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भारत में खाद्य सुरक्षा पर निबंध essay On Food Security In India In Hindi
भारत में खाद्य सुरक्षा पर निबंध Essay On Food Security In India In Hindi : शासन के प्रमुख कर्तव्यों में एक अपनी आबादी के लिए आवश्यक खाद्यान्न की पूर्ति करना भी हैं.
घरेलू खाद्यान्न की मांग को ध्यान में रखते हुए उसका भंडारण और प्रत्येक नागरिक तक समुचित कीमत तक अन्न पहुचाना, खाद्य सुरक्षा कहलाती हैं.
खाद्य सुरक्षा पर निबंध essay On Food Security In India In Hindi
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एक तरफ हमारे देश के जाने माने अर्थशास्त्री ये दावा कर रहे है कि भारत बेहद जल्द विश्व महाशक्ति के रूप में उभर रहा है. दूसरी तरफ हमारी सरकार द्वारा ही जारी कृषि एवं विकास के वर्तमान आंकड़ो पर नजर डाली जाए तो यह बात पूरी तरह से बेमानी लगती है.
आज भारत के कई गाँवों के हालात ऐसे है जहाँ लोगों को भरपेट खाना नही मिल पाता है. शहरों के हालात भी ज्यादा कुछ अच्छे भी नही है. इसी समस्या से निपटने तथा कम आय के तबके को भोजन मुहैया करवाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पारित किया गया.
खाद्य सुरक्षा का अर्थ भारत के हर नागरिक की प्राथमिक आवश्यकता भोजन को उन तक पहुचाना, भारतवर्ष जैसे विकासशील देश में इस अधिनियम की महती आवश्यकता इसलिए भी है क्युकि यहाँ निम्नवर्गीय परिवारों की संख्या सबसे अधिक है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू करने से पूर्व सरकार द्वारा उन सभी तथ्यों को ध्यान में रखा गया, जैसे जनसंख्या वृद्धि की दर, उत्पादन और उपभोग के बिच आवश्यक संतुलन.
हमारे देश में गरीबी तथा भुखमरी के हालातों को समझने के लिए कुछ साल पहले जारी हंगर इंडेक्स रिपोर्ट को ध्यान में लाना जारी है. 2010 में विश्व के 84 देशों में किये गये सर्वेक्षण में भारत के हालात बेहद नाजुक है.
इन देशों की सूची में भारत को 67 वाँ स्थान दिया गया था. इससे अहम बात यह थी कि भारत के पडौसी देश पाकिस्तान, नेपाल तथा श्रीलंका इस सूची में बहुत उपर है, जहाँ कुपोषण, शिशु मृत्यु दर भारत से भी कम दर्शायी गई है.
23 जुलाई 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भूख एक गंभीर समस्या है और 119 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 100वें पायदान पर है। भारत उत्तर कोरिया और बांग्लादेश जैसे देशों से पीछे है.
सरकार के आंकड़ो के मुताबिक़ हमारे देश की कुल जनसंख्या के बहुत बड़ा हिस्सा तक़रीबन 38 प्रतिशत लोग अभी भी BPL यानि गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे है.
एक समय था जब भारत खाद्यानो के उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गया था तथा विदेशों को अनाज भी निर्यात करता था.
मगर 20 वीं सदी के अंतिम दशकों में तेजी से बढ़ी जनसंख्या ने फिर से भुखमरी के हालात पैदा कर दिए है. इस दिशा में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू करना एक अच्छा कदम है.
भारतीय खाद्य निगम
भारतीय खाद्य निगम भारत का एक निगम है। भारत में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु यह खाद्यान्नों का क्रय करके उन्हें गोदामों में भण्डारित करता है। जिसकी स्थापना 1965 में राजधानी दिल्ली में की गई थी.
यह निगम किसानों से खरीदी गई उपज को 1997 में शुरू की गई सहकारिता वितरण प्रणाली के द्वारा जरुरत मंद लोगों के लिए उचित मूल्य की दुकानों के द्वारा उपलब्ध करवाता है.
इस योजना के तहत पहले 3-4 रूपये की सस्ती कीमत पर गेहू और चावल वितरित किया जाता था. बाद के कई वर्षो में इस योजना का विस्तार करते हुए इसे अन्त्योदय अन्न योजना के साथ जोड़ते हुए 1 लाख BPL कार्ड धारकों को इसका लाभार्थी बनाया गया तथा उन्हें सस्ती कीमत पर अनाज उपलब्ध कारवाने की व्यवस्था उचित मूल्य की दुकाने के द्वारा की गई.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा भारत की चुनोतियों में से एक है. यदि भारत को आगे बढ़ाना है तो धरातल पर सबका साथ सबका विकास के जरिये निम्न तबके के लोगों के हालत शीघ्र सुधारने होंगे.
तथा सरकार द्वारा खाद्य वितरण प्रणाली पर भी विशेष ध्यान देना होगा. नए सिरे से भारत की कृषि निति तथा उसमे उत्पादन, उपभोग तथा उद्योग इन तीनों में संतुलन स्थापित करना होगा, सच्चे अर्थो में तभी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकेगा.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम,2013 (food security act 2013 in hindi)
भारतीय संसद द्वारा फूड सिक्योरिटी को कानूनी रूप देने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को 10 सितम्बर 2013 को अधिसूचित किया गया. एक्ट का उद्देश्य सभी देशवासियों को वहनीय मूल्य पर गुणवत्ता पूर्ण अन्न की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए.
अधिनियम के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 50 शहरी जनसंख्या को कवर करने का लक्ष्य रखा गया. इस कानून द्वारा पात्र व्यक्ति को 2 से 5 रु प्रति किलो की दर सड़े अनाज का हक दिया गया.
गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों को प्रति माह 35 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध करवाया जाता हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट में 81 करोड़ नागरिकों को लाभ देने का लक्ष्य रखा गया था, वर्तमान में 80 करोड़ से अधिक पात्र नागरिक इसका इसका लाभ ले रहे हैं.
