें सामने से हटने के लिए कहती है मगर वो मनु को धक्का देकर अपने कपड़ों में छिपाई गई बैरेटा पिस्टल निकालकर गांधी जी पर एक के बाद एक तीन फायर करते हैं. दो गोलियां उनके शरीर के आर पार निकल जाती हैं वहीँ एक गोली शरीर में ही अटक जाती हैं.

उस मौके पर बेटा देवदास भी आ पहुचे थे. 78 साल के महात्मा गांधी की इस तरह हत्या से भारत ही नहीं दुनियां भर में शोक की लहर फ़ैल गई.

बापू पर हुए इस हमलें में नाथूराम गोडसे मुख्य अभियुक्त समेत आठ आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया जिसमें वीर सावरकर का भी नाम थे जिन्हें अदालत ने बेगुनाह पाया था. गांधी हत्या प्रकरण में नारायण आप्टे और नाथूराम विनायक गोडसे को फांसी दे दी गई.

महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी कहानियाँ प्रेरक प्रसंग Gandhi Story

Story Of Mahatma Gandhi  in hindi:  शीर्षक के इस लेख में पूज्य राष्ट्रपिता गांधीजी के जीवन से जुड़ी एक कहानी दी जा रही हैं.सत्य और अहिंसा की प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले  महात्मा गांधी की इस कहानी में हम जान जाएगे,

वो कितने अपने सिद्दांतो के पक्के और परिश्रमी थे, लोगों का उनके प्रति क्या नजरिया और रुझान था. यह बतलाने की जरुरत नही हैं, कि महात्मा गांधी अत्यंत परिश्रमी थे.

कभी-कभी वे तो रात के ठाई बजे उठ बैठते और दिन में आधे घंटे तक विश्राम करके रात के दस बजे तक काम करते रहते, उनके सिर पर काम का बोझ निरंतर बना रहता था. समस्त देश की चिंता महात्मा गांधी को इतना व्यस्त रखती थी.

उनके लिए हँसना हंसाना अत्यंत आवश्यक हो गया था. एक बार किसी विलायती सवाददाता ने उनसे पूछा- गांधीजी क्या आपमें हास्य की प्रवृति भी हैं, उन्होंने तुरंत जवाब दिया’ यदि मुझमे हास्य प्रवृति ना होती तो मैंने कभी का आत्मघात कर लिया होता.

महात्मा गांधी का मजाक छोटे-बड़े सभी के साथ चलता था. मन-बहलाव के लिए खास तौर पर बच्चों के साथ खूब दिल्लगी करते थे. एक बार महात्मा गांधी ने आश्रम की सभी महिलाओं की मीटिंग अपने कमरे में की. बातचीत का विषय था,

उनकी गोद ली हुई अछूत कन्या को अपने चौके में बिठला कर रसोई बनाना कोई सिखाएगा. डेढ़ घंटे तक गंभीर वार्तालाप होता रहा. एकत्रित स्त्रिओ में से कोई भी इस पुण्य कार्य के लिए तैयार नही हुई. सभी ने एक स्वर में ना कह दिया.

स्नान कराने, सिर के बाल काढ देने इत्यादि छोटी-छोटी सेवा के लिए स्त्रियाँ तैयार हो गईं परन्तु अपने चौके में उस बालिका को ना घुसने देना को स्वीकार नही था. वातावरण कुछ गम्भीर सा हो गया.महात्मा गांधी जी ने उस समय मुस्करा कर इतना ही कहा- ” तब मुझे अभी लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी”

इसके तुरंत बाद इन्होने छोटे-छोटे बच्चों पर, जो अपनी माताओ के साथ बापू के पास गये थे. निगाह फेकी. एक बच्चे के हाथ में उन्हें एक पैसा दिख पड़ा.

बापू को बस मौका मिल गया. उन्होंने उस बालक से कहा “अरे भाई पैसा मुझे दे दे”

बालक ने कहा- “मलाई बर्फ खाइये”

बापू ने कहा-“हमको तो मलाई की बर्फ मिलती नही”

बालक ने कहा-“हमारे घर चलो हम तुम्हे खूब खवावेगे”

इसके बाद बापू ने कुछ, जिसमे “शु” गुजरती शब्द आया था, जिसकी मानी हैं क्या”

वह बच्चा ”शु”न सनझ सका और सब महिलाएं हंस पड़ी, बापू भी हंस पड़े.

