Vision IAS Environment and Ecology Hindi Notes PDF
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Environment and Ecology UPSC Mains Questions (पर्यावरण एवं पारिस्थिकी प्रश्न)
Environment and ecology upsc mains questions (पर्यावरण एवं पारिस्थिकी).
पृथ्वी की सतह पर प्रति वर्ष बड़ी मात्रा में वनस्पति पदार्थ, सेलुलोस, जमा हो जाता है। यह सेलुलोस किन प्राकृतिक प्रक्रियाओं से गुज़रता है जिससे कि वह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा अन्य अंत्य उत्पादों में परिवर्तित हो जाता है? (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
इसके निर्माण, प्रभाव और शमन को महत्त्व देते हुए फोटोकेमिकल स्मॉग की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए | 1999 के गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल को समझाइए । (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) की चर्चा कीजिए और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिए। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिए नियंत्रण उपायों को समझाइए (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में तटीय अपरदन के कारणों एवं प्रभावों को समझाइए खतरे का मुकाबला करने के लिए उपलब्ध तटीय प्रबंधन तकनीकें क्या है? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
नवंबर, 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन में सी. ओ. पी. 26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में, आरंभ की गई हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिए। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आइ. एस. ए. ) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था? (150 शब्द)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच. ओ.) द्वारा हाल ही में जारी किए गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ए. क्यू. जी. )के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिए। विगत 2005 के अद्यतन से, ये किस प्रकार भिन्न है? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिए, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (150 शब्द)
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू. एन. एफ. सी. सी. सी. ) के सी. ओ. पी. के 26 वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिए। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचंबद्धताएं क्या हैं? (250 शब्द)
पर्यावरण प्रभाव आकलन ( ई ० आइ ० ए ०) अधिसूचना, 2020 प्रारूप मौजूदा ई ० आइ ० ए ० अधिसूचना, 2006 से कैसे भिन्न है? (150 शब्द)
जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं? (150 शब्द)
पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन के विपरीत सूर्य के प्रकाश से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लाभों का वर्णन कीजिए। इस प्रयोजनार्थ हमारी सरकार द्वारा प्रस्तुत पहल क्या है? (250 शब्द)
भारत सरकार द्वारा आरंभ किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एन ० सी ० ए ० पी ०)की प्रमुख विशेषता क्या है? (250 शब्द)
आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किए गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिए। (250 शब्द
पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वृहत क्षमता की संकल्पना की परिभाषा दीजिए। स्पष्ट कीजिए कि किसी प्रदेश के दीर्घोपयोगी विकास की योजना बनाते समय इस संकल्पना को समझना किस प्रकार महत्वपूर्ण है।
तटीय बालू खनन, चाहे वह वैध हो या अवैध हो, हमारे पर्यावरण के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है। भारतीय तटों पर हो रहे बालू खनन के प्रभाव का, विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए विश्लेषण कीजिए।
निरंतर उत्पन्न किए जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएं हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हत्या सकते है? (150 शब्द)
आर्द्रभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के संदर्भ में ‘बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग’ की रामसर संकल्पना को स्पष्ट कीजिए। भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरणों का उद्धरण दीजिए। (150 शब्द)
सिक्किम भारत में प्रथम ‘जैविक राज्य’ है। जैविक राज्य के पारिस्थितिक एवं आर्थिक लाभ क्या -क्या होते है? (150 शब्द)
भारत में जैव विविधता किस प्रकार अलग-अलग पी जाती है? वनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैव विविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (250 शब्द)
यह बहुत वर्षों की बात है जब नदियों को जोड़ना एक संकल्पना थी, परंतु अब यह देश में एक वास्तविकता बनती जा रही है। नदियों को जोड़ने से होने वाले लाभों पर एवं पर्यावरण पर इसके संभावित प्रभाव पर चर्चा कीजिए। (150 शब्द)
जलवायु परिवर्तन’ एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमलयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (250 शब्द)
बड़ी परियोजनाओ के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्वपूर्ण परिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओ के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिए सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिये।
नामामि गंगे और स्वच्छ गंगा का राष्ट्रीय मिशन (एन.एम.सी.जी.) कार्यक्रमों पर और इससे पूर्व की योजनाओं से मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिए। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्र छलांगे, क्रमिक योगदानों की अपेक्षा ज्यादा सहायक हो सकती हैं?
सरकार द्वारा किसी परियोजना को अनुमति देने से पूर्व, अधिकारिक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन किय जा रहे है। कोयला गर्त-शिखरों पर अवस्थित कोयला-अग्नित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिए।
अवैध खनन के क्या परिणाम होते हैं? कोयला खनन क्षेत्र के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रलय के ‘हाँ’ या ‘नहीं’ की अवधारणा की विवेचना कीजिए। (200 शब्द 10 अंक)
भारत की राष्ट्रीय जल नीति की परिगणना कीजिए। गंगा नदी का उदाहरण लेते हुए, नदियों के जल प्रदूषण नियंत्रण व प्रबंधन के लिए अंगीकृत की जाने वाली रणनीतियों की विवेचना कीजिए। भारत में खतरनाक अपशेषों के प्रबंधन और संचालन के लिए क्या वैधानिक प्रावधान है? (200 शब्द 10 अंक)
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पर्यावरण पर निबंध | Environment Essay in Hindi
Essay on Environment in Hindi
पर्यावरण, पर हमारा जीवन पूरी तरह निर्भर है, क्योंकि एक स्वच्छ वातावारण से ही स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। पर्यावरण, जीवन जीने के लिए उपयोगी वो सारी चीजें हमें उपहार के रुप में उपलब्ध करवाता है।
पर्यावरण से ही हमें शुद्ध जल, शुद्ध वायु, शुद्ध भोजन,प्राकृतिक वनस्पतियां आदि प्राप्त होती हैं। लेकिन इसके विपरीत आज लोग अपने स्वार्थ और चंद लालच के लिए जंगलों का दोहन कर रहे हैं, पेड़-पौधे की कटाई कर रहे हैं, साथ ही भौतिक सुख की प्राप्ति हुए प्राकृतिक संसाधनों का हनन कर प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसका असर हमारे पर्यावरण पर पड़ा रहा है।
इसलिए पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं प्राकृतिक पर्यावरण के महत्व को समझाने के लिए हर साल दुनिया भर के लोग 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस – World Environment Day के रूप में मनाते हैं। हमने कभी जाना हैं की इस दिवस को हम क्यों मनाते हैं। इस दिन का जश्न मनाने के पीछे का उद्देश्य लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है ताकि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सकारात्मक कदम उठा सकें।
और साथ ही कई बार स्कूलों में छात्रों के पर्यावरण विषय पर निबंध ( Essay on Environment) लिखने के लिए कहा जाता है, इसलिए आज हम आपको पर्यावरण पर अलग-अलग शब्द सीमा पर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका चयन आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं –
पर्यावरण पर निबंध – Environment Essay in Hindi
पर्यावरण, जिससे चारों तरफ से संपूर्ण ब्रहाण्ड और जीव जगत घिरा हुआ है। अर्थात जो हमारे चारों ओर है वही पर्यावरण है। पर्यावरण पर मनुष्य ही नहीं, बल्कि सभी जीव-जंतु, पेड़-पौधे, प्राकृतिक वनस्पतियां आदि पूरी तरह निर्भर हैं।
पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती हैं, क्योंकि पर्यावरण ही पृथ्वी पर एक मात्र जीवन के आस्तित्व का आधार है। पर्यावरण, हमें स्वस्थ जीवन जीने के लिए शुद्ध, जल, शुद्ध वायु, शुद्ध भोजन उपलब्ध करवाता है।
एक शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन जीने के लिए एक स्वच्छ वातावरण बहुत जरूरी है लेकिन हमारे पर्यावरण मनुष्यों की कुछ लापरवाही के कारण दिन में गंदे हो रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे सभी को विशेष रूप से हमारे बच्चों के बारे में पता होना चाहिए।
“ पर्यावरण की रक्षा , दुनियाँ की सुरक्षा! ”
पर्यावरण न सिर्फ जीवन को विकसित और पोषित करने में मद्द करता है, बल्कि इसे नष्ट करने में भी मद्द करता है। पर्यावरण, जलवायु के संतुलन में मद्द करता है और मौसम चक्र को ठीक रखता है।
वहीं अगर सीधे तौर पर कहें मानव और पर्यावरण एक – दूसरे के पूरक हैं और दोनों एक-दूसरे पर पूरी तरह से निर्भर हैं। वहीं अगर किसी प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित कारणों की वजह से पर्यावरण प्रभावित होता है तो, इसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ता है।
पर्यावरण प्रदूषण की वजह से जलवायु और मौसम चक्र में परिवर्तन, मानव जीवन को कई रुप में प्रभावित करता है और तो और यह परिवर्तन मानव जीवन के आस्तित्व पर भी गहरा खतरा पैदा करता है।
लेकिन फिर भी आजकल लोग भौतिक सुखों की प्राप्ति और विकास करने की चाह में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने से नहीं चूक रहे हैं। चंद लालच के चलते मनुष्य पेड़-पौधे काट रहा है, और प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर कई ऐसी प्रतिक्रियाएं कर रहा है, जिसका बुरा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है।
वहीं अगर समय रहते पर्यावरण को बचाने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो मानव जीवन का आस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
इसलिए पर्यावरण को बचाने के लिए हम सभी को मिलकर उचित कदम उठाने चाहिए। हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिए और पेड़ों की कटाई पर पूरी तरह रोक लगानी चाहिए।
आधुनकि साधन जैसे वाहन आदि का इस्तेमाल सिर्फ जरूरत के समय ही इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआं न सिर्फ पर्यावरण को दूषित कर रहा है, बल्कि मानव जीवन के लिए भी खतरा उत्पन्न कर रहा है। इसके अलावा उद्योगों, कारखानों से निकलने वाले अवसाद और दूषित पदार्थों के निस्तारण की उचित व्यवस्था करनी चाहिए,ताकि प्रदूषण नहीं फैले।
वहीं अगर हम इन छोटी-छोटी बातों पर गौर करेंगे और पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाने में अपना सहयोग करेंगे तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा।
पर्यावरण पर निबंध – Paryavaran Sanrakshan Par Nibandh
प्रस्तावना
पर्यावरण, एक प्राकृतिक परिवेश है, जिससे हम चारों तरफ से घिरे हुए हैं और जो पृथ्वी पर मौजूद मनुष्य, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, प्राकृतिक वनस्पतियां को जीवन जीने में मद्द करता है। स्वच्छ पर्यावरण में ही स्वस्थ व्यक्ति का विकास संभव है, अर्थात पर्यावरण का दैनिक जीवन से सीधा संबंध है।
हमारे शरीर के द्धारा की जाने वाली हर प्रतिक्रिया पर्यावरण से संबंधित है, पर्यावरण की वजह से हम सांस ले पाते हैं और शुद्ध जल -भोजन आदि ग्रहण कर पाते हैं, इसलिए हर किसी को पर्यावरण के महत्व को समझना चाहिए।
पर्यावरण का अर्थ – Environment Meaning
पर्यावरण शब्द मुख्य रुप से दो शब्दों से मिलकर बना है, परि+आवरण। परि का अर्थ है चारो ओर और आवरण का मतलब है ढका हुआ अर्थात जो हमे चारों ओर से घेरे हुए है। ऐसा वातावरण जिससे हम चारों तरफ से घिरे हुए हैं, पर्यावरण कहलाता है।
पर्यावरण का महत्व – Importance of Environment
पर्यावरण से ही हम है, हर किसी के जीवन के लिए पर्यावरण का बहुत महत्व है, क्योंकि पृथ्वी पर जीवन, पर्यावरण से ही संभव है। समस्त मनुष्य, जीव-जंतु, प्राकृतिक वनस्पतियां, पेड़-पौड़े, मौसम, जलवायु सब पर्यावरण के अंतर्गत ही निहित हैं। पर्यावरण न सिर्फ जलवायु में संतुलन बनाए रखने का काम करता है और जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएं उपलब्ध करवाता है।
वहीं आज जहां विज्ञान से तकनीकी और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिला है और दुनिया में खूब विकास हुआ है, तो दूसरी तरफ यह बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार हैं। आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण और बढ़ती टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ा रहा है।
मनुष्य अपने स्वार्थ के चलते पेड़-पौधे की कटाई कर रहा है एवं प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ कर रहा है, जिसके चलते पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच रही है। यही नहीं कुछ मानव निर्मित कारणों की वजह से वायुमंडल, जलमंडल आदि प्रभावित हो रहे हैं धरती का तापमान बढ़ रहा है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है, जो कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है।
इसलिए पर्यावरण के महत्व को समझते हुए हम सभी को अपने पर्यावरण को बचाने में सहयोग करना चाहिए।
पर्यावरण और जीवन – Environment And Life
पर्यावरण और मनुष्य एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात पर्यावरण पर ही मनुष्य पूरी तरह से निर्भऱ है, पर्यावरण के बिना मनुष्य, अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है, भले ही आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हो, लेकिन प्रकृति ने जो हमे उपलब्ध करवाया है, उसकी कोई तुलना नहीं है।