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भारत में खाद्य सुरक्षा : दशा, दिशा और परिदृश्य | Essay in Hindi
![Food security in India निबंध : भारत में खाद्य सुरक्षा : दशा, दिशा और परिदृश्य](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2021/10/Food-security-in-India-696x574.jpg)
निबंध : भारत में खाद्य सुरक्षा : दशा, दिशा और परिदृश्य
( Food Security in India: Condition, Direction and Scenario : Essay in Hindi )
प्रस्तावना ( Preface ) :-
आज हमारे देश में अन्न भंडार लगातार बढ़ती आबादी को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने में समर्थ है। किसी अकस्मिक घटना से निपटने के लिए अनाज का सुरक्षित भंडार मौजूद है।
कम कीमत पर आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों को अनाज उपलब्ध कराने की एक मजबूत प्रणाली भी देश में काम कर रही है।
भारत में इन सारी चुनौतियों के बावजूद खाद्य सुरक्षा का भविष्य उज्जवल और सुरक्षित दिखाई देता है। अकाल और भुखमरी को करारी शिकस्त देकर भारत खाद्य सुरक्षा हासिल कर लिया है।
आज हमारे देश में अन्य भंडारों में लगातार बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने की सामर्थ्य है।
आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को कम कीमत पर अनाज उपलब्ध करवाने सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाओं के माध्यम से विशेष रूप से बच्चे और महिलाओं के लिए आहार और पोषण की व्यवस्था भी की गई है।
देश की 130 अरब आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में कृषि अनुसंधान एवं विकास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसने फसल, बागवानी, पशु, पक्षी, उत्पादों की कुल उत्पादन और उत्पादकता में क्रांतिकारी वृद्धि लाई है।
भारत में पोषण सुरक्षा के नजरिए से उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। लेकिन आज भी भारत में कुपोषित लोगों की संख्या काफी अधिक है।
अभी हाल में ही जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 में भारत का स्थान 116 देशों में 101 है। जबकि भारत से बेहतर स्थिति में भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान है। भारत में खाद्य सुरक्षा के बावजूद भुखमरी की समस्या वाकई में चिंता का विषय है।
आखिर समस्या कहां है किस लिए भारत में भुखमरी की समस्या पाई जा रही है? इस पर गहन चिंतन और विचार विमर्श करने की आवश्यकता है।
भारत मे खाद्य सुरक्षा ( Food Security in India in Hindi ) :-
खाद्य सुरक्षा में क्रांति आजादी के बाद 1960 के दशक में भारत में हरित क्रांति का उदय हुआ। इसी के बाद भारत अन्य उत्पादकता के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना। कृषि और संबंधित उद्यमों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयोग से उत्पादन को कई गुना तक बढ़ाना संभव हो सका।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नेतृत्व में इस पर एक और ठोस कदम उठाया गया और भारत में अनाज उत्पादन बढ़कर 25.22 करोड टन से भी अधिक हो गया है।
हाल के वर्षों में भारत में सूखे जैसी दशाएं तथा प्राकृतिक आपदाओं की विपदा झेलनी पड़ी। लेकिन खाद्यान्न पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।
भारत में कृषि उत्पादकता बढ़ाने में सरकार के कुछ योजनाएं महत्वपूर्ण रही हैं जिसमें हाल की योजनाओं में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार और परंपरागत कृषि विकास योजना प्रमुख रूप से शामिल है।
भारत जैसे विशाल और आर्थिक विषमता वाले देश में दूरदराज के दुर्गम इलाकों तक और समाज के सबसे कमजोर वर्ग तक अनाज की भौतिक और आर्थिक पहुंच सुनिश्चित करना वाकई में एक कठिन चुनौती है।
परंतु अनुकूल नीतियों और योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन से इनको बखूबी अंजाम भी दिया जा रहा है। 1960 के दशक से प्रारंभ सार्वजनिक वितरण प्रणाली जिसे PDS के नाम से भी जाना जाता है, समाज के सभी वर्गों तक रियायती कीमतों पर अनाज को उपलब्ध करवाता है।
बच्चों को स्कूल जाने की आदत को बढ़ाने तथा पोषण स्तर को सुधारने के उद्देश्य से 1995 में 2400 ब्लॉकों में मिड डे मील स्कीम शुरू की गई। आज मिड डे मील स्कीम को देश के सभी प्राथमिक स्कूलों में लागू कर दिया गया है।
चुनौतियां ( Challenges ) :-
देश में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को लंबे समय तक सतत रूप से बनाए रखना एक कठिन चुनौती है। क्योंकि लगातार बढ़ती आबादी और बढ़ते शहरीकरण की वजह से भोजन की मांग और विविधता में परिवर्तन आ रहा है।
यदि भावी परिदृश्य 2050 के नजरिए से देखा जाए तो भारत की आबादी 2050 तक 1.65 अरब तक पहुंच सकती है। देश के 50% आबादी तब तक शहरों में बस जाएगी।
ऐसे में कृषि के आधार को चोट पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। कई सारे शोध से पता चला है कि यदि सकल घरेलू उत्पाद में 7% की वृद्धि दर्ज की जाती है तब 2050 तक अनाज की मांग 50% तक बढ़ जाएगी।
फलों, सब्जियों और पशु उत्पादों में 300% तक की वृद्धि संभव है ऐसे में खाद्यान्न उत्पादकता जो वर्तमान समय में 25000 किलो कैलोरी प्रति हेक्टेयर है से बढ़ाकर 46000 किलो कैलोरी प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन के स्तर तक ले जाना होगा।
अवसर और संभावनाएं ( Opportunities and prospects ) :-
खाद्य सुरक्षा पर मंडराते खतरे को बांटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई योजनाएं बनाई गई हैं, जो खाद्य सुरक्षा को सतत बनाए रखने में सहायक होंगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नेतृत्व में क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर को विकसित किया जा रहा है। इस योजना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाएगा।
कृषि अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से प्रमुख फसलों की जलवायु अनुकूल किस्में विकसित की जा रही हैं, जिससे प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़, गर्मी, सर्दी को सहने की क्षमता मौजूद हो। इस प्रकार जलवायु अनुकूल कृषि विधियों का विकास किया जा रहा है।
सिंचाई के पानी की कुशलता बढ़ाने के लिए टपक सिंचाई, फवारा सिंचाई जैसी सूक्ष्म व कुशल तकनीक विकसित की जा रही है जिसका किसानों के खेतों तक प्रसार किया जा रहा है।
फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग की बेहद क्षमता वान तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। इससे कृषि क्षेत्र में चमत्कारी बदलाव लाए जा सकते हैं।
परंतु इसके उपयोग के लिए सरकारी नीति और संस्कृत की आवश्यकता है और यह भी न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण लंबित है। परंतु भविष्य में इस तकनीक का इस्तेमाल खाद्य सुरक्षा को सतत बनाए रखने में बेहद अहम होगा।
लेखिका : अर्चना यादव
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भारत में गरीबी और खाद्य सुरक्षा पर निबंध | Essay on Poverty and Food Security in India in Hindi Language!