दुसरे दिन जब उस लड़के के पिता ने बापू की सेवा में उपस्थित होकर माफ़ी मांगी तो हसते हुए महात्मा गांधी ने सिर्फ इतना ही कहा” अरे यह बच्चा तो मेरा पुराना दोस्त हैं” बापू की इस स्वभाविक कोमलता के साथ-साथ कठोर नियन्त्रण वृति भी काम करती थी.

महात्मा गांधी ने अन्य महिलाओं से तो कुछ नही कहा, पर अपनी भतीजे मगनलाल गाँधी की धर्मपत्नी को हुक्म दिया” आप अपने मायके चली जाएं.

पर बच्चों को यही छोडती जाए, मुझे ऐसी बहु नही चाहिए. जो मेरी लड़की को चौके में घुसने न दे. श्री मगनलाल की धर्मपत्नी को अपने पिताजी के यहाँ जाना पड़ा और छ; सात महीने वही रहना पड़ा.

यह बतलाने की आवश्यकता नही हैं कि अतत उस तथाकथित अछूत बालिका को रसोई में ले जाना स्वीकार कर लिया.एक बार बापू की सवेरे की प्रार्थना में शामिल होने के लिए सवेरे चार बजे मै भी गया था.

मेरे हाथ में हॉकी स्टिक थी. उसे प्रार्थना स्थल के बाहर रखकर मै बैठ गया. प्रार्थना समाप्त होने पर ज्यो ही अपने हाथ में ली बापू उधर से आ निकले.

हंसकर कहा- ये लाठी आपने बड़ी मजबूत बाँधी हैं. मैंने उतर दिया” इसका नाम माखनलाल चतुर्वेदी ने मस्तक भजन रख दिया हैं”

बापू बोले-हाँ और सत्याग्रह आश्रम में मस्तक-भंजन रखनी ही चाहिए, आस-पास खड़े व्यक्ति हंस पड़े.

एक बार महात्मा गांधी ने मुझे सवेरे सात बजे और सवा सात बजे का टाइम बातचीत के लिए दिया.

मै उन दिनों नया-नया आश्रम में गया था. मन में सोचा कि बापू जाते थोड़े ही हैं, दो-चार मिनट की देरी भी हो जाएं तो क्या? सात बजकर दस बारह मिनट पर पंहुचा. बापू मुस्कराकर बोले-तुम्हारा टाइम तो बीत गया. अब भाग जाओ,

फिर कभी वक्त तय करके आना” मुझे बहुत लज्जित होना पड़ा. एक बार फिर ऐसी घटना घट गईं, परन्तु उसमे मेरा कोई अपराध नही था. बापू ने एक राजा साहब को शाम को तीन बजे का टाइम दिया था.

और मेरे सुपुर्द का काम यह था कि उनको लाऊ. उन्हें अहमदाबाद से आना था, बस एक मिनट की देरी हो गईं. मै राजा साहब को लेकर बापू की सेवा में पंहुचा तो वे बोले” मै तो मिनट भर से आपका इन्तजार कर रहा हु.  

महात्मा गांधी चाय को स्वास्थ्य के लिए सबसे हानिकारक मानते थे. परन्तु जिनको चाय पीने की आदत पड चुकी थी, उनके लिए चाय का प्रबंध भी अवश्य कर देते हैं.

एक बार मिस आगेथा हैरिसन नामक महिला अंग्रेज उनके साथ यात्रा पर आ रही थी और उन्हें इस बात की चिंता थी,कि प्रातकालीन चाय का इंतजाम कैसे होगा. 

महात्मा गांधी जी को जब यह पता लगा तो वे बोले ” आप फ़िक्र ना करिए आपके लिए मैंने आधा पौंड जहर रख दिया हैं. एक बार बापू ने मेरे साथ भी चाय के बारे में कई मजाक किये.

कलकता से चलकर वर्धा में उनकी सेवा में उपस्थित हुआ था. रात के साढ़े आठ से नौ बजे तक तक का टाइम मुझे दिया.