इसलिए भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रकृति का दोहन करने से बचना चाहिए।वायु, जल, अग्नि, आकाश, थल ऐसे पांच तत्व हैं, जिस पर मानव जीवन टिका हुआ है और यह सब हमें पर्यावरण से ही प्राप्त होते हैं।
पर्यावरण न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य का एक मां की तरह ख्याल रखता है,बल्कि हमें मानसिक रुप से सुख-शांति भी उपलब्ध करवाता है।
पर्यावरण, मानव जीवन का अभिन्न अंग है, अर्थात पर्यावरण से ही हम हैं। इसलिए हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
उपसंहार
पर्यावरण के प्रति हम सभी को जागरूक होने की जरुरत हैं। पेड़ों की हो रही अंधाधुंध कटाई पर सरकार द्धारा सख्त कानून बनाए जाना चाहिए। इसके साथ ही पर्यावरण को स्वच्छ रखना हम सभी को अपना कर्तव्य समझना चाहिए, क्योंकि स्वच्छ पर्यावरण में रहकर ही स्वस्थ मनुष्य का निर्माण हो सकता है और उसका विकास हो सकता है।
पर्यावरण पर निबंध – Paryavaran Par Nibandh
पर्यावरण हमें जीवन जीने के लिए सभी आवश्यक चीजें जैसे कि हवा, पानी, रोशनी, भूमि, अग्नि, पेड़-पौधे, प्राकृतिक वनस्पतियां आदि उपलब्ध करवाता है। हम पर्यावरण पर पूरी तरह निर्भर हैं। वहीं अगर हम अपने पर्यावरण को साफ-सुथरा रखेंगे तो हम स्वस्थ और सुखी जीवन का निर्वहन कर सकेंगे। इसिलए पर्यावरण को सरंक्षित करने एवं स्वच्छ रखने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना चाहिए।
पर्यावरण, प्रौद्योगिकी, प्रगति और प्रदूषण –
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विज्ञान की उन्नत तकनीक ने मनुष्य के जीवन को बेहद आसान बना दिया है, वहीं इससे न सिर्फ समय की बचत हुई है बल्कि मनुष्य ने काफी प्रगति भी की है, लेकिन विज्ञान ने कई ऐसी खोज की हैं, जिसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है, और जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है।
एक तरफ विज्ञान से प्रोद्यौगिकी का विकास हुआ, तो वहीं दूसरी तरफ उद्योंगों से निकलने वाला धुआं और दूषित पदार्थ कई तरह के प्रदूषण को जन्म दे रहा है और पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर रहा है।
उद्योगों से निकलने वाला दूषित पदार्थ सीधे प्राकृतिक जल स्त्रोत आदि में बहाए जा रहे हैं, जिससे जल प्रदूषण की समस्या पैदा हो रही है,इसके अलावा उद्योगों से निकलने वाले धुंए से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
पर्यावरण संरक्षण के उपाय – Paryavaran Sanrakshan Ke Upay
उद्योगों से निकलने वाला दूषित पदार्थ और धुएं का सही तरीके से निस्तारण करना चाहिए।
पर्यावरण की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाना चाहिए।
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगानी चाहिए।
वाहनों का इस्तेमाल बेहद जरूरत के समय ही किया जाना चाहिए।
दूषित और जहरीले पदार्थों के निपटान के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए।
लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए।
विश्व पर्यावरण दिवस – World Environment Day
लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने और इसके प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से 5 जून से 16 जून के बीच विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है। इस मौके पर कई जगहों पर जागरूकता कार्यक्रमों का भी आय़ोजन किया जाता है।
पर्यावरण हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, इसलिए इसकी रक्षा करना हम सभी की जिम्मेदारी है, अर्थात हम सभी को मिलकर अपने पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाने में अपना सहयोग करना चाहिए।
Slogans on pollution
Slogan on environment
Essay in Hindi
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15 thoughts on “पर्यावरण पर निबंध | Environment Essay in Hindi”
Nice sir bhote accha post h aapne to moj kar de h sir thank you sir app easi past karte rho ham logo ke liye
Thank you sir aapne bahut accha post Kiya h mere liye bahut labhkaari h government job ki tayari ke liye
bahut badhiya jaankari share kiye ho sir, Environment Essay.
Thanks sir bhaut acha essay hai helpful hai aur needful bhi isme sari jankari di gye hai environment ke baare Mai and isse log inspire bhi hongee isko.pdkee……..
I love this essay…
Thanks mujhe ye bahut kaam diya speech per
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पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
पर्यावरण प्रदूषण: वर्गीकरण, कारण एवं इसके प्रकार
पर्यावरण प्रदूषण क्या है?
पर्यावरण प्रदूषण का तात्पर्य मानव गतिविधियों के कारण पर्यावरण में किसी भी अवांछित सामग्री के शामिल होने से है जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी में अवांछनीय परिवर्तन का कारण बनता है। उदाहरण के लिए, स्वच्छ जल स्रोतों जैसे टैंकों, नदियों आदि में सीवेज के जल को मुक्त करना, जल प्रदूषण का एक उदाहरण है।
प्रदूषक क्या हैं?
पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न कारकों को प्रदूषक कहा जाता है। प्रदूषक रसायन, जैविक या भौतिक कारक हो सकते हैं जो दुर्घटनावश पर्यावरण में शामिल हो जाते हैं जो लोगों और अन्य जीवित प्राणियों के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हानिकारक होते हैं।
प्रदूषण का वर्गीकरण
– वे उसी रूप में बने रहते हैं जिस रूप में उन्हें पर्यावरण में जोड़ा जाता है। डीडीटी, प्लास्टिक आदि।
– प्राथमिक प्रदूषकों के बीच परस्पर क्रिया द्वारा निर्मित, जैसे , नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन की परस्पर क्रिया से बनते है।
– ये प्रदूषक प्रकृति में पाये जाते हैं तथा ये प्रदूषक तब और गंभीर हो जाते हैं जब उनकी सांद्रता एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाती है। उदाहरण के लिए, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड मात्रात्मक प्रदूषक हैं।
– ये मानव निर्मित होते हैं और प्रकृति में स्वतंत्र रूप से नहीं पाये जाते। उदाहरण के लिए, कवकनाशक, शाकनाशी, डीडीटी आदि गुणात्मक प्रदूषक हैं।
– अपशिष्ट उत्पाद या प्रदूषक जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं से माइक्रोबियल क्रिया द्वारा विघटित/अवक्रमित होते हैं। जैसे सीवेज।
– वे प्रदूषक जो प्राकृतिक रूप से विघटित नहीं होते या धीरे-धीरे विघटित होते हैं, जैसे डीडीटी, एल्युमीनियम के डिब्बे।
– ये प्रदूषक प्राकृतिक प्रक्रियाओं के दौरान उत्सर्जित होते हैं, जैसे उदाहरण के लिए, ज्वालामुखी विस्फोट में सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है, जबकि जंगलों की आग में कार्बन मोनोऑक्साइड और धूल के कण निकलते उत्सर्जित होते हैं।
– ये प्रदूषक मानवीय गतिविधियों के दौरान उत्सर्जित होते हैं, जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने दहन से CO उत्सर्जन। उदाहरण के लिए, औद्योगिक गतिविधियों से निकलने वाले हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव
प्रदूषण पृथ्वी पर जीवन को बनाये रखने वाले मूल कारकों को प्रभावित करते है। यह हमारे जीवन के लिये आवयश्क वायु, जल तथा अन्य पारिस्थितिकी तंत्र, जिस पर हम निर्भर है, को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
प्रदूषण मनुष्यों और अन्य जीवित प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। यद्यपि यह सम्पूर्ण समाज के समग्र कल्याण को प्रभावित करते है लेकिन निर्धन, बच्चों, महिलाओं आदि जैसे कमजोर वर्गों पर इसका असमान रूप से प्रभाव अधिक होता है।
पर्यावरण प्रदूषण का अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव होता है। एक अध्ययन के अनुसार, जल प्रदूषण से मछली पकड़ने, कृषि, जल-सघन उद्योगों आदि क्षेत्रों में होने वाले नुकसान के कारण 2050 तक भारत की जीडीपी में लगभग 6% का नुकसान होगा।
पर्यावरण प्रदूषण के अन्य सामाजिक-आर्थिक प्रभावों में घटे कृषि उपज के कारण खाद्य असुरक्षा, जल संकट के कारण जबरन प्रवासन आदि शामिल हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण
मानव जनसंख्या में तीव्र वृद्धि ने मानवजनित गतिविधियों को कई गुना बढ़ा दिया है। इनमें से अधिकाँश गतिविधियाँ, किसी न किसी तरह से पर्यावरण में कुछ अवांछित कारकों को जोड़ती हैं।
हाल के दिनों में तेजी से शहरीकरण के कारण निर्माण गतिविधियों में वृद्धि हुई है। निर्माण गतिविधियाँ विभिन्न तरीकों से पर्यावरण प्रदूषण को फैला रहें है, जैसे वायु में धूल के कण, अपशिष्ट पदार्थों का निर्माण आदि।
बढ़ती आबादी और शहरीकरण के कारण परिवहन गतिविधियाँ में भी वृद्धि हुई हैं। यह अपने आप में प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।
हाल ही में औद्योगीकरण पर बढ़ते फोकस के कारण औद्योगिक अपशिष्ट और उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है, और इसलिए पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है।
कुछ कृषि गतिविधियाँ भी पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनती हैं। उदाहरण के लिए, उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से न केवल मिट्टी का प्रदूषण होता है बल्कि आस-पास के जल निकायों में भी रिसाव होता है।
पर्यावरण प्रदूषण के कई अन्य कारण हैं, जैसे जीवाश्म ईंधनों का दहन, रसायनों का बढ़ता उपयोग आदि।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार
प्रदूषकों के स्रोत और गंतव्य के आधार पर, प्रदूषण विभिन्न प्रकार के होते हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
वायु प्रदूषण
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वायु प्रदूषण किसी भी रासायनिक, भौतिक या जैविक एजेंट द्वारा आंतरिक या बाहरी वातावरण का संदूषण है जो वातावरण की प्राकृतिक विशेषताओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
WHO के आँकड़ों के अनुसार , दुनिया की 99 प्रतिशत आबादी ऐसी वायु में साँस लेती है जिसमें उच्च स्तर के प्रदूषक होते हैं तथा WHO के दिशानिर्देशों की सीमा से अधिक होते हैं, जिससे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सबसे अधिक स्वास्थ्य जोखिम होता है।
वायु प्रदूषण के कारण
वायु प्रदूषण के कई कारण हैं, जिन्हें मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
1. मानव गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:
मानव गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण में वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक उत्सर्जन, अपशिष्टो के दहन, बिजली उत्पादन, निर्माण और विध्वंस आदि शामिल है । इन गतिविधियों से उत्सर्जित होने वाले प्रदूषकों में कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, पार्टिकुलेट मैटर, ओजोन और विषैले रसायन आदि शामिल हैं।
2. प्राकृतिक घटनाओं से होने वाले प्रदूषण के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:
ज्वालामुखी विस्फोट: ज्वालामुखी विस्फोटों से सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर जैसे प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं।
वनों की आग: वनों की आग से कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर जैसे प्रदूषक निकलते हैं।
धूल भरे तूफान: धूल भरे तूफान धूल, मिट्टी और अन्य कणों को वायु में मिश्रित कर देते हैं।
मरुस्थलीकरण: मरुस्थलीकरण से वायु में धूल और अन्य कणों की मात्रा बढ़ सकती है।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किये गये उपाय
वायु (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981: यह अधिनियम वायु प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर का कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP): यह कार्यक्रम भारत में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक योजना है।
निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली (CAAQMS): यह प्रणाली देश भर में वायु गुणवत्ता की निगरानी करती है और वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता डेटा प्रदान करती है।
सीएसआईआर-एनईईआरआई द्वारा विकसित ग्रीन क्रैकर्स: ये कम प्रदूषित पटाखे हैं जो पारंपरिक पटाखों की तुलना में कम हानिकारक हैं।
अरावली की महान हरी दीवार (Green Wall) : यह एक विशाल वृक्षारोपण परियोजना है जिसका उद्देश्य अरावली पहाड़ियों को बहाल करना और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण को कम करना है।
दिल्ली जैसे कुछ राज्यों ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए स्मॉग टावर्स का निर्माण किया है।
जल प्रदूषण जल निकायों में अवांछित पदार्थों के स्राव को संदर्भित करता है जैसे कि झीलें, धाराएँ, नदियाँ और महासागर जैसे जल निकायों में अवांछित पदार्थों की इतनी मात्रा जो जल के लाभकारी उपयोग या पारिस्थितिक तंत्रों के प्राकृतिक कामकाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते है।
जब हानिकारक रसायन या सूक्ष्मजीव किसी धारा, नदी, झील, समुद्र, जलभृत या अन्य जल निकाय को दूषित करते हैं, तो जल की गुणवत्ता खराब हो जाती है और यह मनुष्यों और पर्यावरण दोनों के लिये विषाक्त हो जाता है।
जल प्रदूषण के परिणामस्वरूप घुलित ऑक्सीजन (डीओ) का स्तर गिर जाता है तो जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) बढ़ जाती है परिणामस्वरूप जलीय प्रजातियाँ नष्ट होने लगती है।
जल प्रदूषण के कारण
कृषि जल प्रदूषण के प्राथमिक स्रोतों में से एक है। खेतों और पशुधन कार्यों से निकलने वाला पशु अपशिष्ट, कीटनाशक, उर्वरक पोषक तत्वों एवं रोगजनकों जैसे बैक्टीरिया और वायरस को हमारे जलमार्गों में बहा दिया जाता हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया के 80 प्रतिशत से अधिक अपशिष्ट जल, बिना उपचार या पुन: उपयोग के पर्यावरण में पुन: प्रवाहित कर दिया जाता है।
अनुमानित 10 लाख टन तेल का लगभग आधा हिस्सा समुद्री वातावरण में दुर्घटनावश फैला दिया जाता है।
यूरेनियम खनन, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और अस्पतालों द्वारा रेडियोधर्मी पदार्थ जो शोध और चिकित्सा के लिए रेडियोधर्मी सामग्री का उपयोग करते हैं। इन अपशिष्ट को खुले वातावरण में छोड़ दिया जाता हैं जो हजारों वर्षों तक पर्यावरण में बने रहते हैं। इन रेडियोधर्मी पदार्थ का निपटान भी एक बड़ी चुनौती है।
जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये किये गए उपाय
जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये अंतरराष्ट्रीय उपाय :.