वर्तमान में संपूर्ण विश्व के समक्ष खाद्य सकट ने विकराल व भीषण समस्या का रूप धारण कर लिया है । विश्व बैंक के अनुसार पिछले तीन वर्षों में खाद्य पदार्थों की कीमतों में 83 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जिसके कारण खाद्य सुरक्षा पर खतरों के बादल मंडरा रहे हैं ।
वर्तमान में हमारा देश भी खाद्य समस्या से जुझ रहा है । देश में बढ़ती जनसंख्या व आय के बढ़ते साधनों के साथ मांग की तीव्रता से बढ़ने के कारण खाद्यान्नों की मांग व पूर्ति में अंतराल बढ़ता जा रहा है । इसी वजह से कीमतों में भी लगातार वृद्धि हो रही है । कृषि की रीढ़ माने जाने वाले देश भारत में भी प्राकृतिक संसाधनों जैसे- मृदा, जल, वायु में लगातार गिरावट होती जा रही है ।
ADVERTISEMENTS:
खाद्य सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का अंग है । देश की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के लिये खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना नितांत आवश्यक है, जिससे कोई भी भूखा न सो सके । साथ ही खाद्यान्न के क्षेत्र में भारत दुनिया का नेतृत्व कर सके । अत: भविष्य में खाद्यान्न आपूर्ति के लिये प्रभावी कार्य व्यापक तौर पर करने की आवश्यकता इस विकट परिस्थिति में सघन कृषि प्रणाली अपनाकर कृषि उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है ।
हरित क्रांति के सफल क्रियान्वयन द्वारा भारत की कृषि उत्पादकता क्षमता में लगभग तीन से चार गुना वृद्धि हुई है । कृषि उत्पादकता में वृद्धि के लिये कई महत्वपूर्ण कारकों का समन्वय आवश्यक माना गया है जैसे- उन्नत बीज, सिंचाई, उर्वरक, कीटनाशी, रसायन, मृदा आदि जो पर्यावरण के अवयव हैं ।
इन कारकों में मृदा की भूमिका सभी फसलों के आधार के रूप में निर्विवाद स्वीकार की गयी है । महान दार्शनिक अरस्तू ने तो मृदा को ‘फसलों के पेट’ की संज्ञा दी है, क्योंकि फसलों का पोषण मृदा द्वारा ही संभव है ।
मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में भोजन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । बढ़ती जनसंख्या, खाद्य पदार्थों की अनौचित्यपूर्ण वितरण, खाद्य पदार्थों का अनौचित्यपूर्ण तरीके से उत्पादन आज की महती समस्या है । बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिये सभी उपाय निष्क्रिय होते जा रहे हैं । देश के कुछ हिस्सों में अत्यधिक मात्रा में खाद्य पदार्थ उपलब्ध है, जबकि कुछ हिस्सों में वे आम व्यक्ति के लिये भी उपलब्ध नहीं है ।
कृषि उत्पादक गेहूँ चना, दाल जैसी मूलभूत कृषि उत्पादों को छोड़कर तिलहन व नगद फसलों को उगाने में अधिक रूचि ले रहे हैं जिससे उत्पादित पदार्थों में मांग और पूर्ति की विषमतायें उत्पन्न हो रही हैं । भारत सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा बिल लाना एक सराहनीय कदम हे किन्तु अभी भी खाद्य पदार्थों में उत्पादन एवं आपूर्ति की कई विषमतायें हैं जिसको यह शोध पत्र इंगित कर रहा है ।
भारत में खाद्यान्न की स्थिति:
भारत विश्व के देशों की तरह खाद्य सुरक्षा के प्रति जागरूक है तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत निरंतर विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा इस दिशा में प्रगति कर रहा है भारत विगत दशकों से आत्मनिर्भर होता जा रहा है । तीन दशकों से भारत में गरीबी में कमी आयी है ।
यह निम्न तालिका से स्पष्ट है:
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(खाद्य सुरक्षा की परिभाषा) Food Security Definition in Hindi !!
- Post author: Ankita Shukla
- Post published: August 10, 2020
- Post category: Gyan
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खाद्य सुरक्षा की परिभाषा | Definition of Food Security in Hindi !!
खाद्य सुरक्षा भोजन की उपलब्धता और इसे व्यक्तियों द्वारा प्रयोग करने की क्षमता का एक समाधान है। जिसमे अफोर्डेबिलिटी केवल एक कारक है। हजारों साल पहले खाद्य सुरक्षा होने का एक प्रमाण है, प्राचीन चीन और प्राचीन मिस्र में केंद्रीय अधिकारियों को अकाल के समय भंडारण से भोजन छोड़ने के लिए जाना जाता है।
1974 के विश्व खाद्य सम्मेलन में आपूर्ति पर जोर देने के साथ “खाद्य सुरक्षा” शब्द को परिभाषित किया गया था। उन लोगों कहा कि खाद्य सुरक्षा “खाद्य उपभोग के निरंतर विस्तार और उत्पादन और कीमतों में उतार-चढ़ाव को दूर करने के लिए बुनियादी खाद्य पदार्थों की पर्याप्त, पौष्टिक, विविध, संतुलित और मध्यम विश्व खाद्य आपूर्ति के सभी समय पर उपलब्धता है।
“बाद में परिभाषाओं ने परिभाषा में मांग और पहुंच के मुद्दों को जोड़ा। 1996 के विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन की अंतिम रिपोर्ट में कहा गया था कि खाद्य सुरक्षा “तब के लिए मौजूद है जब सभी लोग, हर समय, अपनी आहार आवश्यकताओं और एक सक्रिय और स्वस्थ जीवन के लिए खाद्य वरीयताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन के लिए भौतिक और आर्थिक पहुंच रखते हैं।”
Ankita Shukla
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What is National Food Security Mission in Hindi: केंद्र सरकार लागू कर रही है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
What is National Food Security Mission in Hindi: भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (आईवाईओएम) घोषित किया गया है। सरकार इसे एक जन आंदोलन बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मना रही है ताकि मूल्यवर्धित उत्पादों को विश्व स्तर पर स्वीकार किया जा सके।
![क्या है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन? राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का उद्देश्य क्या है? क्या है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन? राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का उद्देश्य क्या है?](https://images.careerindia.com/hi/img/2023/12/whatisnationalfoodsecuritymission-n-1702413727.jpg)
केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने बाजरा (श्रीअन्न) को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। आईवाईओएम 2023 की कार्य योजना उत्पादन, उत्पादकता, खपत, निर्यात बढ़ाने, मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करने, ब्रांडिंग और स्वास्थ्य लाभ के लिए जागरूकता पैदा करने आदि की रणनीति पर केंद्रित है।
पोषक अनाज का उत्पादन
श्रीअन्न की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए पोषक अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए, केंद्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- पोषक अनाज (एनएफएसएम-न्यूट्री अनाज) लागू कर रही है। एनएफएसएम-न्यूट्री अनाज के अंतर्गत शामिल हस्तक्षेपों में प्रथाओं के बेहतर पैकेज, बीज वितरण और सूक्ष्म पोषक तत्व, जैव उर्वरक, उच्च उपज वाली किस्मों के प्रमाणित बीजों का उत्पादन, पौध संरक्षक रसायन, खरपतवारनाशी, स्प्रेयर, कुशल जल अनुप्रयोग उपकरण, फसल प्रणाली पर आधारित प्रशिक्षण का क्लस्टर फ्रंट लाइन प्रदर्शन शामिल हैं।
श्रीअन्न के लिए बीज हब भी स्थापित किए गए हैं। आगे के हस्तक्षेपों में ब्रीडर बीज उत्पादन, प्रमाणित बीजों का उत्पादन, बीज मिनी किट (एचवाईवी) का वितरण आदि शामिल हैं। इसके अलावा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों ने भी बाजरा को बढ़ावा देने के लिए बाजरा मिशन शुरू किया है।
सरकार राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के माध्यम से किसानों को बाजरा का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित भी करती है। इसने यह सुनिश्चित करने के लिए मुख्य मोटा अनाजों के लिए एमएसपी भी तय किया है ताकि किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके।
उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना
मिलेट्स आधारित उत्पादों का उत्पादन बढ़ाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा जून 2022 में एक उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना अधिसूचित की गई है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पोषण अभियान के तहत भी श्री अन्न को शामिल किया गया है। इसके अलावा, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस), एकीकृत बाल विकास सेवाओं (आईसीडीएस) और मध्याह्न भोजन के तहत बाजरा की खरीद बढ़ाने के लिए अपने दिशानिर्देशों को संशोधित किया है। मंत्रालय ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को बाजरा की खरीद बढ़ाने की भी सलाह दी है।
दोनों सरकारों के प्रयास
केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के उपरोक्त प्रयासों के कारण, श्री अन्न के स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ी है और मांग भी बढ़ी है। सरकार किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि उत्पादन और आपूर्ति बढ़े और कीमतें नियंत्रित रहें। यह जानकारी केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) क्या है?
भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) को बेहतर प्रौद्योगिकियों और कृषि प्रबंधन प्रथाओं की शुरूआत के माध्यम से खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था। मिशन मुख्य रूप से चावल, गेहूं और दालों के उत्पादन को बढ़ाने पर केंद्रित है, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के आवश्यक घटक हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) का उद्देश्य क्या है?