ठीक वक्त पर पंहुचा, आधे घंटे तक बातचीत होती रही.चलते वक्त महात्मा गांधी जी कहा-”खूब आराम से चाय पीना” मैंने कहा- क्या बापू आपकों मेरे चाय पीने का पता लग गया हैं? उन्होंने कहा- हाँ काका साह्ब मुझे बतला दिया हैं कि तुम कलकते में चाय पीने लग गये हो.

मुझे भी उसी वक्त मजाक सुझा, मैंने कहा-बापू आप मि. एंड्रयूज को छोटा भाई मानते हैं?

उन्होंने कहा- हाँ.

” और वे आपकों बड़ा भाई मानते हैं”

बापू ने कहा- हाँ.

मैंने तुरंत ही कहा-तो मै बड़े भाई की बात न मानकर छोटे भाई की बात मानता हु,

बापू हंसकर बोले- ” तब तो मै एंड्रयूज को लिख दू कि तुमको कितना अच्छा शिष्य मिल गया हैं.

फिर बापू ने गम्भीरतापूर्वक कहा-‘ रात के ढाई बजे से उठा हुआ हुआ हु,अब नौ बज रहे हैं, दिन में बीस मिनट आराम मिला हैं. मै चकित रह गया. अठारह घंटे मेहनत के बाद भी बापू कितने सजीव हैं. मानो वे हमारी काहिली का प्रायश्चित कर रहे थे.

संध्या समय जब महात्मा गांधीडच-गायना प्रवासी भारतीयों के लिए संदेश लिखाने बैठे तो मैंने अपनी जेब से फाउन्टेन पैन निकाला, तुरंत ही महात्मा गांधी जी ने कहा- कब से फाउन्टेन पेन से लिखते हो?

मैंने कहा- कई साल हो गये”

“कितने साल”

मैंने कहा-ठीक-ठीक नही बतला सकता”

तब महात्मा गांधी जी ने कहा-दक्षिण अफ्रीका में जब मेरे पास फाउन्टेन पैन था, परन्तु अब तो कलम से लिखता हु. डच गायना वाले भी क्या कहेगे कि इनके पास घर की कलम भी नही हैं” तुरंत चाक़ू और कलम मंगाई गईं. परन्तु मै जिस कागज पर लिखने चला था, वह था बढ़िया बैक पेपर.

महात्मा गांधी जी ने कहाँ यह बढ़िया कागज हम लोगों को कहा से मिल सकता हैं?

यह तुम्हारे ऑफिस वालों को ही मिलता हैं, जहाँ चाय भी मिलती हैं,

हम तो कोरा पानी पीने वाले गरीब आदमी ठहरे. मै लज्जित हो गया,

फिर महात्मा गांधी जी गम्भीर होकर बोले -मेरा संदेश स्वदेशी कागज पर लिखो. आज तो हम लोगों ने आश्रम में कार्ड और लिफ़ाफ़े भी बनवाएं हैं हाथ का बना कागज लाया गया और मैंने नेजे की कलम से और घर की स्याही से महात्मा गांधी का वो संदेश लिखा.

महात्मा गांधी अपने अधिनस्थो को पूरी-पूरी स्वाधीनता देते थे. और वे भी उनसे मजाक करने से नही चुकते थे. मै भी यह ध्रष्टता कर बैठता था.

जब श्री पदमजा नायडू के लिए कॉफ़ी का सब सामान लाया गया.

तो बापू ने हंसकर कहा- यह सब तुम्हारा साज-समान हैं.

मैंने कहा- ”देखिए बापू , मेरी वोट हो रही हैं”

”कैसे”

मैंने कहा- महादेव भाई चाय पीते हैं, बां काफी पीती हैं और पदमजा जी भी कोफ़ी पीती हैं और मै चाय, चार वोट हो गयी.

बापू ने तुरंत उत्तर दिया-बुरी चीजों के प्रचार के लिए वोट की जरुरत थोड़े ही पड़ती हैं, वे तो अपने आप फैलती हैं.

महात्मा गांधी जी मजाक में पीछे रहने वाले आदमी नही थे. वे बड़े हाजिर जवाब थे.