समुद्री प्रदूषण को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन
समुद्र में अपशिष्टों के निपटान पर कन्वेंशन या लंदन कन्वेंशन (1972)
अपशिष्टों और अन्य पदार्थों के डंपिंग द्वारा समुद्री प्रदूषण की रोकथाम पर 1972 कन्वेंशन, जिसे “एलसी 72” या “लंदन कन्वेंशन” के रूप में भी जाना जाता है।
संयुक्त राष्ट्र समुद्र कानून संधि (UNCLOS)
जल प्रदूषण से निपटने के लिये भारत में किये गए उपाय :
जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
नदियों को पुनर्जीवित करने की पहल, जैसे गंगा कार्य योजना, यमुना कार्य योजना इत्यादि।
भूजल के प्रदूषण और अत्यधिक दोहन से निपटने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की गई पहल।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा ऐसी ध्वनि के रूप में परिभाषित किया गया है जो 65 डेसिबल (dB) से अधिक तेज है।
संक्षेप में, ध्वनि 75 dB से ऊपर हानिकारक और 120 dB से ऊपर गंभीर रूप से हानिकारक है। इसलिए दिन के समय में ध्वनि स्तर को 65 dB से नीचे रखने की सलाह दी जाती है।
रात्रि के समय के लिए उपयुक्त परिवेशी ध्वनि स्तर 30 dB है; इस से ऊपर के ध्वनि स्तरों के साथ आरामदायक नींद नहीं मिल सकती।
विश्वभर में ध्वनि प्रदूषण की वर्तमान स्थिति को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट ‘फ्रंटियर्स 2022: नॉइज, ब्लेज़ेस एंड मिसमैचेस’ के माध्यम से देखा जा सकता है, जो दुनिया के सबसे शोर वाले शहरों को सूचीबद्ध करती है।
1
ढाका
बांग्लादेश
119 dB
2
मुरादाबाद
भारत
114 dB
3
इस्लामाबाद
पाकिस्तान
105 dB
4
राजशाही
बांग्लादेश
103 dB
5
हो ची मिंह शहर
वियतनाम
103 dB
ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सुझाये गए उपाय
स्रोत पर ध्वनि को कम रखना
ध्वनिक ज़ोनिंग
निर्माण स्थलों पर ध्वनिरोधी
सख्त वैधानिक उपाय
मृदा प्रदूषण
विषैले पदार्थों की असामान्य रूप से उच्च सांद्रता वाली मिट्टी के प्रदूषण को मृदा प्रदूषण कहा जाता है।
यह एक गंभीर पर्यावरणीय चिंता है, क्योंकि इसमें कई स्वास्थ्य जोखिम शामिल हैं। उदाहरण के लिए, उच्च बेंजीन सांद्रता वाली मिट्टी के संपर्क में आने से ल्यूकेमिया के विकास का खतरा बढ़ जाता है।
मृदा प्रदूषण के कारण
वर्तमान मृदा क्षरण के प्रमुख कारणों में कार्बनिक कार्बन का ह्रास, कटाव, बढ़ी हुई लवणता, अम्लीकरण, संघनन और रासायनिक प्रदूषण शामिल हैं।
मृदा प्रदूषण से निपटने के लिए सुझाये गए उपाय
व्यवसाय, कृषि, पशु प्रजनन और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में पर्यावरण के अनुकूल विधियों को बढ़ावा देना।
उचित शहरी नियोजन के माध्यम से अपशिष्ट जल के कुशल परिवहन और उपचार को सुनिश्चित करना।
ऊपरी मृदा संरक्षण, भूदृश्य पुनर्स्थापन और खनन अपशिष्ट प्रबंधन में वृद्धि करना।
रेडियोधर्मी प्रदूषण
जब रेडियोधर्मी तत्व आकस्मिक रूप से पर्यावरण या वातावरण में उपस्थित होते हैं और रेडियोधर्मी क्षय के कारण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं तो इसे रेडियोधर्मी प्रदूषण कहा जाता है।
रेडियोधर्मी सामग्री पर्यावरण में अल्फा या बीटा कणों, गामा किरणों या न्यूट्रॉन जैसे संभावित रूप से हानिकारक आयनकारी विकिरण के द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुँचाती है।
रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण
परमाणु ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों से परमाणु दुर्घटनाएँ
सामूहिक विनाश के हथियारों (WMD) के रूप में परमाणु हथियारों का प्रयोग
स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों में रेडियो समस्थानों का प्रयोग
रेडियोधर्मी रसायनों का रिसाव
कॉस्मिक किरणें और अन्य प्राकृतिक स्रोत
परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान
प्रकाश प्रदूषण
प्रकाश प्रदूषण अनुचित, अवांछित और अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश की उपस्थिति है।
अत्यधिक प्रकाश प्रदूषण का पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है इसके साथ ही खगोलीय अनुसंधान में बाधा पहुँचती है, परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र भी प्रभावित होता है।
प्रकाश प्रदूषण की विशिष्ट श्रेणियों में प्रकाश अव्यवस्था, प्रकाश अतिचार, अति-रोशनी, चकाचौंध और आकाश की चमक शामिल हैं।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए एलईडी लाइट्स का उपयोग करना तथा इसके साथ ही सजावटी लाइटिंग का उपयोग कम करना आदि शामिल हैं।
नाइट्रोजन प्रदूषण
नाइट्रोजन प्रदूषण अमोनिया और नाइट्रस ऑक्साइड जैसे नाइट्रोजन यौगिकों की अधिकता के कारण होता है। कभी-कभी कृत्रिम उर्वरकों का प्रयोग भी इस प्रदूषण का कारण बनता है।
एक अन्य संभावित कारण बड़ी मात्रा में पशु खाद और घोल को विघटित करना भी है, जो प्राय: गहन पशुधन इकाइयों में उपस्थित होते है।
इसका हमारी जलवायु, पारिस्थितिकी तंत्र और स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
नाइट्रोजन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सुझाये गए उपाय
जलवायु और प्रकृति-अनुकूल कृषि के तरीकों को अपनाना चाहिए तथा इसके साथ ही सिंथेटिक उर्वरकों के प्रयोग से बचना चाहिए।
भविष्य में किसानों को कम नाइट्रोजन वाले उर्वरको को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए तथा इसके साथ ही जैविक और कृषि-पारिस्थितिकी किसानों का समर्थन करना चाहिए।
इस प्रकार, विभिन्न मानवजनित तथा प्राकृतिक गतिविधियों के कारण होने वाले विभिन्न प्रकार के प्रदूषण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। भारत और दुनिया को विकास एजेंडे के हिस्से के रूप में “हरित दृष्टिकोण” अपनाना चाहिए। अब समय आ गया है कि मूलभूत आवश्यकताओं की सूची में “स्वच्छ पर्यावरण” – “रोटी-कपड़ा-मकान” भी जोड़ दिया जाएँ।
राष्ट्रीय भूगोल
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यूपीएससी मेन्स से पिछले 09 वर्षों के विषय-वार निबंध प्रश्न (2013 - 2021)
UPSC सिविल सेवा मुख्य परीक्षा का पेपर-I निबंध होता है। इसमें आईएएस मुख्य परीक्षा के उम्मीदवारों को कुछ दिए गए विषयों में से दो विषयों पर निबंध लिखने होते हैं। यह पेपर कुल 250 अंकों का होता है और इसके अंकों को अंतिम मेरिट सूची के लिए ध्यान में रखा जाता है। इस लेख में, हमने 2013 से 2021 तक UPSC mains exam में पूछे गए सभी निबंध विषयों को सूचीबद्ध किया है। हमने आपकी तैयारी को आसान बनाने के लिए पिछले 09 वर्षों के निबंध प्रश्नों को भी विषयों में वर्गीकृत किया है।
यूपीएससी मेन्स से पिछले 09 वर्षों के विषय-वार निबंध प्रश्न (2013 – 2021)- Download PDF Here
यूपीएससी निबंध विषय
“सर्वोत्तम कार्यप्रणाली” से बेहतर कार्यप्रणालियाँ भी होती हैं । (2021)
क्या यह नीति – गतिहीनता थी या कि क्रियान्वयन – गतिहीनता थी, जिसने हमारे देश की संवृद्धि को मंथर बना दिया था ? (2014)
आर्थिक विकास और विकास
व्यक्ति के लिए जो सर्वश्रेष्ठ है, वह आवश्यक नहीं कि समाज के लिए भी हो | (2019)
भारत में अधिकतर कृषकों के लिए कृषि जीवन – निर्वाह का एक सक्षम स्रोत नहीं रही है। (2017)
नवप्रवर्तन आर्थिक संवृद्धि और सामाजिक कल्याण का अपरिहार्य निर्धारक है |
क्या पूंजीवाद द्वारा समावेशित विकास हो पाना संभव है ? (2015)
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के साथ-साध सकल घरेलू खुशहाली (GDH) देश की सम्पन्नता के मूल्यांकन के सही सूचकांक होगे । (2013)
संघवाद, विकेंद्रीकरण
भारत में संघ और राज्यों के बीच राजकोषीय संबंधों पर नए आर्थिक उपायों का प्रभाव । (2017)
संघीय भारत में राज्यों के बीच जल-विवाद | (2016)
सहकारी संघवाद : मिथक अथवा यथार्थ | (2016)
भारतीय संस्कृति और समाज
जो हम हैं, वह संस्कार; जो हमारे पास है, वह सभ्यता | (2020)
पितृ-सत्ता की व्यवस्था नजर में बहुत कम आने के बावजूद सामाजिक विषमता की सबसे प्रभावी संरचना है | (2020)
वे सपने जो भारत को सोने न दें । (2015)
क्या औपनिवेशिक मानसिकता भारत की सफलता में बाधक हो रही है ? (2013)
सामाजिक न्याय/गरीबी
बिना आर्थिक समृद्धि के सामाजिक न्याय नहीं हो सकता, किन्तु बिना सामाजिक न्याय के आर्थिक समृद्धि निरर्थक है | (2020)
प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की उपेक्षा भारत के पिछड़ेपन के कारण हैं | (2019)
कहीं पर भी गरीबी, हर जगह की समृद्धि के लिए खतरा है | (2018)
जो समाज अपने सिद्धान्तों के ऊपर अपने विशेषाधिकारों को महत्त्व देता है, वह दोनों से हाथ थो बैठता है | (2018)
क्या प्रतिस्पर्धा का बढ़ता स्तर युवाओं के हित में है ? (2014)
मीडिया और समाज
पक्षपातपूर्ण मीडिया भारत के लोकतंत्र के समक्ष एक वास्तविक खतरा है | (2019)
पर्यावरण/शहरीकरण
जलवायु परिवर्तन के प्रति सुनम्य भारत हेतु वैकल्पिक तकनीकें | (2018)
हम मानवीय नियमों का तो साहसपूर्वक सामना कर सकते हैं, परंतु प्राकृतिक नियमों का प्रतिरोध नहीं कर सकते। (2017)
आर्थिक क्षेत्र / बहुराष्ट्रीय कंपनियां
भारत में लगभग रोजगार विहीन संवृद्धि : आर्थिक सुधार की विसंगति या परिणाम | (2016)
डिजिटल अर्थव्यवस्था : एक समताकारी या आर्थिक असमता का स्रोत | (2016)
पर्यटन : क्या भारत के लिए यह अगला बड़ा प्रेरक हो सकता है ? (2014)
राष्ट्र के भाग्य का स्वरूप – निर्माण उसकी कक्षाओं में होता है। (2017)
मूल्यों से वंचित शिक्षा, जैसी अभी उपयोगी है, व्यक्ति को अधिक चतुर शैतान बनाने जैसी लगती है । (2015)
अधिकार (सत्ता) बढ़ने के साथ उत्तरदायित्व भी बढ़ जाता है । (2014)
क्या मानकीकृत परीक्षण शैक्षिक योग्यता या प्रगति का बढ़िया माप है ? (2014)
भारत में “नए युग की नारी” की परिपूर्णता एक मिथक है। (2017)
स्त्री-पुरुष के समान सरोकारों को शामिल किए बिना विकास संकटग्रस्त है | (2016)
उद्धरण – आधारित/दर्शन
इच्छारहित होने का दर्शन काल्पनिक आदर्श (युटोपिया) है, जबकि भौतिकता माया है। (2021)
सत् ही यथार्थ है और यथार्थ ही सत् है। (2021)
पालना झूलाने वाले हाथों में ही संसार की बागडोर होती है। (2021)