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एक अधिक लचीला और टिकाऊ कृषि क्षेत्र बनाने का प्रयास करता है, जिससे अंततः किसानों को लाभ होता है और राष्ट्र के लिए एक स्थिर और सुरक्षित खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित होती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के उद्देश्य इस प्रकार हैं:
उत्पादकता बढ़ाना: एनएफएसएम का प्राथमिक लक्ष्य उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाकर चावल, गेहूं और दालों सहित प्रमुख फसलों की उत्पादकता में वृद्धि करना है। इसमें उच्च उपज देने वाली किस्मों, कुशल फसल प्रबंधन प्रथाओं और आधुनिक कृषि मशीनरी के उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है।
सतत कृषि: एनएफएसएम टिकाऊ कृषि पद्धतियों पर जोर देता है जो न केवल उत्पादकता बढ़ाती है बल्कि मिट्टी और पर्यावरण के दीर्घकालिक स्वास्थ्य को भी सुनिश्चित करती है। इसमें जैविक खेती को बढ़ावा देना, जल संसाधनों का कुशल उपयोग और एकीकृत कीट प्रबंधन शामिल है।
फसलों का विविधीकरण: संतुलित आहार सुनिश्चित करने और कुछ प्रमुख फसलों पर निर्भरता कम करने के लिए, एनएफएसएम फसलों के विविधीकरण को प्रोत्साहित करता है। इसमें किसानों के लिए पोषण विविधता और आर्थिक स्थिरता बढ़ाने के लिए तिलहन, मोटे अनाज और अन्य फसलों की खेती को बढ़ावा देना शामिल है।
भौगोलिक विस्तार: मिशन का लक्ष्य देश भर के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों तक अपना कवरेज बढ़ाना है। क्षेत्र-विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करके और विभिन्न क्षेत्रों के लिए उपयुक्त फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर, एनएफएसएम संतुलित कृषि विकास हासिल करना चाहता है।
प्रौद्योगिकी अपनाना: एनएफएसएम किसानों के बीच आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देता है। इसमें समग्र कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण बीज, कुशल सिंचाई पद्धतियां, सटीक कृषि तकनीक और मशीनीकरण का उपयोग शामिल है।
क्षमता निर्माण: मिशन प्रशिक्षण कार्यक्रमों और क्षमता निर्माण पहलों के माध्यम से किसानों के ज्ञान और कौशल को बढ़ाने पर केंद्रित है। यह किसानों को सूचित निर्णय लेने, सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने और उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए सशक्त बनाता है।
बाज़ार संपर्क: एनएफएसएम का लक्ष्य किसानों और बाज़ारों के बीच संबंधों को मजबूत करना है। बाजारों तक पहुंच की सुविधा प्रदान करके, किसान-उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देकर और उचित मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करके, मिशन किसानों की आय और आजीविका में सुधार करना चाहता है।
जोखिम न्यूनीकरण: जलवायु परिवर्तन, कीट और बीमारियों जैसे कृषि से जुड़े जोखिमों को संबोधित करना एक प्रमुख उद्देश्य है। एनएफएसएम किसानों को संभावित नुकसान से बचाने के लिए लचीली फसल किस्मों और जोखिम शमन रणनीतियों को अपनाने को बढ़ावा देता है।
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: अंततः, एनएफएसएम का व्यापक उद्देश्य प्रमुख खाद्य फसलों के उत्पादन और उपलब्धता को बढ़ाकर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में योगदान करना है। यह आबादी के लिए आवश्यक वस्तुओं की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है।
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कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान भारत में खाद्य सुरक्षा नोट्स (PDF) – Class 9 Social Science Food Security in India Notes in Hindi
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कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान भारत में खाद्य सुरक्षा नोट्स को यहा publish कर दिया गया है। यहा इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपके साथ भारत में खाद्य सुरक्षा (Food Security in India) के नोट्स के pdf शेयर करेंगे। भारत में खाद्य सुरक्षा नामक अध्याय को कक्षा 9 मे सामाजिक विज्ञान की पुस्तक से पढ़ाया जाता है। Class 9 Social Science Food Security in India notes in hindi मे हम भारत में खाद्य सुरक्षा के बारे मे पढ़ेंगे। इस कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान नोट्स की मदद से आप भारत में खाद्य सुरक्षा के बारे मे सबसे जरूरी बातें जान जाएंगे जो की आपके अध्ययन, revision, एवं परीक्षा की तैयारी मे अत्यंत उपयोगी साबित करेगा।
कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान भारत में खाद्य सुरक्षा नोट्स
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कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान भारत में खाद्य सुरक्षा नोट्स PDF
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कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान नोट्स
सामाजिक विज्ञान के इस topic भारत में खाद्य सुरक्षा के अलावा भी अन्य chapters के नोट्स है। Class 9 Social Science notes in hindi pdf यह रहे:
- भारत में खाद्य सुरक्षा
- संसाधन के रूप में लोग
- निर्धनता: एक चुनौती
- पालमपुर गाँव की कहानी
- भारत – आकार और स्थिति
- प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी
- भारत का भौतिक स्वरुप
- वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद
- नात्सीवाद और हिटलर का उदय
- आधुनिक विश्व में चरवाहे
- किसान और काश्तकार
- यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- फ़्रांसिसी क्रांति
- संविधान निर्माण
- लोकतांत्रिक अधिकार
- चुनावी राजनीति
- लोकतंत्र क्या? लोकतंत्र क्यों?
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- कक्षा 9 नोट्स
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- सामाजिक विज्ञान
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- कक्षा 10 नोट्स
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अध्ययन सामग्री
भारत में खाद्य सुरक्षा के नोट्स के अलावा आप पुस्तक एवं समाधान भी प्राप्त कर सकते है।
कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान भारत में खाद्य सुरक्षा नोट्स का overview
इस अध्ययन सामग्री की जरूरी बातें जान ले।
कक्षा | कक्षा 9वीं |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
अध्याय | भारत में खाद्य सुरक्षा |
अध्ययन सामग्री | कक्षा 9वीं के नोट्स सामाजिक विज्ञान विषय के भारत में खाद्य सुरक्षा अध्याय के लिए |
इस विषय के और नोट्स एवं टिप्पणियाँ | |
इस कक्षा के और नोट्स एवं टिप्पणियाँ | |
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भारत में खाद्य सुरक्षा notes, Class 9 economics chapter 4 notes in hindi
9 class economics chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा notes in hindi food security in india.
NCERT | |
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Chapter 4 | |
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Class 9 Economics Notes in Hindi | |
Hindi |
भारत में खाद्य सुरक्षा notes, Class 9 economics chapter 4 notes in hindi जिसमे हम खाद्य सुरक्षा , आपदा के समय खाद्य सुरक्षा , मौसमी भूखरी , दीर्घकालिक भूखमरी , खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता , भारत में खाद्य सुरक्षा , सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि के बारे में विस्तार से पड़ेंगे ।
Class 9 Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा Food Security in India Notes In Hindi
📚 अध्याय = 4 📚 💠 भारत में खाद्य सुरक्षा 💠
❇️ खाद्य सुरक्षा :-
🔹 खाद्य सुरक्षा से अभिप्राय सभी लोगों के लिए सदैव भोजन की उपलबधता पहुँच और उसे प्राप्त करने का सामर्थ्य से है ।
❇️ खाद्य सुरक्षा क्यों ?
