'Bhopal at 40: Remembering and storytelling' Special Issue of South Asian Review
Guest editors: Clare Barker (University of Leeds), Antara Chatterjee (IISER Bhopal) and Lynn Wray (University of Leeds)
The evening of 2 December 2024 will mark 40 years since a gas leak from a Union Carbide factory in Bhopal, India, caused the world’s worst industrial disaster, which has killed 25,000 people to date and left more than 120,000 people with continuing health effects, including respiratory problems, blindness, and reproductive disorders. Less well known than the gas disaster is the ongoing ‘second disaster’ in Bhopal: the contaminated groundwater supply, caused by the unsafe disposal of chemical waste from the factory from the 1970s onwards, which is gradually spreading through surrounding communities and producing untold environmental damage as well as high rates of congenital disabilities in what is now the third generation to be affected by the Union Carbide disasters.
For survivors of the gas leak, the last 40 years have seen ongoing legal action and campaigns for justice, compensation, clean water and adequate healthcare. Most recently, in March 2023 the Supreme Court of India dismissed a curative petition for compensation from Dow Chemical (who bought out Union Carbide in 2001) for survivors of the 1984 disaster. This latest ruling means Dow Chemical continues to evade justice and emphasises the power and impunity of transnational wealth in this ongoing fight against corporate negligence. The Bhopal disasters mark a particular moment in uneven transnational corporate relations – a consequence of the Green Revolution – while also exemplifying many of the most urgent environmental concerns of the present moment: increasing levels of chemical toxicity, persistent organic pollutants, and the human right to safe drinking water. The health and environmental impacts of both the 1984 gas disaster and the ‘slow and silent’ groundwater contamination are both still unfolding, entangled with one another in a continuing story that becomes more complex as the years go by.
This special issue of South Asian Review explores the manifold ways in which the Bhopal gas and water disasters have been represented, narrativised, visualised, imagined, interrogated and remembered in cultural and creative productions over the past 40 years. Certain cultural texts have become iconic in local and global representations of Bhopal, from Raghu Rai’s haunting 1984 photograph, ‘Burial of an Unknown Child’, ubiquitous in survivor group campaign materials and international mobilisations, to Indra Sinha’s 2007 novel Animal’s People , shortlisted for the Booker Prize and widely discussed within academic literary criticism. But the disasters have also been the subject of countless other storytelling and awareness-raising initiatives, by survivors and campaigners and by global writers, artists and photographers: to name just a few, the Remember Bhopal Museum; the campaigns of the International Campaign for Justice in Bhopal and the Bhopal Medical Appeal; photography by Micha Patault, Alex Masi, Judah Passow and Francesca Moore; fiction by Arundhati Roy and Megan Delahunt; and films including the Hollywood take on the story of 1984, Bhopal: A Prayer for Rain (2013), documentaries including Van Maximilian Carlson’s Bhopali (2011) and Bala Kailasam’s Where Do the Children Play? (2019), and most recently the 2023 Netflix drama The Railway Men . The narrativisation and temporalities of the disaster have necessarily shifted over time, after 40 years now often encompassing impacts across generations, the Bhopal ‘marathon’ of endurance and suffering, slow violence, and ‘forever’ chemicals.
In this issue we want to turn critical attention to Bhopal storytelling over the last four decades, inviting articles on the disasters’ representations across art forms. We are interested in how cultural commentators and creative practitioners choose to engage with or frame this complex story spanning decades, the strategies used to keep Bhopal in global public consciousness in a world facing the compassion fatigue associated with frequent environmental disasters and climate crises, and in what is remembered and commemorated. We welcome articles in English exploring representations of the Bhopal disasters that are in Hindi, English or other languages and that are produced for local and/or global audiences. Critical approaches from the environmental humanities, medical humanities, disability studies, memory studies, legal studies, gender studies and other fields are welcome, as are creative submissions (poetry, short fiction, visual art, photography) that engage with the history of Bhopal.
Topics for consideration may include, but are not limited to, the following:
To submit a proposal for the special issue, please send an abstract of 250 words and a bionote of 100 words to [email protected] by 15 August 2024. Selections will be made by 30 September and full manuscripts will be due by 28 February 2025.
The editors will be hosting an online workshop to commemorate Bhopal at 40 in November 2024 and will invite potential contributors to present and gain feedback on works in progress. Further information about this event will be circulated once abstracts have been reviewed. Please note that South Asian Review ’s peer review protocols will be followed and participation in the workshop does not guarantee publication in the special issue.