शोध क्या है, ज्ञान के साथ एक अजनबी मुलाकात ! (2021)
मनुष्य होने और मानव बनने के बीच का लम्बा सफर ही जीवन है | (2020)
जहाज अपने चारों तरफ के पानी के वजह से नहीं डूबा करते, जहाज पानी के अंदर समा जाने की वजह से डूबते हैं | (2020)
सरलता चरम परिष्करण है | (2020)
विवेक सत्य को खोज निकालता है | (2019)
मूल्य वे नहीं जो मानवता है, बल्कि वे हैं जैसा मानवता को होना चाहिए | (2019)
स्वीकारोक्ति का साहस एवं सुधार करने की निष्ठा सफलता के दो मंत्र हैं | (2019)
एक अच्छा जीवन प्रेम से प्रेरित तथा ज्ञान से संचालित होता है | (2018)
किसी को अनुदान देने से, उसके काम में हाथ बँटाना बेहतर है। (2015)
शब्द दो – धारी तलवार से अधिक तीक्ष्ण होते हैं । (2014)
जो बदलाव आप दूसरों में देखता चाहते हैं- पहले स्वयं में लाइए – गॉंधीजी । (2013)
आप की मेरे बारे में धारणा, आपकी सोच दर्शाती है; आपके प्रति मेरी प्रतिक्रिया, मेरा संस्कार है। (2021)
विचारपरक संकल्प स्वयं के शांतचित्त रहने का उत्प्रेरक है | (2020)
यथार्थ आदर्श के अनुरूप नहीं होता है, बल्कि उसकी पुष्टि करता है | (2018)
आवश्यकता लोभ की जननी है तथा लोभ का आधिक्य नस्लें बर्बाद करता है | (2016)
फुर्तीला किन्तु संतुलित व्यक्ति ही दौड़ में विजयी होता है । (2015)
किसी संस्था का चरित्र चित्रण, उसके नेतृत्त्व में प्रतिबिम्बित होता है। (2015)
क्या गुटनिरपेक्ष आंदोलन (नाम) एक बहुध्रुवीय विश्व में अपनी प्रासंगिकता को खो बैठा है ? (2017)
विज्ञान और तकनीक
इतिहास स्वयं को दोहराता है, पहली बार एक त्रासदी के रूप में, दूसरी बार एक प्रहसन के रूप में। (2021)
आत्म-संधान की प्रक्रिया अब तकनीकी रूप से बाह्मय स्रोतों को सौंप दी गई है। (2021)
प्रौद्योगिकी, मानवशक्ति को विस्थापित नहीं कर सकती । (2015)
राष्ट्र के विकास व सुरक्षा के लिए विज्ञान व प्रौद्योगिकी (टेक्नॉलाजी) सर्वोपचार हैं । (2013)
इंटरनेट/आईटी
कृत्रिम बुद्धि का उत्थान : भविष्य में बेरोजगारी का खतरा अथवा पुनःकौंशल और उच्चकौशल के माध्यम से बेहतर रोजगार के सृजन का अवसर | (2019)
“सोशल मीडिया” अंतर्निहित रूप से एक स्वार्थपरायण माध्यम है। (2017)
साइबरस्पेस और इंटरनेट : दीर्घ अवधि में मानव सभ्यता के लिए वरदान अथवा अभिशाप | (2016)
अंतर्राष्ट्रीय संगठन / संबंध
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में मौन कारक के रूप में प्रौद्योगिकी | (2020)
भारत के सीमा विवादों का प्रबन्धन – एक जटिल कार्य | (2018)
दक्षिण एशियाई समाज सत्ता के आस-पास नहीं, बल्कि अपनी अनेक संस्कृतियों और विभिन्न पहचानों के ताने-बाने से बने हैं | (2019)
रूढ़िगत नैतिकता आधुनिक जीवन की मार्गदर्शक नहीं हो सकती है | (2018)
‘अतीत’ मानवीय चेतना तथा मूल्यों का एक स्थायी आयाम है | (2018)
हर्ष कृतज्ञता का सरलतम रूप है। (2017)
भारत के सम्मुख संकट – नैतिक या आर्थिक | (2015)
क्या स्टिंग ऑपरेशन निजता पर एक प्रहार है ? (2014)
ओलंपिक में पचास स्वर्ण पदक : क्या भारत के लिए यह वास्तविकता हो सकती है ? (2014)
आईएएस मेन्स की तैयारी करते समय, उम्मीदवारों को UPSC Mains Answer Writing Practise पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि इससे आपकी गति, दक्षता और लेखन कौशल में सुधार होगा। यह स्वतः ही निबंध लेखन में भी मदद करेगा।
UPSC मेंस के लिए UPSC निबंध विषयों पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
मैं upsc में एक अच्छा निबंध कैसे लिख सकता हूँ, क्या upsc में लिखावट मायने रखती है.
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पर्यावरण पर निबंध (Environment Essay in Hindi)
पर्यावरण के इसी महत्व को समझने के लिए आज हम सब ये निबंध पढ़ेंगे जिससे आपको पर्यावरण से जुड़ी समस्त जानकारियाँ मिल जाएंगी। आपकी आवश्यकता को देखते हुए ये निबंध 300 शब्द, 400 शब्द, और 500 शब्द के अंतर्गत दिया गया है।
पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध || पर्यावरण की रक्षा कैसे करें पर निबंध || पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध
पर्यावरण पर निबंध (100 – 200 शब्द) – Paryavaran par Nibandh
वो सारी चीजें जो हमारे चारों ओर हैं पर्यावरण कहलाता है जैसे हवा, पानी, आकाश, जमीन, जीव जन्तु, वनस्पति, पेड़ पौधे आदि। पर्यावरण, प्रकृति द्वारा भेंट किया गया एक तोहफा है। हम सबको स्वस्थ रूप से जीने के लिए जिन चीजों की जरुरत पड़ती है वो पर्यावरण हमे देता है। लेकिन मानवों ने अपने लालच को पूरा करने के लिए पर्यावरण को इतना दूषित कर दिया है कि आज धरती पर सारे जीव जन्तु भुगत रहे हैं।
बढ़ती जनसँख्या के डिमांड्स को पूरा करने के लिए, घर और कारखाने बनाने के लिए लोगों ने जंगल के जंगल काट दिए और नए पेड़ भी नहीं लगाए। कारखानों व फैक्ट्री से निकलने वाले कूड़े कचरे, प्लास्टिक और गंदे पानी ने हवा, पानी और मिट्टी को दूषित कर दिया है। जिससे लोग बीमार पड़ रहे है, मर रहे हैं, जीव जन्तु विलुप्त हो रहे हैं, गर्मी में तापमान चरम सीमा पर पहुंच गया है, ठंढी में ज्यादा ठंढी पड़ती है, बरसात में समय पर बारिश नहीं होती इसलिए सूखा पड़ रहा है लोग खेती नहीं कर पा रहे है, असमय जलवायु परिवर्तन हो रहा है, ओज़ोन लेयर में छेड़ हो गया है जिससे अल्ट्रा वायलेट किरणे धरती पर आने लगी हैं, इत्यादि।
अगर हमें अपना स्वस्थ पर्यावरण वापस चाहिए तो हम सबको अपनी गलती जल्द से जल्द सुधारनी होगी। सिर्फ सरकार के नियम बनाने से कुछ नहीं होगा, हर एक इंसान को भी जागरूक होकर कदम उठाना होगा। ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे, गाड़ियों की जगह साइकिल इस्तेमाल करना होगा, AC और फ्रीज का सहारा छोड़ना होगा, और वो सभी चीजे छोड़नी होगी जिससे हमारा पर्यावरण दूषित हुआ है।
पर्यावरण पर निबंध (300 – 400 शब्द) – Environment par Nibandh
धरती पर हम जिस परिवेश में रहते हों उसे पर्यावरण कहते हैं जो हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा है और हमें जीवन जीने के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करता है, जैसे कि स्वच्छ हवा, पानी, भोजन और आश्रय। धरती पर एक स्वच्छ पर्यावरण का महत्व इतना अधिक है कि इसके बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन आज के आधुनिक युग में हम मनुष्यों ने अपने स्वार्थ और विकास की दौड़ में पर्यावरण को काफी हद तक दूषित कर दिया है।
पर्यावरण दूषित कैसे हुआ
विकास की अंधाधुंध होड़ में उद्योगों का तेजी से विकास हुआ, जिससे वायुमंडल में प्रदूषक गैसों का उत्सर्जन हुआ और वायु प्रदूषित हो गयी। बड़े बड़े उद्योगों के अपशिष्ट जल के नदियों में गिरने से जल प्रदिर्शित होकर एक गंभीर समस्या बन गया है। वनों के अंधाधुंध कटाई से न केवल वन्य जीवों का घर नष्ट हुआ है, बल्कि इससे मृदा अपरदन, जलवायु परिवर्तन और जल संकट भी उत्पन्न हुए हैं।
पर्यावरण दूषित होने से नुकसान
जलवायु परिवर्तन आज के समय में एक वैश्विक संकट बन चुका है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे ग्लेसियर्स पिघल रहे हैं और समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। इस जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कृषि, वनस्पति, और मानव जीवन पर भी सीधा पड़ रहा है। कई वन्य जीव प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और कई विलुप्त होने के कगार पर हैं। साथ ही साथ मौसम चक्र में भी अनियमितता देखने को मिल रही है।
पर्यावरण को दूषित होने से कैसे बचाएं
हम सभी को बिना देर किये अपने पर्यावरण को संरक्षित करना होगा, इसके लिए सबसे पहले, वृक्षारोपण को बढ़ावा देना होगा और वनों की कटाई को भी रोकना होगा। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जिससे वायु शुद्ध रहती है। हमें जल संसाधनों का संरक्षण करके पानी की बर्बादी को रोकना चाहिए। प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करके रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना चाहिए।
सरकारें द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाएं और कानून लागू की गयी हैं जैसे स्वच्छ भारत अभियान, जल बचाओ अभियान, और वन महोत्सव इत्यादि। लेकिन सिर्फ सरकार से ही काम नहीं चलेगा, जन जागरूकता भी जरुरी है जो कि शिक्षा और प्रचार-प्रसार से संभव है।
जब तक हम ये नहीं समझेंगे कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार का ही नहीं, बल्कि हर नागरिक का भी कर्तव्य है, तब तक हम सफल नहीं होंगे। हमें अपनी दैनिक जीवनशैली में छोटे-छोटे कई बदलाव करने होंगे, जैसे कि बिजली और पानी का संयमित उपयोग, पैदल चलना या साइकिल से चलना, और कचरे का सही निपटान करना इत्यादि। इन छोटे-छोटे प्रयासों से हम एक बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं और भविष्य में अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण दे सकते हैं।
पर्यावरण पर निबंध (250 – 300 शब्द) – Paryavaran par Nibandh
पर्यावरण में वह सभी प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं जो कई तरीकों से हमारी मदद करते हैं तथा चारों ओर से हमें घेरे हुए हैं। यह हमें बढ़ने तथा विकसित होने का बेहतर माध्यम देता है, यह हमें वह सब कुछ प्रदान करता है जो इस ग्रह पर जीवन यापन करने हेतु आवश्यक है। हमारा पर्यावरण भी हमसे कुछ मदद की अपेक्षा रखता है जिससे की हमारा लालन पालन हो, हमारा जीवन बना रहे और कभी नष्ट न हो। तकनीकी आपदा के वजह से दिन प्रति दिन हम प्राकृतिक तत्व को अस्वीकार रहे हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस
पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए हमें पर्यावरण के वास्तविकता को बनाए रखना होगा। पूरे ब्रम्हांड में बस पृथ्वी पर ही जीवन है। वर्षों से प्रत्येक वर्ष 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए तथा साथ ही पर्यावरण स्वच्छता और सुरक्षा के लिए दुनिया भर में मनाया जाता है। पर्यावरण दिवस समारोह के विषय को जानने के लिए, हमारे पर्यावरण को किस प्रकार सुरक्षित रखा जाये तथा हमारे उन सभी बुरी आदतों के बारे में जानने के लिए जिससे पर्यावरण को हानि पहुंचता है, हम सभी को इस मुहिम का हिस्सा बनना चाहिए।