🔹 समाज का अधिक गरीब समूह तो हर समय खाद्य सुरक्षा से ग्रस्त हो सकता है परंतु जब देश भूकंप , बाढ़ , सुनामी , फसलों के खराब होने से पैदा हुए अकाल आदि राष्ट्रीय आपदाओं से गुजर रहा हाँ तो निर्धनता रेखा से ऊपर के लोग भी खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकते हैं ।
❇️ आपदा के समय खाद्य सुरक्षा कैसे प्रभावित होती है ?
प्राकृतिक आपदा जैसे सूखे के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आती है जिससे प्रभावित क्षेत्र में अनाज की कमी हो जाती है ।
खाद्यान्न की कमी से कीमतों में वृद्धि हो जाती है ।
कुछ लोग ऊँची कीमतों पर खाद्य पदार्थ नहीं खरीद सकते क्योंकि वे आर्थिक रूप से कमज़ोर होते हैं ।
अगर आपदा अधिक देर तक रहे तो भुखमरी की स्थिति बन जाती है और अकाल पड़ सकता है ।
❇️ आपदा से खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाले कारक :-
🔹 आपदा से खाद्य सुरक्षा का प्रभावित होना , सूखा तथा अनाज की कमी , कीमतों में वृद्धि , भुखमरी , अकाल के समय खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है ।
❇️ खाद्य से असुरक्षित कौन ?
- भूमिहीन
- पारंपरिक दस्तकार
- भिखारी
- अनियमित श्रमिक आदि
- अनुसूचित जन जातियाँ ( आदिवासी )
- सर्वाधिक असुरक्षित है ।
❇️ मौसमी भूखरी :-
🔹 जब खेतों में फसल पकने और फसल कटने के चार महीने तक कोई काम नहीं होता तो मौसमी भूखमरी की स्थिति पैदा हो जाती है ।
❇️ दीर्घकालिक भूखमरी :-
🔹 जब आहार की मात्रा निरंतर कम हो या गुणवत्ता के आधार पर कम हो ।
❇️ खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता :-
🔹 स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय नीति – निर्माताओं ने खाद्यान्नों में आत्म निर्भरता प्राप्त करने के सभी उपाय किए । हरित क्रांति से यह आतमनिर्भरता संभव हो पाई ।
❇️ भारत में खाद्य सुरक्षा :-
🔹 सरकार द्वारा सावधानिपूर्वक तैयार की गई खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के कारण देश में अनाज की उपलब्धता और भी सुनिश्चित हो गई है ।
❇️ भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित :-
🔹 भारत में खाद्य सुरक्षा निम्नलिखित प्रकार से सुनिश्चित की जाती है ।
- खाद्य उपलब्धता
- खाद्य पाने का सामर्थ
- खाद्य तक पहुँच
❇️ भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 :-
🔶 उद्देश्य – मानव का गरिमामय जीवन निर्वाह ।
🔹 इसके तहत खाद्य एवं पोषण संबंधी सुरक्षा सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराना ।
🔹 इस अधिनियम के तरह 75 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या एवं 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को लाभान्वित परिवारों में शामिल किया गया है ।
❇️ बफर स्टॉक :-
🔹 भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज , गेहूँ , और चावल के भंडार को बफर स्टॉक कहते है ।
❇️ न्यूनतम समर्थित कीमत :-
🔹 भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन करने वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है । किसानों को अपनी फसलों के लिए बुआई के मौसम से पहले से घोषित कीमते दी जाती है ।
❇️ सार्वजनिक वितरण प्रणाली :-
🔹 भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है । इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली ( पी ० डी ० एस ० ) कहते है ।
❇️ सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभ :-
- मूल्यों को स्थिर रखने में सहायता ।
- सामर्थ्य अनुसार कीमतों पर उपभोक्ताओं को खाद्यान्न उपलब्ध कराने में सफलता ।
- कमी वाले क्षेत्रों में खाद्य पूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका ।
- अकाल और भुखमरी की व्यापकता को रोकने में सहायता ।
- निर्धन परिवारों के पक्ष में कीमतों का संशोधन ।
❇️ गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार द्वारा लागू योजनाएँ :-
- रोज़गार गारंटी योजना ।
- दोपहर का भोजन ।
- संपूर्ण ग्रामीण रोज़गार योजना ।
- एकीकृत बाल विकास योजना ।
- गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
- अंत्योदय अन्न योजना ( ए.ए. वाई )
- अन्नपूर्णा योजना ( ए.पी.एस. )
❇️ अंत्योदय अन्न योजना :-
- दिसंबर 2000 में प्रारंभ ।
- निर्धनता रेखा के नीचे वाले परिवार शामिल हैं ।
- 2 रू . प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रू . प्रति किलोग्राम की दर से प्रत्येक परिवार को 35 किलोग्राम अनाज ।
- सर्वाजनिक वितरण प्रणाली ( पी . डी . एस . ) के द्वारा अनाजों का वितरण ।
❇️ सहकारी समितियों की खाद्य सुरक्षा में भूमिका :-
🔹 भारत में सहकारी समितियों भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है जैसे :-
सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री हेतु कम कीमत वाली दुकानें खोलती हैं ।
समाज के अलग – अलग वर्गों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है ।
अनाज बैंको की स्थापना हेतु गैर – सरकारी संगठनों के नेटवर्क में ममद करती है ।
ए.डी.एस. गैर– सरकारी संगठनों हेतु खाद्यान्न सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है ।
( ए . डी . एस . एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट सांपइस )
🔶 उदहारण :-
🔹 तमिलनाडू में राशन की दुकाने , दिल्ली में मदर डेयरी और गुजरात में अमूल सफल सहकारी समितियों के उदाहरण है ।
❇️ राशन की दुकानों को चलाने में आई समस्याएँ :-
राशन की दुकान चलाने वाले लोग अनाज को अधिक लाभ कमाने के लिए खुले बाज़ार में बेचते हैं ।
राशन की दुकानों पर घटिया अनाज की बिक्री ।
राशन की दुकानों पर उचित समय पर न खुलकर कभी कभार खुलती हैं ।
घटिया अनाज की बिक्री नहीं होती है तो भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में विशाल स्टॉक जमा हो जाता है ।
निर्धनता रेखा से ऊपर वाले परिवार खाद्यान्न की कीमत में बहुत कम छूट के कारण इन चीजों की खरीदारी नहीं करते ।
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अनिल अग्रवाल डायलॉग: पोषणयुक्त भोजन के लिए सतत खाद्य प्रणाली को अपनाना होगा
विशेषज्ञों ने माना सभी तरह के खाद्यानों को प्रकृती के साथ सौहार्द बनाते हुए उच्च उत्पादकता को पाने के साथ पोषकता को बनाए रखना है चुनौती
By Rohit Prashar
On: Friday 04 March 2022
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कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति के बाद जहां एक तरफ पैदावार में लगातार बढ़ोतरी आंकी जा रही है। वहीं दूसरी ओर गरीबों में पोषण की कमी भी दर्ज की जा रही है।
हाल में आए हंगर इंडेक्स में भारत हंगर इंडेक्स रैंकिंग में कुल 116 देशों में 101वें स्थान में रहा है। इसके अलावा हाल ही में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट में भारत के 5 साल से छोटे 32 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट पाए गए हैं।
वहीं भारत में महिलाओं और किशोरियों में एनीमिया की कमी की समस्या को भी प्रमुखता से देखा गया है। जो हमारे देश के लिए चिंता का विषय है। इसलिए हमें एक ऐसी सतत खाद्य प्रणाली की जरूरत है जो न सिर्फ खाद्य सुरक्षा प्रदान करे बल्कि पोषणयुक्त खाद्यान्न भी मुहैया करवा सके।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा आयोजित अनिल अग्रवाल डायलॉग में पोषणयुक्त खाद्यान्न और सतत खाद्य प्रणाली को लेकर विशेषज्ञों ने भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सतत खाद्य प्रणाली को तैयार करने के लिए रूपरेखा पर चर्चा की।