Please direct all queries about the issue to [email protected]
Join telegram, प्रदूषण पर निबंध (essay on pollution in hindi)- pollution essay in hindi.
प्रदूषण पर निबंध (Essay On Pollution In Hindi)- प्रदूषण शब्द सुनते ही हमारे मन में तरह-तरह के सवाल उमड़-घुमड़ करने लगते हैं और हम इस कदर चिंतित हो उठते हैं कि अब तो इस समस्या का कोई न कोई हल तो अवश्य ही ढूंढ निकालेंगे। हमारा देश हमेशा से ही प्राकृतिक आपदाओं, वैश्विक महामारियों, प्रदूषण आदि जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करता आया है। शहरों में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है। प्रदूषण शहरों पर इस कदर हावी हो चुका है कि अब वहाँ रह रहे लोगों के लिए इसके बचकर निकल पाना मतलब शेर के पिंजरे से जिंदा बचकर आने के बराबर है।
आप हमारे इस पेज से हिंदी में प्रदूषण पर निबंध (Essay on Pollution In Hindi), प्रदूषण का अर्थ, प्रदूषण क्या है, प्रदूषण के प्रकार, प्रदूषण से होने वाले नुकसान, प्रदूषण के बचाव आदि चीज़ों के बारे में जान सकते हैं। हमारे इस लेख “प्रदूषण पर निबंध हिंदी में” का मुख्य उद्देश्य हमारे पाठकों के बीच प्रदूषण के संबंधित सही और सभी जानकारी पहुँचना है, ताकि आप प्रदूषण जैसे मुद्दे को गंभीरता से लें और जागरूक हो सकें। इसके अलावा स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र हमारे इस प्रदूषण पर लेख से सहायता लेकर निबंध प्रतियोगिताओं में भी भाग ले सकते हैं।
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आप हमारे इस पेज से प्रदूषण पर हिंदी में निबंध, प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 250 शब्दों में, प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 200 शब्दों में अथवा प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 100 शब्दों में भी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा आप पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध, वायु प्रदूषण पर निबंध, जल प्रदूषण पर निबंध, ध्वनि प्रदूषण पर निबंध, मृदा प्रदूषण पर निबंध भी पढ़ सकते हैं।
प्रदूषण का संबंध प्रकृति से जुड़ी किसी भी एक चीज़ को होने वाली हानि या नुकसान से नहीं है बल्कि उन सभी प्राकृतिक संसाधनों को खराब करने या व्यर्थ करने से है जो हमें प्रकृति ने बड़े ही सौंदर्य के साथ सौंपे हैं। यह तो सत्य है कि जैसा व्यवहार हम प्रकृति के साथ करेंगे वैसा ही बदले में हमें प्रकृति से मिलेगा। मिसाल के तौर पर हम कोरोनाकाल के लॉकडाउन के समय को याद कर सकते हैं कि किस प्रकार प्रकृति की सुंदरता देखी गई थी, जब मानव निर्मित सभी चीज़ें (वाहन, फैक्ट्रियाँ, मशीनें आदि) बंद थीं और भारत में प्रदूषण का स्तर कुछ दिनों के लिए काफी कम हो गया था या कहें तो, लगभग शून्य ही हो गया था।
इस उदाहरण से एक बात तो पानी की तरह साफ है कि समय-समय पर हो रहीं प्राकृतिक घटनाओं, आपदाओं, महामारियों आदि के लिए ज़िम्मेदार केवल-और-केवल मनुष्य ही है। जब भी हम प्रकृति या प्राकृतिक संसाधनों की बात करते हैं, तो उनमें वो सभी चीज़ें शामिल हैं जो मनुष्य को ईश्वर या प्रकृति से वरदान के रूप में मिली हैं। इनमें वायु, जल, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदियाँ, वन, पहाड़ आदि चीज़ें शामिल हैं। मनुष्य होने के नाते इन सभी प्राकृतिक चीज़ों और संसाधनों की रक्षा करना हमारा प्रथम कर्तव्य है। प्रकृति हमारी रक्षा तभी करेगी जब हम उसकी रक्षा करेंगे।
यह निबंध भी पढ़ें-