एक बार विद्यापीठ के प्रिंसिपल कृपलानीजी बोले- जब हम लोग आपस में दूर रहते हैं, तो हमारी अक्ल ठीक रहती हैं, परन्तु पास होते ही खराब हो जाती हैं’

बापू हंसकर बोले-”तब तो मै आपकी खराब अक्ल का जिम्मेदार मै अकेला ठहरा”

खूब हंसी हुई, कलकत्ते में बापू ने बीस मिनट का टाइम दिया-सवेरे पौने चार बजे का.

अकेले जाने की बजाय में 16-17 आदमियों के साथ गया. जब जीने पर चढने लगा, तब महादेव भाई नाराज हुए और बोले” आप तो आश्रम में रह चुके हैं, यह क्या बे-नियम कार्यवाही करते हैं. परन्तु महात्मा गांधी जी ने इतना ही कहा- तुम तो पूरी की पूरी फोज ले आए.

मैंने कहा- क्या करता, ये लोग माने ही नही, मैंने इन्हे वचन दे रखा था कि बापू के दर्शन निकट से कराउगा.

बीस मिनट तक वार्तालाप होता रहा जब प्रार्थना के लिए महात्मा गांधी जी उठे तो मैंने कहा-बापू मै तो ,मासिक पत्र में आपके खिलाफ बहुत कुछ लिखा करता हु” पर बापू बोले- सो तो ठीक हैं, पर कोई सुनता भी हैं? ”सब हंस पड़े”

मुनि श्री जिनविजय ने महात्मा गांधी का एक किस्सा सुनाया था. महात्मा गांधी पहले मोटर से बाहर निकले परन्तु थोड़ी दूर चलकर कोने में अपनी मोटर खड़ी कर ली. इसके दो मिनट बाद ही पंडित मोतीलाल जी नेहरु और मुनि जी की मोटर निकली, मोतीलाल जी ने मुनि से कहा- देखा आपने? 

महात्मा गांधी जी ने मेरे ख्याल से अपनी मोटर रोक रखी हैं.चलकर उनसे कारण पूछे, पंडितजी ने जब पूछा तो महात्मा गांधी जी बोले” मै नही चाहता था कि आपकों धुल फाक्नी पड़े, मै तो आपकों ज्यादा दिन जिन्दा देखना चाहता हु.

महात्मा गांधी जी के मजाक, हाजिर-जवाबी और उनकी जागरूकता के सैकड़ो किससे हैं, जो उनके भक्तो को सैम-समय पर याद आ जाते हैं. साथ ही अपनी घ्रष्टता का ख्याल करके लज्जा का बोध भी होता हैं.

ऐसे अवतारी महापुरुष मर्यादा पुरुषोतम के किसी भी प्रकार के मजाक की हिमाकत तो था, ही परन्तु वे अत्यंत क्षमाशील थे और सबको पूर्ण स्वाधीनता देने के पक्षपाती. उनकी पावन स्मृति में सहस्त्र बार प्रणाम! -बनारसीदास चतुर्वेदी

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  • Alexander III of Macedon – was a king of the ancient Greek kingdom of Macedon / सिकंदर या अलेक्जेंडर द ग्रेट 
  • Jalal-ud-din Muhammad Akbar – was the third Mughal emperor / जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर
  • Subhas Chandra Bose – an Indian nationalist / सुभाष चन्द्र बोस
  • Vikram Ambalal Sarabhai – an Indian Physicist and Astronomer / विक्रम साराभाई
  • Krishnakumar Kunnath (KK), was an Indian playback singer / कृष्णकुमार कुन्नथ
  • Tantia Tope an general in the Indian Rebellion of 1857 and notable leaders / तात्या टोपे
  • Sudha Murty – an Indian educator, author and philanthropist / सुधा मूर्ति
  • Droupadi Murmu – an Indian politician, president of India / द्रौपदी मुर्मू
  • Homi Jehangir Bhabha – was an Indian nuclear physicist, founding director, and professor of physics / होमी जहांगीर भाभा
  • Anandibai Joshi – First Indian Female Doctor / आनंदीबाई जोशी

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महात्मा गांधी जीवनी - Mahatma Gandhi biography in hindi

Mahatma Gandhi – The Father of The Nation / महात्मा गांधी

महात्मा गांधी जीवनी – Mahatma Gandhi biography in hindi – 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ ।परंतु देश को आजाद करने में, ना जाने कितने लोगों ने अपना जीवन निछावर कर दिया ।यहां आजादी के लिए लड़ने वाले दो अलग-अलग विचारधाराओं में बटे  हुए थे —

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  10. महात्मा गांधी की जीवनी

    August 8, 2020 by admin. महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma Gandhi in Hindi): भारत महान व्यक्ति की महान भूमि है. भारत की भूमि ऋषियों, संतों, कवियों, लेखकों ...