डॉयलॉग के दौरान सीएसई के सतत खाद्य प्रणाली के कार्यक्रम निदेशक अमित खुराना ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताया कि हमें वर्ष 2050 तक होने वाली आबादी के हिसाब से खाद्य प्रणाली को तैयार करने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि उपभोक्ताओं को पोषणयुक्त स्थानीय भोजन की उपलब्धता की दिशा में काम करना चाहिए। इसके लिए हमें प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि भले ही देश में जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है, लेकिन दूसरी तरफ इसके लिए बहुत कम बजट का प्रावधान किया जा रहा है, जिसकी वजह से यह उस गति आगे नहीं बढ़ रही, जितनी तेजी गति से इसे आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है।
राष्टीय जैव विविधता प्राधिकरण के अध्यक्ष वी बी माथूर ने कृषि विविधता को संजोए रखने और आजिविका को बढ़ाने के लिए जैव विविधता एक्ट 2002 के महत्व के बारे में प्रस्तुति दी।
उन्होंने बताया कि जिस गति से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उसका सबसे अधिक असर कृषि क्षेत्र और जैव विविधता में देखने को मिल रहा है। इसकी वजह से जीवों और खाद्यानों की कई प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। इसलिए जैव विविधता एक्ट इन्हें बचाने में अहम भूमिका निभा रहा है।
माथुर ने बताया कि दुनिया में 39100 पौधों की कुल किस्में पाई गई हैं और इसमें से मनुष्य के इतिहास में केवल 5538 प्रजातियों को भोजन के रूप में प्रयोग लाया गया है। लेकिन अब 90 फीसदी विश्व में भोजन के लिए केवल 50 फसलों को ही प्रयोग में लाया जाता है। भोजन के लिए केवल कुछ फसलों पर निर्भरता से पोषणयुक्त खाद्यानों की विविधता कम होती जा रही है। जिसे जैव विविधता एक्ट और सतत खाद्य प्रणाली के माध्यम से पुनः पुनर्जीवित किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि अभी तक देश में 2,76,690 जैव विविधता प्रबंधन समितियों का गठन किया गया है। यह समितियां पंचायत स्तर में पंचायत बायोडायवर्सिटी रजिस्टर को तैयार कर रही हैं। जिससे जैव विविधता को संजोए रखने में मदद मिलेगी।
डायलॉग के दौरान हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कार्यकारी निदेशक जीवी रामाजनेयुलू ने कृषि और आजीविका के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वर्तमान में मोनोकल्चर कृषि के लिए खतरनाक है। जलवायु परिवर्तन की वजह से कृषि क्षेत्र में अनिश्चितता की स्थिति बढ़ गई है। सतत खाद्य प्रणाली के लिए किसान, गांव, पंचायत, जिला और राज्य स्तर पर काम करने की जरूरत है। किसानों की आय को बढ़ाने के लिए ग्रामीण उद्यमिता को बढाने के साथ ग्रामीण स्तर पर एफपीओ को बढ़ावा देने और कृषि आधारित स्टार्टअप को बढ़ावा देना चाहिए।
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में सचिव रह चुके टी नंदा कुमार ने कहा कि हमारे मुकाबले कनाडा, चीन समेत कई देशों मे उत्पादन कई गुणा अधिक है। इसलिए हमें अपनी उत्पादकता को पोषकता को बनाए रखते हुए बढ़ाने का दबाव है। हमें हरित क्रांति के मॉडल से उपर उठकर अब पोषण तत्वो से भरपुर खाद्यान को अधिक उत्पादन पाने के लिए नई तकनीकों को प्रयोग में लाना चाहिए।
इक्रीसेट के कंटी रिलेशन के निदेशक अरबिंदा के पाधी ने पोषकता और कृषि विविधता के बीच में सबंध के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग, जलवायु परिवर्तन, कृषि के अप्राकृतिक तरीकों, एकल फसलीय प्रणाली की वजह से खाद्यानों में पोषकता की कमी आई है। इसके लिए प्राकृतिक खेती और पर्यावरण हितैषी खादों, उच्च उत्पादन वाले पुराने बीजों और बेहतर कृषि के लिए शोधकार्य को बढ़ाना चाहिए।
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Food Security in India Essay | Essay on Food Security in India for Students and Children in English
February 12, 2024 by Prasanna
Food Security in India Essay: Food security means availability of adequate food grains to meet the domestic demand along with availability at the individual level, to sufficient quantities of food at affordable prices.
Despite rapid economic growth in recent years, low access to food by people living below the poverty line remains a crisis in India. Right to food is a fundamental right. Yet food security remains a farfetched dream in our country.
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Long and Short Essays on Food Security in India for Students and Kids in English
We provide children and students with essay samples on a long essay of 500 words and a short essay of 150 words on the topic “Food Security In India” for reference.
Long Essay on Food Security in India 500 Words in English
Long Essay on Food Security in India is usually given to classes 7, 8, 9, and 10.
Food security is a factor that ensures the public to have access to sufficient, sanitary and nutritious food to suffice their nutritional needs and food preference for them to live a healthy and active life. Food Security has three chief and closely related workings, which are the– availability of food, access to food, and absorption of food.
Even with India’s fast-growing economy throughout the past few years, food security among the below poverty line population still is a far-off dream in our nation. It is estimated that around 50% of children and infants are malnourished and about half of the pregnant women population are anaemic.
In 2016’s Global Hunger Index, India has been ranked 97th in 118 countries. In the history of this country, it has suffered from14 famines, the Bengal Famine in 1943 being the worst. Food availability here has been largely dependent on the monsoon season. Environmental situations like floods, droughts, depletion in soil fertility, erosion and waterlogging have created obstacles in the normal running of the agricultural activities. With increasing population, agricultural areas are getting occupied for accommodation areas, roads, factories and other activities.
In the past, multiple efforts were executed to attain food security by massively increasing food grain production. The Green Revolution during Indira Gandhi’s governance was a step towards achieving Food Security. Ultimately revolutionary self-sufficiency in food was achieved with the Green Revolution during the late 1960s and 1970s in India.
Over the years, the White Revolution and structural transformation in agro-industry have helped to make sure food security to a large degree. During the 1960s, the Government of India launched the Public Distribution System (PDS), to ensure physical and economic availability of food to all sectors of the society, principally for the poor.
In 1995, the “Mid Day Meal Scheme” was launched. This was a scheme to feed underprivileged school children. The “Antyoday Ann Yojana” scheme was launched in 2000 for the most economically background people; National Food Security Act 2013 etc. to supply food and nutritional security to every segment of the country.
But with the power of progressing science and innovation in today’s world India hopes to increase the rate of food production in the agricultural as well as the livestock area including pisciculture. Advance biotechnology used in agriculture to improve soil production by employing various environmental friendly tools for insect and pest management. These measures are to ensure national and household nutritional and food security, by reducing poverty at a rapid rate, and to achieve accelerated growth in the agricultural sector.