पर्यावरण सुरक्षा के उपाय
धरती पर रहने वाले सभी व्यक्ति द्वारा उठाए गए छोटे कदमों के माध्यम से हम बहुत ही आसान तरीके से पर्यावरण को सुरक्षित कर सकते हैं। हमें अपशिष्ट की मात्रा में कमी करना चाहिए तथा अपशिष्ट पदार्थ को वही फेकना चाहिए जहां उसका स्थान है। प्लास्टिक बैंग का उपयोग नही करना चाहिए तथा कुछ पुराने चीजों को फेकने के बजाय नये तरीके से उनका उपयोग करना चाहिए।
आईए देखें कि किस प्रकार हम पुराने चीजों को दुबारा उपयोग में ला सकते हैं- जिन्हें दुबारा चार्ज किया जा सकता है उन बैटरी या अक्षय क्षारीय बैटरी का उपयोग करें, प्रतिदीप्त प्रकाश का निर्माण कर, बारिस के पानी का संरक्षण कर, पानी की अपव्यय कम कर, ऊर्जा संरक्षण कर तथा बिजली की खपत कम करके, हम पर्यावरण के वास्तविकता को बनाए रखने के मुहिम की ओर एक कदम बढ़ा सकते है।
FAQs: Frequently Asked Questions on Environment (पर्यावरण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
उत्तर – हमारे चारों तरफ का वह परिवेश जो हमारे लिए अनुकूल है, पर्यावरण कहलाता है।
उत्तर – विश्व पर्यावरण दिवस प्रत्येक वर्ष 5 जून को मनाया जाता है।
उत्तर – पर्यावरण के प्रमुख घटक हैं- वायुमंडल, जलमंडल तथा स्थलमंडल।
उत्तर – जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण आदि पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार है।
उत्तर – बांग्लादेश विश्व का सबसे प्रदूषित देश है।
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Second, having a solid understanding of this subject will assist aspiring bureaucrats to ensure that they are able to apply their knowledge in formulating policy. Challenges like global warming and climate change have grown to be some of the most significant challenges of the 21st century.
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Environment & Ecology is one of the important subjects of civil services examination. In both the UPSC Prelims and Mains, questions from this section have been asked often. It is crucial to take notes on crucial environmental themes in preparation for the IAS Exam. Both the UPSC Prelims Syllabus and the UPSC Mains Syllabus (GS III) cover themes pertaining to the environment. Environment-related subjects can occasionally be included in the IAS Mains Essay paper.
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Environment UPSC Preparation
The syllabus for current events, science and technology, and geography overlaps significantly. Consequently, you will undoubtedly have a competitive advantage in the other subjects if you successfully complete the environment and ecological portion of the syllabus. Here is the pre-planning method developed by professionals in StudyIQ:
Read the Syllabus : Look at the course outline for that subject and make an effort to study it so you can map out the contents in your head. You’ll be able to weed out pointless reading material and maintain your preparation’s focus if you do this.
Look over the Previous Year Questions : PYQs will provide you with a fundamental idea of the difficulty of the questions that are asked, enabling you to choose your resources wisely.
Read Biology NCERT Class XII : The final four chapters of this book provide a clear explanation of all the fundamental ideas. As a result, reading them would familiarise you with some terms that might appear on the test.
Current events Another crucial area in relation to environmental and ecological issues is current affairs. Take notes from editorials from the Hindu and articles from periodicals like Yojana and Kurukshetra. After that, keep editing them so you remember the ideas.
Environment UPSC Syllabus
Environment is every living and non-living thing that surrounds us as well as interacts with us in our day-to-day life. Environment is the natural component in which biotic (living) and abiotic (non-living) factors interact among themselves and with each other. These interactions shape the habitat and ecosystem of an organism.
In a biological sense, the environment constitutes the physical (nutrients, water, air) and biological factors (biomolecules, organisms) along with their chemical interactions (chemical cycles – carbon cycle, nitrogen cycle etc.) that affect an organism or a group of organisms. All organisms are dependent on the environment to carry out their natural life processes and to meet their physical requirements (food, energy, water, oxygen, shelter etc.).
Conservation
What is Biodiversity?, Types of Biodiversity – Genetic, Species, Ecosystem, etc., Importance of Biodiversity – Ecosystem Services, BioResources of Economic Importance, Social Benefits, etc., Reasons for Loss of Biodiversity
Conservation: In-situ & Ex-Situ, Eco-Sensitive Areas, Ecological Hotspots, National Guidelines, Legislations & Other Programmes.
International Agreements & Groupings
Environmental Pollution & Degradation
Types of Pollution & Pollutants, Impact of Pollution & Degradation
Ozone Layer Depletion and Ozone Hole, Greenhouse Gas Effect & Global Warming, Eutrophication, Desertification, Acid Rain, Hazardous Waste, etc.
Causes/Sources of Pollution & Degradation, Prevention & Control of Pollution & Degradation, National Environment Agencies, Legislations and Policies
International Environment Agencies & Agreements
Environmental Impact Assessment (EIA)
What is EIA?, Indian Guidelines & Legislations, EIA Process, Need & Benefits of EIA, Shortcomings of EIA in India, Measures to Make EIA Effective
Disaster Management
Types of Disasters, Management of Disasters, Community Level Disaster Management, Government Initiatives on Disaster Management
How can I study Environment?
The major tip is to focus on how to prepare Environment for UPSC including reading NCERT books to have better insights into the topics as the NCERT books are more lucid and comprehensive.
Is Environment easy for UPSC?
It depends on the understanding of the candidates, although it is a static subject with some technical aspects.
Which book one should follow for Environment?
There is no specific book for environment as questions asked are mostly from current affairs although for the static portion you can follow Study IQ Environment Book.
Which website is best for Environment for UPSC?
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How to start preparing for Indian Environment?
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पर्यावरण पर निबंध | Essay on Environment in Hindi
by Meenu Saini | Jul 13, 2022 | Hindi | 0 comments
Hindi Essay Writing – पर्यावरण (Environment)
पर्यावरण पर निबंध – इस लेख हम पर्यावरण से तात्पर्य, पर्यावरण के प्रकार, पर्यावरण और मानव का संबंध, पर्यावरण असंतुलन, पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण आदि के बारे में जानेगे |
अनादिकाल से मानव का अस्तित्व वनस्पति और जीव-जंतुओं के ऊपर निर्भर रहा है। जीवन और पर्यावरण एक दूसरे से संबद्ध है । समस्त जीवधारियों का जीवन पर्यावरण की उपज होता है। अतः हमारे तन मन की रचना, शक्ति, सामर्थ्य एवं विशेषता और संपूर्ण पर्यावरण से नियंत्रित होती है। उसी में पनपती हैं और विकास पाती हैं। वस्तुतः जीवन और पर्यावरण एक दूसरे से इतने जुड़े हुए हैं कि दोनों का सहअस्तित्व बहुत आवश्यक है।
पर्यावरण मूलतः प्रकृति की देन है। यह भूमि, वन, पर्वतों, झरने, मरुस्थल, मैदानों, घास, रंग-बिरंगे पशु पक्षी, स्वच्छ जल से भरी लहलहाती झीलों और सरोवरों से भरा है। सौरमंडल के ग्रहों में पृथ्वी एकलौता ऐसा ग्रह है जहां जीवन संभव है। इसका कारण यहां का पर्यावरण है।
पर्यावरण से तात्पर्य
पर्यावरण के प्रकार
पर्यावरण और मानव का संबंध
पर्यावरण असंतुलन
पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण प्रदूषण, पर्यावरण प्रबंधन, विश्व पर्यावरण दिवस, पर्यावरण से तात्पर्य .
पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है – परि+ आवरण। परि का अर्थ है चारों ओर, आवरण का अर्थ है घेरे हुए । इस प्रकार ऐसा आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है, पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण को अंग्रेजी में एनवायरनमेंट कहते हैं। एनवायरनमेंट शब्द फ्रेंच भाषा के “environner” शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ है घिरा हुआ या घेरा होना।
यह एक तरह से हमारा सुरक्षा कवच है, जो हमें प्रकृति से विरासत में मिला है।
दूसरे शब्दों में पर्यावरण का अर्थ जैविक और अजैविक घटकों एवं उनके आसपास के वातावरण के सम्मिलित रूप से है, जो जीवन के आधार को संभव बनाते है।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार पर्यावरण,किसी किसी जीव के चारों ओर घिरी भौतिक एवं जैविक दशा व उनके साथ अंतक्रिया को सम्मिलित करता है ।
Top
पर्यावरण के प्रकार
पर्यावरण में पाए जाने वाले कारकों के आधार पर हम इसे दो भागों में बांट सकते हैं ।
प्राकृतिक पर्यावरण
मानव निर्मित पर्यावरण.