आज के समय में प्रकृति को जो सबसे अधिक नुकसान पहुँचा सकता है वो प्रदूषण है। प्रदूषण का आसान सा मतलब है कि हवा, पानी और मिट्टी का दूषित हो जाना। इन प्राकृति संसाधनों के दूषित हो जाने के कारण हम न तो ताजी हवा में सांस ले रहे हैं, न स्वच्छ पानी पी रहे हैं, न शुद्ध खाना खा रहे हैं और न ही शांत वातावरण में रह रहे हैं, जिसका हम अधिकार रखते हैं। हरियाली, हरे-भरे बाग-बगीचे, चिड़ियों की चहचहाहट, नदियों का साफ और नीला जल मानो आने वाले समय में महज़ एक सपना बनकर ही न रह जाए। मनुष्य से लेकर पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जल, वायु, अग्नि आदि सभी जैविक और अजैविक घटक मिलकर हमारे पर्यावरण को बनाते हैं। इन सभी चीजों का पर्यावरण निर्माण में विशेष योगदान रहता है परंतु आज इन सभी चीजों को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है।
प्रदूषण को समझने के लिए हमें सबसे पहले यह पता होना चाहिए कि आख़िर प्रदूषण है क्या? आसान शब्दों में इसे समझें, तो जब हवा, पानी, मिट्टी आदि में अवांछनीय तत्व घुलकर उसे गंदा और दूषित करने लगते हैं और मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि प्राकृतिक चीज़ों के स्वास्थ्य पर जब उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है, तो उसे ही हम प्रदूषण कहते हैं। प्रदूषण के कारण प्राकृतिक असंतुलन पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है और यह मानव जीवन के लिए भी गंभीर समस्या खड़ी कर सकता है।
ये सब देखते हुए यह हमारी ही जिम्मेदारी बनती है कि हमने जाने-अंजाने में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर पर्यावरण को जो नुकसान पहुँचाया है, अब उसमें जल्द-से-जल्द सुधार करते हुए प्रदूषण की समस्या को धीरे-धीरे खत्म किया जाए। पेड़ों और जंगलों को नष्ट करने से तो हमें रोकना है लेकिन उससे ज़्यादा ज़रूरत हमें अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करने की है। ऐसे ही प्रयासों से प्रदूषण की इस समस्या पर धीरे-धीरे काबू पाया जा सकता है। इसी तरह और भी बहुत से उपाय हैं, जिनसे हम सभी मिलकर प्रदूषण को कम करने की हर संभव कोशिश कर सकते हैं और एक नए अभियान की शुरुआत कर सकते हैं। अब बात करते हैं प्रदूषण के कारणों, प्रकारों और बचावों के बारे में।
प्रदूषण होने के पीछे कई बड़े कारण हमारे सामने आते हैं। ये वो कारण हैं जिसने प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या को जन्म दिया है। प्रदूषण ने प्रकृति और मानव जीवन में ज़हर के समान दूषित और जहरीले तत्वों को घोलकर हमें मौत के नज़दीक लाकर खड़ा कर दिया है। प्रदूषण के बड़े कारणों में निम्नलिखित कारण शामिल हैं, जैसे-
ये सभी वो कारण हैं जिन्होंने प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। इनके अलावा न जाने और कितने ही ऐसे छोटे-बड़े कारण हैं जिनका अंदाज़ा लगा पाना एक आम इंसान के बस में नहीं है। एक सबसे गंभीर कारण है और वो है देश की बढ़ती हुई जनसंख्या। ये वो कारण है जिसकी वजह से तेजी से पेड़ों की कटाई की जा रही है, औद्योगिकीकरण को और तेज़ किया जा रहा, मशीनों के प्रयोग में लगातार बढ़ोत्तरी की जा रही है, गांवों को धीरे-धीरे खत्म करके उन्हें शहर में बदला जा रहा है, लोग रोज़गार के लिए अपने गांवों को छोड़कर शहरों में जा रहे हैं, प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों का उपयोग लोग असीमित मात्रा में कर रहे हैं जिस वजह से प्रदूषण का स्तर लगातर बढ़ता ही जा रहा है। पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए पेड़-पौधे सबसे अहम भूमिका अदा करते हैं लेकिन हम मानव जाति के लोग अपनी ज़रूरतों के लालच में इन्हें बढ़ी ही बेरहमी से खत्म कर रहे हैं।