The supply chain between the farmers and the consumers should be shortened, and farmer-friendly marketing processes are to be introduced.Such efforts would bring about positive developments and prosperity for everyone living in India. In a big country like India with a rapidly growing population, a large chunk of it is malnourished and under-weight; thus, it’s necessary to attain food security. Therefore a second revolution is extremely necessary to bring about stability in the Food Security in this nation.
Short Essay on Food Security in India 150 Words in English
Short Essay on Food Security in India is usually given to classes 1, 2, 3, 4, 5, and 6.
Food security is a factor that ensures sufficient food supply to people, particularly those who are deprived of basic nutrition. Food security is a major concern in India. Ironically, the vision for food security in a primarily agricultural country seems distant from reality. There are nearly 19.5 crore undernourished people in India, according to the UN, which is equivalent to a quarter of the world’s hunger burden. Also, around 43% of children in this country are chronically malnourished.
India ranks 74 out of 113 major countries in food security index. Though the available nutritional standard is 100% of the requirement, India lags far behind in terms of quality protein intake at 20% which needs to be tackled by making available protein-rich food products at affordable prices. India needs to work on methods to improve the accessibility and affordability of protein-rich food products using the latest environmentally friendly technology without the need for additional land and water to make this nation 100% food secure.
10 Lines on Food Security in India in English
- Food is essential to the survival of people.
- Food Security is the availability of food and one’s access to it.
- A household is deemed food-secure when its occupants do not live in hunger or fear of starvation.
- Six million children die of hunger every year.
- More than 850 million people worldwide live every day being food insecure. One in seven people lives with a problem that can be fixed.
- Indian contributes a quarter of the population across the world suffering from hunger.
- There are 19.5 crore undernourished people in India.
- The Green Revolution was the first step taken in India to attain food security.
- Average India’s diet consists of grains and vegetables and is deficient in protein.
- India’s malnutrition figures are not coming down despite several government programmes, says a new report released by World Food Programme.
FAQ’s on Food Security in India Essay
Question 1. What do you mean by food security in India?
Answer: According to the World Health Organization, food security is when people at all times have physical and economic access to adequate and nutritious food for a healthy and active life.
Question 2. Does India have food security?
Answer: Data reports show that is the country with the largest population of food-insecure people. By 2019, 6.2+ crore people were living with food insecurity than the number in 2014.
Question 3. What are the five components of food security?
Answer: 5 components of food security:
- Availability of Food
- Access to Food
- Utilization of Food
- Malnutrition
- Picture Dictionary
- English Speech
- English Slogans
- English Letter Writing
- English Essay Writing
- English Textbook Answers
- Types of Certificates
- ICSE Solutions
- Selina ICSE Solutions
- ML Aggarwal Solutions
- HSSLive Plus One
- HSSLive Plus Two
- Kerala SSLC
- Distance Education
What is Food Security?
- Our Projects
- Data & Research
- News & Opinions
- What is Food Security
Based on the 1996 World Food Summit , food security is defined when all people, at all times, have physical and economic access to sufficient safe and nutritious food that meets their dietary needs and food preferences for an active and healthy life.
The four main dimensions of food security:
- Physical availability of food: Food availability addresses the “supply side” of food security and is determined by the level of food production, stock levels and net trade.
- Economic and physical access to food: An adequate supply of food at the national or international level does not in itself guarantee household level food security. Concerns about insufficient food access have resulted in a greater policy focus on incomes, expenditure, markets and prices in achieving food security objectives.
- Food utilization : Utilization is commonly understood as the way the body makes the most of various nutrients in the food. Sufficient energy and nutrient intake by individuals are the result of good care and feeding practices, food preparation, diversity of the diet and intra-household distribution of food. Combined with good biological utilization of food consumed, this determines the nutritional status of individuals.
- Stability of the other three dimensions over time: Even if your food intake is adequate today, you are still considered to be food insecure if you have inadequate access to food on a periodic basis, risking a deterioration of your nutritional status. Adverse weather conditions, political instability, or economic factors (unemployment, rising food prices) may have an impact on your food security status.
For food security objectives to be realized, all four dimensions must be fulfilled simultaneously.
The World Bank Group works with partners to build food systems that can feed everyone, everywhere, every day by improving food security, promoting ‘nutrition-sensitive agriculture’ and improving food safety. The Bank is a leading financier of food systems. In fiscal year 2022, there was US$9.6 billion in new IBRD/IDA commitments to agriculture and related sectors
Activities include:
- Strengthening safety nets to ensure that vulnerable families have access to food and water–and money in their pockets to make vital purchases
- Delivering expedited emergency support by fast-tracking financing through existing projects to respond to crisis situations
- Engaging with countries and development partners to address food security challenges. Instruments include rapid country diagnostics and data-based monitoring instruments and partnerships such as the Famine Action Mechanism and the Agriculture Observatory
- Promoting farming systems that use climate-smart techniques , and produce a more diverse mix of foods, to improve food systems’ resilience, increase farm incomes and enable greater availability and affordability of nutrient-dense foods
- Improving supply chains to reduce post-harvest food losses, improve hygiene in food distribution channels, and better link production and consumption centers
- Applying an integrated “One Health” approach to managing risks associated with animal, human and environmental health
- Supporting investments in research and development that enable increasing the micronutrient content of foods and raw materials
- Advocating for policy and regulatory reforms to improve the efficiency and integration of domestic food markets and reduce barriers to food trade
- Working with the private sector, government, scientists, and others to strengthen capacities to assess and manage food safety risks in low and middle-income countries
- Supporting long-term global food security programs: The Bank houses the Global Agriculture and Food Security Program (GAFSP) , a global financing instrument that pools donor funds and targets additional, complementary financing to agricultural development across the entire value chain. Since its launch in 2010 by the G20 in response to the 2007-2008 food price crisis, GAFSP has reached over 13 million smallholder farmers and their families with over $1.3 billion in grant funding to 64 projects in 39 countries, $330 million to 66 agribusiness investment projects in 27 countries, and $13.2 million in small-scale grants to support producer organizations. Most recently, in response to the ongoing COVID-19 pandemic, GAFSP allocated over $55 million of additional grant funding to on-going public sector and producer organization-led projects to support COVID-19 response and recovery.
- The Bank also supports the CGIAR which advances agriculture science and innovation to boost food and nutrition security globally.
Global Food and Nutrition Security Dashboard
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खाद्य सुरक्षा तथा वर्तमान परिदृश्य
- 27 May 2022
- 14 min read
- सामान्य अध्ययन-II
- गरीबी और भूख से संबंधित मुद्दे
- सामान्य अध्ययन-III
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए)
- कृषि संसाधन
यह एडिटोरियल 24/05/2022 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “Climate Change Threatening Food Security” लेख पर आधारित है। इसमें वैश्विक स्तर पर हो रहे परिवर्तनों से खाद्य सुरक्षा के संबंध और इस स्थिति से निपटने के लिये किये जा सकने वाले उपायों के बारे में चर्चा की गई है।
यूरोप में अप्रत्याशित रूस-यूक्रेन युद्ध ने सभी आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया और गेहूं से लेकर जौ, खाद्य तेल और उर्वरकों तक प्रत्येक वस्तु की कमी की स्थिति उत्पन्न की। हालाँकि, अधिक गहरी, दीर्घकालिक चिंता जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ बढ़ते तापमान को लेकर है जो फसलों को और खाद्य आत्मनिर्भरता को प्रभावित करेंगे।
सरकार यह भी समझती है कि कोविड-19 महामारी के कारण लोगों के व्यय करने की शक्ति में भारी गिरावट आई है और कुछ के लिये भूख एक लगातार बढ़ता संकट बनता जा रहा है। इसलिये, सरकार ने मुफ्त राशन योजना की अवधि को सितंबर 2022 तक के लिये छह माह और बढ़ा दिया है।
वृहत परिप्रेक्ष्य में देखें तो विश्व के तीसरे सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक और जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे संवेदनशील देशों में से एक के रूप में भारत के लिये अपने आर्थिक विकास को निम्न कार्बन गहन बनाना उसके व्यापक हित में है।
जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा से कैसे संबंधित है?