प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत वे सभी संसाधन आते हैं, जो हमें प्रकृति से प्राप्त है या जिन के निर्माण में मनुष्य की कोई सहभागिता नहीं है। जो अनादि काल से इस धरती पर अस्तित्व में है। प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत नदी, पर्वत, जंगल, गुफा, मरुस्थल, समुद्र आदि आते हैं।
हमें प्रकृति से भरपूर मात्रा में खनिज, पेट्रोलियम, लकड़ियां, फल, फूल, औषधियां प्राप्त होती है, जिनका उपयोग अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है – प्राणदायी ऑक्सीजन, जो हमें पेड़ों से प्राप्त होती है। इन सब के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
मानव निर्मित पर्यावरण में तालाब, कुंए, खेत , बगीचे, घर-आवास, इमारतें, उद्योग आदि आते हैं। यह सब मिलकर मनुष्य जीवन का आधार विकसित करते हैं और एक तरह से मानव जीवन की प्रगति का सूचक है कि – किस तरह झोपड़ियों में रहने वाला मानव, आज गगनचुंबी इमारतों का निर्माण कर रहा है।
जैसे सभ्यताओं का विकास हुआ, मनुष्य ने नए-नए आविष्कार किए और अपने जीवन को सुविधाजनक बनाने हेतु, वह प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग करने लगा, और आज मानव निर्मित पर्यावरण, धरती के कोने-कोने पर विस्तृत होता जा रहा है।
पानी के अंदर हो या आसमान में, मनुष्य सब जगह अपना साम्राज्य स्थापित करने में लगा है । अब तो हमने दूसरे ग्रहों पर भी जीवन की तलाश करना शुरू कर दिया है।
प्राचीन काल से ही वृक्षों के प्रति भारतीय समाज का अनुराग सांस्कृतिक परंपरा के रूप में विकसित हुआ हैं। चाहे कोई भी धार्मिक त्यौहार हो या शुभ अवसर। हिंदू धर्म में पेड़ों को शुभ मानकर पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं में तुलसी, पीपल, वट जैसे वृक्षों का विशेष महत्व बताया गया है। हमारे ऋषि मुनि आदिमानव प्रकृति के साथ तालमेल मिलाकर जीवन यापन करते थे। गुफाओं में रहते थे। कंदमूल फल खाते थे और प्रकृति का सम्मान करते थे। एक तरह से उन्होंने पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाना सीख लिया था और आज भी मानव का अस्तित्व वनस्पति और जीव-जंतुओं के ऊपर निर्भर है। पर्यावरण हम सबका पालनहार और जीवनाधार है। किंतु आश्चर्य होता है कि मनुष्य धरती के स्त्रोतों का कितना अंधाधुंध दोहन करता जा रहा है। जिससे सारा प्रकृति तंत्र गड़बड़ा गया है। अब वह दिन दूर नहीं लगता, जब धरती पर हजारों शताब्दियों पुराना हिम युग लौट आएगा अथवा ध्रुवों पर जमी बर्फ की मोटी परत पिघल जाने से समुद्र की प्रलयकारी लहरें नगरो, वन ,पर्वतो, और जंतुओं को निगल जाएंगी।
पर्यावरण असंतुलन
हम सभी जानते हैं कि धरती पर जीवन, प्रकृति संतुलन से संभव हो सका है। धरती वनस्पतियों से ढक ना जाए, इसलिए घास खाने वाले जानवर पर्याप्त संख्या में थे। इन घास खाने वाले जानवरों की संख्या को संतुलित, सीमित रखने के लिए हिंसक जंतु भी थे। इन तीनों का अनुपात, संतुलित और नियंत्रित था।
किंतु समय के साथ पर्यावरण का संतुलन तेजी से बिगड़ता जा रहा है। मनुष्य, प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनों का अविवेकपूर्ण ढंग से दुरुपयोग कर रहा है, जिससे सारा प्रकृति तंत्र गड़बड़ा गया है। इसी असंतुलन से भूमि, वायु, जल और ध्वनि के प्रदूषण उत्पन्न हो रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण से फेफड़ों के रोग, हृदय, पेट की बीमारियां, दृष्टि और श्रवण क्षतियां, मानसिक तनाव और तनाव संबंधी रोग पैदा हो रहे हैं।
आधुनिक युग में वैज्ञानिक आविष्कारों और उद्योग धंधों के विकास, फैलाव के साथ-साथ जनसंख्या का भयावाह विस्फोट हुआ है। इन सभी कारकों ने पर्यावरण असंतुलन उत्पन्न किया है।
पर्यावरण को विकृत और दूषित करने वाली समस्त विपदाएं हमारी ही लाई हुई है। हम स्वयं प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहे हैं, इसी असंतुलन से पर्यावरण की रक्षा हेतु, इसका संरक्षण आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण, कोई आज का मुद्दा नहीं है , वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक आंदोलन चलाए जा रहे हैं-
विश्नोई आंदोलन
यह प्रकृति पूजकों का अहिंसात्मक आंदोलन था। आज से 286 साल पहले सन 1730 में राजस्थान के खेजड़ली गांव में 263 बिश्नोई समुदाय की स्त्री-पुरुषों ने पेड़ों की रक्षा हेतु अपना बलिदान दिया था।
चिपको आंदोलन
उत्तराखंड के चमोली जिले में सुंदरलाल बहुगुणा चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में यह आंदोलन चलाया गया था। उत्तराखंड सरकार के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों का कटाई की जा रही थी । उनके खिलाफ लोगों ने पेड़ों से चिपककर विरोध जताया था।
साइलेंट वैली
केरल की साइलेंट वैली या शांति घाटी जो अपनी सघन जैव विविधता हेतु प्रसिद्ध है। सन 1980 में कुंतीपूंझ नदी पर 200 मेगावाट बिजली निर्माण हेतु बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था । लेकिन इस परियोजना से वहां स्थित कई विशिष्ट पेड़-पौधों की प्रजातियां नष्ट हो जाती है। अतः कई समाजसेवी व वैज्ञानिकों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया और अंततः सन 1985 में केरल सरकार ने साइलेंट वैली को राष्ट्रीय आरक्षित वन घोषित कर दिया गया।
जंगल बचाओ आंदोलन
जंगल बचाओ आंदोलन इसकी शुरुआत सन 1980 में बिहार में हुई थी, बाद में उड़ीसा झारखंड तक फैल गया । सन् 1980 में सरकार ने बिहार के जंगलों को, सागोन के पेड़ों में बदलने की योजना पेश की थी । इसी के विरोध में बिहार के आदिवासी कबीले एकजुट हुए और उन्होंने अपने जंगलों को बचाने के लिए आंदोलन चलाया।
मनुष्य जिस तेजी के साथ विकास कर रहा है उतनी ही तेजी से पर्यावरण को प्रदूषित भी कर रहा है । हमने पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी जैविक और अजैविक घटकों का अंधाधुंध उपयोग किया है जिसकी वजह से पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न हुआ है।
प्राकृतिक पर्यावरण के भौतिक , रासायनिक ,जैविक विशेषताओं में अवांछनीय परिवर्तन लाने वाले पदार्थ को प्रदूषक कहते हैं। सामान्यतया प्रदूषण, मानव क्रियाकलापों के कारण होता है।
पर्यावरण प्रदूषण को चार भागों में बांट सकते है-
जल प्रदूषण
जल मानव के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है । स्वच्छ जल , स्वास्थ्य और मानव विकास के लिए अनिवार्य है । जल की भौतिक ,रासायनिक तथा जैविक विशेषताओं में परिवर्तन,जिससे मानव तथा जलीय जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो, जल प्रदूषण कहलाता है।
जल प्रदूषण का दुष्प्रभाव
प्रदूषित जल का विपरीत प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है । प्रदूषित जल के कारण अनेक बीमारियां फैलती हैं। जैसे हैजा, पेचिस, अतिसार, पीलिया तथा क्षय रोग। भारत में पेट से जुड़ी हुई 80% बीमारियां जल संक्रमण के कारण होती हैं । बीमारियों में सबसे अधिक प्रभावित नगरीय गंदी बस्तियों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चे होते हैं।
जल प्रदूषण के मुख्य कारण है –
औद्योगिकीकरण
नदियों के जल का उपयोग
फसलों की सुरक्षा के लिए रसायनों का उपयोग
धार्मिक सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के कारण नदियों में बढ़ता प्रदूषण
जल प्रदूषण रोकने के उपाय-
प्रदूषित जल को उपचारित किया जाए ।
नदी और समुद्र तटों की समय-समय पर सफाई हो।
पीने के पानी की बचत हो।
वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा ।
वर्षा जल संरक्षण।
वायु प्रदूषण
पृथ्वी के वायुमंडल में मानव निर्मित प्रदूषक को का मौजूद होना वायु प्रदूषण कहलाता है । जिससे पेड़ पौधों एवं मनुष्य के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । सामान्यता वायु प्रदूषण में कार्बन डाई आक्साइड , कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइडस, सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन आदि गैसें शामिल हैं ।
वायु प्रदूषण के कारण
कई स्वास्थ्य संबंधी रोग जैसे खांसी ,दमा ,जुकाम ,निमोनिया, फेफड़े का संक्रमण, रक्त क्षीणता, उच्च रक्तचाप ,ह्रदय रोग विभिन्न प्रकार के कैंसर आदि से पीड़ित लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है ।
प्रदूषण रोकने के उपाय
इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए।
चूल्हे की जगह एलपीजी का उपयोग को बढ़ावा।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अधिक उपयोग करें ।
वाहनों को विकसित करने की तकनीक में सुधार लाएं ।
मृदा प्रदूषण
मृदा, मानव जाति के लिए अत्यंत उपयोगी तथा जीवनदायिनी है । मृदा, मनुष्यों के क्रियाकलापों अथवा कभी-कभी पर्यावरणीय संकट के कारण प्रदूषित हो जाती है ।
मृदा तथा भूमि प्रदूषण के मुख्य कारक हैं –
मृदा अपरदन।
रसायनिक खादों तथा फसलों की सुरक्षा हेतु रसायनों का अत्यधिक उपयोग।
उद्योगों कारखानों से निकले ठोस अपशिष्ट ।
जंगल की आग।
खनन अपशिष्टों द्वारा।
मृदा प्रदूषण के दुष्प्रभाव
मृदा की उर्वरता शक्ति में कमी आ जाती है ।
मिट्टी में कटाव उत्पन्न हो जाता है।
भूमि कृषि योग्य नहीं रहती।
मृदा प्रदूषण रोकने के उपाय
रासायनिक खादों , कीटनाशक का नियंत्रित उपयोग कर मृदा प्रदूषण को कम किया जा सकता है । नगरी तथा औद्योगिक अपशिष्टों का उचित निपटान कर, मृदा को प्रदूषण से बचाया जा सकता है।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण, वायुमंडलीय प्रदूषण का एक मुख्य भाग है। किसी अवांछनीय अत्यधिक तीव्र ध्वनि द्वारा लोगों को पहुंचे असुविधा एवं शांति को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं।
ध्वनि प्रदूषण के कारण
नगरीकरण तथा औद्योगिकरण के कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ गया है ।
ऑटोमोबाइल, फैक्ट्री मशीनें धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है ।
ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण के कारण सुनने की क्षमता प्रभावित होती है।
मानसिक तनाव , हृदय रोग, रक्तचाप चिड़चिड़ापन आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं ।
प्रदूषण रोकने के उपाय
उद्योगों को आवासीय क्षेत्रों से दूर ले जाकर बसाना चाहिए।
पुराने मशीनों का प्रतिस्थापन करना चाहिए
हार्न का उपयोग न्यूनतम करना चाहिए।
रेल पटरी में सुधार।
नई पीढ़ी को ध्वनि प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में जागरूक करना ।
हमारे आवश्यकता असीमित है तथा प्राकृतिक संसाधन सीमित । प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग इसे धारणीय बनाने के लिए आवश्यक है इसलिए संसाधनों का संरक्षण जरूरी है । पर्यावरण के संरक्षण का अर्थ है संसाधनों का इस तरह से उपयोग किया जाए कि वर्तमान पीढ़ी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति आने वाली पीढ़ी की आवश्यकताओं से बगैर समझौता किए कर सके ।
इस संरक्षण के मुख्य उद्देश्य होने चाहिए-
पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित रखा जाए