प्रदूषण के प्रकार
अब हम बात करते हैं प्रदूषण के प्रकारों के बारे में। प्रदूषण के इन प्रकारों के कारण भी पिछले कई सालों में प्रदूषण का स्तर बहुत ज़्यादा बढ़ गया है। प्रदूषण के कई अलग-अलग प्रकार हैं जिसकी वजह से प्रदूषण की समस्याओं में इज़ाफा हुआ है और ये प्रदूषण के बढ़ने के लिए ज़िम्मेदार भी हैं। प्रदूषण के प्रकार निम्नलिखित हैं. जैसे-
प्रदूषण के बढ़ने से हमें कई अलग-अलग प्रकार की हानियों और नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, जैसे- भूकंप, बाढ़, तूफान, भूस्खलन, जंगलों में आग, सूखा, महामारी आदि। ये हानियाँ और नुकसान सिर्फ प्रदूषण से ही नहीं हो रही बल्कि प्रदूषण के अलावा मनुष्य प्रकृति के साथ जो छेड़छाड़ कर रहा है, वह भी इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। प्रदूषण की वजह से मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। लोग शुद्ध और खुली हवा में सांस नहीं ले पा रहे हैं। लोगों का अशुद्ध भोजन खाना पड़ रहा है, गंदा जल पीना पड़ रहा है जिसके कारण कई तरह की गंभीर बीमारियां मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक परिणाम पैदा कर रही हैं। पर्यावरण-प्रदूषण की वजह से अब न तो समय पर वर्षा हो रही है और न ही सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक से चल रहा है। बढ़ती हुई प्राकृतिक घटनाओं का कारण भी प्रदूषण ही है। प्रदूषण की मार मनुष्य के साथ-साथ जानवरों, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, नदियों, समुद्रों आदि सभी चीज़ों पर पड़ रही है। प्रदूषण से जो गंभीर हानि हो रही है, उसकी भरपाई करने में कितना समय लगेगा ये कोई नहीं जानता।
वर्तमान में हर व्यक्ति एक ही बात को लेकर चिंतित है कि कि प्रदूषण से कैसे बचा जाए? या प्रदूषण से बचाव के क्या उपाय हैं? यह सवाल तो सबके पास है लेकिन इसका जवाब आज भी नहीं मिल पाया है। अगर जवाब मिल भी गया है, तो क्या हम उस बात पर अमल करते हैं जो प्रदूषण को कम करने और प्रकृति को बचाए रखने के लिए सहायक है। प्रदूषण से तभी बचा जा सकता है जब हम सबसे पहले अपने अंदर बदलाव लाएंगे। प्रकृति को बिना कोई नुकसान पहुँचाए प्राकृतिक चीज़ों का ज़रूरत के हिसाब से इस तरह से उपयोग करेंगे कि यह भावी पीढ़ी के लिए भी सुरक्षित रह सकें।
हमें अपने भीतर यह भावना रखनी होगी कि जो कुछ भी प्रकृति से हमें मिला है, उसे किसी न किसी रूप में हम प्रकृति को वापिस ज़रूर करेंगे। ऐसा हम अधिक से अधिक पेड़ लगाकर, अपने आसपास साफ-सफाई रखकर, संसाधनों का सीमित मात्रा में उपयोग करके, मशीनों का कम इस्तेमाल करके, प्लास्टिक की जगह कपड़ों से बने थैलों का इस्तेमाल करके, नदियों को साफ रखकर और जीव-जंतुओं की रक्षा करके ही कर सकते हैं। इसी तरह ही हम प्रकृति की रक्षा और उसके साथ न्याय दोनों ही कर सकेंगे और प्रदूषण से खुद को और लोगों को बचा सकेंगे।
उपरोक्त सभी बातों को पढ़कर हम निष्कर्ष के तौर पर यह कह सकते हैं कि पर्यावरण को दूषित होने से रोकने के लिए हमें मिलकर छोटे-छोटे प्रयास करने की ज़रूरत है, तभी देश में कोई बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। हमेशा किसी बड़े बदलाव की शुरुआत एक छोटे रूप में ही होती है। प्रकृति को कुदरत और ईश्वर दोनों ने ही मिलकर इस उम्मीद से रचा है कि हम मनुष्य उसके साथ बिना कुछ गलत किए उसकी हमेशा रक्षा करेंगे और उसकी शुद्धता, सुंदरता और नवीनता को बरकरार रखेंगे।
प्रदूषण कैसे होता है?