- इसके साथ ही, खाद्य प्रणालियाँ पर्यावरण को भी प्रभावित करती हैं और जलवायु परिवर्तन की वाहक होती हैं। आकलन बताते हैं कि खाद्य क्षेत्र वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 30% का योगदान करता है।
- इसके अतिरिक्त, वर्षा में सामान्य से एक तिहाई की कमी आई है और इससे गेहूँ एवं जौ जैसी शीतकालीन फसलें प्रभावित होंगी।
- दूसरी बड़ी अनिश्चितता यह है कि क्या ‘ला नीना’ तीसरे वर्ष भी जारी रहेगी और अमेरिका के अनाज उत्पादन को आगे और प्रभावित करेगी।
जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा की वर्तमान स्थिति
- भारतीय मौसम विभाग (IMD) द्वारा मार्च 2022 को 122 वर्ष पूर्व रिकॉर्ड-कीपिंग शुरू किये जाने के बाद से अब तक का सबसे गर्म माह घोषित किया गया।
- भारत ने अप्रैल 2022 में वनाग्नि की लगभग 300 घटनाएँ देखी।
- इसने भारतीय उपमहाद्वीप में भविष्य में ग्रीष्म लहरों की स्थिति के बारे में कुछ अनुमान भी प्रकट किये हैं।
- केरल के कुछ हिस्सों में बेमौसम बारिश ने किसानों को जलमग्न खेतों से धान की कटाई के लिये मज़बूर किया, जिसके परिणामस्वरूप निम्न-गुणवत्ता की फसलें प्राप्त हुई।
- फसल की पैदावार में 20% की कमी आई है और इसके कारण सरकार को ‘दुनिया का पेट भरने’ (‘feed the world’) का अपना प्रस्ताव वापस लेना पड़ा क्योंकि निर्यातित गेहूँ की हाजिर कीमतों में माह-दर-माह 60% की वृद्धि हुई। सरकार द्वारा गेहूँ की विदेशी बिक्री पर प्रतिबंध के बाद इनकी कीमतों में नरमी आ सकी।
खाद्य सुरक्षा पर रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव
- इसके परिणामस्वरूप वैश्विक खाद्य और उर्वरकों की कीमतें बढ़ रही हैं। रूसी आक्रमण के बाद से गेहूँ की कीमतों में 21%, जौ की कीमतों में 33% और कुछ उर्वरकों की कीमतों में 40% वृद्धि दर्ज की गई है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, उर्वरक बा ज़ा रों पर युद्ध का प्रत्यक्ष प्रभाव सर्वप्रथम भारत और ब्राजील में खाद्य उत्पादन के मौसम में अनुभव किया जाएगा।
- ईंधन की कीमतों में उछाल: रूस-यूक्रेन संघर्ष ईंधन की बढ़ती कीमतों के लिये ज़ि म्मेदार है क्योंकि आपूर्ति शृं खला (विशेष रूप से कच्चे तेल की) बाधित हो गई है, जो पहले से ही दबाव ग्रस्त वैश्विक आपूर्ति और विश्व भर में निम्न भंडारण स्तर पर और भी अधिक दबाव बढ़ा एगी ।
जलवायु परिवर्तन के बीच खाद्य सुरक्षा को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है?
- कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य और लाभदायक बना ना भी आवश्यक है।
- इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बढ़ते तापमान के साथ लोगों और प्रकृति पर जलवायु चरम ता के प्रतिकूल प्रभाव बढ़ते रहेंगे, कार्रवाई और समर्थन (वित्त, क्षमता-निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण) की वृद्धि के लिये तत्काल बल दिया जाना उपलब्ध सर्वोत्कृष्ट विज्ञान के अनुरूप अनुकूलन क्षमता को बढ़ाने , प्रत्यास्थता को सुदृढ़ करने और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिये आवश्यक है ।
- संवहनीय खाद्य प्रणाली : उत्पादन, मूल्य शृं खला और उपभोग में संवहनीयता हासिल करनी होगी। जलवायु- प्रत्यास्थी फसल पैटर्न को बढ़ावा देना होगा। संवहनीय/सतत कृषि के लिये किसानों को इनपुट सब्सिडी देने के बजाय नकद हस्तांतरण किया जा सकता है।
- जलवायु जानकारी एवं तैयारियों के साथ छोटे किसानों के लिये सतत अवस रों , वित्त तक पहुँच और नवाचार के माध्यम से एक प्रत्यास्थी कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना।
- खाद्य सुरक्षा और जलवायु जोखिम के बीच के संबंध को संबोधित कर खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिये भेद्यता विश्लेषण हेतु नागरिक समाज और सरकारों की क्षमता एवं ज्ञान का निर्माण।
- भारत को अपनी खाद्य प्रणालियों को रूपांतरित करना होगा ताकि उच्च कृषि आय और पोषण सुरक्षा के लिये उन्हें अधिक समावेशी और संवहनीय बनाया जा सके ।
- जल के अधिक समान वितरण और संवहनीय एवं जलवायु- प्रत्यास्थी कृषि के लिये मोटे अनाज , दलहन, तिलहन और बागवानी की ओर फसल पैटर्न के विविधीकरण की आवश्यकता है।
- हालाँकि, अनुकूलन के लिये वर्तमान जलवायु वित्त और हितधारकों का आधार बिगड़ते जलवायु परिवर्तन प्रभावों पर कार्रवाई के लिये अपर्याप्त है।
- बहुपक्षीय विकास बैंक, अन्य वित्तीय संस्थान और निजी क्षेत्र जलवायु योजनाओं की पूर्ति के लिये (विशेष रूप से अनुकूलन के लिये) आवश्यक संसाधनों के वृहत स्तर पर वितरण हेतु वित्त पोषण में वृद्धि कर सकते हैं ।
निष्कर्ष
नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में प्रगति, इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अपनाने और भारत को हरित ऊर्जा पावरहाउस में बदलने के साथ भारत सरकार एक शुरुआत कर रही है। इसके साथ ही, लाखों लोगों को निर्धनता से बाहर निकालने की भी तत्काल आवश्यकता है और इस स्थिति को अभी संबोधित करना अनिवार्य है क्योंकि कृषि उत्पादकता में गिरावट के परिणामस्वरूप खाद्य कीमतों में वृद्धि होगी और इसका अर्थ होगा उनके लिये अधिक आर्थिक कठिनाइयाँ।
अभ्यास प्रश्न : ‘‘ वैश्विक स्तर उभरते मौजूदा संकट प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर रहे हैं।" चर्चा कीजिये ।
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Food Security Essay
Table of contents
Defining food security: a multidimensional perspective, the sociocultural significance of food, global population growth and food demand, challenges to achieving global food security, addressing food insecurity: global efforts and challenges, the future of food systems and sustainability.
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