जैव विविधता को बनाए रखा जाए।
वनों का संरक्षण किया जाए ।
वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाए।
मानव क्रियाकलापों के कारण पर्यावरण में तेजी से बदलाव आ रहा है। इस बदलाव के अनेक रूप है । जैसे ओजोन क्षरण, वनों की कटाई, अम्ल वर्षा, वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की अधिकता, फलस्वरुप भूमंडलीय तापमान में वृद्धि।
घटते प्राकृतिक संसाधनों की समस्या से निपटने के लिए समाज के सभी स्तर पर पर्यावरण संबंधी जागरूकता अनिवार्य है । वैज्ञानिकों ,राजनीतिज्ञों, नियोजकों तथा लोगों को सम्मिलित रूप से पर्यावरण की स्थिति सुधारने के लिए काम करना होगा । जिसके लिए संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है । इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कुछ उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं-
विकासशील देशों की जनसंख्या नीति में परिवर्तन ताकि और नियंत्रित जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सके ।
विकसित देशों में नियंत्रित उपभोक्तावाद।
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाना ।
विकास की नीतियों का मुख्य ध्यान देसी वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित हो।
विश्व के सभी विकास कार्यक्रमों का सख्त पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन होना चाहिए ।
सभी स्तर के शिक्षा में पर्यावरण की शिक्षा एक अनिवार्य विषय होना चाहिए ।
व्यापक शिक्षा तथा पर्यावरण जागरूकता के कार्यक्रमों में निवेश के द्वारा निजी क्षेत्र की सहभागिता जरूरी ।
सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों की मदद से लोगों को पर्यावरण संबंधी मुद्दों के बारे में शिक्षित करना ।
देश के विभिन्न भागों में पर्यावरण जागरूकता विकसित करने के लिए नियमित सम्मेलनों, संगोष्ठी, टेलीविजन एवं रेडियो पर वार्ताओं का आयोजन करना ।
पर्यावरण अनुसंधान के लिए अतिरिक्त फंड की आवश्यकता।
पर्यावरण संरक्षण में मीडिया की भूमिका।
जनमानस में पर्यावरण की पूर्णता और मानव की महत्ता संबंधी शिक्षा की आवश्यकता पर बल।
हर साल 5 जून को वैश्विक स्तर पर पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। दरअसल 1972 में स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र महासभा का सम्मेलन हुआ था । जिसमें पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहन देने के लिए , हर वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत की गई ।
हर वर्ष अलग देश द्वारा इसका आयोजन किया जाता है ।
इस वर्ष 2022 में हमने 50 वां पर्यावरण दिवस मनाया। भारत ने इस अवसर पर पर्यावरण के लिए जीवन शैली (LiFE लाइफ स्टाइल फॉर द एनवायरनमेंट ) आंदोलन की शुरुआत की है।
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Essays in Hindi /
Essay On Space : छात्र ऐसे लिख सकते हैं अंतरिक्ष पर निबंध
Updated on
सितम्बर 9, 2024
अंतरिक्ष एक ऐसा विषय है जो हर उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों को आकर्षित करता है। इसका रहस्यमय और अनंत विस्तार, चमकदार सितारे, और अद्भुत आकाशीय पिंड हमें हमेशा अपनी ओर खींचते हैं। अंतरिक्ष हमेशा से ही मानव की जिज्ञासा और कल्पनाओं का केन्द्र रहा है। जब लोग अंतरिक्ष मिशनों या अंतरिक्ष की गहराइयों की यात्रा के बारे में सुनते हैं, तो उनकी रुचि और भी अधिक बढ़ जाती है। अंतरिक्ष से संबंधित सवाल उनके मन में बार-बार उठते हैं, जो इसे एक महत्वपूर्ण और रहस्यमय विषय बनाता है। इसी कारण, अक्सर छात्रों को कक्षाओं में अंतरिक्ष पर निबंध (Essay On Space in Hindi) लिखने के लिए कहा जाता है। इसलिए, आपकी मदद के लिए इस ब्लॉग में अंतरिक्ष पर निबंध (Essay On Space in Hindi) के कुछ सैंपल दिए गए हैं।
This Blog Includes:
अंतरिक्ष पर 100 शब्दों में निबंध, अंतरिक्ष पर 200 शब्दों में निबंध, प्रस्तावना , अंतरिक्ष अन्वेषण का इतिहास, अंतरिक्ष अन्वेषण का महत्व, अंतरिक्ष अन्वेषण के सामने चुनौतियां, अंतरिक्ष अन्वेषण का भविष्य , उपसंहार , 10 लाइन में अंतरिक्ष पर निबंध (10 line essay on space in hindi).
हम अपनी इस विशाल और अद्भुत दुनिया को ‘अंतरिक्ष’ कहते हैं। सरल शब्दों में, अंतरिक्ष वह अनंत जगह है जिसका कोई अंत नहीं है। यह एक असीमित तीन-आयामी विस्तार है, जो हमारे ग्रह पृथ्वी के ऊपर और उसके चारों ओर फैला हुआ है। अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण बल शून्य होता है और यहाँ सांस लेने के लिए पृथ्वी जैसा वातावरण नहीं होता। गुरुत्वाकर्षण के अभाव में, अंतरिक्ष में वस्तुएं हवा में तैरती रहती हैं। यह स्थान पदार्थ से रहित होता है और यहाँ ध्वनि भी यात्रा नहीं कर सकती। अंतरिक्ष से पृथ्वी एक नीली गेंद की तरह दिखाई देती है। पृथ्वी से अंतरिक्ष की ओर यात्रा की शुरुआत 1957 में सोवियत संघ द्वारा स्पूतनिक उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ हुई थी, जो पहला कृत्रिम उपग्रह था।
पृथ्वी से बाहर फैला अनंत क्षेत्र ही अंतरिक्ष है, जो लगातार विस्तार कर रहा है। इस विशाल और रहस्यमई क्षेत्र में पृथ्वी की तरह वायुमंडल मौजूद नहीं होता। अंतरिक्ष सितारों, चंद्रमाओं, क्षुद्र ग्रहों और अनगिनत आकाशगंगाओं से भरा हुआ है। मानव सभ्यता के इतिहास में अंतरिक्ष ने हमेशा एक गहरा आकर्षण पैदा किया है और इसकी कई कहानियाँ हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। अंतरिक्ष का अध्ययन खगोल विज्ञान के तहत किया जाता है, जिसने हमारे ब्रह्मांड के बारे में समझ को गहरा किया है। खगोल विज्ञान ने दूरबीनों, उपग्रहों, और अन्य अंतरिक्ष जांच उपकरणों की सहायता से ब्लैक होल, एक्सोप्लैनेट और सुपरनोवा जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाओं को सामने लाया है।
खगोल विज्ञान की प्रमुख उपलब्धियों में 1969 में अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग द्वारा चंद्रमा पर पहला कदम रखना और हबल स्पेस टेलीस्कोप द्वारा ब्रह्मांड की गहराई में की गई खोजें शामिल हैं। इन उपलब्धियों ने अंतरिक्ष की हमारी समझ को काफी बढ़ाया है। हाल के वर्षों में, मानव सभ्यता ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। 1969 में चंद्रमा पर मानव की पहली यात्रा के बाद, कई सफल मिशनों ने अंतरिक्ष के हमारे ज्ञान को बढ़ाया है। अंतरिक्ष में भेजे गए कृत्रिम उपग्रह हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे संचार, मौसम पूर्वानुमान और अन्य जानकारियों की प्राप्ति में। हालांकि अंतरिक्ष की खोज में कई चुनौतियाँ आती हैं, लेकिन इसके रहस्यों को जानना कई लोगों का जीवन का उद्देश्य बन चुका है।
अंतरिक्ष पर 500 शब्दों में निबंध
अंतरिक्ष पर 500 शब्दों में निबंध (500 Words Essay On Space in Hindi) नीचे दिया गया है –
अंतरिक्ष, एक अनंत और रहस्यमय दुनिया, मानवता की कल्पनाओं और खोजों का प्रमुख केंद्र रहा है। इसका निरंतर विस्तार और कम घनत्व, साथ ही पूर्ण निर्वात की उपस्थिति इसे अद्वितीय बनाते हैं। इसमें चंद्रमा, ग्रह, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, तारे और आकाशगंगाएँ विशाल मात्रा में पाई जाती हैं। जबकि मानव सभ्यताओं ने अंतरिक्ष के बारे में काफी जानकारी हासिल की है, फिर भी कई रहस्यों की खोज अभी भी जारी है।
खगोल विज्ञान ने ब्रह्मांड की हमारी समझ को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाया है। वैज्ञानिकों ने सौरमंडल की उत्पत्ति, सितारों का जन्म और अंत, और आकाशगंगाओं के कार्यप्रणाली जैसी बातों की खोज की है। अंतरिक्ष की खोज की चुनौतियों ने टेक्नोलॉजी के विकास को प्रेरित किया है, जिससे उपग्रह संचार, जीपीएस, और मौसम पूर्वानुमान जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र विकसित हुए हैं। इन खोजों ने हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिए, मानव सभ्यता के अस्तित्व और विकास के लिए अंतरिक्ष के बारे में जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अंतरिक्ष अन्वेषण का इतिहास एक लंबी और दिलचस्प यात्रा है, जिसे हम निम्नलिखित प्रमुख चरणों में समझ सकते हैं –
प्राचीन सभ्यताओं का योगदान
अंतरिक्ष अन्वेषण के इतिहास को समझने के लिए प्राचीन सभ्यताओं की भूमिका पर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मेसोपोटामिया की सभ्यता ने ग्रहों की चाल, चंद्र कैलेंडर, और तारों की विस्तृत सूची तैयार की थी। उनके सिद्धांत ज्योतिष विद्या पर आधारित थे और वे खगोलीय घटनाओं को समझने में अग्रणी थे।
मिश्रा सभ्यता के लोग आकाश को एक दैवीय क्षेत्र मानते थे और पृथ्वी को ब्रह्मांड का केंद्र मानते थे। यूनानी सभ्यता ने भी पृथ्वी को केंद्र मानकर एक भू-केन्द्रित मॉडल विकसित किया था।
भारतीय सभ्यता ने भी आकाश और उसकी गति को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारतीय वेदांग ज्योतिष में चंद्र और सूर्य के चक्र पर नजर रखने के नियम दिए गए हैं। खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने पृथ्वी की धुरी पर घूमने के सिद्धांत का उल्लेख किया था। भास्कर द्वितीय ने ग्रहों की स्थिति को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
आधुनिक अंतरिक्ष अन्वेषण की प्रमुख सफलताएँ
1957: स्पूतनिक 1 – सोवियत संघ द्वारा प्रक्षिप्त पहला कृत्रिम उपग्रह, स्पूतनिक 1, अंतरिक्ष युग की शुरुआत का प्रतीक था और पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला पहला उपग्रह था।
1961: यूरी गागरिन – सोवियत अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन ने अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक यात्रा की, और वह अंतरिक्ष में यात्रा करने वाला पहला मानव बने।
1969-1972: अपोलो कार्यक्रम – नासा ने अपोलो कार्यक्रम के तहत चंद्रमा पर मानव की पहली यात्रा की और अपोलो 11 मिशन में नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन ने चंद्रमा पर कदम रखा।
1977: वॉयजर मिशन – नासा के वॉयजर यान ने हमारे सौरमंडल से बाहर की ओर यात्रा की और बहुमूल्य जानकारी भेजी। वॉयजर आज भी अपनी यात्रा जारी रखे हुए हैं।
हबल स्पेस टेलीस्कोप – हबल ने अंतरिक्ष के बारे में हमारी समझ को विस्तारित किया, दूर की आकाशगंगाओं और सितारों की उच्च रेजोल्यूशन वाली छवियाँ प्रदान कीं, और डार्क एनर्जी के बारे में जानकारी दी।
मार्स रोवर्स मिशन – नासा ने 2004, 2012, और 2021 में मार्स रोवर्स मिशनों के माध्यम से मंगल ग्रह की सतह पर सफलतापूर्वक रोवर्स को उतारा और महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र की।
1998: अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन – कई अंतरिक्ष एजेंसियों के सहयोग से स्थापित इस अंतरिक्ष स्टेशन ने वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयोगशाला के रूप में कार्य किया।
भारत की प्रमुख सफलताएँ