हम सभी को बचपन में एक बात ज़रूर बताई जाती है कि हमें ऑक्सीजन पेड़-पौधों से मिलती है। ऑक्सीजन की वजह से ही हम जिंदा रहते हैं और सांस लेते हैं। लेकिन इसके बाद भी वनों की कटाई के मामले लगातार से बढ़ रहे हैं और प्रदूषण के सभी प्रकारों को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। प्रदूषण से हमारा तात्पर्य है कि हवा, पानी और मिट्टी का दूषित या खराब हो जाना, जो प्रदूषण को जन्म देता है।
प्रदूषण के नुकसान
आज प्रदूषण के कारण हरियाली, शुद्ध हवा, शुद्ध भोजन, शुद्ध जल आदि सभी चीज़ें अशुद्ध होती जा रही हैं। जिन जैविक और अजैविक घटकों से हमारे पर्यावरण का निर्माण होता है आज वो ही सबसे ज़्यादा खतरे में हैं। प्रदूषण से सबसे ज़्यादा नुकसान प्रकृति को हो रहा है। हवा, पानी और मिट्टी में अवांछनीय तत्व घुलकर उसे गंदा और दूषित कर रहे हैं। इन्हीं तत्वों से प्रकृति और मनुष्य के साथ-साथ जानवरों, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, नदियों, वनों, पहाड़ों आदि को भी हानि पहुँच रही है। प्रदूषण से मानव जीवन को गंभीर खतरे पैदा हो रहे हैं। हमने पर्यावरण को जो नुकसान पहुँचाया है, उस जल्द-से-जल्द सुधारते हुए हमें प्रदूषण को खत्म करना ही होगा।
प्रदूषण के कारण और बचाव
प्रदूषण के कई अलग-अलग कारण हैं, जिनमें पेड़ों की कटाई, बढ़ते उद्योग, फैक्ट्रियाँ, मशीनें आदि शामिल हैं। प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है जनसंख्या का तेजी से बढ़ना। इन सभी कारणों की वजह से पिछले कई सालों में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। यह वायु, जल, मृदा, ध्वनि आदि सभी प्रकार के प्रदूषण को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। प्रदूषण से हमें भूकंप, बाढ़, तूफान आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना भी करना पड़ रहा है। प्रदूषण को कम करने के लिए हमें ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाने होंगे और अपने आसपास साफ-सफाई रखनी होगी। इन्हीं छोटे-छोटे प्रयासों से ही हम प्रदूषण को कम करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
प्रदूषण क्या होता है?
हम सभी इस बात को लेकर चिंचित हैं कि हमारे देश में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है। प्रदूषण की समस्या बड़े शहरों में ज़्यादा बढ़ गई है। शहरों में निवास कर रहे लोगों पर प्रदूषण इस कदर हावी हो चुका है कि अब वह उनके स्वास्थ्य को भी खराब करने लगा है। इसीलिए शहरो में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए अब वहाँ के लोगों में प्रदूषण के प्रति जागरूकता फैलाना बेहद ज़रूरी हो गया है। प्रदूषण से न सिर्फ मनुष्यों को बल्कि सभी प्राकृतिक चीज़ें जैसे पेड़-पौधे, जानवर, हवा, पानी, मिट्टी, खाने-पीने की चीज़ें आदि सभी को हानि पहुँच रही है। जो प्राकृतिक घटनाएँ, आपदाएँ, महामारियाँ आदि समय-समय पर अपना प्रकोप दिखाती हैं, उसके लिए भी प्रदूषण को ही जिम्मेदार ठहरना गलत न होगा।
प्रदूषण के प्रभाव और बचाव
प्रदूषण की वजह से प्रकृति और पर्यावरण को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है। दुनिया में जिनती भी प्राकृतिक चीज़ें हैं, उन सभी पर प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव देखा जा सकता है। प्रदूषण के कारण प्रकृति में असंतुलन भी पैदा हो रहा है। प्रदूषण को कई कारणों ने एक साथ मिलकर जन्म दिया है। वनों और पेड़ों के लगातार कम होने की वजह भी प्रदूषण का सबसे बड़े कारण है। अगर हम चाहते हैं कि प्रदूषण कम हो तो हमें ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाकर प्रदूषण पर जीत हासिल करनी होगी। प्रदूषण को कम करने के लिए हमें अपने गांवों को बचाकर रखना होगा, वहाँ की हरियाली को खत्म होने से रोकना होगा और शुद्ध हवा और पानी को दूषित होने से बचाना होगा। इन छोटे-छोटे प्रयासों से ही हम प्रदूषण को खत्म करने के अपने सपने को पूरा कर सकेंगे।
प्रदूषण इस धरती पर पाए जाने वाले सभी प्राकृतिक संसाधनों में हानिकारक और जहरीले तत्वों का मिश्रण है। प्रदूषण प्राकृतिक जीवन चक्र को परेशान करता है साथ ही यह इस पृथ्वी पर सभी प्रजातियों के सामान्य जीवन को भी प्रभावित करता है। प्रदूषण का हम कई अलग-अलग प्रकार में बांट सकते हैं, जैसे- ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि।
प्रदूषण से कैसे बचें?