  11. महात्मा गांधी की जीवनी, जीवन परिचय और निबंध : Mahatma Gandhi Biography

    महात्मा गांधी की जीवनी (Mahatma Gandhi Ki Jivani), जीवन परिचय और निबंध : Mahatma Gandhi Biography in Hindi, मोहनदास करमचंद गांधी, ...

  12. महात्मा गांधी का जीवन परिचय

    1 महात्मा गांधी का जीवन परिचय | Mahatma Gandhi Biography in Hindi | Mahatma Gandhi ki Jivani | महात्मा गांधी का जन्म, मृत्यु, पिता का नाम, माता का नाम, बेटों के नाम, बेटी का नाम

  13. महात्मा गांधी की जीवनी

    महात्मा गांधी की जीवनी. Mahatma Gandhi जी भारत और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे और वे सत्याग्रह के ...

  14. महात्मा गांधी जीवनी

    महात्मा गांधी जीवनी - Biography of Mahatma Gandhi in Hindi Jivani. Published By : Jivani.org. नाम : मोहनदास करमचंद गांधी।. जन्म : 2 अक्तुंबर 1869 पोरबंदर। (गुजरात) पिता : करमचंद।. माता ...

  15. महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi

    गांधी जी की जीवनी व इतिहास (Gandhiji's biography and history) आज इस हस्ती के बारे में कोन नही जानता देश का बच्चा-बच्चा महात्मा गांधी की ऑटोबायो ग्राफी से वाकिफ हैं, गांधीजी ...

  16. महात्मा गांधी जीवनी

    Mahatma Gandhi - The Father of The Nation / महात्मा गांधी. महात्मा गांधी जीवनी - Mahatma Gandhi biography in hindi - 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ ।परंतु देश को आजाद करने में, ना जाने ...

  17. गांधी: मोहनदास से महात्मा बनने का सफर

    गांधी के मोहनदास से महात्मा बनने का सफर इतना आसान नहीं है। इस सफर को मात्र कुछ शब्दों में समेटा भी नहीं जा सकता। आइंस्टाइन का यह कथन ...

  18. नेहरू-गांधी परिवार

    उत्पत्ति का संक्षिप्त इतिहास. नेहरू परिवार का सम्बन्ध मूलत: कश्मीर से है। नेहरू ने अपनी आत्मकथा मेरी कहानी में इस बात का उल्लेख किया है कि स्वयं ...

  19. Download Free Gandhi E-Books in Hindi : Books On & By Gandhi

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  20. Mahatma Gandhi

    Mohandas Karamchand Gandhi (ISO: Mōhanadāsa Karamacaṁda Gāṁdhī; 2 October 1869 - 30 January 1948) was an Indian lawyer, anti-colonial nationalist and political ethicist who employed nonviolent resistance to lead the successful campaign for India's independence from British rule.He inspired movements for civil rights and freedom across the world.

  21. इन्दिरा गांधी

    इन्दिरा गांधी. इन्दिरा गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) ( 19 नवंबर 1917- 31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की ...

  22. Mahatma Gandhi

    Summarize This Article. Mahatma Gandhi (born October 2, 1869, Porbandar, India—died January 30, 1948, Delhi) was an Indian lawyer, politician, social activist, and writer who became the leader of the nationalist movement against the British rule of India. As such, he came to be considered the father of his country.

  23. फिरोज़ गांधी

    राजीव गांधी. संजय गांधी. धर्म. पारसी धर्म. फ़ीरोज़ और इन्दिरा का विवाह. फ़ीरोज़. फ़ीरोज़ गांधी (12 सितम्बर 1912 - 8 सितम्बर 1960) भारत के एक ...

  24. Lok Sabha Elections 2024: Have an emotional connect with Raebareli says

    Comments. New Delhi: As he seeks to retain the Raebareli seat represented by his mother Sonia Gandhi for two decades, Congress leader Rahul Gandhi on Tuesday said he has an emotional family ...