1975: आर्यभट्ट – भारत ने अपना पहला कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में भेजा, जिसे एस्ट्रो फिजिक्स और सोलर फिजिक्स के अध्ययन के लिए डिजाइन किया गया था।
1983: इनसैट श्रृंखला – भारत ने दूरसंचार, प्रसारण, और मौसम विज्ञान के लिए इनसैट श्रृंखला की शुरुआत की।
1993: पीएसएलवी कार्यक्रम – पीएसएलवी को कई पेलोड लॉन्च करने के लिए जाना जाता है और इसकी विश्वसनीयता और बहुमुखी प्रतिभा के लिए सराहा गया है।
2008: चंद्रयान-1 – चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की और भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश बनने की उपलब्धि हासिल की।
2013: मंगलयान – मंगलयान मिशन ने मंगल ग्रह की सतह पर सफलतापूर्वक पहुंचने में भारत को पहला स्थान दिलाया, और मंगल तक पहुँचने वाला भारत चौथा देश बना।
अन्य मिशन – भारत के अंतरिक्ष मिशनों में गगनयान, आदित्य एल वन, जीसैट और नाविक भी शामिल हैं, जो भविष्य में और भी महत्वपूर्ण उपलब्धियों की ओर इशारा करते हैं।
अंतरिक्ष अन्वेषण की यह यात्रा मानवता के लिए एक लगातार प्रेरणा का स्रोत रही है और इसके आगे भी नई उपलब्धियों की उम्मीदें बनी हुई हैं।
अंतरिक्ष अन्वेषण का महत्व अत्यंत व्यापक और बहुपरकारी है। अंतरिक्ष अन्वेषण केवल ब्रह्मांड की गहराई में जाने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं में सुधार और विकास का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है। इसके अनेक लाभ हमारे जीवन और विज्ञान के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं –
ज्ञान और समझ में वृद्धि : अंतरिक्ष की खोज से हम ब्रह्मांड के बारे में अपनी समझ को विस्तारित करते हैं। इसमें हमारे ग्रह, तारे, आकाशगंगाएँ, और अन्य खगोलीय पिंडों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। यह ज्ञान हमारे वैज्ञानिक समझ को नई दिशा प्रदान करता है।
तकनीकी प्रगति : अंतरिक्ष अन्वेषण की प्रक्रिया में नए-नए उपकरण और तकनीकें विकसित की जाती हैं। ये तकनीकें अंतरिक्ष की खोज में उपयोग की जाती हैं और विज्ञान व तकनीक के विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार (इनोवेशन) को प्रेरित करती हैं। उदाहरण के लिए, उपग्रहों द्वारा विकसित तकनीकें जैसे संचार, मौसम पूर्वानुमान, जीपीएस, और नेविगेशन अब हमारे दैनिक जीवन में भी उपयोगी हैं।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग : अंतरिक्ष अन्वेषण विभिन्न देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है। कई देशों के वैज्ञानिक और इंजीनियर मिलकर अंतरिक्ष मिशनों पर काम करते हैं, जो वैश्विक एकता और सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
भविष्य की चुनौतियों का समाधान : अंतरिक्ष की खोज से हम भविष्य की संभावित चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, पृथ्वी पर घटते-बढ़ते तापमान और पर्यावरणीय बदलावों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करती है।
स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार : अंतरिक्ष अन्वेषण से मिली तकनीकों का स्वास्थ्य सेवाओं में उपयोग भी बढ़ा है। जैसे, एमआरआई और सीटी स्कैन जैसी इमेजिंग तकनीकें, जो मूलतः खगोलीय पिंडों की इमेजिंग के लिए विकसित की गई थीं, अब चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन्फ्रारेड थर्मामीटर, जो पहले आकाशीय पिंडों के तापमान को मापने के लिए उपयोग होता था, ने कोविड-19 महामारी के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जीवन की गुणवत्ता में सुधार : कई ऐसी तकनीकें हैं जो अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए विकसित की गई थीं लेकिन अब सामान्य जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं। उदाहरण के लिए, खरोंच-प्रतिरोधी कोटिंग्स और एलईडी लाइट्स, जो अंतरिक्ष में पौधों की वृद्धि के प्रयोगों के लिए तैयार की गई थीं, अब हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोगी हैं।
अंतरिक्ष अन्वेषण की यात्रा में कई प्रमुख चुनौतियाँ हैं, जिनका सामना करना आवश्यक है:
तकनीकी सीमाएं : अंतरिक्ष यान और उपकरणों की तकनीकी सीमाएं एक महत्वपूर्ण चुनौती हैं। वर्तमान तकनीकें सीमित संसाधनों के कारण अपनी पूर्ण क्षमता तक नहीं पहुंच पातीं। अंतरिक्ष यान को तीव्र विकिरण, माइक्रोमेटोरॉयड के प्रभाव, और -150 डिग्री सेल्सियस से लेकर 120 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान का सामना करना पड़ता है। इन चरम परिस्थितियों में उपकरणों की कार्यक्षमता को बनाए रखना एक कठिन कार्य है।
संचार में देरी : जैसे-जैसे अंतरिक्ष यान पृथ्वी से दूर जाते हैं, संचार में देरी होने लगती है। इससे तत्काल निर्णय लेना और किसी आपात स्थिति में नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता है, जिससे मिशन की सफलता पर प्रभाव पड़ सकता है।
लैंडिंग की कठिनाइयाँ : नई सतह पर लैंडिंग करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है, विशेष रूप से विभिन्न गुरुत्वाकर्षण स्थितियों के कारण। हर ग्रह या चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग के लिए विशिष्ट तकनीकी उपायों की आवश्यकता होती है।
रेडिएशन का खतरा : अंतरिक्ष में रेडिएशन का स्तर पृथ्वी की तुलना में बहुत अधिक होता है, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके लिए विशेष सुरक्षा उपायों और यंत्रों की आवश्यकता होती है।
आर्थिक बाधाएँ : अंतरिक्ष मिशनों के लिए अरबों रुपये की आवश्यकता होती है, जो अक्सर बजट की सीमाओं के कारण एक बाधा बन जाती है। कई मिशन आर्थिक कारणों से या बजट कटौतियों के कारण सीमित हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, राजनीतिक कारक या नीतियों में बदलाव भी सरकारी अंतरिक्ष कार्यक्रमों के बजट पर प्रभाव डाल सकते हैं।
अंतरिक्ष अन्वेषण का भविष्य तेजी से विकसित हो रहा है, और अब सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ निजी कंपनियां भी इसमें सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। कई निजी कंपनियां आने वाले वर्षों में अपने मिशनों में सफलता और उन्नति का दावा कर रही हैं।
वर्तमान में, चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों पर कॉलोनियों की स्थापना या माइनिंग गतिविधियों की योजनाएं बनाई जा रही हैं। नासा ने आर्टेमिस, मंगल ग्रह से सैंपल वापसी मिशन, एक्सोमार्स, लूनर गेटवे, जुपिटर आईसी मून एक्सप्लोरर, और ड्रैगन फ्लाई जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों की घोषणा की है। इन मिशनों का उद्देश्य विभिन्न ग्रहों और चंद्रमाओं की खोज करना और वहां संभावित मानव बस्तियों की स्थापना की दिशा में काम करना है।
भारत भी इस क्षेत्र में सक्रिय है और नासा की सहायता से अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है। इसके साथ ही, भारत चंद्रयान-4 और चंद्रयान-5 जैसे आगामी मिशनों की योजनाओं को लेकर उत्सुक है।
स्पेस टूरिज्म के क्षेत्र में भी तेजी से प्रगति हो रही है। कंपनियां जैसे ब्लू ओरिजिन, स्पेसएक्स, और वर्जिन गैलेक्टिक इस क्षेत्र में अग्रणी हैं और भविष्य में अंतरिक्ष पर्यटन को आम जनता के लिए उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रही हैं।
आने वाले दशकों में मंगल ग्रह पर मानव कॉलोनी की स्थापना की योजनाएं भी बनाई जा रही हैं, जो अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों और खोजों को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
आने वाले समय में अंतरिक्ष अन्वेषण का भविष्य बहुत ही आशाजनक नजर आ रहा है। सरकारों के साथ-साथ निजी कंपनियां भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण तकनीकी उन्नति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। मंगल और चंद्रमा पर केंद्रित कई मिशन भविष्य में संभावनाओं से भरे हुए हैं और इनसे व्यापक रूप से प्रभावित लोग इसकी सफलता की आशा कर रहे हैं।
तकनीकी प्रगति, अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य में सुधार, और वित्तीय संसाधनों के बावजूद, इन मिशनों की सफलता वैश्विक मानव सभ्यता के अस्तित्व के नए मार्ग खोल सकती है। अंतरिक्ष खोज में अपार संभावनाएँ छुपी हुई हैं, जो न केवल हमारी ज्ञान की सीमाओं को विस्तारित करती हैं, बल्कि हमें असीम संभावनाओं की ओर भी ले जाती हैं। यह मानवता की अदम्य जिज्ञासा और खोज की प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
10 लाइन में अंतरिक्ष पर निबंध (10 Line Essay On Space in Hindi) नीचे दिया गया है –
पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर स्थित विशाल अनंत क्षेत्र जिसकी कोई सीमा नहीं है उसे अंतरिक्ष कहा जाता है।
अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम मानव का नाम यूरी गागरिन था।
अंतरिक्ष की खोज ने विज्ञान चिकित्सा और तकनीक में बहुत प्रगति की है जिससे पृथ्वी पर मानव जीवन को भी लाभ हुआ है।
अंतरिक्ष जिज्ञासा और रोमन से भरा हुआ है जो मानव को उसकी सीमाओं से परे जाने के भी अधिकार देता है।
कई कंपनियों में अंतरिक्ष में जाने वाले रोकटो का पुनः उपयोग करना शुरू किया है जिससे अंतरिक्ष यात्रा में लागत की कमी आई है।
आने वाले अंतरिक्ष मिशनों में सबसे महत्वपूर्ण मंगल और चंद्रमा की सतह पर मानव को भेजना है।
अंतरिक्ष की खोज में सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियां में उच्च लागत मानव स्वास्थ्य और तकनीक का सीमित होना है।
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पृथ्वी के वायुमंडल के बाहरी स्थान में स्थित है जो की फुटबॉल के आकार का है।
अंतरिक्ष अन्वेषण में मानव सभ्यता को पृथ्वी पर जीवन में भी कई लाभ हुए हैं।
अंतरिक्ष की खोज करने से ब्रह्मांड में हमारे स्थान के बारे में ज्ञान और उत्तर पाने की हमारी इच्छा बढ़ती है।
पृथ्वी के बाहर का क्षेत्र ही अंतरिक्ष है। इसमें ग्रह, उल्काएं, तारे और अन्य खगोलीय पिंड शामिल होते हैं। उल्काएं आकाश से ‘गिरती’ हैं और अंतरिक्ष की विशेषता यह है कि यह एक शांत और निर्वातपूर्ण जगह है।
अंतरिक्ष अन्वेषण और अनुसंधान ने पृथ्वी पर स्थायी प्रथाओं को प्रोत्साहित किया है। यह पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और दीर्घकालिक संसाधन चुनौतियों का समाधान करने के लिए अभिनव उपाय प्रदान करता है।
अंतरिक्ष में हवा और प्राणवायु का अभाव होता है, जिससे सांस लेना असंभव हो जाता है। इसके अलावा, वहाँ का वातावरण अत्यधिक दबाव और तापमान से भरा होता है, जो जीवन के लिए अनुकूल नहीं है। इसलिए, अंतरिक्ष में मानव जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है।
अंतरिक्ष से, पृथ्वी एक नीले संगमरमर की तरह नजर आती है, जिसमें सफेद घुमावदार रेखाएँ होती हैं। इसकी सतह पर भूरे, पीले, हरे और सफेद रंग के क्षेत्र भी दिखाई देते हैं। नीला भाग मुख्य रूप से पानी को दर्शाता है, और वास्तव में, पृथ्वी के अधिकांश हिस्से पर पानी ही फैला हुआ है।
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