जिस हवा में हम हर पल सांस ले रहे हैं, वो हवा ही अब हमारे फेफड़ों के कई विकारों का कारण बन रही है। ऐसे ही पीने के पानी में रोगाणु, वायरस, हानिकारक रसायन आदि के मिल जाने से मिट्टी और जल प्रदूषण भी होता है। प्रदूषण को खत्म करने के लिए सबसे पहले हमें प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों का पता लगाना होगा और सरकार ने जो भी नियम और उपाय लागू किए हैं, उन सभी का पालन करना होगा। इसके अलावा प्रदूषण रोकने के लिए हमें कम से कम वाहनों का उपयोग करना होगा और ज़्यादा से ज़्यादा पेड़-पौधे लगाने होंगे।
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प्रश्न- प्रदूषण क्या है और उसके प्रकार? उत्तर- वाहनों तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाली गैसों के कारण हवा (वायु) प्रदूषित होती है। मानव कृतियों से निकलने वाले कचरे को नदियों में छोड़ा जाता है, जिससे जल प्रदूषण होता है। लोंगों द्वारा बनाये गये अवशेष को पृथक न करने के कारण बने कचरे को फेंके जाने से भूमि (जमीन) प्रदूषण होता है।
प्रश्न- प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? उत्तर- प्रदूषण से आशय है जब किसी वस्तु, पदार्थ तथा तत्व के प्राकृतिक गुणों में विकृति या मिलावट आ जाती है, तब उस विकृति या मिलावट को प्रदूषण कहा जाता है। वायु प्रदूषण कारखानों से निकले धुओं, कीटनाशकों के प्रयोग, रासायनिक परीक्षणों तथा कूड़ा-करकट व जीव-जन्तुओं के मृत शरीरों के सड़ने से उत्पन्न होता है।
प्रश्न- प्रदूषण का अर्थ क्या होता है? उत्तर- प्रदूषण पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुँचाते हैं। प्रदूषण का अर्थ है- ‘वायु, जल, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना’, जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तन्त्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं।
प्रश्न- प्रदूषण रोकने के उपाय क्या हैं? उत्तर- धूम्रपान ना करने से वायु प्रदूषण को कम करके पर्यावरण को बचाया जा सकता है। आज प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बढ़ते वाहनों की संख्या भी है। ऐसे में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अपने वाहनों का सही से ख्याल रखें और समय-समय पर प्रदूषण की जांच करवाते रहें। ऐसा करके आप पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं।
प्रश्न- प्रदूषण पर निबंध कैसे लिखें? उत्तर- प्रदूषण से प्राकृतिक असंतुलन पैदा होता है। साथ ही यह मानव जीवन के लिए भी खतरे की घंटी है। मनुष्य की यह जिम्मेदारी बनती है कि उसने जितनी नासमझी से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया है, अब उतनी ही समझदारी से प्रदूषण की समस्या को सुलझाये। वनों की अंधाधुंध कटाई भी प्रदूषण के कारको में शामिल है।
प्रश्न- प्रदूषण जांच केंद्र कैसे खोलें? उत्तर- अगर आप नया प्रदूषण जांच केंद्र खोलना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको अपने नजदीकी आरटीओ ऑफिस से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट को प्राप्त करना अनिवार्य है। इस जांच केंद्र को आप किसी भी पेट्रोल पंप ऑटो मोबाइल वर्कशॉप पर बिना किसी रुकावट के खोल सकते हैं।
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